फोन की घंटी बज रही थी।
‘रीमा देख तो किसका फोन है?’ मेरी सास की आवाज़ आई।
मैंने फोन उठाया, फोन कामिनी मौसी का था।
‘नमस्ते मौसी..’
‘कैसी हो रीमा?’
‘मैं ठीक हूँ मौसी.. आप कैसी हैं? आज कई दिनों बाद फोन किया?’
‘हाँ.. कई दिनों से कुछ कामों में उलझी हुई थी। अच्छा सुन, मोनू का मुंबई में कल पीएमटी का टेस्ट है। आज वो यहाँ से निकल रहा है, शाम तक तेरे पास पहुँच जाएगा। वो पहली बार मुंबई जा रहा है.. उसका ध्यान रखना।’
‘यह भी कोई कहने की बात है.. आप बेफ़िक्र रहें.. मैं देख लूँगी।’
कामिनी मौसी मेरी मम्मी की बचपन की सहेली हैं। इत्तफ़ाक से दोनों की ससुराल एक ही शहर में है और घर बिल्कुल पास-पास हैं। दोनों में बहुत पक्की दोस्ती है। मुझे वो अपनी बेटी की तरह प्यार करती हैं।
मोनू उन्हीं का बेटा है, मेरे से करीब सात साल छोटा है।
मैं गणित में काफ़ी होशियार हूँ। मोनू अक्सर मुझसे गणित के सवाल पूछता रहता था। मोनू गणित में इतना अच्छा नहीं था। जब वो मैट्रिक में था.. तब मेरे पास ही अक्सर गणित के सवाल हल करने के लिए आता रहता था, कई बार तो हमारे घर पर ही सो जाता था।
अब मेरी शादी हो गई और मैं मुंबई आ गई। मेरे पति बहुत अच्छे व्यक्ति हैं। मेरे सास-ससुर ने कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि मैं उनकी बहू हूँ.. बल्कि मुझे अपनी बेटी की तरह ही रखते हैं।
मेरे पति मर्चेंट नेवी में हैं। हमारे घर में पैसों की कोई कमी नहीं है। हमने मुंबई में दो बेडरूम का एक फ्लैट खरीद लिया है।
शाम को मोनू आ गया.. पहले की तरह अब भी वो दुबला-पतला ही था। हाँ मूछें अच्छी-ख़ासी आ गई थीं। उससे मिलकर बहुत खुशी हुई। मेरे सास-ससुर भी बहुत खुश हुए। हाथ-मुँह धो कर वो पढ़ने बैठ गया, क्योंकि सुबह उसका एग्जाम था। इसलिए मैं भी उससे कुछ ज्यादा बात नहीं कर रही थी।
रात को खाना खाने के बाद मैंने उससे कहा- पढ़ने के बाद सोने के लिए मेरे कमरे में आ जाना।
खैर.. मैं तो दस बजे अपने दो साल के बेटे को ले कर सो गई। सुबह मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि मोनू सोफे पर सो रहा है।
मैंने उसे जगाना उचित नहीं समझा, पता नहीं रात को कब सोया था। उसके उठने के बाद मैंने उससे कहा- तुम सोफे पर क्यों सो रहे थे.. मेरा बिस्तर इतना बड़ा है.. उस पर क्यों नहीं सोया? तू पहले भी तो मेरे साथ ही सो जाता था।
मोनू बोला- रीमा दीदी तब मैं बच्चा था। मुझे हँसी आ गई।
मैंने कहा- अच्छा.. अब तू जवान हो गया है।
मोनू शर्मा गया।
मैंने कहा- अच्छा ठीक है.. नहा-धो ले और नाश्ता कर ले। फिर मैं तुझे तेरे एग्ज़ॅमिनेशन सेन्टर तक छोड़ आती हूँ।
मैंने अपनी कार निकाली और पौने दस बजे मोनू को उसके सेंटर पर छोड़ दिया और उसे घर आने का रास्ता समझा दिया।
एग्जाम खत्म होने के बाद मोनू बहुत खुश था, उसे पूरी उम्मीद थी कि वो पास हो जाएगा।
रात को उसने कहा- रीमा दीदी मैं सुबह चला जाऊँगा।
मैंने कहा- बिल्कुल नहीं, तू तीन साल बाद मिला है, अब दो-चार दिन रुक कर ही जाना।
मेरी सास ने भी कहा- तू रुक जा बेटा.. तेरी रीमा दीदी का भी मन लगा रहेगा।
मैंने कामिनी मौसी को फोन किया- मोनू चार दिन बाद आएगा।
उन्होंने कहा- ठीक है बेटी।
‘रीमा देख तो किसका फोन है?’ मेरी सास की आवाज़ आई।
मैंने फोन उठाया, फोन कामिनी मौसी का था।
‘नमस्ते मौसी..’
‘कैसी हो रीमा?’
‘मैं ठीक हूँ मौसी.. आप कैसी हैं? आज कई दिनों बाद फोन किया?’
‘हाँ.. कई दिनों से कुछ कामों में उलझी हुई थी। अच्छा सुन, मोनू का मुंबई में कल पीएमटी का टेस्ट है। आज वो यहाँ से निकल रहा है, शाम तक तेरे पास पहुँच जाएगा। वो पहली बार मुंबई जा रहा है.. उसका ध्यान रखना।’
‘यह भी कोई कहने की बात है.. आप बेफ़िक्र रहें.. मैं देख लूँगी।’
कामिनी मौसी मेरी मम्मी की बचपन की सहेली हैं। इत्तफ़ाक से दोनों की ससुराल एक ही शहर में है और घर बिल्कुल पास-पास हैं। दोनों में बहुत पक्की दोस्ती है। मुझे वो अपनी बेटी की तरह प्यार करती हैं।
मोनू उन्हीं का बेटा है, मेरे से करीब सात साल छोटा है।
मैं गणित में काफ़ी होशियार हूँ। मोनू अक्सर मुझसे गणित के सवाल पूछता रहता था। मोनू गणित में इतना अच्छा नहीं था। जब वो मैट्रिक में था.. तब मेरे पास ही अक्सर गणित के सवाल हल करने के लिए आता रहता था, कई बार तो हमारे घर पर ही सो जाता था।
अब मेरी शादी हो गई और मैं मुंबई आ गई। मेरे पति बहुत अच्छे व्यक्ति हैं। मेरे सास-ससुर ने कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि मैं उनकी बहू हूँ.. बल्कि मुझे अपनी बेटी की तरह ही रखते हैं।
मेरे पति मर्चेंट नेवी में हैं। हमारे घर में पैसों की कोई कमी नहीं है। हमने मुंबई में दो बेडरूम का एक फ्लैट खरीद लिया है।
शाम को मोनू आ गया.. पहले की तरह अब भी वो दुबला-पतला ही था। हाँ मूछें अच्छी-ख़ासी आ गई थीं। उससे मिलकर बहुत खुशी हुई। मेरे सास-ससुर भी बहुत खुश हुए। हाथ-मुँह धो कर वो पढ़ने बैठ गया, क्योंकि सुबह उसका एग्जाम था। इसलिए मैं भी उससे कुछ ज्यादा बात नहीं कर रही थी।
रात को खाना खाने के बाद मैंने उससे कहा- पढ़ने के बाद सोने के लिए मेरे कमरे में आ जाना।
खैर.. मैं तो दस बजे अपने दो साल के बेटे को ले कर सो गई। सुबह मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि मोनू सोफे पर सो रहा है।
मैंने उसे जगाना उचित नहीं समझा, पता नहीं रात को कब सोया था। उसके उठने के बाद मैंने उससे कहा- तुम सोफे पर क्यों सो रहे थे.. मेरा बिस्तर इतना बड़ा है.. उस पर क्यों नहीं सोया? तू पहले भी तो मेरे साथ ही सो जाता था।
मोनू बोला- रीमा दीदी तब मैं बच्चा था। मुझे हँसी आ गई।
मैंने कहा- अच्छा.. अब तू जवान हो गया है।
मोनू शर्मा गया।
मैंने कहा- अच्छा ठीक है.. नहा-धो ले और नाश्ता कर ले। फिर मैं तुझे तेरे एग्ज़ॅमिनेशन सेन्टर तक छोड़ आती हूँ।
मैंने अपनी कार निकाली और पौने दस बजे मोनू को उसके सेंटर पर छोड़ दिया और उसे घर आने का रास्ता समझा दिया।
एग्जाम खत्म होने के बाद मोनू बहुत खुश था, उसे पूरी उम्मीद थी कि वो पास हो जाएगा।
रात को उसने कहा- रीमा दीदी मैं सुबह चला जाऊँगा।
मैंने कहा- बिल्कुल नहीं, तू तीन साल बाद मिला है, अब दो-चार दिन रुक कर ही जाना।
मेरी सास ने भी कहा- तू रुक जा बेटा.. तेरी रीमा दीदी का भी मन लगा रहेगा।
मैंने कामिनी मौसी को फोन किया- मोनू चार दिन बाद आएगा।
उन्होंने कहा- ठीक है बेटी।