Incest मिस्टर & मिसेस पटेल (माँ-बेटा:-एक सच्ची घटना) (Completed)

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कुछ दिन पहले में मेरा एक क्लोज फ्रेंड के साथ सेक्स को लेके डिस्कुस कर रहा त। वह मध्य प्रदेश में जॉब करता है। मैं ना उसका नाम ,ना जगह का नाम कुछ भी देना नहीं चाहता हूण। उस से जब बात कर रहा था , तब उस ने मुझे एक ऐसी सच्ची कहानी सुनया, की तब से मेरा दिमाग जाम हो गया। वह कहानी आप लोगों से शेयर करना चाहता हूण।

वह जहाँ जॉब करता है, उस ऑफिस में, एक दूसरा सेक्शन में पटेल बोलके एक आदमी काम करता है। यह उस आदमी की कहानि है वह आदमी मेरा दोस्त का अच्चा दोस्त बन गया है। मेरा दोस्त उनके घर जाते है, खाना खाते है और कभी कभी चैस का अड्डा भी जमा लेता है। अच्छी दोस्ती होने के कारन उन्होंने मेरा दोस्त को उसका जीवन का एक गहरा सच बताया। पर में लिखने में कच्चा हूण। मैं उस कहानी में ज़ादा रंग न चढाकर, सच मुच जो घटा उस को ही अपना तरीके से आप लोगों को बताउंगा। इस में मेरा कुछ क्रेडिट नहीं है। मैं जब सुन रहा था, तब मेरे दिल ने जैसे उस कहानी को चित्रण किया था बस उतना ही कह पाऊंगा। मैं मि.पटेल का जबानी से कहते रहुंगा। काम आसान हो जाएगा। इस में सेक्स है पर इतना डिटेल्ड नहीं रहेगा ,क्यूँ की इतना प्राइवेट बात मिस्टर पटेल खुद बताया नहि। पर स्टोरी का सिचुएशन से आप समझ जायेंगे कैसे कैसे वह सब घटा उनका लाइफ में। कोशिश करूँगा कहानी एक गति में चलती रहे

आज में ज़ादा कहानी लिख नहीं पाऊंगा। बस आप लोगों को थोड़ा प्रेमिसेस क्या है कहानी का वह बता दूंगा और बहुत जलद ही कहानी पूरा बताके एन्ड करवा दूंगा।

आप लोग कुछ डिमांड मत कीजिये,क्यूँ की यह किसीका लाइफ की सच्ची घटनाएँ है। जो में सुना , वह आप भी जानीए। बस एक चीज़ कहानी को कैसे फील करते रहेंगे, वह बताइयेगा। आप लोग अगर इंटेरेस्टेड नहीं रहेंगे, तोह मेहनत करके बताने का जरूरत नहीं होगा।

एम पी । में मेरा दोस्त किसी के घर में पेइंग गेस्ट बन के रहता है। ।मि.पटेल एक छोटा बंगलो टाइप घर किराया में लेके वहां रेह्ते है। उनका घर में मिसेस पटेल और उन लोगों का नर्सरी में पड़नेवाली एक बेटी है,ज़ीस का नाम दिया है। वह मेरा दोस्त को चाचू बुलाता है। मि.पटेल (अब्ब से हितेश नाम से बुलाएँगे) को मेरा दोस्त नाम से ही बुलाता है पर उनकी पत्नी यानि की मिसेस पटेल (अब्ब से मंजु बुलाएँगे) को भाभी ही कहता है। गुजरात में अब्ब हितेश का कोई नहीं है। पिछला ५ साल से मंजु का परेंट्स भी गुजरात छोड़के मुंबई में आगये। वहाँ एक फ्लैट खरीद के वह दोनों रेह्ते है। कहानी उस समय से डिटेल मालूम है जब हीतेश इंजीनियरिंग का लास्ट इयर में था उस से पहला घटना भी बताऊँगा जितना में जानता हू। हितेश अहमेदाबाद में ही पड़ रहा था। अहमेदाबाद के पास एक जगह है(नाम पूछिए मत) जहाँ हितेश अपनी माँ, नाना और नानी के साथ रहता था। उस का फ़ादर एक अनाथ था पर अच्छा इंसान था। इस्स लिए उसका नाना उनको घर जमाई बना के अच्चा प्यार दिया था। उसका नानी थोड़ी हिचक रही थी क्यूँकि उस समय उनकी बेटी देखने में बड़ी होगयी थी पर उम्र में कम थी। गुजरात में शायद कम उम्र में शादी होती है लगता है। सब ख़ुशी से जी रहे थे साल घूम ने से पहले ही हितेश आगया। ख़ुशी से सब झूम उठे। पर ज़ादा टाइम यह हाल नहीं रहा। हितेश के जनम के दो साल बाद मलेरिआ से अचानक हितेश के फादर की डेथ हो गई। तब हितेश की माँ केवल १८ साल की थी। एक बड़ा झटका लगा था उस फॅमिली को पर धिरे धीरे वह लोग उस सदमें से बाहर आने लगे और नार्मल होने लगे। कुछ साल बाद हीतेश के नाना नानी मंजू की दोबारा शादी के बारे में सोचे। पर मंजु खुद ही मना कर दिया वह। हीतेश के नाना के पास पैसा और प्रॉपर्टी था। तोह वह लोग एक फॅमिली बन के , एक आराम की ज़िन्दगी बिता रहा थे पर हितेश जब कॉलेज ख़तम किया उसको काम्पुसिंग में ही जॉब लग गया केवल २० साल का उम्र में। कंपनी में जाके जॉब ज्वाइन किया। और वीकेंड में घर आया करता था। पर उसका नाना नानी यह सोच के परेशांन होते थे की इतने दूर , अकेला उसका रहना खाना सब अकेले में करने में तकलीफ होती होगी। सो उसके नाना नानी उसकी शादी करवा ने के लिए सोच लिया।

आगे के भाग को आसान करने के लिए हीतेश की जबान से बोलुंगा। की कैसे उसके लाइफ का एक छुपा हुआ सपना अचानक खुद के बिना कोशिश में सच हो गया। जो सपना केवल वह देखता था मन ही मन में, वही शामे चीज़ उसका नाना नानी सब ठीक विचार करके अपने सब के भलाई के लिए कैसे सच करवा दिया। सब की मर्ज़ी से यह कहानी आगें गई। जो कुछ परेशानिया आगे आई , वह कैसे कैसे दूर हुआ, कैसे वह एक सचचा प्यार से बढा हुआ फॅमिली ,एक ही रह गया ज़िन्दगी भर के लिये। हीतेश का नाना नानी अपना पोता हीतेश को खोये। उन लोगों ने एक नया पोता पाने का आशा किया था , आब वह लोग कभी पोता पाएंगे नाहि,पर नन्हि मुन्नी पोती दिआ को पाके ही खुश है। क्यूँ की डॉक्टर साफ़ मना कर दिया हीतेश को ,की अगर वह दूसरा बच्चे के लिए प्रयास करेगा तो उस्का पत्नी यानि की मंजु का जान जा सकता है। पहले पहले हीतेश का प्रॉब्लम होता था नाना नानी को मम्मी पापा बुलाने में। कभी कभी नानाजी, नानीजी मुह से निकल जाता था। पर आज सात साल में सब कुछ परफेक्ट हो गया। जिस तरीके से हीतेश रिस्पांसिबिलिटी लेके ज़िन्दगी बिता रहा है, अपना बीवी , बच्चा का ख्याल रखता है, बूढ़ा साँस ससुर का ध्यान रखता है, और कोई आता इस फॅमिली में तो शायद ऐसा नहीं ही पाता। यह लोग अपने दामाद से बेहद खुश है। और मंजू।।उसको पहले तो सब सपना जैसा लगा था। आब वह एक अच्छी हाउसवाइफ है। बूत यह सब आसानी ने नहीं हुआ कैसे हुआ वह में आप को बतौँगा।
एक एक्स दोस्त के कहने पर में इस सच्ची घटना को कहानी जैसा लिखने का कोशिश किया। आप लोगों का इस कहानी पड़ कर क्या फीलिंग्स होता है, वह जरूर बताइयेगा। मुझे होसला बढ़ेगा

मै हितेश। बचपन से में अपना नाना नानी और माँ के साथ रह के बड़ा हुआ। फादर न रहने के कारन मेरा नाना नानी कभी कमी नहीं छोड़ि प्यार और सपोर्ट देणे में। माँ हमेशा आपनि ममता और प्यार से मुझे पालन किया। नाना के पास पैसा होने के कारन मुझे कभी कुछ भी चीज़ का कमी मेहसुस करने नहीं दीए। मैं ऐसे ही तेज स्टूडेंट था। इस्स लिए सब लोग मुझे प्यार ही प्यार देते थे। मैं बदमासी भी करता था। पर इतना नहीं जो की बिगडे बच्चे करते है। छोटा मोटा शरारत करता वह अपनी तरीके से माफ़ किया कर देता थे। पर हाँ।।।मुझे हमेशा अच्चा वैल्यूज और मोरालिटी के साथ की पाला वह लोग। बाहर ज़ादा लोगों के साथ मेरा दोस्ती भी नहीं था। नाना नानी और माँ सब मेरा दोस्त भी थे और टीचर भी। डांटते भी थे । फिर सीखाते भी थे। हम चारों एक बॉन्डिंग से बढ रहै थे बचपन से।यही देखते गया। मैंने यह सुना की मेरा पिताजी गुजर जाने के कुछ साल बाद , मेरा नाना नानी मेरा माँ का दोबारा शादी करवा नेके लिए कोसिश किया थे। तब मेरा माँ २३-२४ साल की थी। बहुत सुन्दर देखने में थी। स्लिम और गोरी। लम्बे बाल था । पान का पत्ते जैसा मुह का शेप। उनका आँख , ऑय ब्रोव्स , नाक, होठ सब कोई अर्टिस्ट का बना हुआ लगता है। बारवी क्लास तक पढ़ी है। उसके बाद जिन्दगी में हदसा और बाद में मुझे देख भाल करके बड़ा करने में जुट गई। मेरा और कोई मौसी नहि। सो नाना नानी की वही देख भाल करति थी। घर का काम भी करति थी , फिर मुझे पढाती भी थी और टाइम मिलता तोह वह बड़े बड़े लेखक के नावेल स्टोरी पड़ने में उस्ताद थी। एक बेटी होने के कारन नाना नानी भी उनको घर में रहने का सब बंदोबस्त कर दिया था। उनको भी बुक पड़ने का नशा लग गया बचपन से। बाद में वह एक ही की थी जो वह अपनी खुद के लिए ,अपनी मन की ख़ुशी के लिए करती थी। मेरा नानी भी इतने ओल्ड नहीं थे। पर मेरी माँ मेरे पिताजी का फॅमिली नहीं होने के कारन अपना बेटा लेके नाना नानी के फॅमिली को ही अपना फॅमिली सोच के सब देख भाल करती थी। शायद उस में उनको ख़ुशी मिलति थी और वक़्त भी गुजर ने का तरीका मिला था। वह शांत स्वाभाव की थी पर हसि की बातों से हस्ति भी थी और टीवी में दुःख दर्द भरी फिल्म देखके मायूस भी हो जाति थी। कुछ लोग नाना जी के पास उनको शादी करने के लिए प्रपोजल भी लाया था। पर कुछ मेरा नाना जी।।और बाकि मेरा माँ कैंसिल कर दिया। स्टार्टिंग में नाना नानी माँ से गुस्सा करता था । माँ का भविष्य के लिए वह बोलते थे की सारी ज़िन्दगी पड़ी है तेरी, कैसे गुजारेगि। और यह भी कहते थे की हितेश को भी तो एक बाप पाने का इचछा होता होगा। बाप का प्यार। पर माँ का कहना था की अगर वह किसी को फिर से शादी किया तोह वह आदमी अपना अधिकार दिखाके मुझे त्याग करने को कहेगा और नाना नानी को छोड़ के भी जाने लिए कहेंगा। आब इस सिचुएशन पे वह उनके लिए सम्भब नहीं था वह मुझ से दूर नहीं रह सकति , और नाना नानी को अकेले छोड़के और किसी फॅमिली में जाके अपना गृहस्थी कर सकता थीं। माँ ने मेरा मुह देख के उनका सब सुख ख़ुशी विसर्जन देणे का फैसला किया था। नाना नानी धीरे धीरे उनका बात मान ने लगा , पर अंदर ही अंदर फ्यूचर को लेके परेशान थे।
 
इसी बीच में बड़ा होते रहा. नाना नानी को में बहुत बहुत प्यार करता था. उन लोगों से दूर नहीं रह पाता में. वह लोग मेरी दुनिया बन चुके थे. सबसे ज़ादा प्यार करता था माँ को. उनका सब कुछ मुझे बहुत अच्चा लगता था. वह जो कहे, जो करे, जो खाना बनाये, जो कपडा ख़रीदे मेरे लिये..सब...सब कुछ मुझे अच्चा लगता था. इतनी अच्छी होने के बाद भी उनको ज़िन्दगी बहुत कुछ दिया नही. फिर कुछ चीज़ देके फिर ले भी लिया. हमारे सब के ख्याल रखा, सब की जिम्मेदारी उठाना मुझे उनके लिए एक अद्भुत प्यार था मन में. मैं कभी उनको दुःख न देणे की कसम खाई थी मन में.

नाना नानी मुझे हमेशा 'तुम' केह्के बुलाते थे माँ भी. लेकिन में नाना नानी को 'आप' केह्के बात करता था. पर माँ को हमेशा 'तुम' ही कहता था. हम सब के बीच एक बॉन्डिंग था. नाना का घर काफी बड़ा था. नाना नानी एक बड़ा सा रूम में रहते थे मैं माँ के साथ रहता था दूसरे एक बड़े कमरे में. घर में और भी तीन रूम है. जो खाली पड़े है. सामान है. पर में जैसे जैसे बड़ा होता गया मेरे लिए एक स्टडी रूम बना. फिर में अकेला सोने लगा. मेरे नाना एक दिन एक रूम साफ़ सफाई करके और एक बेड लगा के वह रूम मेरे नाम कर दिया. मैं बहुत खुश था. आखिर मेरा भी एक आइडेंटिटी बन रहा है. मैं एक इंडिविजुअल भी बन रहा था. यह सोच के अच्चा लगता था.

मैने स्कूल में कुछ दोस्त बनाये थे. धीरे धीरे सेक्स के बारे में जानना, अपोजिट सेक्स के प्रति आकर्षित होना...सब बाकि लड़कों के जैसा फील करने लगता था. उन दोस्तोँ से में मुठ मारने के बारे में जानने लगा. अकेले एक रूम मिलने के कारण में रात को एकदिन मुठ मारना ट्राई किया. पर डर लगा. अगर किसी को पता चला तो. सब कुछ सोचा, फिर भी उस दिन ट्राई किया और अनाडी जैसा करके ख़तम किया. मुझे इतना अच्चा फील नहीं हुआ. पर हा..एक अजीब ख़ुशी के एक फीलिंग्स से मन भर गया था. कुछ दिन बाद फिर किया. पर शेम हालत थी. जब यह बात एक दोस्त ने सुना उसने मुझे एक बुक दिया. करीब एक महिना हो चुका पहला मुठ मारे उस दिन बड़ी डर डर के वह किताब छुपके घर लाया और इंतज़ार करते रहा रात का सब सो जाने के बाद में कुछ नया मेहसुस करने के उत्तेजना में कांप रहा था. हर दिन के तरह माँ सोते टाइम आके दूध का गिलास दिया और बिस्तर ठीक करके मेरे पास आई. मैं टेबल में पड़ रहा था. उन्होंने मेरे सर के बालों में हाथ फिराया प्यार से में उनको देखा और वह मुस्कुराके गुड नाईट बोलके चलि गयी. हर रोज मुझे इस पल बहुत ख़ुशी और माँ के प्रति प्यार अता है. पर आज एक अजीब उत्तेजना मेरे शरीर में था. मैं इंतज़ार कर रहा था कब वह जाये और में रूम लॉक करू. वह जाने के थोड़ा देर बाद में रूम लॉक किया और वह किताब निकाला. किताब खोलतेही मेरा मुह खुला के खुला रह गया. वह एक फोटोज से भरी बुक है. सेक्स करते हुए आदमी और औरत के फोटो. सब फॉरेनर्स है. पेहली बार यह सब देख के इतना उत्तेजित था की जल्दी ही मेरा निकल गया.

ऐसे कुछ दिन चलतारहाऔर अलग अलग किताब मिलता रहा. लेकिन वह इतना रॉ था और एक अद्धभुत दुनिया था की वह चीज़ से मन हट्ने लगा. फिर धीरे धीरे एक अजीब तरीके से मन उत्तेजित होना चालू किया. रस्ते में कोई लड़की देखके या बस में बैठि कोई लड़की के फेस देख के रात में वह सोचता था और मस्टरबैट करता था. ऐसा करने में मन में एक अलग ख़ुशी मेहसुस होता था. जैसे की कोई अपना सहर की लडकि, अपना जैसा अट्मॉस्फेरे में बड़ा हुआ एक लड़की के सरीर सोच के और उसके साथ मिलन के दृस्य कल्पना करके मेरा काम चलता था. सोचता था की एकदिन ऐसेही एक लड़की मेरी बीवी बनेगी और उसके साथ में मन भर के सेक्स करूँगा

यह सब के बाद भी मेरा पढाई में कोई कमी नहीं था. मैं अच्छे रिजल्ट करके आगे बढ़ते रहा. एक रविवार. मैं घर में था. नाना नानी के साथ वक़्त बितारहा था. माँ घर के काम में लगी हुए थी नानी भी माँ को हेल्प कररहे थी. मैं एहि सब देखरहा था सोफ़े में बैठके एक स्पोर्ट्स मैगज़ीन हाथ में लेके. उस दिन क्या पता क्यूं, में अजीब नज़रों से माँ को देखा. शायद यह मेरा इतना महीनों के हरकतों का फल था. पर में जब उनकी गर्दन हिला हिला के नानी से बात करते हुए देखा तब में उनकी कन्धा देखके मन अजीब नशा में बंद होने लगा. फिर उनकी ब्लाउज और साड़ी के बीच के पेट् नज़र आया. मेरा नशा लग गया था. अचानक वह बाथरूम से पैर धोके के निकली. साड़ी थोड़ा ऊपर करके पकडे थे मुझे उनकी हील्स के ऊपर से ऊँगली तक पूरा पैर नज़र आया. सुन्दर गोलगोल हील्स है और सुन्दर उंगलियां. एकदम लाइट कलर के नेल पोलिश लगा हुआ है. मैं उनकी फेस नहीं देखा. बस यह सब देख के नशा हो गया..
उस रात में जब मस्टरबैट किया मुझे खाली वह सब चीज़ नज़र के सामने आया. मैं बहुत टाइम लेके एक अजीब अद्भुत नए फीलिंग्स के साथ किया. ऐसा आज तक नहीं हुआ. मुझे ओर्गास्म के साथ जो सटिस्फैक्शन मिला
वह लाइफ में पहली बार फील हुआ. उस रात एक गहरी नीद आया.
 
मैने हमेशा एक डिफरेंस देखा. मेरे बाकि दोस्तोँ की माँ और मेरी माँ में बहुत अंतर है. वह सब एक भारी भरकम माँ जैसा होता था, पर मेरी माँ उन लोगों के छोटी बहन या बेटी जैसे लगती थी. एक तो उम्र बहुत कम है. साथ में वह देखने में बहुत सुन्दर थी. उनको रस्ते में जाते हुए देंखे तो कॉलेज की लड़कियों की तरह लगती थी. पर किसको मालूम की उनको मेरे जैसा एक बेटा है और उनकी ज़िन्दगी में एक भयानक हदसा हो चुका है..

उस रात के बाद तीन साल बित चुका है. मैं इंजीनियरिंग में फर्स्ट इयर में एडमिशन ले लिया. मेरे रूम में ब कंप्यूटर आगया है. और मेरा बारवी क्लास का अच्छी रिजल्ट के लिए नानाजी ने मुझे एक छोटा डिजिटल कैमरा गिफ्ट किया है.

येह सब चेंजेस से ज़ादा जो चेंज हुआ वह है में खुद. मेरा नाना नानी और माँ के प्रति मेरा शद्ध भक्ति और प्यार , पहले जैसा है. जो सब लोक देखते है. पर अंदर ही अंदर मेरा माँ के प्रति एक दूसरी तरह का प्यार मन में जनम ले लिया. कब कैसे यह सब हुआ , मुझे भी पता नहीं चला. नाहीं कभी किसी को इस बारे में पता चलेगा. मैं उसको प्यार से मेरे मन के अंदर के कमरे में छुपा के रखा. बीच बीच में वहां से निकाल के अकेले उसके साथ मेरा सबसे अच्छा वक़्त बिताता हू. और फिर से वहां रख देता हू. इस्स प्यार को में बयां नहीं कर पाऊंगा.

उस रात मेरा माँ का कंधा, पेट् का हिस्सा और पैरों को सोच के मुझे जो एक सटिस्फीएड ओर्गास्म मिला था उस के बाद धीरे धीरे मेरे मन में माँ के लिए एक अद्भुत प्यार जागने लगा. नाकि वह केवल सेक्स से सम्बंद्धित है,...वह मेरे मन की ख़ुशी का सबसे बड़ा आधार है.
हां...उस दिन के बाद आज तक में जब भी मस्टरबैट किया, मेरे ख़यालों में सिर्फ वह ही आति है. और कोई कभी एंट्री नहीं ले पाया आज तक्. मैं धीरे धीरे उनको अलग नज़रियाँ से देखना सुरु किया..पर सब का नज़र छुपाके, एवं माँ को भी आज तक पता नहीं चला. वह आज भी हमेशा के तरह सोते टाइम एक गिलास दूध लेके आति है, बिस्तर ठीक करवाके मेरे पास आति है और सर के बाल पे प्यार से उँगलियाँ फ़िराती है. और थोड़ा देर बाद एक प्यारी सी स्माइल के साथ गुड नाईट केह्के चली जाती है. मैं जब उनको सोच के हिलाता हू, तोह मेरे तन्न मन एक नशे में भर जाता है और मुझे सब से ज़ादा संतुस्टि मिलति है.

मा हमेशा लाइट कलर नेल पोलिश पसंद करति है. जब भी वह किसीके घर शादी या और कोई प्रोग्राम में जाती थी तोह उन्होंने हल्का सा मेकअप लगा लेती थी. हलका लिपस्टिक उनके होठो को और भी खूबसूरत बना देती थी. मेरे साथ मेरी बड़ी दीदी जैसा लगता थी. और नाना नानी के साथ लगता ही नहीं था की वह उनका बेटी और में पोता हु.

कुछ दिन पहले तक में मेरी माँ का हर पिक्चर अपनी ऑखों से कैद करता था. उनकी तस्वीरें केवल मेरी आँख से ही खीचता था, उनकी जाने अन्जाने में तोंर तरीके की तस्वीर मेरे दिमाग में सेट कर लेता था. पर मुझे कैमरा मिलने के बाद में उस से फोटो खीचता हू. सब का पिक्स लेता हूण. नाना नानी का बहुत पिक्स लेता हूं..अन्य टाइम ..फिर अन्य तरीके से.... साथ में माँ का भी....डीजीटल कैमेरा होने के कारन कभी कभी माँ के अन्जाने में उनका बहुत फोटो खिचा. मैं सब फोटो पी. सी में रखा है. पर स्पेशल मेरे माँ का सब फोटो में एक सीक्रेट फोल्डर बनाके छुपाके रखा है. जो केवल मेरे लिए ही है. उस फोल्डर में माँ का हर तरीके का फोटोज है. हस्ते हुये, घुस्सेके टाइम, उदासी के फोटोस, प्यार भरी झुकि हुई नज़र का पिक्स, बाते करते वक़्त का पिक्स, काम करते वक़्त का फोटो, मेरे साथ पिक्स है जो नानाजी क्लिक किया. और बाकि कुछ जॉइंट फोटो से केवल माँ का पिक्चर काट के अलग कर लिया. ऐसा भरा हुआ है मेरा पिसी माँ का फोटोज से. अब में हर रात जब माँ दूध का गिलास देके चले जाते है और सब सो जाते है, में वह फोल्डर खोल के माँ को देखता हूण. उनका हर अदा गौर से देखता हूण. और एक सपने में डुब जाता हूण. माँ के लिए प्यार उभर के आने लगता है. तब में आहिस्ता से पैंट का ज़िप निकाल के अपना पेनिस निकाल ता हूण. वह अब और भी बड़ा होने लगता है. मेरा मुठ्ठी भी कम पडता है. अपनी पाँच उँगलियाँ से उसको टाइट पकडता हूँ और माँ के साथ मिलन का प्यारी दृस्य कल्पना करके धीरे धीरे हिलाने लगता हूण. अब पहले जैसा अनाडी के तरह नहीं करता हूण. अपना सुख पाने के लिए खुद ही सिख गया कैसे संतुस्टि मिलती है. मेरा पेनिस बहुत मोटा है. और उसका अगली पोरशन सबसे ज़ादा मोटा और राउंड शेप का है. सामने का पोरशन फ्लैट है. मेरे देखे हुये बाकि पेनिस की पिक्टुरेस जैसा अगला भाग पतला होक पॉइंटेड टाइप नहि. थोड़ा सा डम्बल के किनारे जैसा है. लम्बाई नार्मल है. जब ओर्गास्म होता है तब वह अगले भाग का कैप और फूल जाता है और मुठ्ठी के अंदर आने में अटक जाता है. पर में ओर्गास्म के टाइम अंख बंध करके माँके सरीर के अंदर मेरा सीमेन छोड़ने का सुख प्राप्त करता हूण
मेरा दोस्त जब हीतेश को पुछा था की वह इंटरनेट सेक्स में एडिक्ट हुआ था क्या कभी? उस ने बताया की उस को कभी वहां जाने की जरुरत नहीं पडी. वह अपना खुद का क्रिएट किया हुआ एक दुनिया बना के उस में ही संतुस्टि प्राप्त करता था. और क्या चाहिए इस के अलावा... पर हाँ हीतेश ने यह बताया था की जब वह अपना जॉब ज्वाइन किया और उसका शादी तय हो गया, तब शादी का डेट से पहले जितना दिन मिला था , वह सब दिन वह नेट से कुछ सेक्स एजुकेशन लिया था...क्यों लिया था... इस बारे में में टाइम होने पर बताऊंगा.
 
अब कहानी में आता हूँ हीतेश की जुबानी में। इसी तरह लाइफ चलति रही। और में इंजीनियरिंग की लास्ट सेमेस्टर में पहुच गया। मेरा रिजल्ट अच्चा हो रहा था। पढाई में में कोई ढील नहीं दि। जब नाना नानी और माँ मेरा इतना ख्याल रखते है, इतना प्यार देते है, तोह में क्यों न उन लोगों को खुश होने का मौका न दू !! मेरी पढाई से सब खुश थे। मैं भी नार्मल लड़का ही था। देखने में भी ठीक ठाक था और शरीर का स्ट्रक्चर भी अच्चा था। पढाई का प्रेशर और रात का फैंटसी सेक्स वर्ल्ड के कारन में बाकि स्टूडेंट से थोड़ा मेचुरड लगता था। एकबार में माँ के साथ घर का कुछ शॉपिंग में माँ को हेल्प करने के लिए उनके साथ एक सुपर मार्किट गया था । वहाँ मेरा एक क्लास मैट मेरी माँ को मेरा बेहन समझ के बात कर रहा था। जब उस्को बताया की यह मेरी माँ है, तोह उसके मुह की हालत क्या हुआ था , आज भी मुझे याद है। मेरा अच्चा ख़ासा एक मेनली अपीयरेंस के कारण कॉलेज में कुछ लड़की क्लास मैट मेरे साथ क्लोज होने की कोशिश करती थी। मैं कभी भी।।आज तक किसीके उप्पर वीक नहीं हुआ , फ्लिर्टिंग भी करता नहीं था। वह लोग दो चार दिन में समझ जाति थी और मेरे से दूर होने लगती थी। मुझे अपनि माँ छोड़के कोई भी अच्छी नहीं लगती थी। इस्स लिए शायद में अपनि माँ के ही प्यार में पडा। वह ख़ुशी की खबर मेरे दूसरे कान तक भी नहीं पहुँची कभी भी। मन्न की बात मन में ही रहती थी।

मुझे यह भी मालूम था की मुझे एक दिन ऐसे ही एक दूसरी कोई लड़की से शादी करनी पडेगी। नाना नानी का एक मात्र पोता और माँ का एक बेटा होने के कारन मुझे मालूम था, में मन में जो भी सोच के रोज खुश क्यों न हु, मुझे एकदिन एक लड़की को चुनना पड़ेगा मेरी बीवी बनाने के लिये। तब मुझे एक डर भी आता था। क्यूँ की में जानता था मेरा पेनिस और बाकि सब के जैसा नहि। यह बहुत मोटा और आगे का कैप बहुत बड़ा राउंड शेप का है। फिर स्कलन के टाइम तो वह कैप फूल के और भी बड़ा हो जाता है। मैं कैसे अपने बीवी के साथ सेक्स करूँगा। यह सोच के में कभी कभी मायुस हो जाता था। अगर वह लड़की मेरा पेनिस अपनी पुसी में न ले पाया तो!!! अगर मेरा पेनिस ठीक से अंदर कम्फर्टेबली एडजस्ट ना हुआ तो!! अगर वह दर्द से मुझेसे दूर रहा तो!! कैसे होगा पति पत्नी का मिलन!! कैसे मेरे फॅमिली की अगली पीडी पैदा होगी!! तब किसको बताएँगे यह सब प्रॉब्लम का बात!! कौन समझेंगे !!! यह सब सोच के डर लगता था। लेकिन आज २७ साल के उम्र में एक एक बात महसुस हुआ। पति -पत्नी के मिलान से जो सुख मुझे और मेरी बीवी को मिलता है , बहुत कम सौभ्ग्य्वान है , जिस को वैसा सुख प्राप्त होता होगा।
मेरे फाइनल एग्जाम से पहले मुझे काम्पुसिंग में ही जॉब मिल गया। एम पी में। एक बहुत बड़ा इंजिनेअरिंग कंस्ट्रक्शन कम्पनी। भारत की पुरानी कंपनी में से एक है।
उस दिन घर में जब यह न्यूज़ दिया , तोह सब ख़ुशी से झूम उठे। इस्स लिए नहीं की मुझे सैलरी मिलेगी, वह लोग खुश था इस लिए की एक लडका, जिसका बाप बचपन में चल बसा, उसको उसके नाना नानी और माँ पालके एक इंडिपेंडेंट आदमी बना दिया। अब लगता है की वह लोगों का ड्यूटी ख़तम हो गया। नाना का पैर छुआ तो वह मुझे गले लगा लिया। नानी का पैर छुए तो वह मेरा सर पकड़ के सर पे हाथ रख के अशीर्वाद देणे लगी। नाना नानी बहुत भावूक बन चुके थे। ख़ुशी से आँख नम्म होक छल छल करने लगी। और दोनों बहुत सारी बाते करे जा रहे थे। माँ एक साइड में खड़ी होके यह सब देख रही थी। जब में माँ के पास गया, माँ कुछ बोली नहि। लेकिन उनके आँखों में में जो प्यार और ख़ुशी देखि, वह उनके पास बरक़रार रखने के लिए में ख़ुशी से जान भी दे सकता हू। मैं उनका पैर छुए तो वह मुझे पकड के गले मिलने गई पर में ५'११'' का था , वह ५' ५'' कि, तोह उनका सर मेरे गले के पास कंधे में टिक गया। वह मुझे पकड़ के रखि कुछ मोमेन्ट्स। फिर छोड़ के मेरे दोनों गाल को दोनों हाथ से पकड के, आँखों में बहुत सारा प्यार लेके और होठो में ख़ुशी का स्माइल लेके मुझे देखा । फिर मुझे नाना बुलाये तो में उनके पास गया। माँ और नानी किचन में चलि गयी मेरे लिए खीर बनाने के लिये। यह एक चीज़ हमारे घर में होता था। जब भी कुछ ख़ुशी की बात होती थी तो घर में खीर बनती थी। मैं खीर बहुत पसंद करता हू। आज भी मेरे घर में खीर की परंपरा जारी है। मेरी बेटी भी खीर की भक्त है।
 
उस रात सब सोने के बाद जब में माँ का तस्वीर खोलके माँ को देख रहा थ, मुझे शाम का याद आया। माँ मेरे गाल पकड़ के मेरी तरफ एक प्यार भरी आँखों से जो नज़र दिया था, वह इनोसेंस से मेरा प्यार और बढ गया। मैं उन में खो गया और मुझमे मधहोसी छ गई। मैं झुक के कॉम्प स्क्रीन में खुला हुआ माँ का एक बिग क्लोज अप पिक्चर के पास गया। और आँख बंध करके धीरे धीरे उनकी लिप्स के साथ मेरा लिप्स मिलवाया। मेरा बदन में करंट सा खेल गया। पूरा बदनकाँपने लगा। मैं झट से ज़िप खोलके अपना पेनिस को पक़डा। आज मेरा पेनिस एक दम फूल कर, खड़ा होके, फुल रहा था। मैं फुली हुई पेनिस को पकड़के ज़ोर ज़ोर से झटका देणे लगा। और लिप्स में फिर से किस करने लगा। जल्दी ही ओर्गास्म के तरफ पहुच गया। मैं सीधा होके बैठ के फुल स्पीड से हिलाने लगा। मेरा पूरे बॉडी से निचोड के सब सीमेन पेनिस की नली भर के तेजी से बाहर की तरफ आने लगा। मैं आँख बंध किया । ओर्गास्म चरम सीमा में पहुच गया। जस्ट मेरा सीमेन निकल ने से पहले मेरा मुह खुल गया , हवा लेने के लिए में मुह ऊपर के तरफ किया और मेरा मुह से निकल ने लगा ''मंजू आई लव यू'' और पेनिस से सीमेन छिटक छिटक के गिरने लगा।

तीन महिना भी कट गया। इसी बीच मेरा फाइनल एग्जाम का रिजल्ट भी आगया। और मेरा जॉब ज्वाइन करने का टाइम भी आगया।

पहली बार में घर से दूर जाके रहने वाला हू। आज तक कभी नाना नानी और माँ को छोड़ के कहीं रहा नहि। एक दो बार स्कूल कॉलेज का ट्रिप में जाके दो चार दिन बाहर रात बिताया। पर वह रहना और अब बाहर अकेला रहने में बहुत ही अंतर है। लेकिन मुझे डर नहीं लगा। एक अलग चैलेंज जैसा मेरे सामने खड़ा हो गया। और में उस चैलेंज को मुकाबिला करने के लिए तैयार हूँ मेंटली। पर एक दुःख मुझे खाये जा रहा है।।।की मुझे मेरी माँ को बिना देख के वहां रहना पडेगा। नानाजी का स्ट्रिक्ट इंस्ट्रक्शन है की हर सैटरडे वापस आना पड़ेगा और फिर मंडे जाके ऑफिस ज्वाइन करना है। लेकिन बीच का ६ दिन मेरे पास ६ साल लगने लगा। जब माँ हर रात सोने से पहले मेरे पास आके मेरे बाल में उँगलियाँ फिराती है, और मेरे तरफ प्यार भरी नज़र से देख के स्माइल करती है-वह पल के लिए में कितना बेताब रहता था रोज। पर अब वह चीज़ से मुझे दूर रहना पडेगा। माँ ऐसे बोलती कम। बस देखती ऐसे है की जैसे आँखों में ही सब को कुछ बोल देती है। और अब मेरा जाने का वक़्त नज़्दीक आने में तो वह और भी चुप हो गई। बस नानीजी को किचन में हेल्प कर रही है, घर का बाकि काम कर रही है, टीवी देख रही है, मेरा जाने के लिए सब ज़रूरी चीज़ों को रेडी करके मेरे रूम में रख रही है। पर कभी कभी मायुस नज़र से मुझे एक पल देख के फिर चले जाती है। उनको भी तकलीफ हो रहा है होंगा। वह भी मेरे बगैर कभी रहा नहि। मेरे लिए ही उन्होंने ज़िन्दगी का सब सुख सब खुशियां विसर्जन कीया था। अब वह सोच के में भी मायुस होता हू।
 
पिछले ६ साल से में उनसे और एक दूसरे प्यार से अटैच हुआ हू जो खबर केवल मेरा मन ही जानता. और कभी कोई जान भी नहीं पायेगा. उनके प्यार मे में कब से मेरे अंदर एक अलग आदमी को जनम दे दिया है. जो आदमी माँ से प्यार करता है. उनके साथ एक अलग दुनिया में ही जीता है. लेकिन उसको भी मालूम है की यह मन की बात केवल मन में ही रहेगी पूरी ज़िंदगी.

ओर पिछला ६ साल से में अपनी ही माँ को सोच सोच के रोज रात में मस्टरबैट करते आ रहा हू उसमे मुझे दुनियाका सबसे ज़ादा ख़ुशी , और संतुष्टि मिलती है.

देखते देखते वह दिन भी आगया जिस दिन में कंपनी जाने के लिए. ट्रैन स्टेशन पे खड़ा है माँ, नानाजी, नानीजी सब आये है. कंपनी मुझे वहां रहने के लिए फिलहाल एक जगह प्रोवाइड कर रहा है. ज्वाइन करने के बाद में धीरे धीरे अपना रहने का बंदोबस्त खुद की करूंगा. इस्स लिए नानाजी मेरे साथ चल रहे है. नानीजी बार बार नानाजी को क्या क्या करना है वह याद दिला रही है. मुझे वहां में कोई तकलीफ न हो, इस लिए सब बंदोबस्त सही तरीके से करने के लिए उनको बार बार सब चीज़ों को एक एक करके बता रही है. लास्ट मोमेंट्स में सब को सब चीज़ बतानेका यह एक तरीका में बचपन से सब के अंदर देख ते रहा हू घर में भी यह सब डिस्कस हो चुका है. माँ मेरे पास मेरे सीट पे बैठ के मेरा एक एक हाथ उनकी दोनों हाथ के अंदर लेके चुप चाप बैठि है और नाना नानी का बाते सुन रही है. एक बार माँ मेरे तरफ देखी. उनकि आंखे गिली है. मन में कष्ट हो रहा है उनको . वह उस फीलिंग्स को दबा के रखा है सब के सामने. मुझे मालूम है माँ घर जाके रूम लॉक करके बहुत रोयेगी. मैं इतने सालों से उनको थोड़ा बहुत जानता तोह था. उनकी हर हरकत, हर अदा का क्या मीनिंग है वह में साफ समझ सकता था मैं उन्हें कभी दुःख पहुचाया नही, नाहीं की कभी दुःख दूंगा. यह मेरा खुद के साथ खुद का वादा है. मैं भी माँ को देख. उनका इनोसेंस फेस और नज़रियाँ मुझे हमेशा से अजीब फीलिंग्स देता है. वह मुझ से धीरे से बोली ' तुम मुझे रोज फ़ोन करना'. मैं स्माइल करके धीरे से गर्दन हिलाया हाँ में. उधऱ नानाजी नानाजी को सब समझा रहा है अभी भी. मेरा नाना हमेशा नानी से बेहद प्यार करते है. इस्स लिए उनका ज़ादा बोलना उनको कभी इर्रिटेट किया नही. वह खुद नानीजी से कम ही बोलते है. मेरी माँ शायद उनपे ही गई. इस्स लिए माँ नानाजी से भी कम बोलती है. सुनते और समझते ज्यादा. अचानक ट्रैन में एक झटका खाया. टाइम हो चुका है. अभी चलेगी. इस्स लिए सब उतरने लगे. नानीजी मेरा सर पकड़ के मेरा सर चूमा और उतरने लगी. माँ मेरा हाथ जो उनके हाथों से पकड़ा हुआ था वह मुह के सामने लाक़े मेरा हाथ चुमा. और मेरा गाल पे उनका दाया हात रख के एक बार फिराया और गिली आँखों से स्माइल किया. इस्स का मतलब मुझे मालूम है. मुझे ठीक से रहने का, ठीक टाइम पे खाने का, सोने का, ठीक से काम करने का, अपना ख्याल रखने का ..यह सब बाते वह बिना कुछ बोले मुझे समझा के गयी. . वह लोग बाहर जाके खिड़की के पास खड़ी हो गयी. और ट्रैन चल्ने लगी. नानी और माँ धिरे धिरे दूर होने लगी. ऐसा लगा की मेरा कुछ यहाँ रह गया और में कहीं चल पडा. क्या रह गया वह कह नहीं सकता. मेरा मन भारी हो गया. और ट्रैन रफ़्तार पकड़ने लगी.

ओफिस में पहला दिन थोड़ा डर लग रहा था सब बड़े बड़े इंजिनिअर्स और ऑफिसर्स के साथ परिचय हुआ. सब के बीच मुझे नेर्वेस फील हुआ. सब मेरा हालत समझ गये थे इस्स लिए वह लोग मेरे साथ ऐसा कम्फर्टेबले तरीके से मिल घुलने लगा की एक ही दिन में मुझे इनिशियल हेसिताशन और डर भूलके कॉन्फिडेंस आने लगा. लेकिन एक बात है.. कोई बिस्वास नहीं कर रहा था की में २० साल का था और जस्ट कॉलेज से पास आउट हुआ. मुझे देख के इतना मचुर्ड समज रहे थे, जब में असलियत बताया तब सब हास्के मुझे गले लगाने लगे. मैं गुजरात से हू पर वह लोग मेरी अच्छी हिंदी सुनके मेरी तारीफ भी करने लगे.

इधर नानाजी मैं ऑफिस निकल जाते ही वह भी निकल गये. मेरा रहने के लिए अच्छा बंदोबस्त ढूँढ़ने के लिये. शाम को दोनों एक साथ घर वापस आये..यानी की जहाँ कंपनी हमें रहने के लिए रूम दिया था नानाजी मेरा ऑफिस का पहला दिन का एक्सपीरियंस सुने. मुझे भी उनका दिन भर का करनामे का वर्णन किया. रात को खाना खाके हम सोने गये. एक रूम था अच्छा है. पर एक ही बेड़. इस्स लिए नानाजी और मुझे एक साथ सोना पड़ेगा. नानाजी दिन भर इधर उधर भटके ,मेरे रहने के लिए घर ढूँढ़ते बिजी रहे, तोह वह भी थोड़ा थके थे. इस्स लिए वह जल्दी सो गये. थोड़ी देर में उनकी गहरी नींद की आवाज़ नाक से निकल ने लगी.

पर कल से में थोड़ा व्याकुल था कल भी रात को सोने का यहि इन्तज़ाम था इस्स लिए मुझे मेरा पिछला ६ साल का आदत से छूट ना पड़ा. अभी तक पीसी का इन्तेज़ाम नहीं किया. नया घर मिलतेही सब कुछ कनेक्ट करुन्गा. पर मेरे मन में मेरा हर वक़्त का ख़ुशी का मूर्ति , हमेशा के लिए जल जल कर रही थी. आँख बंध करते ही वह पूरा तन्न मन में छा जाती थी. पर कुछ कर नहीं सकते क्यों की में बाथरूम में जाके वह सब करके मज़ा पाया नहीं कभी. मुझे तो मेरा कम्फर्टेबल प्लेस चाहिए होता है. उप्पर से रोज की तरह माँ की उंगलिया फ़िरने का सुख और प्यार भरी नज़रों से स्वीट स्माइल बहुत मिस किया. आज भी वही शामे हाल है. मैं चेयर पे बैठ के आँख बंध कर के मेरी प्यारी माँ को याद कर रहा था, अचानक याद आया की माँ मुझे रोज फ़ोन करने के लिए कही थी. कल तोह पहली रात थी स्टेशन से आके सब कुछ समेट्ने में देर रात हो चुका था , ऊपर से आज ऑफिस ज्वाइन करना था इस्स लिए कॉल करना भूल गया. अब याद आया. मैं झट से चेयर छोड़ के उठा और मेरा मोबाइल उठाया. आब रात ११ बज चुके है. माँ इस टाइम में सो जाते है हमारे घर में. फिर भी में एकबार ट्राय करने के लिए सोचा. नानाजी को प्रॉब्लम न हो इस लिए रूम का दरवाजा खोल के बाहर बालकनी में आया. मा को फ़ोन लगाया. एक बार रिंग होते ही वह फ़ोन उठा ली. मेरा दिमाग में फ्रैक्शन ऑफ़ सेकंड में यह खेल गया की माँ जरूर मेरा फ़ोन का इंतज़ार में बैठि थी. इस्स लिए इतनी जल्दी रिसीव करली और इतनी रात को भी जागी हुई है. माँ रिसीव करतेहि मैंने बोला
'' हल्लो...मा...''.
मा के तरफ से कुछ रिप्लाई नहीं आई. मैं फिर से बोला
'' मा...कैसी हो तुम्"
फिर से सन्नाता. मैं भी चुप होकर समझने की कोशिश कर रहा था की आखिर हुआ क्या. मैं फिर बोला
'' क्या हुआ मा...तुम ठीक तो होना?'' मेरा आवाज़ में चिंता थी अब माँ थोड़ी देर बाद बोली
" कल तुम फ़ोन क्यों नहीं किये?"
मा की आवाज़ में न जाने क्या था जो मेरे कान में आते ही मेरा पूरा बदन एक अनजानी फीलिंग्स से कांप उठा. दिल की धड़कन तेज हो गई. मुझे यह भी तसल्ली मिली की वह सही सलामत है. मैं खुद को सम्हलकर जबाब दिया
" सॉरी माँ..कल सब कुछ करते करते बहुत रात हो गया था और आज ऑफिस में पहला दिन......"
मेरी बात ख़तम होने से पहले ही उन्होंने मुझे रोक दिया और बोल ने लगी
" बस बेटा...इतनी सफाई की जरुरत नही"
फिर थोड़ा रुक के बोलने लगी
"मैं कल पापा को फ़ोन किआ था"
मैं सोचने लगा , माँ नानाजी को कब फोन किया. शायद में जब रात को बाहर खाना खरीदने गया था , तभी किया होगा. फिर मेरा दिमाग में यह स्ट्राइक किया की माँ को मेरा मोबाइल नम्बर मालूम है. तोह मुझे क्यों नहीं किया. हाँ...उनका एक ही बेटा हू उनसे दूर गया. तो मेरी खबर तो वह लेंगी ही किसी भी तरीके से. लेकिन मुझे क्यों नहीं किया. तभी माँ बोली
चलो यह बताओ ..वहा तुम्हे कुछ प्रॉब्लम तो नहीं हो रहा है ना?
"नही मा...नानाजी साथ में है ना.. . तुम तोह उनको जानती हो. सब वही देख रहे है"
लेकिन में यह बता नहीं सकता की माँ तुम से दूर रहके मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा है.
तभी माँ बोली
" और आज पहला दिन ऑफिस में कैसा रहा..?"
" ठीक था मा. सब मुझे अच्छे से बात किया. और मेरा जो बॉस है मुझे अपना कोई पुराण पहचान वाला जैसा मेरे से बात किया. सब बहुत अच्छे लोग है. लेकिन...."
मैन चुप हो गया तो माँ ने पूचि
"लेकिन क्या?"
"सब मुझे देखके मेरी उम्र ज़ादा सोच रहे थे. पर मेरी सही उम्र जान के सब हस पडे." ऐसी बहुत सारी बाते माँ से होती रही.
माँ मुझ से बात करके खुश थी स्टार्टिंग में वह जैसे अभिमान लेके बात शुरू की थी , वह अंत में जाके एक प्यारी माँ आपने बेटे के लिए ढेर सारा प्यार उड़ेल कर मुझे भी एक सुकून सा दिया. मैं पता करने लगा की माँ से दूर रह के भी इस फ़ोन कन्वर्सेशन के जरिये उनको मेरे पास महसूस कर सकता हू अंत में माँ ने गुड नाईट बोलके फ़ोन काट दिया. मैं कभी माँ से बत्तमीज़ जैसा पेश नहीं हुआ, ना की माँ के साथ कभी लूसे टॉक किया, नाहीं कभी उनको ज़बर्दस्ती पकड़के हुग किया या गाल चुमके एक बेटा का प्यार दिखाया. मेरा परवरिष ही ऐसा था हमारे घर में हम सब के बीच गहरा प्यार बंधन है , साथ में सब सब को रेस्पेक्ट देते है. रेस्पेक्टफुल्ली पेश होते है. मेरे मन में माँ के लिए पिछला ६ साल से एक अजीब अद्भुत फीलिंग ग्रो किया, पर में कभी उनसे सेक्स लेके, या डबल मीनिंग बात लेके, या बिना कारन में उनको हुग करना या उनका टच पाने का कोशिश करना....यह सब कभी नहीं किया. नाही कभी करने का मन हुआ. हा...में उनसे प्यार करता हू रेस्पेक्ट भी करता हू पर वह प्यार में भाषा में बयां नहीं कर पाऊंगा. जो इंसान वह फील करता है, केवल वह उसको समझ सकता है.
आईसे ही एक हप्ता गुजर गया. ऑफिस में मेरा थोड़ा खुलापन आ चुका था मुझे काम करनेके लिए रिस्पांसिबिलिटी भी सौपा गया. और में ख़ुशी से वह करना भी सुरु कर दिया. इधर नानाजी मेरे लिए एक घर किराया में ले लिये. एक बेडरुम, छोटा सा एक ड्राइंग रुम, किचन और बाथरूम. एक आदमी के लिए काफी है. घर के लिए सब सामान भी खरीद के पूरा सजा डीए. मुझे बस ऑफिस जाना है और काम करना है. पहला संडे था मेरा. उस दिन शिफ़्ट करके में और नानाजी एकदम सब बंदोबस्त पक्का कर लिया. मेरा सब सामान सही जगह रख दिया. मेरा पीसी भी कनेक्ट कर दिए. रात को माँ से बात हुआ. वह जान के खुश हो गयी. मुझे अकेले रहने के लिए जो जरूरी चीज़ , वह सब थोड़ी बहुत बतायी. माँ कम ही बोलती है. पर उस दिन अपनी बेटे के लिए कंसर्नड थी. खाने के लिए एक आदमी ठीक किया नानाजी, जो दोनों टाइम टिफ़िन बॉक्स से खाना बना के देके जाएगा.
नानाजी अहमेदाबाद जाने के लिए निकल पड़े और में ऑफिस के लिये. उस दिन ऑफिस में एक कलीग की शादी थी सब लोग शाम को वहां जाने वाले थे. मुझे भी जाने के लिए कहा, में मना किया तोह वह लोग बताया की मेरा भी इनविटेशन है. वह कलीग एक हप्ते से छुट्टी लिया है, इस लिए मुझसे मुलाकात हुआ नहीं अब तक, पर उन्होंने फ़ोन करके मेरा जोईनिंग का खबर पाके मुझे भी जाने के लिए रिक्वेस्ट किया. वह मेरा की सेक्शन का कलीग है. नहीं जाउँगा तोह बाद में क्या सोचेग. इस्स लिए में भी उन सब के साथ शाम को शादी में गया.
आज तक में सब गुजराती शादी ही देखते आया. आज पहली बार और दूसरे कोम की शादी देखने को मिला. ऑफिस कलीग्स सब एक जगह पे बैठे है. और कोई कोई ड्रिंक भी कर रहे है, में आज तक कोई नशा किया नही. मुझे वह सब कभी अट्रॅक्ट नहीं किया. एक दो बार टेस्ट किया. पर परमानेंटली आदत नहीं बनाया. दूल्हा यानि की मेरा कलीगसे परिचय हुआ. दुलहन से भी मिल लिया. मैं अकेला बैठा था , सब को देख रहा था बैठे बैठे यहाँ एक नया अनुभुति हुआ. मुझे यहाँ सब लोग एक इंडिविजुअल पर्सन जैसा ट्रीट कर रहा है. आजतक जहाँ भी गया शादी में, पूरी फॅमिली के साथ जाते थे. यहाँ अकेला अपना एक नया परिचय के साथ, एक अलग रेस्पेक्ट के साथ बैठा हुण. अच्छा लगा...कयूं की में बड़ा हो गया. मुझे ऐसा लगा की में भी रिस्पांसिबिलिटी लेने के लायक हो गया हुण
 
ओफिस का एक कलीग उसकी गाड़ी में मुझे घर छोड़ गया. मैं अंदर आते ही एक अजीब फीलिंग्स हुआ. यह घर आज से मेरा. मेरा ही रूल्स चलेगा यहा. जो भी करुण, जैसे भी करूण, कोई नहीं है रोक्ने के लिये. किसी से डरके कुछ करने की भी जरुरत नहि. पर सच यह भी है की में जिस तरह से बड़ा हुआ, मेरा परवरिष जैसे हुआ, जो वैल्यूज और मोरालिटी मुझ में है...वह सब मुझे हर तरह का बुरा काम करने से बचायेगा. हर बुराई से रक्षा करेंगा. यह मेरा घरवालों भी जानते है. पर फिर भी मुझे इस घर का मालिक लगने लगा.
मेरा दिमाग में आया की में भी इस तरह एकदिन शादी करुन्गा. मुझे ऎसी एक लड़की दुल्हन के रूप में मिलेगा. सब मेरे शादी पे आयेंगे. फिर मेरा खुद का फॅमिली बनेगा. यह सब सोचते सोचते में फ्रेश होके , कपड़े चेंज करके मेरा कम्प्यूटर ऑन किया. एक हप्ता बाद मुझे आज एकांत में मेरा पीसी के साथ टाइम मिला. मैं मोबाइल उठाके माँ से बात करने लगा. मैं आज का दिन कैसे गया बताया. शादी पे गया था , वह बात भी बताया.. माँ भी ऐसे इधर उधर की बात पूछ रहे थी. मैं मेरा पीसी का सीक्रेट फोल्डर खोल के माँ की तस्वीर देख रहा था और साथ में माँ से बात कर रहा था. मुझे अच्चा लग रहा था. जैसे उनसे में फेस टू फेस बात कर रहा हूण. वह कुछ भी बोलने के टाइम कैसे कैसे उनका अदा या पोस्चर क्या होता है, मुह, आंख, नाक कैसे रियेक्ट करते है , सब में जनता था. और उनकी बात सुनते सुनते में वैसा पिक्स देख रहा था. इस्स लिए मुझे लाइव कन्वर्सेशन जैसा मेहसुस हुआ. मैं एक सकुन और ख़ुशी की फीलिंग्स में डुबा हुआ था. थोड़ी देर बाद मेरा मन में एक अजीब प्यार आने लगा माँ के लिये. पर में उस को दबा के माँ से बात कंटिन्यू करने लगा. उनके सामने में वह ज़ाहिर नहीं कर सकता था किसी भी हाल में. सो मेरा बदन सिरसिर करने लगा. और तभी माँ बात ख़तम करके गुड नाईट कहके फोन काट दिया. मुझे एक नशा लग गया. आज इतना दिन बाद मेरा माँ का सुन्दर चेहरा का फोटोज और हर पोज़ में उनकी अलग अलग अदा देख के में धीरे धीरे उत्तेजित होने लगा. ७ दिन का इमोशन आज भर भर के रोम रोम में छाने लगा. मैं सपनो जैसा एक दुनिया में पहुच गया और माँ का तस्वीर गौर से देखने लगा. अचानक शाम को देखी हुई दुल्हन का चेहरा मेरी नज़र के सामने आने लगा. मैं माँ को देखते देखते वह दुल्हन की कल्पना किया. और मेरा पूरा बदन कापने लगा. मैं जोर जोर से स्वास छोड़ने लगा. मेरा राईट हैंड न जाने कब मेरा पेनिस को हिलने शुरू कर दिया. मैं माँ की एक मुस्कुराती हुई फोटो को नज़्दीक जाके देखने लगा. और ऐसे लगा की मेरा माँ ही उस दुल्हन का सज में है. वह दुल्हन की जैसे सज धज के मेरे तरफ देख के मुस्कुरा रही है. मेरे खून में ाग लग गायी. आज एक नया अनुभुति होने लगा. मैं जोर जोर से हिलने लगा. मेरा पेनिस का कैप अभी से एकदम फूल के गोल होगये. मैं चेयर में सीधे बैठके दो पेअर को पूरा फैला दिया टेबल के नीच. सामने माँ का फोटो और दिमाग में दुल्हन का बेष में माँ को कल्पना करके मेरा ओर्गास्म चरम सीमा पर आगया. मैं आँख बांध कर लिया. स्वस और गरम हवा छोङे लगा. मैं माँ को दुल्हन के रूप में कल्पना करके मेरा ओर्गास्म में पहुच गया. और में फुल स्ट्रोक के साथ साथ फुली हुई कैप को मुठ्ठी में ले लेके जोर जोर से हिलने लगा. जब मेरा सीमेन निकलने वाला है तब मेरा मुह से केवल ''मंजू.....मंजू...मंजू..." शब्द निकलने लगा. और अचानक मेरा दिमाग में अँधेरा फैलाके मेरा गरम गरम सीमेन चिरिक चरिक से निकलने लगा.

१५ दिन बाद २ण्ड वीकेंड में में अहमदाबाद गया. माँ बेसब्री से मेरा इंतज़ार कर रही थी. कल रात फ़ोन पे वह मुझे बार बार पूछ रही थी की में कितने बजे का ट्रैन से आउंगा. कब पहुँचूंगा अहमदाबाद और ढेर सारे सवाल. तभी मुझे एह्सास हुआ की ज़िन्दगी में पहली बार १५ दिन तक में माँ से और माँ मुझसे दूर है. नानी जी ने दरवाजा खोलके मुझे वहीं गले लगा लिया. पीछे नाना जी खड़े थे. वह भी ख़ुश होकर मुझसे बात करने लगे. मैं अंदर आया. और अपना बैग कन्धे से उतार के नीचे रखा. माँ उन सब के पीछे खड़े होक मुझे देख रही थी. उनकी प्यार भरी नज़रों से जो ममता और अपना बेटे के लिए उदबेग और ख़ुशी नज़र आया, वह देख के मेरा दिल पिघल ने लगा. वह ऐसी एक सुंदरता और शान्ति की मूर्ति है, जिसको में ज़िन्दगी भर बिना पलक झपकाये देख सकता हू. माँ हमेशा घर पे साड़ी ही पहनती है. बहुत रेस्पेक्टफ़ुल्ली ड्रेस चूनती है और पहनती भी वैसेहि. रख धक् के ड्रेस पहन ना उनको पसंद था और कोई भी ड्रेस चुनती थी जो उनको पूरी तरह से धकके रखे. बचपन से में देखा केवल उनकी इनोसेंट फेस और नाक, पीछे का सुडौल गर्दन, एल्बो से नीचे का हाथ का हिसा, दोनों हाथ में दो सोने का चूडि, और लंबी लंबी गोल गोल उँगलियाँ , उन्होंने लेफ्ट हाथ की उँगलियाँ में हल्का सा लाइट कलर नेल पोलिश लगातीकभी कभी. मैं कभी कभी चुपके उनका पेट् का थोड़ा पोरशन देखा था, जो एकदम गोरा, मुलायम और फ्लैट था, यानि की उनका पेट् का जो हिस्सा मुझे नज़र आता है उसमे कोई फैट जमा नहीं आज तक्. पेट् नीचे जाके पतली कमर में समां गया. और साथ में स्लिम बॉडी होने के कारन उनका उम्र कभी पता नहीं लगता था. कोई भी देखता था तोह उनको २० - २२ साल की लड़की सोचता था. कोई नहीं बिस्वास करता था की वह मेरा माँ है और उनकी उम्र अब ३६ है. उनका पैर मुझे सबसे ज़ादा आकर्षित करता था. ऐसा सुन्दर छोटी छोटी मुलायम पैर और हल्का नेल पोलिश वाली उंगलिया देखके मुझे हमेशा एक नशा आजाता है. इस औरत को में जितना देखता हू, मेरा देखना कभी सम्पूर्ण होता नही. जितना जानता हूँ फिर भी लगता है में उन्हें पूरी तरह जान नहीं पाया. यह सबकुछ उनके लिए मेरे दिल में प्यार और रेस्पेक्ट बढा देता है. हमेशा उनके लिए एक अलग अनुभुति मेरे मन में छा जाता है. नाना-नानी पैर पढ़ने के बाद में माँ के पास गया . मैं भी उनसे मिलने के लिए बेताब था. मैं उनके पैर छुये. मैं जैसे ही खड़ा हुआ वह मुझको पकड़ के मेरे गले लगना चाही . पर उनका सर मेरे शोल्डर पे टिक गया. और दोनों हाथ से वह मुझे पीछे से बेडी लगाके कसके पकड़ली. वह इतने दिन की दूरि मुझसे ऐसे गले लगा के पूरी कर रही है. नाना - नानी हास्के बोलने लगे की "क्य मंजू...बेटे को और जाने नहीं देगी क्या?" माँ मेरे नज़्दीक रहकर, उनका ही हिस्सा, उनका ही खून, जो आज एक नौजवान पुरुष बन गया, उस को मेहसुस कर रही है एक अपने स्नेह के साथ.

रात को डिनर के टाइम हमेशा की तरह सब लोग खाने बैठे. हमारे परिवार में सब डिनर एकसाथ करते थे. माँ जनरली सर्व करती है पर कभी कभी वह भी साथ में बैठ जाती थी और सेल्फ सर्विस चलता था. सब हसि मज़ाक़ और मस्ती के साथ वह पल बिताते है. आज भी सब लोग बैठे. माँ सर्व कर रही है. मैं पिछला ५ घंटे से आया. तब से सब लोग मेरे पीछे पड़ गये. मेरा शरीर और हालत १५ दिन में सुख सा गया, ऐसा लगा उन लोगों को. उनको लगता है में खाना नहीं खाया इन १५ दिन. बार बार पूछ रहे है ऑफिस में क्या खता हूण. वह खाना सप्लाई करनेवाला आदमी ठीक से खाना देता है क्य, में उसको ठीक से खाता हुन या नही. एक लौता पोता और एक लौते बेटे के लिये.. सब चिन्ता थी, यह में मेहसुस कर रहा था.

मा आज मेरे लिए मेरा सब पसन्दीदा खाना बनायीं है. ऐसा लगा माँ मुझे एक दिन में सब कुछ खिलाके पूरी हप्ते की कमी बराबर करना चाहती है. पर में माँ को दुःख नहीं पहुचाना चाहता था, इस लिए सब चाट पूस के खा लिया. मालूम है इससे माँ को ख़ुशी मिलेगी. उनकी ख़ुशी के लिए में कुछ भी कर सकता था.

ऐसेही ही ज़िन्दगी चल्ने लगा. वीकडेस में सब से दूर रहके काम करना. अपनी देख भाल खुद ही करना. माँ से फोन पे बात करना ..यह सब एक रूटीन बन रहा था. फिर वीकेंड में घर जाने में एक ख़ुशी महल बन जाता था. फिर सब का प्यार , ममता, सनेह और मेरे बारे में उनलोगों का चिंता के साथ दो दिन बिताके फिर वापस आना. ऑफिस में धीरे धीरे काम का प्रेशर बढ़ ने लगा. इस्स लिए शायद सच मुछ मेरे शरीर पे इस का प्रभाव पड़ने लगा. फिर से वीकेंड आया और में घर वापस आया. मेरी हालत देखके सब परेशान हो गए. माँ केवल पूछा में खाना खता हु क्या टाइम पे. उनके आँखों में एक ममता भरा चिन्ता दिखा. नाना नानी ज़ादा सोच में पड़ गये.

कईसे दो महिना कट गया मेरा ऑफिस मे. अब में कभी कभी मेरे सीनियर के साथ साइट में भी जाने लगा. मेरा काम में फुर्ती देख के सब मुझे और अच्चा करने का होसला देता है.
मैन जब यह सब साइट विसीत, नया नया चल्लेंजिंग काम करके अपना पैर जमा रहा था तब मेरे घर अहमेदाबाद में और कुछ चल रहा था.

उधर का बाते मुझे बाद में मालूम चला था.."कैसे क्या हुआ था?

नाना नानी इतना परेशान था मेरा हालत को लेके की उन लोगों ने मेरा इस प्रॉब्लम का सलूशन ढूँढ़ना सुरु कर दिया. वह दोनों रात में सोटे टाइम आपस में बात करने लगा. पहले यह तय किया की मेरी माँ मेरा पास जायेगी और मेरे साथ रहके मेरा देख भाल करेंगे. माँ को भी प्रॉब्लम नहीं होना चाहिए क्यों की वह हमेशा अपने बेटे के लियेही सब कुछ छोड़के आज ऐसा एक ज़िन्दगी चुना. तोह वह भी इस में खुश होके मेरे पास रहना पसंद करेंगे. फिर वह लोग सोचे की में अब २० साल का हो गया. बाकि सेम उम्र के लड़कों से में थोड़ा म्याचूर्ड भी दीखता हूण. साथ में जॉब करता हूण. अच्छा सैलरी भी मिल रहा है. साथ में नानाजी का सब कुछ मेरा ही है. और कोई वारिस नहीं मेरी माँ छोडकर. सो आखिर सब कुछ मेरे पास ही आयेगा. सो यह सब काउंट करेंगे तोह मेरे लिए आच्छे घर की एक अच्छी सुन्दर सुशिल लड़की मिल जाएगी. नाना नानी यह सोचे की जब ज़िन्दगी में शादी करवाना है और अब इस प्रॉब्लम का हल ढूँढ़ना है , तब क्यों ना अभी उसके लिए लड़की ढुंडके शादी न करवा दिया जाए. यह तरीका उनको सही लगा. पर जब नानी जी थोड़ा टाइम चुप रह, कुछ बोल नहीं रही थी तब नाना जी पूछे उनको की क्या कोई गलत सोचा वह लोग? नानी जी तब बोलने लगी की नहीं गलत कुछ नही. पर आज हीतेश का शादी करवाके उसका लाइफ सेट हो तो जाएगा. पर हम और कितने दिन जियेंगे? नानाजी ६० क्रॉस कर चुके है और नानीजी भी दो चार साल में ६० टच कर लेगी. वह लोग और जीतना दिन है, तब तक ठीक है. पर वह लोग जानेके बाद उनकी बेटी मंजु बिलकुल अकेली हो जाएगी. हीतेश है एक सहारा. पर बीवी आनेके बाद सब बेटा बीवी का ही हो जाता है. बीवी की ही सुनता है. तब माँ का सुन्ना , माँ का ओबीडियन्ट बेटा बनके रहने में बहुत सारा झमेला आजाता है. बीवी अपने पति के ऊपर और किसी का अधिकार सह नहीं सकती. बीवी हमेशा अपनी फॅमिली की लग़ाम अपनेहि हाथ में रखना चाहती है. अपनी सास, जो उसका पति को पाल पोश के आज इस लायक बनाया, उनको भी वहां घुसना पसंद नहीं करती. बेटा कितना भी चाहे, अपनी बीवी के खिलाफ जाना मतलब अपनी ही पैर में कुल्हाड़ी मारना यह समझ जाता है. इस्स लिए सब जानके भी शान्ति रखने के लिए दिल पे पथ्थर रखके सब कुछ मानने की कोशिस करते है. पर जो औरत अपने बेटे के लिए पूरी ज़िन्दगी विसर्जन दि, दोबारा अपनी ज़िन्दगी में सब कुछ पाने के मौके को अपने ही हाथ से गवाया केवल अपने बेटे का मुह देखके, जो अपनि पूरी जिंदगी की ख़ुशी अपने बेटे में ही ढूंडा--उस औरत के साथ अगर ऐसा होगा तोह इस दुनिया में अकेली कैसे जी पाएंगे? नानीजी ने बोला की जब तक हम इस दुनिया में है तब तक ठीक है. पर हमारे जाने के बाद कौन देखेगा उसको उसके बुढ़ापे मे. वह लोग जानता है हीतेश ऐसा लड़का नही. उसका परवरिश भी उस तरह हुआ नही. बचपन से वह सब कुछ देखते आया. हमारा प्यार, बॉन्डिंग वह अछि तरह से मेहसुस करते आया. वह कभी अपनी माँ को दुःख देगा नही. बिना बाप की ज़िन्दगी में वह अपनी माँ से जो प्यार, माँ की ममता उसको मिली है, उसमे कभी बाप की कमी शायद मेहसुस नहीं किया होगा. हा..यह बात सच है की उसने कभी किसीको 'पापा' कह के बुलाने का सौभाग्य प्राप्त नहीं कर पाया. नाना नानी बचपन से सब कुछ सपोर्ट देके आज ऐसा एक इंसान बनाया उसको. पर है तो वह एक लौता. उसी से ही इस खानदान की अगली पीढी आयेगा. इस्स लिए उसको शादी भी करना पडेगा. उसको अपने लिए बीवी भी चुननी पड़ेगी. आज कल की लड़की होते भी सब ऐसेही. अपना पति और अपने बच्चो को ही अपना दुनिया मानता है. परिवार के बाकि सब को लेके जो एक फॅमिली बनता है, और उसमे जो सुख मिलता है , वह सब आज कल की लड़की लोगों की मानसिकता में नहीं है. धीरे धीरे समाज ब्यबस्ता और शिक्षा का हाल भी दूसरी तरफ जा रहा है. सब इधर उधर भटक रहा है लगता है. कोई भी किसी भी दिशा में भाग रहा है. न इस पीडी का कोई लक्ष है न कोई भविष्य. नाना नानी यह सोच के मायुस हुआ की अगर वह लोग तभी माँ का न सुनके अगर उनका शादी फिर से करवा देते तोह आज यह दुश्चिंता उनलोगो को सताता नहीं . तब बाहर का कोई आदमी आके हमारि फॅमिली को अलग कर देंगा, हीतेश को उस से दूर कर देगा, हम को अकेला करके चले जायेंगे---यह सब सोच के उनकी बेटी अपना ज़िन्दगी का सब ख़ुशी अपने ही हाथ से दूर फ़ेक दिया. और आज वह घडी आगया फिर से वैसे एक परिस्थिति आनेका. आज एक लड़की इस फॅमिली में बहु बनके आयेगा. वह आके कैसे बर्ताव करेगी अपने सास से, अपने पति के नाना नानी से, यह सब सोच ते उनको दिल पे काला मेघ छा ने लगता है. लेकिन करे तो करे कया. शायद एहि दुनिया का नियम. आप जीस प्रॉब्लम से दूर भागते हो, वह प्रॉब्लम आगे आपके लिए वेट कर रहा है आपसे गले लगाने के लिये. यह सब चिंता में से वह लोग डूबे रहते थे. और हर रोज सोने के टाइम दो बूढ़ा बूढी एहि डिस्कुस करने लगे. ऐसे ही एक दिन उनलोगों के दिमाग में यह सब के अलावा और एक सोलुशन नज़र आया. पहले वह लोग खुद ही थोड़ा आचर्यचकित हो गए थे. बाद में बातों बातों में सब कुछ सही लगा. लगा के, सब ठीक विचार करके, सब का भलाई सोचके, सब का फ्यूचर का कुछ प्लानिंग ठीक करके धीरे धीरे एक फैसले में पहुच चुके. आखिर में उस बारे में बहुत उँछनिछ बाते होने के बाद नाना नानी एक डिसिशन पे पहुचे. लेकिन तब भी वह लोग भी नहीं जानते थे की सच में यह मुमकीन होगा या नही. और होगा भी तो उस के लिए किसको क्या क्या करना पड़ेगा, क्या सैक्रिफाइस करना पड़ेगा , या किस तरीके से मुमकीन होगा यह वह लोग बिलकुल नहीं जानते थे.
 
नेक्स्ट डे सुबह माँ नास्ते में नानाजी का पसन्दीदा मेथी का पराठा बनायी. सब लोग नास्ता कर के अपने अपने काम पे लग गये. नानाजी का एक बिज़नेस था५ साल पहले जब वह बिमार पड़ गए और डॉक्टर उनको ६ महिना बेड रेस्ट में रहने के लिए कहे, तब उनका एक दोस्त का बेटा जो उनके साथ बिज़नेस में उनका असिस्टेंट था, वह सब कुछ सँभालने लगा. उस आदमी ने अच्छी तरीके से बिज़नेस को अपनी मेहनत और बुध्धि से पकड़ के रख्खा. नानाजी ने ६ महीने बाद जब हिसाब किताब देखे , सब बिलकुल परफेक्ट था और लाभ भी पहले जैसा बराबर हुआ थावह आदमी बहुत होनेस्ली पहले से ही काम करता था नानाजी खुश थे. फिर उन्होंने उस आदमी के साथ एक एग्रीमेंट किया. अब से वह बिज़नेस को सम्भालेंगा. नाना जी केवल हप्ते में एक या दो दिन आके उसका हिसाब किताब लेते रहेंगे. और जो कुछ फ़ायदा होगा उसको ५०-५० हिसाब से दोनों बाट लेंगे. इस्स में नानाजी को और मेहनत करने की भी जरुरत नहीं है, साथ ही साथ पैसा भी आता रहेगा. नानाजी आलरेडी पूरी ज़िन्दगी की मेहनत से बहुत कुछ बना लिए थे. उनको अब काम करने की जरुरत भी नहीं था इस लिए अब नाना जी ज़ादा टाइम घर पर ही बिताते है. आज नाना जी और नानी जी ड्राइंग रूम में बैठके टीवी देख रेहे थे. माँ नहा के फ्रेश होकर , भीगे बालों में एक टॉवल लपेट के किचन में काम कर रही थी. लंच के लिए सब्जिअं काट रही थी. नाना - नानी टीवी देख रहे थे, फिर देख भी नहीं रहे थे. आज उनलोगों को देख के ऐसा लगने लगा की वह लोग टीवी के तरफ देख के और कुछ सोच रहे थे. एक समय नानाजी नानीजी की तरफ मुड़के देखा. नानीजी उनको देख के कुछ समझि और फिर से दोनों टीवी देखने लगे. थोड़ी देर बाद नानीजी वहां से उठ के किचन के तरफ चली गई. किचन में माँ को काम में हेल्प करने के लिए उनके साथ हाथ बटाने लग गयी.
थोड़ी देर इधर उधर की बात होने के बाद नानी जी मेरा बात लेके वह उनका चिंता जताते रहे. मैं कितना प्रॉब्लम फेस कर रहा हू अकेला रहके. माँ भी समझती थी मेरी प्रॉब्लम क्यों की वह भी कुछ दिन से परेशान थी इस को लेके. उनके साथ इस कन्वर्सेशन में क्लियर पता चलता है वह आज कल किनता चिंतित है मुझे लेके. और यह होना जाएज भी है. उनका एक लोता बेटा हु में. सो नानी जी की बातों में माँ भी साथ देणे लगी. तब नानी जी बोलने लगी की अब हीतेश भी बड़ा हो गया है तो उसका शादी करवा देते है. यह सुन के माँ नानी की तरफ देख के हॅसने लागी. माँ हस्ते हस्ते बोली
" अब.....शादी... हीतेश की?"
नानी बोली
" हा...कयूं नहीं?"
" मम्मी ... अब तो वह बच्चा है"
" हीतेश २० साल का हो चुका है... नौकरी भी करता है.... और उसको देख के कौन सा बच्चा लगता है तुझे?"
मां मुस्कुराके सब्जी काटने लगी... उनको भी यह सब मालूम है. तब नानी बोली
" हर माँ को उनके बेटा-बेटी हमेशा बच्चा ही लगता है..जब की वह कितना भी बड़ा हो जाए"

सब्जी काट ते काट ते माँ बोली
" तो अब हीतेश को एकबार पुछ लेते है..."
नानी नमकिन का पैकेट्स काट के छोटा छोटा बरनि में भरते हुए कहा
" उससे क्या पूछना है..."
फिर माँ के ऊपर एक नज़र दाल के देखि. माँ नानी की तरफ बैक होक खडी है सब्जी काट ते हुए किचन स्लैब के पास . फिर अपनी हाथ में पकडे बरनि की तरफ देख के नानी बोली
" घर पे हम उसके बड़े है. क्या हम उसकी भलाई बुराई नहीं समझ ते है क्या?.... और वह भी ऐसा नही... हमेशा हमारी बात सुनता है"
मा का सब्जी काटना ख़त्म हो गया था वह मुड के नानी को देखते हुए किचन का दूसरा तरफ जाने लगी.
वह वहां रखा आटे का डिब्बा खोल रहे थे और बोली
" उसके लिए तो अब एक अच्छी लड़की ढूंढ़नी पड़ेगी मम्मी"
नानी अब बरनि का ढक्कन बंद करते हुए कही
" हाँ... यह एक बड़ा काम है. एक अच्छी लड़की ही तो चहिये"
नानी ढक्कन टाइट करते करते माँ की तरफ देखि और कहने लगी
" जो हीतेश का ठीक से देख भाल कर सके. अकेली हाथों से संसार बांध सके. बच्चे का देख भाल कर सके. और हमारे साथ मिलके हमारी एक फॅमिली जैसी बनके रहे...."
मा थोडी चिंतित दिख रही थी. वह आटा निकालते निकालते नानी को देख के बोली
" सही कहा तुमने मम्मी.."
फिर अपने काम की तरफ नज़र फिराके बोलने लगि
" ऐसी ही लड़की चाहिए हमारे हीतेश के लिये. जो हम सब को अपना सोच के हमारे तरह एक साथ रहे पर...."
मा थोडी चिंता के साथ अपने काम पे जुटी रही. शायद वह यही सोच रही होगी की उन्होंने दोबारा शादी नहीं की क्यों की बाहर से कोई नया आदमी आके उनकी फॅमिली को तोड़ ने की कोशिश ना करे अपना अधिकार जताके. और आज ऎसी एक नई बात जहाँ पात्र बदल गए पर सिचुएशन वही सामने है. आज कल की लड़की..बहु ससुराल में क्या क्या कारनामा करना चालू कर देती है.
नानी ने नोटिस किया माँ कुछ सोच में है. तो उन्होंने चुप्पी तोड़ के बोली
" और तो और देखने में भी अच्छी होनी चहिये...हमारे हीतेश के साथ
बिलकुल मैच हो पाये"
मा उठके एके आटे की थाली किचन स्लैब के ऊपर रखि. और उसमे पाणी ड़ालने लगी और बोली
" ऐसी लड़की मिले तब ना मम्मी...."
नानी को थोड़ा होसला मिला. माँ की साइड प्रोफाइल नानी को नज़र आ रही है. उन्होंने माँ से नज़र ना हटाके बोलते रहि
" हम भी एहि सोच रहे थे. आज कल जो लड़की लोगों को देखती हू, उनसे मन ही उठ जाता है. तेरा पापा के साथ इसको लेके बहुत बात हुइ. हम भी परेशान हो गए थे. कहाँ मिलेगी ऐसी लड़की. कौन खबर करेंगा. बहुत सारि बात चित होने के बाद हम यह तय किये की हम इतना क्यों सोच रहे.क्यों की हम सबकी भलाई के लिए ही चिंतित है. हमारे सब की भविष्य के बारे में सोच के चलना पड़ेगा. सब ठीक विचार करके हम ने सोचा की..हाँ है न... ऐसी ही लड़की है....जैसे हम सब को चहिये"
मां आटा गुंथते गुंथते रूक गई..और नानी की तरफ मुड़के आँखों में एक हैरत के साथ और होंठो पे मुस्कराहट लेके पूछि
" क्या मम्मी.... आप लोगों ने लड़की ढूंढ भी निकाली!!"
नानी अब एक स्माइल के साथ उठ के माँ जहाँ खडी थी स्लैब के पास वहां आने लगी. तब माँ फिर से पूछि
" कहाँ से ढुंडके निकाली मम्मी?"
नानी माँ के पास पहुछि और उनके सामने खडी होगई. नानी माँ का चेहरा गौर से देखने लगी. माँ भी थोड़ा एक्साइटेड हो रहे थी. नानी की आँखों में एक ममता और प्यार भरी मुस्कराहट छा गई. माँ फिर से पुछी
" कौन है वह लड़की मम्मी...और कहाँ की है?"
नानी देखा माँ नहाके फ्रेश होकर एक लाइट कलर की प्रिंटेड साड़ी में आज बहुत सुन्दर दिख रही है. उनके सर के बाल पे एक टॉवल लपेटा हुआ है. एक दो बाल टॉवल से निकल के उनकी फोरहेड के ऊपर पड़ा है. नानी अपने दोनो हाथ से माँ का वह बाल प्यार से फोरहेड से हटाके उनका चिन पकड़के बोली
" बाहर कहाँ ढूंढू ऐसी लड़की....जब हमारे ही घर में एक ऐसी सुन्दर लड़की है तो" बोलके नानी एक चौड़ी स्माइल करते रही.
मा इस बात को ठीक से समझ नहीं पाई. वह कोशिश कर रही है समझने की और जैसे की कुछ याद कर रही है. उन्होंने एक बड़ा सा पलक झपका के नानी को पुछी
" मलताब....कोन है मम्मी?"
नानी अपनी स्माइल बरक़रार रख के..आँखोँ में और प्यार और ममता लेके बोली
" क्यूँ !!.... हमारी मंजु सुन्दर नहीं है क्या?"
मा कुछ पल नानी को देखते रही और उनको कुछ समझ के. उनके फेस पे जो चमक थी वह ग़ायब हो गई अचनाक. उनकी आंख स्थिर हो गई ,जगह के उपर. वह बिलकुल स्तब्ध हो गई. वह नानी को एक दृष्टि से देख के बोली
" कैसी बात कर रही हो मम्मी!! "
नानी अब एकदम शांत आवाज़ में लेकिन प्यार से कहने लगि
" देख मंजू.. मैं और तेरे पापा इस बारे में बहुत सोचे. हमको यह भी मालूम है इस के लिए हम सब को न जाने क्या क्या सैक्रिफाइस और एडजस्टमेंट करना पड़ेगा. न जाने क्या क्या असुबिधा झेल ना पड़ेगा. लेकिन इस में ही सब का भलाई है. सब का भविष्य हम को ही तो सोचना पड़ेगा मंजू. ......"
नानी इस तरह फिर से वहि सब बात बताने लगी. आज वह है तोह ठीक है. कल जब वह लोग नहीं रहेंगे तब क्या मंजु अकेली जी पायेगी? हीतेश और किसीसे शादी करेगा तोह क्या गारंटी की वह लड़की हमारे जैसी ही होगी. मंजु को वह कैसे ट्रीट करेगी उसकी गारंटी कौन देगा. फिर वहि पुरानी चिंता. और ऐसे होने में किसका क्या कैसे भलाई है, उसकी का फेरिस्त देणे लगी नानीजी. नानीजी यह भी बताई की खुद की भलाई और खुद की लाइफ सिक्योर्ड बनाने के लिए अगर समाज से थोड़ा दूर जाके एक अलग दुनिया बनाके हम खुश रहे , तोह इसमें कोई बुराई नहीं है. माँ एकदम हैरत से सब सुन रही थी. जैसे की उनको बिस्वास नहीं हो रहा है की नानी जी कुछ बोल रही है. वह खुद कुछ भी बोल नहीं पा रही थी. असल में उनका मुह तक कुछ आ नहीं रहा है बोलने के लिये. अन्दर ही अंदर एक तूफ़ान मचा हुआ है. भला , बुरा , पाप, पुण्य , न्याय, निती, समाज ,संस्कार सब ने उनके मन में भीड़ कर के उनका बोलना बंध करवाया था. वह केवल नानी को देखे जा रही है. उनकी आँख धीरे धीरे नम होके गिला हो रहा है. बहुत टाइम बाद जब नानी की बात धीरे धीरे कम होने लगा तब वह नानी की आँखों में आँखें डाल के, एक स्थिर दृस्टि होकर, एक शांत और कठिन आवाज़ से पूछि
" क्या यह सब हीतेश को भी बता दिया आप लोगों ने?"
नानी अब एक माँ का प्यार और ममता भरी आवाज़ से बोली
" नहीं बेटा... यह बात तुम्हारे बूढे माँ बाप, अपनी एक लौती बेटी के अपने एक मात्र पोते के, और अपनी फॅमिली की भलाई के लिए ही सोचे है. इस में अब सब कुछ तुम्हारे डिसिशन के ऊपर डेपेंट करता है बेटा."
मा नानी को कुछ पल देख ते रही और जब आँखों से आसूं गिरने का वक़्त आगया तब मुड़के वहां से दौड़के अपने रूम में चलि गयी.
वहा क्या क्या हो रहा था. लेकिन मुझे भनक तक लगने नहीं दि. यह बात मुझे बाद में पता चली थी लेकिन एक बात में महसूस करने लगा था की घर पे कुछ तो हुआ होगा. क्यूँ की जब हर की तरह उस दिन रात में माँ को फोन किया. माँ पहले उठायी नहि. दोबारा ट्राय किया तब उठाया. और थोडी खामोश लगी. मेरे से बात कर रही थी , पर बोल तो में रहा था , उन्होंने केवल 'हमम', 'हाण', 'यक', 'ठिक है', अच्चा' ऐसे बोलने लगी .
मैन सोचा उनका मूड ऑफ होगा शायद. मैं बड़ा होने के बाद कभी भी माँ को जबरदस्ती कुछ पूछता नहीं था हमेशा वह जो बोलती थी, में सुनता था और मुझे उनकी हर ख़ुशी का ख्याल रख के जैसे बात करना है वैसे ही करता थाऐसे तीन दिन चला. ऑफिस में काम का प्रेशर था सो उस बात को में ज़ादा खीचा नहि. पर
उस फ्राइडे रात को जब में माँ को फोन किया तोह माँ उठायी नहि. मैं सच मुच सोच में पड़ गया. माँ की तबियत तो ठीक है. फिर में नानाजी को फोन लगाया. नानाजी बोलै की घर पे सब ठीक है, चिंता की कोई बात नहि. तुम कल आजाओ आराम से. मैं सुन तो लिया पर मेरे मन में लगा था की जरूर कुछ बात होगी. जो सब मुझसे छुपाना चाहते है. एक चिंता दिमाग के अंदर लेके उस वीकेंड में यानि की शनिबार शाम को अहमदाबाद पहुंचा.

दर असल में हुआ था यह की...उस दिन माँ किचन से दौर के , अपने रूम के जाके डोर लॉक कर दिया. दोपहर लंच करने भी बाहर नहीं आई. नानीजी जाकर बुलाई, दरवाज़ा खटखटायी, पर माँ खाने के लिए स्ट्रैट मना कर दि. जब रात में नाना नानी सब डिनर करके सो गए थे, उसके बाद माँ उठके किचन में गई और फ्रिज से कुछ खाना निकल के चुपचाप खाके फिर से रूम में चले गई. नाना नानी सोच में पड़गये. उनलोगों ने यह एक्सपेक्ट ही किया नहीं की सुरु में ही ऐसा रिएक्शन देखने को मिलेगा उन्को. उनलोग ने सोचा की शायद वह लोग यह एक बिलकुल गलत स्टेप लेने जा रहे थे. इस में उनकी बेटी इतनी हर्ट होगी. न जाने बेचारी को कितना दुःख पंहुचा होगा.
 
नेक्स्ट डे नानीजी खुद घर का सब काम करने लगी. माँ को बिलकुल डिस्टर्ब करना उचित नहीं होगा समझी. उनको थोड़ा टाइम अकेले छोडना सही समझा वह लोग. लंच में फिर नानीजी माँ को बुलाये पर माँ डोर खोलके बाहर नही आई. वह लोग लंच करके अपने रूम में आराम करने चले गए तो माँ किचन में आके अकेली खाना खा लिया. नाना नानी को मालूम पडता है आवाज़ से. पर वह लोग भी अब सामने आके माँ को अनवांटेड सिचुएशन में डाल ना नहीं चाहते थे. ऐसे तीन दिन कट गए अगला दिन थर्सडे था. सुबह सुबह नानीजी नास्ता बनाने जुटे हुये थी. अचानक माँ किचन में आके नानी को कहति है " में बनाती हूँ " बोलके माँ खुद काम पे लग गयी. माँ कि आवाज़ में एक ऐसी ठण्डी और कथिक तेज थी, जिससे नानीजी कुछ बोलने में साहस नहीं किया. वह चुप चाप माँ को देखि. माँ बिलकुल एक साइलेंट और फ़ीलिंगलेस फेस लेके काम करे जा रहे थी. नानीजी चुप चाप वहां से निकल गए माँ घर का काम काज करना शुरू कर दिया, पर किसीसे कोई बात नहीं हो पा रहा था. माँ अपना काम करके फिर अपनी रूम में जाके लॉक लगा के अंदर रहती थी. रात को नाना नानी सोते टाइम बोलने लगे की शायद उनलोगों की बातों से उनकी बेटी का मन में एक गहरा चोट लगी. इस लिए वह भी दुखी हो गए पर है तो वह लोग उनकी मम्मी पापा सो वह लोग खुद ही अपना किया हुआ करम , खुद ही समेटना चाहा. अगला दिन यानि की फ्राइडे के दिन सुबाह नानी खुद किचन में आके माँ से बात करने का कोशिश किया. माँ पहले मुंह से जवाब न देके, नानी जो माँगती है या करने को कहती है, वह सब चुप चाप करके एक साइलेंट जवाब दे ने लगी. नानी सोचा गम थोड़ा हल्का हो रहा है. नास्ता करके नाना नानी जब टीवी पे न्यूज़ देख रहे थे , तब वह लोग देखा की माँ पहले जैसा डाइनिंग टेबल पे आके, लेकिन अकेला बैठके नास्ता कर रही है. ऐसा सुबह का समय कट गया. जब लंच बनाने में नानी आके माँ का हाथ बटाने लगी , तब माँ बेटी में धीरे धीरे डायरेक्टली बात चित सुरु हुआ. आज माँ का आवाज़ काफी नार्मल थी. लेकिन आज उन्होंने फिर से सब का खाना होने के बाद अकेली टेबल पे बैठके खाना खाया नाना नानी दो पहर अपना रूम में रेस्ट कर रहे थे. आज उन लोगों को थोडी खुश दिखि. क्यूँ की जो परिस्थिति क्रिएट हुआ था , अब उसका काला मेघ इस घर से हट गया था. शाम के टाइम नानीजी किचन में गई माँ अकेली चुप चाप किचन स्लैब के ऊपर हाथ रख के खड़े खड़े चाय उबाल ना देख रहे थी. नानी का एंट्री से वह हिली नही जैसे कुछ सोच में है. नानी इधर उधर कुछ करके, माँ को एक टक देखती रही. और फिर माँ के पास आके स्लैब के ऊपर एक हाथ टीका के खड़ी हो गयी.
नानी चुप्पी तोड़के माँ के तरफ देख के बोली
" मंजू.........बेटा...... हर माँ बाप अपने बच्चों की ख़ुशी के बारे में सोचते है. हम शायद कुछ ज़ादा सोच लिया था........"
फिर जैसे ग़लती एक्सेप्ट करने का बॉडी पोस्चर होता है, वैसे नानी अपना सर थोड़ा झुका के , अपने दूसरी हाथ से साड़ी का आँचल मोड़ ते हुए कहि
" अपने नसीब में जो है, वहि होगा"
" आप लोग अकेले कैसे रहेंगे!!"
अचानक यह सुन के नानी झटके से अपना मुँह उठाके माँ की तरफ देखा. माँ नानी का लुक फील करती है और अपना सर थोड़ा झुका के अपनी पैरों की तरफ देखने लगी नानी को समझ ने में थोड़ा वक़्त लगा. फिर उनके होठो पे एक स्माइल खील गयी. उनकी अंख में ख़ुशी झलक उठि, धिरे से माँ के और नज़्दीक आई और माँ का चिन पकड़ के अपनी तरफ मोड़ ने की कोशिस की. माँ जैसे खड़ी थि, उनकी बॉडी का पोजीशन हिला नहीं , लेकिन उनका फेस नानी के तरफ मूड गया. उनकी आँख झुकि ही है. उन्होंने कोशिश करके भी उनके फेस पे शर्म आनी छुपा नहीं पाई नानी पूरी बात समझ गयी फिर भी प्यार से फुसफुसा के पूछि
"सच ?"
मा नानी की तरफ मुड़के उनके कंधो में अपना मुह छुपा ली. और नानी को दोनों हातो से बेडी लगाके पकड़ली. नानी हसके उनकी एक साथ माँ के पीठ के ऊपर रख के दूसरे हाथ से माँ की
बाल और पीठ सहलाने लगी एक माँ अपनी बेटी को परम ममता से प्यार कर रही है. नानी हस्ते हस्ते बोली
" अरे पगली....इस में शर्मा ने का क्या है. हम थोड़ी कोई अन्जान लोग है.....और नहीं तू किसी और के घर जा रही है...सब तो तेरा अपना हि लोग है..."
मा ने और शर्मा के नानी की छाती में मुह छूपा लीया.
 
थोडे टाइम बाद माँ किचन में चलि गयी और यहाँ तब तक यह बात फाइनल हो रही है की रिसोर्ट में जायेंगे दो दिन पहले पर शादी के दिन दोपहर को निकल जाएंगे. इस में नाना नानी दोनों का बात आधा आधा रहा. और नानाजी मेरे तरफ मुड के बोले
" तोह ऐसे ही बुकिंग ले लेते है?"
मैं जैसे ही हाँ बोलने जा रहा था तभी बीप बीप करके एसएमएस आया. मैं "हा" बोलके मोबाइल चेक करने गया और नानीजी नानाजी को पूछि की मुंबई जायेंगे तो एक साथ पर वहां से कौन कहाँ लौटेगा? मैं इन्बॉक्स में देखा माँ का एसएमएस था उन्होंने लिखा था
"मम्मी सही कह रही है. आप को देख के लगता है आप बिमार पड़ गए"
कीचन से बीच बीच में हल्का आवाज़ आरही है पराठा बनाने का. मेरे अंदर का गुस्सा धीरे धीरे पिघलने लगा और मुझे माँ को तंग करने का मन किया. मैंने रिप्लाई किया
" तोह ठीक है. मैं नानी को बता देता हु की क्यों और कैसे यह सब हुआ"
मैने सेंड बटन दबाके सुनने की कोशिश कर रहा था की माँ को एसएमएस रिसीव हुआ की नही. कोई मेसेज टोन सुनाइ नहीं दिया. शायद अभी तक गया नही. पर तुरंत मेरा मोबाइल बीप बीप करने लगा. माँ का एसएमएस उन्होंने लिखा था
" अरे नहीं नही....ऐसा मत कीजिये. आप इतने ग़ुस्से में क्यों हो?"
मैं समझ गया माँ फ़ोन साइलेंट मोड़े पे रखी है. नाना नानी को पता न चाले. मैं भी मेरे मोबाइल को साइलेंट मोड़े पे दाल दिया. मैं नाना नानी का बात सुनने की एक्टिंग करके क्यजुअली जैसे कुछ करते है मोबाइल में, वैसे ही मोबाइल में एसएमएस टाइप करते करते माँ से मेसेज के जरिये बात करने लगा. मैं लिखा
" तुम जो मेरे से इतना दूर भाग रही हो"
उनका रिप्लाई तुरंत आया
" दूर कहाँ !! मैं तो इधर ही हुँ. इतनी पास."
मैं थोड़ा सोच के टाइप किया
" नही.... मेरी बीवी को मेरे और पास चहिये."
कुछ टाइम रिप्लाई नहीं आया. पर मालूम है यह मेसेज उन्होंने पड़ लिया. मेरी उँगलियाँ मोबाइल की प्याड के उप्पर नाच रही है इस टेंशन में की वह क्या रिप्लाई देती है. पर कुछ भी रेस्पोंस नहीं आया. किचन से अभी भी आवाज़ आरहा है. अचानक मोब वाइब्रेट हुआ. देखा की उन्होंने रिप्लाई दिया.
" टाइम आने दीजिये, आप को आप की बीवी जितनी पास चाहिए मिल जाएगी"
मा ने इस तरह बात पहली बार छेड़ी है. आज तक हमेशा इस डोमेन को प्यार से अवाइड करती थी. पर आज उन्होंने उनके दिल का दरवाजा पूरा खोलके कह दिया की वह अब खुद को पूरी तरह से मेरी बीवी मानने लगी है.
येह मेसेज पड़ते ऐसा लगा की मेरे शरीर का पूरा खुन आके मेरे पेनिस में जमा हो रहा है. वह फ़टाक से एक दम खड़ा हो गया. मैं अपना एक पैर दूसरे पैर के ऊपर रखके नाना नानी के सामने मेरा ग्रोइन एरिया को दबा के कण्ट्रोल करने लगा. उनलोगों को देखते देखते बोलने का मन कर रहा था की आज ही शादी का मुहूर्त निकाल लीजिये और आज रात में ही हमारी सुहागरात हो जाए. अचानक मेरी यह भावनाएं टुटी नानाजी के सवाल से. वह मेरी तरफ देख के पुछ रहे है
" तुम क्या बोलते हो बेटा?"
मैं एक दम ब्लेंक जैसा बन गया. समझ नहीं पाया की वह क्या पुछ रहे है. क्यूँ की पिछले कुछ पलों से में उनलोगों की बात चित नहीं सुन रहा था मुझे मालूम नहीं अब किस बारे में बात हो रहा थी जो नानाजी ऐसा सवाल पुछै. मैं फिर भी सिचुएशन सम्भालनेके लिए बोला
" मैं क्या बोलूँ नानाजी. आप लोग जो अच्छा समझेंगे"
नाना को यह पता नहीं चला की में हवा में तीर छोड. वह सीरियसली बोले
" नहीं नही..ऐसी बात नही. अगर तुम को ज़ादा छुट्टी मिले तो तुम दोनों मुंबई से वापस यहाँ आसकते हो. और नहीं तो में और तुम्हारी नानी यहाँ आएंगे और तुम लोग एमपी निकल सकते हो. तुम तो वहां रहने का सब बंदोबस्त कर ही रहे होंगे. और हम भी कुछ दिन बाद एक बार वहां जाके देख के भी आएंगे."
तब में संमझा की शादी के बाद मुंबई रिसोर्ट से कौन कहाँ जायेंगे यह लेके पूछा होंगा उन्होंने. मैं बोला
" हमारे साथ आप लोग भी तो चल सकते है एमपी में?"
तब नानाजी रिप्लाई देणे में थोड़ा हिचकिचा रहे थे तो नानीजी उनसे बात पकड़ के बोली
" क्या है की बेटा.. अब से तुम दोनों को ही ज़िन्दगी में एकसाथ चलना है. सो तुम दोनों जाके अपना नया घर बसाना सुरु करो."
फिर नाना को देखके हस्ते हस्ते मेरे तरफ मूड के बोली
" और हम तो आएंगे ही. हमारे बेटी का जो घर है -- नहीं आयेंगे क्या? तुम्हारे नाना बोल रहे थे की कुछ दिन बाद आराम से टाइम लेके एक बडे घर में शिफ़्ट होजाओ. बीच बीच में हम भी जाके कुछ दिन रहके आएंगे उधर"
इस बात पे मेरे अंदर एक हल्का सा कम्पन अनुभव किया. मैं अब समझ गया की यह लोग मुझे और माँ को एमपी भेज के क्यों खुद अहमदाबाद वापस आना चाहते है. शादी के बाद मुझे और माँ को एकांत में छोडना चाहते है. नए मैरिड कपल के बीच कबाब में हड्डी नहीं बनने चाहते है. माँ के साथ मेरी शादीशुदा लाइफ सही तरह से बन जाए, इस लिए हमे अकेले छोड़ रहे है. उनको मालूम है अब उस घर पे बेड रूम एक है. अगर वह लोग वहां जायेंगे तो रात को सोने में भी प्रॉब्लम होगा. और यह भी जानते है की में एक जवान लड़का और माँ भी १८ साल से पति के प्यार के बिना गुजारे. शादी के बाद हम दोनों का एक दूसरे के लिए चाहत तो ज़ादा रेहगा ही. यह सब कारन के लिए वह लोग और कुछ बहाना बनाके हम दोनों को अकेले छोडना चाहते है. मुझे अंदर ही अंदर उनलोगों के सामने थोडी शर्म आरही थी इस मामले में और ज़ादा कुछ चर्चा नहीं हुआ. तय हुआ की शादी के दिन दोपहर को नाना नानी अहमदाबाद आजायेंगे और माँ मेरे साथ एमपी चलेंगे. और में फ्रेश होने के लिए अपने रूम में चला गया. पर मेरा मन अब एकदम रुकना नहीं चाहता है. मैं न जाने क्यों आज माँ को अपनी बाँहों में पाने के लिए बहुत उतावला हो रहा हुँ. मैं अपने रूम में जाते जाते सोचने लगा अब कैसे मेरे पास, एकदम पास, मेरे छाती के साथ एकदम मिलाके मेरी बीवी को पाके , मेरे मन को शांत करु.
 
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