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(Didi ne sabko bachaya thand me marne se)

नमस्कार दोस्तों मेरा नाम हैप्पी है और मैं पंजाब का रहने वाला हूं। मेरी उम्र 23 साल है और मैं 6 फुट लंबा हूँ। इस कहानी में मैं आपको बताऊंगा कि कैसे मेरी और मेरे साथ 2 और लड़कों की जान दीदी ने कैसे बचाई। ये कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है और थोड़ी अटपटी है, पता नहीं आप लोगों को मज़ा आएगा या नहीं, पर मैं आपको मनोरंजित करने की पूरी कोशिश करूंगा।

मेरी दीदी का नाम स्मृति है और वो 25 साल की है। उसकी लंबाई 5'4″ है। उसका फिगर 34-30-34 है। रंग गोरा है और देखने में बहुत सुंदर है। उसके पीछे हमेशा ही बहुत लड़के पड़े रहते थे और वो भी बहुत खुले मिज़ाज की लड़की थी। पहले से ही उसके कई प्रेमी रह चुके हैं तो जाहिर सी बात है कि कईयों से वो चुदवा भी चुकी है।
वो अक्सर घर से बाहर ही रहती थी। वो बहुत ही आधुनिक किस्म की लड़की है। घर में भी उसे ज्यादा रोका-टोका नहीं जाता था। वो अपने समय पर घर आती और अपने समय पर चली जाती। मैं भी ऐसा ही था। पर हम दोनों एक दूसरे से सारी बातें साझा करते थे।
तो एक बार हमने सोचा कि आजतक हम दोनों भाई बहन साथ में कहीं घूमने नहीं गए हैं। तो हमने हिमाचल जाने का प्लान बनाया। मम्मी-पापा ने भी हामी भर दी।
तो कुछ दिनों बाद हम हिमाचल चले गए और वहां बहुत सी जगहें घूमी। वो मौसम सर्दियों का था। हमने सोचा कि क्यूँ न अब लद्दाख घुमा जाये। पर उस समय सर्दियां बढ़ जाने के कारण वहां जाने की सड़कें बन्द कर दी गयी थी। पर हमें किसी भी हालात में वहां जाना ही था।
जिस होटल में हम रुके थे वहां हमारी मुलाकात दो लोगों से हुई। एक का नाम 35 वर्षीय सुनील जो कि गोवा का रहने वाला था और दूसरा 26 वर्षीय सुरेश जो कि मनाली का ही स्थानीय निवासी था। वो लोग भी लद्दाख जाने की योजना बना रहे थे। तो हम दोनों ने भी उनके साथ बात कर के उनके साथ जाने का निर्णय लिया।
सुरेश ने हमें बताया कि वहाँ इस मौसम में जाना खतरे से खाली नहीं है। पर हम सब किसी भी हालत में जाना चाहते थे। तो सुरेश ने हमें बाइक मुहैया करवाई और इसके साथ जो भी सामान जरूरी होता है वो सब मुहैया करवाया। इस प्रक्रिया में 2 दिन लग गए। इन 2 दिनों में हम सबमें बहुत अच्छी दोस्ती हो गयी।
2 दिन बाद हम मनाली से निकले। कुछ किलोमीटर चलने के बाद हमने देखा कि रास्ता बर्फ पड़ने की वजह से बंद हो गया है। ये देख कर सबको बहुत दुःख हुआ।
पर सुरेश ने कहा कि यहाँ से कुछ दूरी पर एक दूसरा रास्ता है, वहां से हम जा सकते हैं। वो वहाँ से कई बार जाता रहता था तो हमने उसका यकीन कर लिया। सब इसके पीछे पीछे चलते गये। काफी देर चलते-चलते रात होने लगी थी तो हमने वहां ही रुकने का सोचा।
तो हम लोगों ने वहां टेन्ट लगाये।
कुछ ही देर में सूरज डूबने वाला था।
तभी दीदी ने कहा:-"उस सामने वाली पहाड़ी के ऊपर से सूर्यास्त कितना सुन्दर लगेगा।"
सुनील:-"हाँ! तुम सही कह रही हो स्मृति। चलो वहाँ चल कर सूर्यास्त दखते हैं।"
मैं:-"हाँ! चलते हैं। वहाँ से मैं बहुत अच्छे फ़ोटो भी ले सकता हूँ।"
पर तब सुरेश ने कहा:-"जा तो सकते हैं पर वो पहाड़ी लगभग 3 किलोमीटर दूर है। वहां हमारी मोटर बाइकें भी नहीं जा सकती। हम वहाँ पहुँच तो जायेंगे, पर आते समय बहुत अंधेरा हो जायेगा।"
दीदी:-"कोई बात नहीं। हम पैदल ही वहाँ जायेंगे और रात हो भी गयी तो क्या हमारे पास टोर्च तो है, उसके सहारे हम आ जायेंगे।"
सब वहां जाना ही चाहते थे। तो सुरेश मान गया। तो हम तेज़ी से उस पहाड़ी की तरफ जाने लगे। पर हमें ये पता नहीं चला कि पीछे से काले बादल भी छा रहे हैं।

जैसे ही हम उस पहाड़ी की चोटी पर पहुंचे तो बहुत तेज़ बर्फीली हवायें चलने लगी। पहले तो हमें बहुत अच्छा लगने लगा। पर सुरेश ने हमें वापिस चलने की सलाह दी। पर कोई भी मानने को तैयार नहीं था। इसलिए उसे भी वहीं रुकना पड़ा। मैं अपने कैमरे से फोटोज़ खींचने लगा और सब लोग सूरज को डूबते हुए देखने लगे।
पर इसके पहले कि सूरज डूबता, उन काले बादलों ने
सूरज के साथ-साथ पूरे आसमान को ढक लिया। तभी अचानक से घुप अँधेरा हो गया और तेज़ हवायों के साथ बहुत सारी बर्फ भी पड़ने लगी। ये सब इतनी तेज़ी से हुआ कि हमें कुछ करने का मौका नहीं मिला।

पर तभी सुरेश ने सब को एक दूसरे का हाथ पकड़ने को कहा और हमने ऐसा ही किया। फ़िर हम सब लाइट जला कर वापिस जाने लगे। पर अँधेरा और ठण्ड इतनी थी कि हमें कुछ पता नहीं चल रहा था और इसी चक्कर में हम रास्ता खो गए। दिशा का कोई अनुमान नहीं हो रहा था।
हम सब लोग बहुत डर गये थे। ठंड इतनी थी कि हमारे मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था। अब हमें चलते चलते बहुत समय हो गया था। सबको पता चल गया था कि हम खो गए हैं। पर भाग्य से हम सब एक साथ थे और एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए थे।

कुछ देर चलते चलते हम एक छोटी सी गुफ़ा में जा पहुंचे। वो गुफ़ा लगभग 6 फुट लंबी और इतनी ही चौड़ी रही होगी। हमने कुछ देर वहीं रुकने का निर्णय किया।
हम सब उस गुफ़ा में चले गए और अपने हाथ पैर रगड़ने लगे।
सुरेश:-"मैंने तो पहले ही वापिस आने को कह दिया था। तब तुम लोग नहीं माने। अब भुगतो।"
ये सुन कर किसी ने कुछ नहीं कहा।
सुनील:-"कोई बात नहीं जब तक ये तूफ़ान थम नहीं जाता, हम यहीं सुरक्षित हैं।"
सुरेश:-"ये तूफ़ान सुबह तक नहीं थमने वाला। ये ऐसा-वैसा तूफ़ान नहीं है।"
मैं:-"कोई बात नहीं, सुबह तक हम इंतजार कर सेकते हैं।"
सुरेश:-"कोई नहीं बचेगा। देख नहीं रहे हो इतनी ठंड है और इतना बर्फ गिर रहा है? मुझसे लिख के ले लो कोई भी जिंदा नहीं बचेगा।"
ये सब सुनकर दीदी रोने लगी और कहने लगी कि मुझे मरना नहीं है, मुझे किसी भी हालत में घर जाना है। दीदी बहुत डर गई थी।
सबने दीदी को सम्भालने की कोशिश की, पर दीदी चुप ही नहीं हो रही थी।
ये देख कर सुरेश को गुस्सा आ गया और इसने कहा:-"देखो स्मृति! रोने से कुछ नहीं होगा। जितना तुम रोओगी,उतनी जल्दी ही तुम मरोगी।"
ये सुनकर मुझे भी गुस्सा आ गया और मैंने कहा:-"क्या बोल रहा है सुरेश! तुझे इस समय दीदी को संभालना चाहिए और तू ऐसी बातें कर रहा है?"
सुरेश(गुस्से में):-"मैं सही कह रहा हूँ भाई! हमारे पास अपने शरीर को गर्म रखने के लिए कुछ भी नहीं है। इतनी ठंड में कैसे ज़िंदा रहेंगे? अब तेरी बहन को चोद कर हम ज़िंदा तो रह नहीं सकते।"
ये सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आ गया और मैं सुरेश का मुंह तोड़ने ही वाला था कि सुनील ने मुझे रोक दिया।
सुनील ने कहा:-"रुक जाओ हैप्पी। सुरेश सही कह रहा है। स्मृति के साथ सेक्स कर के हम बच सकते हैं।"

सुनील एक बहुत समझदार व्यक्ति था। मैं उन्हें भैया कह बुलाता था। इसलिए मुझे उसकी बात पर इतना गुस्सा नहीं आया।
मैंने कहा:-" ये आप क्या कह रहे हो सुनील भैया?"
सुनील(मुझे और दीदी को):-"देखो, ये सब कहने में बहुत अजीब लग रहा है पर मैं इतनी देर से यही सोच रहा था। स्मृति के साथ सम्भोग करके ही हम अपने शरीर को गर्म रख कर बचा सकते हैं। इसके अलावा हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है।"
ये सुन कर दीदी को और मुझे बहुत धक्का पहुंचा कि जिस सुनील को हम बहुत समझदार समझ रहे थे वो भी ऐसी बातें कर रहा है। पर कुछ देर तक बहस करने और सोचने के बाद मैं मान गया और कुछ देर बाद दीदी भी राज़ी हो गयी।
दीदी के हाँ करने के बाद सब एक दम चुप हो गए। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाये। मुझे भी बहुत अजीब लग रहा था।
सुनील:-"हमें देर नहीं करनी चाहिए। ठंड लगातार बढ़ती जा रही है। हैप्पी! तुम ही शुरुआत करो। क्यूंकि वो तुम्हारी बहन है, इस कारण से तुम्हारे मन में शंका हो रही है तो उसे दूर कर दो क्यूंकि बचने के लिए ये सब करना ही पड़ेगा।"
मैं सुनील भैया की बातों पर गौर करने लगा और कुछ देर बाद मैं दीदी के पास चला गया। मैंने दीदी की तरफ़ हाथ बढ़ाना चाहा पर मैं फिर रुक गया। मुझे बहुत डर लग रहा था।
पर उतने में दीदी ने ही मुझे पकड़ लिया और मेरे होंठों पर ज़ोर से चुम्बन कर दिया। दीदी के होंठ बहुत ठंडे पर उस चुम्बन से मेरे पुरे शरीर में करंट दौड़ गया।
दीदी:-"घबरा मत। मैं तुझे मना थोड़ी कर रही हूँ। तू डर मत। मुझे यहाँ से जिंदा निकलना है। अपने लिए न सही तो मेरे लिए ही ये कर दे।"
ये सुनकर मुझमें एक हौसला आ गया और मैंने भी दीदी का मुंह पकड़ के दीदी के होंठों पर ज़ोर का चुम्बन कर दिया। चुम्बन करते-करते मैंने दीदी की जैकेट की ज़िप खोल दी और उसकी कमीज़ के अंदर हाथ डाल कर पेट पर रख दिया। मेरा हाथ बहुत ठंडा था जिससे दीदी की "आह." निकल गयी।
दीदी की ये आवाज़ सुनकर मैं और उत्तेजित हो गया। मैंने अपना हाथ ऊपर की ओर बढ़ाया और दीदी की ब्रा को हाथों से ऊपर कर दिया और दीदी के मम्मे मेरे हाथ में आ गए। उनको छू कर मुझमें और उत्तेजना जाग गयी और अब मैं दीदी के स्तन ज़ोर-ज़ोर से बढ़ाने लगा और दीदी भी इसके मज़े उठाने लगी।

बाद में मैंने अपनी जैकेट उतारी और नीचे बिछा दी जिसके ऊपर मैंने दीदी को लिटा दिया। अब मैंने दीदी की कमीज़ को ऊपर किया और उसके स्तनों को अपने मुँह में भर दिया। ऐसा करने में हम दोनों को बहुत मजा आने लगा।
कुछ देर बाद मैं झट से नीचे गया और दीदी कि पैंट नीचे सरका दी और साथ में उसकी पैंटी भी खोल दी। अँधेरे के कारण मुझे दीदी के अंग साफ़ दिख नहीं रहे थे पर ध्यान से देखने पर पता चल गया कि दीदी की चूत एकदम साफ़ थी। उसपर एक भी बाल नहीं था।

जब मैंने दीदी की चूत पर हाथ रखा तो पता चल गया कि दीदी की चूत एकदम साफ है। ये देखकर मैं बहुत खुश हो गया और मैंने तेज़ी से दीदी की चूत पर अपनी उँगलियाँ घुमाना शुरू कर दिया और अपने मुंह से दीदी के स्तनों को भी चूसता रहा।
दीदी इससे इतनी उत्तेजित जो गयी थी कि वो "आह. आह." की आवाजें निकालने लगी और अपनी टांगो को सिकोड़ने की कोशिश करने लगी।
ये आवाजें सुनकर पास में बैठे सुरेश और सुनील भी हमारी ओर देखने लगे और दीदी की मस्त आवाज़ सुन कर मदहोश होने लगे।
हमारे शरीर में अभी से ही गर्मी आने लग गयी थी।
उसके बाद मैंने अपनी पैंट भी नीचे सरका दी और अपना 7 इंच का लौड़ा बाहर निकाल दिया। ठंड इतनी ज्यादा थी जिसके कारण हम अपने पूरे कपड़े नहीं खोल सकते थे। उसके बाद हम 69 की पोजीशन बना दी और दीदी समझ गयी कि अब उसके काम करने की बारी भी आ गयी है।
दीदी पहले तो कुछ संकोच कर रही थी पर तभी मैंने दीदी की चूत को अपने मुंह में पूरा का पूरा भर दिया और अपनी जीभ दीदी की चूत में ज़ोर-ज़ोर से घूमने लगा। तो दीदी ने भी मेरा लौड़ा पकड़ा और पहले कुछ देर अपने हाथ से आगे-पीछे किया और बाद में अपने मुंह में डाल दिया। दीदी के मुंह में जाते ही मुंह की गर्मी ने मेरे लौड़े को और पागल कर दिया और मैंने दीदी की चूत के साथ और तेज़ी से खेलना शुरू कर दिया।

जितना तेज़ मैं होता रहा उतनी ही तेज़ी से दीदी भी मेरा लण्ड चूसती रही। कुछ देर बाद मैं इतना मदहोश हो गया कि मैं दीदी के मुँह में ही झड़ गया और दीदी को मैंने बताया ही नहीं।जब मुझे भी इस बात का अहसास हुआ तो मैं झट से मुड़ा और दीदी का मुँह बन्द कर दिया और दीदी को मेरा सारा वीर्य पीना पड़ा।
मैंने ऐसा इस लिए किया क्यूंकि सुरेश और सुनील को इस बात का पता चल जाता कि मैं झड़ गया हूँ तो वो दीदी की चूत मारने आ जाते और मैं नहीं चाहता था कि उनमें से कोई भी मुझसे पहले मेरी बहन की चूत के मज़े ले ले। यही बात मैंने दीदी को भी धीरे से उसके कान में बता दी, तो दीदी भी समझ गयी।
पर मेरे लौड़े को फिर से खड़े होने में थोड़ा समय लग्न था तो तब तक मैंने दीदी के स्तनों और चूत को चूस-चूस दीदी को मज़े देते रहा।

कुछ देर बाद मेरा लौड़ा फिर सलामी देने लगा। दीदी की चूत भी एकदम गीली हो गयी थी, तो मैंने देर नहीं की और अपना लण्ड दीदी की चूत के दरवाज़े पर रखा और ज़ोर का झटका मार दिया। जिससे एक ही बार में मेरा आधा लौड़ा अंदर चला गया और दीदी को इससे बहुत दर्द हुआ जिससे दीदी की ज़ोर से चीख निकल गयी।
सुरेश और सुनील दोनों हमारी तरफ़ देखने लगे। तभी मैंने दूसरा झटका मारा और मेरा पूरा लण्ड दीदी की गुफ़ा में चला गया। दीदी दर्द से चीखें मारने लगी। पर मैंने रफ़्तार बढ़ा दी और पूरी रफ़्तार से दीदी की चूत चोदने लगा। कुछ देर बाद दीदी की चीखें, कराहटों में बदल गयी, जिसका मतलब था कि अब दीदी मेरे लण्ड के मज़े ले रही थी।
हम एक दूसरे से कोई बात नहीं कर रहे थे। मैं तो ये भी भूल गया था कि मैं दीदी की चुदाई अपनी जान बचाने के लिए कर रहा हूँ। करीब 20 मिनट के बाद में झड़ गया और वीर्य दीदी की चूत में ही गिरा दिया।

जैसे ही सुनील और सुरेश को पता चला कि मैं झड़ गया हूँ तो वो जल्दी से दीदी के पास आ गए। मैंने देखा कि वो लोग पहले से ही अपने लौड़ों को खड़ा कर के बैठे हैं। मैं अभी दीदी के ऊपर ही लेता हुआ था तो उन्होंने मुझे वहाँ से हटा दिया और मैं उनके पास ही बैठ गया।
सुरेश ने सीधा दीदी के मुंह में लण्ड दिया और दीदी की मम्मों को दबाने और चूसने लगा। सुनील भैया ने दीदी चूत पर से मेरा माल अपने रुमाल से साफ़ किया और चूत को चाटने लग गए। उन्हें ये सब करने में कुछ भी बुरा नहीं लग रहा था, बल्कि ऐसा लग रहा था कि ये लोग इसी का इंतज़ार कर रहे थे।
सुनील भैया ने थोड़ी देर दीदी की चूत चाटने के बाद अपना 6 इंच का लौड़ा लिया और दीदी की चूत पर रख दिया। उन्होंने अपना लण्ड चूत पर थोड़ा रगड़ा और धेरे से अंदर डाल दिया। भैया ने बहुत आराम से लौड़ा अंदर डाला जिससे दीदी को ज्यादा दर्द नहीं हुई। कुछ देर धीरे-धीरे करने के बाद सुनील भैया ने स्पीड बढ़ा दी। अब दीदी भी इसका मज़ा उठाने लगी।
वहीं सुरेश अभी भी दीदी के मुंह को चोद रहा था।
कुछ देर बाद सुनील भैया भी झड़ गये पर उसने अपना वीर्य बाहर ही छोड़ा।
उसके बाद सुनील भैया भी आराम करने पास में बैठ गए। तभी सुरेश दीदी की चूत मारने आ गया। दीदी की लगातार चुदाई हो रही थी। अब तक दीदी को थोड़ा सा आराम भी नहीं मिला था। सुरेश का लौड़ा हम सबमें से सबसे बड़ा था। वो लगभग 8 इंच का होगा। वो तो एकदम पागल ही हो गया था। पहले यो उसने आराम से दीदी की चूत में अपना लौड़ा डाला क्यूंकि वो इतना बड़ा था कि दीदी की चूत में आसानी से नहीं जा रहा था। जब उसे लगा कि उसका लौड़ा आक्रमण करने के लिए तैयार है तो उसने अपनी रफ़्तार अचानक ही बढ़ा ली।
उसकी रफ़्तार देख कर हम सब हैरान रह गए। दीदी को बहुत दर्द हो रहा था। वो बहुत ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी पर वो रुकने को तैयार नहीं था। दीदी उसके चंगुल से छूटने की कोशिश कर रही थी। वो उसके लौड़े को अपने हाथों से रोकने की नाकाम कोशिश कर रही थी। पर सुरेश ने दीदी के हाथों को पकड़ लिया और हाथों का सहारा ले कर दीदी को और ज़ोर से चोदने लगा।
थोड़ी देर बाद दीदी की चीखें कम हो गयी। अब दीदी का दर्द मज़े में बदल गया था। दीदी भी अब सुरेश के बड़े लौड़े का साथ दे रही थी।
इसने दीदी को बहुत देर तक चोदा और वो भी दीदी की चूत में ही झड़ गया। वो कुछ देर दीदी के ऊपर ही लेटा रहा और उतनी देर उसका लौड़ा दीदी की चूत में ही रहा।
कुछ देर बाद दीदी ने उसे हटाया। तब मैंने टॉर्च ऑन कर के दीदी की चूत की तरफ़ की तो देखा कि सुरेश ने दीदी को इतना चोदा था कि उसकी चूत से खून निकल गया था। हमने दीदी के चूचे भी लाल कर दिए थे। पर दीदी अभी भी एकदम ठीक लग रही थी। दीदी ने खुद ही उठ कर अपने आपको साफ़ किया और करीब 1 घण्टे बाद दीदी ने फिर सबको उसकी चुदाई करने के लिए कहा। तो इसपर कोई मना करे ये तो हो नहीं सकता था। सबने फिर बारी-बारी दीदी को चोदा और मज़े लिए।
इस रात हमने 3-3 बार दीदी की चूत चोदी। 3-3 बार चूत चुवाने से दीदी की चूत में दर्द हो गया था तो इसलिए उसके बाद सबके 2-2 बार दीदी की गांड मारी। उस रात हम दीदी की वजह से बच गए।

सुबह तक मौसम भी साफ़ हो गया था। जब हम बाहर निकले तो देखा कि चारों तरफ़ बर्फ़ ही बर्फ़ पड़ी है। हमें हैरानी तो तब हुई की हमारे टेन्ट उस गुफ़ा से सिर्फ 200 मीटर की दूरी पर ही थे। ये देख कर हमें बहुत हैरानी हुई। हमने पूरी रात फ़ालतू में ही दीदी को इतना चोद दिया। ये देख कर सब लोग हंसने लगे।
दीदी की इतनी चुदाई हो गयी थी कि उसे अब चलने में थोड़ी परेशानी ही रही थी। पर वो भी उस रात से खुश थी।
उसके बाद हम वहाँ से जैसे-तैसे निकल गए और वापिस मनाली पहुँच गये। वहां पहुँच कर मैंने सबसे पहले दीदी के लिए गर्भवती न होने वाली दवाई ली और दीदी को खिला दी ताकि दीदी गर्भवती न हो जाये।
इसके बाद हमने 1 दिन वहां रेस्ट किया और वहां से सब लोग अलग-अलग हो गए। जाते-जाते उन दोनों ने दीदी को शुक्रिया कहा। उसके बाद हमने बाकी का हिमाचल घूमा। इस दौरान दीदी ने मुझे उसके साथ रोज़ चुदाई करने के लिए कहा। ये सुनकर मैं बहुत खुश था। उसके बाद हम हिमाचल में 12 दिन रहे। इन 12 दिनों में हम रात को जिस भी होटल में रुकते, वहां एक ही कमरा लेते और रात भर अच्छे से चुदाई करते।

आज भी जब मैं और दीदी कहीं अकेले में घूमने जाते हैं तो चुदाई ज़रूर करते हैं।
तो दोस्तों, कैसी लगी आपको मेरी कहानी? ये मेरी पहली कहानी है, तो यदि कोई गलती हो गयी हो तो माफ़ करना।
और यदि आप मेरी और स्मृति दीदी के बीच हुई और चुदाई की घटनाओं को जानना चाहते हैं तो ज़रूर बताइयेगा।
 
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