अपने मुंह में ले लो लंड को

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Antarvasna, desi sex kahani: मेरा परिवार पहले जयपुर में रहा करता था कई वर्षों तक हम लोग जयपुर में रहे लेकिन पिता जी के रिटायरमेंट के बाद हम लोग मुंबई रहने के लिए आ गए। मुंबई में पिताजी ने काफी पहले ही एक फ्लैट खरीदा था और अब हम लोग मुंबई में ही रहते हैं मैं भी मुंबई में ही जॉब करता हूं। जयपुर में हम लोगों ने अपने घर को किराए पर दे दिया है जयपुर भी कभी कबार हम लोगों का आना जाना लगा रहता है। घर में मैं ही एकलौता हूं और पिताजी को मुझसे बड़ी उम्मीदें हैं मैं जिस मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करता हूं वहां पर मेरे काफी अच्छे दोस्त हैं। मुंबई में मुझे ज्यादा वर्ष तो नहीं हुए हैं लेकिन मुंबई में अब मेरे अच्छे दोस्त बन चुके हैं। एक दिन पिताजी मुझे कहने लगे मोहन बेटा तुम मेरा और अपनी मम्मी का टिकट करवा देना हम लोग सोच रहे हैं कि कुछ दिनों के लिए हम लोग जयपुर हो आए। मैंने अपने पिताजी से कहा लेकिन अब आप लोगों ने अचानक से यह प्लान कैसे बना लिया तो वह मुझे कहने लगे कि बेटा हम लोग काफी समय से सोच रहे थे कि हम लोग जयपुर हो आये लेकिन मुझे लगा की बाद में हम लोग जयपुर चले जाएंगे परंतु अभी हमारा जयपुर जाना बहुत जरूरी है।

मैंने पिताजी से कहा लेकिन आपका जयपुर जाना क्यों जरूरी है तो वह मुझे कहने लगे कि बेटा हमारे एक परिचित के घर पर उनकी बेटी की सगाई है और हम लोग वहां जा रहे हैं। मैंने पापा से कहा ठीक है मैं आपका टिकट आज ही करवा देता हूं। मैंने उन लोगों का टिकट निकलवा लिया था और 3 दिन बाद पापा और मम्मी जयपुर जाने वाले थे मैं उनको छोड़ने के लिए स्टेशन गया हुआ था क्योंकि रविवार का दिन था और रविवार को मेरी छुट्टी थी। स्टेशन पर हम लोग बैठे हुए थे कि तभी ट्रेन आई और मैंने पापा मम्मी का सामान ट्रेन में रख दिया ट्रेन आधे घंटे बाद चलने वाली थी और मैं पापा मम्मी के साथ कुछ देर बैठा रहा। मैंने उन्हें कहा जब आप लोग जयपुर पहुंच जाएंगे तो मुझे फोन कर देना वह कहने लगे कि हां बेटा जब हम जयपुर पहुंच जाएंगे तो तुम्हें फोन कर देंगे।

तभी एक परिवार वहां पर बैठा हुआ था और उनके साथ में एक लड़की भी बैठी हुई थी इत्तेफाक से वह लोग भी जयपुर ही जा रहे थे तो उन्होंने पिता जी से बात की और पिताजी उनसे बात करने लगे। ना जाने कहीं से वह लोग हमारी जान पहचान के निकल गए मैंने मम्मी से कहा मैं अभी चलता हूं मैं जैसे ही बाहर आया तो मेरे पीछे से लड़की ने आवाज दी और मैं रुक गया। मैंने जैसे ही पीछे पलटकर देखा तो वह वही लड़की थी जो पापा और मम्मी के सामने बैठी हुई थी मुझे लगा था कि वह भी जयपुर जा रही होगी लेकिन वह जयपुर नहीं जा रही थी उसने मुझसे हाथ मिलाते हुए कहा मेरा नाम सुनीता है। मैंने उसे कहा हां सुनीता कहो वह मुझे कहने लगी कि यदि आपको परेशानी ना हो तो आप मुझे घर तक छोड़ सकते हैं। मैंने उसके चेहरे की तरफ देखा मैं उसे पहचानता भी नहीं था लेकिन उसने मुझे जब घर छोड़ने के लिए कहा तो मैंने उसे कहा ठीक है मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ देता हूं। अब मैंने उसे उसके घर तक छोड़ा और रास्ते भर सुनीता मुझसे बात करती रही। मेरा स्वभाव ज्यादा बात करने का नहीं है मैं बहुत कम बात किया करता हूं लेकिन सुनीता रास्ते भर मुझसे बात करती रही मैंने सुनीता से पूछा तुम क्या करती हो। उसने मुझे बताया कि वह अभी कॉलेज की पढ़ाई कर रही है मैंने सुनीता को उसके घर तक छोड़ दिया और मैं अब घर लौट आया था। रविवार का दिन था इसलिए मैं घर पर ही था मेरे दोस्तों ने फिल्म देखने का प्लान बनाया तो मैं भी उन लोगों के साथ चला गया। जब मैं फिल्म देखने के लिए गया तो हम लोगों ने उस दिन खूब इंजॉय किया घर आते वक्त मुझे देर रात हो गई थी और जब मैं घर पहुंचा तो मैं घर आते ही लेट गया। पापा मम्मी भी जयपुर पहुंच गए थे और मैं अगले दिन अपने ऑफिस की तैयारी करने लगा मैंने सुबह खुद ही नाश्ता बनाया और नाश्ता करने के बाद मैं ऑफिस के लिए निकल गया। मैं जब ऑफिस के लिए निकला तो मैंने अपना मोबाइल घर ही छोड़ दिया लेकिन मैं ऑफिस के नजदीक पहुंच गया था इसलिए मैंने सोचा कि अब घर जाना ठीक नहीं रहेगा। शाम के वक्त जब मैं घर पहुंचा तो उसमें एक अननोन नंबर से फोन आया हुआ था मैंने उस नंबर पर फोन किया तो सामने से एक लड़की की आवाज मुझे सुनाई दी मैंने उससे कहा आप कौन बोल रही हैं।

वह मुझे कहने लगी कि क्या आप मोहन बोल रहे हैं तो मैंने उसे कहा हां मैं मोहन ही बोल रहा हूं उसने मुझे कहा मैं सुनीता बोल रही हूं। मैंने सुनीता से कहा सुनीता दरअसल मैं अपना फोन आज घर पर ही छोड़ गया था इसलिए तुम्हारा फोन उठा ना सका। सुनीता मुझे कहने लगी कि हां मैंने तुम्हें तीन-चार बार फोन किया था लेकिन तुमने मेरा फोन नहीं उठाया मैंने सुनीता को कहा हां मैं अपना फोन घर पर ही छोड़ गया था इस वजह से मैं तुम्हारा फोन उठा ना सका। सुनीता से मैंने कुछ देर बात की और फिर मैंने सुनीता से कहा अभी मैं फोन रखता हूं क्योंकि मुझे खाना बनाना है सुनीता कहने लगी क्या आप खाना भी बना लेते हैं तो मैंने सुनीता को कहा पापा मम्मी तो जयपुर गए हुए हैं और मैं घर पर अकेला ही हूं इसलिए खाना खुद ही बनाना पड़ रहा है। सुनीता कहने लगी चलिए कभी आपके हाथ का खाना भी हमें टेस्ट करना पड़ेगा मैंने सुनीता को कहा क्यों नहीं जरूर जब मौका मिलेगा तो मैं तुम्हें अपने हाथ का बनाया हुआ खाना जरुर खिलाऊंगा। अब मैंने फोन रख दिया था और मैं खाना बनाने लगा मैं खाना बना चुका था उसके बाद मैं बिस्तर पर लेटा हुआ था मैंने टीवी ऑन की और टीवी देखने लगा लेकिन मेरा मन बिल्कुल भी नहीं लग रहा था मैंने सोचा कि मैं सो ही जाता हूं।

मैं सो चुका था लेकिन अचानक से एक सपने के साथ मेरी नींद टूट गई और मैं जब उठा तो मैं अपने रसोई की तरफ गया और मैंने फ्रिज से बोतल निकाली और मैंने पानी पिया। दोबारा से मैं सो चुका था और अगले दिन सुबह नाश्ता बना कर फिर मैं अपने ऑफिस के लिए निकल चुका था मैं अपने ऑफिस पहुंच चुका था उस दिन मुझे सुनीता का फोन नहीं आया मैं सुनीता के फोन का इंतजार कर रहा था शायद मेरे अंदर भी सुनीता से बात करने की बड़ी बेचैनी थी इसलिए मैं उस दिन सुनीता से बात नहीं कर पाया। काफी दिनों तक सुनीता ने मुझसे फोन पर बात नहीं की मैंने पापा मम्मी को फोन किया तो वह कहने लगे बेटा हम लोग कुछ दिनों बाद घर लौट आएंगे तुम हमारा रिजर्वेशन करवा देना। मैंने उनका रिजर्वेशन करवा दिया था और वह लोग कुछ दिनों बाद घर लौटने वाले थे। जब मुझे सुनीता का फोन आया तो मैंने उससे कहा तुमने काफी दिनों से मुझसे बात नहीं की? वह कहने लगी कि हां मेरे फोन में कुछ खराबी आ गई थी इस वजह से मैं तुम्हें फोन नहीं कर पाई। मैंने सुनीता से कहा क्या तुम मुझसे मिल सकती हो? वह कहने लगी क्यों नहीं हम लोगों ने मिलने का फैसला किया उस दिन हम दोनों एक कॉफी शॉप में मिले हमने कॉफी पी उसके बाद सुनीता को देखकर मेरे अंदर ना जाने एक अलग फीलिंग आने लगी और मैंने उसे घर पर बुला लिया। वह मेरे साथ घर पर आने के लिए तैयार थी हम दोनों की सहमति के बाद वह जब घर पर आई तो मैंने उस से कहा कि क्या तुम कुछ लोगी? वह कहने लगी नहीं मोहन रहने दो। मैंने उसे कहा लेकिन तुम आज पहली बार मेरे घर पर आई हो। वह कहने लगी कोई बात नहीं हम लोग बैठकर अच्छे से बात कर सकते हैं। हम दोनों सोफे पर बैठे हुए थे मैं सुनीता के साथ बात कर रहा था लेकिन वह मेरे इतने करीब आ गई जब उसका बदन मेरे बदन से टकराने लगा तो मेरे अंदर एक अलग ही बेचैनी जागने लगी मैंने भी अपने हाथों को उसके होठों पर रखना शुरू किया।

जब मैं सुनीता के होठों को चूमने लगा तो उसे मजा आने लगा हम दोनों एक दूसरे के साथ चुम्मा चाटी कर रहे थे मुझे बड़ा आनंद आ रहा था और सुनीता भी बहुत खुश थी। मैंने सुनीता के बदन के मजे लेना शुरू कर दिया जब मैंने उसके बदन से कपड़े उतारे तो वह मेरे सामने अब नंगी थी उसकी पतली कमर पर मैंने अपने हाथों को डालते हुए उसे अपनी और खींचा हम दोनों सोफे पर बैठे हुए थे वह मेरी गोद में आ चुकी थी। उसकी चूतडो से मेरा लंड टकराता तो मेरा लंड खड़ा होने लगा था मैंने अपने लंड को बाहर निकालते हुए हिलाना शुरू किया तो सुनीता मुझे कहने लगी तुम्हारा लंड कितना मोटा है। मैंने उसे कहा तुम लंड को मुंह में ले लो वह पहले आपत्ति जताने लगी और कहने लगी कि नहीं मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है लेकिन मैंने उससे कहा तुम एक बार लो तो सही तुम्हें मजा आएगा।

उसने भी मेरे लंड को अपने मुंह के अंदर समा लिया वह उसे चूस रही थी उसे मजा आ रहा था और मुझे भी बड़ा आनंद आता उसने अपने गले के अंदर तक लंड को ले लिया था। मुझे बहुत ही मजा आ रहा था मैंने उसे कहा कि क्यों नहीं तुम मेरे लंड को अपनी चूत मे ले लेती। उसने कहा ठीक है मैं अपने चूत के अंदर तुम्हारे लंड को ले लेती हू और उसने अपने कपड़े उतारकर जब अपनी चूत को मेरे सामने किया तो उसकी चूत पर एक भी बाल नहीं था। मैंने उसकी चूत को पहले तो चाटा और उसके बाद उसकी चूत को मैंने सहलाना शुरू किया उसकी चूत से गिला पदार्थ बाहर की तरफ को आने लगा था मैंने अपने लंड को उसकी चूत के अंदर डाला और उसके दोनों पैरों को खोल कर मैं अब उसे धक्के देने लगा। मैं उसे जिस प्रकार से धक्के मार रहा था मुझे बड़ा मजा आ रहा था वह अपने पैरों को अच्छे से खोल रही थी जब मैं उसे धक्के मार कर अपने लंड को अंदर बाहर करता तो वह मुझे कहती थोड़ा और तेजी से धक्के मारो। 10 मिनट की चूत चुदाई के बाद सुनीता का बदन पूरी तरीके से गर्म होने लगा था वह मुझे कसकर अपनी बाहों में लेने लगी मेरे वीर्य बाहर आ चुका था मैंने अपने वीर्य को उसकी चूत के अंदर ही गिरा दिया।
 
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