मेरा नाम संजय है, लखनऊ का रहने वाला हूँ।
लखनऊ में ही मेरा छोटा सा बिजनेस है।
मेरी उम्र 25 साल है। मैं दिखने में बहुत आकर्षक हूँ मेरा जिस्म भी बहुत भरा हुआ है।
मैंने पहले भी बहुत सी भाभियों को चोदा है।
यह बात कुछ एक साल पुरानी फरवरी महीने की है।
मुझे अपने बिजनेस के सिलसिले में पास ही के शहर सीतापुर जाना था।
अभी ठंड कम ही हुई थी कि उसी दिन सुबह से धीमी-धीमी बारिश होने लगी और बारिश के बाद ठंडी-ठंडी हवाओं की वजह से ठंडक बढ़ गई।
खैर.. बारिश रुकने के बाद मैं बस स्टेशन पहुँचा और जैसे ही मैं बस स्टेशन पहुँचा.. कि बारिश फिर शुरू हो गई।
भागते हुए मैं सीतापुर की बस में चढ़ा।
बस में बारिश की वजह से कुछ 7-8 लोग ही थे।
बस में मिली देसी भाभी
तभी मेरा ध्यान एक भाभी पर पड़ा।
वो अकेले एक सीट पर बैठी थी और भीग जाने की वजह से वो कंपकंपा रही थी।
यह देख कर मेरे मन में लड्डू फूटने लगे।
मैं सीधा उसकी सीट पर गया और पूछा- क्या मैं बैठ सकता हूँ?
उसने कुछ ना बोलते हुए अपना सर हिला दिया।
मैं उसके पास बैठ गया और उसके शरीर को निहारने लगा।
जैसे ही मेरी नज़र उसके मम्मों पर गई.. मैं तो जैसे देख कर पगला सा गया। उसने बुरका पहन रखा था.. पर उसमें से भी उसके दूध के उभार साफ़ नज़र आ रहे थे।
यह देख कर मैं सोचने लगा कि काश मैं इसे चोद सकूँ।
बस चली.. मैं यही सब सोचता रहा।
जैसे ही बस शहर से बाहर निकली.. मैं उससे चिपक कर बैठ गया और उससे बातें करना शुरू कर दिया।
‘आप कहाँ जा रही हैं?’
उसने बताया- मैं सीतापुर की रहने वाली हूँ और लखनऊ दवाई लेने आई थी।
दवाई का नाम सुन मैंने उससे पूछा- किस बात के लिए.. क्या परेशानी है?
वो पहले हिचकिचाई.. फिर बोली- मैं निसंतानपन को दूर करने की दवा लेने आती हूँ।
आगे बात बातचीत में मालूम हुआ कि उसकी शादी को चार साल हो गए थे.. पर कोई बच्चा नहीं था।
यह सुन कर तो जैसे मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था, मुझे तो ऐसा लगा कि मेरे लौड़े की नौकरी लग गई हो।
खैर.. हम बातें करते रहे और मैंने अपना काम स्टार्ट किया, मैं बोला- ठंडक तो कम होने का नाम ही नहीं ले रही है।
यह बोलते हुए मैंने अपना एक हाथ उसकी जाँघ पर रख दिया और उसने इसका कोई विरोध नहीं किया।
वो बोली- हाँ.. आज तो बहुत ठंडी हवा चल रही है।
जब उसने मेरे हाथ का कोई विरोध नहीं किया तो फिर क्या था.. मुझे तो हरी झंडी मिल गई थी।
अब मैंने धीरे-धीरे उसकी जांघों को सहलाना शुरू कर दिया।
वो कुछ नहीं बोली।
फिर मैंने उससे उसका नाम पूछा..
उसने कहा- शबनम!
क्योंकि बस में बहुत कम लोग थे और हम बीच में बैठे थे.. हमारे आगे की सीट पर और ना हमारे पीछे की सीट पर ही कोई बैठा था।
अब मैंने धीरे से अपना हाथ उसकी पीठ की ओर बढ़ाया और उसे सहलाने लगा।
यह अहसास पाकर शबनम ने आँख बंद कर लीं और शाल से मेरा हाथ ढक लिया।
उसकी यह हरकत देख कर मेरी हिम्मत और बढ़ गई और मुझे हरी झंडी मिल गई।
लखनऊ में ही मेरा छोटा सा बिजनेस है।
मेरी उम्र 25 साल है। मैं दिखने में बहुत आकर्षक हूँ मेरा जिस्म भी बहुत भरा हुआ है।
मैंने पहले भी बहुत सी भाभियों को चोदा है।
यह बात कुछ एक साल पुरानी फरवरी महीने की है।
मुझे अपने बिजनेस के सिलसिले में पास ही के शहर सीतापुर जाना था।
अभी ठंड कम ही हुई थी कि उसी दिन सुबह से धीमी-धीमी बारिश होने लगी और बारिश के बाद ठंडी-ठंडी हवाओं की वजह से ठंडक बढ़ गई।
खैर.. बारिश रुकने के बाद मैं बस स्टेशन पहुँचा और जैसे ही मैं बस स्टेशन पहुँचा.. कि बारिश फिर शुरू हो गई।
भागते हुए मैं सीतापुर की बस में चढ़ा।
बस में बारिश की वजह से कुछ 7-8 लोग ही थे।
बस में मिली देसी भाभी
तभी मेरा ध्यान एक भाभी पर पड़ा।
वो अकेले एक सीट पर बैठी थी और भीग जाने की वजह से वो कंपकंपा रही थी।
यह देख कर मेरे मन में लड्डू फूटने लगे।
मैं सीधा उसकी सीट पर गया और पूछा- क्या मैं बैठ सकता हूँ?
उसने कुछ ना बोलते हुए अपना सर हिला दिया।
मैं उसके पास बैठ गया और उसके शरीर को निहारने लगा।
जैसे ही मेरी नज़र उसके मम्मों पर गई.. मैं तो जैसे देख कर पगला सा गया। उसने बुरका पहन रखा था.. पर उसमें से भी उसके दूध के उभार साफ़ नज़र आ रहे थे।
यह देख कर मैं सोचने लगा कि काश मैं इसे चोद सकूँ।
बस चली.. मैं यही सब सोचता रहा।
जैसे ही बस शहर से बाहर निकली.. मैं उससे चिपक कर बैठ गया और उससे बातें करना शुरू कर दिया।
‘आप कहाँ जा रही हैं?’
उसने बताया- मैं सीतापुर की रहने वाली हूँ और लखनऊ दवाई लेने आई थी।
दवाई का नाम सुन मैंने उससे पूछा- किस बात के लिए.. क्या परेशानी है?
वो पहले हिचकिचाई.. फिर बोली- मैं निसंतानपन को दूर करने की दवा लेने आती हूँ।
आगे बात बातचीत में मालूम हुआ कि उसकी शादी को चार साल हो गए थे.. पर कोई बच्चा नहीं था।
यह सुन कर तो जैसे मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था, मुझे तो ऐसा लगा कि मेरे लौड़े की नौकरी लग गई हो।
खैर.. हम बातें करते रहे और मैंने अपना काम स्टार्ट किया, मैं बोला- ठंडक तो कम होने का नाम ही नहीं ले रही है।
यह बोलते हुए मैंने अपना एक हाथ उसकी जाँघ पर रख दिया और उसने इसका कोई विरोध नहीं किया।
वो बोली- हाँ.. आज तो बहुत ठंडी हवा चल रही है।
जब उसने मेरे हाथ का कोई विरोध नहीं किया तो फिर क्या था.. मुझे तो हरी झंडी मिल गई थी।
अब मैंने धीरे-धीरे उसकी जांघों को सहलाना शुरू कर दिया।
वो कुछ नहीं बोली।
फिर मैंने उससे उसका नाम पूछा..
उसने कहा- शबनम!
क्योंकि बस में बहुत कम लोग थे और हम बीच में बैठे थे.. हमारे आगे की सीट पर और ना हमारे पीछे की सीट पर ही कोई बैठा था।
अब मैंने धीरे से अपना हाथ उसकी पीठ की ओर बढ़ाया और उसे सहलाने लगा।
यह अहसास पाकर शबनम ने आँख बंद कर लीं और शाल से मेरा हाथ ढक लिया।
उसकी यह हरकत देख कर मेरी हिम्मत और बढ़ गई और मुझे हरी झंडी मिल गई।