लेखिका : डौली
सभी अंतर्वासना पढ़ने वालों को प्रणाम !
मैं अंतर्वासना की नियमित पाठिका हूँ और रहूंगी क्यूंकि मुझे इस प्यार हो गया है। मैं इसमें छपने वाली एक-एक कहानी को आराम से बैठ कर पढ़ती हूँ और आज मैं अपनी पहली कहानी अन्तर्वासना को भेज रही हूँ। और उम्मीद है कि जल्द ही आपके सामने आयेगी।
मेरा नाम डौली है, मैं पंजाब से अमृतसर की एक बेहद कमसिन हसीना हूँ, मैं भरे हुए यौवन की पिटारी हूँ जिसको हर मर्द अपने नीचे लिटाना चाहता है, पांच फ़ुट पांच इंच लंबी, जलेबी जैसा बदन, किसी को भी अपनी ओर खींचने वाला वक्ष, पतली सी कमर, मस्त गद्देदार गांड, गुलाबी होंठ, गोरा रंग !
अपने से बड़ी लड़कियों के साथ मेरा याराना है। मैंने इसी साल बारहवीं क्लास की है और नर्सिंग के तीन साल के कोर्स में मैंने दाखला लिया है। मेरी माँ की शादी सोलहवें साल में हो गई थी और बीस साल तक पहुंचते दो लड़कियो की माँ बन गई, सुन्दर औरत है, पांच बच्चे जन चुकी है लेकिन अभी भी कसा हुआ जिस्म है।
मेरी माँ के कई गैर मर्दों के साथ रिश्ते थे जिससे मेरा बाप माँ के साथ झगड़ा करता। पापा ने काफी जायदाद माँ के नाम से खरीदी थी। आखिर दोनों में तलाक हो गया, तीन बच्चे पापा ने रखे और हम दो माँ के साथ रहने लगीं।
माँ को जवान लड़कों का चस्का था, लड़कों हमारे पीछे बुलवा कर चुदवाती जिसका असर हम पर होने लगा। माँ के नक्शे कदम पर बड़ी बहन ने पैर रख दिए, मेरा भी एक लड़के के साथ चक्कर चल पड़ा और एक दिन मैं घर में अकेली थी। माँ दिल्ली किसी काम से गई हुईं थी। इसलिए दीदी ने उस रात अपने किसी बॉय-फ्रेंड के साथ चली गई क्यूंकि उनकी फ़ोन पर बात हो रही थी मैंने दूसरी तरफ से फ़ोन उठाया हुआ था। मैं और मेरा प्रेमी पम्मा भी चोरी छिपे सिनेमा और पार्कों में मिलते और बात चूमा चाटी तक ही रह जाती थी। ज्यादा से ज्यादा सिनेमा में में उसके लौड़े को सहलाती उसकी मुठ मारती, चूसती थी।
उस रात मैंने पम्मा को बुलवा लिया, करीब रात के दस बजे पम्मा आया ,मेरे कमरे में जाते ही हम एक दूसरे से लिपट गए। उससे ज्यादा मैं लिपट रही थी। उसने मेरा एक एक कपड़ा उतार दिया, मैंने उसका !आखिर में मैंने नीचे झुकते हुए उसके लौड़े को मुँह में ले लिया। उसने खूब मेरी चुचियाँ दबाई और चुचूक चूसे, ६९ में आकर चूत चाटी।
उसने अपना लौड़ा जब मेरी टांगों के बीच में बैठ चूत पर रखा- हाय डालो न राजा !
उसने कहा- ज़रा मुँह में लेकर गीला कर दे !
उसने फिर से रखा !
अब डालो भी !
उसने झटका दिया और मेरी चीख निकल गई- छोड़ो ऽऽ ! निकालोऽऽ !
उसने मुझ पर पहले से शिकंजा कसा था, उसने बिना कुछ कहे पूरा लौड़ा डाल दिया।
हाय मर गई ईईईईइ माँ ! फट गई !
कुछ पल बाद मैं खुद चुदवाने के लिए गांड उठा कर करवाने लगी। उसने अब पकड़ ढीली की।
हाय राजा मारते रहो !
करीब पन्दरह मिनट के बाद दोनों झड़ गए। उस रात मेरी सील टूटी, पूरी रात चुदवाती रही, मैं कली से फूल बन चुकी थी।
सभी अंतर्वासना पढ़ने वालों को प्रणाम !
मैं अंतर्वासना की नियमित पाठिका हूँ और रहूंगी क्यूंकि मुझे इस प्यार हो गया है। मैं इसमें छपने वाली एक-एक कहानी को आराम से बैठ कर पढ़ती हूँ और आज मैं अपनी पहली कहानी अन्तर्वासना को भेज रही हूँ। और उम्मीद है कि जल्द ही आपके सामने आयेगी।
मेरा नाम डौली है, मैं पंजाब से अमृतसर की एक बेहद कमसिन हसीना हूँ, मैं भरे हुए यौवन की पिटारी हूँ जिसको हर मर्द अपने नीचे लिटाना चाहता है, पांच फ़ुट पांच इंच लंबी, जलेबी जैसा बदन, किसी को भी अपनी ओर खींचने वाला वक्ष, पतली सी कमर, मस्त गद्देदार गांड, गुलाबी होंठ, गोरा रंग !
अपने से बड़ी लड़कियों के साथ मेरा याराना है। मैंने इसी साल बारहवीं क्लास की है और नर्सिंग के तीन साल के कोर्स में मैंने दाखला लिया है। मेरी माँ की शादी सोलहवें साल में हो गई थी और बीस साल तक पहुंचते दो लड़कियो की माँ बन गई, सुन्दर औरत है, पांच बच्चे जन चुकी है लेकिन अभी भी कसा हुआ जिस्म है।
मेरी माँ के कई गैर मर्दों के साथ रिश्ते थे जिससे मेरा बाप माँ के साथ झगड़ा करता। पापा ने काफी जायदाद माँ के नाम से खरीदी थी। आखिर दोनों में तलाक हो गया, तीन बच्चे पापा ने रखे और हम दो माँ के साथ रहने लगीं।
माँ को जवान लड़कों का चस्का था, लड़कों हमारे पीछे बुलवा कर चुदवाती जिसका असर हम पर होने लगा। माँ के नक्शे कदम पर बड़ी बहन ने पैर रख दिए, मेरा भी एक लड़के के साथ चक्कर चल पड़ा और एक दिन मैं घर में अकेली थी। माँ दिल्ली किसी काम से गई हुईं थी। इसलिए दीदी ने उस रात अपने किसी बॉय-फ्रेंड के साथ चली गई क्यूंकि उनकी फ़ोन पर बात हो रही थी मैंने दूसरी तरफ से फ़ोन उठाया हुआ था। मैं और मेरा प्रेमी पम्मा भी चोरी छिपे सिनेमा और पार्कों में मिलते और बात चूमा चाटी तक ही रह जाती थी। ज्यादा से ज्यादा सिनेमा में में उसके लौड़े को सहलाती उसकी मुठ मारती, चूसती थी।
उस रात मैंने पम्मा को बुलवा लिया, करीब रात के दस बजे पम्मा आया ,मेरे कमरे में जाते ही हम एक दूसरे से लिपट गए। उससे ज्यादा मैं लिपट रही थी। उसने मेरा एक एक कपड़ा उतार दिया, मैंने उसका !आखिर में मैंने नीचे झुकते हुए उसके लौड़े को मुँह में ले लिया। उसने खूब मेरी चुचियाँ दबाई और चुचूक चूसे, ६९ में आकर चूत चाटी।
उसने अपना लौड़ा जब मेरी टांगों के बीच में बैठ चूत पर रखा- हाय डालो न राजा !
उसने कहा- ज़रा मुँह में लेकर गीला कर दे !
उसने फिर से रखा !
अब डालो भी !
उसने झटका दिया और मेरी चीख निकल गई- छोड़ो ऽऽ ! निकालोऽऽ !
उसने मुझ पर पहले से शिकंजा कसा था, उसने बिना कुछ कहे पूरा लौड़ा डाल दिया।
हाय मर गई ईईईईइ माँ ! फट गई !
कुछ पल बाद मैं खुद चुदवाने के लिए गांड उठा कर करवाने लगी। उसने अब पकड़ ढीली की।
हाय राजा मारते रहो !
करीब पन्दरह मिनट के बाद दोनों झड़ गए। उस रात मेरी सील टूटी, पूरी रात चुदवाती रही, मैं कली से फूल बन चुकी थी।