हमदर्दी से तय किया चूत तक का सफर

sexstories

Administrator
Staff member
स्नेहा मेरे कॉलेज में ही पढ़ा करती थी और मैं भी उसकी चूत पर अपनी बाज़ी मारने के लिए काफी अरसे से तरसा जा रहा था | मेरे कॉलेज के उस छमिया पर तो सभी लड़के मारा करती थी पर वो तो साली किसी को भी भाव तक नहीं दिया करती थी | मैंने एक दिन देखा की उसका घर मेरे पड़ोस में बदली हो चूका है और उस दिन तो मेरे अंदर के शेर ने भी अच्छी खासी दाहड़ ले ली थी | अब हम रोज ही टांका झांकी करने लगे थे और वो भी मुझे खूब भाव दिया करती थी | मैं स्नेहा के गर में रोज हगी देखता तो पता चला की वो अपने माँ बाप के साथ नहीं बल्कि अपनी दादी के साथ रहती हैं जो हमेशा बीमार ही रहा करती थी |

मेरे लिए सही मौका था स्नेहा के साथ हमदर्दी जताकर बात करने सो मैंने किया भी | अब हम कॉलेज एक साथ ही जाया करते थे और एक साथ ही आया भी जाया करते थे | कुछ दिन इसी तरह बीतते गए और एक दिन मुझे पता चला की स्नेहा की दादी की तबियत इतनी ज्यादा बिगड गयी की उन्हें अस्पताल में भेजना पड़ा | अब मैं उसके घर पर जब भी आया जाया करता था और उससे हमदर्दी जताने के बहाने खूब बात और मन से करीब भी आ चूका था | मैं अब तलाक समझ चूका था की मेरे पास मस्त मौका था स्नेहा की चूत को बजाने के लिए और दिन मैंने इसी बहाने उसे अपनी अपनी बाहों में थाम लिया और वो भी अपनी मुस्कान देते हुए मुझ में सिमट गयी |

कुछ देर बाद उसने मेरे चेहरे से चेहरा मिलाया और मुझे घूर के अपनी मदमस्त नशीली आँखों से देखेने लगी थी जैसे उसकी आँखों में भी अब मुझे वासना नज़र आ रही थी | मैं अब अपने मोटे लंड को उसकी चूत में देने की सी सुलगने लगा था | मैंने उसे हौले - हौले उसे बितर पर बिठाकर उसकी कुर्ती के उप्पर से उसके चुचों पर हाथ फेरता हुआ गरमा रहा था | स्नेहा के भी हाथ धीरे एक अपनी चूत को उप्पर से मसल रहा था तो सुरे मेरे लंड के सुपाडे को सहला रहा था | मैंने अब उत्तेजित होते हुए उसने अपने होटों स उसके होनों से एक दम और उसके लबों को अपने मुंह में भर लिया | मैं अब बेसबर होकर स्नेहा के चुचों को दबाता हुआ उसके होठों का रस चूसने लगा जिसपर वो भी मुझे सहयोग करती हुई मेरी कपड़ों को खोलने लगी |

मैंने स्नेहा की कुर्ती को उतारकर उसके चुचों को चूसने लगा साथ ही उसकी सलवार भी एक हाथ से खोल दिया और लंड का जोर स्नेहा की चूत के उप्पर दिखाता हुआ अपने लंड को निकाल उसकी चूत पर टिकाकर अंदर को देने लगा | स्नेहा अपनी दोनों हाथों की उँगलियों से सिसकियाँ भरती हुई चूत की फांकों मसल रही थी | मैंने स्नेहा की चूत को अब अपने हाथों से चूत में अपने लंड को घुसाने लगा जिसपर वो भी जोर - जोर से अपनी गांड हिलाती हुई आः करके चिल्ला रही थी | हम दोनों बिस्तर पर एक दूसरे से सिमटे हुए बस आह्ह अहहहहा करते हुए चुदाई की कामवासना में मग्न थे और वहीँ झड भी गया | मेरे कॉलेज की सुन्दरी स्नेहा की अब मैं रोज जब मन करे मार लिया करता था |
 
Back
Top