तीन तीन चूतों के बारे में सोच सोच कर ही मैं तैयार हुआ और अपने काम पर निकल गया।
काम करते करते मार्किट में ही मुझे शाम के पांच बज गए, मुझे खाली हाथ वापिस जाना अच्छा नहीं लग रहा था सो मैंने कुछ मिठाई और फल ले लिए।
गाड़ी की पार्किंग के पास ही एक फूल वाला बैठा हुआ था तो बिना कुछ सोचे समझे ही मैंने एक छोटा सा गुलाब के फूलों का बुके भी ले लिया।
छ: बजे वापिस आरती बुआ के घर पहुँचा।
घण्टी बजाई तो दरवाजा एक तेईस-चौबीस साल की लड़की ने खोला, चेहरा खूबसूरत था तो मेरी नजरें उसके चेहरे पर चिपक गई।
अभी वो या मैं कुछ बोलते कि आरती बुआ आ गई और मुझे देखते ही बोली- तुम आ गए राज!
उस लड़की ने बुआ की तरफ मुड़ कर देखा तो आरती बुआ ने मेरा परिचय करवाया।
यह लड़की आरती बुआ की ननद थी, नाम था दिव्या!
उन्होंने मुझे अन्दर आने के लिए कहा तो मैं उनके पीछे पीछे अन्दर आ गया।
मैंने फल और मिठाई मेज पर रखी तो बुआ ने उसके लिए थैंक यू बोला।
मैं सोफे पर बैठ गया तो दिव्या मेरे लिए पानी लेकर आई।
जब वो मेरे सामने से मुझे पानी दे रही थी यही वो क्षण था जब मैंने दिव्या को ध्यान से देखा।
दिव्या का कद तो कुछ ज्यादा नहीं था पर उसके पतले से शरीर पर जो चूची रूपी पहाड़ियाँ बनी हुई थी वो किसी की भी जान हलक में अटकाने के लिए काफी थी। उसकी कसी हुई टाइट टी-शर्ट में ब्रा में कसी चूचियों की गोलाइयाँ अपने खूबसूरत आकर को प्रदर्शित कर रही थी। पतला सा पेट और साइज़ के साथ मेल खाते मस्त कूल्हे… अगर कद को छोड़ दिया जाए तो कुल मिलाकर मस्त क़यामत थी।
बुआ और मैं बैठे घर परिवार की बातों में मस्त थे तभी दिव्या चाय बना कर ले आई और हम तीनों बैठ कर चाय पीने लगे।
मैंने दिव्या से बात शुरू करने के लिए पूछा- आप क्या करती हैं दिव्या जी?
‘दिव्या जी… राज जी, आप मुझे सिर्फ दिव्या कहो तो मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा।’
‘सॉरी फिर तो तुम्हें भी मुझे राज ही कहना पड़ेगा… राज जी नहीं!’
तभी बुआ भी बोल पड़ी- फिर ठीक है, तुम मुझे भी आरती कह कर बुलाओगे, बुआ जी नहीं… बुआ जी सुनकर ऐसा लगता है जैसे मैं बूढ़ी हो गई हूँ!’ कहकर आरती बुआ… सॉरी आरती हँस दी, साथ में हम भी हँस पड़े।
कुछ देर की बातों में दिव्या और आरती मुझसे घुलमिल गई थी।
कुछ देर बातें करने के बाद मैं अपने रूम में चला गया और फिर चेंज करने के बाद तौलिया लेकर बाथरूम में घुस गया।
बाथरूम में जाकर नहाया और लोअर और बनियान पहन कर जैसे ही मैं अपने रूम में आया तो दिव्या कमरे में थी। उसका कुछ सामान उस कमरे में था जिसे वो लेने आई थी।
इतनी चूतों का मज़ा लेने के बाद मुझे यह तो अच्छे से पता है कि कोई भी लड़की या औरत सबसे ज्यादा खुश सिर्फ अपनी तारीफ़ सुनकर होती है।
जैसे ही दिव्या अपना सामान लेकर कमरे से जाने लगी तो मैंने बड़े प्यार से दिव्या को बोल दिया- दिव्या.. अगर बुरा ना मानो तो एक बात बोलूँ?
‘क्या?’
‘तुम बहुत खूबसूरत हो… मैंने आज तक तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की नहीं देखी।’
‘हट… झूठे…’
‘सच में दिव्या… झूठ नहीं बोल रहा.. तुम सच में बहुत खूबसूरत हो!’
काम करते करते मार्किट में ही मुझे शाम के पांच बज गए, मुझे खाली हाथ वापिस जाना अच्छा नहीं लग रहा था सो मैंने कुछ मिठाई और फल ले लिए।
गाड़ी की पार्किंग के पास ही एक फूल वाला बैठा हुआ था तो बिना कुछ सोचे समझे ही मैंने एक छोटा सा गुलाब के फूलों का बुके भी ले लिया।
छ: बजे वापिस आरती बुआ के घर पहुँचा।
घण्टी बजाई तो दरवाजा एक तेईस-चौबीस साल की लड़की ने खोला, चेहरा खूबसूरत था तो मेरी नजरें उसके चेहरे पर चिपक गई।
अभी वो या मैं कुछ बोलते कि आरती बुआ आ गई और मुझे देखते ही बोली- तुम आ गए राज!
उस लड़की ने बुआ की तरफ मुड़ कर देखा तो आरती बुआ ने मेरा परिचय करवाया।
यह लड़की आरती बुआ की ननद थी, नाम था दिव्या!
उन्होंने मुझे अन्दर आने के लिए कहा तो मैं उनके पीछे पीछे अन्दर आ गया।
मैंने फल और मिठाई मेज पर रखी तो बुआ ने उसके लिए थैंक यू बोला।
मैं सोफे पर बैठ गया तो दिव्या मेरे लिए पानी लेकर आई।
जब वो मेरे सामने से मुझे पानी दे रही थी यही वो क्षण था जब मैंने दिव्या को ध्यान से देखा।
दिव्या का कद तो कुछ ज्यादा नहीं था पर उसके पतले से शरीर पर जो चूची रूपी पहाड़ियाँ बनी हुई थी वो किसी की भी जान हलक में अटकाने के लिए काफी थी। उसकी कसी हुई टाइट टी-शर्ट में ब्रा में कसी चूचियों की गोलाइयाँ अपने खूबसूरत आकर को प्रदर्शित कर रही थी। पतला सा पेट और साइज़ के साथ मेल खाते मस्त कूल्हे… अगर कद को छोड़ दिया जाए तो कुल मिलाकर मस्त क़यामत थी।
बुआ और मैं बैठे घर परिवार की बातों में मस्त थे तभी दिव्या चाय बना कर ले आई और हम तीनों बैठ कर चाय पीने लगे।
मैंने दिव्या से बात शुरू करने के लिए पूछा- आप क्या करती हैं दिव्या जी?
‘दिव्या जी… राज जी, आप मुझे सिर्फ दिव्या कहो तो मुझे ज्यादा अच्छा लगेगा।’
‘सॉरी फिर तो तुम्हें भी मुझे राज ही कहना पड़ेगा… राज जी नहीं!’
तभी बुआ भी बोल पड़ी- फिर ठीक है, तुम मुझे भी आरती कह कर बुलाओगे, बुआ जी नहीं… बुआ जी सुनकर ऐसा लगता है जैसे मैं बूढ़ी हो गई हूँ!’ कहकर आरती बुआ… सॉरी आरती हँस दी, साथ में हम भी हँस पड़े।
कुछ देर की बातों में दिव्या और आरती मुझसे घुलमिल गई थी।
कुछ देर बातें करने के बाद मैं अपने रूम में चला गया और फिर चेंज करने के बाद तौलिया लेकर बाथरूम में घुस गया।
बाथरूम में जाकर नहाया और लोअर और बनियान पहन कर जैसे ही मैं अपने रूम में आया तो दिव्या कमरे में थी। उसका कुछ सामान उस कमरे में था जिसे वो लेने आई थी।
इतनी चूतों का मज़ा लेने के बाद मुझे यह तो अच्छे से पता है कि कोई भी लड़की या औरत सबसे ज्यादा खुश सिर्फ अपनी तारीफ़ सुनकर होती है।
जैसे ही दिव्या अपना सामान लेकर कमरे से जाने लगी तो मैंने बड़े प्यार से दिव्या को बोल दिया- दिव्या.. अगर बुरा ना मानो तो एक बात बोलूँ?
‘क्या?’
‘तुम बहुत खूबसूरत हो… मैंने आज तक तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की नहीं देखी।’
‘हट… झूठे…’
‘सच में दिव्या… झूठ नहीं बोल रहा.. तुम सच में बहुत खूबसूरत हो!’