अस्पताल में चुदी चूत डॉक्टरनी की

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दोस्तों इस कहानी आपको उस लड़की की कहानी सुनाने जा रहा हूँ जिसकी चूत मैं एक अस्पताल में मारी और वो कोई मरीज नहीं थी बल्कि खुद एक डॉक्टरनी थी | वो दिखने में २४ वर्ष की होगी पर उसका बदन की फिल्म की अभिनेत्री से कम नहीं लगता था | मेरा मन करे तो मैं रोज उसकी पूजा करूँ और उसकी चूत की अपने लंड से रोज बजा बजाकर | दोस्तों अस्पताल में दोस्त बीमार था जिसे देखने के लिया वहाँ जाया करता था और वहीँ मेरी डॉक्टरनी से भी मुलाक़ात हो गयी थी | मुझे मालूल था की यह भी मुझे कुछ ज्यादा ही दिलचस्प है और मैं तो इसके बदन पर पहले से ही था |

मैंने एक आईडिया लगाया और एक दिन अपने दोस्त के साथ वहीँ अस्पताल में रुक गया | मुझे मालूम था की आज उस डॉक्टरनी की रात को ड्यूटी लगी हुई है | जब उसने मुझे देखा की मैं अपने दोस्त के साथ बैठा हुआ हूँ तो खेने लगी जब फुर्सत मिले तो मेरे केबिन में आ जाना | मैं मौका मिलते ही रात को उसके केबिन में चला गया | पहले हम कुछ देर इधर उधर की बातें करने लगे फिर उसने अपना पलभर में सफ़ेद कोर्ट उतारा और और कामुक मुस्कान देते हुए एक आँख मारी | मैं अब तक सब कुछ समझ चूका था और फट से केबिन का दरवाज़ा बंद किया और आगे बढ़कर उसे अपनी बाँहों में ले लिया और उसके होठों को भरकर चूसने लगा | मैंने कुछ ही देर में अपने पूरे कपड़ों को उतार दिया और उसे भी वहाँ के टेबल पर लिटा दिया |

मैं उसे चुमते हुए उसके उप्पर उसकी नीली कुर्ती और काली सलवार को उतार दिया और आगे बढते हुए उसके चुचों को चूसने लगा वो भी बिलकुल गर्माते हुए और अब तक मैं उसके पुरे गोरे बदन को आहोश में ले चूका था | मैंने बा जल्दी ही उसकी चूत की महकी हुई खुसबू में डूबना चालू कर दिया और गुलाबी चूत को तंग को फैलाए मैं चूत को चाटते हुए अपनी उँगलियाँ डालना चालू कर दिया | कुछ देर बाद मैंने उसकी गोरी चिकनी टांगों चुदाई के लिए हटाते हुए अपना लंड उसकी चूत पर टिकाते हुए हल्का - सा धक्का लगाया जिससे मेरा लंड अब के बार में ही फिसलता हुआ उसकी पूरी रफ़्तार से चूत में पूरा चला गया |

मैंने कुछ ही देर में मैंने उसकी चूत में धक्का लगाना तेज कर दिया था जिससे वो वहीँ लेटी हुए मेरे लंड के ज़ोरदार झटकों को ले रही थी | अब मैंने उसे वहीँ टेबल पर घोड़ी बना दिया और पीछे से अपने लंड के ज़ोरदार धक्के दे रहा था | वो डॉक्टरनी अब अपनी गांड को उठा उठाकर मेरे लंड के मज़े लुट रही थी और किसी आवारा घोड़ी के माफिक हिनहिना रही थी | डॉक्टरनी किक ह्दुई करते हुए मुझे कुछ पल के लिए ऐसा लगने लगा जैसे मैं कोई भी डॉक्टरनी ही हूँ | वहाँ अब मैदान में ४० मिनट टिकने के बाद मैं झाधने की कगार पर आ चूका था और अपना सारा मुठ डॉक्टरनी की चूतडों पर ही छोड़ दिया |
 
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