Gand Se Gand Mila
हेलो हवस के पुजारियों। मेरा नाम नीलोफ़र (उम्र २९) है। मैं एक कंप्यूटर इंस्टिट्यूट में रिसेप्शनिस्ट हूँ। मेरी इस कामुक कहानी को पढ़कर आप लोगों को समझ में आएगा कि लेस्बियन औरतें कितनी चंचल और शरारती होती हैं।
मैं जब रिसेप्शनिस्ट की नौकरी पर लगी थी, तब मेरे साथ एक लड़का काउंटर पर बैठता था। मैंने उसे इतना तड़पाया कि मेरे आने के एक महीने बाद उसने नौकरी छोड़ दी।
बात दरअसल यह थी कि मेरी लेस्बियन सहेली वंदना (उम्र २७) नौकरी की तलाश में थी। मैंने सोचा कि अगर वंदना को मेरी कंप्यूटर इंस्टिट्यूट में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी मिल जाए, तो हम दोनों की लाइफ सेट हो जाएगी।
उस लड़के के जाने के बाद मैंने सामने से इंस्टिट्यूट के मालिक से बात करके उन्हें वंदना को नौकरी देने को कहा। उन्हें भी लगा कि रिसेप्शन काउंटर पर लड़कियाँ रहेंगी तो माहौल भी अच्छा बना रहेगा।
इस तरह मैंने अपनी लेस्बियन सहेली वंदना को मेरे साथ काम पर लगवाया। वंदना के आते ही, हम दोनों ने रिसेप्शन काउंटर पर एक दूसरे पर प्यार जताना शुरू कर दिया। कपड़े खोलकर नहीं, लेकिन हमारे अपने अलग अंदाज़ में।
दोपहर के वक़्त, कंप्यूटर इंस्टिट्यूट में लोगों का आना जाना कम हो जाता है। काम भी उतना नहीं रहता जितना सुबह के वक़्त होता है। मैं और वंदना उस समय थोड़ी मस्ती करके अपना वक़्त बिताते हैं।
एक दिन, वंदना अपने साथ फेटी हुई मलाई से भरी स्प्रे बोतल और दो सिरों वाला नकली लौड़ा लाई थी। काम पर आते ही उसने मुझसे कहा कि आज उसे कुछ अलग किसम की मस्ती करने का दिल कर रहा है करके। उस दिन, लंच टाइम से पहले वंदना ने मुझे समझाया कि हमें दोपहर को करना क्या था।
मैं उसका प्लान सुनकर बहुत उत्साहित हो गई थी। मैंने कैंटीन में जाकर २ केले ख़रीदे और उन्हें लेकर शौचालय के अंदर चली गई। अपनी कुर्ती और चड्डी उतारकर, मैंने दोनों केलों के छिलके उतारकर अपनी गाँड़ की दरार में घुसा दिया।
लंच टाइम के बाद, वंदना और मैं रिसेप्शन काउंटर पर बैठकर आगे होने वाली मस्ती के बारे में सोचकर खिलखिला रहे थे। करीब ०३: ०० बजे हमने अपना काम बंद किया और रिसेप्शन काउंटर से उठकर चले गए।
हम दोनों चौथी मंजिल पर बने कांफ्रेंस रूम के पास वाले शौचालय में चले गए थे। वहाँ पर दोपहर के वक़्त सिक्योरिटी गार्ड के अलावा और कोइ नहीं होता।
कांफ्रेंस रूम के अंदर घुसकर हम लोग दूसरी तरफ़ वाला दरवाज़ा खोलकर शौचालय के अंदर घुस गए थे। वंदना ने अपनी बैग के अंदर से फेटी हुई मलाई से भरी स्प्रे बोतल और दो सिरों वाला नकली लौड़ा निकालकर स्टैंड के ऊपर रख दी।
वंदना और मैं एक दूसरे को अपनी बाहों में भरकर होठों की चुम्मियाँ लेने लगे। एक दूसरे की कमर को कसकर पकड़ के हम दोनों मुँह के अंदर ज़ुबान ड़ालकर उसे चाटने लगे। चुम्मियाँ लेते समय वंदना मेरी चुचियाँ दबा रही थी।
वंदना ऊंचाई में मुझसे थोड़ी छोटी होने के कारण मैं अपने हाथों को उसकी गाँड़ पर रखकर उसे सहारा दे रही थी। मैंने वंदना की टी-शर्ट को उतार दिया और उसके मोटे और गोल चूचियों को अपने हाथों से दबाना शुरू किया।
वह थोड़ी मोटी होने की वजह से उसके चूचे मुझसे ज़्यादा बड़े हैं। वंदना ने मेरी सलवार उतारी और मेरी चूचियों को ब्रा से निकालकर उन्हें बारी-बारी से चूसने लगी। मैंने भी वंदना की टी-शर्ट और ब्रा को निकालकर उसकी चूचियाँ चूसने लगी।
हम दोनों उत्तेजित होकर एक दूसरे को अपनी हवस की गर्मी देने लगे थे। मैं और वंदना एक दूसरे की निप्पल को आपस में मिला रहे थे। हम दोनों के कड़क निप्पल मिलते ही हमारे बदन में कामुकता की करंट लग गई।
वंदना टॉयलेट सीट को निचे करके उसपर बैठ गई। मैंने अपनी कुर्ती उतारी और अपनी गाँड़ को वंदना के मुँह के पास करके झुक गई। २ केले जो मैंने अपनी गाँड़ की दरार में घुसाए थे वह दबकर मेरी पैंटी पर चिपक गए थे।
वंदना ने मेरी गाँड़ और पैंटी पर से चिपके हुए केले को बटोर लिया। फिर वह मेरी चुत्तड़ों को फैलाकर मेरी गाँड़ की दरार को चाटने लगी। मेरी पूरी गाँड़ पर थूक लगाकर उसने अच्छे से चाटकर साफ़ किया।
अपनी दो उँगलियों को मेरी गाँड़ की छेद के अंदर घुसाकर अंदर-बाहर करने लगे। मैंने अपने मुँह पर हाथ रखकर मेरी चीख़ों की आवाज़ को दबा दिया। मेरी गाँड़ की छेद पर थूक मारकर वह ज़ोर-ज़ोर से उँगलियाँ घुसाने लगी।
कुछ देर बाद जब उसकी दोनों उँगलियाँ पूरी अंदर घुसनी शुरू हुई तब उसने उँगलियों को बाहर निकाल दिया। वंदना ने अपनी मुट्ठी में पकड़े केले को मेरी गाँड़ की छेद में थोड़ा-थोड़ा करके भर दिया।
मेरी गाँड़ में केले भरने के बाद वंदना ने अपना मुँह मेरी गाँड़ की छेद पर रख दिया। मुझे थोड़ा आगे झुकाकर उसने मेरी चूत में उँगली घुसाना शुरू किया। वह जैसे-जैसे अपनी रफ़्तार बढ़ाती गई वैसे-वैसे मेरी गाँड़ की छेद थोड़ी खुलती गई।
वंदना मेरी गाँड़ की छेद में अपनी ज़ुबान घुसाकर मुझे उकसाह रही थी जिसकी वजह से प्रेशर बढ़ता गया। मैंने ज़ोर की पाद मारी और सारा केला चिपचिपा और गाढ़ा बनकर वंदना के मुँह में चला गया।
वह थोड़ा-थोड़ा करके मेरी गाँड से निकले माल को खा गई। उसने अपनी उँगली घुसाकर अंदर फसे माल को बाहर निकालकर खा लिया। दूसरी बार मैंने पाद मारकर बचे-खुचे केले को वंदना के मुँह पर छिड़क दिया।
वंदना को उठाकर मैंने उसके चेहरे पर लगे केले के छीटों को साफ़ कर दिया। मेरी गाँड़ का सफाया हो गया था, अब बारी थी वंदना की। मैं फेटी हुई मलाई से भरी स्प्रे बोतल को लेकर टॉयलेट सीट पर बैठ गई।
वंदना की जीन्स पैंट और उसकी पैंटी को उतारकर मैंने उसके चुत्तड़ों को फैलाए। उसकी गाँड़ की दरार और छेद को मैंने अच्छी तरह से चाटकर साफ़ कर दिया। वंदना को आगे झुकाकर मैंने अपनी ज़ुबान उसकी गाँड़ की छेद के अंदर घुसा दी।
ज़ुबान को अंदर-बाहर करते हुए मैंने उसकी गाँड़ की छेद को भी साफ़ कर दिया। फिर मैंने स्प्रे बोतल की नोक को वंदना की गाँड़ की छेद के अंदर घुसा दिया। २-३ बार बटन को दबाकर मैंने ठंडी मलाई की धार को गाँड़ की छेद में निकाल दिया।
वंदना अपनी गाँड़ हिलाने लगी जब ठंडी मलाई की धार उसकी गाँड़ में घुसी। मैंने आधी बोतल खाली करके उसकी गाँड़ की छेद में अपनी ज़ुबान घुसा दी। वंदना की चूत में उँगली घुसाकर मैं उसे उकसाह रही थी ताकि उसकी गाँड़ से मलाई की तेज़ धार निकले।
कुछ देर उसकी चूत में उँगली घुसाने के बाद वंदना ने अपनी चुत्तड़ों को खुद से ही फैला दिया। मैंने अपना मुँह उसकी गाँड़ की छेद के सामने रख दिया और इंतज़ार करने लगी।
वंदना ने छोटी-छोटी पाद मारते हुए सारा मलाई मेरी मुँह के अंदर छिड़क दिया। थोड़ी मलाई उड़कर मेरी नाक पर चिपक गई। मैंने वंदना की गाँड़ की छेद को चूसकर बचे हुए मलाई को निकाला। मैं खड़ी हो गई और वंदना को अपनी बाहों में भर लिया।
हम दोनों एक दूसरे की चूत में ऊँगली रगड़कर होठों की चुम्मियाँ ले रहे थे। हम दोनों की चूचियाँ एक दूसरे की चूचियों से दब गए थे। जब हमारी चूत में से पानी निकलनी शुरू हो गई तब वंदना ने दो सिरों वाला नकली लौड़ा स्टैंड पर से निकाला।
हम दोनों उलटी दिशा में पलट गए और आगे झुककर एक दूसरे की गाँड़ से गाँड़ मिलाया। वंदना ने नकली लौड़े का एक सर मेरी गाँड़ की छेद में घुसा दिया और दूसरा हिस्सा अपनी गाँड़ की छेद के अंदर।
धीरे-धीरे धक्के मारकर हम दोनों ने नकली लौड़े को हमारी गाँड़ में पूरा अंदर घुसा दिया। हम दोनों की गाँड़ एक दूसरे की गाँड़ से टकराने लगी और नकली लौड़ा भी अंदर-बाहर होने लगा।
जब हम दोनों ने हमारी गाँड़ ज़ोर-ज़ोर से तकरानी शुरू की तब हम दोनों की चीख़ें निकलनी शुरू हो गई थी। हम दोनों ने एक हाथ को अपने मुँह पर दबाकर रखा और दूसरे हाथ से अपनी चूत में उँगली घुसाने लगे।
कुछ समय तक ऐसे एक दूसरे की गाँड़ चोदते हुए हमारी चूत में से पानी निकलने लगा। मैं और वंदना पलटकर हमारी चूत से निकली धार को एक दूसरे पर छिड़क दिया।
हम दोनों की साँसे तेज़ चल रही थी। हम दोनों ने एक दूसरे को साफ़ किया और कपड़े पहनाया। धीरे से कांफ्रेंस रूम में से निकलकर हम रिसेप्शन काउंटर पर जाकर बैठ गए। ऐसी मज़ेदार चुदाई अब हम हफ़्ते में २-३ बार करने लगे थे।
हेलो हवस के पुजारियों। मेरा नाम नीलोफ़र (उम्र २९) है। मैं एक कंप्यूटर इंस्टिट्यूट में रिसेप्शनिस्ट हूँ। मेरी इस कामुक कहानी को पढ़कर आप लोगों को समझ में आएगा कि लेस्बियन औरतें कितनी चंचल और शरारती होती हैं।
मैं जब रिसेप्शनिस्ट की नौकरी पर लगी थी, तब मेरे साथ एक लड़का काउंटर पर बैठता था। मैंने उसे इतना तड़पाया कि मेरे आने के एक महीने बाद उसने नौकरी छोड़ दी।
बात दरअसल यह थी कि मेरी लेस्बियन सहेली वंदना (उम्र २७) नौकरी की तलाश में थी। मैंने सोचा कि अगर वंदना को मेरी कंप्यूटर इंस्टिट्यूट में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी मिल जाए, तो हम दोनों की लाइफ सेट हो जाएगी।
उस लड़के के जाने के बाद मैंने सामने से इंस्टिट्यूट के मालिक से बात करके उन्हें वंदना को नौकरी देने को कहा। उन्हें भी लगा कि रिसेप्शन काउंटर पर लड़कियाँ रहेंगी तो माहौल भी अच्छा बना रहेगा।
इस तरह मैंने अपनी लेस्बियन सहेली वंदना को मेरे साथ काम पर लगवाया। वंदना के आते ही, हम दोनों ने रिसेप्शन काउंटर पर एक दूसरे पर प्यार जताना शुरू कर दिया। कपड़े खोलकर नहीं, लेकिन हमारे अपने अलग अंदाज़ में।
दोपहर के वक़्त, कंप्यूटर इंस्टिट्यूट में लोगों का आना जाना कम हो जाता है। काम भी उतना नहीं रहता जितना सुबह के वक़्त होता है। मैं और वंदना उस समय थोड़ी मस्ती करके अपना वक़्त बिताते हैं।
एक दिन, वंदना अपने साथ फेटी हुई मलाई से भरी स्प्रे बोतल और दो सिरों वाला नकली लौड़ा लाई थी। काम पर आते ही उसने मुझसे कहा कि आज उसे कुछ अलग किसम की मस्ती करने का दिल कर रहा है करके। उस दिन, लंच टाइम से पहले वंदना ने मुझे समझाया कि हमें दोपहर को करना क्या था।
मैं उसका प्लान सुनकर बहुत उत्साहित हो गई थी। मैंने कैंटीन में जाकर २ केले ख़रीदे और उन्हें लेकर शौचालय के अंदर चली गई। अपनी कुर्ती और चड्डी उतारकर, मैंने दोनों केलों के छिलके उतारकर अपनी गाँड़ की दरार में घुसा दिया।
लंच टाइम के बाद, वंदना और मैं रिसेप्शन काउंटर पर बैठकर आगे होने वाली मस्ती के बारे में सोचकर खिलखिला रहे थे। करीब ०३: ०० बजे हमने अपना काम बंद किया और रिसेप्शन काउंटर से उठकर चले गए।
हम दोनों चौथी मंजिल पर बने कांफ्रेंस रूम के पास वाले शौचालय में चले गए थे। वहाँ पर दोपहर के वक़्त सिक्योरिटी गार्ड के अलावा और कोइ नहीं होता।
कांफ्रेंस रूम के अंदर घुसकर हम लोग दूसरी तरफ़ वाला दरवाज़ा खोलकर शौचालय के अंदर घुस गए थे। वंदना ने अपनी बैग के अंदर से फेटी हुई मलाई से भरी स्प्रे बोतल और दो सिरों वाला नकली लौड़ा निकालकर स्टैंड के ऊपर रख दी।
वंदना और मैं एक दूसरे को अपनी बाहों में भरकर होठों की चुम्मियाँ लेने लगे। एक दूसरे की कमर को कसकर पकड़ के हम दोनों मुँह के अंदर ज़ुबान ड़ालकर उसे चाटने लगे। चुम्मियाँ लेते समय वंदना मेरी चुचियाँ दबा रही थी।
वंदना ऊंचाई में मुझसे थोड़ी छोटी होने के कारण मैं अपने हाथों को उसकी गाँड़ पर रखकर उसे सहारा दे रही थी। मैंने वंदना की टी-शर्ट को उतार दिया और उसके मोटे और गोल चूचियों को अपने हाथों से दबाना शुरू किया।
वह थोड़ी मोटी होने की वजह से उसके चूचे मुझसे ज़्यादा बड़े हैं। वंदना ने मेरी सलवार उतारी और मेरी चूचियों को ब्रा से निकालकर उन्हें बारी-बारी से चूसने लगी। मैंने भी वंदना की टी-शर्ट और ब्रा को निकालकर उसकी चूचियाँ चूसने लगी।
हम दोनों उत्तेजित होकर एक दूसरे को अपनी हवस की गर्मी देने लगे थे। मैं और वंदना एक दूसरे की निप्पल को आपस में मिला रहे थे। हम दोनों के कड़क निप्पल मिलते ही हमारे बदन में कामुकता की करंट लग गई।
वंदना टॉयलेट सीट को निचे करके उसपर बैठ गई। मैंने अपनी कुर्ती उतारी और अपनी गाँड़ को वंदना के मुँह के पास करके झुक गई। २ केले जो मैंने अपनी गाँड़ की दरार में घुसाए थे वह दबकर मेरी पैंटी पर चिपक गए थे।
वंदना ने मेरी गाँड़ और पैंटी पर से चिपके हुए केले को बटोर लिया। फिर वह मेरी चुत्तड़ों को फैलाकर मेरी गाँड़ की दरार को चाटने लगी। मेरी पूरी गाँड़ पर थूक लगाकर उसने अच्छे से चाटकर साफ़ किया।
अपनी दो उँगलियों को मेरी गाँड़ की छेद के अंदर घुसाकर अंदर-बाहर करने लगे। मैंने अपने मुँह पर हाथ रखकर मेरी चीख़ों की आवाज़ को दबा दिया। मेरी गाँड़ की छेद पर थूक मारकर वह ज़ोर-ज़ोर से उँगलियाँ घुसाने लगी।
कुछ देर बाद जब उसकी दोनों उँगलियाँ पूरी अंदर घुसनी शुरू हुई तब उसने उँगलियों को बाहर निकाल दिया। वंदना ने अपनी मुट्ठी में पकड़े केले को मेरी गाँड़ की छेद में थोड़ा-थोड़ा करके भर दिया।
मेरी गाँड़ में केले भरने के बाद वंदना ने अपना मुँह मेरी गाँड़ की छेद पर रख दिया। मुझे थोड़ा आगे झुकाकर उसने मेरी चूत में उँगली घुसाना शुरू किया। वह जैसे-जैसे अपनी रफ़्तार बढ़ाती गई वैसे-वैसे मेरी गाँड़ की छेद थोड़ी खुलती गई।
वंदना मेरी गाँड़ की छेद में अपनी ज़ुबान घुसाकर मुझे उकसाह रही थी जिसकी वजह से प्रेशर बढ़ता गया। मैंने ज़ोर की पाद मारी और सारा केला चिपचिपा और गाढ़ा बनकर वंदना के मुँह में चला गया।
वह थोड़ा-थोड़ा करके मेरी गाँड से निकले माल को खा गई। उसने अपनी उँगली घुसाकर अंदर फसे माल को बाहर निकालकर खा लिया। दूसरी बार मैंने पाद मारकर बचे-खुचे केले को वंदना के मुँह पर छिड़क दिया।
वंदना को उठाकर मैंने उसके चेहरे पर लगे केले के छीटों को साफ़ कर दिया। मेरी गाँड़ का सफाया हो गया था, अब बारी थी वंदना की। मैं फेटी हुई मलाई से भरी स्प्रे बोतल को लेकर टॉयलेट सीट पर बैठ गई।
वंदना की जीन्स पैंट और उसकी पैंटी को उतारकर मैंने उसके चुत्तड़ों को फैलाए। उसकी गाँड़ की दरार और छेद को मैंने अच्छी तरह से चाटकर साफ़ कर दिया। वंदना को आगे झुकाकर मैंने अपनी ज़ुबान उसकी गाँड़ की छेद के अंदर घुसा दी।
ज़ुबान को अंदर-बाहर करते हुए मैंने उसकी गाँड़ की छेद को भी साफ़ कर दिया। फिर मैंने स्प्रे बोतल की नोक को वंदना की गाँड़ की छेद के अंदर घुसा दिया। २-३ बार बटन को दबाकर मैंने ठंडी मलाई की धार को गाँड़ की छेद में निकाल दिया।
वंदना अपनी गाँड़ हिलाने लगी जब ठंडी मलाई की धार उसकी गाँड़ में घुसी। मैंने आधी बोतल खाली करके उसकी गाँड़ की छेद में अपनी ज़ुबान घुसा दी। वंदना की चूत में उँगली घुसाकर मैं उसे उकसाह रही थी ताकि उसकी गाँड़ से मलाई की तेज़ धार निकले।
कुछ देर उसकी चूत में उँगली घुसाने के बाद वंदना ने अपनी चुत्तड़ों को खुद से ही फैला दिया। मैंने अपना मुँह उसकी गाँड़ की छेद के सामने रख दिया और इंतज़ार करने लगी।
वंदना ने छोटी-छोटी पाद मारते हुए सारा मलाई मेरी मुँह के अंदर छिड़क दिया। थोड़ी मलाई उड़कर मेरी नाक पर चिपक गई। मैंने वंदना की गाँड़ की छेद को चूसकर बचे हुए मलाई को निकाला। मैं खड़ी हो गई और वंदना को अपनी बाहों में भर लिया।
हम दोनों एक दूसरे की चूत में ऊँगली रगड़कर होठों की चुम्मियाँ ले रहे थे। हम दोनों की चूचियाँ एक दूसरे की चूचियों से दब गए थे। जब हमारी चूत में से पानी निकलनी शुरू हो गई तब वंदना ने दो सिरों वाला नकली लौड़ा स्टैंड पर से निकाला।
हम दोनों उलटी दिशा में पलट गए और आगे झुककर एक दूसरे की गाँड़ से गाँड़ मिलाया। वंदना ने नकली लौड़े का एक सर मेरी गाँड़ की छेद में घुसा दिया और दूसरा हिस्सा अपनी गाँड़ की छेद के अंदर।
धीरे-धीरे धक्के मारकर हम दोनों ने नकली लौड़े को हमारी गाँड़ में पूरा अंदर घुसा दिया। हम दोनों की गाँड़ एक दूसरे की गाँड़ से टकराने लगी और नकली लौड़ा भी अंदर-बाहर होने लगा।
जब हम दोनों ने हमारी गाँड़ ज़ोर-ज़ोर से तकरानी शुरू की तब हम दोनों की चीख़ें निकलनी शुरू हो गई थी। हम दोनों ने एक हाथ को अपने मुँह पर दबाकर रखा और दूसरे हाथ से अपनी चूत में उँगली घुसाने लगे।
कुछ समय तक ऐसे एक दूसरे की गाँड़ चोदते हुए हमारी चूत में से पानी निकलने लगा। मैं और वंदना पलटकर हमारी चूत से निकली धार को एक दूसरे पर छिड़क दिया।
हम दोनों की साँसे तेज़ चल रही थी। हम दोनों ने एक दूसरे को साफ़ किया और कपड़े पहनाया। धीरे से कांफ्रेंस रूम में से निकलकर हम रिसेप्शन काउंटर पर जाकर बैठ गए। ऐसी मज़ेदार चुदाई अब हम हफ़्ते में २-३ बार करने लगे थे।