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update 1

इस दर्दनाक अंत के बाद घरवालों ने चन्दर भैया की शादी दुबारा करा दी और जो नई दुल्हन आई वो बहुत ही काइयाँ निकली! रितिका उसे एक आँख नहीं भाति थी और हमेशा उसे डाँटती रहती| बस कहने को वो उसकी माँ थी पर उसका ख्याल जरा भी नहीं रखती थी| मैं अब बड़ा होने लगा था और रितिका के साथ हो रहे अन्याय को देख मुझे उस पर तरस आने लगता| मैं भरसक कोशिश करता की उसका मन बस मेरे साथ ही लगा रहे तो कभी मैं उसके साथ खेलता, कभी उसे टॉफी खिलाता और अपनी तरफ से जितना हो सके उसे खुश रखता| जब वो स्कूल जाने लायक हुई तो उसकी रूचि किताबों में बढ़ने लगी| जब भी मैं पढ़ रहा होता तो वो मेरे पास चुप चाप बैठ जाती और मेरी किताबों के पन्ने पलट के उनमें बने चित्र देख कर खुश हो जाया करती| मैंने उसका हाथ पकड़ के उसे उसका नाम लिखना सिखाया तो उन अक्षरों को देख के उसे यकीन ही नहीं हुआ की उसने अभी अपना नाम लिखा है| अब चूँकि घर वालों को उसकी जरा भी चिंता नहीं थी तो उन्होंने उसे स्कूल में दाखिल नहीं कराया पर वो रोज सुबह जल्दी उठ के बच्चों को स्कूल जाते हुए देखा करती| मैंने घर पर ही उसे A B C D पढ़ना शुरू किया और वो ख़ुशी-ख़ुशी पढ़ने भी लगी| एक दिन पिताजी ने मुझे उसे पढ़ाते हुए देख लिया परन्तु कुछ कहा नहीं, रात में भी जब हम खाना खाने बैठे तो उन्होंने मुझसे कोई बात नहीं की| मुझे लगा शायद पिताजी को मेरा रितिका को पढ़ाना अच्छा नहीं लगा| अगली सुबह में स्कूल में था तभी मुझे पिताजी और रितिका स्कूल में घुसते हुए दिखाई दिए| मैं उस समय अपनी क्लास से निकल के पानी पीने जा रहा था और पिताजी को देख मैं उनकी तरफ दौड़ा| पिताजी ने मुझसे हेडमास्टर साहब का कमरा पूछा और जब मैंने उन्हें बताया तो बिना कुछ बोले वहाँ चले गए| पिताजी को स्कूल में देख के डर लग रहा था| ऐसा लग रहा था जैसे वो यहाँ मेरी कोई शिकायत ले के आये हैं और मैं मन ही मन सोचने लगा की मैंने पिछले कुछ दिनों में कोई गलती तो नहीं की? मैं इसी उधेड़-बुन में था की पिताजी मुझे हेडमास्टर साहब के कमरे से निकलते हुए नज़र आये और बिना कुछ बोले रितिका को लेके घर की तरफ चले गए| जब मैं दोपहर को घर पहुँचा तो रितिका बहुत खुश लग रही थी और भागती हुई मेरे पास आई और बोली; "चाचू... दादा जी ने मेरा स्कूल में दाखिला करा दिया!" ये सुनके मुझे बहुत अच्छा लगा और फिर इसी तरह हम साथ-साथ स्कूल जाने लगे| रितिका पढ़ाई में मुझसे भी दो कदम आगे थी, मैंने जो झंडे स्कूल में गाड़े थे वो उनके भी आगे निकल के अपने नाम के झंडे गाड़ रही थी| स्कूल में अगर किन्हीं दो लोगों की सबसे ज्यादा तारीफ होती तो वो थे मैं और रितिका| जब में दसवीं में आया तब रितिका पाँचवीं में थी और इस साल मेरी बोर्ड की परीक्षा थी| मैं मन लगाके पढ़ाई किया करता और इस दौरान हमारा साथ खेलना-कूदना अब लगभग बंद ही हो गया था| पर रितिका ने कभी इसकी शिकायत नहीं की बल्कि वो मेरे पास बैठ के चुप-चाप अपनी किताब से पढ़ा करती| जब मैं पढ़ाई से थक जाता तो वो मेरे से अपनी किताब के प्रश्न पूछती जिससे मेरे भी मन थोड़ा हल्का हो जाता| दसवीं की बोर्ड की परीक्षा अच्छी गई और अब मुझे उसके परिणाम की चिंता होने लगी| पर जब भी रितिका मुझे गुम-सुम देखती वो दौड़ के मेरे पास आती और मुझे दिलासा देने के लिए कहती; "चाचू क्यों चिंता करते हो? आप के नंबर हमेशा की तरह अच्छे आएंगे| आप स्कूल में टॉप करोगे!" ये सुन के मुझे थोड़ी हँसी आ जाती और फिर हम दोनों क्रिकेट खेलने लगते| आखिरकार परिणाम का दिन आ गया और मैं स्कूल में प्रथम आया| परिणाम से घर वाले सभी खुश थे और आज घर पर दवात दी गई| रितिका मेरे पास आई और बोली; "देखा चाचू बोला था ना आप टॉप करोगे!" मैंने हाँ में सर हिलाया और उसके माथे को चुम लिया| फिर मैंने अपनी जेब से चॉकलेट निकाली और उसे दे दी| चॉकलेट देख के वो बहुत खुश हुई और उछलती-कूदती हुई चली गई|ग्यारहवीं में मेरे मन साइंस लेने का था परन्तु जानता था की घर वाले आगे और पढ़ने में खर्चा नहीं करेंगे और ना ही मुझे कोटा जाने देंगे| इसलिए मैंने मन मार के कॉमर्स ले ली और फिर पढ़ाई में मन लगा लिया| स्कूल में मेरे दोस्त ज्यादा नहीं थे और जो थे वो सब के सब मेरी तरह किताबी कीड़े! इसलिए सेक्स आदि के बारे में मुझे कोई ज्ञान नहीं मिला और जो थोड़ा बहुत दसवीं की बायोलॉजी की किताब से मिला भी उसमें भी जान सुखी रहती की कौन जा के लड़की से बात करे? और कहीं उसने थप्पड़ मार दिया तो सारी इज्जत का भाजी-पाला हो जायेगा| इसी तरह दिन गुज़रने लगे और मैं बारहवीं में आया और फिर से बोर्ड की परीक्षा सामने थी| खेर इस बार भी मैंने स्कूल में टॉप किया और इस बार तो पिताजी ने शानदार जलसा किया जिसे देख घर के सभी लोग बहुत खुश थे| जलसा ख़तम हुआ तो अगले दिन से ही मैंने कॉलेज देखने शुरू कर दिए| कॉलेज घर से करीब ४ घंटे दूर था तो आखिर ये तय हुआ की मैं हॉस्टल में रहूँगा पर हर शुक्रवार घर आऊँगा और संडे वापस हॉस्टल जाना होगा| जब ये बात रितिका को पता चली तो वो बेचारी बहुत उदास हो गई|

मैं: क्या हुआ ऋतू? (मैं रितिका को प्यार से ऋतू बुलाया करता था|)

रितिका: आप जा रहे हो? मुझे अकेला छोड़ के?
मैं: पागल... मैं बस कॉलेज जा रहा हूँ ... तुझसे दूर थोड़े ही जाऊँगा? और फिर मैं हर फ्राइडे आऊँगा ना|
रितिका: आपके बिना मेरे साथ कौन बात करेगा? कौन मेरे साथ खेलेगा? मैं तो अकेली रह जाऊँगी?
मैं: ऐसा नहीं है ऋतू! सिर्फ चार दिन ही तो मैं बहार रहूँगा ... बाद में फिर घर आ जाऊँगा|
रितिका: पक्का?
मैं: हाँ पक्का ... प्रॉमिस करता हूँ|

रितिका को किया ये ऐसा वादा था जिसे मैंने कॉलेज के तीन साल तक नहीं तोडा| मैं हर फ्राइडे घर आ जाया करता और संडे दोपहर हॉस्टल वापस निकल जाता| जब मैं घर आता तो रितिका खुश हो जाया करती और संडे दोपहर को जाने के समय फिर दुखी हो जाय करती थी|
 

काला इश्क़!

Disclaimer : "कहानी शुरू करने से पहले मैं बता दूँ की ये मेरी स्वयं की रचना है, कहीं से भी इसे कॉपी नहीं किया गया है| यदि कोई महानुभाव इसे कॉपी करना चाहते हैं तो कृपया credits मेरा नाम: मानु अवश्य दें| इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं है| यदि कोई समानता होती है तो उसे मात्र एक संयोग कहा जा सकता है|"

कहानी शुरू होती है एक छोटे से गाँव में जहाँ एक खेती बाड़ी करने वाला जमींदार परिवार रहता है| बड़े भाई सुमेश जमीन की खरीद फरोख करते हैं और उनके छोटे भाई राजेश इन जमीनों पर खेती बाड़ी का काम देखते हैं| बड़े भाई सुमेश का एक लड़का है जिसका नाम चन्दर है और उसकी शादी हो चुकी है| हाल ही में चन्दर के यहाँ बेटी पैदा हुई है परन्तु उसके पैदा होने से घर में कुछ ख़ास ख़ुशी का माहौल नहीं है| बेटी का नाम रितिका रखा गया है, नाम के अनुसार उसके गुण भी हैं, सूंदर और प्यारी सी मुस्कान लिए नन्ही सी परी| छोटे भाई राजेश का भी एक लड़का है जिसका नाम मानू है, और ये कहानी मानु की ही है!

(बाकी कहानी में जैसे जैसे पात्र आते जायेंगे आपको उनका नाम पता चल जायेगा|)

रितिका कुछ महीनों की होगी की कुछ ऐसा भयानक हुआ जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता| रितिका की माँ और चन्दर में जरा भी नहीं बनती थी, चन्दर हर छोटी छोटी बात पर रितिका की माँ पर हाथ छोड़ दिया करता था| रितिका के जन्म के बाद तो भाभी की हालत और भी ख़राब हो गई, चन्दर भैया उससे ढंग से बोलते-बतियाते भी नहीं थे| इसका कारन ये था की उन्हें लड़के की चाहत थी ना की लड़की की| रितिका को उन्होंने कभी अपनी गोद में भी नहीं उठाया था प्यार करना तो दूर की बात थी| मेरी (मानू) उम्र उस समय X साल की थी और तभी एक अनहोनी घटी! भाभी को हमारे खेतों में काम करने वाले एक लड़के से प्रेम हो गया| और प्रेम इस कदर परवान चढ़ गया की एक दिन वो लड़का भाभी को भगा के ले गया| जब ये बात सुबह सबको पता चली तो तुरंत सरपंचों को बुलाया गया और सरपँच ने गाँव के लठैतों को बुलावा भेजा| "बाहू" उन लठैतों का सरगना था और जब उसे सारी बात बताई गई तो उसने १ हफ्ते का समय माँगा और अपने सारे लड़के चारों दिशाओं में दौड़ा दिए| किसी को उस लड़के के घर भेजा जो भाभी को भगा के ले गया था तो किसी को भाभी के मायके| सारे रिश्तेदारों से उसने सवाल-जवाब शुरू कर दिए ताकि उसे किसी तरह का सुराग मिले| इधर रितिका को इस बात का पता भी नहीं था की उसकी अपनी माँ उसे छोड़ के भाग गई है और वो बेचारी अकेली रो रही थी| वो तो मेरी माँ थी जिन्होंने उसे अपनी गोद में उठाया और उसका ख़याल रखा|

छः दिन गुजरे थे की बाहू भाभी और उनके प्रेमी उस लड़के को उठा के सरपंचों के सामने उपस्थित हो गया| बाहु अपनी गरजती आवाज में बोला; "मुखिया जी दोनों को लखनऊ से दबोच के ला रहा हूँ| ये दोनों दिल्ली भागने वाले थे! पर ट्रैन में चढ़ने से पहले ही दबोच लिया हमने|" भाभी को देख के चन्दर का गुस्सा फुट पड़ा और उसने एक जोरदार तमाचा भाभी के गाल पर दे मारा| पंचों ने चन्दर को इशारे से शाँत रहने को कहा| मुखिया जी उठे और उन्होंने जो गालियाँ देनी शुरू की और उस लड़के के खींच-खींच के तमाचे मारे की उस लड़के की हालत ख़राब हो गई| भाभी हाथ जोड़ के मिन्नतें करने लगी की उसे छोड़ दो पर अगले ही पल मुखिया का तमाचा भाभी को भी पड़ा| "तेरी हिम्मत कैसे हुई हमारे गाँव के नाम पर थूकने की? घर से बहार तूने पैर निकाला तो निकाला कैसे?" ये देख के सभी सर झुका के खड़े हो गए! मुखिया ने बाहु की तरफ देखा और जोर से चिल्ला कर बोले; "बाहु ले जाओ दोनों को और उस पेड़ से बाँध कर जिन्दा जला दो!" ये सुन के सभी मुखिया को हैरानी से देखने लगे पर किसी की हिम्मत नहीं हुई कुछ कहने की| बाहु ने दोनों के जोरदार तमाचा मारा और भाभी और वो लड़का जमीन पर जा गिरे| फिर वो दोनों को जमीन पर घसींट के खेत के बीचों-बीच लगे पेड़ की और चल दिया| दोनों ने बड़ी मिन्नतें की पर बाहु पर उसका कोई फर्क नहीं पड़ा| उसके बलिष्ठ हाथों की पकड़ जरा भी ढीली नहीं हुई और उसने दोनों को अलग अलग पेड़ों से बाँध दिया| फिर अपने चमचों को इशारे से लकड़ियाँ लाने को कहा| चमचों ने सारी लकड़ियाँ भाभी और उस लड़के के इर्द-गिर्द लगा दी और पीछे हट गए| बाहु ने मुड़ के मुखिया के तरफ देखा तो मुखिया ने हाँ में अपनी गर्दन हिलाई और फिर बाहु ने अपने कुर्ते की जेब से माचिस निकाली और एक तिल्ली जला के लड़के की ओर फेंकी| कुछ दो मिनट लगे होंगे लकड़ियों को आग पकड़ने में और इधर भाभी और वो लड़का दोनों छटपटाने लगे| फिर उसने भाभी की तरफ देखा और एक और तिल्ली माचिस से जला कर उनकी और फेंक दी| भाभी और वो लड़का धधकती हुई आग में चीखते रहे ... चिलाते रहे.... रोते रहे ... पर किसी ने उनकी नहीं सुनी| सब हाथ बाँधे ये काण्ड देख रहे थे| ये फैसला देख और सुन के सभी की रूह काँप चुकी थी और अब किसी भी व्यक्ति के मन में किसी दूसरे के लिए प्यार नहीं बचा था| जब आग शांत हुई तो दोनों प्रेमियों की राख को इकठ्ठा किया गया और उसे एक सूखे पेड़ की डाल पर बांध दिया गया| ये सभी के लिए चेतावनी थी की अगर इस गाँव में किसी ने किसी से प्यार किया तो उसकी यही हालत होगी| मैं चूँकि उस समय बहुत छोटा था तो मुझे इस बात की जरा भी भनक नहीं थी और रितिका तो थी ही इतनी छोटी की उसकी समझ में कुछ नहीं आने वाला था| इस वाक्य के बाद सभी के मन में मुखिया के प्रति एक भयानक खौफ जगह ले चूका था| कोई भी अब मुखिया से आँखें मिला के बात नहीं करता था और सभी का सर उनके सामने हमेशा झुका ही रहता था| पूरे गाँव में उनका दबदबा बना हुआ था जिसका उन्होंने भरपूर फायदा भी उठाया| आने वाले कुछ सालों में वो चुनाव के लिए खड़े हुए और भारी बहुमत से जीत हासिल की और सभी को अपने जूते तले दबाते हुए क्षेत्र के विधायक बने| बाहु लठैत उनका दाहिना हाथ था और जब भी किसी ने उनसे टकराने की कोशिश की तो उसने उस शक़्स का नामो-निशाँ मिटा दिया|
 
update 2

इधर कॉलेज के पहले ही साल मेरे कुछ 'काँड़ी' दोस्त बन गए जिनकी वजह से मुझे गांजा मिल गया और उस गांजे ने मेरी जिंदगी ही बदल दी| रोज रात को पढ़ाई के बाद में गांजा सिग्रेटे में भर के फूँकता और फ़ूँकते-फ़ूँकते ही सो जाया करता| सारे दिन की टेंशन लुप्त हो जाती और नींद बड़ी जबरदस्त आती| पर अब दिक्कत ये थी की गांजा फूँकने के लिए पैसे की जर्रूरत थी और वो मैं लाता कहाँ से? घर से तो गिनती के पैसे मिलते थे, तभी एक दोस्त ने मुझे कहा की तू कोई पार्ट टाइम काम कर ले! आईडिया बहुत अच्छा था पर करूँ क्या? तभी याद ख्याल आया की मेरी एकाउंट्स बहुत अच्छी थी, सोचा क्यों न किसी को टूशन दूँ? पर इतनी आसानी से छडे लौंडे को कोई काम कहाँ देता है? एक दिन मैं दोस्तों के साथ बैठ चाय पी रहा था की मैंने अखबार में एक इश्तिहार पढ़ा: 'जर्रूरत है एक टीचर की' ये पढ़ते ही मैं तुरंत उस जगह पहुँच गया और वहाँ मेरा बाकायदा इंटरव्यू लिया गया की मैं कहाँ से हूँ और क्या करता हूँ? जब मैंने उन्हें अपने बारे में विस्तार से बताया और अपनी बारहवीं की मार्कशीट दिखाई तो साहब बड़े खुश हुए| फिर उन्होंने अपनी बेटी, जिसके लिए वो इश्तिहार दिया गया था उससे मिलवाया| एक दम सुशील लड़की थी और कोई देख के कह नहीं सकता की उसका बाप इतने पैसे वाला है| उसका नाम शालिनी था, उसने आके मुझे नमस्ते कहा और सर झुकाये सिकुड़ के सामने सोफे पर बैठ गई| उसके पिताजी ने उससे से मेरा तार्रुफ़ करवाया और फिर उसे अंदर से किताबें लाने को कहा| जैसे ही वो अंदर गई उसके पिताजी ने मेरे सामने एक शर्त साफ़ रख दी की मुझे उनकी बेटी को उनके सामने बैठ के ही पढ़ाना होगा| मैंने तुरंत उनकी बात मान ली और उसके बाद उन्होंने मुझे सीधे ही फीस के लिए पूछा! अब मैं क्या बोलूं क्या नहीं ये नहीं जानता था| वो मेरी इस दुविधा को समझ गए और बोले; १००/- प्रति घंटा| ये सुन के मेरे कान खड़े हो गए और मैंने तुरंत हाँ भर दी| इधर उनकी बेटी किताब ले के आई और मेरे सामने रख दी| ये किताब एकाउंट्स की थी जो मेरे लिए बहुत आसान था| उस दिन के बाद से मैं उसे रोज पाँच बजे पढ़ाने पहुँच जाता और एक घंटा या कभी कभी डेढ़-घंटा पढ़ा दिया करता| वो पढ़ने में इतनी अच्छी थी की कभी-कभी तो मैं उसे डेढ़-घंटा पढ़ा के भी एक ही घंटा लिख दिया करता था| शालिनी के पहले क्लास टेस्ट में उसके सबसे अच्छे नंबर आये और ये देख उसके पिताजी भी बहुत खुश हुए और उसी दिन उन्होंने मुझे मेरी कमाई की पहली तनख्वा दी, पूरे ३०००/- रुपये! मेरी तनख्वा मेरे हाथों में देख मैं बहुत खुश हुआ और अगले दिन चूँकि शुक्रवार था तो मैंने सबसे पहले कॉलेज से बंक मारा और रितिका के लिए नए कपडे खरीदे और उसके बाद एक चॉकलेट का बॉक्स लेके मैं बस में चढ़ गया| चार घंटे बाद में घर पहुँचा तो चुपचाप अपना बैग कमरे में रख दिया ताकि कोई उसे खोल के ना देखे| इधर दबे पाँव में रितिका के कमरे में पहुँचा और उसे चौंकाने के लिए जोर से चिल्लाया; "सरप्राइज"!!! ये सुनते ही वो बुरी तरह डर गई और मुझे देखते ही वो बहुत खुश हुई| जैसे ही वो मेरी तरफ आई मैंने उसे कस के गले लगा लिया और बोला; "HAPPY BIRTHDATY ऋतू"!!! ये सुनके तो वो और भी चौंक गई और उसने आज कई सालों बाद मेरे गाल पर चुम लिया और "THANK YOU" कहा| मैंने उसे अपने कमरे में भेज दिया और मेरा बैग ले आने को कहा| जब तक वो मेरा बैग लाइ मैं उसके कमरे में बैठा उसकी किताबें देख रहा था| उसने बैग ला के मेरे हाथ में दिया और मैंने उसमें से उसका तोहफा निकाल के उसे दिया| तोहफा देख के वो फूली न सामै और मुझे जोर से फिर गले लगा लिया और मेरे दोनों गालों पर बेतहाशा चूमने लगी| उसे ऐसा करते देख मुझे बहुत ख़ुशी हुई! घर में कोई नहीं था जो उसका जन्मदिन मनाता हो, मुझे याद है जब से मुझे होश आया था मैं ही उसके जन्मदिन पर कभी चॉकलेट तो कभी चिप्स लाया करता और उसे बधाई देते हुए ये दिया करता था और वो इस ही बहुत खुश हो जाया करती थी| जब की मेरे जन्मदिन वाले दिन घर में सभी मुझे बधाई देते और फिर मंदिर जाया करते थे| मुझे ये भेद-भाव कतई पसंद ना था परन्तु कुछ कह भी नहीं सकता था|

खेर अपना तौफा पा कर वो बहुत खुश हुई और मुझसे पूछने लगी;

रितिका: चाचू मैं इसे अभी पहन लूँ?

मैं: और नहीं तो क्या? इसे देखने की लिए थोड़ी ही दिया है तुझे?!

वो ये सुन के तुरंत नीचे भागी और बाथरूम में पहन के बहार आके मुझे दिखाने लगी| नारंगी रंग की A - Line की जैकेट के साथ एक फ्रॉक थी और उसमें रितिका बहुत ही प्यारी लग रही थी| उसने फिर से मेरे गले लग के मुझे धन्यवाद दिया, परन्तु उसकी इस ख़ुशी किसी को एक आँख नहीं भाई| अचानक ही रितिका की माँ वहाँ आई और नए कपड़ों में देखते ही गरजती हुई बोली; "कहाँ से लाई ये कपडे?" जब वो कमरे में दाखिल हुई और मुझे उसके पलंग पर बैठा देखा तो उसकी नजरें झुक गई| "मैंने दिए हैं! आपको कोई समस्या है कपड़ों से?" ये सुन के वो कुछ नहीं बोली और चली गई| इधर रितिका की नजरें झुक गईं और वो रउवाँसी हो गई| "ऋतू .... इधर आ|" ये कहते हुए मैंने अपनी बाहें खोल दी और उसे गले लगने का निमंत्रण दिया| ऋतू मेरे गले लग गई और रोने लगी| "चाचू कोई मुझसे प्यार नहीं करता" उसने रोते हुए कहा|

"मैं हूँ ना! मैं तुझसे प्यार नहीं करता तो तेरे लिए Birthday Present क्यों लाता? चल अब रोना बंद कर और चल मेरे साथ, आज हम बाजार घूम के आते हैं|" ये सुन के उसने तुरंत रोना बंद किया और नीचे जा के अपना मुंह धोया और तुरंत तैयार हो के आ गई| मैं भी नीचे दरवाजे पर उसी का इंतजार कर रहा था| तभी मुझे वहाँ माँ और पिताजी दिखाई दिए| मैंने उनका आशीर्वाद लिया और उन्हें बता के मैं और रितिका बाजार निकल पड़े| बाजार घर से करीब घंटा भर दूर था और जाने के लिए सड़क से जीप करनी होती थी| जब हम बाजार आये तो मैंने उससे पूछना शुरू किया की उसे क्या खाना है और क्या खरीदना है? पर वो कहने में थोड़ा झिझक रही थी| जब से मैं बाजार अकेले जाने लायक हुआ था तब से मैं रितिका को उसके हर जन्मदिन पर बाजार ले जाया करता था| मेरे अलावा घर में कोई भी उसे अपने साथ बाजार नहीं ले जाता था और बाजार जाके मैंने कभी भी अपने मन की नहीं की, हमेशा उसी से पूछा करता था और वो जो भी कहती उसे खिलाया-पिलाया करता था| पर आज उसकी झिझक मेरे पल्ले नहीं पड़ी इसलिए मैंने उस खुद पूछ लिया; "ऋतू? तू चुप क्यों है? बोलना क्या-क्या करना है आज? चल उस झूले पर चलें?" मैंने उसे थोड़ा सा लालच दिया| पर वो कुछ पूछने से झिझक रही थी;

मैं: ऋतू... (मैं उसे लेके सड़क के इक किनारे बनी टूटी हुई बेंच पर बैठ गया|)
रितिका: चाचू .... (पर वो बोलने से अभी भी झिझक रही थी|)
मैं: क्या हुआ ये तो बता? अभी तो तू खुश थी और अभी एक दम गम-सुम?
रितिका: चाचू... आपने मुझे इतना अच्छा ड्रेस ला के दिया..... इसमें तो बहुत पैसे लगे होंगे ना? और अभी आप मुझे बाजार ले आये ...और.... पैसे....
मैं: ऋतू तूने कब से पैसों के बारे में सोचना शुरू कर दिया? बोल?
रितिका: वो... घर पर सब मुझे बोलेंगे...
मैं: कोई तुझे कुछ नहीं कहेगा! ये मेरे पैसे हैं, मेरी कमाई के पैसे|

ये सुनते ही रितिका आँखें बड़ी कर के मुझे देखने लगी|

रितिका: आप नौकरी करते हैं? आप तो कॉलेज में पढ़ रहे थे ना? आपने पढ़ाई छोड़ दी?
मैं: नहीं पगली! मैं बस एक जगह पार्ट टाइम में पढ़ाता हूँ|
रितिका: पर क्यों? आपको तो पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए? दादाजी तो हर महीने पैसे भेजते हैं आपको! कहीं आपने मेरे जन्मदिन पर खर्चा करने के लिए तो नहीं नौकरी की?
मैं: नहीं .... बस कुछ ... खर्चे पूरे करने होते हैं|
रितिका: कौन से खर्चे?
मैं: अरे मेरी माँ तुझे वो सब जानने की जर्रूरत नहीं है| तू अभी छोटी है....जब बड़ी होगी तब बताऊँगा| अब ये बता की क्या खायेगी?(मैंने हँसते हुए बात टाल दी|)
रितिका ने फिर दिल खोल के सब बताया की उसे पिक्चर देखनी है| मैं उसे ले के थिएटर की ओर चल दिया और दो टिकट लेके हम पिक्चर देखने लगे और फिर कुछ खा-पी के शाम सात बजे घर पहुँचे|
 
update 3

सात बजे घर पहुँचे तो ताऊ जी और ताई जी बहुत नाराज हुए|

ताऊ जी: कहाँ मर गए थे दोनों?
मैं: जी वो... आज ऋतू का जन्मदिन था तो.....(आगे बात पूरी होती उससे पहले ही उन्होंने फिर से झाड़ दिया|)
ताऊ जी: जन्मदिन था तो? इतनी देर तक बहार घूमोगे तुम दोनों? कुछ शर्म हाय है दोनों में या शहर पढ़ने जा के बेच खाई?
इतने में वहाँ पिताजी पहुँच गए और उन्होंने थोड़ा बीच-बचाव करते हुए डाँटा|
पिताजी: कहा था ना जल्दी आ जाना? इतनी देर कैसे लगी?
मैं: जी वो जीप ख़राब हो गई थी| (मैंने झूठ बोला|)
ताऊ जी: (पिताजी से) तुझे बता के गए थे दोनों?
पिताजी: हाँ
ताऊ जी: तो मुझे बता नहीं सकता था?

पताजी: वो भैया मैं तिवारी जी के गया हुआ था वो अभी-अभी आये हैं और आपको बुला रहे हैं|
ये सुनते ही ताऊ जी कमर पे हाथ रख के चले गए और साथ पिताजी भी चले गए| उनके जाते ही मैंने चैन की साँस ली और रितिका की तरफ देखा जो डरी-सहमी सी खड़ी थी और उसकी नजरें नीचे झुकी हुई थीं|
मैं: क्या हुआ?
रितिका: मेरी वजह से आपको डाँट पड़ी!
मैं: अरे तो क्या हुआ? पहली बार थोड़े ही है? छोड़ ये सब और जाके कपडे बदल और नीचे आ|

रितिका सर झुकाये चली गई और मैं आंगन में चारपाई पर बैठ गया| तभी वहाँ माँ आई और उन्होंने भी मुझे डाँट लगाईं| खेर रात गई बात गई!

अगली सुबह मैं अपने दोस्त से मिलने गया ये वही दोस्त है जिसके पिताजी यानि तिवारी जी कल रात को आये थे|

संकेत तिवारी: और भाई मानु! क्या हाल-चाल? कब आये?
मैं: अरे कल ही आया था, और तू सुना कैसा है?
संकेत तिवारी: अरे अपना तो वही है! लुगाई और चुदाई!
मैं: साले तू नहीं सुधारा! खेर कम से कम तू अपने पिताजी के कारोबार में ही उनका हाथ तो बताने लगा! अच्छा ये बता यहाँ कहीं माल मिलेगा?
संकेत तिवारी: हाँ है ना! बहुत मस्त वाला और वो भी तेरे घर पर ही है!
मैं: क्या बकवास कर रहा है?
संकेत तिवारी: अबे सच में! तेरी भाभी.... हाय-हाय क्या मस्त माल है!
मैंने: (उसका कॉलर पकड़ते हुए) बहनचोद साले चुप करजा वरना यहीं पेल दूँगा तुझे!
संकेत तिवारी: अच्छा-अच्छा.......... माफ़ कर दे यार.... सॉरी!
मैं ने उसका कॉलर छोड़ा और जाने लगा तभी उसने आके पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रखा और कान पकड़ के माफ़ी माँगने लगा|
संकेत तिवारी: भाई तेरी बचपन की आदत अभी तक गई नहीं है! साला अभी भी हर बात को दिल से लगा लेता है|
मैं: परिवार के नाम पर कोई मजाक बर्दाश्त नहीं है मुझे! और याद रखिओ इस बात को दुबारा नहीं समझाऊँगा|
संकेत तिवारी: अच्छा यार माफ़ कर दे! आगे से कभी ऐसा मजाक नहीं करूँगा| चल तुझे माल पिलाता हूँ!

खेत पर एक छप्पर था जहाँ उसका टूबवेल लगा था| वहीँ पड़ी खाट पर मैं बैठ गया और उसने गांजा जो एक पुटकी में छप्पर में खोंस रखा था उसे निकला और फिर अच्छे से अंगूठे से मला और फिर सिगरेट में भर के मेरी ओर बढ़ा दी| मैंने सिगरेट मुंह पर लगाईं और सुलगाई और पहला काश मारते ही दिमाग सुन्न पड़ने लगा और मैं उसकी की चारपाई पर लेट के काश मारने लगा| सिगरेट आधी हुई तो उसने मेरे हाथ से सिगरेट ले ली और वो भी फूँकने लगा|

संकेत तिवारी: और बता ... कोई लड़की-वड़की पटाई या फिर अब भी अपने हाथ से हिलाता है?
मैं: साले फर्स्ट ईयर में हूँ अभी घंटा कोई लड़की नहीं मिली जिसे देख के आह निकल जाए!
संकेत तिवारी: अबे तेरा मन नहीं करता चोदने का? बहनचोद स्कूल टाइम से देख रहा हूँ साला अभी तक हथ्थी लगाता है|
मैं: अबे यार किससे बात करूँ, सुन्दर लड़की देख के लगता है की पक्का इसका कोई न कोई बॉयफ्रेंड होगा| फिर खुद ही खुद को रिजेक्ट कर देता हूँ|
संकेत तिवारी: अबे तो शादी कर ले!
मैं: पागल है क्या? शादी कर के खिलाऊँगा क्या बीवी को?
संकेत तिवारी: अपना लंड और क्या?
मैं: बहनचोद तू नहीं सुधरेगा!!!
संकेत तिवारी: अच्छा ये बता ये माल कब फूँकना शुरू किया?
मैं: यार कॉलेज के पहले महीने में ही कुछ दोस्त मिल गए और फिर घर की याद बहुत आती थी| इसे फूँकने के बाद दिमाग सुन्न हो जाता और मैं चैन से सो जाया करता था|
संकेत तिवारी: अच्छा ये बता, रंडी चोदेगा?
मैं: पागल हो गे है क्या तू?
संकेत तिवारी: अबे फट्टू साले! तेरे बस की कुछ नहीं है!
मैं: बहनचोद मैं तेरी तरह नहीं की कोई भी लड़की चोद दूँ! प्यार भी कोई चीज होती है?!
संकेत तिवारी: ओये भोसड़ीवाले ये प्यार-व्यार क्या होता है? बेहजनचोद पता नहीं तुझे तेरी भाभी के बारे में?
मैं: (चौंकते हुए) क्या बोल रहा है तू?
और फिर संकेत ने मुझे सारी कहानी सुनाई जिसे सुन के सारा नशा काफूर हो गया| खेत में खड़ा वो पेड़ जिसमें दोनों प्रेमियों की अस्थियां हैं जहाँ पिताजी कभी जाने नहीं देते थे वो सब याद आने लगा| ये सब सुन के तो बुरी तरह फट गई और दिल में जितने भी प्यार के कीड़े थे सब के सब मर गए! मैंने फैसला कर लिया की चाहे जो भी हो जाये प्यार-व्यार के चक्कर में नहीं पडूँगा! खेर उस दिन के बाद मेरे मन में प्यार की कोई जगह नहीं रह गई थी| मैंने खुद का ध्यान पढ़ाई और पार्ट-टाइम जॉब में लगा दिया और जो समय बच जाता उसमें मैं रितिका के साथ कुछ खुशियां बाँट लेता| दो साल और निकल गए और मैं थर्ड ईयर में आ गया और रितिका भी दसवीं कक्षा में आ गई| अब इस साल उसके बोर्ड के पेपर थे और उसका सेंटर घर से कुछ दूर था तो अब घर वालों को तो कोई चिंता थी नहीं| उनकी बला से वो पेपर दे या नहीं पर मैं ये बात जानता था इसलिए जब उसकी डेट-शीट आई तो मैं ने उससे उसके सेंटर के बारे में पूछा| वो बहुत परेशान थी की कैसे जाएगी? उसकी एक-दो सहलियां थी पर उनका सेंटर अलग पड़ा था!

मैं: ऋतू? क्या हुआ परेशान लग रही है?
रितिका: (रोने लगी) चाचू ... मैं....कल पेपर नहीं दे पाऊँगी! सेंटर तक कैसे जाऊँ? घर से अकेले कोई नहीं जाने दे रहा और पापा ने भी मना कर दिया? दादाजी भी यहाँ नहीं हैं!
मैं: (ऋतू के सर पर प्यार से एक चपत लगाई|) अच्छा ?? और तेरे चाचू नहीं हैं यहाँ?
रितिका: चाचू ... पेपर तो सोमवार को है और आप तो रविवार को चले जाओगे?
मैं: पागल ... मैं नहीं जा रहा! जब-जब तेरे पेपर होंगे मैं ठीक एक दिन पहले आ जाऊँगा|

और हुआ भी यही .... मैं पेपर के समय रितिका को सेंटर छोड़ देता और जब तक वो बहार नहीं आती तब तक वहीँ कहीं घूमते हुए समय पार कर लेता और फिर उसे ले के घर आ जाता| रास्ते में हम उसी के पेपर को डिसकस करते जिससे उसे बहुत ख़ुशी होती| सारे पेपर ख़तम हुए और आप रिजल्ट का इंतजार था| पर इधर घर वालों ने उसकी शादी के लिए लड़का ढूँढना शुरू कर दिया| जब ये बात रितिका को पता चली तो उसे बहुत बुरा लगा क्योंकि वो हर साल स्कूल में प्रथम आया करती थी पर घर वाले हैं की उनको जबरदस्ती उसकी शादी की पड़ी थी| रितिका अब मायूस रहने लगी थी और मुझसे उसकी ये मायूसी नहीं देखि जा रही थी, परन्तु मैं कुछ कर नहीं सकता था| शुक्रवार शाम जब मैं घर पहुँचा तो रितिका मेरे पास पानी ले के आई पर उसके चेहरे पर अब भी गम का साया था| रिजल्ट रविवार सुबह आना था पर घर में किसी को कुछ भी नहीं पड़ी थी| मैंने ताई जी और माँ से रितिका के आगे पढ़ने की बात की तो दोनों ने मुझे बहुत तगड़ी झाड़ लगाईं! ''इसकी उम्र में लड़कियों की शादी हो जाती है!" ये कह के उन्होंने बात खत्म कर दी और मैं अपना इतना सा मुंह ले के ऊपर अपने कमरे में आ गया| कुछ देर बाद रितिका मेरे पास आई और बोली; ''चाचू... आप क्यों मेरी वजह से बातें सुन रहे हो? रहने दो... जो किस्मत में लिखा है वो तो मिलके रहेगा ना?"

"किस्मत बनाने से बनती है, उसके आगे यूँ हथियार डालने से कुछ नहीं मिलता|" इतना कह के मैं वहाँ से उठा और घर से निकल गया| शनिवार सुबह मैं उठा और फिर घूमने के लिए घर से निकल गया| शाम को घर आया और खाना खाके फिर सो गया| रविवार सुबह मैं जल्दी उठा और नाहा-धो के तैयार हो गया| मैंने रितिका को आवाज दी तो वो रसोई से निकली और मेरी तरफ हैरानी से देखने लगी; "जल्दी से तैयार होजा, तेरा रिजल्ट लेने जाना है|" पर मेरी इस बात का उस पर कोई असर ही नहीं पड़ा वो सर झुकाये खड़ी रही| इतने में उसकी सौतेली माँ आ गई और बीच में बोल पड़ी; "कहाँ जा रही है? खाना नहीं बनाना?"
"भाभी मैं इसे ले के रिजल्ट लेने जा रहा हूँ!" मैंने उनकी बात का जवाब हलीमी से दिया|
"क्या करोगे देवर जी इसका रिजल्ट ला के? होनी तो इसकी शादी ही है! रिजल्ट हो या न हो क्या फर्क पड़ता है?" भाभी ने तंज कस्ते हुए कहा|
"शादी आज तो नहीं हो रही ना?" मैंने उनके तंज का जवाब देते हुए कहा और रितिका को तैयार होने को कहा| तब तक मैं आंगन में ही बैठा था की वहाँ ताऊ जी, पिताजी, चन्देर, माँ और ताई जी भी आ गए और मुझे तैयार बैठा देख पूछने लगे;
ताऊ जी: आज ही वापस जा रहा है?
मैं: जी नहीं! वो ऋतू का रिजल्ट आएगा आज वही लेने जा रहा हूँ उसके साथ|
पिताजी: रिजल्ट ले के सीधे घर आ जाना, इधर उधर कहीं मत जाना| पंडितजी को बुलवाया है रितिका की शादी की बात करने के लिए|
मैंने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया की तभी रितिका ने ऊपर से साड़ी बात सुन ली और उसका दिल अब टूट चूका था| मैंने उसे जल्दी आने को कहा और फिर अपनी साईकिल उठाई और उसे पीछे बिठा के पहले उसे मंदिर ले गया और वहाँ उसके पास होने की प्रार्थना की और फिर सीधे बाजार जा के इंटरनेट कैफ़े के बहार रुक गया|

मैं: रिजल्ट की चिंता मत कर, तू फर्स्ट ही आएगी देख लेना!
रितिका: क्या फायदा! (उसने मायूसी से कहा)
मैं: तेरी शादी कल नहीं हो रही! समझी? थोड़ा सब्र कर भगवान् जर्रूर मदद करेगा|

पर रितिका बिलकुल हार मान चुकी थी और उसके मन में कोई उम्मीद नहीं थी की कुछ अच्छा भी हो सकता है| करीब दस बजे रिजल्ट आया और दूकान में भीड़ बढ़ने लगी, मैंने जल्दी से रितिका का रोल नंबर वेबसाइट में डाला और जैसे ही उसका रिजल्ट आया मैं ख़ुशी से उछाल पड़ा! उसने 97% अंक स्कोर किये थे| ये जब मैंने उसे बताया तो वो भी बहुत खुश हुई और मेरे गले लग गई| हम दोनों ख़ुशी-ख़ुशी दूकान से मार्कशीट का प्रिंट-आउट लेके निकले और मैं उसे सबसे पहले मिठाई की दूकान पर ले गया और रस मलाई जो उसे सबसे ज्यादा पसंद थी खिलाई| फिर मैंने घर के लिए भी पैक करवाई और हम फिर घर पहुँचे|
 
update 4

घर पहुँचते ही देखा तो पंडित जी अपनी आसानी पर बैठे थे और कुछ पोथी-पत्रा लेके उँगलियों पर कुछ गिन रहे थे| उन्हें देखते ही रितिका के आँसूं छलक आये और जो अभी तक खुश थी वो फिर से मायूस हो के अपने कमरे में घुस गई| मुझे भी पंडित जी को देख के घरवालों पर बहुत गुस्सा आया की कम से कम कुछ देर तो रुक जाते| ऋतू कुछ दिन तो खुश हो लेती! इधर रितिका के हेडमास्टर साहब भी आ धमके और सब को बधाइयाँ देने लगे पर घर में कोई जानता ही नहीं था की वो बधाई क्यों दे रहे हैं?

"रितिका के 97% आये हैं!!!" मैंने सर झुकाये कहा|

"सिर्फ यही नहीं भाई साहब बल्कि, रितिका ने पूरे प्रदेश में टॉप किया है! उसके जितने किसी के भी नंबर नहीं हैं!" हेडमास्टर ने गर्व से कहा|
"अरे भाई फिर तो मुँह मीठा होना चाहिए!" लालची पंडित ने होठों पर जीभ फेरते हुए कहा| |
मैंने भाभी को रस मलाई से भरा थैला दीया और सब के लिए परोस के लाने को कहा| इतने में हेड मास्टर साहब बोले; "भाई साहब मानना बढ़ेगा, पहले आपके लड़के ने दसवीं में जिले में टॉप किया था और आपकी पोती तो चार कदम आगे निकल गई! वैसे है कहाँ रितिका?" मैंने रितिका को आवाज दे कर बुलाया और वो अपने आँसुंओं से ख़राब हो चुके चेहरे को पोंछ के नीचे आई और हेडमास्टर साहब के पाँव छुए और उन्होंने उसके सर पर हाथ रख के आशीर्वाद दिया| फिर उसने मुझे छोड़के सभी के पाँव छुए और सब ने सिर्फ उसके सर पर हाथ रख दिया पर कुछ बोले नहीं| आज से पहले ऐसा कुछ नहीं हुआ था! इससे पहले की रस मलाई परोस के आती पंडित बोल पड़ा; "जजमान! एक विकट समस्या है लड़की की कुंडली में!" ये सुनते ही सारे चौंक गए पर रितिका को रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा| वो बस हाथ बंधे और सर झुकाये मेरे साथ खड़ी थी| पंडित ने आगे अपनी बात पूरी की; "लड़की की कुंडली में ग्रहों और नक्षत्रों की कुछ असामान्य स्थिति है जिसके कारन इसका विवाह आने वाले पाँच साल तक नामुमकिन है!"

ये सुन के सब के सब सुन्न हो गए और इधर रितिका के मुख पर अभी भी कोई भाव नहीं आया था| "परन्तु कोई तो उपाय होगा? कोई व्रत, कोई पूजा पाठ, कोई हवन? कुछ तो उपाय करो पंडित जी?" ताऊ जी बोले|

"नहीं जजमान! कोई उपाय नहीं! जब तक इसके प्रमुख ग्रहों की दशा नहीं बदलती तब तक कुछ नहीं हो सकता? जबरदस्ती की गई तो अनहोनी हो सकती है?" पंडित ने सबको चेतावनी दी! ये सुन के सब के सब स्तब्ध रह गए| करीब दस मिनट तक सभी चुप रहे! कोई कुछ बोल नहीं रहा था की तभी मैंने चुप्पी तोड़ते हुए कहा; "तो रितिका को आगे पढ़ने देते हैं? अब पाँच साल घर पर रह कर करेगी भी क्या? कम से कम कुछ पढ़ लिख जाएगी तो परिवार का नाम रोशन होगा!" ये सुनते ही ताई जी बोल पड़ी; "कोई जर्रूरत नहीं है आगे पढ़ने की? जितना पढ़ना था इसने पढ़ लिया अब चूल्हा-चौका संभाले! पाँच साल बाद ही सही पर जायेगी तो ससुराल ही? वहाँ जा के क्या नाम करेगी?" इतने में ही हेडमास्टर साहब बोल पड़े; "अरे भाभी जी क्या बात कर रहे हो आप? वो ज़माना गया जब लड़कियों के पढ़े लिखे होने न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता था! आजकल तो लड़कियां लड़कों से कई ज्यादा आगे निकल चुकी हैं! शादी के बाद भी कई सास-ससुर अपनी बहु को नौकरी करने देते हैं जिससे न केवल घर में आमदनी का जरिया बढ़ता है बल्कि पति-पत्नी घर की जिम्मेदारियाँ मिल के उठाते हैं| हर जगह कम से कम ग्रेजुएट लड़की की ज्यादा कदर की जाती है! वो घर के हिसाब-किताब को भी संभालती है| अगर कल को रितिका के होने वाले पति का कारोबार हुआ तो ये भी उसकी मदद कर सकती है और ऐसे में सारा श्रेय आप लोगों को ही मिलेगा| आपके समधी-समधन आप ही को धन्यवाद करेंगे की आपने बच्ची को इतने प्यार से पढ़ाया लिखाया है!"

''और अगर इतनी पढ़ाई लिखाई के बावजूद इस के पर निकल आये और ये ज्यादा उड़ने लगी तो? या मानलो कल को इसके जितना पढ़ा लिखा लड़का न मिला तो?" ताऊ जी ने अपना सवाल दागा! "आपको लगता है की आपकी इतनी सुशील बेटी कभी ऐसा कुछ कर सकती है? मैंने इसे आज तक किसी से बात करते हुए नहीं देखा| सर झुका के स्कूल आती है और सर स्झुका के वापस! ऐसी गुणवान लड़की के लिए वर न मिले ऐसा तो हो ही नहीं सकता" आप देख लेना इसे सबसे अच्छा लड़का मिलेगा!" हेडमास्टर साहब ने छाती ठोंक के कहा|

"पर..." पिताजी कुछ बोलने लगे तो हेडमास्टर साहब बीच में बोल पड़े| "भाई साहब मैं आपसे हाथ जोड़ के विनती करता हूँ की आप बच्ची को आगे पढ़ने से न रोकिये! ये बहुत तरक्की करेगी, मुझे पूरा विश्वास है इस पर!"

"ठीक है... हेडमास्टर साहब!" ताऊ जी बोले और भाभी को मीठा लाने को बोले| ताऊ जी का फैसला अंतिम फैसला था और उसके आगे कोई कुछ नहीं बोला, इतने में भाभी रस मलाई ले आई पर उनके चेहरे पर बारह बजे हुए थे| सभी ने मिठाई खाई और फिर पंडित जी अपने घर निकल गए और हेड मास्टर साहब अपने घर| साफ़ दिखाई दे रहा था की रितिका के आगे पढ़ने से कोई खुश नहीं था और इधर रितिका फूली नहीं समां रही थी| घर के सारे मर्द चारपाई पर बैठ के कुछ बात कर रहे थे और इधर मैं और रितिका दूसरी चारपाई पर बैठे आगे क्या कोर्स सेलेक्ट करना है उस पर बात कर रहे थे| रितिका साइंस लेना चाहती थी पर मैंने उसे विस्तार से समझाया की साइंस लेना उसके लिए वाजिब नहीं क्योंकि ग्यारहवीं की साइंस के लिए उसे कोचिंग लेना जर्रूरी है| अब चूँकि कोचिंग सेंटर घर से घंटा भर दूर है तो कोई भी तुझे लेने या छोड़ने नहीं जायेगा| ऊपर से साइंस लेने के बाद या तो उसे इंजीनियरिंग करनी होगी या डॉक्टरी और दोनों ही सूरतों में घर वाले उसे घर से दूर कोचिंग, प्रेपरेशन और टेस्ट के लिए नहीं जाने देंगे! अब चूँकि एकाउंट्स और इकोनॉमिक्स उसके लिए बिलकुल नए थे तो मैंने उसे विश्वास दिलाया की इन्हें समझने में मैं उसकी पूरी मदद करूँगा| अब रितिका निश्चिन्त थी और उसके मुख पर हँसी लौट आई थी, वो उठ के अपने कमरे में गई| अगले महीने मेरे पेपर थे तो मैं उन दिनों घर नहीं जा सका और जब पहुँचा तो रितिका के स्कूल खुलने वाले थे और मैं पहले ही उसके लिए कुछ हेल्पबूक्स ले आया था| उन हेल्पबूक्स की मदद से मैंने उसे एकाउंट्स और इकोनॉमिक्स के टिप्स दे दिए| अब मेरे कॉलेज के रिजल्ट का इंतजार था और मैं घर पर ही रहने लगा था| पार्ट टाइम वाली टूशन भी छूट चुकी थी तो मैंने घर पर रह के रितिका को पढ़ना शुरू कर दिया और अब वो एकाउंट्स में बहुत अच्छी हो चुकी थी| जब मेरे रिजल्ट आया तो घरवाले बहुत खुश हुए क्योंकि मैंने कॉलेज में टॉप किया था| मैं घर लौटा तो घर वालों ने उस दिन गाँव में सबको पार्टी दे डाली, क्योंकि खानदान का मैं पहले लड़का था जो ग्रेजुएट हुआ था| पार्टी ख़तम हुई और अगले दिन से ही ताऊ जी ने शादी के लिए जोर डालना शुरू कर दिया पर मैं अभी शादी नहीं करना चाहता था| उन्हें शक हुआ की कहीं मेरा कोई चक्कर तो नहीं चल रहा, इस पर मैंने उन्हें आश्वस्त किया की ऐसा कुछ भी नहीं है| मैं बस नौकरी करना चाहता हूँ, अपने पाँव पर खड़ा होना चाहता हूँ| पर वो मेरी बात सुन के भड़क गए की मुझे भला नौकरी की क्या जर्रूरत है? भरा-पूरा परिवार है और इसमें नौकरी करने की कोई जर्रूरत नहीं, वो चाहें तो उम्र भर मुझे बैठ के खिला सकते हैं| पर मेरे लिए उन्हें समझाना बहुत मुश्किल था फिर मैंने उन्हें वादा कर दिया की 40 साल की उम्र तक मुझे नौकरी करने दें उसके बाद में घर की खेती-बाड़ी संभाल लूंगा और साथ ही ये भी वचन दे डाला की तीन साल बाद में शादी भी कर लूँगा| खेर बड़ी मुश्किल से हाथ-पाँव जोड़ के मैंने सब को मेरे नौकरी करने के लिए मना लिया पर रितिका बहुत उदास थी| मैंने मौका देख के उससे बात की;

मैं: ऋतू तू खुश नहीं है?
रितिका: चाचू... आप नौकरी करोगे तो घर नहीं आओगे? फिर मैं दुबारा अकेली रह जाऊँगी! पहले तो आप २-३ दिन के लिए घर आया करते थे पर अब तो वो भी नहीं! सिर्फ त्यौहार पर ही मिलोगे?
मैं: बाबू... ऐसा नहीं बोलते! मैं घर आता रहूँगा फिर अब अगले साल से तो तू भी बिजी हो जाएगी! बोर्ड्स हैं ना अगले साल!
रितिका: पर ..... (वो जैसे कुछ कहना चाहती हो पर बोल न रही हो|)
मैं: तू चिंता मत कर मैं हर सेकंड सैटरडे घर पर ही रहूँगा| ठीक है? और हाँ अगर तुझे कुछ भी चाहिए किताब, कपडे या कुछ भी तू सीधा मुझे फोन कर देना| मैं तुझे अपने ऑफिस का नंबर दे दूँगा|
रितिका: तो आप कहाँ नौकरी करने जा रहे हो? कहीं से कोई ऑफर आया है?
मैं: नहीं अभी तो नहीं .... कल जा के एक दो जगह कोशिश करता हूँ|

मैंने कोशिश की और आखिर एक दफ्तर में नौकरी मिल ही गई| रहने के लिए कमरा ढूँढना तो उससे भी ज्यादा मुश्किल निकला! ऑफिस से करीब घंटाभर दूर मुझे एक किराये का कमरा मिल गया| शुरू का एक महीना मेरे लिए काँटों भरा था! घर से दफ्तर और दफ्तर से घर आते जाते हालत ख़राब हो जाती! जैसे ही पहली तनख्वा हाथ आई मैंने सबसे पहले अपने लिए बुलेट खरीदी...... EMI पर! घेवालों के लिए कुछ कपडे खरीदे और रितिका के लिए कुछ किताबें और एक सूंदर सी ड्रेस ली! जब सबसे अंत में मैंने उसे ये तौफा दिया तो वो ख़ुशी से झूम उठी और मुझे थैंक्स बोलते हुए उसकी जुबान नहीं थक रही थी|
 
update 5

खैर दिन बीतने लगे और ऑफिस में मुझे एक सुंदरी पसंद आई, परन्तु कभी हिम्मत नहीं हुई की उससे कुछ बात करूँ! बस काम के सिलसिले में जो बात होती वो होती| इसी तरह एक साल और निकला, और अब रितिका बारहवीं कक्षा में थी और इसी साल उसके बोर्ड के पेपर थे| सेंटर घर से काफी दूर था और इस बार भी मुझे रितिका को पेपर के लिए लेके जाना था| मैं आज जब उसे सेंटर छोड़ने गया तो उसकी सहेलियां मुझे देख के कुछ खुस-फुसाने लगी और हँसने लगी| मैंने उस समय कुछ नहीं कहा और निकल गया और वापस दो घंटे बाद पहुँचा और बहार उसका इंतजार करने लगा| जब वो वापस आई तो हमने पहले पेपर डिसकस किया और फिर मैंने उससे सुबह हुई घटना के बारे में पूछा| तब उसने बताय की उसकी सहेलियों को लगा की मैं उसका बॉयफ्रेंड हूँ! "क्या? और तूने क्या कहा?" मैंने चौंकते हुए पूछा| "मैंने उन्हें बताया की आप मेरे चाचू हो और ये सुनके उनके होश उड़ गए!" और ये कहते हुए वो हँसने लगी| मैंने आगे कुछ नहीं कहा और उसे घर वापस छोड़ा और मैं फिर से दफ्तर निकल गया| दफ्तर पहुँचते-पहुँचते देर हो गई और बॉस ने मेरी एक छुट्टी काट ली! खेर मुझे इस बात का इतना अफ़सोस नहीं था| आज रितिका का आखरी पेपर था और मैं जानता था की उसके सारे पेपर जबरदस्त गए हैं! पर आज जब वो पेपर दे कर निकली तो उसने सर झुका के एक ख्वाइश पेश की; "चाचू.... आज मेरा पिक्चर देखने का मन है!" अब चूँकि मैं उसका दिल तोडना नहीं चाहता था सो मैंने उससे कहा; "आज तो देखना मुश्किल है क्योंकि अगर हम समय से घर नहीं पहुंचे तो आज बवाल होना तय है! तू ऐसा कर कल का प्रोग्राम रख, कल दूसरा शनिवार भी है और मेरी ऑफिस की भी छुट्टी है|"

"पर कल तो कोई पेपर ही नहीं है?" उसने बड़े भोलेपन से कहा| "अरे बुधु! ये तू जानती है, मैं जानता हूँ पर घर पर तो कोई नहीं जानता ना?" मेरी बात सुन के वो खुश हो गई| हम घर पहुँचे तो रितिका बहुत चहक रही थी और आज रात की रसोई उसी ने पकाई| मुझे उसके हाथ का बना खाना बहुत पसंद था क्योंकि उसे पता था की मुझे किस तरह का खाना पसंद है| इसलिए जब भी मैं घर आता था तो वो बड़े चाव से खाना बनाती थी और मैं उसे खुश हो के 'बक्शीश' दिया करता था! अगले दिन दुबारा स्कूल ड्रेस पहन के नीचे आई तो भाभी ने उससे पूछा; "कहाँ जा रही है?" इससे पहले की वो कुछ बोलती मैं खुद ही बोल पड़ा; "पेपर देने और कहाँ?" मेरा जवाब बहुत रुखा था जिसे सुन के भाभी आगे कुछ नहीं बोली| हम दोनों घर से बहार निकले और बुलेट पर बैठ के सुबह का शो देखने चल दिए| थिएटर पहुँच के मैंने उसे पिक्चर दिखाई और फिर हमने आराम से बैठ के नाश्ता किया| फिर वो कहने लगी की मंदिर चलते हैं तो मैं उसे एक मंदिर ले आया | दिन के बारह बजे थे और मंदिर में कोई था नहीं, यहाँ तक की पुजारी भी नहीं था| हम अंदर से दर्शन कर के बहार आये और रितिका मंदिर की सीढ़ियों पर बैठने की जिद्द करने लगी| तो उसकी ख़ुशी के लिए हम थोड़ी देर वहीँ बैठ गए, तभी अचानक से रितिका ने अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया और मेरा हाथ अपने दोनों हाथों के बीच दबा दिया| मैंने कुछ नहीं कहा पर मन ही मन मुझे अजीब लग रहा था, पर मैं फिर भी चुप रहा और इधर-उधर देखने लगा की हमें इस तरह कोई देख ना ले| तभी मुझे कोई आता हुआ दिखाई दिया तो मैंने हड़बड़ा के रितिका को हिला दिया और मैं अचानक से खड़ा हो गया| मैं जल्दी से नीचे उतरा और बुलेट स्टार्ट की और रितिका को बैठने को कहा पर ऐसा लगा मानो वो वहाँ से जाना ही ना चाहती हो| वो अपना बस्ता कंधे पर टंगे कड़ी मुझे देख रही थी| "क्या देख रही है? जल्दी बैठ घर नहीं जाना?" मैंने फिर से उसे कहा तो जवाब में उसने सर ना में हिलाया तो मैंने जबरदस्ती उसका हाथ पकड़ा और बैठने को कहा और वो बैठ ही गई| हम वहाँ से चल पड़े इधर रितिका ने पीछे बैठे हुए अपना सर मेरी पीठ पर रख दिया| शुरू के पंद्रह मिनट तो मैं कुछ नहीं बोला पर अंदर ही अंदर मुझे अजीब लगने लगा| घर करीब २० मिनट दूर होगा की मैंने बाइक रोक दी और रितिका से पूछा:

मैं: क्या हुआ पगली? तू कुछ परेशान लग रही है?
रितिका: हम्म
मैं: क्या हुआ? बता ना मुझे?
वो बाइक से उत्तरी और मेरे सामने सर झुका के खड़ी हो गई| मैं अभी भी बाइक पर बैठा था और बाइक स्टैंड पर नहीं थी|

रितिका: मुझे आपसे एक बात कहनी है|
मैं: हाँ-हाँ बोल|
रितिका: वो... वो.... मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ!
मैं: अरे पगली मैं जानता हूँ तू मुझसे प्यार करती है| इसमें तू ऐसे परेशान क्यों हो रही है?
रितिका: नहीं-नहीं आप समझे नहीं! मैं आपसे सच-मुच् में दिलों जान से प्यार करती हूँ!

मेरा ये सुनना था की मैंने एक जोरदार थप्पड़ उसके बाएँ गाल पर रख दिया| मैं सोच रहा था की ये मुझसे चाचा-भतीजी वाले प्यार के बारे में बात कर रही है पर इसके ऊपर तो इश्क़ का भूत सवार हो गया था!
"तेरा दिमाग ख़राब है क्या? जानती भी है तू क्या कह रही है? और किसे कह रही है? मैं तेरा चाचा हूँ! चाचा! तेरे मन में ऐसा गन्दा ख्याल आया भी कैसे? नशा-वषा तो नहीं करने लगी तू कहीं?" मैंने गरजते हुए कहा|
रितिका की आँखें भर आईं थी पर वो अपने आँसू पोंछते हुए बोली; "प्यार करना कोई गन्दी बात है? आपसे सच्चा प्यार करती हूँ! प्यार उम्र, रिश्ते-नाते कुछ नहीं देखता! प्यार तो प्यार होता है!" रितिका की आवाज जो अभी कुछ देर पहले डरी हुई थी अब उसमें जैसे आत्मविश्वास भर आया हो| उसका ये आत्मविश्वास मेरे दिमाग में गुस्से को निमंत्रण दे चूका था इसलिए मैं चिल्लाते हुए बाइक से उतरा और बाइक छोड़ दी और वो जाके धड़ाम से सड़क पर गिरी| मैंने एक और थप्पड़ रितिका के दाएँ गाल पर दे मारा और जोर से चिल्ला के बोला; "कहाँ से सीखा तूने ये सब? हाँ?.... बोल? इसीलिए तुझे पढ़ाया लिखाया जाता है की तू ये ऊल-जुलूल बातें करे? तुझे पता भी है प्यार क्या होता है?" रितिका की आँखों से आंसुओं की धरा बहे जा रही थी पर वो उसका आत्मविश्वास आज पूरे जोश पर था इसलिए वो भी मेरे सामने तन के जवाब देने लगी; "प्यार या प्रेम एक अहसास है। प्यार अनेक भावनाओं का, रवैयों का मिश्रण है जो पारस्परिक स्नेह से लेकर खुशी की ओर विस्तारित है। ये एक मज़बूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना है। किसी इन्सान के प्रति स्नेहपूर्वक कार्य करने या जताने को प्यार कहते हैं। प्यार वह होता है जो आपके दुख में साथ दें सुख में तो कोई भी साथ देता है| प्यार होता है तो हमारी ज़िन्दगी बदल जाती है| प्यार तो एक-दूसरे से दूर रहने पर भी खत्म नहीं होता। जब किसी इंसान के बिना आपको अपना जीवन नीरस लगे! एक दिन वह दिखाई न दे तो दिल बुरी तरह से घबराने लगे। आपको भूख कम लगने लगे या खाने-पीने की सुध न रहे। अखबार में पहले उसकी, फिर अपनी राशि देखें। जब भी वह उठकर कहीं जाए तो आपकी निगाहें उसका पीछा करती रहें। मेरे लिए तो यही प्यार है!" उसने खुद पर गर्व करते हुए जवाब दिया| इधर रितिका के प्रेम की परिभाषा सुन के मेरे तो होश ही उड़ गए! "तुझे किसने कहा मैं तुझसे प्यार करता हूँ?" मेरे पास उसकी परिभाषा का कोई जवाब नहीं था तो मैंने उससे सवाल करना ही बेहतर समझा| "बचपन से ले के आज तक ऐसा क्या है जो आपने मेरे लिए नहीं किया? मेरा स्कूल जाना, मुझे पढ़ाना, मेरे लिए नए कपडे लाना, मेरा जन्मदिन मनाना वो भी तब घर में कोई मेरा जन्मदिन नहीं मनाता| मुझे अनगिनत दफा आपने डाँट खाने से बचाया, जब जब मैं रोइ तो आप होते थे मेरे आँसूं पोछने! और भी उद्धरण दूँ?" उसने फ़टाक से अपना जवाब दिया| "मैंने ये सब इसलिए किया क्योंकि मुझे तुझ पर तरस आता था| घर में हर कोई तुझे झिड़कता रहता था और तुझे उन्हीं झिड़कियों से बचाना चाहता था|" मेरा जवाब सुन वो जरा भी हैरान नहीं लगी| "प्यार किसी की दया, भावना और स्नेह प्रस्तुत करने का तरीका भी है। किसी इन्सान के प्रति स्नेहपूर्वक कार्य करने या जताने को भी प्यार कहते हैं। ये आपका प्यार ही था जो हमेशा मेरा हित और भला चाहता था, आप बस इस सब से अनजान हो!" साफ़ था की रितिका के ऊपर मेरी किसी भी बात का असर नहीं पड़ने वाला था तो मैंने सोच लिया की इसे अब सब सच बता दूँगा| "ये सभी किताबें बातें हैं! तुझे नहीं पता की असल जिंदगी में प्यार करने वालों के साथ क्या होता है?!" ये कहते हुए मैंने उसे उसकी माँ और उनके प्रेमी के साथ गाँव वालों ने क्या किया था सब सुना दिया और इसे सुनने के बाद वो एक दम सन्न रह गई और उसके चेहरे से साफ़ पता चल गया था की उसके पास इसका कोई भी जवाब नहीं है| अगले दस मिनट तक वो बूत बनी खड़ी रही और इधर मेरी नजर मेरी बाइक पर गई जो नीचे पड़ी थी और उसकी इंडिकेटर लाइट टूट गई थी जिसे देख मुझे और गुस्सा आने लगा| मैंने गुस्से से रितिका को बाइक पर बैठने को कहा और इस बार उसने एक ही बार में मेरी बात सुनी और डरी-सहमी सी वो पीछे आ कर बैठ गई| मैंने फटा-फ़ट बाइक दौड़ाई और घर के दरवाजे पर उसे छोड़ा और वहीँ से बाइक घुमा के वापस शहर लौट आया| शहर आते-आते शाम हो गई और जैसे ही घर में घुसा पिताजी का फोन आया तो मैंने उन्हें झूठ बोल दिया की बॉस ने कुछ जर्रूरी काम दिया था इसलिए जल्दी वापस आ गया| उस रात दो बजे तक माल फूँका और दिमाग में रह-रह के रितिका की बातें गूँज रही थी!
 
update 6

एक हफ्ता बीता और शुक्रवार के दिन माँ का फ़ोन आया और उन्होंने जो बताया वो सुन के मेरे पाँव-तले जमीन खिसक गई| मैंने बॉस से अर्जेंट छुट्टी माँगी ये कह के की माँ बीमार हैं और मैं वहाँ से धड़-धडाते हुए बाइक चलते हुए घर पहुँचा! भागता हुआ घर में घुसा और सीधा रितिका के कमरे में घुसा तो वो जैसे अध्-मरी वहाँ पड़ी थी| उसके कपड़ों से बू आ रही थी और जब मैंने उसे उठाने के लिए उसका हाथ पकड़ा तो पता चला की उसका पूरा जिस्म भट्टी की तरह तप रहा था| मैंने पानी की बूँदें उसके चहेरे पर छिडकी तो भी उसकी आँखें नहीं खुली| मैं भागता हुआ नीचे आया तो आँगन में माँ बेचैन खड़ी मिली| उन्होंने बताया की घर पर कोई नहीं है सिवाय उनके और रितिका के| सब किसी ने किसी काम से बहार गए हैं, बीते ६ दिन से रितिका ने कुछ खाया नहीं है, ना ही वो अपने कमरे से बहार निकली थी| १-२ दिन तो सबको लगा की बुखार है अपने आप उतर जायेगा पर उसने खाना-पीना भी छोड़ दिया! ये सुन के तो मेरी हालत और ख़राब हो गई और मैं घर से भागता हुआ निकला और बाइक स्टार्ट की और भगाते हुए बाजार पहुँचा और वहाँ जाके डॉक्टर से मिन्नत कर के उसे घर ले के आया| उसने रितिका का चेक-उप किया और मुझे तुरंत ड्रिप चढाने को कहा और अपने पैड पर बहुत सारी चीजें लिख दीं जिसे मैं दुबारा बाजार से ले के आया| मेरे सामने डॉक्टर ने रितिका को ड्रिप लगाईं और मुझे कड़ी हिदायत देते हुए समझाया की ड्रिप कैसे निकालना है| उनकी बातें सुन के तो मेरी और फ़ट गई की ये मैं कैसे करूँगा!
पहली बोतल तो करीब डेढ़ घंटे में चढ़ी पर उसके बाद वाली चढ़ने में ३ घंटे लगे! मैं सारा टाइम रितिका के कमरे में बैठा था और मेरी नजरे उसके मुख पर टिकी थीं और मन कह रहा था की अब वो आँखें खोलेगी! माँ ने खाने के लिए मुझे नीचे बुलाया पर मैं खाना ऊपर ले के आगया और उसे ढक के रख दिया| रात के एक बजे रितिका की आँख खुली और मैंने तुरंत भाग के उसके बिस्तर के पास घुटने टेक कर उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा; "ये क्या हालत बन ली तूने?" उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कराहट आई और उसने पानी पीने का इशारा किया| मैंने उसे सहारा देके बैठाया और पानी पिलाया फिर उससे खाने को कहा तो उसने ना में गर्दन हिला दी| "देख तू पहले खाना खा ले, उसके बाद हम इत्मीनान से बात करते हैं|" पर वो अब भी मना करने लगी| "अच्छा... तू जो कहेगी वो मैं करूँगा ... बस तू खाना खा ले! देख मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ! मैं तुझे इस हालत में नहीं देख सकता!" ये सुन के वो फिर से मुस्कुराई और बैठने की लिए कोशिश करने लगी और मैंने उसे सहारा दे के बैठाया और फिर अपने हाथ से खाना खिलाया और फिर दवाई दे के लिटा दिया| मैं सारी रात उसी के सिरहाने बैठा रहा और जागता रहा| सुबह के ४ बजे उसका बुखार कम हुआ और उसने अपना हाथ मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया और सोने लगी| सुबह 8 बजे पिताजी और ताऊ जी शादी से लौटे और तब तक मैं रितिका के कमरे में बैठा ऊंघ रहा था| मुझे उसके सिरहाने बैठा देख वो दोनों बहुत गुस्सा हुए और जोर से गरजे; "उतरा नहीं इसका बुखार अभी तक?" ताऊ जी ने बहुत गुस्से में कहा| "ऐसा हुआ क्या था इसे? एक हफ्ते से खाना पीना बंद कर रखा है?" पिताजी ने गुस्से से कहा| "वो पिताजी.... दरअसल पेपर ... आखरी वाला अच्छा नहीं गया था! इसलिए डरी हुई है! कल मैं डॉक्टर को लेके आया था उन्होंने दवाई दी है, जल्दी अच्छी हो जाएगी|" मैंने रितिका का बचाव किया| थोड़ी देर बाद ताई जी और माँ भी ऊपर आ गए और मुझे रितिका के सिरहाने बैठे उसके सर पर हाथ फेरते हुए देख के ताई जी बोली; "तूने सर पर चढ़ा रखा है इसे! अब तू अपना काम धंधा छोड़ के इसके पास बैठा है! ये नौकरी आखिर तूने की ही क्यों थी?"

"नौकरी छूट गई तो अच्छा ही होगा, आखिर ताऊ जी भी तो ये ही चाहते हैं!" मैंने उनके ताने का जवाब देते हुए कहा| ताई जी ने मुझे घूर के देखा और फिर नीचे जाने लगीं| इधर माँ ने आके मेरे गाल पर एक चपत लगा दी और कहा; "बहुत जुबान निकल आई है तेरी!" इतना कह के वो भी नीचे चलीं गई| रितिका ये सब आंखें मीचे सुन रही थी| माँ के नीचे पहुँचते ही रितिका ने आँख खोली और कहा; "अब भी साबुत चाहिए आपको?" मैं उसकी बात समझ नहीं पाया| "मैं क्या कुछ समझा नहीं?"

रितिका: "मेरी बीमारी सुनते ही आप अपना सारा काम छोड़ के मेरे सिरहाने बैठे हो! सबसे मेरा बीच-बचाव कर रहे हो! दवा-दारू के लिए भाग दौड़ कर रहे हो, और तो और कल रात से एक पल के लिए भी सोये नहीं! अगर ये प्यार नहीं है तो क्या है?"
मैं: पगली! मैं तुझे कैसे समझाऊँ? मेरे मन में ऐसा कुछ नहीं है!
रितिका: आप चाहे कितनी भी कोशिश कर लो छुपाने की, पर मेरा दिल कहता है की आप मुझसे प्यार करते हो|
मैं:अच्छा ... चल एक पल को मैं ये मान भी लूँ की मैं तुझसे प्यार करता हूँ, पर आगे क्या?
रितिका: शादी!!! (उसकी आँखें चमक उठी थीं|)
मैं: इतना आसान नहीं है पागल! ये दुनिया... ये समाज ... ये नहीं हो सकता! ये नहीं हो सकता| (ये कहता हुए मेरी आँखें भीग आईं थीं और मैंने अपना सर झुका लिया|)
रितिका: कुछ भी नामुमकिन नहीं है! हम घर से भाग जायेंगे, किसी नई जगह अपना संसार बनाएंगे| (उसने मेरे सर को उठाते हुए आशावादी होते हुए कहा|)
मैं: नहीं... तू समझ नहीं रही.... ये सब लोग हम दोनों को मौत के घाट उतार देंगे| मैं अपनी चिंता तो नहीं करता पर तू..... प्लीज मेरी बात मान और ये भूत अपने सर से उतार दे| (मैंने हाथ जोड़ते हुए कहा पर मेरी बात उस पर रत्ती भर भी असर नहीं दिखा रही थी|)
रितिका: ऐसा कुछ नहीं होगा! आप विश्वास करो मुझ पर, कोई भी हमें नहीं ढूंढ पायेगा|
मैं: ये नामुमकिन है! तेरी माँ को इन्होने ६ दिन में ढूंढ निकला था और तब ना तो मोबाइल फ़ोन थे ना ही इंटरनेट| आज के जमाने में मोबाइल, इंटरनेट, जीपीएस सब कुछ है और तो और वो मुखिया साला अब मंत्री है| इन्हें हमें ढूंढने में ज्यादा समय नहीं लगेगा|
रितिका: बस एक मौका .... एक मौका मुझे दे दो की मैं आपके मन में मेरे लिए प्यार पैदा कर सकूँ! वादा करती हूँ की अगर मैं नाकामयाब हुई तो फिर कभी आपको दुबारा नहीं कहूँगी की मैं आपसे प्यार करती हूँ और वही करुँगी जो आप कहोगे|
मैं: ठीक है ... पर अगर मेरे मन में तुम्हारे लिए प्यार पैदा नहीं हुआ तो तुम्हें मुझे भूलना होगा और समय आने पर एक अच्छे से लड़के से शादी करनी होगी!
रितिका: मंजूर है...... पर मेरी भी एक शर्त है! आप मुझसे झूठ नहीं बोलोगे!
मैं: कैसा झूठ?
रितिका: वो समय आने पर आपको पता चल जायेगा| पर अभी आपको मेरे सर पर हाथ रख के कसम खानी होगी|
मैं: मैं कसम खाता हूँ की मैं कभी भी तुमसे झूठ नहीं कहूँगा! अब तू आराम कर ... मैं थोड़ा नहा लेता हूँ|

ये कहते हुए मैंने एक जोरदार अंगड़ाई ली और फिर नीचे आके ठन्डे-ठन्डे पानी से नहाया और तब जा के मुझे तारो तजा महसूस हुआ| दोपहर के बारह बज गए थे और भाभी ने मुझे आवाज देके रसोई में बुलाया; "ये लो मानु जी, जा के अपनी चाहिती को खिला दो|" ये कहते हुए उन्होंने एक थाली में खाना भर के मेरी ओर बढ़ा दी! मैंने चुप-चाप थाली उठाई और बिना कुछ बोले वापस ऊपर आ गया| रितिका जाग चुकी थी और भाभी की बात सुन के मंद-मंद मुस्कुरा रही थी| मैंने उसे उठा के बिठाया और वो दिवार से टेक लगा के बैठ गई पर वो प्यारी सी मुस्कान उसके होठों पर अब भी थी! "बड़ी हँसी आ रही है तुझे?" मैंने उसे छेड़ते हुए कहा| जवाब में उसने कुछ नहीं कहा और शर्माने लगी| मैंने दाल-चावल का एक कोर उसे खिलने के लिए अपनी उँगलियों को उसके होठों के सामने लाया तो उसने बड़ी नज़ाकत से अपने होठों को खोला और पहला कोर खाया| "आपके हाथ से खाना आज तो और भी स्वाद लग रहा है|"
"अच्छा? पहली बार तो नहीं खिला रहा मैं तुझे खाना!" मैंने उसे उस के बचपन के वाक्य याद दिलाये! "याद है.... पर अब बात कुछ और है|" और ये कह के वो फिर से मुस्कुराने लगी| उसकी बात सुन के मैं झेंप गया और उससे नजरें चुराने लगा| अब आगे बढ़ के रितिका ने भी थाली से एक कोर लिया और मुझे खिलाने के लिए अपनी उँगलियाँ मेरी और बढ़ा दी| मैंने भी उसके हाथ से एक कोर खाया और उसे रोक दिया ये कह के; "बस! पहले तू खा ले फिर मैं खा लूँगा|"
"नहीं... आप मुझे एक कोर खिलाओ और मैं आपको एक कोर खिलाऊँगी!" उसने बड़े प्यार से मेरी बात का विरोध किया| "तू बहुत जिद्दी हो गई है!" मैंने उसे उल्हना देते हुए कहा| "अब आपकी चहेती हूँ तो थोड़ा तो जिद्दी बन ही जाऊँगी|" उसने भाभी की बात प्यार से दोहराई| मैंने आगे कुछ नहीं कहा और हम एक दूसरे को इसी तरह खाना खिलाते रहे| खाने के बाद मैंने उसे दवाई दे के लिटा दिया और मैं नीचे जाने को हुआ तो वो बोली; "आप भी यहीं लेट जाओ|" मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखा और थोड़ा गुस्से से कहा: "ऋतू..." बस वो मेरी बात समझ गई की ऐसा करने से घरवाले कुछ गलत सोचेंगे| रितिका के बगल वाला कमरा मेरा ही था तो मैं उसमें जा के अपने बिस्तर पर पड़ गया और सो गया| शाम पाँच बजे मेरी आँख खुली और मैं आँखें मलता हुआ रितिका के कमरे में घुसा तो देखा वो वहाँ नहीं है| मैंने नीचे आँगन में झाँका तो वो वहाँ भी नहीं थी! तभी मुझे छत पर उसका दुपट्टा उड़ता हुआ नजर आया और मैं दौड़ता हुआ छत पर जा चढ़ा| वो मुंडेर पर बैठी दूर कहीं देख रही थी| "ऋतू यहाँ क्या कर रही है?" मेरी आवाज सुनके जब उसने मेरी तरफ देखा तो उसकी आँखें नम थी| मैं तुरंत ही आपने घुटनों पर आ गया और उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में ले के बोला; "क्या हुआ ऋतू? तू रो क्यों रही है? किसी ने कुछ कहा?" मेरे चेहरे पर शिकन की रेखा देख कर वो मेरे गले आ लगी और रोने लगी और रोते हुए कहा; "आप......आप....कल ......चले ......जाओगे!" "अरे पगली! मैं सरहद पर थोड़े ही जा रहा हूँ! अब काम है तो जाना पड़ेगा ना? काम तो छोड़ नहीं सकता ना?! पर तू मुझे प्रॉमिस कर की तू अपना अच्छे से ख्याल रखेगी और दुबारा बीमार नहीं पड़ेगी|" मैंने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा| "पहले आप वादा करो की आप अगले शुक्रवार आओगे!" उसने अपने आँसूँ पोछते हुए कहा|
"ऋतू.... सॉरी पर मैं नहीं आ पाउँगा! अगले शनिवार मेरी एक डेडलाइन है और बॉस भी इतनी छुट्टी नहीं देंगे| इस बार भी मैं ये झूठ बोल के आया की माँ बीमार हैं|" मैंने उसे समझाया| "तो मेरा..... मैं कैसे...." आगे कुछ बोलना छह रही थी पर उसके आँसूँ उसे कुछ कहने नहीं दे रहे थे| "देख... पहले तू रोना बंद कर फिर मैं तुझे एक तरीका बताता हूँ|" उसने तुरंत रोना बंद कर दिया और अपने आँसूँ पोछते हुए बोली; "बोलिये"| "ये देख मेरा नया मोबाइल! मंगलवार को ही लिया था मैंने और ये ले मेरा कार्ड, ये मुझे बॉस ने बनवा के दिया था| इसमें लिखे मोबाइल पर तू रोज १ बजे फ़ोन करना माँ के मोबाइल से| माँ हर रोज दोपहर को 1 बजे सो जाती है तो तेरे पास कम से कम एक घंटा होगा मुझसे बात करने का, ठीक है?" ये सुन के वो थोड़ा निश्चिन्त हुई फिर मैंने अपने मोबाइल से हम दोनों की एक सेल्फी खींची और उसी दिखाई तो वो बहुत खुश हुई| घर में सिर्फ मेरे और चन्दर के पास ही स्मार्टफोन था बाकी सब अब भी वही बटन वाला फ़ोन इस्तेमाल करते थे| खेर रितिका का मन थोड़ा बहलाने के लिए मैं उसकी फोटो खींचता रहा और उसे स्मार्टफोन के बारे में कुछ बताने लगा और उसे एक-दो गेम भी खेलनी भी सीखा दी| जब तक रितिका छत पर गेम खेलने में बिजी थी तब तक मैं छत पर टहलने लगा और बीते ४८ घंटों में जो कुछ हुआ उसके बारे में सोचने लगा| तभी अचानक से रितिका ने फुल आवाज में एक गाना बजा दिया और मेरे ध्यान उसकी तरफ गया; "ऐसे तुम मिले हो, जैसे मिल रही हो, इत्र से हवा, काफ़िराना सा है इश्क है या क्या है|" उसने गाने की कुछ पंक्तियों में अपने दिल के जज्बात प्रकट किये| मैं कुछ नहीं बोला पर मुस्कुराता हुआ उसकी सामने मुंडेर पर बैठ गया| "ख़ामोशियों में बोली तुम्हारी कुछ इस तरह गूंजती है, कानो से मेरे होते हुए वो दिल का पता ढूंढती है|" रितिका ने फिर से कुछ पंक्तियों से मेरे मन को टटोला| मैं खड़ा हुआ और अपना बायाँ हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिया और उसने उसे थाम लिया और हम धीरे-धीरे इसी तरह हाथ पकड़े छत पर टहलने लगे और तभी; "संग चल रहे हैं, संग चल रहे हैं, धुप के किनारे छाव की तरह..|" मैंने गाने की कुछ पंक्तियों को दोहराया| "हम्म.. ऐसे तुम मिले हो, ऐसे तुम मिले हो, जैसे मिल रही हो इत्र से हवा, काफ़िराना सा है, इश्क हैं या, क्या है??" मैंने इश्क़ है या क्या है उसकी आँखों में देखते हुए कहा और ये मेरा उससे सवाल था| उसने कोई जवाब नहीं दिया बस मुस्कुरा के नीचे चली गई और मैं कुछ देर के लिए चुप-चाप मुंडेर पर बैठ गया और उसे नीचे जाते हुए देखता रहा| थोड़ी देर बाद मैं भी नीचे आ गया और रितिका के कमरे में देखा तो वो अपने पलंग पर लेटी हुई थी और छत की ओर देख रही थी| मैं आगे अपने कमरे की तरफ जानेलगा तो वो मुझे देखते हुए बोली; "सुनिए"| उसकी आवाज सुनके मैं रुका और उसके कमरे की दहलीज पर से उसके कमरे में झांकते हुए बोला; "बोलिये'| ये सुनते ही उसके चेहरे पर फिर से मुस्कराहट आ गई और उसने इशारे से मुझे उसके पास पलंग पर बैठने को कहा| मैं अंदर आया और उसके पलंग पर बैठ गया| रितिका अभी भी लेटी दुइ थी और उसने लेटे-लेटे ही अपना हाथ आगे बढ़ा के मेरा दाहिना हाथ पकड़ लिया और बोली; "अगर मैं आपसे कुछ माँगू तो आप मुझे मना तो नहीं करोगे?" मैंने ना में सर हिला के उसे आश्वासन दिया| "मैं आपको kiss करना चाहती हूँ|" उसने बहुत प्यार से अपनी इच्छा व्यक्त की| पर मैं ये सुनके एकदम से हक्का-बक्का रह गया! मैंने ना में सर हिलाया और बिना कुछ कहे उठ के जाने लगा तो रितिका ने मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया| "अच्छा I'm Sorry!!!" वो ये समझ चुकी थी की मुझे उसकी ये बात पसंद नहीं आई| रितिका ने मेरा हाथ छोड़ा और मैं अपने कमरे में आ कर पलंग पर लेट गया और गहरी सोच में डूब गया| ये जो कुछ भी हो रहा था वो सही नहीं था! जिस रास्ते पर वो जा रही थी वो सिर्फ और सिर्फ मौत के पास खत्म होता था| मन में आया की मैं उसकी बातों को इसी तरह दर-गुजर करता रहूँ और शायद धीरे-धीरे वो हार मान ले, पर अगर वो उसका दिल टूट गया तो? उसने कोई ऐसी-वैसी हरकत की जिससे उसके जान पर बन आई तो? कुछ समझ नहीं आ रहा था .... अगर कहीं से माल मिल जाता तो दिमाग थोड़ा शांत हो जाता" इसलिए मैं एक दम से उठा और घर से बाहर निकल के तिवारी के घर जा पहुँचा| वो समझ चूका था तो वो एक कमरे में घुसा और कुछ अपनी जेब में डाल के चुप-चाप मेरे साथ चल दिया| उसके खेत पर आके हम चारपाई पर बैठ गए और फिर इधर-उधर की बातें हुई और माल फूँका! माल फूँकने के बाद मेरे दिमाग शांत हुआ और में आठ बजे तक उसी के खेत पर छपाई पर पड़ा रहा और आसमान में देखता रहा| तभी अचानक घड़ी पर नजर गई तो एकदम से उठा और घर की तरफ तेजी से चलने लगा| घर पहुँचा तो सभी मर्द आँगन में बैठे खाना खा रहे थे और मुझे देखते ही ताई जी बोली; "आ गया तू? खाने का समय हो गया है! ये ले खाना और दे आ उस महरानी को|" मैं रितिका का खाना ले कर उसके कमरे में पहुँचा तो वो सर झुकाये जमीन पर बैठी थी| मेरी आहट सुन के उसने दरवाजे की तरफ देखा और मेरे हाथ में खाने की थाली देख के वो उठ के पलंग पर बैठ गई| मैंने उसे खाना दिया और मुड़ के जाने लगा तो वो बोली; "आप भी मेरे साथ खाना खा लो|" मैंने बिना मुड़े ही जवाब दिया; "मेरा खाना नीचे है|" इतना कह के मैं नीचे आ गया और खाना खाने लगा| खाना खा के मैं ऊपर आया की चलो रितिका को दवाई दे दूँ तो वो दरवाजे पर नजरे बिछाये मेरा इंतजार कर रही थी|

मैंने कमरे में प्रवेश किया और कोने पर रखे टेबल पर से उसकी दवाई उठाने लगा की तभी रितिका पीछे से बोली; "नाराज हो मुझसे?" मैंने जवाब में ना में सर हिलाया और फिर दवाई ले कर रितिका की तरफ मुड़ा| मेरे एक हाथ में दवाई और एक हाथ में पानी का गिलास था| ''पहले आप कहो की आप मुझसे नाराज नहीं हैं| तभी मैं दवाई लूँगी!" रितिका ने डरते हुए कहा| "हमारा रिश्ता अभी नया-नया है, और ऐसे में जल्दबाजी मुझे पसंद नहीं! अपनी शर्त याद है ना?" मैंने दवाई और पानी का गिलास रितिका के हाथ में देते हुए कहा| "मुझे माफ़ कर दीजिये! आगे से मैं ऐसा नहीं करुँगी|" उसने दुखी होते हुए कहा और दवाई ले ली और फिर चुप-चाप अपने पलंग पर लेट गई| मुझे बुरा लगा पर शायद ये उस समय के लिए सही था| अगले दिन मुझे जाना था तो मैं जल्दी उठा और नीचे आया तो देखा रितिका नहाके तैयार आंगन में बैठी मेरा इंतजार कर रही थी| मुझे देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई| मैंने भी उसकी मुस्कराहट का जवाब मुस्कराहट से दिया और नहाने घुस गया| जब बहार आया तो रितिका रसोई में बैठी पराठे सेक रही थी| "तुझे चैन नहीं है ना?" मैंने उसे थोड़ा डांटते हुए कहा| "अभी जरा सी ठीक हुई नहीं की लग गई काम में|" ये सुन के वो थोड़ा मायूस हो गई की तभी ताई जी बोल पड़ी; "हो गई जितना ठीक होना था इसे| इतने दिनों से खाट पकड़ रखी है और काम हमें करना पड़ रहा है|"
"क्यों भाभी कहाँ गई?" मैंने थोड़ा रितिका का बीच-बचाव किया| इतने में पीछे से भाभी कमरे से निकली और बोली; "ये रही भाभी! मुझसे सारे घर का काम-धाम नहीं होता! एक सहारा था की जब तक इसकी शादी नहीं होती तो कम से कम ये हाथ बंटा देगी पर तुम्हें तो इसे आगे और पढ़ाना है और तो और जब से आये हो तब से इसी की तीमारदारी में लगे हो| कभी बैठते हो हमारे पास?" भाभी ने अच्छे से खरी-खोटी सुनाई और मैं जवाब देने को बोलने ही वाला था की रितिका मेरे पास आ गई और बुदबुदाते हुए बोली; "छोड़ दो, आप ऊपर जा के नाश्ता करो|" मैं ऊपर आकर अपने कमरे में बैठ गया और प्लेट दूसरी तरफ रख दी| इधर रितिका भी ऊपर आ गई और प्लेट दूर देख के एकदम से अंदर आई और प्लेट उठाई और पराठे का एक कोर उसने अचार से लगा के मुझे खिलने को हाथ आगे बढ़ाया| "भाभी की वजह से ही तुम नीचे गई थी ना काम करने|" रितिका ने कोई जवाब नहीं दिया बस मूक भषा में मुझे खाने को कहा| मैंने उसके हाथ से एक निवाला खा लिया फिर उसके हाथ से प्लेट ले कर उसे नीचे जाने को कहा| वो भी सर झुकाये हुए नीचे चली गई और कुछ देर बाद मेरी लिए एक कप में चाय ले आई| "तुने नाश्ता किया?" उसने हाँ में सर हिला दिया और जाने लगी की मैंने दुबारा पूछा; "झूठ तो नहीं बोल रही ना?" तो वो मुड़ी और ना में सर हिलाया| "और दवाई?" तब जाके वो बोली; "अभी नहीं ली, थोड़ी देर में ले लूँगी|"
"रुक" इतना कह कर मैं उठा और उसके कमरे से दवाई ले आया और उसे दवाई निकाल के दी और अपनी चाय भी| उसने मेरे हाथ से दवाई ली और एक घूँट चाय पि कर कप मुझे वापस दे दिया| जैसे ही वो नीचे जाने को पलटी मैंने उसके कंधे पर हाथ रख के उसे रोका और उसे आँखें बंद करने को कहा| उसने धीरे-धीरे अपनी आँखें मीचली और सर नीचे झुका लिया| मैंने आगे बढ़ कर उसके मस्तक को चूमा! मेरा स्पर्श पाते ही वो आके मुझसे लिपट गई और उसकी आँखों में जो आंसुओं के कतरे छुपे थे वो बहार आ गए| मैंने भी उसे कस के अपने जिस्म से चिपका लिया और उसके सर पर बार-बार चूमने लगा|
"बस अब रोना नहीं.... और मेरे पीछे अपना ख़याल रखना| समय पर दवाई लेना और मुझे रोज फ़ोन करना|" इतना कह के मैंने रितिका को खुद से अलग किया और उसके आँसूं पोछे और मैं नीचे उतर आया| नीचे पिताजी और ताऊ जी भी आ चुके थे| मुझे नीचे उतरता देख वो समझ गए की मैं वापस जा रहा हूँ| मैंने सब के पाँव छुए की तभी रितिका भागती हुई मेरे पीछे जाने लगी तो मैं रुक गया और उसे फिर से चेतावनी देता हुआ बोला; "दुबारा अगर बीमार पड़ी ना तो बहुत मारूँगा|" उसने मुस्कुरा के हाँ में सर हिलाया और मुझे हाथ उठा के 'बाए' कहने लगी| मैं बाइक स्टार्ट की और शहर लौट गया| ठीक एक बजे मुझे रितिका फ़ोन आया, उस समय मैं रास्ते में ही था तो मैंने बाइक एक किनारे खड़ी की और उससे बात करने लगा| इसी तरह दिन बीतने लगे और हम रोज एक से दो बजे तक बातें करते| वो मुझे हर एक दिन मुझे यही कहती की आप कैसे हो? आपने खाना खाया? आपकी बहुत याद आती है और आप कब आओगे? पर मैं हर बार उसकी बात को घुमा देता की उसका दिन कैसा था? घरवाले कैसे हैं आदि! वो भी मुझे आस-पड़ोस में होने वाली सभी घटनाएं बताती और कभी-कभी ये भी पूछती की ऑफिस में क्या चल रहा है? एक दिन की बात है की रितिका ने मुझे फ़ोन किया पर मैं उस समय मीटिंग में था तो उसका फ़ोन उठा नहीं सका| उसी रात उसने मुझे ग्यारह बजे फ़ोन किया| समय देखा तो मैं एक दम से घबरा गया की कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं हो गई! पर रितिका को लगा की मैं उससे नाराज हूँ इसलिए मैंने उसका फ़ोन नहीं उठाया| खेर मैंने उसे समझा दिया की मैं मीटिंग में था इसलिए फ़ोन नहीं उठा पाया और आगे भी अगर मैं उसका फ़ोन न उठाऊँ तो वो परेशान ना हो! इधर मेरी छुटियों से बॉस बहुत परेशान थे इसलिए उन्होंने मुझे आखरी चेतावनी दे दी| इसलिए मेरा घर जाना दूभर हो गया और उधर रितिका ने मुझसे घर ना आने का कारन पुछा तो मैंने उसे सारी बात बता दी| वो थोड़ा मायूस हुई पर मैंने उसे ये कह के मना लिया की हम रोज फ़ोन पर तो बात करते ही हैं| वहाँ आने से तो हम खुल के बात भी नहीं कर पाएंगे| पर वो उदास रहने लगी और इधर मैं भी मजबूर था!
 
update 7

महीने बीते और उसके बारहवीं के रिजल्ट का समय आ गया| उसके रिजल्ट से एक दिन पहले मैं रात को घर पहुँच गया| वो मुझे देख के बहुत खुश हुई और मुझे गले लगना चाहा पर मैंने उसे इशारे से मन कर दिया और फिर मैं अपने कमरे में सामान रख के नीचे आ गया| आज रात तो उसने जबरदस्त खाना बनाया जिसे खा के आत्मा तृप्त हो गई| अब चूँकि घरवाले सामने थे तो हम दोनों ने ज्यादा बात नहीं की और मैं पिताजी और ताऊ जी के साथ ही बैठा रहा| घर में सब जानते थे की कल रितिका का रिजल्ट है पर कोई भी उत्साहित या चिंतित नहीं था| उन्हें तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था| जब सोने का समय हुआ तो मैं अपने कमरे में आकर लेट गया और दरवाजा बंद कर लिया| रात के दस बजे होंगे की मेरे दरवाजे पर एक बहुत हलकी सी दस्तक हुई! मैं जानता था ये दस्तक किसकी है इसलिए मैंने उठ के दरवाजा खोला और सामने रितिका ही खड़ी थी| मैं वापस आ के अपने पलंग पर बैठ गया और वो उसी दरवाजे पर खड़ी रही| घर में अभी भी सभी जाग रहे थे इसलिए वो अंदर नहीं आई थी| "तो मैडम जी! कल रिजल्ट है?! क्या चल रहा है मन में? डर लग रहा है की नहीं?" मैंने उसे छेड़ते हुए पुछा| "डर? बिलकुल नहीं! मैं तो बस ये सोच रही हूँ की मेरे पास होने पर आप मुझे क्या दोगे?" उसने पूरे आत्मविश्वास से कहा| "क्या चाहिए तुझे?" मैंने उत्सुकता से पुछा| "पहले वादा करो की आप मना नहीं करोगे?" उसका जवाब सुन मैं सोच में पड़ गया, क्योंकि मैं जानता था की वो Kiss की ख्वाइश करेगी जो मैं पूरा नहीं कर सकता| अगर वो मुझसे पैसे मांगती, कपडे मांगती, या कुछ भी मांगती तो मैं उसे मन नहीं करता| मुझे चुप देख के शायद वो समझ गई की मैं क्या सोच रहा हूँ|

रितिका: क्या सोच रहे हो?
मैं: जानता हूँ की तू क्या माँगने वाली है और मैं वो नहीं दे सकता| (मैंने थोड़े रूखेपन से जवाब दिया|)
रितिका: अच्छा? ठीक है! अभी नहीं बाद में दे देना! अब तो ठीक है?
मैं: समय लगेगा|
रितिका: हम इंतज़ार करेंगे... हम इंतज़ार करेंगे...क़यामत तक
खुदा करे कि क़यामत हो, और तू आए
हम इंतज़ार करेंगे ...
न देंगे हम तुझे इलज़ाम बेवफ़ाई का
मगर गिला तो करेंगे तेरी जुदाई का
तेरे खिलाफ़ शिकायत हो और तू आए
खुदा करे के कयामत हो, और तू आए
हम इंतज़ार करेंगे ...
ये ज़िंदगी तेरे कदमों में डाल जाएंगे
तुझी को तेरी अमानत सम्भाल जाएंगे
हमारा आलम-ए-रुखसत हो और तू आए...
बुझी-बुझी सी नज़र में तेरी तलाश लिये
भटकते फिरते हैं हम आज अपनी लाश लिये
यही ज़ुनून यही वहशत हो और तू आए|
(इतना कह के वो जाने लगी तो मैंने भी उसके गाने को पूरा कर दिया|)
मैं: ये इंतज़ार भी एक इम्तिहां होता है
इसीसे इश्क़ का शोला जवां होता है
ये इंतज़ार सलामत हो
ये इंतज़ार सलामत हो और तू आए
ख़ुदा करे कि क़यामत हो, और तू आए
हम इंतज़ार करेंगे... (ये सुन के वो पलटी और आगे की पंक्तियाँ गाने लगी|)
रितिका: बिछाए शौक़ से, ख़ुद बेवफ़ा की राहों में
खड़े हैं दीप की हसरत लिए निगाहों में
क़बूल-ए-दिल की इबादत हो
क़बूल-ए-दिल की इबादत हो और तू आए
ख़ुदा करे कि क़यामत हो, और तू आए
हम इंतज़ार करेंगे...
मैं: वो ख़ुशनसीब है जिसको तू इंतख़ाब करे
ख़ुदा हमारी.... (इतना कहते हुए मैं रुक गया क्योंकि आगे के शब्द मैं बोलना नहीं चाहता था| पर रितिका ने उन अधूरी पंक्तियों को खुद पूरा किया|)
रितिका: .. ... मोहब्बत को क़ामयाब करे
जवां सितारा-ए-क़िस्मत हो
जवां सितारा-ए-क़िस्मत हो और तू आए
ख़ुदा करे कि क़यामत हो, और तू आए
हम इंतज़ार करेंगे|

गाना पूरा कर के वो मुस्कुराई और पलट के चली गई| मैं जानता था की रितिका को गाना गुन-गुनाना बहुत अच्छा लगता था| जब हम छोटे थे तब हम दोनों अक्सर अंताक्षरी खेलते थे और वो सभी गानों को पूरा गाय करती थी और मैं कभी उसका साथ देता और कभी=कभी उसका गाना सुनता रहता था| खेर रात में हम दोनों चैन से सोये और जब मैं सुबह उठा तो रितिका पहले से ही तैयार खड़ी थी और नीचे आंगन में मेरा इंतजार कर रही थी| मुझे देखते ही वो इशारे से कहने लगी की आप लेट हो गए हो! मैंने भी ऊपर खड़े-खड़े ही अपने कान पकडे और उसे Sorry कहा और तुरंत नीचे आ कर नाहा-धो के तैयार हो गया और फिर हम दोनों ही नाश्ता कर के बाइक पर बैठ के निकल गए| हम साइबर कैफे पहुंचे तो आज वहाँ और भी ज्यादा भीड़ लगी थी| मैंने रितिका का हाथ पकड़ा और भीड़ के बीचों-बीच से होता हुआ अंदर जा पहुँचा और फ़टाफ़ट रितिका का रोल नंबर डाल के उसके रिजल्ट के लोड होने का वेट करने लगा| जैसे-जैसे पेज लोड हो रहा था दोनों की धड़कनें तेज हो चली थीं| आखिर जब पेज पूरा लोड हुआ तो उसके नंबर देख दोनों की आँखों में खुशियाँ उमड़ चुकी थीं| 98.5% देख के वो ख़ुशी से चिल्ला पड़ी और मेरे गले लग गई| वहाँ खड़े सब हमें ही देख रहे थे और जब उन्होंने देखा की उसके 98.5% आये हैं तो वहां भी हल्ला मच गया! वहाँ आये की माता-पिता उसे बधाइयाँ देने लगे और वो सब को धन्यवाद करने लगी| आज रितिका के मुख पर बहुत ख़ुशी थी| पहले मैंने उसे अच्छा सा नाश्ता कराया और फिर मिठाई ली और हम घर की तरफ चल दिए| घर आते-आते थोड़ी देर हो गई| करीब बारह बजे होंगे की जैसे ही हम घर के नजदीक पहुंचे तो वहाँ बहुत सी गाड़ियाँ खड़ी थी| दो लाल बत्ती वाली और बाकी डिश एंटेना वाली| मैंने बाइक खड़ी कर के रितिका की तरफ देखा तो वो हैरान थी; "लो भाई ... अब तो तुम सेलिब्रिटी हो गई हो!" मैंने ऐसा कह के उसे छेड़ा और शर्म से रितिका के गाल लाल हो गए और उसने अपना सर झुका लिया| जब हम घर के दरवाजे के पास पहुंचे तो वहाँ गाँव के सभी लोग खड़े अंदर झाँक रहे थे| हम दोनों को देखते ही सब हमें अंदर जाने के लिए जगह देने लगे और हमारे कदम अंदर पड़ते ही ताऊ जी ने हँसते हुए हम दोनों को गले लगने के लिए बुलाया| तब जा के पता चला वहाँ तो मीडिया वालों का जमावड़ा लगा था, आखिर रितिका पूरे प्रदेश में प्रथम आई थी! आज तो ताऊ जी समेत सब ने उसे बहुत प्यार किया और सब उसे मुबारकबाद और आशीर्वाद दे चुके तब मंत्री जी आगे आये| उस ने भी आगे आते हुए रितिका को आशीर्वाद दिया और फिर उसके बाद कैमरे की तरफ देख के लम्बा-चौड़ा भाषण दिया की कैसे हमें लड़कियों को आगे पढ़ाना चाहिए और वो ही इस देश का भविष्य हैं! ये सुन के तो मैं भी दंग था क्योंकि ये वही शक़्स था जिसने रितिका की माँ और उसके प्रेमी को पेड़ से बाँध के जिन्दा जलाने का फरमान सुनाया था| पर रितिका अभी ये बात नहीं जानती थी की उसकी माँ का कातिल ही उसे आशीर्वाद दे रहा है| जैसे ही मंत्री जी का भाषण खत्म हुआ सब ने तालियाँ बजा दी और फिर रिपोर्टर ने हेडमास्टर साहब से भी रितिका की इस उपलब्धि के बारे में पुछा तो वो कहने लगे; "अरे भाई मैं क्या कहूँ! मुझे तो गर्व है की मैं ऐसे स्कूल का हेडमास्टर हूँ जहाँ मानु और रितिका जैसे विद्यार्थी पड़ते हैं! पहले मानु ने प्रदेश में टॉप किया था और अब देखो उसकी भतीजी ने भी पूरे प्रदेश में टॉप किया|" ये सुन के सारे रिपोर्टर और कैमरा मैन मेरी तरफ घूम गए| "तो बताइये मानु जी पहले आपने टॉप मारा और अब आपकी भतीजी ने भी पूरे प्रदेश में टॉप किया है,आपको कैसा लग रहा है?" एक रिपोर्टर ने पुछा| मेरे कुछ कहने से पहले ही ताऊ जी बोल पड़े; "जी हमारे घर के दोनों बच्चे ही बहुत समझदार है और दिल लगा के पढ़ते हैं|"
"तो आगे आप रितिका को कॉलेज पढ़ने भेजेंगे?" एक रिपोर्टर ने उनसे सवाल पुछा| पर उसका जवाब मंत्री जी ने खुद दिया; "इसमें पूछने की क्या बात है? शहर के कॉलेज में बच्ची का दाखिला होगा और आप देखना ये वहाँ भी टॉप ही करेगी!" ये सुन के तो रितिका बहुत खुश हुई और उसके चेहरे से उसकी ख़ुशी साफ झलक रही थी|
मंत्री की बात सुन सभी चमचे ताली बजाने लगे और उनकी जय-जयकार शुरू हो गई| खेर ये ड्रामा दो घंटों तक चला और शाम होने तक सभी चले गए और घर में जितने भी लोग थे सब आज टी.वी. में आने से बहुत खुश थे| रात के खाने के समय ताऊ जी ने रितिका को सभी मर्दों के सामने बिठा दिया और मेरी तरफ देख के सवाल किया;
ताऊ जी: हाँ भाई मानु तू बता, ये कॉलेज कहाँ है और कितनी दूर है?
मैं: जी शहर में दो ही कॉलेज हैं| एक रेलवे फाटक के पास है और एक वो जिसमें मैंने पढ़ाई की थी| फाटक वाले के पास कोई हॉस्टल नहीं है तो सबसे उत्तम मेरा वाला कॉलेज ही रहेगा| बल्कि मेरी ही कक्षा में पढ़ने वाली एक लड़की की माँ एक लड़कियों का हॉस्टल चलती हैं जो की कॉलेज से करीब १० मिनट की दूरी पर है| हॉस्टल में रहना-खाना और एक पुस्तकालय भी है| (मैंने उन्हें सारी डिटेल बताई|)
ताऊ जी: वो तो ठीक है ... पर ... वहाँ अगर ये इधर-उधर कहीं चली गई तो?
मैं: जी हॉस्टल के कानून सख्त होते हैं| शाम को 7 बजे के बाद वो किसी को भी बहार जाने नहीं देते, खाने का समय भी निर्धारित है और कहीं भी जाने से पहले वार्डन को बताना जर्रूरी होता है और अगर कोई बिना बताये कहीं आये-जाए तो उसकी खबर घरवालों को की जाती है| रहना, खाने, नहाने, कपडे धोने की सब की व्यवस्था हॉस्टल के अंदर में होती है| रितिका को सिर्फ कॉलेज जाना है और वहाँ से हॉस्टल वापस|
ताऊ जी: ठीक है परसों मैं, चन्दर और तेरे पिताजी तुझे शहर में मिलेंगे| वहाँ जा के देखता हूँ!
उनकी बात से साफ़ था की अगर उन्हें मंत्री का डर ना होता तो वो रितिका को कतई कॉलेज पढ़ने नहीं जाने देते| इसलिए मरते क्या न करते उन्हें उनकी बात का मान तो रखना ही था| खेर खाने के बाद मैं छत पर आ गया और कान में हेडफोन्स लगा के गाना सुनते हुए टहलने लगा| रात को ठंडी-ठंडी हवा चलने के कारन छत पर टहलने में मजा आ रहा था| तभी रितिका दबे पाँव ऊपर गई और पीछे से आके उसने मुझे अपनी बाहों में जकड लिया| उसके स्पर्श से ही मैं हड़बड़ा गया पर रितिका ने अपना सर मेरी पीठ पर रख दिया पर मैं चुप-चाप खड़ा रहा| ठंडी हवा के झोंकें मेरे चेहरे पर आज बहुत अच्छे महसूस हो रहे थे| करीब 5 मिनट बाद मैंने रितिका को खुद से अलग किया और मुंडेर पर जा बैठा| इधर वो भी मुझसे थोड़ा दूर हो कर बैठी, क्योंकि घर पर हम दोनों अकेले तो नहीं थे|

रितिका: मैं सोच रही हूँ की हम कलकत्ता भाग जाते हैं!
मैं: (उसकी बात सुन के चौंकते हुए) क्या?
रितिका: हाँ! वहाँ हमें कोई नहीं जानता!
मैं: अच्छा? और वहाँ जा के रहेंगे कहाँ? खाएंगे क्या? और करेंगे क्या?
रितिका: रहना और खाना तो मुझे नहीं पता पर करेंगे तो प्यार ही! एक नई जन्दगी की शुरुरात करेंगे|
मैं: नई जिंदगी शुरू करना इतना आसान नहीं है| उसके लिए पैसे चाहिए! मेरे पास कुछ पैसे हैं पर उसमें हमें सर ढकने की जगह भी नहीं मिलेगी खाने और रहने की तो बात ही छोड़ दो| फिर तेरी पढ़ाई का क्या? अगर भागना ही था तो इतना पढ़ाई क्यों की?
रितिका: मेरे जीवन का लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ आपसे शादी करना है|
मैं: पागल मत बन! इतनी मेहनत की है, इसे मैं बर्बाद नहीं होने दूँगा|
रितिका: (अपना सर पीटते हुए) तो अभी और पढ़ना है? घर में आपकी शादी की बात चलने लगी है|
मैं: जानता हूँ पर तू चिंता मत कर मैं अभी शादी नहीं कर रहा|
रितिका: जबरदस्ती कर देंगे तो क्या करोगे और वैसे भी आपकी कुंडली मैं कौनसे ग्रहों की दशा ख़राब है की आपकी शादी टल जायेगी|
मैं: तो तेरी कुंडली में कौनसा ग्रहों की दशा ख़राब थी| (ये सुनते ही रितिका के पाँव तले जमीन खिसक गई|)
रितिका: तो.....वो..... (रितिका के मुँह से बोल नहीं फुट रहे थे|)
मैं: मैंने उस लालची पंडित को पैसे खिला के झूठ बुलवाया था| तेरे स्कूल और कॉलेज का टाइम कैलकुलेट कर के ही मैंने उसे पाँच साल बोला था| (रितिका ये सुन के उठ खड़ी हुई और आके मेरे सीने से लग कर रोने लगी|)
रितिका: मैं गलत नहीं थी! आप मुझसे बहुत प्यार करते हो बस कभी जताते नहीं हो! आपने मेरे लिए इतना सब कुछ किया.....
इसके आगे मैंने उसे कुछ कहने नहीं दिया और उसे खुद से अलग किया और घडी देखते हुए ऐसे जताया की बहुत लेट हो गया है और मैं वहाँ से जाने लगा तो रितिका बोल पड़ी;
रितिका: कहाँ जा रहे हो आप? आप ने कहा था की आप मुझे गिफ्ट दोगे?
मैं: ऋतू ... मैंने ....
रितिका: (मेरी बात बीच में काटते हुए) घबराओ मत मैं ऐसा कुछ नहीं माँगूँगी जो आपको देने में दिक्कत हो| ये तो बहुत आसान है आपके लिए!
मैं: अच्छा? क्या चाहिए?
रितिका: आपको याद है जब हम छोटे थे और रात को कभी अगर माँ मुझे डाँट देती तो आप कैसे मुझे अपने सीने से लगा के सुलाते थे? आज भी वैसे ही सोने का मन है मेरा!
मैं: (मुस्कुराते हुए) तब हम छोटे थे और अब.....
रितिका: (मेरी बात बीच में काटते हुए) सारी रात ना सही तो कुछ घंटों के लिए? प्लीज! आप तो जानते हो की मुझे नींद जल्दी आ जाती है, फिर आप चले जाना! प्लीज.. प्लीज.. प्लीज.. प्लीज!!!

उसकी बात सुनके मन नहीं हुआ की उसका दिल तोडूं इसलिए मैंने हाँ में सर हिलाया और वो ख़ुशी से उठ खड़ी हुई और भागती हुई अपने कमरे में भाग गई| करीब 10 मिनट बाद में आया तो पाय की वो कुर्सी पर बैठी दरवाजे पर टकटकी बाँधे मेरा इंतजार कर रही है| जैसे ही मैं अंदर आया वो दौड़ के दरवाजे के पास गई और चिटकनी लगाईं फिर मेरे पास आई और मेरे सीने से लग गई| उसकी साँसों की गर्माहट मुझे मेरे सीने पर महसूस हो रही थी और इधर रितिका के हाथ मेरी पूरी पीठ पर चलने लगे थे और मेरे भी हाथ स्वतः ही उसकी पीठ पर आ गए और उसकी बैकलेस कुर्ती पर आज मुझे पहली बार उसकी नंगी पीठ का एहसास हुआ| ये एहसास इतना ठंडा था की मैं छिटक कर उससे अलग हो गया| उसकी नंगी पीठ के एहसास ने मेरे अंदर वासना की चिंगारी ना जला दे इसलिए मैं उससे छिटक कर दूर हो गया था और उससे नजरें चुराने लगा था| वो फिर भी धीरे-धीरे मेरी तरफ बढ़ी और मेरा हाथ पकड़ के अपने पलंग की तरफ ले जाने लगी और फिर वो लेट गई और मुझे धीरे से अपने पास लेटने को खींचा| मैं लेट गया पर मेरी नजरें छत पर टिकी थी की तभी रितिका ने मेरे दाएं हाथ को खींच के अपनी तरफ करवट लेटने को मजबूर किया और फिर बाएं हाथ को सीधा किया और उसे अपना तकिया बनाया और फिर वो दुबारा मेरी छाती में समां गई| फिर मेरे बाएं हाथ को उठाके उसने अपनी कमर पर रखा और अपना हाथ मेरी कमर पर रख कर खुद को मेरे सीने से समेट लिया| उसकी गर्म-गर्म सांसें मेरे दिल पर महसूस होने लगी थी, जितनी भी सख्ती मेरे दिल में थी जो मुझे उसके करीब नहीं जाने देती थी आज वो पिघलने लगी थी| मेरे मन में आज बहुत जोरों की उथल-पुथल हो रही थी! दिमाग कह रहा था की ये गलत है, तेरे साथ इस लड़की की भी जिंदगी तबह हो जाएगी! पर दिल था की वो बहकने लगा था और कह रहा था की जो होगा वो देखा जायेगा! प्यार के लिए जान भी देनी पड़ी तो कोई गम नहीं| तभी दिमाग बोला की ऋतू का क्या होगा? तेरे साथ तो वो भी मौत के घात उतार दी जाएगी! इसी जद्दोजहत के चलते मन बेचैन होने लगा की तभी रितिका ने मेरी छाती को चूमा! उसके नरम होठों के स्पर्श से ही दिल ने दिमाग पर जीत हासिल कर ली और मैंने रितिका को और कस के अपने सीने से चिपका लिया| और मेरे इस दबाव के चलते उसने भी अपनी गिरफ्त मेरे इर्द-गिर्द सख्त कर ली| कब आँख बंद हुई ये पता ही नहीं चला और जब पता चला तो घडी में पोन तीन हुए थे| मैंने धीरे से खुद को रितिका की गिरफ्त से छुड़ाया और मैं दबे पाँव उठ के उसके कमरे से अपने कमरे में आ गया| पर नींद अब उचाट हो गई थी और मन में फिर से वहीँ जंग छिड़ चुकी थी| मैं खुद को तो किस्मत के हवाले छोड़ सकता था पर ऋतू को नहीं! दिमाग और दिल दोनों ने ही एक मत बना लिया की चाहे कुछ भी हो मैं ऋतू के प्यार को अपना लूँ! मैंने दृढ निश्चय कर लिया था की मैं कैसे न कैसे उसे भगा ले जाऊँगा, कब कहाँ और कैसे इस पर मुझे अब घोर विचार करना था| सुबह पाँच बजे तक सोचते-सोचते एक जबरदस्त प्लान बना के तैयार कर लिया था, ऐसा प्लान जिसमें बाल भर भी कोई गड़बड़ नहीं थी| हर एक बात का ध्यान रखा था मैंने और अपने इस प्लान पर मुझे फक्र था| मैं इस प्लान के बारे में सोच-सोच के मुस्कुरा रहा था की तभी रितिका मेरे दरवाजे को खोल के अंदर आई और मुझे इस तरह बैठ के मुस्कुराते हुए देख कर बोली; "गुड मॉर्निंग!" उसे देखते ही मैं उठ के खड़ा हो गया और उसे गले लगाने को अपनी बाहें खोल दी| वो भी बिना कुछ बोले आके मेरे सीने से लग गई| "I Love You !!!" मैंने आँखें मूंदें हुए कहा तो वो जैसे अपने कानों पर विश्वास कर ही नहीं पाई और मुझसे थोड़ा अलग हुई और मेरे मुख पर देखने लगी की कहीं मैं उसके साथ मजाक तो नहीं कर रहा| पर उसे मेरी आँख में सचाई और उसके लिए वो प्यार नजर आया तो वो फिर से मेरे गले लग गई और बोली; "I Love You Too !!! मैं जानती थी आप मेरा प्यार एक ना एक दिन कबूल कर लोगे|" आज हम दोनों की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था पर घर की बंदिश भी थी इसलिए हम अलग हुए, पर हाथ अभी थामे हुए थे फिर मैंने जब रितिका के चेहरे पर नजर डाली तो आज उसका चेहरा दमक रहा था|
 
update 8

नीचे से भाभी की आवाज आई तो मैंने उसका हाथ छोड़ दिया और वो मुस्कुराते हुए नीचे जाने लगी| वो नीचे पहुँची ही थी की मैंने अपने फोन पर गाना फुल आवाज में चला दिया और खुद भी उसी गाने के अल्फाज गाने लगा;
"हसता रहता हूँ तुझसे मिलकर क्यूँ आजकल....
बदले बदले हैं मेरे तेवर क्यूँ आजकल....
आखें मेरी हर जगह ....
ढूंढे तुझे बेवजह...
ये मैं हूँ या कोई और है मेरी तरह..
कैसे हुआ.. कैसे हुआ..
तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ
कैसे हुआ.. कैसे हुआ..
तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ ....
मैं बारिश की बोली समझता नहीं था
हवाओं से मैं यूँ उलझता नहीं था..
है सीने में दिल भी कहाँ थी मुझे ये खबर
कहीं पे हो रातें कहीं पे सवेरा
आवारगी ही रही साथ मेरे
ठहर जा ठहर जा ये कहती है तेरी नज़र
क्या हाल हो गया है ये मेरा..
आखें मेरी हर जगह ढूंढे तुझे बेवजह
ये मैं हूँ या कोई और है मेरी तरह..
कैसे हुआ.. कैसे हुआ..
तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ
कैसे हुआ.. कैसे हुआ.. तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ| हम्म्म ममममम मममम. "

जब ये गाना खत्म हुआ तो मैं अपने कपडे ल कर नीचे आया तो सभी के सभी आंगन में बैठे चाय पी रहे थे और मेरा गाना सुन रहे थे| मैं जब नीचे आया तो पिताजी बोले; "हो गया तेरा गाना?" मैं बुरी तरह झेंप गया और ऋतू की तरफ देखने लगा और उम्मीद करने लगा की वो मेरे गाने का मतलब समझ गई हो| वो मुझे देख के मंद-मंद मुस्कुरा रही थी जो ये संकेत था की वो समझ चुकी है| मैं सीधा बाथरूम में घुस के नहाने लगा पर गाना अब भी गुनगुना रहा था| नाहा धो के, चाय नाश्ता कर के मैं निकलने को हुआ तो बहार ना जाके ऊपर गया, ये बहाना कर के की मैं कुछ भूल गया हूँ| दो मिनट बाद ऋतू भी ऊपर आ गई और कमरे की चौखट पर कंधे के सहारे खड़ी हो गई|
ऋतू: क्या भूल गए?
मैं: वो....वो.... कुछ तो भूल गया हूँ!
ऋतू चल के आगे आई और मेरे दिल पर अपनी ऊँगली रखते हुए बोली;
ऋतू: ये तो नहीं?
मैं: नहीं... ये तो तुम्हारे पास है!
ये सुन के रितिका मुस्कुराने लगी और मेरे सीने से लग गई|
ऋतू: तो अब कब भेंट होगी आपसे?
मैं: अब शहर में ही मिलेंगे|
ऋतू: हाय! उसमें तो कम से कम एक महीना लगेगा!
मैं: 'बिरहा' के बाद मिलन का दोहरा मजा होता है|
ये सुन कर आँसूं के दो कतरे ऋतू की आँखों से छलक आये और मेरी कमीज को भीगोने लगे|
ऋतू: तो क्या बीच में एक भी दिन नहीं आ सकते मुझे मिलने?
मैं: कोशिश करूँगा पर वादा नहीं कर सकता| बॉस बहुत नाराज है मेरी छुटियों को लेकर!
ऋतू: ठीक है ... पर मैं फिर भी इंतजार करुँगी आपका!
मैंने ऋतू को खुद से अलग किया और वो अपने आँसू पोछने लगी| मैंने उसके चेहरे को अपने हथेलियों में लिया और उसके दाएँ गाल पर अपने होंठ रख दिए| मेरे होठों के स्पर्श से जैसे वो सिंहर उठी और पंजों पर खड़ी होके मेरे होठों को चूमना चाहा| पर मैंने उसके होठों पर ऊँगली रख के उसे रोक दिया; "अभी नहीं! कोई आ जाएगा|" ये सुन कर वो झूठ-मूठ का गुस्सा दिखाने लगी| मैंने पुनः उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया और उसके बाएँ गाल को चूम लिया| तब जाके उसका गुस्सा शांत हुआ और वो मेरे सीने से फिर लग गई| इसी मीठी याद को लिए मैं घर से निकला और ऑफिस पहुँचा, बॉस अगले दिन की आधी छुट्टी दे दे इसलिए देर रात तक मैं ऑफिस में बैठा काम निपटाता रहा| अगले दिन पिताजी, ताऊजी और चन्दर सब मुझे बस स्टैंड पर मिले| वहाँ से कॉलेज करीब आधा घंटा दूर था तो हम ऑटो से कॉलेज पहुँचे| कॉलेज के गेट पर ही कल्लू भैया मिल गए और मुझे देखते ही सलाम करने लगे| कॉलेज के दिनों में मैंने उनकी थोड़ी मदद की थी तो वो तब से मेरी बहुत इज्जत किया करते थे| मुझे सलाम करता देख सभी हैरान थे| कल्लू भैया से दुआ-सलाम कर के जब हम अंदर आये तो पिताजी बोले; "तेरा तो बड़ा रुतबा है यहाँ? पढ़ाई करता था की दंगाई!" मैंने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और उन्हें कॉलेज दिखाने लगा| चूँकि सुबह का टाइम था तो विद्यार्थी क्लास में थे, अगर सब बाहर मटर गश्ती करते दिख जाते तो ऋतू का कॉलेज में पढ़ने का सपना तोड़ दिया जाता| आखिर में मैं पिताजी को हेडमास्टर साहब के पास ले गया तो मुझे देख वो फूले नहीं समाय और तुरंत गले से लगा लिया आखिर उनके कॉलेज का टॉपर जो था| फिर जब उन्हें पता चला की ऋतू भी मेरी तरह जिले की टॉपर है तो वो बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने सभी को अपने पैसों से मिठाई मंगवा के खिलाई! मंत्री का नाम लेने की जर्रूरत ही नहीं पड़ी और कॉलेज में रितिका एडमिशन पक्का हो गया| हेडमास्टर साहब ने जबरदस्ती चाय-नाश्ता कराया और फिर हमने वहाँ से विदा ली और १० मिनट पैदल चल के हॉस्टल के बाहर पहुँचे| हॉस्टल के गार्ड ने मुझे देखते ही सलाम ठोका और ये देख के तो सभी अचरज करने लगे| गार्ड हमें अंदर ले के आया और मोहिनी मैडम को बुलाया| ये मोहिनी मैडम वहीँ तो जो कॉलेज में मेरे साथ पढ़ती थी| नाम बिलकुल रंग-रूप से मेल खाता था उसी की माँ ये हॉस्टल चलाती थी|
मोहिनी मुझे देखते ही मुस्कुराती हुई आई; "अरे मानु जी! इतने सालों बाद कैसे याद आई हमारी?" पिताजी समेत सभी हैरान था क्यों की आजतक उनके सामने मुझे कभी किसी ने 'मानु जी' कह के नहीं बुलाया था| "हाँ वो दरसल मेरे भाई की लड़की रितिका...." आगे मेरे कुछ बोलने से पहले ही वो बोल पड़ी; "मुबारक हो जी आपको! चाचा की तरह उसने भी टॉप मारा!" इतना कहते हुए वो मेरे गले लग गई, पर मैंने उसे अभी तक छुआ नहीं था और ये नजारा देख सभी मुँह बाय हैरान थे| दरअसल मोहिनी बहुत ही मुँहफट और अल्हड सवभाव की थी| जब वो बात करती थी तो उसे दुनियादारी की कतई चिंता नहीं होती थी और वो अपने मन की बात बोलने से कभी नहीं हिचकती थी| खेर मुझे उसे रोकना था की कहीं वो कुछ और ना बक दे; "ये मेरे पिताजी, ताऊ जी और चन्दर भैया हैं! वैसे आंटी जी कहाँ हैं?" मैंने उससे पूछा तो उसे मेरे परिवार वालों का ध्यान आया और उसने पहले सब को हाथ जोड़ कर नमस्ते की फिर शर्मा कर अंदर भाग गई| उसके जाते ही मैं ने सब की तरफ देखा तो वो सब अब भी हैरान थे की उनका सीधा साधा लड़का जो कभी किसी लड़की से बात नहीं करता था वो इतना बड़ा हो चूका है की एक लड़की उसके गले लग रही है वो भी उसके परिवार के सामने| "जी वो..." मेरे कुछ कहने से पहले ही आंटी जी आ गईं| "अरे भाईसाहब आप सब खड़े क्यों हैं? बैठिये-बैठिये! ये लड़की भी न बिलकुल बुधु है!" मैंने आगे बढ़ कर आंटी जी के पाँव छुए तो उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया और फिर हम सभी उनके घर की बैठक में बैठ गए| मैंने उनका परिचय सब से कराया और हमारे आने का कारन भी बताया तो उन्हें सुन के बड़ी ख़ुशी हुई और उन्होंने तुरंत मोहिनी को आवाज दे कर चाय-नाश्ता मँगवाया| ताऊ जी और पिता जी ने बड़ी ना-नुकुर की पर आंटी जी नहीं मानी; "अरे भाई साहब आज पहली बार तो आप सभी से मुलाकात हुई है और ये तो घर की बात है! आपका लड़का मानु बहुत मन लगा कर पढता था, और इसी की वजह से मेरी बुधु लड़की पास हुई है| आप रितिका की कतई चिंता ना करो ये उसके लिए उसका दूसरा घर है, यहाँ उसे किसी चीज की कोई दिक्कत नहीं होगी! मेरी बेटी की तरह रहेगी वो यहाँ!" तभी वहाँ मोहिनी चाय-नाश्ता ले कर आ गई और सब को परोस कर खुद अपनी माँ की बगल में हाथ बंधे खड़ी हो गई| "सुन लड़की तेरे कमरे में एक अलग से पलंग डलवा और कल से रितिका भी तेरे ही कमरे में रहेगी|" आंटी की बात सुन उसने बस 'जी' कहा| "बहनजी ... वो ... पैसे....." ताऊ जी ने बस इतना ही कहा था की वो बोल पड़ी; "भाई साहब मैं अब क्या बोलूं...घर की बात है!" इस पर पिताजी भी तपाक से बोले; "देखिये बहनजी, एक-आध दिन की बात होती तो बात कुछ और थी! पर उसे तीन साल यहाँ रहना है| जो पैसे आप बाकी सभी लड़कियों के घरवालों से ले रही हैं वो हम भी दे देंगे|" तभी चन्दर भी बोल पड़ा; "बाकी लड़कियों के घरवाले आपको कितने पैसे देते हैं?" ये सुन के मुझे, पिताजी और ताऊ जी को बहुत गुस्सा आया और ताऊ जी चन्दर को घूर के देखने लगे पर तभी मेरी नजर दिवार पर लगे बोर्ड पर पड़ी जिस पर सब कुछ लिखा था| मैंने इशारे से पिताजी को वहाँ देखने को कहा और उन्होंने ताऊ जी को कहा| "चलिए जी ये लीजिये 6,०००/-" उन्होंने अपनी जेब में हाथ डाला और 2,000 के नोट निकाले और आंटी जी को देने लगे पर आंटी जी ने मना कर दिया| वो समझ चुकी थी को हम सबने बोर्ड पढ़ लिया है| "मैं आपकी बात का मान रखती हूँ पर आपको भी मेरी बात का मान रखना होगा| ये पैसे जो बोर्ड पर लिखे हैं वो औरों के लिए है और आप सब तो अपने हैं इसलिए आप मुझे केवल 4,०००/- दीजिये|" उन्होंने केवल 2,000 के दो नोट लिए और मोहिनी को रजिस्ट्रेशन की किताब लाने को कहा| मोहिनी ने तुरंत वो किताब और बिल बुक उन्हें ला के दी| आंटी जी ने रजिस्ट्रेशन की किताब मुझे दे दी और खुद 4,०००/- के बिल बनाने लगी| "पर बहन जी आप हमारे लिए 2,०००/- का नुक्सान क्यों सह रही हैं?" ताऊ जी ने कहा|
"नुक्सान कैसा जी? अब आपका लड़का मेरी बेटी को पढ़ाता था तब तो उसने कभी नहीं कहा की उसका नुक्सान हो रहा है?" आंटी ने बिल की कॉपी ताऊ जी को देते हुए कहा| "पर आंटी जी उसमें मेरा नुक्सान थोड़े ही था? मेरा भी तो रिविशन हो जाता था!" मैंने उनकी बात का उत्तर दिया| "अब बताइये बहनजी?" पिताजी ने मेरी बात का समर्थन किया| "भाई साहब जिस २,०००/- की बात आप कर रहे हैं वो हमारा मुनाफा होता है| अब आप बताइये की कोई अपनों से मुनाफा कमाता है?" आंटी की इस बात का किसी के पास भी जवाब नहीं था इसलिए उनकी बात मान कर ताऊ जी ने उनसे वो बिल ले लिया और इधर मैंने रजिस्ट्रेशन वाली बुक में रितिका की सभी जानकारी लिख दी बस मोबाइल नंबर की जगह कुछ नहीं लिखा| जब आंटी जी ने मोबाइल नंबर माँगा तो ताऊ जी ने कहा; "बहन जी रितिका के पास मोबाइल नहीं है| उसे इन सब चीजों का कोई शौक नहीं है|" ये सुन के आंटी जी ने मोहिनी को ताना मारा; "सीख इनकी लड़की से कुछ? ये तो सारा दिन मोबाइल में घुसी रहती है|" ये सुन कर उस बेचारी का सर शर्म से झुक गया अब उसे बचाने के लिए मैंने चलने की इजाजत माँगी तो सारे उठ खड़े हुए और आंटी हमें बाहर छोड़ने आई और मुझसे बोली; "अरे मानु बेटा तुम क्या कर रहे हो आज कल?" तभी मोहिनी बीच में बोल पड़ी; "शादी-वादी कर ली होगी!" "नहीं आंटी जी वो मैं फिलहाल बाईपास के पास जो बड़ी सी बिल्डिंग हूँ वहाँ जॉब कर रहा हूँ|"
"कमाल है? इतने सालों से तुम यहीं पर जॉब कर रहे हो पर हमें कभी मिलने नहीं आये!?" उन्होंने थोड़ा गुस्सा दिखते हुए कहा| "जी वो... समय नहीं मिलता ... शनिवार और इतवार मैं घर चला जाता हूँ... इसलिए...." मैंने सफाई दी|
"ये सब मैं नहीं जानती ... एक शहर में हो कर कभी तो आ जाया करो! ये तो तुम्हारा अपना घर है|" उन्होंने मेरे कान पकड़ते हुए कहा| "जी ....ठीक... है... आऊँगा....आऊँगा!!!" मैंने हँसते हुए कहा जैसे की वो मेरा कान मरोड़ रही हों और ये देख के सभी खिल-खिला के हंस पड़े| खेर हँसी-ख़ुशी मैंने सब को बस स्टैंड छोड़ा और मैं विदा ले कर अपने ऑफिस आ गया|
 
update 9

ठीक १ बजे ऋतू का फ़ोन आया और मैंने उसे बता दिया की उसके कॉलेज और हॉस्टल दोनों जगह बात हो गई है| ये सुन कर वो बहुत खुश हो गई और पूछने लगी की सब लोग कहाँ है? तो मैंने उसे बता दिया की वो सब बस में बैठे हैं और 5 बजे तक घर पहुँचेंगे| इसके बाद वही प्यार भरी बातें हुई और फिर मेरे बॉस ने आवाज दे दी तो मुझे जल्दी ही जाना पड़ा|

रात के ग्यारह बजे मेरा फ़ोन बजा तो मैंने घडी देखि, चिंता हुई की सब ठीक तो है?
ऋतू: ये मोहिनी कौन है? (उसने बहुत गुस्से में कहा|)
मैं: क्या...? (अभी भी नींद से ऊंघते हुए|)
ऋतू: वही छमक छल्लो जो आपसे गले लगी थी आज?
मैं: (उबासी लेते हुए) वो... दोस्त ... है|
ऋतू: दोस्त है तो दोस्त की तरह रहे! गले लगने की क्या जर्रूरत है उसे?
मैं: अरे बाबा! वो इतने साल बाद मिले ना तो ....
ऋतू: (बीच में बात काटते हुए) ऐसी भी क्या दोस्ती है की होश तक नहीं उसे की आपके साथ घर के बड़े लोग भी हैं! और आप को भी बहुत मज़ा आ रहा था जो उसे अपने सीने से चिपकाये हुए थे!
मैं: अरे मेरी बात तो सुनो! वो दरअसल थोड़ा मुँहफट है!
ऋतू: (बीच में बात काटते हुए) वो सब मैं नहीं जानती, आप उससे दूर रहो वरना मैं उसका मुँह नोच लुंगी!
इतना कह के ऋतू ने फ़ोन काट दिया, तो मैंने दुबारा फ़ोन घुमाया पर उसने फिर काट दिया| तीसरी बार... चौथी बार... पाँचवी बार... छठी बार...सातवीं बार...आठवीं बार...नौंवी बार... इस बार उसने फ़ोन उठाया|
मैं: ऋतू... मेरी बात तो सुन लो एक बार?
ऋतू: (सुबकते हुए) हम्म...
मैं: जैसा तू सोच रही है वैसे कुछ नहीं है| कॉलेज के दिनों में मैं उसे पढ़ाया करता था वो भी उसके घर जा कर| बस इसके अलावा कुछ नहीं है!
ऋतू: घरवाले... आपकी शादी की बात कर रहे हैं! (उसने सुबकते हुए कहा|)
मैं: अरे तो करने दे ... मैं कौन सा शादी कर रहा हूँ! तू चिंता मत कर!
ऋतू: मैं.... आपसे अलग... नहीं रह सकती!.... मैं जान दे दूँगी!
मैं: SHUT UP!!! दुबारा ऐसी कोई बात कही तो मैं तुझसे कभी बात नहीं करूँगा| अब बेधड़क आराम से सो जा... मैं कोशिश करता हूँ की घर एक चक्कर लगा लूँ|
ये सुन कर उसका सुबकना बंद हुआ और उसने I LOVE YOU कह के फ़ोन काटा| अब मुझे उससे कैसे भी मिलने जाना था पर जाऊँ कैसे? बॉस छुट्टी देगा नहीं! पर उन दिनों किस्मत मुझ पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी, जो चाह रहा था वो मिल रहा था| इसलिए जब घर जाने का मौका चाहने लगा तो अगले दिन वो भी मिल गया| बॉस ने कुछ फाइल पहुँचाने के लिए मुझे कहा| बीच रस्ते में मेरा गाँव था और बॉस जानते थे की मैं घर जर्रूर जाऊँगा इसलिए मेरी ख़ुशी पढ़ते हुए बोले; "कल लंच तक आ जाना|" मैंने ख़ुशी से हाँ कहा और तुरंत निकल पड़ा, पहले फाइल पहुँचाई और फिर वापसी में घर पहुँचा| बुलेट की आवाज सुनते ही ऋतू भागती हुई बाहर आई और मुझे देखते ही उसकी आँखें चमक उठी| उसने आगे बढ़ के मुझे गले लगना चाहा पर बाहर पिताजी और ताऊ जी बैठे थे इसलिए अपना मन मार के चुपचाप खड़ी हो कर मुझे उनसे बात करता हुआ देखने लगी| जब तक मेरी बात खत्म नहीं हुई वो वहाँ से हिली नहीं, शायद उसे डर था की मैं कहीं बहार से ही ना चला जाऊँ| जैसे ही मेरी बात खत्म हुई वो भागती हुई अंदर चली गई पर जब मैंने अंदर घुस के देखा तो वो मुझे कहीं नहीं मिली| आंगन में माँ, ताई जी और भाभी बैठी सब्जी काट रही थी| "अचानक कैसे आना हुआ?" भाभी ने पूछा|
"कुछ काम से पास के गाँव आना हुआ था|" मैंने रुखा सा जवाब दिया और अपने कमरे की तरफ चल दिया| जैसे ही सीढ़ी चढ़ के ऊपर पहुँचा तो ऋतू अपने कमरे में घुस गई और इशारे से मुझे अंदर आने को कहा| मैं उसके कमरे में घुसा और उसने मेरा हाथ पकड़ के मुझे अपने पलंग पर बिठा दिया, फिर अपने दुपट्टे से मेरा पसीना पोछने लगी| उसकी ख़ुशी उसके चेहरे से साफ़ झलक रही थी, वो मुड़ी और टेबल से पानी की गिलास और गुड़ उठा के मुझे दिया| मैंने गुड़ खाया और फिर पानी पिया और उसकी तरफ प्यार से देखने लगा| "आपको भूख लगी होगी?| उसने मुस्कुरा कर कहा और मुड के जाने लगी तो मैंने उसकी कलाई थाम ली और बैग से गुलाब निकाल के अपने घुटनों पर आते हुए कहा; "मेरी जान के लिए!" ऋतू ने मेरे हाथ से गुलाब ले लिया और फिर उसे अपने होठों से चूमा| फिर वो मेरी तरफ देख कर मुस्कुराई और झुक कर मेरे माथे को चूमा| मैं खड़ा हुआ और उसे अपने सीने से जकड़ लिया| इससे पहले की आगे कुछ बात हो पाती नीचे से मेरा बुलावा आ गया और मुझे ऋतू को छोड़ के नीचे जाना पड़ा| खेर वो शाम मुझे नीचे सब के बीच बैठ के बितानी पड़ी पर रात को खाने के समय ताऊ जी ने मेरी शादी की बात छेड़ी;
ताऊ जी: तो बरखुरदार! शादी के बारे में क्या विचार है?
मैं: जी अभी नहीं!
पिताजी: क्यों भला? लड़की तो तूने पहले ही पसंद कर रखी है ना?!
मैं: कौनसी लड़की?
चन्दर: अरे वही जो शहर में मिली थी, जिसने तुम्हें देखते ही गले लगा लिया था?
मैं: (खीजते हुए) वो खुद गले लग गई थी, मैंने उसे गले नहीं लगाया था| और आप सब से किसने कहा की मैं उससे शादी करना चाहता हूँ? मैं बस उसे कॉलेज टाइम में पढ़ाया करता था इससे ज्यादा और कुछ नहीं है!
ताऊ जी: अरे हम अंधे-बहरे थोड़े ही हैं जो हमें उसकी माँ का बार बार 'अपना' कहना सुनाई नहीं देता! कितनी बार उन्होंने तुझे घर आने को कहा था?
मैं: वो सब इसलिए कह रही थी क्योंकि मैं उनकी बेटी को मुफ्त में पढ़ाता था, हॉस्टल का खाना कितना वाहियात होता था इसलिए वो बदले में मुझे घर का खाना खिलाया करती थी और इसी कारन उनका अपनापन मेरे प्रति थोड़ा ज्यादा है| इससे ज्यादा उन्होंने कभी कुछ नहीं कहा|
पिताजी: तो कब करेगा तू शादी?
मैं: पिताजी एक बार नौकरी पक्की हो जाये, पैसा अच्छा कमाने लगूँ तो मैं शादी कर लूँगा|
ताऊ जी: तुझे पैसे की क्यों चिंता है? इतना बड़ा खेत.....
मैं: (उनकी बात काटते हुए) मुझे अपने पाँव पर खड़ा होना है| जब मुझे लगेगा की मैं अपने पाँव पर खड़ा हो गया हूँ तो मैं आपको खुद बता दूँगा और शायद आप भूल रहे हैं की आपने वादा किया था!
मेरा इतना कहना था की उन्हें अपना वादा याद आ गया और उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा बस गुस्से से मुझे एक बार देखा और फिर खाना खाने लगे| खाने के बाद मैं ऊपर आ गया और छत पर चक्कर लगाने लगा| घंटे भर बाद ऋतू भी खाना खा के ऊपर आ गई और मुझे इस तरह गुम-सुम छत पर टहलते हुए देखने लगी| जब मेरी नजर उस पर पड़ी तो मैं ने पाया की वो बड़ी गौर से मुझे देख रही थी और मन ही मन कुछ सोच रही थी| "क्या हुआ जान?" मेरी आवाज सुन कर वो होश में आते हुई बोली; "कुछ नहीं... बस ऐसे ही आपको देख रही थी| आपके जितना प्यार करने वाले को पा कर आज मुझे खुद पर बहुत गर्व हो रहा है|" आगे कुछ बोलने से पहले ही भाभी आ गई और उन्होंने ऋतू को बिस्तर लाने को कहा| आज सभी औरतें छत पर सोने वाली थीं सो मैं उतर के अपने कमरे में लेट गया| अगली सुबह मुझे जल्दी जाना था तो मैं बिना नाश्ता किये जाने लगा तो ऋतू भाग के मेरे पास आई और परांठे जो की उसने पैक कर दिए थे मुझे दे दिए और नीचे चली गई|
कुछ दिन बीते और आखिर वो दिन आ ही गया जब ऋतू को कॉलेज ज्वाइन करना था| शनिवार को घर आते-आते रात हो गई, घर के सभी लोग खाना खा चुके थे| मुझे देखते ही ऋतू ने तुरंत खाना परोस के मुझे दे दिया और खुद अपने कमरे में चली गई| मैं खाना खा के ऊपर आया तो देखा उसने अपने कमरे में सारा सामान समेट रखा था| एक बैग जिसमें उसके कपडे थे वो तैयार रखा था, पूरे कमरे को उसने अच्छे से साफ़ किया था| जब उसकी नजर मुझ पर पड़ी तो उसके चेहरे ने उसकी सारी खुशियों को बयान कर दिया| उसने मुझे गले लगाना चाहा पर तभी पीछे से ताई जी आ गई और कमरे को देखते हुए ऋतू को ताना मारते हुए बोली; "चलो शुक्र है तू ने अपने कमरे को साफ़ कर दिया वरना ये भी हमें ही करना पड़ता|"
"समझदार है!" मैंने उनके ताने का जवाब दिया और फिर अपने कमरे में आ कर लेट गया| मेरे जाते ही ताई जी ऋतू को ज्ञान देने लगी की शहर में उसे किन-किन बातों का ध्यान रखना है| मैं अपने कमरे से उनकी सारी बातें सुन रहा था, ये ज्ञान कम और ताने ज्यादा थे! मैं चुप-चाप करवट लेके लेट गया और सुबह पाँच बजे के अलार्म के साथ उठ बैठा| मैं बाहर आया और अंगड़ाई लेने लगा तो देखा ऋतू नीचे घर के काम कर रही है| मुझे देखते ही वो मुस्कुरा दी और फिर अपने काम में लग गई| मैं जल्दी से नाहा-धो के तैयार हुआ और फिर सभी ने नाश्ता किया|
ताऊ जी: देख ऋतू शहर जा के कहीं मटर-गश्ती शुरू न कर देना! तेरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई में रहना चाहिए और हर शनिवार-इतवार को दोनों घर आते रहना|
मैं; जी ... आप तो जानते ही हैं की मुझे दूसरे और आखरी शनिवार की छुट्टी मिलती है..... तो....
पिताजी: ठीक है... पर ख्याल रखिओ ऋतू का और हमें तुम दोनों की कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए!
मैं: जी... वैसे भी हमारा मिलना कहाँ हो पायेगा?
ताई जी: क्यों?
मैं: मेरे पास समय ही नहीं होता! एक संडे मिलता है तो उसमें भी कपडे धो ना और खाना बनाने में समय निकल जाता है| शाम को फ्री होता हूँ पर हॉस्टल में 6 बजे के बाद मनाही है|
ताई जी: तो इसे (ऋतू) कोई दिक्कत हुई तो?
ताऊ जी: अरे कुछ दिक्कत नहीं होगी| सब देखा है हमने, तू चिंता मत कर|
मैंने आगे कुछ और नहीं कहा और फटाफट नाश्ता किया और अपनी बुलेट रानी को कपडा मारने बाहर चला गया| सब कुछ अच्छे से साफ़ कर के जब मैंने पीछे पलट के देखा तो ऋतू अपना बैग कंधे में टाँगे खड़ी थी| मैंने आगे बढ़ कर उससे बैग लिया और बाइक पर बैठ गया और बैग को पेट्रोल की टंकी पर रख लिया| एक स्टाइल वाली किक मारी और भड़भड़ करती हुई बुलेट स्टार्ट हुई, मैंने पलट के ऋतू को पीछे बैठने को कहा| तो वो सम्भल के बैठ गई और अपना दायाँ हाथ मेरे कंधे पर रख लिया| सारे घर वाले बाहर आ कर खड़े हो चुके थे और ऋतू की कुछ सहेलियां भी बुलेट की आवाज सुन कर वहाँ आ कर खड़ी हो गईं और हाथ हिला कर उसे बाय कहने लगी| ताऊ जी ने फिर से कहा; "सम्भल के जाना और वहाँ जा के हमें फ़ोन करना|" अब उन्हें भी तो थोड़ा बहुत दिखावा तो करना था ना! गाँव से करीब दो किलोमीटर दूर पहुंचे होंगे की मैंने बाइक रोक दी और ऋतू से दोनों तरफ टांग कर के बैठने को कहा| उसने ठीक वैसे ही किया और अपने दोनों हाथों को मेरी बगल से ले कर सामने की तरफ लाइ और मेरी छाती को कस के पकड़ लिया| उसका सर मेरी पीठ में धंसा हुआ था और आँखें बंद थी| ऋतू की गर्म सांसें मुझे मेरी पीठ पर महसूस हो रही थी, मैं बाइक को 40 की स्पीड में ही चला रहा था ताकि इस सफर का जितना हो सके उतना आनंद ले सकूँ|
दो घंटे की ड्राइव के बाद अब थकावट होने लगी तो मैंने बाइक एक ढाबे की तरफ मोड़ दी जहाँ की मैं अक्सर रुका करता था, जब भी घर जाता या आता था| बाइक रुकते ही ऋतू जैसे अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आई| "चलो चाय पीते हैं|" मैंने उसे कहा तो वो बाइक से उतरी और मैंने बाइक पार्क की और हम दोनों ढाबे में घुसे| मुझे देखते ही वेटर ने तपाक से नमस्ते की और ऋतू को मेरे साथ देखते ही वो समझ गया की वो प्रियतमा है और उसने नमस्ते दीदी कहा! ऋतू ने उसकी नमस्ते का जवाब दिया और फिर हम खिड़की के पास वाले टेबल पर बैठ गए| "आपको पता है मैं क्या सोच रही थी?" ऋतू ने मुझसे पुछा तो मैंने ना में सर हिला दिया| "मुझे ऐसा लग रहा था जैसे हम दोनों इस नर्क से भाग के कहीं अपनी छोटी सी दुनिया बसाने जा रहे हैं| इन दो घंटों में मैं जो कुछ भी सोच सकती थी वो सब सोच लिया की हमारा घर कैसा होगा, बच्चे कितने होंगे!" ऋतू ने बड़े भोलेपन से कहा और मैंने सोचा की मुझे उसे अब अपने प्लान से अवगत करा देना चाहिए|
मैं: घर से भागना इतना आसान नहीं है जितना तुम सोच रही हो| जैसे ही हम घर से भागेंगे उसके कुछ घंटों में ही लठैतों को बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन भेजा जायेगा हमें रोकने के लिए| हर बस को रोक कर चेकिंग की जाएगी और हमें पकड़ के मौत के घात उतार दिया जायेगा| इसलिए हमें जो कुछ भी करना है वो बहुत सोच समझ कर करना होगा और किसी भी हालात में घर पर या किसी भी इंसान को हमारे इस रिश्ते के बारे में कुछ पता नहीं चलना चाहिए! सबसे जर्रूरी चीज जो हमें चाहिए वो है पैसा| इस साल डेढ़ साल की नौकरी में मैं कुछ 10 हजार ही जोड़ पाया हूँ| मेरी नौकरी के बारे में घर में सब जानते हैं और मुझे भी कुछ पैसे घर भेजने पड़ते हैं| पर अब तुम चूँकि शहर आ चुकी हो तो अगले साल से तुम्हें भी कुछ पार्ट टाइम नौकरी करनी होगी| ये वही पैसे हैं जिससे हम बचा सकते हैं और जिनकी मदद से दूसरे शहर में हमें घर किराये पर लेना, बर्तन-भांडे आदि खरीदने में मदद करेंगे|
ऋतू: और हम भागेंगे कैसे?
मैं: तुम्हारे थर्ड ईयर के पेपर होने के अगले दिन ही हम भागेंगे| मैं घर पर फ़ोन कर दूँगा की हम घर आ रहे हैं, अब चूँकि घर पहुँचने में 4 घंटे लगते हैं और घर वाले कम से कम 6 से 8 घंटे तक हमें नहीं ढूंढेंगे तो हमारे पास इतना टाइम गैप होगा की हम ज्यादा से ज्यादा दूरी तय कर सकें| यहाँ से हम सीधा बनारस जायेंगे और वहाँ से बैंगलोर!
ऋतू: बैंगलोर?
मैं: हाँ... वो बड़ा शहर है और वहाँ तक हमें ढूँढना इतना आसान नहीं होगा| मोबाइल फेंकना होगा, बैंक अकाउंट बंद करना होगा और तुम्हारे नए कागज बनवाने होंगे|
ऋतू: कागज?
मैं: आधार कार्ड और PAN कार्ड|
ऋतू: वो तो घर में कभी बनाने नहीं दिए|
मैं: जानता हूँ और वही हमारे काम आएगा| नए कागजों का कोई पेपर ट्रेल नहीं होगा|
ऋतू मेरी सारी बातें हैरानी से सुन रही थी की मैंने इतनी सारी प्लानिंग कर रखी है| इतने में मोहिनी का फ़ोन आ गया, जिसे देख कर ऋतू को बहुत गुस्सा आया| उसने दरअसल पूछने के लिए फ़ोन किया था की हम दोनों कब तक पहुँच रहे हैं| "ये क्यों फोन कर रही थी आपको?" उसने गुस्सा दिखते हुए पूछा| "जान, वो पूछ रही थी कब तक हम दोनों हॉस्टल पहुंचेंगे| अब गुस्सा छोडो और चाय पियो और हाँ याद रहे उसे भूले से भी हमारे बारे में शक़ नहीं होना चाहिए|" ये सुन कर ऋतू कुछ बुदबुदाई और फिर चाय पीने लगी| उसकी इस अदा पर मुझे हँसी आ गई जिसे देख के वो भी थोड़ा मुस्कुरा दी| खेर हम चाय पी कर निकले और दो घंटे बाद शहर पहुँच गए| रास्ते भर ऋतू मुझसे उसी तरह चिपकी रही जैसे मुझे छोड़ना ही ना चाहती हो| खेर जैसे ही हम शहर में दाखिल हुए मैंने ऋतू को ढंग से बैठने को कहा और वो पहले की तरह बायीं तरफ दोनों पैर कर के बैठ गई और उसका दाहिना हाथ मेरे दाएं कंधे पर था| बुलेट रानी हॉस्टल की गेट पर रुकी तो गार्ड ने आगे आ कर मुझे नमस्ते की और ऋतू का बैग लेना चाहा तो मैंने उसे मन कर दिया और बाइक पार्क कर मैं ऋतू के साथ अंदर आया| दरवाजे पर नॉक की तो दरवाजा मोहिनी ने खोला और उसके चेहरे पर हमेशा की तरह ख़ुशी साफ़ झलक रही थी| "अरे हमारी टॉपर ऋतू भी आई है!" उसने ऋतू को छेड़ते हुए कहा| ऋतू ने मोहिनी को नमस्ते कहा और फिर हम बैठक में बैठ गए और तभी आंटी जी भी आ गईं तो माने आगे बढ़ कर उनके पाँव छुए और मेरे पीछे-पीछे ऋतू ने भी उसके पैर छुए| आंटी जी ने मोहिनी ख़ास हिदायत दी की वो ऋतू का अच्छे से ख्याल रखे और इसी के साथ मेरे जाने का समय हो गया तो मैं उठ के खड़ा हुआ और नमस्ते कर के जैसे ही बाहर जाने को मुड़ा की ऋतू रोने लगी और मेरे सीने से लग गई| उस पगली ने ये भी नहीं देखा की वहाँ मोहिनी और आंटी जी भी हैं| "वो दरअसल पहली बार घर से बाहर कहीं रुकी है, इसलिए घबरा रही है|" मैंने जैसे तैसे बात को सँभालने की कोशिश की| "अरे बेटी रोने की क्या बात है? ये भी तो तेरे घर जैसा ही है| मोहिनी अंदर ले जा ऋतू को|" आंटी जी ने ऋतू के सर पर हाथ फेरते हुए कहा| जैसे-तैसे मैंने ऋतू के हाथों को जो मेरी पीठ पर कस चुके थे उन्हें खोला और ऋतू के आँसू पोछे; "बस अब रोना नहीं है! मैं कल सुबह 09:30 आऊँगा तैयार रहना| तब जा कर उसका रोना बंद हुआ और फिर मोहिनी ऋतू का हाथ पकड़ के अंदर ले गई| "अरे बेटा तुम क्यों तकलीफ करते हो? मोहिनी कल छोड़ आएगी इसे कॉलेज|" आंटी ने कहा|
"आंटी जी वो पहला दिन है और मैं साथ रहूँगा तो इसे डर कम लगेगा|" मेरी बात सुन के आंटी ने और कुछ नहीं कहा और मैं उनसे विदा ले कर घर आ गया| मेरा घर और ऑफिस हॉस्टल से 1 घंटे दूर था| घर लौट कर कपडे वगैरह धो कर, खाना खाया और जल्दी सो गया| सुबह फटाफट तैयार हो कर मैं हॉस्टल पहुँच गया और मेरी बुलेट रानी की आवाज सुनते ही ऋतू भागती हुई बाहर आई और उसके पीछे-पीछे मोहिनी भी आई और ऋतू की इस भागने की हरकत पर मुस्कुराने लगी| "चलो भाई Best of Luck पहले दिन के लिए| अगर कोई तकलीफ हो तो मुझे बताना|" मोहिनी ने मुस्कुराते हुए कहा| "हाँ ... ये कॉलेज की गुंडी थी, आज भी बहुत चलती है इनकी|" मैंने हँसते हुए कहा और फिर हम कॉलेज के लिए चल पड़े| मुझे कॉलेज गेट पर देखते ही कल्लू भैया दौड़ कर आये और सलाम किया| मेरे साथ ऋतू को देख वो समझ गए की वो मेरी प्रियतमा है| हम दोनों को देख कर कोई नहीं कह सकता था की मैं ऋतू का चाचा हूँ, 5 साल का अंतर् तो कोई पकड़ ही नहीं सकता था| खुद को मैं अच्छे से मेन्टेन रखता था, एक दम क्लीन-शैवेन रहता था, कपडे ब्रांडेड जिससे की लगे ही ना की मैं गाँव-देहात का रहने वाला हूँ|
"अगर कोई भी परेशानी हो तो कल्लू भैया को कह देना|" मैंने ऋतू से कहा ताकि उसके मन का डर कम हो| कॉलेज पूरा घुमा के उसे उसकी क्लास की तरफ छोड़ने जा रहा था की उसकी नजर उस दिवार पर पड़ी जहाँ मेरी तस्वीर लगी थी और वो मुझे खींच के उस तरफ ले जाने लगी| मेरी तस्वीर देख कर उसे काफी गर्व महसूस हो रहा था| "मैं चाहता हूँ तुम्हारी भी तस्वीर मेरी बगल में लगे|" मेरी बात सुन कर ऋतू का आत्मविश्वास लौट आया और उसने हाँ में सर हिलाया| "शाम को 5 बजे मुझे गेट पर मिलना, इतना कह के मैंने उसे उसकी क्लास में भेज दिया| ऑफिस आने में घंटा भर लग गया और बॉस बहुत गुस्सा हो गए, पर मुझे तो शाम को जल्दी जाना था और ये बात कैसे कहूँ उनको?! मैंने उनकी डाँट का जरा भी विरोध नहीं किया और सर झुकाये सुनता रहा| एक कंपनी का पूरा फाइनेंसियल डाटा मेरे पास पेंडिंग पड़ा था इसलिए उनकी डाँट खत्म होते ही मैं सिस्टम पर बैठ गया और काम करने लगा| लंच के समय भी सभी कहते रहे पर मैं नहीं गया और बड़ी मुश्किल से केशबूक कम्पलीट की| बॉस ने जब देखा तो खुद ही मुझे खाने के लिए बोलने लगे तब मैंने उनसे जल्दी जाने की बात कही तो वो भड़क गए| "गर्लफ्रेंड का चक्कर है ना?" उन्होंने डाँटते हुए कहा| "जी मेरे भाई की लड़की का आज कॉलेज में पहला दिन है वो कहीं इधर-उधर न चली जाए इसलिए उसे हॉस्टल छोड़ के मैं वापस आ जाऊँगा|" मैंने उनसे आखरी बार विनती की तो थोड़ी ना-नुकुर के बाद मान गए और बोल दिया की कल सुबह तक सारा डाटा उन्हें किसी भी हालत में कम्पलीट चाहिए| जैसे ही चार बजे मैं फ़टाफ़ट अपनी बुलेट रानी को ले के कॉलेज के लिए निकला और ठीक पाँच बजे मैं कॉलेज गेट पर रुका, मुझे देखते ही ऋतू रोती हुई भाग के मेरे पास आई|
 
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