दोस्तो, मैं कमल राज… राजू… राजा… 28 साल का लम्बे कद का स्मार्ट पंजाबी लड़का हूँ।
बात तीन साल पुरानी है जब मैंने मुम्बई में सरकारी नौकरी शुरू की थी और एक बहुमंज़िला ईमारत में सातवीं मंज़िल पर दो बैडरूम के फ्लैट में अपने मम्मी पापा के साथ रहता था।
करीब एक महीने के बाद मेरे मम्मी पापा वापिस चंडीगढ़ चले गए, मैं रोज़ की दिनचर्या में बिजी था।
मेरे पड़ोस के फ्लैट में एक गुजराती कपल रहता था, उनसे ऐसे ही कभी बाहर आते जाते मुलाकात हाय हेलो हो जाती थी, उनका नाम था बाबू भाई पटेल, वो कपड़ों का कारोबार करता था और अक्सर वो अपने काम के सिलसिले में दूसरे शहर में टूर पर जाता रहता था।
उनकी पत्नी का नाम था सरला पटेल!
मैं उसको भाभी बुलाता था, उसकी उम्र करीब 30-31 साल की होगी, उसे देख कर मुझे बहुत अच्छा लगता था।
बहुत सुंदर दूध सी गोरी और मलाई सी चिकनी 36-30-36 की फिगर वाली मदमस्त औरत थी!
और मुझे देख कर उसकी मुस्कान… हाय… दिल पर चाकू चल जाते थे!
पर मैं बस देख कर ही खुश हो जाता था क्योंकि कर तो कुछ नहीं सकता था।
हाँ, उनसे दोस्ती करने की सोच जरूर सकता था।
करीब दो महीने ऐसे ही हाय-हेलो और देख कर मज़ा लेने में निकल गए।
एक दिन जब मैं शाम को ऑफिस से वापिस आया तो उसी समय बाबू भाई और सरला जी लिफ्ट में मिल गए।
मैंने तपाक से मुस्करा कर नमस्ते की और सरला जी ने भी अपनी मुस्कान बिखरते हुए नमस्कार का जवाब दिया और बोली- लगता है आपके मम्मी पापा चले गए हैं और आप अकेले रहते हैं।
‘जी भाभी जी, बस आज कर बिल्कुल अकेला हूँ, परंतु ऑफिस में और घर में इतना बिजी रहता हूँ, टाइम ही नहीं मिलता!’
इस पर बाबु भाई बोले- चलो, आज हमारे साथ चाय हो जाए!
लो अंधे को क्या चाहिए दो आँखें… मैंने नखरा दिखाते हुए कहा- आपको फालतू में तकलीफ होगी!
‘लो इसमें तकलीफ कैसी.. आखिर आप पड़ोसी हैं.. इसी बहाने आपसे जान पहचान हो जाएगी।’ सरला भाभी ने मुस्कारते हुए जोर देकर कहा।
मेरी तो लॉटरी निकल पड़ी और मैं उनके साथ उनके फ्लैट में चला गया।
फ्लैट बहुत सुंदर था, सरला भाभी चाय बनाने रसोई में खड़ी थी। चूंकि रसोई खुली थी इसलिए मैं उनको यहाँ से देख सकता था।
वो भी किचन से बार-बार झांक कर हमारी बातों में हिस्सा ले रही थी।
बाबू भाई पूछ रहे थे ‘कहाँ काम करता हूँ… क्या काम करता हूँ… ऑफिस कहाँ है’ आदि..
मैं उनकी बातों का जवाब देते हुए सरला भाभी के मस्त चूतड़ ताड़ रहा था।
थोड़ी देर में सरला भाभी चाय लेकर आ गई और मुझे चाय देते हुए अपनी मस्त गदराई जवानी के जो दर्शन कराए।
उह्ह… अपना लौड़ा तो पैंट के अंदर टाइट होने लगा।
सरला जी ने शायद महसूस कर लिया और मेरी तरफ देख कर मुस्करा दी।
चाय की चुस्की लेते हुए मेरा ध्यान उनकी ब्लाउज में उन्नत तनी हुई चूची… नीची साड़ी में नंगी पतली गोरी चिकनी कमर… चपटे पेट और नाभि पर लगा था।
मुझे लगा कि थोड़ी देर में ही सरला जी मेरी अपने में दिलचस्पी हो समझ गई।
परन्तु जिस तरह से वो अपनी मस्त गदराई गोरी चिकनी जवानी को दिखा रही थी, उनकी दिलचस्पी मुझसे ज्यादा लग रही थी।
बस अपना तो उनसे दोस्ती करने का काम बन गया।
बात तीन साल पुरानी है जब मैंने मुम्बई में सरकारी नौकरी शुरू की थी और एक बहुमंज़िला ईमारत में सातवीं मंज़िल पर दो बैडरूम के फ्लैट में अपने मम्मी पापा के साथ रहता था।
करीब एक महीने के बाद मेरे मम्मी पापा वापिस चंडीगढ़ चले गए, मैं रोज़ की दिनचर्या में बिजी था।
मेरे पड़ोस के फ्लैट में एक गुजराती कपल रहता था, उनसे ऐसे ही कभी बाहर आते जाते मुलाकात हाय हेलो हो जाती थी, उनका नाम था बाबू भाई पटेल, वो कपड़ों का कारोबार करता था और अक्सर वो अपने काम के सिलसिले में दूसरे शहर में टूर पर जाता रहता था।
उनकी पत्नी का नाम था सरला पटेल!
मैं उसको भाभी बुलाता था, उसकी उम्र करीब 30-31 साल की होगी, उसे देख कर मुझे बहुत अच्छा लगता था।
बहुत सुंदर दूध सी गोरी और मलाई सी चिकनी 36-30-36 की फिगर वाली मदमस्त औरत थी!
और मुझे देख कर उसकी मुस्कान… हाय… दिल पर चाकू चल जाते थे!
पर मैं बस देख कर ही खुश हो जाता था क्योंकि कर तो कुछ नहीं सकता था।
हाँ, उनसे दोस्ती करने की सोच जरूर सकता था।
करीब दो महीने ऐसे ही हाय-हेलो और देख कर मज़ा लेने में निकल गए।
एक दिन जब मैं शाम को ऑफिस से वापिस आया तो उसी समय बाबू भाई और सरला जी लिफ्ट में मिल गए।
मैंने तपाक से मुस्करा कर नमस्ते की और सरला जी ने भी अपनी मुस्कान बिखरते हुए नमस्कार का जवाब दिया और बोली- लगता है आपके मम्मी पापा चले गए हैं और आप अकेले रहते हैं।
‘जी भाभी जी, बस आज कर बिल्कुल अकेला हूँ, परंतु ऑफिस में और घर में इतना बिजी रहता हूँ, टाइम ही नहीं मिलता!’
इस पर बाबु भाई बोले- चलो, आज हमारे साथ चाय हो जाए!
लो अंधे को क्या चाहिए दो आँखें… मैंने नखरा दिखाते हुए कहा- आपको फालतू में तकलीफ होगी!
‘लो इसमें तकलीफ कैसी.. आखिर आप पड़ोसी हैं.. इसी बहाने आपसे जान पहचान हो जाएगी।’ सरला भाभी ने मुस्कारते हुए जोर देकर कहा।
मेरी तो लॉटरी निकल पड़ी और मैं उनके साथ उनके फ्लैट में चला गया।
फ्लैट बहुत सुंदर था, सरला भाभी चाय बनाने रसोई में खड़ी थी। चूंकि रसोई खुली थी इसलिए मैं उनको यहाँ से देख सकता था।
वो भी किचन से बार-बार झांक कर हमारी बातों में हिस्सा ले रही थी।
बाबू भाई पूछ रहे थे ‘कहाँ काम करता हूँ… क्या काम करता हूँ… ऑफिस कहाँ है’ आदि..
मैं उनकी बातों का जवाब देते हुए सरला भाभी के मस्त चूतड़ ताड़ रहा था।
थोड़ी देर में सरला भाभी चाय लेकर आ गई और मुझे चाय देते हुए अपनी मस्त गदराई जवानी के जो दर्शन कराए।
उह्ह… अपना लौड़ा तो पैंट के अंदर टाइट होने लगा।
सरला जी ने शायद महसूस कर लिया और मेरी तरफ देख कर मुस्करा दी।
चाय की चुस्की लेते हुए मेरा ध्यान उनकी ब्लाउज में उन्नत तनी हुई चूची… नीची साड़ी में नंगी पतली गोरी चिकनी कमर… चपटे पेट और नाभि पर लगा था।
मुझे लगा कि थोड़ी देर में ही सरला जी मेरी अपने में दिलचस्पी हो समझ गई।
परन्तु जिस तरह से वो अपनी मस्त गदराई गोरी चिकनी जवानी को दिखा रही थी, उनकी दिलचस्पी मुझसे ज्यादा लग रही थी।
बस अपना तो उनसे दोस्ती करने का काम बन गया।