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(Fuddi Marwayi Subah Savere-2)

ससुर ने नंगी देखा !

आज कुछ अलग ही मज़ा आ रहा था और अक्सर 15 से 20 मिनट चलने वाला हमारा सेक्स आज पूरे आधा घंटे तक चला।
मतलब अरुण जी ने सही कहा था।
चरम अवस्था के समय वो बड़बड़ाने लगे- स्वाति. आई लव यू. तू मेरी जान है !
और फिर उन्होंने अपना पूरा वीर्य मेरी चूत में खाली कर दिया जो मेरे चूतड़ और गांड के छेद से बहता हुआ मेरी जांघों तक जा रहा था।

फिर नीलेश ने अपना लौड़ा बाहर खींच लिया और हम दोनों ही पस्त होकर गिर गए।
नीलेश को जाना था तो वो तैयार होने को चले गए और जाते समय गेट मुझे बंद करने को कह गए।
मैंने उन्हें बोल दिया- हाँ, अभी करती हूँ, तुम जाओ !
और !!!!

बस यही मुझ से जबरदस्त चूक हो गई।
दोस्तो, सेक्स के मामले में मर्द बहुत ही स्वार्थी होते हैं, बस जब मन चाहा बीवी से सेक्स की माग की और चोद दिया, जैसा नीलेश ने आज सुबह सुबह किया, एक तो मैं वैसे ही नींद में थी और ऊपर से यह जबरदस्त चुदाई !
और यह कहानी पढ़ने वाले जितने भी लड़के लड़कियाँ हैं और जो सेक्स का मज़ा ले चुके हैं उन्हें बखूबी पता होगा कि चुदाई के बाद जो नींद आती है, वो सबसे जबरदस्त होती है।

और ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ, नीलेश तो चले गए, और मैं यह सोच कर कि अभी गेट बंद कर दूँगी, वैसे ही नंगी धड़गी, बिस्तर पर पड़ी रही और गहरी नींद के आगोश में चली गई !!!!

मुझे पता ही नहीं चला कि कब मेरे ससुर जी सुबह की सैर से वापिस आ गए, मेन गेट खुला देख के वो जरूर चकराए होंगे लेकिन उन्हें पता था कि नीलेश को आज जल्दी जाना था।

मेरे चूतड़ ऊपर की तरफ थे, मेरी चूत में से नीलेश के लौड़े का पानी मेरी जांघों से निकल कर बिस्तर पर दाग बना रहा था, मेरे कमरे का दरवाज़ा भी खुला हुआ था और ससुर पहले अपने कमरे में गए और फिर मेरे कमरे में आ गये।

मुझे आहट हुई तो देखा मेरे ससुर मुझे ही घूर रहे थे और वो हक्के बक्के थे।
शायद उन्होंने मेरे चादर खींचने के पहले ही मुझे देख लिया था पर मैं क्या करती, मैं खुद ही अजीब सी स्थिति में थी !

पापा जी यानि मेरे ससुर ने गुस्सा ज़ाहिर करते हुए कहा- यह क्या है? बहू, पूरा घर खुला कैसे पड़ा है, तुम्हें ज़रा भी फ़िक्र नहीं है?
तुम्हें पता है कि आजकल समय कितना खराब है, ज़रा सी चूक में कोई भी गम्भीर वारदात हो सकती है।
और मैं चुपचाप चादर को समेटे हुए सुनती रही।

'और वो नालायक नीलेश तुम्हें कह कर नहीं गया कि वो जा रहा है, गेट बंद कर लेना।'
मैंने नीलेश का बचाव करते हुए कहा- वो तो कह के गए थे पर मेरी ही झपकी लग गई।
'ठीक है, आइन्दा ऐसा नहीं होना चाहिए !'
और वो चले गए।

नाश्ते के समय मैंने नोटिस किया कि पापा जी यानि मेरे ससुर मुझे ही घूर रहे थे अजीब सी निगाहों से।
मैं घबरा रही थी, जल्दी से उन्हें नाश्ता करा कर, लंच बना कर मैं ऑफिस चली गई।

और शाम को मैं जानबूझ कर थोड़ा लेट आई, जिससे मुझे अकेले उनका ज्यादा सामना नहीं करना पड़े और नीलेश आ जाएँ।
वो अब भी मुझे कुछ अजीब ही लग रहे थे, शायद मुझे उन्होंने पूरी नंगी देख लिया था।

यह सोचते ही मुझे झुरझुरी सी आ गई। रात को मैंने यह बात नीलेश को बताई, वो भी थोड़े सकपका तो गए पर बोले- अब क्या किया

जा सकता है ! एक ही फ्लैट में परिवार के सदस्यों के बीच ऐसी स्थिति कभी भी आ सकती है, अब आगे ध्यान रखना !
वो भी अपने पापा से बहुत डरते हैं क्योंकि पापा जी बहुत अनुशासन प्रिय, कड़क इंसान हैं, शारीरिक बनावट में भी वो नीलेश से इक्कीस ही हैं सवा छहः फुट लम्बाई, चौड़ा सीना, घनी मूंछें, अपने बालों को डाई लगा कर वो बहुत ही टिप टॉप रहते हैं और हरदम अपने साथ एक छड़ी रखते हैं।

रात को जब हम दोनों फिर अपनी चुदाई में व्यस्त थे, और हमारी आहें कमरे में गुंजायमान थी तो मुझे खिड़की पर हल्की सी आहट सी सुनाई दी, मैंने नीलेश से कहा भी- यह आवाज कैसी?
पर वो तो मुझे चोदने में इतने मस्त हो रहे थे कि बोले- कोई बिल्ली होगी !

लेकिन इस समय मैं नीलेश के ऊपर थी और उसे चोद रही थी, तो मुझे खिड़की पर एक साया दिखाई दिया।
वो पापा जी ही थे पर हम दोनों ही चरम स्थिति के नज़दीक ही थे इसलिए कुछ कर न सके, उन्हें साफ़ साफ़ तो कुछ नहीं लेकिन हाँ,हमारे साये जरूर देख रहे होंगे क्योंकि कमरे में बिल्कुल अँधेरा नहीं था और मेरी टॉप पोज़िशन की वजह से मेरे उरोज बहुत ज्यादा उछल रहे थे।

जल्दी ही हम झड़ गए और नीलेश जल्दी ही सो भी गए, पर मेरी नींद गायब थी, एक तो सुबह की घटना और अब खिड़की पर पापा जी का होना, मेरी नींद उड़ गई थी।
तभी मुझे पापा जी के कमरे कुछ हलचल सुनाई दी, और मैं उत्सुकतावश वहाँ चली गई।

उनका कमरा सड़क की तरफ़ था तो वहाँ स्ट्रीट लाइट से रोशनी उनके कमरे में आ रही थी, और अंदर का नज़ारा देख कर मैं सन्न रह गई।
पापाजी अपने बिस्तर पर पूरे नंगे लेटे हुए थे और उनका लण्ड !!!
बाप रे बाप !!!!
मैंने लण्ड के लिए एक शब्द सुना था 'फौलादी लण्ड'
और आज वो बिल्कुल मेरी आँखों के सामने ही था !

पापा जी का लण्ड ऐसा ही था !!

और वो उसे बेदर्दी से मसल रहे थे, रगड़ रहे थे और बीच बीच में उस पर चांटे भी मार रहे थे।
यह नज़ारा देख मैं खुद फिर से उत्तेजित हो गई और मेरी हालत खराब हो गई।
मुझे उन्हें देखना बहुत अच्छा लग रहा था और एक बहुत ही अजीब सा ख्याल मन में आया कि मैं जाऊँ और भाग कर पकड़ लूँ उस लण्ड को !

मेरे हाथ अपनी चूत पर चले गए और मैं उनका हस्तमैथुन तब तक देखती रही जब तक वो झड़ नहीं गए।
उस रात मैं अच्छे से सो नहीं पाई।
अगली सुबह की बात मैं अगले भाग में लिखूँगी।
आप की स्वाति
 
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