दीपाली का दिवाली के दिन निकाला दिवाला

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नमस्ते दोस्तों,

मैं आज आपको दीपाली की चुत की कामुक कहानी सुनाने जा रहा हूँ जिसकी चुत के सतह ही मैंने दीवाली बनायीं थी | दोस्तों दीपाली मेरे घर के बिलकुल ही सामने रहा करती थी और अक्सर ही मुझे अपने कामुक इशारों में और कभी चलते - फिरते कामुक स्पर्शों से उत्तेजित कर चली जाया करती थी | मैं उसकी चुत को चोदने के लिए काफी अरसों से तरस रहा था और आखिरकार मुझे मौका भी मिला तब जब सब सब लोग दिवाली बनाने में व्यस्त थे | दोस्तों वो शाम का समय था मौहल्ले से सभी लोग नयी दीवाली में अपने घरों को सजाने और पटाके फोड़ने में व्यस्त थे और हम तो बस एक दूसरे से इशारों में ही बातें किये जा रहे थे |

जाब रात का हल्का - हल्का मौसम छा गया तो सडक पर अच्छी खासी भीड़ - सी लग गयी थी और सब अपने में ही पूरी तरह से व्यस्त थे | वहीँ मैंने जब दीपाली को गुजारते हुए देखा तो उसके हाथ को पकड़ खींच लिया और उसे पीछे के रास्ते से अपने घर की छत पर ले आया | वो कुछ कहने लायक ना थी पर गुमसुम होकर मुझे देखे जा रही थी क्यूंकि वो भी जानती थी कि बा खेल कि शुरुआत करने कि बारी मेरी आ चुकी थी | मैंने वहीँ उसकी हाथ को उनकी हथेली पर ऊँगली फिराते हुए उसके स्तनों तक पहुंचा दिया | मैंने अब किसी भी आने कि परवाह ना करते हुए चुचों को सहलाते हुए उसे होंठों को दबाकर चूसना शुर कर दिया जिसपर वो भी मुझे सहयोग करने लगी |

अब हम दोनों ही जान चुके थे कि इस व्यस्त मौसम में कोई भी छत पर नहीं आना चाहेगा | मैंने पल में ही उसकि पहनी हुयी नयी कुर्ती को उतार दिया और वो भी मेरी पैंट के उप्पर मेरी जाँघों पर हाथ फेर रही थी | मैंने जैसे ही उसके समीज को उतार उसके नरम चुचों को चूसना शुर कर दिया तो उसने भी भी मेरी पैंट को खोल मेरे लंड अपनी हथेली की में भींच लिया | मैंने उसके गुलाबी होठों को उसकी मस्तानी सलवार को उतरवा दिया और उसकी पैंटी को भी नीचे खीच उसे नंगी कर डाला | मैंने उसे वहीं नीचे लिटाया, अपनी जीभ को उनकी चुत पर रख फिराने लगा जिससे उसकी चुत गीली हो गयी | मैं अब उसके उप्पर चढ गया और अपने लंड के सुपाडे उसकी चुत के द्वार पर टिकाते हुए अंदर - बहार करते हुए अपने लंड के धक्कों को बढ़ा दिया |

उसकी अब कुमक आवाजें आःहहहह्हः हहह्हहः अहहह्हहह्हः अहह्हहह्हा निकलने लगी जोकि थमने का नाम नहीं ले रही थी और मैं परवाह ना करते हुए बस वही चोदे जा रहा था क्यूंकि मैं भी जानता था कि उसकी सभी भारी चींखें पटाकों की आवाज़ में ही खोकर रह जाने वाली थी | उस मुद्रा में लिटाये हुए मैं उसकी चुत को आधे घाटे तक पागलों की तरह मारता चला गया और आखिर में उसकी चुचों को भींचते उसके मुंह पर झड गया | मेरे झड़ने पर वो पुरे मुठ को अपनी जीभ से चाटने लगी और मैं उसकी चुत को मसलता ही रह गया |
 
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