मैं पूरी रफ्तार से जंगल में भाग रही थी..
गनीमत थी कि नीचे हरी घास थी वरना साड़ी पहन कर भागना मुश्किल हो जाता।
मेरे पीछे पुनीत दौड़ रहा था.. अचानक उसका हाथ मेरे ब्लाउज पर पड़ा और मेरा ब्लाउज चर्र… की आवाज के साथ फट गया।
मेरे मुंह से निकला- नहीं पुनीत, ऐसा मत करो.. मैं तुम्हारी भाभी हूं… ऐसा मत करो, मेरा रेप मत करो!
मेरे ऐसा कहते ही पुनीत का हाथ रुक गया, उसने मुझ से पूछा… क्या हुआ भाभी… अब रोक क्यों रही हो?
उसका सवाल सुनकर मैंने हल्के से उसके गाल पर चपत लगाई और कहा- तुम सच में मेरा रेप थोड़े कर रहे हो! यह तो रेप का गेम है… हम दोनों की मर्जी से हो रहा है… मैं अपना रोल कर रही हूं और तुम अपना… मैंने तुम्हें रुकने को थोड़े बोला था… जब रेप होता है तो हर औरत ऐसे ही बोलती है। तुम फिल्मों में नहीं देखते, वहां भी रेप सीन होते है लेकिन सच में कोई हीरो किसी हीरोइन से रेप नहीं करता है।
मेरी बात सुनकर पुनीत बोला- हां भाभी… ऐसा रोल पहली बार कर रहा हूं और आपकी मर्जी से कर रहा हूं इसलिये रुक गया… अगली बार ऐसा नहीं करूंगा।
दरअसल पुनीत मेरे रिश्ते का देवर था।
मेरे पति रवि पिछले दिनों दफ्तर के काम से श्रीनगर आये थे। बाद में उन्होंने मुझे भी बुला लिया था।
पूरे पंद्रह दिन का कार्यक्रम था।
यहां आकर पता चला कि पुनीत भी श्रीनगर में है इसलिये हम तीनों अपना शाम का समय एक साथ बिताने लगे थे।
एक दिन अचानक मेर पति रवि के दफ्तर से फोन आया जिसमें उन्हें दौरा रद्द कर तुरंत दिल्ली लौटने के लिये कहा गया था।
रवि ने मुझसे कहा कि वो अकेला ही जा रहा है और मैं बाद में पुनीत के साथ आ जाऊं क्योंकि इतनी जल्दी सभी के लौटने का टिकट नहीं मिल सकता था।
रवि के जाने के अगले दिन पुनीत ने मुझसे कहा- श्रीनगर के पास ही एक कैंप लगा है, जहां दो दिन सैर सपाटा किया जा सकता है।
मुझे उसकी बात सही लगी और हमने कार से कैंप तक जाने की तैयारी कर ली।
कैंप का रास्ता पांच-छः घंटे का था।
हम सुबह ही कार से निकल पड़े।
पहले दो घंटे का सफर तो अच्छा रहा, पुनीत खूब हंसी मजाक करता रहा, बाद में वो बोला- हम लोग भटक गये हैं।
हमने पास में एक व्यक्ति की मदद ली जिसे हमारी बात समझ में नहीं आई लेकिन उसने सामने की तरफ इशारा कर दिया।
सामने का रास्ता कार के लायक नहीं था लेकिन मरता क्या न करता… हम उसी रास्ते पर निकल पड़े।
लेकिन अगले तीन घंटे बाद भी हम कैंप तक नहीं पहुंच सके।
जाहिर है हम फंस चुके थे… हमारे फोन की बैटरी भी खत्म हो चुकी थी लेकिन शुक्र था कि गाड़ी में खाने पीने का काफी सामान था।
हमने रात का समय गाड़ी में ही बिताने का तय किया।
मैं कार की पिछली सीट पर लेट गई और पुनीत अगली सीट पर लेटा।
रात के समय मुझे रवि की बहुत याद आ रही थी, उसके दफ्तर वालों पर भी गुस्सा आ रहा था।
अगर वो रवि को नहीं बुलाते तो इस समय रवि मेरी चुदाई कर रहा होता।
मैंने हल्के से आगे की सीट पर देखा तो पुनीत सोया हुआ लग रहा था।
मेरे हाथ चूचियों पर चले गये, मैं उन्हें मसलने लगी।
मेरे मुंह से कराहने की आवाज निकलने लगी।
गनीमत थी कि नीचे हरी घास थी वरना साड़ी पहन कर भागना मुश्किल हो जाता।
मेरे पीछे पुनीत दौड़ रहा था.. अचानक उसका हाथ मेरे ब्लाउज पर पड़ा और मेरा ब्लाउज चर्र… की आवाज के साथ फट गया।
मेरे मुंह से निकला- नहीं पुनीत, ऐसा मत करो.. मैं तुम्हारी भाभी हूं… ऐसा मत करो, मेरा रेप मत करो!
मेरे ऐसा कहते ही पुनीत का हाथ रुक गया, उसने मुझ से पूछा… क्या हुआ भाभी… अब रोक क्यों रही हो?
उसका सवाल सुनकर मैंने हल्के से उसके गाल पर चपत लगाई और कहा- तुम सच में मेरा रेप थोड़े कर रहे हो! यह तो रेप का गेम है… हम दोनों की मर्जी से हो रहा है… मैं अपना रोल कर रही हूं और तुम अपना… मैंने तुम्हें रुकने को थोड़े बोला था… जब रेप होता है तो हर औरत ऐसे ही बोलती है। तुम फिल्मों में नहीं देखते, वहां भी रेप सीन होते है लेकिन सच में कोई हीरो किसी हीरोइन से रेप नहीं करता है।
मेरी बात सुनकर पुनीत बोला- हां भाभी… ऐसा रोल पहली बार कर रहा हूं और आपकी मर्जी से कर रहा हूं इसलिये रुक गया… अगली बार ऐसा नहीं करूंगा।
दरअसल पुनीत मेरे रिश्ते का देवर था।
मेरे पति रवि पिछले दिनों दफ्तर के काम से श्रीनगर आये थे। बाद में उन्होंने मुझे भी बुला लिया था।
पूरे पंद्रह दिन का कार्यक्रम था।
यहां आकर पता चला कि पुनीत भी श्रीनगर में है इसलिये हम तीनों अपना शाम का समय एक साथ बिताने लगे थे।
एक दिन अचानक मेर पति रवि के दफ्तर से फोन आया जिसमें उन्हें दौरा रद्द कर तुरंत दिल्ली लौटने के लिये कहा गया था।
रवि ने मुझसे कहा कि वो अकेला ही जा रहा है और मैं बाद में पुनीत के साथ आ जाऊं क्योंकि इतनी जल्दी सभी के लौटने का टिकट नहीं मिल सकता था।
रवि के जाने के अगले दिन पुनीत ने मुझसे कहा- श्रीनगर के पास ही एक कैंप लगा है, जहां दो दिन सैर सपाटा किया जा सकता है।
मुझे उसकी बात सही लगी और हमने कार से कैंप तक जाने की तैयारी कर ली।
कैंप का रास्ता पांच-छः घंटे का था।
हम सुबह ही कार से निकल पड़े।
पहले दो घंटे का सफर तो अच्छा रहा, पुनीत खूब हंसी मजाक करता रहा, बाद में वो बोला- हम लोग भटक गये हैं।
हमने पास में एक व्यक्ति की मदद ली जिसे हमारी बात समझ में नहीं आई लेकिन उसने सामने की तरफ इशारा कर दिया।
सामने का रास्ता कार के लायक नहीं था लेकिन मरता क्या न करता… हम उसी रास्ते पर निकल पड़े।
लेकिन अगले तीन घंटे बाद भी हम कैंप तक नहीं पहुंच सके।
जाहिर है हम फंस चुके थे… हमारे फोन की बैटरी भी खत्म हो चुकी थी लेकिन शुक्र था कि गाड़ी में खाने पीने का काफी सामान था।
हमने रात का समय गाड़ी में ही बिताने का तय किया।
मैं कार की पिछली सीट पर लेट गई और पुनीत अगली सीट पर लेटा।
रात के समय मुझे रवि की बहुत याद आ रही थी, उसके दफ्तर वालों पर भी गुस्सा आ रहा था।
अगर वो रवि को नहीं बुलाते तो इस समय रवि मेरी चुदाई कर रहा होता।
मैंने हल्के से आगे की सीट पर देखा तो पुनीत सोया हुआ लग रहा था।
मेरे हाथ चूचियों पर चले गये, मैं उन्हें मसलने लगी।
मेरे मुंह से कराहने की आवाज निकलने लगी।