मजदूरी में थोडा आराम भी कीजिये

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नमस्कार दोस्तों,

आज मैं खाली बिल्डिंग में काम करने वाली अनजान औरत की चुदाई के बारे में बताने जा रहा हूँ जिसके साथ मैंने उसके मजदूरी के दौरान ही अपनी हवस की आहोश में पकड़कर चुदाई की आग को भुजाया था | उन् दिनों मेरे मौहल्ले में कुछ नयी - नयी बिल्डिंगें बन रही थी जिसपर कभी - कभार में उन् नयी बनती खास बिल्डिंगों को देखकर कुछ ज्यादा ही उत्सुक हो जाया करता था | एक दिन मैंने उन् बिल्डिंगों में जाकर अंदर से निहारने का फैसला किया जिसपर मैं दोपहर को अकेले ही ऐसे झूमता - फिरता चला गया | मैं वहाँ ऐसे ही पहले माले पर पहुंचा तो एक ही औरत वहीँ ईंटें लगाती हुई काम रही थी |

अब जब भी वो झुकती तो उसकी गांड कुछ अलग तरह से ही मुझे दिखा करती मतलब उसके दोनों गांड के भाग बिलकुल ही अलग ही जाया करते | मुझे अचानक पीछे देखते ही वो हैरान रह गए तभी किसी काम के रखे हुए १०० रुपैये मैंने अपने बतवे में से उसे सौंप दिए और अपने इरादों को उसे एक बार में ही आँख बंद कर बतला दिया |वो एक पल में सोचकर कर मुझे उप्पर के ५ माले पर ले गयी और वहाँ मुझे चिपक गयी जिसपर मैंने कहाँ रुकने वाला था | मैंने अभी से ही उसके होठों पर अपने होंठों को थमा दिए | मैं अब बेसब्री से उसके होठ चूस रहा था और अपना हाथ उसके चूचियों पर रख कर उसे सहलाने लगा |

मेरा दोनों हाथ उसकी चुचियों पर सख्ती दिखाने लगे जिसपर उस औरत की भी मस्त वाली सिस्कारियां निकल रही थी जिससे मेरा लंड और जोश में आने लगा | मैंने उसे वहीँ टूटी - फूटी खाट पर धकेल दिया और उसके ब्लाउज को पूरी तरह से उतारा उसके चुचे पीने को अच्छे से मसलता हुआ पीने लगा | वो भी मज़ा लेती हुई आँखों को बंद कर तड़प रही थी और मैं उसके चुचों की सेवा करते हुए उसके पेटीकोट को भी खोल उसकी फटी हुई पैंटी को भी उतार उसकी चुत में अपनी उंगलियां फेरने लगा | मैंने जब कुछ देर बाद उसकी चुत में ऊँगली को कस - कसके देनी चालू जिसपर वो सिस्कारियां भरने लगी और साथ ही उसकी चुत का रस भी निकल पड़ा | मैंने अपने लंड के सुपाडे पर मलते हुए उसकी चुत पर टिका दिया और अपनी कमर को ज़बरदस्त तरीके से हिलाते हुए उसकी चूत में डालना शुरू कर दिया जिससे मेरा लंड उसकी चुत में पूरा का पूरा जाने लगा |

मैं अब वहीँ उसके के उप्पर लेट गया और उसे अपनी बाहों में भरते हुए पीछे से कुटी की तरह देता हुआ उसके होठों को अपने दाँतों के तले दबाते हुए अपनी सख्ती का असली रूप दिखाने लगा और अब तो वो मेरी धक्कों की वजह से हो रहे दर्द के मारे तड़प रही थी | उसकी चींखें बड़ी ही ऊँची जा रही थी पर पहले सी सार ओर मजदूर नीचे वाले माले पर सो रहे थे इसीलिए उसने हमारी आवाज़ नहीं सुनाये पड़ने वाली थी | मैंने अपने धक्कों से पूरी खाट को तोड़ दिया और आखिर में उसे वहीँ लिपटकर चूमता हुआ चुपके से पीछे वाले रास्ते से भाग आया |
 
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