मैं बहुत खुश था, आगरा का मेरा टूर दोहरा कामयाब हो रहा था।
मार्किट से आर्डर भी मनचाहा मिल रहा था, होटल का खर्चा भी बच रहा था और सबसे बड़ी बात दो दो चूत लंड के नीचे थी।
दिव्या की चूत चोद कर तो सच में बहुत खुश था, कई महीनों बाद किसी कुँवारी चूत का उद्घाटन किया था।
थोड़ी देर आराम करने के बाद मैं मार्किट के लिए निकल गया, रास्ते में मुझे आरती आती हुई दिखाई दी, मैंने गाड़ी रोकी तो वो आकर गाड़ी में बैठ गई।
गाड़ी में बैठते ही आरती ने जो सवाल किया इससे साफ़ हो गया कि आरती को पता था कि आज दिव्या चुदने वाली है- राज… कहाँ जा रहे हो… दिव्या को ज्यादा तंग तो नहीं किया ना?
बोलते हुए आरती के चेहरे पर एक कातिल सी मुस्कान थी।
मैं क्या जवाब देता, बस मैं भी मुस्कुरा दिया।
आरती ने घर तक छोड़ने को कहा तो मैंने गाड़ी घुमा दी और वापिस घर पहुँच गया। दरवाजा लॉक था, मैं ही जाते हुए लॉक करके गया था।
मैंने चाबी से दरवाजा खोला और अन्दर गए तो दिव्या अभी भी पेट के बल लेटी हुई सो रही थी।
चादर पर दिव्या की चूत से निकले खून और मेरे वीर्य के धब्बे स्पष्ट नजर आ रहे थे।
‘मेरी चूत में क्या कमी थी राज… जो तुमने दिव्या की भी फाड़ डाली…’ कहकर आरती मेरे गले से लिपट गई और उसने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए।
मेरे हाथ भी आरती की कमर और कूल्हों पर आवारगी करने लगे। हवस दोनों पर हावी होने लगी थी और फिर अगले कुछ ही पलों में हम दोनों के कपड़े जमीन पर पड़े थे और हम दोनों बाहर सोफे पर ही एक दूसरे से लिपटे अपनी कामवासना शांत करने की कोशिश में लगे हुए थे।
मेरे हाथ आरती के नंगे बदन पर घूम रहे थे, कभी उसकी पहाड़ जैसी चूचियों का मर्दन करने लगते तो कभी मेरी उँगलियाँ उसकी चूत की गहराई में समा जाती।
आरती भी कभी मेरे होंठों पर मेरी छाती पर अपने होंठ घुमा रही थी तो कभी मेरे लंड को अपने मुँह में लेकर मुझे जन्नत की सैर करवा रही थी।
कुछ देर ऐसे ही ऊपर से प्यार करने के बाद मैंने आरती को सोफे की बाजू पर लेटाया और लंड चूत पर रख कर जोरदार धक्के के साथ चुदाई का शुभारम्भ किया।
फिर तो कम से कम बीस मिनट तक आसन बदल बदल कर मैं आरती को चोदता रहा और आरती मस्त होकर चुदती रही।
यह तूफ़ान तब रुका जब आरती की चूत का झरना तीन बार झड़ गया और मेरे लंड ने भी गर्म गर्म वीर्य की बौछार आरती की चूत की गहराई में कर दी।
आग शांत हो चुकी थी और जब नजर ऊपर उठी तो दिव्या भी उठ चुकी थी और हम दोनों की रासलीला देख रही थी।
चुदाई करने में हम इतने खो गये थे कि पता ही नहीं चला की कब दिव्या कमरे से बाहर आ गई।
आरती ने उठ कर दिव्या को गले से लगा लिया और दिव्या को पहली चूत चुदाई की मुबारकबाद दी।
तब तक मैंने अपने कपड़े पहन लिए थे।
यह हिन्दी सेक्स कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
मेरे क्लाइंट के बार बार फ़ोन आ रहे थे तो मैं उनको शाम को जल्दी आने के कहकर जल्दी से निकल गया। आखिर चुदाई के साथ साथ काम भी तो जरूरी था।
मार्किट से आर्डर भी मनचाहा मिल रहा था, होटल का खर्चा भी बच रहा था और सबसे बड़ी बात दो दो चूत लंड के नीचे थी।
दिव्या की चूत चोद कर तो सच में बहुत खुश था, कई महीनों बाद किसी कुँवारी चूत का उद्घाटन किया था।
थोड़ी देर आराम करने के बाद मैं मार्किट के लिए निकल गया, रास्ते में मुझे आरती आती हुई दिखाई दी, मैंने गाड़ी रोकी तो वो आकर गाड़ी में बैठ गई।
गाड़ी में बैठते ही आरती ने जो सवाल किया इससे साफ़ हो गया कि आरती को पता था कि आज दिव्या चुदने वाली है- राज… कहाँ जा रहे हो… दिव्या को ज्यादा तंग तो नहीं किया ना?
बोलते हुए आरती के चेहरे पर एक कातिल सी मुस्कान थी।
मैं क्या जवाब देता, बस मैं भी मुस्कुरा दिया।
आरती ने घर तक छोड़ने को कहा तो मैंने गाड़ी घुमा दी और वापिस घर पहुँच गया। दरवाजा लॉक था, मैं ही जाते हुए लॉक करके गया था।
मैंने चाबी से दरवाजा खोला और अन्दर गए तो दिव्या अभी भी पेट के बल लेटी हुई सो रही थी।
चादर पर दिव्या की चूत से निकले खून और मेरे वीर्य के धब्बे स्पष्ट नजर आ रहे थे।
‘मेरी चूत में क्या कमी थी राज… जो तुमने दिव्या की भी फाड़ डाली…’ कहकर आरती मेरे गले से लिपट गई और उसने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए।
मेरे हाथ भी आरती की कमर और कूल्हों पर आवारगी करने लगे। हवस दोनों पर हावी होने लगी थी और फिर अगले कुछ ही पलों में हम दोनों के कपड़े जमीन पर पड़े थे और हम दोनों बाहर सोफे पर ही एक दूसरे से लिपटे अपनी कामवासना शांत करने की कोशिश में लगे हुए थे।
मेरे हाथ आरती के नंगे बदन पर घूम रहे थे, कभी उसकी पहाड़ जैसी चूचियों का मर्दन करने लगते तो कभी मेरी उँगलियाँ उसकी चूत की गहराई में समा जाती।
आरती भी कभी मेरे होंठों पर मेरी छाती पर अपने होंठ घुमा रही थी तो कभी मेरे लंड को अपने मुँह में लेकर मुझे जन्नत की सैर करवा रही थी।
कुछ देर ऐसे ही ऊपर से प्यार करने के बाद मैंने आरती को सोफे की बाजू पर लेटाया और लंड चूत पर रख कर जोरदार धक्के के साथ चुदाई का शुभारम्भ किया।
फिर तो कम से कम बीस मिनट तक आसन बदल बदल कर मैं आरती को चोदता रहा और आरती मस्त होकर चुदती रही।
यह तूफ़ान तब रुका जब आरती की चूत का झरना तीन बार झड़ गया और मेरे लंड ने भी गर्म गर्म वीर्य की बौछार आरती की चूत की गहराई में कर दी।
आग शांत हो चुकी थी और जब नजर ऊपर उठी तो दिव्या भी उठ चुकी थी और हम दोनों की रासलीला देख रही थी।
चुदाई करने में हम इतने खो गये थे कि पता ही नहीं चला की कब दिव्या कमरे से बाहर आ गई।
आरती ने उठ कर दिव्या को गले से लगा लिया और दिव्या को पहली चूत चुदाई की मुबारकबाद दी।
तब तक मैंने अपने कपड़े पहन लिए थे।
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मेरे क्लाइंट के बार बार फ़ोन आ रहे थे तो मैं उनको शाम को जल्दी आने के कहकर जल्दी से निकल गया। आखिर चुदाई के साथ साथ काम भी तो जरूरी था।