रानी की रसभरी चूत [भाग-1]

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चूत की तलाश कालेज के बाद भी जारी रही।

हेलो दोस्तों आप सब से बहुत दिनों बाद मिल रहा हूं, इधर बीच चूत मारने के एडवेंचर का लुत्फ लेने मैं अपने पुराने दोस्त रानी के पास चला गया था। सच तो ये है कि रानी मेरी एमबीए कालेज की दोस्त रही है और हम दोनों कभी बहुत नजदीकि संबंध के लिए अपने कालेज में बहुत बहुत बदनाम हुआ करते थे। इसलिए रानी को जब भी याद करता हूं, मेरे लंड में सनसनी मच जाया करती है, कहानी लिखते समय भी कुछ ऐसा ही है। तो बताना चाहूंगा कि रानी और हम एमबीए पूरा होने के बाद अलग अलग हो गये थे और वो देहरादून में एक फार्मास्यूटिकल कम्पनी में एच आर मैनेजर हो गयी। मैं लखनऊ में एक एमबीए कालेज में एच आर हो कर काम करने लगा। परन्तु दिसम्बर 2012 की सर्दियां मेरे लंड को तन्हाई की आग में जलाने लगीं। मैं अकेला ज्यादा न रह पाया और एक हफ्ते की छुट्टी लेकर के देहरादून और फिर रानी के साथ मसूरी घूमने के प्लान पर निकल पड़ा। रानी मेरे आने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। अगले दिन उसने मुझे स्टेशन पर से रिसीव किया और फिर हम दोनों उसके फ्लैट पर गये। रास्ते में ही मैंने अपनी औकात दिखानी शुरु कर दी थी और उसके बूब्स पकड़ के हल्के हल्के कुहनी से मसलना शुरु कर दिया था।

सार्वजनिक वाहनों में इससे ज्यादा बदतमीजी नहीं की जा सकती और इसलिए मै थोड़ा अपना मन मार के चल रहा था। अंदर घुसते ही मैं बेताब हो गया। सिटकनी बन्द किये बगैर ही उसकी टाप में हाथ डाल कर के उसकी चूंचियां मसलनी शुरु कर दीं। बिना ब्रा वाली चौंतीस की चूंचियां इतनी मस्त हो रही थीं कि उनमें उत्तेजना के चलते बढते खून के प्रवाह ने उनको अपनी मस्त गोलाईयां दे दीं थीं। रानी के चेहरे पर उन्माद की रेखाएं साफ दिखाई दे रहीं थीं और इसलिए रानी को जल्द ही अपना हाथ स्वचालित तरीके से मेरे पैंट की जिप पर ले जाकर सरकाना पड़ा। आह्ह आह्ह करती रानी के हाथों ने मेरे पैंट की जिप को एक ही झटके में खोल दिया और पहले से तने लंबे मोटे लंड को बाहर खींचने के लिए मशक्कत करने लगी। मैने काम आसान किया और अपनी पैंट खोल दी। मेरा एक हाथ अब भी उसके चूंचे से खेल रहा था और दूसरा अपना लंड उसके हाथों में थमाने में व्यस्त था।

रानी को मिला अपना प्यारा पुराना लंड

रानी, अपने सबसे प्यारे खिलौने को पाकर के एक दम मगन थी और उसके रग रग में एड्रिनलिन का प्रवाह जोरों पर था। आह्ह, उसके होठ एक द्दम किसी उत्तेजित चूत के मुहाने से खुल गये थे और एक गरम सांस उसके चेहरे से निकल कर मेरे चेहरे पर टकरा रही थी। बरबस मेरे होठ उसके होठो पर किसी चुम्बक की तरह से चिपक गये थे। होठो के सटते ही जीभ हरकत में आ गयी। मेरी जीभ उसके मुह के अंदर ऐसे घुसी जा रही थी कि जैसे किसी भोसड़े में लन्ड घुसता चला जा रहा हो। और वो अपने जीभ से मेरे जीभ को टकराती हुई, किस करने का नया अंदाज तलाश रही थी। हम दोनों चुम्बन की क्रिया में तो खोये ही थे पर हमारे हाथ भी सक्रिय थे। चूमते हुए मैने उसकी चूंचियां मसलनी जारी रखीं थीं और वो मेरे लन्ड पर अपनी नाजुक नर्म और गर्म लम्बी उंगलियों को सरका कर के मुझे एक दम से दीवाना बना रही थी।

मैने उसको पूरी छूट दे रखी थी। उसकी खिलंद्ड़ी मेरे अंडकोष तक बहुत ही बेदर्दी से बढती चली जा रही थी। मैने उसको पकड़ कर के अपने होठों के करीब लगाया हुआ था और उसके चूंचे अब मेरे सीने से टकरा रहे थे। अब बारी थी खेल को आगे ले जाने की। सो मैने उसको पकड़ कर के अपने बाहों में उठाया और ले जाकर सोफे पर लिटा दिया। अब उसकी स्कर्ट उठा दी। और पैंटी को खींचकर अलग कर दिया। टाप उसने खुद ही उतार दी। हम दोनों बेकरार थे और जानते थे कि हमें अब क्या करना है। मेरा मुँह बरबस उसके पैरों के बीच रसगुल्ले की तरह से फूली हुई चूत पर चला गया और दोंनों फांकों को जिनके इर्द गिर्द एक भी बाल न था, और जिनको कि रानी डार्लिंग ने सिर्फ मेरे लिए आज साफ किया था, उस पर लपर लपर करके मेरी जीभ फिसलने लगी।

आह्ह बहुत दिनों बाद ऐसा स्वाद चखने को मिला था और हमें इस स्वर्गिक कामरस का मजा ऐसा लग रहा था जैसे कि जीते जी जन्नत पहुंच गये हों। गालिब का वो शे'र याद आने लगा - हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन। रानी की चूत चाटने के बाद कुछ ऐसा ही महसूस होता रहा मुझे हमेशा ही। और मेरे जीभ के थपेड़ों से उसकी फांके स्वत: खुलती जा रहीं थीं। हर सहलाहट के बाद उसकी चूत की फांके हल्की थरथरातीं, फरफरातीं और खुल जातीं। मुझे इस बात पर बहुत मजा आ रहा था कि इस लौंडिया को हर बार चोदने का अपना अलग अनुभव होता है। मैं स्वयं को लक्की समझता हूं कि वो मेरी जीएफ है। फिर जैसे जैसे मैने अपनी जीभ उसके खुलती फांकों के बीच घुसेड़नी शुरु की, अंदर से रस की धार तीव्र होने लगी। जब भी मैं रानी को बहुत दिनो के बाद चोदता हूं तो उसका कामरस अवश्य पीता हूँ और सच तो ये है कि इसको पीने के बाद मेरी कामेच्छा और भी और अति तीव्र हो जाती है।

स्खलन का समय भी बढ जाता है और मैं उसकी घोड़ी ज्यादा समय तक चला पाता हूँ। खैर अभी तो खेल स्टार्ट हुआ था। धीरे धीरे उसके चूत के फांकों को मैने अपनी उंगलियों से खोला और अपनी जीभ अंदर घुसेड़ दी। वो मचल गयी, आह्ह!!! क्या कर रहे हो आजाद। मैने कहा रुको रानी, अभी तो कुछ कर ही नहीं रहा हूं। अभी तो ये शुरुआत मात्र है। जीभ अन्दर करके मैने उसको अंदर में चूत के मुलायम दीवालों के उपर जिनपर कि रस की धार मौजूद थी, उन पर फिसलाने लगा। रानी मदम्स्त होकर अपने पैर फेंकने लगी और गर्दन ऐंठने लगी। अभी उसका कामरस पाने में देर थी, मैं अपनी जीभ अंदर बाहर करके उसको मजा दे रहा था। अगले भाग रानी की रसभरी चूत [भाग-2] में पढिए हमारी रासलीला।
 
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