मैं एक सच्ची घटना को अपनी सेक्स कहानी के रूप में लिख रही हूँ।
मेरा नाम स्वाति है, मैं एक अभी ताजा-ताजा जवान हुई लड़की हूँ।
मैं और मेरे ही गाँव का विकास एक साथ पढ़ने जाते थे।
विकास 12 वीं में पढ़ता था और मैं 11वीं की स्टूडेंट थी। मेरे मम्मी पापा भी विकास से बहुत खुश रहते थे।
पास के गाँव का विनीत भी विकास के साथ पढ़ता था।
विकास से विनीत बड़ा और लंबा था, विनीत का जिस्म कसरती था, मुझे उसको देख कर डर सा लगता था इसलिए मैं कभी उससे बात नहीं करती थी।
विकास मेरा पढ़ाई का काम पूरा करा देता था, वो बहुत अच्छा लड़का है।
पापा भी ऐसा बोलते थे।
मैं विकास और विनीत स्कूल से एक साथ ही आते थे।
अगस्त 16 को विनीत स्कूल नहीं आया। छुट्टी से पहले मौसम काफ़ी खराब हो गया था। प्रिंसीपल ने खराब मौसम के कारण एक घंटा पहले ही छुट्टी कर दी थी।
हम दोनों लोग अपने-अपने बैग लेकर जल्दी-जल्दी घर के लिए जाने लगे।
अभी हम लोग स्कूल से एक किलोमीटर ही पहुँचे थे कि पानी बरसने लगा।
घर जाने का रास्ता एकदम सुनसान था।
पास में एक पुराना सा फॉर्म हाउस था.. जो बंद पड़ा रहता था, उसमें कोई नहीं रहता था।
उसके सामने छोटा सा बरामदा था, हम लोग पानी से बचने के लिए उसी घर में रुक गए।
उसमें बने हुए घर के दरवाज़े काफ़ी खराब हो गए थे.. उसकी कुण्डी बंद ही नहीं होती थी।
अब तो हवा भी काफ़ी तेज़ चलने लगी थी। अचानक बहुत जोर से बिज़ली कड़की.. मुझे ऐसा लगा कि जहाँ मैं खड़ी हूँ.. वहीं गिर गई हूँ।
दरअसल मैं बहुत घबरा गई थी तो मैं डर कर विकास से चिपक गई।
मैं थोड़ी देर तक उससे चिपकी रही और वो भी मेरी पीठ पर हाथ घुमाता रहा.. मेरे कन्धों को दबाता रहा।
अचानक मैं चेतन हुई और विकास से अलग हो गई।
उसने कहा- मेरा कोई ग़लत इरादा नहीं था.. मैं तो तुमको शांत कर रहा था।
विकास से चिपकना मुझे मन ही मन अच्छा लगा था.. पर मैं चुप रही।
तभी फिर से बिज़ली कड़की.. इस बार उसने मुझे पीछे से पकड़ कर चिपका लिया।
वो अपने दोनों हाथ मेरी छाती से थोड़ा नीचे रखे हुए था, मैंने कोई विरोध नहीं किया, मुझे अच्छा लग रहा था।
फिर मैंने उसके हाथ पर अपना हाथ रखा और सहला कर हाथ हटा दिया।
उसने फिर से मेरी दोनों छातियों पर हाथ रख दिए.. मैं कुछ नहीं बोली।
अब वह मेरी चूचियों को दबाने लगा.. और मसलने लगा।
मैंने कहा- ये क्या कर रहे हो.. मैं पापा से बोलूँगी।
तभी बहुत तेज हवा चलने लगी, पानी की बौछार में हम लोग भीगने लगे।
विकास ने उस कमरे के दरवाजे को धक्का दिया.. वो खुल गया।
हम दोनों अन्दर चले गए।
अन्दर एक किचन जैसा एक पत्थर लगा था, हम दोनों ने अपने बैग उस पर रख दिए।
उसने फिर उसने मुझे बांहों में भर लिया और मेरी दोनों चूचियों को दबा दिया।
मैं उससे दिखावटी नाराज होने लगी।
वो बोला- जानेमन बहुत मज़ा आएगा.. मौसम भी साथ दे रहा है.. मज़ा ले लो।
मैं चुप थी..
विकास ने अपनी पैंट की ज़िप खोली और अपना लंड मुझे हाथ में पकड़ा दिया।
उसका लौड़ा पहले ढीला था.. फिर एकदम से सख़्त हो गया।
मेरा मन उसका लंड लेने को हो गया.. पर मैं नाराज़ हो रही थी।
मेरा नाम स्वाति है, मैं एक अभी ताजा-ताजा जवान हुई लड़की हूँ।
मैं और मेरे ही गाँव का विकास एक साथ पढ़ने जाते थे।
विकास 12 वीं में पढ़ता था और मैं 11वीं की स्टूडेंट थी। मेरे मम्मी पापा भी विकास से बहुत खुश रहते थे।
पास के गाँव का विनीत भी विकास के साथ पढ़ता था।
विकास से विनीत बड़ा और लंबा था, विनीत का जिस्म कसरती था, मुझे उसको देख कर डर सा लगता था इसलिए मैं कभी उससे बात नहीं करती थी।
विकास मेरा पढ़ाई का काम पूरा करा देता था, वो बहुत अच्छा लड़का है।
पापा भी ऐसा बोलते थे।
मैं विकास और विनीत स्कूल से एक साथ ही आते थे।
अगस्त 16 को विनीत स्कूल नहीं आया। छुट्टी से पहले मौसम काफ़ी खराब हो गया था। प्रिंसीपल ने खराब मौसम के कारण एक घंटा पहले ही छुट्टी कर दी थी।
हम दोनों लोग अपने-अपने बैग लेकर जल्दी-जल्दी घर के लिए जाने लगे।
अभी हम लोग स्कूल से एक किलोमीटर ही पहुँचे थे कि पानी बरसने लगा।
घर जाने का रास्ता एकदम सुनसान था।
पास में एक पुराना सा फॉर्म हाउस था.. जो बंद पड़ा रहता था, उसमें कोई नहीं रहता था।
उसके सामने छोटा सा बरामदा था, हम लोग पानी से बचने के लिए उसी घर में रुक गए।
उसमें बने हुए घर के दरवाज़े काफ़ी खराब हो गए थे.. उसकी कुण्डी बंद ही नहीं होती थी।
अब तो हवा भी काफ़ी तेज़ चलने लगी थी। अचानक बहुत जोर से बिज़ली कड़की.. मुझे ऐसा लगा कि जहाँ मैं खड़ी हूँ.. वहीं गिर गई हूँ।
दरअसल मैं बहुत घबरा गई थी तो मैं डर कर विकास से चिपक गई।
मैं थोड़ी देर तक उससे चिपकी रही और वो भी मेरी पीठ पर हाथ घुमाता रहा.. मेरे कन्धों को दबाता रहा।
अचानक मैं चेतन हुई और विकास से अलग हो गई।
उसने कहा- मेरा कोई ग़लत इरादा नहीं था.. मैं तो तुमको शांत कर रहा था।
विकास से चिपकना मुझे मन ही मन अच्छा लगा था.. पर मैं चुप रही।
तभी फिर से बिज़ली कड़की.. इस बार उसने मुझे पीछे से पकड़ कर चिपका लिया।
वो अपने दोनों हाथ मेरी छाती से थोड़ा नीचे रखे हुए था, मैंने कोई विरोध नहीं किया, मुझे अच्छा लग रहा था।
फिर मैंने उसके हाथ पर अपना हाथ रखा और सहला कर हाथ हटा दिया।
उसने फिर से मेरी दोनों छातियों पर हाथ रख दिए.. मैं कुछ नहीं बोली।
अब वह मेरी चूचियों को दबाने लगा.. और मसलने लगा।
मैंने कहा- ये क्या कर रहे हो.. मैं पापा से बोलूँगी।
तभी बहुत तेज हवा चलने लगी, पानी की बौछार में हम लोग भीगने लगे।
विकास ने उस कमरे के दरवाजे को धक्का दिया.. वो खुल गया।
हम दोनों अन्दर चले गए।
अन्दर एक किचन जैसा एक पत्थर लगा था, हम दोनों ने अपने बैग उस पर रख दिए।
उसने फिर उसने मुझे बांहों में भर लिया और मेरी दोनों चूचियों को दबा दिया।
मैं उससे दिखावटी नाराज होने लगी।
वो बोला- जानेमन बहुत मज़ा आएगा.. मौसम भी साथ दे रहा है.. मज़ा ले लो।
मैं चुप थी..
विकास ने अपनी पैंट की ज़िप खोली और अपना लंड मुझे हाथ में पकड़ा दिया।
उसका लौड़ा पहले ढीला था.. फिर एकदम से सख़्त हो गया।
मेरा मन उसका लंड लेने को हो गया.. पर मैं नाराज़ हो रही थी।