Incest क्या ये गलत है ? (completed)

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ममता- उम्र 46 साल । ममता का बदन काफी भरा हुआ है। वो जवानी के किनारे को छोड़ चुकी है पर जवानी उसके बदन को नहीं छोड़ सकी है। ममता के बाल एकदम गहरे काले घने हैं जो कि उसकी गांड तक आते हैं। अपने बालों का खूब ख़्याल रखती है। उसका चेहरा अभी भी काफी आकर्षक है। गोरा रंग, आंखें गहरी काजल से सजी हुई। गोरे गाल उठे हुए बिल्कुल किसी रसमलाई की तरह। गुलाबी रसीले हल्के मोटे होंठ। चुचियां का साइज कोई 38 होगा।

ममता की बेटी कविता की उम्र 26 साल है और वो एक सी ए के पास असिस्टेंट का काम करती है। उसकी शादी ममता की बड़ी चिंता है। ऐसा नहीं है कि कविता शादी नहीं करना चाहती पर परिवार की सारी जिम्मेदारी सिर्फ उसी के कंधों पर है। उसके पिताजी की पेंशन कोई 26-27 हज़ार आती है। जिससे दिल्ली में गुज़ारा मुश्किल है। इसलिए वो 12वीं के बाद अस्सिस्टेंट का काम करने लगी जहां से उसे 15 हज़ार मिल जा रहे थे। कविता बिल्कुल अपनी माँ पर गयी है।मदमस्त जवानी, गोरा बदन, हर जगह सही उभार चुचियाँ, गांड सभी गदरायी हुई। मस्त कजरारे नैन, मक्खन जैसे गाल, लंबी घुंघराली ज़ुल्फें, रस से भरे गुलाबी होंठ, एक मदहोश करने वाली आवाज़, उफ्फ्फ क्या खूब दिखती थी वो? बिल्कुल परी सी।

जय - अभी 21 साल का है । वो अभी ग्रेजुएशन फाइनल ईयर में है। वो पढ़ने में काफी होशियार है । वो IAS की तैयारी भी कर रहा है। उसने अभी ही कुछ प्रतियोगी परीक्षाओं में पास भी किया था पर वो बस IAS बनना चाहता था इसलिए उसने कहीं और जाने का सोचा ही नहीं। उसके अंदर कोई बुराई नहीं थी ना वो सिगरेट और नाही शराब को हाथ लगाता था। वो शरीर से भी तन्दुरुस्त था। उसकी एक ही बुरी आदत थी वो लड़कियों के नंगे जिस्म के पीछे लाड़ टपकाता था। उसे पोर्न देखने का भी बहुत शौक था। उसके लैपटॉप में बहुत गंदी से गंदी पोर्न फिल्मों का संग्रह था। जिसे वो अकेले में बैठकर देखता था।
 
कविता आज काम जल्दी खत्म करना चाहती थी। क्योंकि आज उसके भाई जय का जन्मदिन था। वो जल्दी से नंदानी ग्रुप की फ़ाइल के कागज़ को इकट्ठा कर उन्हें सही क्रम से लगाने लगी जैसा कि उसके बॉस आरिफ ने कहा था। मन ही मन वो सोच रही थी कि आखिर जय के लिए क्या गिफ्ट ले? कविता ने अपने भाई को हमेशा अपना दोस्त माना था और वो उसके साथ दोस्तों जैसे ही बर्ताव भी करती थी। आखिर उसके जीवन में कोई और था ही नहीं। सारी सहेलियां तो बिहार में छूट गयी और उन सब की शादी के बाद 2 बच्चे भी हो गए। कविता के बाबूजी अमरकांत झा पटना से 17 कि मी दूर गांव मिठनपुरा के रहने वाले थे। जो कि सरकारी स्कूल में शिक्षक थे । उनका 8 वर्ष पूर्व देहांत हो गया था। जिसके बाद कविता के चाचा शशिकांत झा ने इन लोगों को गांव की कोई भी ज़मीन देने से इनकार कर दिया था। और नाहीं कोई हिस्सा दिया। एक तो पूरा परिवार सदमे में था उसपर ये बवाल। कविता के मामा ने उस समय इनको अपने साथ दिल्ली ले आये। जय तो बहुत छोटा था और ममता अभी अभी विधवा हुई थी। कविता ने उन दोनों को संभाला और मामा सत्यप्रकाश झा के साथ दिल्ली आ गयी और काम ढूंढने लगी। आखिरकार एकाउंटेंसी से 12वीं का फायदा मिला और आरिफ एसोसिएट्स में उसे जॉब मिल गयी। अब बीते 8 साल से वो पूरी ईमानदारी और लगन से काम करती आई है। उसने कभी किसी को शिकायत का कोई मौका नहीं दिया। सब उससे खुश थे। बीते दिनों की बातें किसी फिल्म की रील की तरह उसके सामने चल रही थी। और इसी बीच उसके बॉस आरिफ ने उसे आवाज़ लगाई। कविता....यहां आना ज़रा।
कविता अचानक से होश में आते हुए जी.. सर आई।
कविता ने दरवाजा खोला और बोली- सर ...

नंदानी ग्रुप की फ़ाइल तैयार हो गयी क्या? आरिफ ने सर झुकाये ही पूछा।
कविता- जी सर ....साथ में लेकर आये हैं हम।
ठीक है रख दो।
कविता- सर ...वो आज...हहम्म.... थोड़ा जल्दी छोड़ देते तो... आज कुछ काम है।
आरिफ ने घड़ी की ओर देखा 3 बजने में अभी 5 मिनट थे । फिर बोला ठीक है... ओके जाओ।

कविता झट से पीछे मुड़ी और उसका हाथ टेबल पर रखी किताबो से जा टकराया। जिससे सारी किताबे ज़मीन पर गिर गई।
कविता ने हड़बड़ा कर सारी चीज़ें उठानी शुरू की। आरिफ ने बोला कि आराम से कविता ऐसी भी क्या जल्दी है। आज कुछ खास है लगता है। कविता ने सारी किताबें टेबल पर रखते हुए कहा-आज हमारे छोटे भाई का जन्मदिन है सर।
आरिफ बोले ओके आराम से जाना और कल केक जरूर लाना।
जरूर सर कविता ने जवाब दिया।
कविता फिर लपककर अपनी पर्स और छाता लेकर आफिस से बाहर आ गयी। उसने बगल की इंडिया बैंक की शाखा में प्रवेश किया। जहां से उसे पैसे निकालने थे। शाखा में घुसते ही मैनेजर ने उसे अपने केबिन में बुला लिया। आइये कविताजी बताइये क्या मदद करुं आपकी?
कविता ने बोला कि मुझे कुछ पैसे निकालने हैं। माँ की शाइन करवाके लेके आयी हूँ चेक पर।
जी बिल्कुल बिल्कुल अरे मोहित ये ले जा करवाके ले के आ।
और बताइये क्या लेंगी आप ?
कविता- जी?
मतलब कुछ पियेंगी चाय ठंडा।
मैनेजर उसके साथ फ़्लर्ट करने की कोशिश कर रहा था।
कविता ने जवाब में कहा - जी नहीं कुछ नहीं।
मैनेजर कोई 38 40 साल का होगा। वो कविता के रूप को और यौवन को आंखों से चख रहा था। कविता के आंखों को काजल और मस्करा ने झील बना दिया था। उसके गालों पर लाली छाई थी और होंठो पर गुलाबी लिपस्टिक की परत थी। गला सुराहीदार था। कविता की चुचियाँ का कटाव सलवार सूट का गला डीप होने की वजह से साफ दिख रहा था।गर्मी की वजह से पसीना गले से टपकते हुए सीधे चुचियाँ की वादियों में ही गिर रहा था। कविता की गले की चैन भी चुचियो के बीच ही फसी थी। उसे शायद इसकी खबर नहीं थी।मैनेजर का बस चलता तो वहीं कविता को नंगी कर देता और अपनी टेबल पर उसे खूब रगड़के चोदता। कविता अपना मोबाइल देख रही थी। तभी मोहित ने पैसे लेकर दे दिए।
कविता ने पैसे लिए और चली गयी।
मैनेजर ने मोहित से बोला - क्या गज़ब की माल है रे मोहित? बहुत मज़ा आएगा कसम से...
मोहित हंसता हुए बोला- साहब आपके साइड की ही तो है। आप भी पटना के और ये भी पटा लो।
मैनेजर बोला - हाँ यार है तो पर शादी करके बीवी नही अपनी रंडी बनाना है ।
और दोनों ने जोर के ठहाके लगाए।
 
ममता भी आज काफी खुश थी। दिल्ली में गर्मी का मौसम था। इसलिए वो नहाने चली गयी दोबारा। ममता ने अपनी धुली हुई साड़ी उठायी। और गमछा उठाके बाथरूम चली गयी। ममता ने आईने के सामने अपने बाल खोल दिये और फिर अपनी साड़ी वहीं उतार दी। फिर अपनी ब्लाउज उतारकर हेंगर पर टांग दिया। अपने कमर पर साया कसके बंधने की वजह से उसकी कमर पे निशान बन गए थे। उसने साये की नाड़े को खींचकर ढीला किया और दोनों पैर उसमे से निकाला। ममता अब एक छोटी कच्छी और ब्रा में थी। कच्छी और ब्रा दोनों गुलाबी रंग के थे जिसपर फूल बने हुए थे। उसका गोरा चमकदार बदन बहुत ही मादक लग रहा था। फिर ममता ने शीशे में देखते हुए अपनी ब्रा की हुक खोल दी । ब्रा खुलते ही ममता की 38 की चुचियाँ फुदककर बाहर आ गयी। ममता के निप्पल/चूचक हल्के भूरे रंग के थे। उसके खूबसूरत कबूतरनूमा चुचियाँ किसी स्वच्छंद पक्षी की तरह उड़ना चाहती थी। इसके बाद उसने अपनी कच्छी को उतार दिया। और दोनों ब्रा और कच्छी को वहीं हुक से लटका दिया। फिर उसने अपनी बुर पर बढ़ी हुई केश की ओर देखा और मन में सोचा कि झाँठे काटे की ना। वैसे तो ममता 46 की थी पर तन बदन का कसाव अभी भी 35 का ही था। फिर उसने अपनी बुर को ऊपर से सहलाया। और बोली कल साफ करूँगी।

ममता फिर अपनी मस्त चौड़ी गांड को बाथरूम में रखे मचिया पे टिका दिया। और अपने नंगे बदन पर मग से पानी डालने लगी। पानी उसके बदन पर मक्खन की तरह फिसल रहा था। वो बिल्कुल अद्भुत स्त्री लग रही थी। एक औरत के बदन में जो हर मर्द चाहता है वो सब था ममता के पास। ममता ने नहाने के दौरान वहीं बैठे बैठे पेशाब भी कर दिया। पेशाब की वजह से पानी हल्का पीला हो गया। जिसे उसने पानी से ही बहा दिया।
कुछ देर बाद उसने अपने जिस्म पर साबुन लगाया। अपनी काँखों, गर्दन , चुचियाँ, गांड, गांड की दरार, और अंत में बुर पर भी। सब जगह लगाने के बाद उसने खूब बदन को रगड़ा। वैसे तो वो इतनी गोरी थी कि मैल भी उसपर बैठे तो इतरा के, पर वो ऐसा होने नहीं देती थी। इसके बाद उसने साबुन को पानी से साफ किया। और एक दम साफ हो गयी। चुकी घर में कोई नहीं था इसलिए बाथरूम से सिर्फ साया बांध के आ गयी।
साया उसके चुचियों के ठीक ऊपर बंधा था और गांड को बस ढके हुए था। उसकी जाँघे और गांड मोटी और हल्की चर्बीदार थी। उसका पेट भी ठीक ऐसे ही था।
अक्सर इस उम्र की औरतों को ये चीज़ें और कामुक बना देती हैं। भरी हुई चूतड़ों से औरतो की चाल निखर जाती है। क्योंकि जब वो चलती हैं तो चूतड़ों के हिलने से औरतें मर्दो के दिलों की धड़कने बढ़ाती हैं, ठीक वही चाल अभी ममता की हो चुकी है। अपने भारी नितम्भों की उछाल उसके काबू में नहीं थी। ठीक वैसे ही उसकी चुचियो की चाल होती थी।पर ब्रा पहनने से उनकी हरकत काफी कंट्रोल रहती थी।
ममता ने फिर साड़ी पहनी और बिना ब्लाउज पहने ही खाना खाने लगी। वो मेज़ पर बैठी खा रही थी कि तभी घर की घंटी बजी।
ममता ने फौरन हाथ धोया और स्लीवलेस ब्लाउज पहन ली। जिसमे आगे आधी चुचियाँ साफ दिख रही थी और पीछे पूरी पीठ लगभग नंगी ही थी।
ये सब उसने दिल्ली में आकर ही पहना था। भले ही वो विधवा थी पर कविता उसे कभी भी ऐसा महसूस नही होने देती थी। बल्कि उसीने अपनी माँ को इस तरह के डिज़ाइनर ब्लाउज सिलवाया था।
ममता ने दरवाजा खोला सामनेउसका बेटा जय था जो कि अभी कोचिंग से आया था। ममता उसे देख मुस्कुराई। जय ने भी बदले में मुस्कुराया।
ममता बोली आ गए तुम??
जय बोला- हाँ माँ , आज बहुत पढ़ना है। तुम जल्दी खाना लगा दो।
ममता बोली आजा हाथ धो के।
ममता ने खाना निकालके लगा दिया। और दोनों साथ मे खाना खाने लगे।
दोनों खाना खा रहे थे , तभी ममता के हाथ के निवाला से दाल चावल छूट कर उसकी चुचियों पर गिर गया, जिसका उसे पता नहीं चला। पर जय की नज़र वहां पर चली गयी। उसकी माँ की चुचियों की दरार में वो 2 चावल के दाने जो दाल से लथपथ थे फंसे हुए थे। ममता बेखबर थी कि उसका बेटा उसकी चुचियाँ ताड़ रहा है।
 
जय एक बहुत ही कामुक लड़का था। वो पढ़ाई में भले ही अच्छा था पर उसको औरतों के नंगे जिस्म का बड़ा शौक़ था। वो हमेशा औरतो को एक ही नज़र से देखता था। उसका बस चलता तो अपनी आंखों से ही औरतों के कपड़े उतार देता। और सब औरतों को नंगा ही रखता। अब सामने अपनी माँ को ही देख रहा था, पर उसका लंड ये देखकर खड़ा हो रहा था।
ममता के बाल खुले हुए थे उसके होंठो के पास एक तिल था। तभी ममता ने जय से बोला कि कुछ और लोगे तुम??
जय- नहीं माँ।
ममता फिर उठी और थाली उठाके किचन की ओर चल दी। जय ममता की ओर ही देख रहा था। ममता के मटकते चूतड़ों से उसकी नज़र ही नहीं हट रही थी। जैसे किसी गाने की धुन पे ममता के चूतड़ थिरकन कर रहे हो?
ये देख जय का लौड़ा पूरा खड़ा हो गया। ममता की साड़ी काफी नीचे बांधी थी इसलिए उसकी गांड की दरार ऊपर से हल्की बाहर झांक रही थी।
उफ्फ्फ ये सीन तो जय के हद के बाहर था। वो उठा और हाथ धोके सीधा अपने कमरे में भागा। और दरवाज़ा बैंड करके सीधा बिस्तर पे लेट गया। और अपनी माँ ममता के बारे में सोचने लगा। अपनी माँ को ही देखके कैसे उसका लौड़ा खड़ा हो गया। छी छी कैसा लड़का हैं हम, लेकिन हम क्या करे सब तो अपने आप ही हुआ है। माँ को ऐसे देखके तो किसीका भी लौड़ा खड़ा हो जाएगा।
लेकिन ये तो कहीं से न्यायपूर्ण नहीं है, की हम अपनी ही माँ को देखके लौड़ा खड़ा करें । उसने मन बहलाने के लिए लैपटॉप खोल लिया और ब्लू फिल्म देखने लगा पढ़ाई करने की जगह। उस फिल्म में एक महिला को 2 लोग चोद रहे थे। एक महिला की बुर और दूसरा उसकी गांड मार रहा था। महिला को बुरी तरह चोद रहे थे। जय को ऐसी फिल्में ही पसंद थी जिसमे औरतों को बुरी तरह चोदा जाए। जय देखता रहा और फिर थोड़ी देर बाद अपने लंड से पानी निकाल दिया। और फिर वो सो गया।
 
जय की नींद तब खुली जब शाम के 6 बजे थे। वो जब अपने कमरे से बाहर निकला तब कविता हॉल में गुब्बारे लगा रही थी । वह एक हाफ टॉप और नीचे शलवार पहनी हुई थी। जय अपने दरवाजे पर खड़ा होकर सब देख रहा था। ममता उसकी मदद कर रही थी। ममता ने साड़ी पहन रखी थी जो कि हल्के पीले रंग की थी।जो कि कॉटन की थी।गर्मी का मौसम था इसीलिए उसने भी बस कंधों तक आनेवाली ब्लाउज पहनी हुई थी जिसमें उसकी काँखों के हल्के छोटे बाल साफ दिखाई दे रहे थे। वहां की चमड़ी भी सावली थी। कहने को वो हॉल था पर जगह ज़्यादा बड़ी नही थी। तभी ममता की नज़र अपने लाडले पर गयी।
ममता बोली - उठ गया तुम? जाओ जाके मूंह हाथ धोओ। कविता ने बहुत तैयारी की है तुम्हारे लिए।
कविता ने जय की ओर देखा और मुस्कुराई।
जय ने दोनों की ओर एक बार देखा और बाथरूम की ओर चल दिया। बाथरूम में घुसके उसने अपना लण्ड बाहर निकाला और मूतने लगा । तभी उसकी नज़र कविता की कच्छी पर गयी। जो उसने अभी थोड़ी देर पहले उतारी थी। कच्छी लाल रंग की थी जिसपे उजले रंग की छोटे फूल बने हुए थे। उसने जब देखा तो उसे छुए बिना ना रह सका, उसने झट से वो पैंटी उठा ली। उसे हाथों में मसला और नाक के करीब लाकर सूँघा। उसे सूंघने से उसके दिमाग पर वो असर पड़ा जैसे वियाग्रा खाने से लण्ड पर पड़ता है।
अपनी सगी बहन की पैंटी उसे वो सुकून दे रही थी जो उसे ब्लू फिल्म से भी नही मिल रही थी। उस पैंटी को उसने अपने लण्ड पर रख लिया और कविता के बुर के बारे में सोचने लगा। उसने अभी तक ब्लू फिल्मों में विदेशी चूतों को देख था पर कभी देशी बुर के दर्शन नहीं किये थे। जय तो बस कविता की पैंटी को ऐसे मसल रहा था जैसे कविता की बुर को ही मसल रहा था। अपने लण्ड को पैंटी की कोमल फैब्रिक पर रगड़ता हुआ ना जाने कब उसका मूठ निकल गया और उस पैंटी को सरोबार कर गया। जय को होश आया तब उसने पैंटी को वहीं गंदे कपड़ो के बीच घुसा दिया। और हाथ मूंह धोके बाहर आ गया। तब उसने कविता को देखा कि कविता केक पर कैंडल्स लगा रही थी। ममता किचन में खाना बना रही थी। वो अपने कमरे में जाके बैठ गया। करीब आधे घंटे बाद कविता और ममता ने जय को आवाज़ लगाई बाहर आने के लिए। पर वो बाहर नही आया। दोनों उसके कमरे में आई। और ममता बोली कि बेटा चल बाहर आ देख तो दीदी ने तेरे जन्मदिन की क्या क्या तैयारी की है। चल आजा ।
कविता बोली भाई आओ ना बाहर चलो केक काटते हैं। आज मेरे दोस्त मेरे भाई का जन्मदिन जो है।
आओ ना बाहर प्लीज भैया।
जय को अपने जन्मदिन से कुछ खास लगाव नहीं था। क्योंकि ये वही दिन था जिस दिन उसके बाबूजी की मृत्यु हुई थी।
उसनेअपनी माँ की ओर देखा और कहा, किस बात की खुशी मनाये हम माँ। आज का दिन शायद आप लोग भूल रहे हैं।इसी दिन मेरे बाबूजी मरे थे, और आपके भी कविता दीदी। मुझे इस दिन कोई खास खुशी नही होती। काश मेरे बाबूजी अभी होते तो और वो रोने लगा।जोर जोर से।
ममता की आंखों से तो आँशु की धाराएं बहने लगी। उसने अपने बेटे को सीने से लगा लिया और कविता भी उठकर बगल में रखे अपने बाप की फोटो को देखने लगी। उसकी आँखों से भी आंशु बह रहे थे। ममता फफक फफक कर रो पड़ी। कुछ बोलने चाहती थी पर बस इतना ही बोल पाई की .... तेरे बाबूजी......तेरे बाबूजी........ फिर दौड़कर कमरे से बाहर भाग गई और हॉल में बैठ गयी ।
 
जय बोल उठा कि कविता दीदी तुम खुद बोलो की हम कैसे ये दिन की खुशी मनाये .... हा.... हा।। कविता कुछ बोले बिना अपने भाई को अपने सीने से लगा लिया। हमारे नन्हे भैया हम जानते हैं कि तुम और हम सब बाबूजी को कितना याद करते हैं। पर मेरी एक बात का जवाब दो अगर बाबूजी होते तो क्या वो आज तुम्हारा जन्मदिन नही मनाते। वो भी तो यही करते। और इस खुशी को हम पुराने दुःख से क्यों ढकने दे। ये छोटी खुशी में हम उस गम को भुला देंगे। तुम मेरे राजा भैया हो और बहादुर भी हो। बाबूजी की तरह मज़बूत बनो। आओ देखो मैंने और माँ ने तुम्हारे लिए क्या क्या किया है। चलो चलो।
जय अपनी बहन की चुचियों पर सर रखे हुए था। उसने तो जान बूझकर ये रोना धोना किया था ताकि अपनी बहन के करीब चिपक सके। और उसे ये मौका मिल गया था। उसने कविता की नंगी कमर को पकड़ रखा था उसके टॉप के अंदर घुसाके। फिर दोनों बाहर आये। तो देखा कि माँ भी संभल चुकी थी। जय ने ममता के पास जाके बोला कि आओ माँ केक काटते हैं।फिर जय ने केक पर पड़े कैंडल्स बुझाये। और केक काटने को हुआ तभी उसके मामा आ गए। अरे मेरे लिए तो रुको। तभी ममता बोली आइये भैया आइये ना। फिर सबने मिलके केक काटा और खाना खाया।
ममता और उसका भाई फिर बाहर कुर्सी पे बैठके बातें करने लगे। तभी कविता हाथ मे गिफ्ट लेके अपने भाई के पास पहुंची। कविता ने उसे एक स्मार्टफोन गिफ्ट किया । जय ने गिफ्ट तो ले लिया पर मन मे
कि असल गिफ्ट कब दोगी मेरी जान कविता।
कविता मुस्कुराके बाहर चली गयी।
 
रात के करीब 2 बज रहे थे। जय के मामा जा चुके थे। तभी प्यास की वजह से जय की नींद खुली। थोड़ी देर तो वो अलसा कर लेटा रहा पर जब बर्दाश्त नही हुआ तो उसे झक मारके उठना पड़ा। उसने कदमो को नींद में ही किसी तरह खींचते हुए किचन में घुसा । उसने फिर बिना बत्ती जलाये ही टटोलते हुए फ्रिज का दरवाजा खोला और पानी की बोतल निकालकर पीने लगा। वो अंधेरे में ही खड़ा था। तभी उसे लगा कि किचन में कोई आया है। अचानक आहट सुनने से उसकी नींद काफूर हो गयी। उसने महसूस किया कि आने वाले को उसकी कोई भनक नही है। पहले तो उसे लगा कि कोई चोर है पर जो आया था वो और कोई नहीं उसकी दीदी कविता थी। उसने फ्रिज से खीरा निकाला और बर्फ के टुकड़े और तेजी से बिना देखे अपने कमरे की ओर भागी। जय को लगा कि कुछ तो बात है। जय ने फौरन दरवाज़े पर जाकर देखा कविता सिर्फ ब्लैक पैंटी और हॉफ टॉप पिंक जो कि उसकी नाभि के ऊपर तक ही आ रही थी। कविता अपने कमरे तक पहुँच कर दाएं बाये देखा और कमरे में घुस गई। उसने सोचा कि उसे किसी ने नहीं देखा। जय ने सोचा कि आखिर इस हालत में कविता खीरा और बर्फ लेने क्यों आयी थी। ये जानने के लिए उसके पास एक ही रास्ता था। कविता का कमरा और जय का कमरा साथ मे ही थे और उन दोनों की खिड़की भी एक तरफ ही गली में खुलती थी। जय अपने कमरे की ओर भागा और अपनी खिड़की से कूदकर छज्जी पर खड़ा हुआ और सतर्क होकर कविता के कमरे की खिड़की तक पहुंच गया। खिड़की बंद नहीं थी क्योंकि गर्मी का मौसम था और उधर ही कूलर भी लगा था। जय ने अंदर झांक के देख तो नाईट बल्ब जल रही थी। कुछ समझ में नही आ रहा था। पर कुछ पल बाद उसकी आंखें अभयस्त हो गयी तो सब दिखाई देने लगा।अंदर कविता बिस्तर पर नंगी ही पड़ी हुई थी। और अपने मोबाइल पर ब्लू फिल्म देख रही थी। और वो खीरा जो वो लेके आयी थी उसे अपनी बुर में घुसा कर मूठ मार रही थी। उसने पहले 2 बर्फ के टुकड़े अपनी बुर में घुसा लिया और फिर खीरा घुसाया था। कविता ब्लू फिल्म देखते हुए मूठ मार रही थी। उसकी मुंह से आनंद की किलकारी फुट रही थी। और कुछ कुछ बड़बड़ा भी रही थी। उफ्फ्फ...... आआहह......... हहहम्ममम्म....... ईश श श श...... ये बुर हमको बहुत परेशान करती है..... पर मज़ा भी यही देती है ऊफ़्फ़फ़फ़। हाय ......
कविता अपने होंठों को दांतों में दबाके बुर के ऊपरी हिस्से को मसल भी रही थी। कविता ने मुंह से थूक निकाला और अपने बुर पर मल दी। और ब्लू फिल्म देखने लगी। ब्लू फिल्म में शायद हीरोइन अपनी गाँड़ मरवा रही थी। कविता ने ये देख तो उसने बर्फ का एक टुकड़ा अपनी सिकुड़ी हुई गाँड़ के छेद में घुसानी चाही। उसने थूक हाथ पर निकाला और गाँड़ के छेद पर मल ली। और बर्फ के टुकड़े को गाँड़ में घुसाने लगी। उसकी गाँड़ की छेद थूक की वजह से काफी गीली हो चुकी थी । लेकिन फिर भी बर्फ का टुकड़ा गाँड़ में घुसाने में उसे काफी मशक्कत करनी पड़ी। लेकिन घुसाके ही मानी। फिर बड़बड़ाई की पता नही ये हीरोइन कैसे गाँड़ में इतना बड़ा ले लेती हैं। लेकिन मज़ा बहुत आ रहा है और वो लेने में और भी मज़ा आएगा.... आआहह,,... ऊईई....
उधर बाहर से सारा नज़ारा जय देखकर पागल हो रहा था। अपनी सगी बहन को नंगा बिस्तर पर देख उसका लौड़ा फड़क कर खड़ा हो गया। वो वहीं खड़ा होकर कविता के निजी पलों को देखकर लौड़ा घिस रहा था। उसने मन में सोचा वाह मेरी दीदी तो मेरी ही जैसी कामुक निकली। क्या माल है कविता, बिल्कुल मस्त जवानी है। मेरी बहन हुई तो क्या है तो एक जवान लड़की, आखिर किसी ना किसी को तो जवानी की सौगात देगी ही, क्यों ना वो मैं ही बनू? तभी उसकी नज़र कविता पर पड़ी जो अचानक से मुड़ी तो उसकी नज़र भी जय पर पड़ी।
 
कविता बस उसे देखती ही रही और जय भी उसे ही देखता रहा। कविता ने खुद को चादर से ढक लिया और मोबाइल बन्द कर दिया। जय फिर भी उसे देखता रहा और मूठ मारता रहा। कविता की आंखों में शर्म तैर रही थी, पर नज़रें बेबाक हो अपने भाई को देखती रही। कविता को देखते हुए जय ने उसे एक बार इशारा किया कि दरवाज़ा खोलो। और वो खिड़की से अपने रूम में दाखिल हो कर कविता के दरवाजे पर खड़ा हो गया। कविता की हिम्मत नही हुई कि दरवाज़ा खोले पर जय दरवाज़ा पर से हल्के आवाज़ में ही आवाज़ लगाता रहा कि कविता दीदी दरवाज़ा खोलो। ताकि ममता ना उठ जाए। कविता ने कोई जवाब नही दिया, पर जय लगातार वही खड़ा रहा। कविता को काटो तो खून नही, और हो भी क्यों ना उसके सगे भाई ने उसे नंगी खीरा बुर में घुसाकर मूठ मारते हुए देखा था। करीब 15 मिनट तक ऐसा ही चला।
उधर जय को लगा कि अब कविता दरवाज़ा नहीं खोलेगी , वो निराश हो गया। पर तभी अंदर से छिटकनि खुलने की आवाज़ आयी।
जय ने दरवाज़ा को धक्का दिया , तो देखा कविता अपने बिस्तर पर बैठी थी चादर लपेट कर। कविता को कुछ समझ नही आया था इसीलिए उसने कपड़े नहीं पहने थे। जय ने दरवाज़ा बंद कर दिया और अपनी बहन के पास गया। उसने कविता के चेहरे को ठुड्ढी से पकड़कर ऊपर उठाया, कविता अपने नाखून चबा रही थी। उसने जय की ओर देखा जय ने भी उसे देखा। फिर जय ने बगल से मोबाइल उठाया स्क्रीन लॉक खोला और देखा तो फिर से ब्लू फिल्म चालू हो गयी। उसमे दो लड़के बारी बारी से एक लड़की को चोद रहे थे। उसने उसे चालू ही छोड़ दिया और कविता की आंखों में देखा जैसे पूछ रहा हो कि हमारी दीदी ये सब तुम भी करती हो? कविता अभी तक अपने नाखून चबा रही थी और जय को देखते हुए उसके आंखों के पूछे सवाल का मानो जवाब दे रही थी कि आखिर मेरी उम्र की लड़कियां माँ बन गयी हैं तो क्या मैं ये सब भी नही कर सकती।
कविता की आंखों में शर्म जरूर थी पर पश्चाताप नहीं।
कविता की अभी ताज़ी उतारी हुई पैंटी जो कि कविता के पैरों के नीचे फर्श पर पड़ी हुई थी, को जय ने उठाया और सूँघा, उसपर जैसे काम वासना सवार हो गयी। कविता सब देख रही थी पर कुछ बोली नहीं। कविता के बुर के रस से सरोबार थी वो कच्छी। जय ने फिर अपनी बॉक्सर उतार दी, उसने अंदर कुछ नही पहना हुआ था। उसका करीब आठ इंच का तना हुआ लण्ड बाहर आ गया। उसने कविता की कच्छी को अपने लण्ड पर फंसा लिया।
 
कविता ने कुछ नही कहा बस जय से आंखों का संपर्क तोड़कर उसके लण्ड को देखने लगी। बिल्कुल मस्त फूला हुआ सुपाड़ा था, मोटाई भी कोई 3 इंच की रही होगी। कविता के हाँथ अनायास ही लण्ड की ओर बढ़ गए। वो उसे छूने ही वाली थी कि जय ने उसका हाथ पकड़कर अपने लण्ड पर रख लिया। कविता ने उसका लौड़ा पकड़ के महसूस किया और जय की आंखों में देखा। कविता मानो कह रही हो कि उसका लौड़ा बहुत तगड़ा है। हालांकि उसने इतने करीब से किसी का भी तना हुआ लौड़ा नहीं देखा था। वो अपने दाये हाथ के नाखून अभी भी चबा रही थी।
जय ने कविता के चादर को हटाना चाहा तो कविता ने उसे झट से एक थप्पड़ मारा। पर जय ने इसका बुरा नहीं माना।
उसने फिर कोशिश की कविता ने उसका हाथ झटक दिया इस बार । जय ने फिर कोशिश की तो कविता ने फिर से एक थप्पड़ मारा उसे। इसके बाद जय ने कविता के खुले हुए बाल को खींच के पकड़ लिया और कविता के चेहरे को ऊपर उठाया और एक थप्पड़ उसके गाल पर मारा। कविता के गाल लाल हो गए पर उसने कुछ नही किया। अब जय ने कविता के चादर को उसके बदन से अलग किया, इस बार कविता ने कोई विरोध नहीं किया। अब कविता पूरी नंगी हो चुकी थी अपने छोटे भाई के सामने। उसकी आंखें अनायास ही बंद हो गयी।
 
खामोशी में भी एक धुन होती है। वो धुन बिना कोई शोर के बहुत कुछ कह जाती है। अब कुछ लोग सोचेंगे कि खामोशी में कौन सी धुन होती है और वो क्या कह जाती है?? इस सवाल का जवाब बस वो दे सकता है जिसने उस खामोशी के पल को जिया है।सवेरे का अस्तित्व सिर्फ रात से है। अगर रात ही ना हो तो सवेरे की अहमियत खत्म हो जाती है। अगर हम विज्ञान को हटा दे तो ये पूछना की सवेरा क्यों होता है या रात ही क्यों नही रहती, ये सवाल बेकार हैं या इसके उलट। ठीक वैसे ही जीवन में कुछ पल ऐसे आते हैं जिसे बस जी लेना जरूरी होता है उनका मतलब बस होने से है, उसमे गलत या सही की कोई गुंजाइश नहीं होती।
शायद वही पल अभी कविता और जय के जीवन मे आया था। 21 वर्षीय जय इस वक़्त अपनी 26 वर्षीय दीदी के साथ पूरा नंगा खड़ा था। कविता शायद पहली बार किसी मर्द के सामने नंगी बैठी थी। जय ने कविता के हुश्न को अब तक कपड़ों में ढके हुए देखा था पर इस वक़्त कविता बिल्कुल अपने जन्म के समय के आवरण में थी अर्थात निर्वस्त्र। जय ने कविता को बालों से कसकर पकड़ रखा था। उसने कविता के चेहरे को देखा कविता की आंखे बंद थी। उसकी पलकें घनी थी और आंखों में काजल लगा हुआ था। उसके भौएँ बनी हुई थी, गाल भरे हुए थे एक दम गोरे। होंठ गुलाबी थी जो बिना लिपस्टिक के भी मदमस्त लग रहे थे। उसके होंठ कांप रहे थे। और बड़ी ही धीरे से वो अपने मुंह मे इकट्ठा हुए थूक को निगल रही थी। उसकी सुराहीदार गर्दन की चाल थूक गटकने की वजह से मस्त लग रही थी। उसका भाई जय अपनी बहन के इस रूप को देखकर पागल हो रहा था। वो भी बड़ी आराम से गले से थूक घोंट रहा था ताकि आवाज़ ना हो जाये।
जय ने झुककर कविता के होंठों के करीब अपने होंठ लाये और उसके होंठो से अपने होंठ चिपका दिए। जैसे चिंगारियाँ फूटी दोनों के होंठ मिलने से । जय ने कविता के होंठों को पूरा अपने मुंह में लिया हुआ था। कविता के होंठ हल्के मोटे थे , जिसे जय चूस रहा था। उसके होंठों का सारा रस लगातार पी रहा था। फिर कविता के मुंह में उसने अपने जीभ को घुसा दिया। कविता ने कोई प्रतिरोध नही किया, अपितु उसके जीभ को चूसने लगी। दोनों भाई बहन बिल्कुल किसी प्रेमी युगल की तरह काम मे लिप्त होने लगे थे।
 
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