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#1

"तेज और तेज " घोड़ो की पीठ पर चाबुक मारते हुए कोचवान के जबड़े भींचे हुए था. नवम्बर की पड़ती ठण्ड में बेशक उसने कम्बल ओढा हुआ था पर उसकी बढ़ी धडकने , माथे से टपकता पसीना बता रहा था की कोचवान घबराया हुआ था . चांदनी रात में धुंध से लिपटा हसीं चांद बेहद खूबसूरत लग रहा था . जंगल के बीच से होते हुए घोड़ागाड़ी अपनी रफ़्तार से दौड़े जा रही थी . लालटेन की रौशनी में कोचवान बार बार पीछे मुड कर देख रहा था .

"न जाने कब ख़त्म होगा ये सफ़र " कोचवान ने अपने आप से कहा . ऐसा नहीं था की इस रस्ते से वो पहले कभी नहीं गुजरा था हफ्ते में दो बार तो वो इसी रस्ते से शहर की दुरी तय करता था पर आज से पहले वो हमेशा दिन ढलने तक ही गाँव पहुँच जाता था , आज उसे देर, थोड़ी देर हो गयी थी .

असमान में चमकता चाँद और धुंध दो प्रेमियों की तरह आँख मिचोली खेल रहे थे . कोई कवी शायर होता तो उस रात और चाँद को देख कर न जाने क्या लिख देता .कोचवान ने सरसरी नजर उस बड़े से बरगद पर डाली जो इतना ऊँचा था की उसका छोर दिन में भी दिखाई नहीं देता था .

"बस थोड़ी देर की बात और है " कहते हुए उसने फिर से घोड़ो की पीठ पर चाबुक मारी. पर तभी घोड़ो ने जैसे बगावत कर दी . कोचवान को झटका सा लगा गाड़ी अचानक रुकने पर. उसने फिर से चाबुक मार कर घोड़ो को आगे बढ़ाना चाहा पर हालात जस के तस.

"अब तुमको क्या हुआ " कोचवान ने झुंझलाते हुए कहा . उसने लालटेन की रौशनी थोड़ी और तेज की तो मालूम हुआ की सामने सड़क पर एक पेड़ का लट्ठा पड़ा था .

"क्या मुसीबत है " कहते हुए कोचवान घोड़ागाड़ी से निचे उतरा और लट्ठे को परे सरकाने लगा. सर्दी के मौसम में ठण्ड से कापते उसके हाथ पूरा जोर लगा कर लट्ठे को इतना सरका देना चाहते थे की गाड़ी आगे निकल सके. उफनती सांसो को सँभालते हुए कोचवान ने अपनी पीठ लट्ठे पर ही टिका दी.

"आगे से चाहे कुछ भी हो जाये, पैसो के लालच में देर नहीं करूँगा " अपने आप से बाते करते हुए उसने घोड़ो की लगाम पकड़ी और उन्हें लट्ठे से पार करवाने लगा. वो गाड़ी पर चढ़ ही रहा था की एक आवाज ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया.

"सियार " उसके होंठो बुदबुदाये . वो तुरंत ही गाड़ी पर चढ़ा और एक बार फिर से घोड़े पूरी शक्ति से दौड़ने लगे.

"जरा तेज तेज चला साइकिल को " मैंने अपने दोस्त मंगू की पीठ पर धौल जमाते हुए कहा.

मंगू- और क्या इसे जहाज बना दू, एक तो वैसे ही ठण्ड के मारे सब कुछ जमा हुआ है ऊपर से तुमने ये जंगल वाला रास्ता ले लिया.

मैं- यार तुम लोग जंगल के नाम से इतना घबराते क्यों हो , ये कोई पहली बार ही तो नहीं है की हम इस रस्ते से गुजर रहे है . और फिर ये तेरी ही तो जिद थी न की दो चार पूरी ठूंसनी है

मंगू- वो तो स्वाद स्वाद में थोड़ी ज्यादा हो गयी भाई पर आज देर भी कुछ ज्यादा ही हो गयी .

मैं- इसीलिए तो जंगल का रास्ता लिया है घूम कर सड़क से आते तो और देर होती

दरसल मैं और मंगू एक न्योते पर थे .

इधर कोचवान सियारों की हद से आगे निकल आया था पर उसके जी को चैन नहीं था . होता भी तो कैसे पेड़ो के बीच से उस चमकती आभा ने उसका रस्ता रोक दिया था . कोचवान अपनी मंजिल भूल कर बस उस रौशनी को देख रहा था जो चांदनी में मिल कर सिंदूरी सी हो गयी थी .

"इतनी रात को जंगल में आग, देखता हूँ क्या मालूम कोई राही हो. अपनी तरफ का हुआ तो ले चलूँगा साथ " कोचवान ने नेक नियत से कहा और उस आग की तरफ चल दिया. अलाव के पास जाने पर कोचवान ने देखा की वहां पर कोई नहीं था

"कोई है " कोचवान ने आवाज दी .

"कोई है , " उसने फिर पुकारा पर जंगल में ख़ामोशी थी .

"क्या पता कोई पहले रुका हो और जाने से पहले अलाव बुझाना भूल गया हो " उसने अपने आप से कहा और वापिस मुड़ने लगा की तभी एक मधुर आवाज ने उसका ध्यान खींच लिया . वो कुछ गुनगुनाने की आवाज थी . हलकी हलकी सी वो आवाज कोचवान के सीने में उतरने लगी थी .

"ये जंगली लोग भी न इतनी रात को भी चैन नहीं मिलता इनको बताओ ये भी कोई समय हुआ गाने का " उसने अपने आप से कहा और घोड़ागाड़ी की तरफ बढ़ने लगा. एक बार फिर से गुनगुनाने की आवाज आने लगी पर इस बार वो आवाज कोचवान के बिलकुल पास से आई थी . इतना पास से की उसे न चाहते हुए भी पीछे मुड कर देखना पड़ा. और जब उसने पीछे मुड कर देखा तो वो देखता ही रह गया . उसकी आँखे बाहर आने को बेताब सी हो गयी .

चांदनी रात में खौफ के मारे कोचवान थर थर कांप रहा था . उसकी धोती मूत से सनी हुई थी . वो चीखना चाहता था , जोर जोर से कुछ कहना चाहता था पर उसकी आवाज जैसे गले में कैद होकर ही रह गयी थी .

"मंगू, साइकिल रोक जरा, " मैंने कहा

मंगू- अब तो सीधा घर ही रुकेगी ये

मैं- रोक यार मुताई लगी है

मंगू ने साइकिल रोकी मैं वही खड़ा होकर मूतने लगा. की अचानक से मेरे कानो में हिनहिनाने की आवाजे पड़ी.

मैं- मंगू, घोड़ो की आवाज आ रही है

मंगू- जंगल में जानवर की आवाज नहीं आएगी तो क्या किसी बैंड बाजे की आवाज आएगी .

मैं- देखते है जरा

मंगू- न भाई , मैं सीधा रास्ता नहीं छोड़ने वाला वैसे भी देर बहुत हो रही है .

मैं- अरे आ न जब देखो फट्टू बना रहता है .

मंगू ने साइकिल को वही पर खड़ा किया और हम दोनों उस तरफ चल दिए जहाँ से वो आवाज आ रही थी . हम जब गाड़ी के पास पहुचे तो एक पल को तो हम भी घबरा से ही गए. सड़क के बीचो बीच घोड़ागाड़ी खड़ी थी . पर कोचवान नहीं

तभी मंगू ने उस जलते अलाव की तरफ इशारा किया

मैं- लगता है कोचवान उधर है , इतनी सर्दी में भी इसको घर जाने की जगह जंगल में बैठ कर दारू पीनी है.

मंगू- माँ चुदाये , अपने को क्या मतलब भाई वैसे ही देर हो रही है चल चलते है

मैं- हाँ तूने सही कहा अपने को क्या मतलब

मैं और मंगू साइकिल की तरफ जाने को मुड़े ही थे की ठीक तभी पीछे से कोई भागते हुए आया और मंगू से लिपट गया .

"आईईईईईईईईईईईइ "जंगल में मंगू की चीख गूँज पड़ी.............
 
#2

मंगू इतनी जोर से चीखा था की एक पल के लिए मेरी भी फट गयी . मैंने तुरंत उस आदमी को मंगू के ऊपर से हटाया तो मालूम हुआ की वो हमारे गाँव का ही हरिया कोचवान था .

"रे बहनचोद हरिया , गांड ही मार ली थी तूने तो मेरी " अपनी सांसो को दुरुस्त करते हुए मंगू ने हरिया को गाली दी .

पर हरिया को कोई फर्क नहीं पड़ा. वो अपने हाथो से हमें इशारा कर रहा था .

मैं- हरिया क्या चुतियापा मचाये हुए है तू मुह से बोल कुछ

पर कोचवान अपने हाथो को हिला हिला कर अजीबो गरीब इशारे कर रहा था . तभी मेरी नजर हरिया उंगलियों पर पड़ी जो टूट कर विपरीत दिशाओ में घूमी हुई थी ,अब मेरी गांड फटी . कुछ तो हुआ था कोचवान के साथ जो वो हमें समझाने की कोशिश कर रहा था .

"बैठ " मैंने उसे शांत करने की कोशिश की , उसकी घबराहट कम होती तभी तो वो कुछ बताता हमें.

मंगू- भाई इसका शरीर पीला पड़ता जा रहा है

मैं- मंगू इसे तुरंत वैध जी के पास ले जाते है

मंगू- हाँ भाई

मैंने और मंगू ने हरिया को गाड़ी में पटका . अपनी साइकिल लादी और करीब आधे घंटे बाद उसे गाँव में ले आये. रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी पर हमें भला कहाँ चैन मिलता . ये कोचवान जो पल्ले पड़ गया था .

"बैध जी बैध जी " मंगू गला फाड़े चिल्ला रहा था पर मजाल क्या उस रात कोई अपने गरम बिस्तरों से उठ कर दरवाजा खोल दे. जब कई देर तक इंतज़ार करने के बाद भी बैध का दरवाजा नहीं खुला तो मैंने एक पत्थर उठा कर उसकी खिड़की पर दे मारा .

"कौन है कौन है " चिल्लाते हुए बैध ने दरवाजा खोला .

"तुम , तुम दोनों इस वक्त यहाँ पर क्या कर रहे हो और मेरी खिड़की का कांच क्यों तोडा तुमने, क्या चोरी करने आये हो ." बैध ने अपना चस्मा पकड़ते हुए कहा

मैं- आँखों को खोल कर देखो बैध जी

बैध ने चश्मा लगाया और मुझे देखते हुए बोला- अरे बेटा तुम इतनी रात को , सब राजी तो है न

तब तक मंगू हरिया को उतार कर ला चूका था .

मैं- ये हमें जंगल में मिला.

जल्दी ही हम वैध जी के घर में वैध को हरिया की पड़ताल करते हुए देख रहे थे .

मैं- मार पीट के निशान है क्या

वैध- नहीं बिलकुल नहीं

मैं- तो इसकी उंगलिया कैसे मुड़ी और ये बोल क्यों नहीं पा रहा

वैध- जीभ तालू से चिपक गयी है .

मैं- हुआ क्या है इसे

वैध- समझ नही आ रहा

मंगू- तो क्या घंटा के बैध हो तुम

वैध- कुंवर, तुम्हारी वजह से मैं इसे बर्दाश्त कर रहा हूँ वर्ना इसके चूतडो पर लात मारके भगा देता इसे.

मैं- माफ़ करो वैध जी, इसे भी हरिया की फ़िक्र है इसलिए ऐसा बोल गया . पर वैध जी आप तो हर बीमारी के ज्ञाता हो , न जाने कितने लोगो की बीमारी ठीक की है आपने , आप ही इसका मर्म नहीं पकड़ पा रहे तो क्या होगा इसका.

वैध - फ़िलहाल इसे कुछ औषधि दे देता हूँ किसी तरह रात कट जाये फिर सुबह देखते है

मंगू- चल भाई घर चलते है

मैं- इस घोडा गाड़ी का क्या करे , हरिया के घर इस समय छोड़ेंगे तो उसके परिवार को बताना पड़ेगा वो लोग परेशां हो जायेंगे

मंगू- परेशां तो कल भी हो जाना ही है

मैं- कम से कम रात को तो चैन से सो लेंगे.

घोड़ो की व्यवस्था करने के बाद मैंने मंगू को उसके घर छोड़ा और फिर दबे पाँव अपने चोबारे में घुस ही रहा था की .....

"आ गए बरखुरदार "

मैंने पलट कर देखा भाभी खड़ी थी .

मैं- आप सोये नहीं अभी तक .

भाभी- जिस घर के लड़के देर रात तक घर से बाहर रहे वहां पर जिम्मेदार लोगो को भला नींद कैसे आ सकती है

मैं- क्या भाभी आप भी

भाभी- इतनी रात तक बाहर रहना ठीक नहीं है , रातो को दो तरह के लोग ही बाहर घूमते है एक तो चोर दूसरा आशिक

मैं- यकीन मानिये भाभी , मैं उन दोनों में से कोई भी नहीं हूँ . सो जाइये रात बहुत हुई. कोई आपको ऐसे जागते देखेगा तो हैरान होगा.

भाभी- अच्छा जी, रातो को बाहर घुमो तुम और हैरानी हमसे वाह जी वाह

मैं बस मुस्कुरा दिया और चोबारे में घुस गया . गर्म लिहाफ ओढ़े हुए मैं बस हरिया कोचवान के बारे में सोचता रहा .

सुबह जब आँख खुली तो सर में हल्का हल्का दर्द था , निचे आया तो देखा की भैया कुर्सी पर बैठे थे . मैंने उनको परनाम किया और हाथ मुह धोने लगा .

भैया- कुंवर तुमसे कुछ बात करनी थी

मैं - जी भैया

भैया- हमने तुमसे कहा था की छोटी मोटी जिमीदारिया निभाना सीखो . कल तुम फिर से न जाने कहाँ गायब थे , चाची के खेत बिना पानी के रह गए. तुमसे कहा था की वो काम तुमको करना है . फसल बर्बाद होगी तो नुकसान होगा.

मैं- भैया, आज रात पानी दे दूंगा आइन्दा से आपको शिकायत नहीं होगी.

तभी भाभी चाय के कप लिए हुए हमारी तरफ आई

भाभी- मजदूरो को क्यों नहीं भेज देते , वैसे भी मजदुर खेतो पर काम करते तो हैं

भैया- तुम्हारे लाड ने ही इसे इतना बिगाड़ दिया है की ये हमारी भी नहीं सुनता. इसे भी अपनी जमीन से उतना ही प्यार होना चाहिए जितना हमें है . माना की ये सब इसका ही है पर हमारा ये मानना है की पसीने का दाम चुकाए बिना कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता .

मैंने भाभी के हाथ से चाय का कप लिया और घूँट भरी. कड़क ठंडी की सुबह में गजब करार आ गया . भाभी मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा पड़ी.

हम बात कर ही रहे थे की तभी वैध जी का आना हुआ

वैध- मुझे तुमसे कुछ जरुरी बात करनी है

मैं- कहिये

वैध- तुमसे नहीं कुंवर, बड़े साहब से .

सुबह सुबह मेरा दिमाग घूम गया कायदे से वैध को मुझे हरिया के बारे में बताना चाहिए था पर वो भैया से कोई बात करने आया था . उत्सुकता से मैंने अपने कान लगा दिए पर भैया उसे लेकर घर से बाहर चले गए. मैं उनके पीछे पीछे दरवाजे पर पहुंचा ही था की तभी धाड़ से मैं टकरा गया . "हाय राम " दर्द से मैं बोला . अपने आप को सँभालते हुए मैं जब तक उठा वो दोनों भैया की गाड़ी में बैठ कर जा चुके थे ... पर कहाँ ...........
 
#3

"हाय रे , तोड़ दी मेरी कमरिया आज तो ऊपर से देखो नालायक कैसे खड़ा है , मुझे तो उठा जरा " चाची ने कराहते हुए कहा तो मेरा ध्यान गया की मैं चाची से टकरा गया था . चाची का लहंगा घुटनों तक उठ गया था जिस से सुबह की रौशनी में उनकी दुधिया जांघे चमक उठी थी . पांवो में पिंडियो पर मोटे चांदी के कड़े क्या खूब सज रहे थे . मैंने देखा की चाची के सीने से शाल हट गया था तंग चोली में से बाहर निकलने को बेताब चाची की चुचियो पर मेरी नजर पड़ी तो उठ नहीं पायी.

"रे हरामखोर मैं इधर पड़ी हूँ और तुझे परवाह ही नहीं है एक बार मुझे खड़ी कर जरा हाय रे मेरी कमर . हाथ दे जरा " चाची ने फिर से कहा तो मैं होश में आया .

मैंने सहारा देकर चाची को खड़ी किया चाची ने एक धौल मेरी पीठ पर मारी .

चाची- जब देखो अफरा तफरी में रहता है , किसी दिन एक आधे की जान जरुर लेगा तू

मैं- चाची तुम को तो देख लेना चाहिए था न

चाची- हाँ गलती तो मेरी ही हैं न .

मैं- मेरी प्यारी चाची , तुम्हारी गलती कैसे हो सकती है . मैं आगे से ध्यान रखूँगा अभी गुस्सा न करो. इतने खूबसूरत चेहरे पर गुस्से की लाली अच्छी नहीं लगती .

मैंने चाची को मस्का मारा तो चाची हंस पड़ी .

चाची- बाते बनाना कोई तुझसे सीखे . दो दिन से कहा गायब था तू .

मैं- बस यूँ ही

चाची- कोई न बच्चू ये दिन है तेरे

मैं- चाची मैं बाद में मिलता हूँ आपसे

मैं सीधा मंगू के घर गया और दरवाजे पर ही उसकी बहन चंपा मिल गयी .

मैं- मंगू कहा है

चंपा- जब देखो मंगू, मंगू करते रहते हो इस घर में और कोई भी रहता है

मैं- तुझसे कितनी बार कहा है की मेरे साथ ये बाते मत किया कर .

चंपा- तो कैसी बाते करू तुम ही बताओ फिर.

मैं- चंपा. मंगू कहा है

चंपा- अन्दर है मिल लो

मैं सीधा मंगू के कमरे में गया पर वो वहां नहीं था मैं पलट ही रहा था की तभी चंपा आकर मुझसे लिपट गयी. तो ये इसकी चाल थी मंगू घर पर था ही नहीं . मैंने झटके से उसे दूर किया

मैं- चंपा हम दोनों को अपनी अपनी हदों में रहना चाहिए. आखिर तू समझती क्यों नहीं .

चंपा- आधा गाँव मेरी जवानी पर फ़िदा है पर मैं तुझ पर फ़िदा हूँ और तू है की मेरी तरफ देखता भी नहीं . ये मेरे रसीले होंठ तड़प रहे है की कब तू इनका रस निचोड़ ले. ये मेरा हुस्न बेताब है तेरे आगोश में पिघलने को .

मैं- खुद पर काबू रख , थोड़े दिन में तेरा ब्याह हो ही जायेगा फिर अपने पति को जी भर कर इस जवानी का रस पिलाना

चंपा- तू बस एक बार कह अभी तुझे अपना पति मान कर सब कुछ अर्पण कर दूंगी.

चंपा मेरे पास आई और मेरे गालो को चूम लिया .

मैं- तू समझती क्यों नहीं . मंगू भाई जैसा है मेरा. मैं तुझे हमेशा पवित्र नजरो से देखता हूँ . तेरे साथ सोकर मंगू की पीठ में छुरा मारा तो दोस्ती बदनाम होगी. मैं तेरी बहुत इज्जत करता हूँ चंपा क्योंकि तेरा मन साफ़ है पर तू मुझे मजबूर मत कर .

चंपा- और मेरे मन का क्या . इस दिल का क्या कसूर है जो ये तेरे लिए ही पागल है .

मैं-दिल तो पागल ही होता है .तू तो पागल मत बन . जल्दी ही तेरा ब्याह होगा , हंसी-खुशी तेरी डोली उठेगी. एक बार तेरा घर बस जायेगा तो फिर ये सब बेमानी तेरा पति तुझे इतना सुख देगा की तू सुख की बारिश में भीग जाएगी. मैं जानता हूँ की तेरे मन में ये हवस नहीं है वर्ना गाँव में और भी लड़के है . इसलिए ही तेरा इतना मान है मुझे .

मैंने चंपा के माथे को चूमा और उसे गले से लगा लिया.

मैं- अब तो बता दे कहा है मंगू

चंपा- खेत में गया है माँ बाबा संग.

खेत में जाने से पहले मैं वैध जी के घर गया हरिया को देखने . उसकी हालत में कोई खास सुधार नहीं था , बदन पीला पड़ा था जिससे की खून की कमी हो गई हो उसे. बार बार गर्दन को झटक रहा था , हाथो से अजीब अजीब इशारे कर रहा था .मैंने हरिया के परिवार वालो को देखा जो बस रोये जा रहे थे उसकी हालत को देख कर.

मैं- वैध जी क्या लगता है आपको

वैध- शहर में बड़े डॉक्टर को दिखाना चाहिए , खून की कमी लगातार हो रही है , आँखे तक पीली पड़ गयी है.

मैं- तो देर किस बात की ले चलते है इसे शहर

वैध- इसके परिवार के पास इतने पैसे नहीं है

मैं- तो क्या पैसो के पीछे इसे मरने देंगे. आप इसे लेकर अभी के अभी शहर पहुँचिये . मैं पैसे लेकर आता हूँ .

मैंने घर जाकर भाभी को बताया की हरिया को एडमिट करवाना है और पैसे चाहिए . भाभी ने तुरंत मेरी मदद की. शाम तक मैं और मंगू शहर के हॉस्पिटल में पहुँच गए. मालूम हुआ की हरिया को खून चढ़ाया गया है . बुखार भी थोडा काबू में है . पर बड़े डॉक्टर भी बता नहीं पा रहे थे की उसे हुआ क्या है .

चाय की टापरी पर बैठे हुए मैं गहरी सोच में डूबा था .

मैं- यार मंगू, जंगल में क्या हुआ इसके साथ . अगर किसी ने लूट खसूट की होती तो घोड़े भी ले जाता . बहनचोद मामला समझ नहीं आ रहा .

मंगू- भूत-प्रेत देख लिया हो हरिया ने शायद

मैं मंगू की बात को झुठला नहीं सकता था बचपन से हम सुनते आये थे की जंगल में ये है वो है एक तय समय के बाद गाँव वाले जंगल की तरफ रुख करते भी नहीं थे.

मंगू- देख भाई, अपन इसके लिए जितना कर रहे है कोई नहीं करता. ये तो इसकी किस्मत थी की हम को मिला ये वर्ना क्या मालूम इसकी लाश ही मिलती

मैं- यही तो बात है की ये हम को मिला मंगू. अब इसको बचाने की जिम्मेदारी अपनी है

तभी मुझे जिम्मेदारी से याद आया की आज रात चाची के साथ खेतो पर जाना है

मैं- मंगू साइकिल उठा , अभी वापिस चलना होगा हमें

मैं हरिया की पत्नी से मिलकर आया उसे आश्वश्त किया की हम आते रहेंगे उसे कुछ पैसे दिए और फिर सांझ ढलते गाँव के लिए चल पड़े. गाँव हमारा कोई बारह कोस पड़ता है शहर से. और सर्दी के मौसम में अँधेरा तो पूछो ही मत कब हो जाता है फिर भी हम दोनों चल दिए.

सीटी बजाते हुए, गाने गाते हुए हम अपनी मस्ती में चले जा रहे थे पर हमें कहाँ मालूम था की मंजिल कितनी दूर है ............
 
#4

वापसी में मैं जंगल में रुक कर उस जगह की छानबीन करना चाहता था पर मंगू साथ था तो ये विचार त्याग दिया और घर आ गया .मैंने जल्दी से कपडे बदले और बाहर जा ही रहा था की भाभी की आवाज ने मेरे कदम रोक लिए.

भाभी- खाना खाए बिना ही जा रहे हो .

मैं- देर हो रही है भाभी , आज खेतो पर नहीं गया तो भैया की डांट खानी पड़ेगी.

भाभी- इसलिए कह रही हूँ की खाना खाकर जाओ. डांट से भला पेट थोड़ी भरता है .

भाभी ने खाना परोसा और मेरे सामने ही बैठ गयी.

भाभी- कुछ परेशान लगते हो

मैं- नहीं भाभी सब ठीक है

मैंने निवाला मुह में डालते हुए कहा . भाभी की नजरे मेरे चेहरे पर ही जमी थी .

मैं- अब यूँ न देखो सरकार

भाभी- तुम भी हमसे न छिपाओ दिल के राज

मैं- सब्जी अच्छी बनी है आज

भाभी- खाना तो रोज ही ऐसा बनता है , तुम बात न बदलो

मैं- कोई बात हो तो बताओ

इस से पहले की भाभी कुछ और कहती चाची अन्दर आ गयी .

भाभी- चाची आपको भी खाना परोस दू

चाची- नहीं बहुरानी, मैंने शाम को ही खा लिया था अब भूख नहीं है . वैसे मुझे उम्मीद नहीं थी की ये समय पर मिल जायेगा.

मैं- क्या चाची . आप भी ऐसा कह रही हो

चाची- जल्दी से खाना खा ले. खेतो पर समय से पहुँच जाए तो ठीक रहेगा.

खाने के बाद मैंने गर्म कम्बल लपेटा और अपनी साइकिल उठा ली .

चाची- न बाबा न बिलकुल नहीं मैं इस पर नै बैठूंगी पिछली बार तूने मुझे गिरा दिया कितने दिन कमर में दर्द रहा था .

भाभी- गाड़ी ले जाओ देवर जी .

मैं- अपने लिए तो यही ठीक है भाभी , और चाची वो मेरी गलती से नहीं गिरी थी तुम, इतनी मोटी जो हो गयी हो मेरा क्या दोष है .

मेरी बात सुन कर भाभी हंस पड़ी .

चाची- अच्छा बच्चू, मैं तुझे मोटी लगती हूँ , इधर आ अभी बताती हूँ तुझे.

चाची ने मेरा कान खींचा. भाभी हंसती रही .

मैं- माफ़ करो चाची , और जल्दी से आओ देर हो रही है .

भाभी ने मुझे थर्मस और बैटरी दी . घर से बाहर आते हुए हम गली में मुड गए.

मैं- चाची, तुम कहाँ मेरे साथ ठण्ड में मरोगी यही रुक जाओ पानी ही तो देना है मैं दे देता हूँ .

चाची- अरे नहीं कुंवर, काम करना जरुरी है बेशक तुम सब हमेशा मेरे लिए खड़े हो पर मेरा भी कुछ फ़र्ज़ है और इसी बहाने काम में मन भी लगा रहेगा.

"आराम से बैठना " मैंने बस इतना ही कहा

चाची के बैठने के बाद मैंने साइकिल खेतो की तरफ मोड़ दी. करीब आधा घंटा तो आराम से लग जाना ही था . मेरे दिमाग में बस हरिया ही घूम रहा था .

चाची- क्या बात है गुमसुम क्यों हो क्या हुआ है

मैं- नहीं तो चाची , ऐसी कोई बात नहीं

कुछ देर बाद गाँव पीछे रह गया . कच्ची सड़क पर झुंडो के बीच से होते हुए साइकिल चली जा रही थी . ठण्ड के मारे कभी कभी चाची मेरी पीठ को सहला देती तो बड़ी राहत मिलती . ऐसे ही हम खेतो पर पहुँच गए . मैंने साइकिल रोकी , थोड़ी दूर हमें पगडण्डी से होते हुए पैदल ही जाना था .

मैंने फटाफट से कमरा खोला . गर्मी का अहसास मेरे रोम रोम में उतर गया पर कुछ पल के लिए ही. मैंने जूते उतारे और पानी की मोटर को चालु कर दिया .

मैं- चाची तुम यही रुको . ठण्ड जयादा है

चाची - नहीं मैं भी साथ चलूंगी.

मैंने बाहर आकर लाइन बदली और खेतो में पानी छोड़ दिया सरसों की फसल में ये हमारा पहला पानी था तो पूरा लबालब करना था . ठण्ड में हाड जमा देने वाला बर्फीला पानी जब बदन पैरो पर गिरा तो कसम से जान निकली ही समझो. चाची ने अपने लहंगे को थोडा ऊँचा कर लिया जिस से उसके मांसल घुटने दिखने लगे.

घंटे भर में हमने पाला भर दिया था . लाइन बदली अभी इस तरफ पानी भरने में समय लग्न था तो मैंने कहा- थोड़ी देर आराम करते है चाची ,

चाची ने भी हां कहा और हम कुवे पर बने कमरे की तरफ चल दिए. पगडण्डी पर चलते हुए चाची के नितम्ब बड़े मादक लग रहे थे. उपर से ठण्ड का जबर मौसम .

बेशक मेरे मन में चाची के प्रति अगाध सम्मान था पर कभी कभी मैं सोचता था की मेरे नसीब में कहीं चाची के हुस्न का प्यार तो नहीं लिखा. चाची का हमेशा से ही मेरे प्रति गहरा लगाव रहा था , मुझसे खूब हंसी-मजाक करती थी कभी कभी तो वो खुल कर दोहरी बाते भी कहती थी . मैं अपनी सीमाए जानता था पर मेरे कच्छे में सर उठाता वो हथियार कहाँ इतनी समझ रखता था .

चाची- तू चल अन्दर मैं अभी आई .

मैं- कोई काम है तो मैं कर देता हूँ

चाची- ये काम मुझे ही करना होगा

मैं- कहो तो सही मुझसे

चाची- अरे पेशाब करने जा रही हूँ

चाची की हंसी मेरे दिल पर लगी .

मैंने अलाव सुलगाया और बैठ गया . कुछ देर बाद वो आई और हम चाय की चुस्किया लेने लगे.

तपती आंच में बाला की खूबसूरत लग रही थी वो .

चाची- वो हरिया को क्या हुआ है

मैं- तुम्हे किसने बताया हरिया के बारे में

चाची- मंगू की माँ मिली थी वो ही कह रही थी

मैं- शायद किसी जानवर ने काट लिया उसे

चाची- बेटा रात बेरात तुम भी मत घुमा करो, जंगल खतरनाक है . मेरा दिल घबरा गया था कहीं वो जानवर हरिया की जगह तुम पर हमला कर देता तो क्या होता.

मैं- मुझे भला क्या होगा चाची.

मैं चाची से कुछ पूछना चाहता था पर फिर नहीं पूछा. चाय पीने के बाद हम फिर से पाले को देखने लगे. ठण्ड में नंगे पाँव गीली मिटटी और ठन्डे पानी ने मेरी ले रखी थी ऐसा ही हाल चाची का था .

"आज रात में तो काम पूरा नहीं हो पायेगा." मैंने कहा

चाची- कल फिर आना पड़ेगा फिर तो क्योंकि इधर बिजली दिन में नहीं आती .

बिजली का जैसे ही जिक्र हुआ बिजली चली गयी .

मैं- हो गया सत्यानाश

अब करने को और कुछ था नहीं . हाथ पैर धोने के बाद चाची अपनी रजाई में घुस चुकी थी. मैंने अलाव की आंच थोड़ी सी तेज की और मूतने चला गया. ठंडी में गर्म मूत की धारा अभी बड़ा सुख दे रही थी पर तभी वो हुआ जो न जाने क्यों किसलिए हुआ.

"aahhhhhhhhhhhh " मैं बस चीखते हुए धरती पर गिर पड़ा.
 
कुंवर, जोकि इस कहानी का नायक है, अभी तक कहानी को पढ़कर यही प्रतीत हुआ है कि वो अच्छे चरित्र और संस्कारों का धनी है। हरिया को वैद के पास लेकर जाना, उसके उपरांत हरिया के ही इलाज हेतु शहर के अस्पताल का खर्चा उठाना, उसकी बीवी को सांत्वना देना और सबसे बड़ी चीज़, चम्पा के साथ हुई घटना... इन सभी से एक ही निष्कर्ष निकलता है कि कुंवर दयालु स्वभाव का धारक है और साथ ही रिश्तों का मोल और उनकी कद्र करना भी जानता है।

प्रतीत होता है कि कुंवर और उसका बड़ा भाई, गांव के कर्ता - धर्ता हैं, और इसीलिए गांव में कुंवर की इतनी इज्ज़त है। शायद दोनों के माता पिता की मृत्यु हो चुकी है और कुंवर की भाभी शायद उसे अपनी संतान को ही भांति प्रेम और दुलार करती है। कम से कम, अभी तक तो ऐसा ही लगा है। वहीं, इनके परिवार की एक और सदस्य, अर्थात चाची, क्या वो कुंवर और उसके भाई की सगी चाची है या जिस प्रकार गांवों में वसुदेव कुटुम्बकम की रीत है, उसी के अनुसार सगी ना होकर भी सही है..? चाचा, क्या वो जीवित हैं या फिर...

मंगू, जोकि कुंवर का घनिष्ठ मित्र प्रतीत हो रहा है, उसकी बहन चम्पा के विचार कुंवर के लिए सामान्य नहीं हैं। लगता तो यही है कि वो कुंवर से प्रेम करती है, या फिर ये मात्र आकर्षण है, अभी कह नहीं सकते। परंतु, उसके खुले आमंत्रण के बावजूद कुंवर का अपनी सीमा ना लांघना और अपनी मित्रता की लाज रखना, सत्य में दिल को छू गया। लेकिन, क्या चम्पा कुंवर की बात मानकर अपनी शादी खुशी - खुशी कर विदा हो जाएगी? या फिर उसके प्रयास जारी रहेंगे? मंगू, यदि उसे इस सबकी भनक भी लगी तो वो किसे दोषी समझेगा?

चाची संग खेतों में पानी देते हुए कुंवर के भीतर चल रहे विचार इसी ओर संकेत करते हैं कि चाची के प्रति और उनकी सुंदरता के प्रति वो आकर्षित हो चुका है। जोकि कहीं न कहीं, उसकी उम्र में सामान्य भी है, परंतु तब तक, जब तक वो अपनी सीमा ना लांघे और अपनी और चाची की मर्यादा का सम्मान करे। वैद का सुबह - सवेरे आकर कुंवर के बड़े भाई को अपने साथ ले जाना भी प्रश्नों को उत्पन्न करता है। क्या राज है उस जंगल का? किसी प्रेत का साया है या फिर चोर - डाकुओं का भय? हो ना हो, जंगल में हुई घटना ही इस कहानी का सार बनने वाली है।

हरिया की हालत भी सवालों को जन्म देती है, उसने ऐसा क्या देख लिया जो डर के मारे उसकी धोती तक गीली हो गई। एक बार को मान लिया जाए कि जिस चीज़ के कारण वो डरा, वो केवल उसका भ्रम हो, परंतु उसके शरीर में खून की कमी हो जाना, इसका तार्किक कारण अभी समझना कठिन है। क्योंकि, वैद ने किसी ज़ख्म या घाव का ज़िक्र भी नही किया तो ये घटना और भी रहस्यमयी हो जाती है। मुझे लगता है कि एक बार तो जरूर, कुंवर उस जगह की छान बीन करेगा ही, अब कुछ प्राप्त होगा या नहीं वहां से, ये उसकी तकदीर।

तीनों ही भाग बेहद खूबसूरत थे भाई। निश्चित ही गांव - देहात की कहानियां खूबसूरती की पराकाष्ठा होती हैं, और जब उन्हें इतनी दक्षता से लिखा जाए, तो पाठकों का आनंदित होना स्वाभाविक है। रहस्य और रोमांच का ये संगम कहानी को कहां ले जाता है, देखना रोचक होगा।

अगली कड़ी की प्रतीक्षा में...
 
#5

दोनों जांघो के बीच हथेलियों को दबाये मैं जमीन पर पड़ा था . जिस्म जैसे सुन्न सा हो गया था . इतना तेज दर्द मुझे आज से पहले कभी नहीं हुआ था . मेरी चीख सुन कर चाची दौड़ते हुए मेरे पास आई.

"क्या हुआ " चाची ने घबराते हुए पूछा

मैंने चाची को मुझे उठाने का इशारा किया . चाची मुझे कमरे के अन्दर ले आई. मेरे हाथ अब तक जांघो के बीच दबे थे .

"क्या, क्या हुआ " चाची ने फिर पूछा

मैं- मूत रहा था की तभी ऐसा लगा की किसी ने काट लिया

ये सुनकर चाची के चेहरे पर पसीने टपक पड़े.

चाची ने मेरे हाथ हटाये और बैटरी की रौशनी में देखने लगी. मुझे बड़ी शर्म आ रही थी पर मैं और करता भी तो क्या चाची ने मेरी खुली पतलून को निचे सरकाया और मेरे लिंग को अपने हाथ में ले लिया. पहली बार किसी औरत ने उसे पकड़ा था , हालात चाहे जो भी थे पर मेरे बदन में सिरहन दौड़ गयी .

चाची के गाल लाल हो गये थे . उन्होंने ऊपर से निचे तक अच्छी तरह से लिंग का अवलोकन किया और बोली- निशान तो है , हे राम, कही सांप ने तो नहीं काट लिया

चाची की बात सुनकर मेरी गांड फट गयी . सांप को भी ये ही जगह मिली थी , क्या वो जहरीला था , जहर सुन कर मैं कांपने लगा.

मैं- चाची क्या मैं मरने वाला हूँ .

चाची - कोई कीड़ा,-मकोड़ा भी हो सकता है नाजुक जगह है इसलिए तकलीफ जायदा है

चाची धीरे धीरे मेरे लिंग को सहला रही थी जिस से मुझे थोडा आराम तो मिला पर जलन उतनी ही थी . दूसरी बात ये थी की औरत के स्पर्श से वो हल्का हल्का उत्तेजित होने लगा था . हम दोनों के लिए ये बड़ी विचित्र स्तिथि थी . तभी चाची ने बैटरी बंद कर दी . शायद ये ही सही था .

कमरे में हम दोनों की भारी सांसे गूँज रही थी .

"कैसा लग रहा है " चाची ने मेरे अन्डकोशो पर उंगलिया फेरते हुए कहा

मैं- अच्छा

चाची- कब तक ऐसे ही खड़े रहेंगे एक काम कर मेरे पास ही आजा

चाची ने मुझे अपने बिस्तर पर साथ ले लिया और रजाई ओढ़ ली. चाची के सहलाने से मुझे आराम तो मिल रहा था पर मेरे दिल में सांप वाली बात भी थी .

मैं- सच में सांप ने काट लिया होगा तो

चाची- पागल है क्या तू वो पैरो पर काटता , फिर भी तुझे ऐसा लगता है तो थोड़ी देर देख लेते है लक्षण दिखे तो तुरंत वैध जी के पास चल देंगे पर मुझे लगता है ऐसी नौबत नहीं आयेगी.

मैं- यकीन है आपको

चाची- मुझे नहीं तेरे इसको यकीन है देख कैसे तन गया है .

शुक्र है चाची ने ये बात अँधेरे में बोली थी वर्ना मैं तो पानी पानी ही हो जाता .

मैं- माफ़ी चाहूँगा चाची , मेरी वजह से आपको ये सब करना पड़ा . न जाने कैसे मिलेगी मुझे ये माफ़ी

चाची- तू मेरे लिए सबसे बढ़कर है . बस इतना ध्यान रहे ये किसी से जिक्र मत करना .

चूँकि चाची मुझसे द्विअर्थी बाते करती थी तो थोडा सहज लग रहा था वैसे मैं खुश भी था की इतनी मादक औरत मेरे लंड से खेल रही थी . पर मैं ये नहीं जानता था की इस हरकत ने चाची की टांगो के बीच में भी हलचल मचा दी थी . .

चाची का सर मेरे मुह के पास हो गया था , चाची की गर्म सांसे मेरे कानो पर पड़ रही थी .

मैं- चाची मैं अपने बिस्तर पर जाता हूँ

चाची- यहाँ कोई परेशानी है

मैं- छोटी चारपाई पर आपको मेरी वजह से परेशां होना पड़ रहा है

चाची- क्या मैंने कहा तुझसे ऐसा

चाची थोड़ी सी टेढ़ी हुई जिस से अब उसके होंठ मेरे गालों के पास आ गए थे . चाची ने बाहं आगे करके मुझे अपने से चिपका लिया . ठण्ड के इस मौसम में उस कमरे में मुझे ऐसी गर्मी मिली की फिर सुबह ही मेरी आँख खुली.

मैंने सबसे पहले मेरे लिंग को देखा जो सूज कर किसी खीरे जैसा हो गया था . उस पर जो नीली नसे उभर आई थी मेरे मन में पका शक हो गया था की कोई जहरीला तत्व ही रहा होगा. खैर मैं बाहर आया तो देखा की चाची नहीं थी. मैं थोड़ी देर अलाव के पास ही बैठा रहा. थोड़ी देर में चाची आ गयी .

अलसाई भोर में ओस से भीगी किसी फूल सी लग रही थी वो .

"ठीक हो " चाची ने पूछा

मैंने हाँ में गर्दन हिला दी जबकि मेरी फटी पड़ी थी की ये क्या हो गया . घर आने के बाद मैं सोचता रहा की वैध को दिखाने जाऊ या नहीं. सूज कर वो इतना फूल गया था की कच्छे में उसका उभार छिपाए नहीं छिप रहा था .दोपहर में भैया ने मुझे बुलाया

भैया- सुनो, कुछ लोगो ने समय से अपना कर्जा वापिस नहीं किया है . मुझे किसी जरुरी काम से शहर जाना है तो तो तुम आज ही उनके पास जाना और बकाया ले आना

मैं- भैया मेरे बस का नहीं है ये सब करना

भैया- आज नहीं तो कल जिम्मेदारी संभालनी पड़ेगी न , थोडा थोडा काम सीखेगा

मैं- जो लोग हमसे पैसे लेते है कभी वो मज़बूरी के तहत समय पर नहीं दे पाते. उनकी मजबूर आँखे शर्मिंदगी से भरी होती है मेरा मन विचलित होता है

भैया- ये दुनिया का दस्तूर है भाई. खैर, तेरी मर्जी है तो मेरी जगह तू शहर चले जा . रात वाली गाड़ी से पिताजी आ रहे है उनको भी साथ ले आना . और हाँ मेरी गाड़ी ले जाना

मैंने हाँ में सर हिलाया . बहुत कम अवसर होते थे जब भैया अपनी गाडी को खुद से दूर करते थे . खैर मैं शाम को शहर के लिए निकल गया . ट्रेन आने में समय था तो मैं हॉस्पिटल चला गया .

मैं- डॉक्टर साहब कुछ सुधार हुआ क्या हरिया में

डॉक्टर- तीन बार इसे खून की बोतले चढ़ा चूका हूँ पर मालूम नहीं क्या बात है खून इसके शरीर में जाते ही गायब हो जाता है . पीलिया टूट नहीं रहा इसका.

मैं- आप तो बड़े डॉक्टर है आप ही समाधान कीजिये

डॉक्टर- कुछ समझ आये तो मैं करू. ऐसा ही चलता रहा तो मुश्किल होगी खून का इंतजाम भी एक तय मात्रा में ही हो सकता है .

तभी वहां पर हरिया की जोरू आ गयी और बोली- कुंवर, आप इसे छुट्टी दिला दो हम हरिया को ओझा के पास ले जायेंगे .

मैं उसकी बात सुनकर हैरान हो गया .

मैं- ओझा क्या करेगा भला

पर हरिया के घर वालो ने जिद ही पकड़ ली तो मेरे पास भी और कोई चारा नहीं था . मुझे बहुत बुरा लग रहा था पर क्या किया जाये. मैं वहां से रेलवे स्टेशन चला गया . जहाँ पर इक्का दुक्का लोग ही थे. मैंने चाय का कुल्हड़ लिया और अपनी जैकेट को ऊपर तक कर लिया . लैंप के निचे बेंच पर बैठे मैं चुसकिया लेते हुए सोच रहा था की हरिया कुछ तो कहना चाह रहा था इशारो से पर क्या........ उसने क्या देखा था . इस सवाल ने मेरे मन में इतनी हलचल मचा दी थी की मैं क्या बताऊ.

सोचते सोचते दो पल के लिए मेरी आँखे बंद हो गयी . शायद वो हलकी सी नींद का झोंका था . मेरी आँखों के सामने वो द्रश्य था जब मैं और मंगू दावत से आ रहे थे . हम दोनों ठीक उसी जगह पर पहुचे जहाँ पर हमें कोचवान की गाडी मिली थी . मैंने देखा की धुंध ने चाँद से नाता तोड़ लिया था और चांदनी रात में मैंने अलाव के पार.............................. .
 
#


धम्म से मैं बेंच से निचे गिर पड़ा था . खुमारी आँखों में चढ़ी थी जेहन में वो ही सपना था . उठ कर कपड़ो को झाड़ते हुए मैंने आस पास देखा . चाय की दुकान पर अकेला चाय वाला बैठा था , इक्का-दुक्की कुली थे और मैं. जैकेट की जेब में हाथ घुसाए मैं स्टेशन की उस बड़ी सी घडी में समय देखने गया मालूम हुआ की रेल आने में थोडा समय और था . मैंने थोडा पानी पिया और सर्दी में ऊपर से पानी पीते ही निचे से मूत का जोर हो गया .

पेशाबघर में मूतते हुए मैंने अपने लिंग को देखा जो उसी तरह सुजा हुआ था . ये एक और अजीब समस्या हो गयी थी जिसे किसी को बता न सके और छुपा भी न सके. वो मादरचोद क्या जानवर था जिसने अपना जहर इधर ही उतार दिया था .पूरा शरीर एकदम सही था पर एक ये अंग ही साला परेशां किये हुए था .

मैं वापिस से उसी बेंच पर जाकर बैठ गया और रेल का इंतजार करने लगा. सर्दी की रात भी साली इतनी लम्बी हो जाती है की क्या ही कहे. खैर जब रेल आई तो मैं डिब्बो की तरफ भागा और जल्दी ही मैंने पिताजी को उतरते देखा.

आँखों पर सुनहरी ऐनक लगाये. चेहरे पर बड़ी बड़ी मूंछे . लम्बा शरीर . गले तक का बंद कोट पहने राय बहादुर विशम्बर दयाल जंच रहे थे . मैं दौड़ कर उनके पास गया और चरणों को हाथ लगाया. संदूक उठा लिया मैंने .

जल्दी ही हम लोग गाँव के रस्ते में थे , पिताजी हमेशा की तरह खामोश थे . बस बीच बीच में हाँ-हूँ कर देते थे मेरी बातो पर . एक बार फिर हम उसी रस्ते से गुजरे जहाँ पर हमें हरिया मिला था . न जाने क्यों मेरे बदन में सिरहन सी दौड़ गयी और मैंने गाड़ी की रफ़्तार बढ़ा दी. वापिस आते आते रात आधी बीत गयी थी . पिताजी ने सबसे दुआ सलाम की और अपने कमरे में चले गए.

भाभी- खाना खाकर तुम भी आराम करो

मैं- बाकि सब लोग का खाना हुआ .

भाभी- तुम्हारे भैया अभी तक लौटे नहीं है और चाची खेतो पर गयी है .

मैं- क्या , किसके साथ

भाभी- अकेली.

मैं- पर क्यों . मजदूरो को भेज देती खुद अकेली वहां जाने की क्या जरुरत थी

भाभी- अरे इतनी फ़िक्र मत करो. तुम्हे क्या लगता है की मैं उन्हें अकेले जाने देती , चंपा साथ गयी है उनके . मैं तो बस देख रही थी की तुम्हे परिवार की चिंता है भी या बस यूँ ही करते फिरते हो .

मैं- भाभी, आज के बाद ऐसा मत कहना परिवार है तो मैं हूँ .

भाभी- अच्छा बाबा. अब कहो तो खाना परोस दू या फिर सोने ही जाना है

मैं- नहीं, मैं खेतो पर जा रहा हूँ . वहां उनको मेरी जरूरत पड़ेगी. सुबह अगर पिताजी को मालूम हुआ की वो दोनों अकेली थी तो सबसे पहले मेरी खाल ही उधेद्नी है उनको.

मैंने तुरंत साइकिल उठाई और अपना रास्ता पकड़ लिया. गुनगुनाते हुए मैं तेजी से खेतो की तरफ जा रहा था . लगता था की मुझे छोड़ कर पूरा जहाँ ही सोया हुआ था और होता भी क्यों न रात आधी से ज्यादा जो बीत गयी थी . कुछ दूर बाद बस्ती पीछे रह गयी , पथरीली कच्ची सड़क ही मेरी साथी थी पर इस घने अँधेरे में मुझसे एक गलती हो गयी थी मैं बैटरी लाना भूल गया था . वैसे तो कोई खास बात नहीं थी बस अचानक से कोई नीलगाय या जंगली सूअर सामने आ गया तो चोट लगने का खतरा था .

खैर मैं कुवे पर पहुंचा तो देखा पानी अपनी लाइन से खेत की प्यासबुझा रहा था पर चंपा और चाची दोनों नहीं थी .

"शायद कमर सीढ़ी कर रही होंगी, एक बार बता देता हूँ की मैं आ गया हूँ अगर सोयी भी होंगी तो सोने दूंगा .मैं ही लगा दूंगा पानी " अपने आप से कहते हुए मैं कमरे के पास पंहुचा ही था की अन्दर से आती हंसी सुन कर मेरे कान चोकन्ना हो गए. इतनी रात को क्या हंसी-ठिठोली हो रही है . मैंने दरवाजा खडकाने की जगह पल्ले की झिर्री से अन्दर देखा और देखता ही रह गया .

कमरे में जलते लट्टू की पीली रौशनी में क्या गजब नजारा था चाची अपनी गदराई जांघो को खोले पड़ी थी और पूर्ण रूप से नग्न चंपा ने अपना मुह चाची की जांघो के बीच दिया हुआ था . चाची के चेहरे को मैं देख नहीं पा रहा था क्योंकि चंपा का बदन उसके ऊपर था .

पर जो चीज मैं देख पा रहा था वो भी बड़ी गजब थी . चंपा ने चुतड ऊपर को उठे हुए थे जिस से की काले बालो के बीच घिरी उसकी हलकी गुलाबी चूत मुझे अपना जलवा दिखा रही थी वो भी पूरी उत्तेजित थी क्योंकि चंपा की चूत के बाल लिस्लिसे द्रव में सने हुए थे.

"आह , धीरे कुतिया . इतना जोर से क्यों काटती है " चाची ने चंपा को गाली दी .

चंपा- इसी में तो मजा है मेरी प्यारी .

सामने चंपा की खूबसूरत चूत होने के बावजूद मेरे मन का चोर चाची की चूत भी देखना चाहता था पर अभी उसे देखना किस्मत में नहीं था शायद.

"चंपा कहती तो सही ही है की एक बार लेकर तो देखूं उसकी " मैंने उसके हुस्न से प्रभावित होकर मन ही मन कहा .

मेरा हाथ मेर लिंग पर चला गया जो की की फूल कर कुप्पा हो गया था . मैंने पेंट खोल कर उसे ताजी हवा का अहसास करवाया . अन्दर का बेहंद गर्म नजारा देख कर मैं बाहर की ठण्ड भूल गया था तभी चाची ने अपने पैरो में चंपा की गर्दन जकड ली और अपने कुल्हे ऊपर उठा लिए. कुछ पल बाद वो धम्म से निचे गिरी और लम्बी- लम्बी सांसे भरने लगी.

चंपा भी उठ पर चाची के पास बैठ गयी . मैंने चंपा के उन्नत उभारो को देखा जो पर्वतो की चोटियों जैसे तने हुए थे.

""मजा आया मेरी प्यारी चंपा ने चाची से कहा

चाची- एक तू ही तो मेरा सहारा है चंपा.

चंपा- चाची तू इतनी मस्त औरत है तेरी प्यास मेरी उंगलिया और जीभ नहीं बुझा सकती तुझे तगड़े लंड की जरुरत है जो दिन रात तेरी भोसड़ी में घुसा रहे.

चाची- तुझे तो सब पता ही है चंपा. जो चल रहा है ये भी ठीक ही है,मेरी छोड़ तू बता कुंवर संग तेरा प्यार आगे बढ़ा क्या .

चंपा- कहाँ प्यारी, उसके सामने तो घाघरा खोल दू तब भी वो मेरी नहीं लेगा. कितनी ही कोशिश की है मैंने पर क्या मजाल जो वो मेरी तरफ देखे. कहता है मंगू की बहन है इसलिए नहीं करेगा.तू ही बता मंगू की बहन हूँ तो क्या चुदु नहीं . गाँव के लोंडे आगे पीछे है मेरे पर मेरी भी जिद है चुदना तो उस से ही है वर्ना भाग्य में जो है उसको तो देनी ही हैं.

चाची- वो अनोखा है .

चंपा- सो तो है .

चाची- एक बार पाने को देख आते है फिर तेरी भी आग बुझती हूँ

वो दोनों कपडे पहनने लगी. मैं वहां से हट गया और साइकिल लेकर वापिस मुड गया क्योंकि मैं उन्हें शर्मिंदा नहीं करना चाहता था पर अब घर जा नहीं सकते , यहाँ रुक नहीं सकते रात बाकी तो जाये तो कहाँ जाये. और तभी मैंने कुछ सोचा और साइकिल को पथरीली सड़क पर मोड़ दिया.... दो मोड़ मुड़ने के बाद मैंने कच्ची सड़क ले ली थोड़ी ही दूर गया था की तभी अचानक से मैंने अपने सामने .........................
 
#7

मेरे सामने एक बड़ा सा जानवर खड़ा था जिसकी बिल्लोरी आँखे मुझे घूर रही थी . कड़ाके की ठण्ड में ऊपर से लेकर निचे तक मैंने पसीने को बहते हुए महसूस किया. सियार नहीं सियार तो नहीं था ये . उसकी ऊंचाई किसी भैंस के पाडे जितनी थी , हे भगवान् ये तो भेड़िया था . हूकते हुए वो मुझे देखे जा रहा था और मैं उसे .

एक एक पल बड़ी मुश्किल से बीत रहा था . किसी भी पल वो हमला कर सकता था मैंने अपनी साइकिल हाथो में उठा ली ताकि वो लपके तो तुरंत उस पर दे मारू. पर ऐसा करने की नौबत नहीं आई . वो मुड़ा और जंगल की तरफ भाग गया. मैंने चैन की सांस ली.

सांसो को दुरुस्त करने के बाद मैं उस स्थान पर पहुँच गया जहाँ हमें हरिया मिला था . धरती पर पड़े पत्ते मेरे जूतों के निचे आकर चुर्र चुर्र कर रहे थे . चाँद की रौशनी में मैं घूम घूम कर कुछ ऐसा तलाश रहा था जिस से मालूम हो की हरिया के साथ हुआ क्या था . घूमते घूमते मैं वन देवता के पत्थर के पास तक पहुँच गया . ये एक बड़ा सा पत्थर था जिसे वन देवता के रूप में गाँव वाले पूजते थे, ये एक तरह की हद थी इंसानों के , इसके आगे गाँव वाले कभी भी जंगल में नहीं जाते थे . क्योंकि अन्दर के जंगल में जानवरों का राज था , एक तरह की सीमा थी ये इंसानों और जानवरों की .

कच्ची सड़क से मैं करीब तीन कोस अंदर आ गया था पर कुछ भी ऐसा नहीं मिला. हार कर मैंने ये सोचा की शायद हरिया ने भी उसी भेडिये या वैसे ही किसी जानवर का खौफ खाया हो .दिल को बस इसी ख्याल से तसल्ली दी जा सकती थी .

"देवर जी , देवर जी उठो जल्दी " भाभी ने लगभग मुझे बिस्तर से घसीट ही लिया था .

"आन्ह क्या हुआ भाभी सोने दो न " मैंने बिना आँखों को खोले ही प्रतिकार किया

भाभी- हरिया की मौत हो गयी है

ये सुनते ही मेरी नींद तुरंत गायब हो गयी .

"कब कैसे " मैंने एक ही सांस में पूछ डाला

भाभी- कल रात , प्राण त्याग दिए उसने

जब तक मैं हरिया के घर पहुंचा लगभग गाँव जमा हो चूका था . रोना पीटना मचा था . मेरा मन द्रवित हो गया . मुझे देख कर मंगू मेरे पास आया.

मैं- मंगू इसके कातिल को मैं सजा दूंगा जरुर

मंगू- दिल पर मत ले भाई, ये तो किस्मत थी ये हमें मिल गया वर्ना जंगल में लाश कितने दिन पड़ी रहती कब जानवर खा जाते किसे मालूम होता.

मैं- एक इन्सान की जान गयी है मंगू और तू ऐसी बाते कर रहा है

मंगू- ऐसा पहली बार तो नहीं हुआ है भाई. गाय-बैल. बकरिया और कभी कभी इन्सान भी जंगल में गायब होते रहते है . कभी गाँव वाले जानवरों का शिकार करते है कभी जानवर गाँव वालो का .

एक हद तक मंगू की बात सही थी पर मुझे बस एक बात खटक रही थी , नजाकत देखते हुए मैंने चुप रहना मुनासिब समझा.दोपहर तक उसको चिता दे दी गयी थी . नहा धोकर मैं मंगू के घर गया तो एक बार फिर से चंपा से मुलाकात हो गयी . गहरे गुलाबी रंग के सूट में ताजा गुलाब लग रही थी वो . मुझे देख कर वो भी मुस्कुराई . अचानक से कल रात की बात मुझे याद आ गयी .

चंपा- सही समय पर आये हो . मैं चाय बना ही रही थी .

मैं- चाय के साथ कुछ खाने को भी ले आ और मंगू कहा है

चंपा- चक्की पे गया है आता ही होगा.

मैं चारपाई पर लेट गया . आँखों में नींद की खुमारी थी . तुरंत ही चंपा चाय और मट्ठी ले आई.

चंपा- लगता है रात को नींद नहीं आई.

मैं- लगता है की किसी ने मेरी नींद चुरा ली है

चंपा- किसकी इतनी हिम्मत हो गई जो मेरे होते हुए ये कर सके , नाम बता उसका , खबर लेती हूँ

मैं- अरे तू भी न क्या से क्या सोच लेती है . मैं बस सो नहीं पाया था टेंशन के मारे

चंपा- कहो तो टेंशन दूर कर दू, मौका भी है

मैं- तुझे बस ये सब ही सूझता है क्या

चंपा- देख कबीर, बचपन से तू साथ रहा है तू चाहे मेरे बारे में कुछ भी सोच मैंने तुझे अपना माना है . तू चाहे तो मुझसे अपनी परेशानी बता सकता है

मैंने चाय की चुस्की ली . उसे देखते हुए मुझे नंगी चंपा ही दिख रही थी .उसने भी मेरी नजरो को ताड़ लिया.

चंपा- आजत तेरी नजरे कुछ और देख रही है मुझमे.

मैं- छोड़, ये बता कल खेत में पानी पूरा हो गया .

चंपा-लगभग. एक खेत बचा है बस . आज हो जायेगा

मैं- तू आराम करना आज मैं देख लूँगा वैसे भी कल थक गयी होगी तू.

चंपा- हाँ थक तो गयी ऊपर से कड़ाके की ठण्ड पर काम भी जरुरी है .

मैं- सुन चंपा तू आज भी चाची के साथ खेत पर जाना मुझे कुछ जरुरी काम है मैं घर से ये कहके निकलूंगा की मैं जा रहा हूँ चाची के साथ पर जाएगी तू. समझी न

चंपा - पर तू कहाँ जायेगा.

मैं- भरोसा है मुझ पर

चंपा- खुदसे ज्यादा

मैं- तो फिर इतना काम करना मेरा और हाँ याद से कमरे का बल्ब बुझा लेना ...

जैसे ही मैंने ये बात कही चंपा के चेहरे पर हवाइया उड़ने लगी. मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला- मुझे भरोसा है तुझ पर . पर कल जो मैंने देखा कोई और नहीं देखे . तुम दोनों मान हो मेरा.

चंपा- तू कल था वहां पर फिर आवाज क्यों नहीं दी.

मैं- फिर वो जरुरी काम कैसे करती तुम . वैसे एक बात कहूँ हद से ज्यादा खूब सूरत है तू . तेरा पति किस्मत वाला ही होगा.

बुरी तरह से शमाते हुए चंपा मेरे सीने से लग गयी . काफी देर तक मंगू नहीं लौटा तो मैं वापिस घर चला गया . वहां जाकर देखा की पिताजी कुछ गाँव वालो के साथ बाते कर रहे थे . मैं सीधा भाभी के पास चला गया .

भाभी- कुछ पता चला

मैं- अभी नहीं पर जल्दी ही मालूम कर लूँगा.

भाभी- आराम कर लो थोडा .

हम बाते कर ही रहे थे की तभी चाची आ गयी मुझे देखते ही बोली- कल कहाँ थे तुम .

"इसको भाभी के सामने ही पूछनी थी ये बात " मैंने मन ही मन कहा

मैं- पिताजी को लाने के बाद खेत पर पहुँच तो गया था चाची

चाची- तो फिर मुझे याद क्यों नहीं है

मैं- उम्र हो गयी है तुम्हारी चाची , भाभी चाची के बादाम बढ़ा दो अरे चाची जब तुम और चंपा आराम कर रही थी तभी तो आया था मैं .

मेरा इतना कहते ही चाची की गांड फट गयी और भाभी शंकित निगाहों से मुझे देखने लगी.

 
#8

चाची ने तुरंत ही बात को संभाल लिया और बोली- मैं भी ना, आजकल इस सर दर्द के मारे कुछ ध्यान रहता ही नहीं .

भाभी- आपको सर दर्द है आपने बताया भी नहीं . मैं अभी डॉक्टर को बुलवा देती हूँ

चाची- नहीं बहु, तू ही सर दबा देना तेरे हाथो से ही आराम आ जायेगा मुझे .

भाभी- जी चाची . फ़िलहाल मैं चाय बनाने जा रही हूँ कहो तो आपके लिए भी बना लाऊ

चाची- ये भी कोई पूछने की बात है

भाभी रसोई में चली गे रह गए हम दोनों. चाची की नजरे झुकी थी . मैं उठ कर अपने चोबारे में चला गया कुछ देर बाद चाय लेकर चाची भी आ गयी . मैंने कप लिया और खिड़की खोल दी. इस खिड़की से डूबते सूरज को देखने का भी अपना ही सुख था .

चाची की नजरे मुझ पर जमी हुई थी वो बात तो करना चाहती थी पर शायद संकोच कर रही थी .

प्रेम रोग का भँवरे ने खिलाया फूल गाना धीमी आवाज में मेरे रेडियो पर बज रहा था.

चाची- आज चलोगे कुवे पर

मैं- नहीं , मैंने चंपा को बोल दिया है मुझे एक जरुरी काम है

चाची- ऐसे क्या जरुरी काम है तुम्हारे जो रातो को ही होते है . मैं जानना चाहती हूँ .

मैंने एक पल चाची को देखा और बोला- मुझे हरिया के कातिल को तलाश है

चाचीने अपना कप टेबल पर रखा और बोली- तुझे कोई जरुरत नहीं है , उसके घरवाले अपने आप तलाश लेंगे . तेरे सिवा इस गाँव में किसी को भी उसकी परवाह नहीं है . जितना तेरे बस में था तूने उसकी मदद की पर किसी भी बात को दिल पर लेना ठीक नहीं है. मैंने कह दिया है तो कह दिया है .

मैं- जंगल में क्या है , क्या सच में भूत-प्रेत है वहां पर

चाची- तो तू कल रात को जंगल में गया था . देख कबीर ये ठीक नहीं है . तू वादा कर मुझसे ऐसे रातो में तू जंगल में नहीं भटकेगा

मैं - ठीक है आप कहती है तो नहीं जाता .

हम बाते कर ही रहे थे की तभी निचे से मंगू की आवाज आई तो मैं उठ पर निचे चला गया .

मैं- चूतिये, कितनी राह देखि तेरी चक्की का नाम लेकर कहाँ गया था तू .

मंगू- ऐसी खबर लाया हूँ की दिल खुश हो जायेगा

मैं- जल्दी बता फिर .

मंगू- पड़ोस के गाँव में नाचने वाले आये है . तगड़ा प्रोग्राम होगा आज .अपन भी चलेंगे आज रात

मैं- प्रोग्राम तो ठीक है पर पिताजी को मालूम हो गया की मुजरा देखने गए है तो हमें ही मोर बना देंगे.

मंगू- कोई बहाना बना लेना भाई . कितने दिनों में तो वो लोग आये है याद है न पिछली बार कितना मजा आया था .

मैं- ठीक है ,घंटे भर बाद तू गाँव के अड्डे पर मिलना .

कुछ देर बाद भैया आ गए तो मैं उनके पास गया.

भाई- कैसा है छोटे

मैं- बढ़िया भाई .

भैया - चाची के खेतो का काम पूरा हुआ

मैं- थोडा सा बाकी है आज रह जायेगा.

भाई- तु सोचता होगा भाई ने इस कड़ाके की ठण्ड में मजदुर बनाया हुआ है पर छोटे चाची का हमारे सिवा और कौन है . ये अपनापन ही परिवार की खुशहाली की चाबी है भाई. चाची के हम दोनों सगे बेटे ही है

मैं- जी भैया.

भाई- काफी दिन हो गए जोर आजमाइश किये . क्या बोलता है करे दो दो हाथ

मैं- रहने दो भाई पिछली बार के जैसे फिर हार जाओगे.

भाई- अरे वो तो तेरा दिल रखने के लिए मैं हार गया था की छोटे का दिल न टूट जाये.

मैं- वाह भाई गजब बात कही . देखते है फिर किसका जोर बढ़ा है किसका कम हुआ है .

मैं वहां से उठ कर चला ही था की भाई ने मुझे रोका- छोटे रुक जरा .

मैं- जी भाई.

भैया ने जेब से नोटों की गद्दी निकाली और मुझे देते हुए बोले- पडोसी गाँव में नाचने वाले आये है . देख आना प्रोग्राम और हाँ पिताजी से छुप कर जाना उन्हें मालूम होगा तो तेरे साथ साथ मुझे भी डांट लगायेंगे

न जाने कैसे भैया को हमेशा मेरे मन की बात मालूम हो जाती थी .

मैं- मिलते है फिर अखाड़े में

भैया - बिलकुल

जैसे ही पिताजी सोये मैं तुरंत निकल लिया अड्डे की तरफ जहाँ मंगू तैयार था .आधे घंटे बाद मैं और मंगू टेंट में बैठे रंगारंग प्रस्तुति का आनंद उठा रहे थे . रंगीले गानों पर मचलते हुस्न ने समां बाँधा हुआ था , क्या बूढ़े क्या जवान सब लोग आँखों से गर्म मांस का सेवन कर रहे थे . जब वो नाचने वाली अपनी छाती को लहराती तो जो सीटी पे सीटी बजती कसम से मजा ही तो आ जाता.

मंगू- ताड़ी का गिलास लाऊ

मैं- अरे नहीं यार. किसी को मालूम हुआ तो बेइज्जती सी हो जाएगी.

मंगू- किसी को कैसे मालूम होगा एक एक गिलास बस

मैं- ठीक है भाई आने दे फिर.

बात एक की हुई थी पर मैंने और मंगू ने दो दो गिलास टिका लिए .जोश जोश में मैंने दो चार नोट स्टेज पर उड़ा दिए. नाचने वाली ने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया . सेब से लाल गाल उसके होंठो पर गहराई तक उतरी हुई लिपस्टिक और ठंडी में ताड़ी की गर्मी . कुछ देर उसके साथ नाचने के बाद मैंने उसके बलाउज में दो नोट लगाये और बोला- मेरे दोस्त के साथ नाच ले थोड़ी देर.

मैंने मंगू की तरफ इशारा किया . नाचने वाली मंगू के पास गयी और उसके संग लहराने लगी. फिर हम वापिस टेंट में बैठ गए. दुसरे गाँव में ज्यादा भोकाल मचाना भी ठीक नहीं रहता. मेरा दिल तो कर रहा था की इनको न्योता देकर हमारे गावं में इनका प्रोग्राम करवाया जाये पर पिताजी को इन चुतियापो से नफरत थी तो विचार त्याग देना ही उचित था .

वापसी में चलने से पहले हमने एक एक गिलास और खींच मारा ताड़ी का . अपनी मस्ती में हम लोग वापिस चले आ रहे थे . जैसे ही हम कच्चे रस्ते पर आये ठंडी हवा के झोंको ने ताड़ी का सुरूर बनाना शुरू कर दिया .

मैं- मंगू भोसड़ी के साइकिल ठीक से चला गिरा मत देना .

मंगू जो की झूम गया था .- हम क्या भाई ये दुनिया ही भोसड़ी की है , सब लोग भोसड़े से ही तो निकलते है.

""वाह, मंगू मेरे दोस्त बड़ी गहरी बात कही तूने . ये दुनिया ही भोसड़ी की है " मैंने कहा.

अपनी तारीफ सुन कर मंगू हंसने लगा. दिल साला अजीब ही था उस रात में. हम दोनों अपने किस्से याद करते हुए हंस रहे थे कैसे हमने शहद चुराते समय लकडियो को आग लगा दी थी . कैसे जोहड़ में नहाते थे .और भी ऐसे ही छोटे मोटे किस्से. हंसी ठिठोली करते हुए हम दोनों उसी जगह पर पहुँच गए जहाँ हमें हरिया कोचवान की गाडी मिली थी .

मैं- मंगू साइकिल रोक

मंगू- क्या हुआ भाई. मूतना है क्या एक काम कर चलती साइकिल से ही मूत भाई आज .

मैं- साइकिल रोक मंगू.

नसे में लडखडाते हुए मैं उसी जगह पर पंहुचा जहाँ उस अलाव के पास हरिया मंगू से आकर लिपट गया था .

"कितना मुतेगा भाई अभी , क्या तालाब बनाएगा " ऐसा कह कर मंगू जोर जोर से हंसने लगा.

"मैं जानता हूँ तुम यही कहीं हो . मैं जानता हूँ की उस रात भी तुम यही कहीं थे. हरिया तुम्हारी वजह से ही मारा गया . " मैंने हवाओ से कहा

"भाई आ भी जा अब तालाब को समुदंर बनाएगा क्या " मंगू ने फिर से मुझे आवाज दी.

मैं मंगू की तरफ चल दिया . हमारी साइकिल थोड़ी सी ही आगे चली थी की एक चीख ने हमारी पतलूने गीली कर दी.

"aahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh " जंगल की ख़ामोशी को वो चीख चीर रही थी .

 
#9

ताड़ी के नशे में मेरे पैर डगमगा रहे थे फिर भी मैं उस आवाज की तरफ भागा. कभी लगता की आवाज पास से आ रही थी कभी लगता की कराहे दूर है. और जब मैं गंतव्य तक पहुंचा तो मेरी रूह तक कांप गयी .जमीन पर एक बुजुर्ग पड़ा था खून से लथपथ जिसका पेट फटा हुआ था उसकी अंतड़िया बाहर को निकली हुई थी .

"किसने, किसने किया बाबा ये " मैंने उसे सँभालते हुए पूछा

"वो, वो ".उसने सामने की दिशा में उंगलियों से इशारा किया और उबकाई लेते हुए प्राण त्याग दिए. आँखों में बसा सुरूर एक झटके में गायब हो गया . ये दूसरी बार था जब जंगल में किसी पर हमला हुआ था और दोनों बार मैं वहां पर मोजूद था . ये कैसा इत्तेफाक था .

ये लाश मेरे पल्ले पड़ गयी थी . मैं तो जानता भी नहीं था ये कौन था . मैं कहाँ जाता किस से कहता की भाई, तुम्हारा बुजुर्ग जंगल में मर गया है . मेरा दिल तो नहीं मान रहा था पर हालात देखते हुए मैंने उस लाश को वहीँ पर छोड़ दिया . और वापिस उस तरफ को चल दिया जो मेरे गाँव का रास्ता था .

मैंने पाया की मंगू साइकिल के पास बैठे बैठे ऊंघ रहा था . मैंने उसे जगाया और हम गाँव आ गए. प्रोग्राम देखने का सारा उत्साह ख़ाक हो चूका था . पर मैंने सोच लिया की जंगल में क्या है ये हर हाल में मालूम करके ही रहूँगा.

"कबीर उठ, कितना सोयेगा तू "

बोझिल आँखों ने खुलते ही देखा की चाची के ब्लाउज से झांकती चुचिया मेरे चेहरे पर लटक रही है . एक पल को लगा की ये सब सपना है . पर तभी चाची ने मुझे हिला कर जगा दिया .

मैं- उठ तो रहा हूँ

चाची-तू यहाँ सोया पड़ा है गाँव में गजब हो गया .

मैं एक दम से उठ खड़ा हुआ .

मैं- कौन सी आग लग गयी गाँव में . कल तक तो सब ठीक ही था न

चाची- लखेरो की जो औरत भाग गयी थी न उसे वापिस ले आये है जिसके साथ गयी थी उसे भी . परस में पंचायत बैठने वाली है .

मैं- इसमें पंचायत की क्या जरुरत उस औरत की मर्जी जिसके साथ भी रहे .

चाची- मुझे नहीं मालूम पुरे गाँव को वहां पर बुलाया गया है तू भी चल

मैं भी पंचायत में पहुँच गया . मैंने देखा की जो औरत घर से भागी थी उसे और उसके साथी को एक खम्बे से बांधा हुआ था . दोनों की हालत देख कर साफ पता चल रहा था की खूब मार-पिटाई की गयी थी उनके साथ . कुछ देर में गाँव के मोजिजलोग अपनी अपनी कुर्सियों पर बैठ गए गाँव वाले धरती पर बैठ गए. मैंने पिताजी को देखा जो अपनी सुनहरी ऐनक लगाये इधर उधर देख रहे थे .

"गाँव वालो जैसा की आप सब जानते है ये औरत लाली कुछ दिनों पहले अपने प्रेमी के साथ भाग गयी थी , ये जानते हुए भी की ये शादी-शुदा है इसका मर्द है फिर भी इसने दुसरे आदमी संग रिश्ता किया. गलत काम किया . गाँव-समाज अपने परिवार की बेइज्जती की .बहुत कोशिश करने के बाद आखिर हमने इनको पकड़ लिया और यहाँ ले आये है ताकि इंसाफ किया जा सके. पंचायत ने निर्णय लिया है की इनको इसी नीम के निचे फांसी दी जाये ताकि गाँव में फिर को भी ऐसा करने की सोचे भी न. आप सबको पंचायत का फैसला मंजूर है न , जिसको कुछ कहना है वो अपना हाथ उठाये " पंच ने कहा.

मैंने सर हिला कर चारो तरफ देखा पुरे गाँव में एक भी आदमी ने अपना हाथ नहीं उठाया जबकि दो लोगो को फांसी देने की बात कही जा रही थी . मुझे न जाने क्या हुआ मैंने अपना हाथ उठाया और पुरे गाँव की नजरे मुझ पर जम गयी .

"मुझे कुछ कहना है " मैंने कहा की चाची ने मेरा हाथ पकड़ लिया और चुपचाप बैठने का इशारा किया पर मैंने उसका हाथ झटक दिया और उठ कर पंचायत के पास गया .

मैं- मुझे आपत्ति है इस निर्णय पर

पंच- तुम अभी छोटे हो , दुनियादारी का ज्ञान नहीं है तुम्हे. ये गंभीर मुद्दे है .

मैं- दो लोगो को मारने की बात हो रही है ये क्या कम गंभीरता की बात है . पंचायत को किसी के प्राण लेने का कोई हक़ नहीं है, जन्म मृत्य इश्वर के हाथ में है . बेशक इस लाली ने घर से भागने की गलती की है पर इसकी सजा मौत नहीं हो सकती.

पंच- और इसके कारण रामू की इतनी बेइज्जती हुई. इसको कितने ताने सुनने पड़े की नामर्द है इसलिए भाग गयी. जब भी ये घर से बाहर निकलता लोग हँसते इसे देख कर . इसका जीना दुश्वार हो गया की लुगाई भाग गयी .

मैं- किस बेइज्जती की बात करते है आप पंच साहब, और कौन कर रहा था ये बेइज्जती . किसके ताने थे वो . आपके मेरे हम सब के , ये तमाम गाँव वाले जो आज चुपचाप बैठे है ये लोग ही तो रहे होंगे न ये सब ताने मारने वाले. इसके दोस्त, इसके पडोसी. हमारा ये समाज. तो फिर इन सब को भी कोई न कोई सजा तो मिलनी ही चाहिए न .

पंच- कबीर. मर्यादा की लकीर के किनारे पर खड़े हो तुम पंचायत का अपमान करने की जुर्रत न करो.

मैं- पंचायत ने इस निर्णय के खिलाफ आपत्ति मांगी थी , अब अप्त्त्ती सुनने में पंचायत को संकोच क्यों हो रहा है. क्या पंचायत में मन में कोई चोर है .

पंच- पंचायत यहाँ समाज के हित में निर्णय लेने को है .

मैं- तो मैं इस पंचायत और गाँव से कहना चाहता हूँ की लाली को इस लिए फांसी नहीं दी जा सकती की उसके भागने पर रामू को नामर्दी और बेइज्जती के ताने सुनने पड़े. असल में रामू नामर्द है .

उन्ह उन्ह पिताजी ने अपना गला खंखारा और ऐनक को उतार लिया ये उनका इशारा था की मैं चुप रहूँ पर अगर उस दिन चुप रहता तो फिर अपनी नजरो से गिर जाता.

मैं- मर्दानगी ये नहीं होती की औरत को जब दिल किया अपने निचे ले लिया . मर्दानगी होती है औरत का सम्मान करना. औरत जो अपना सब कुछ छोड़ कर आती है ताकि हमारे घर को घर बना सके,क्या नहीं करती वो परिवार के लिए. ये रामू जब देखो दारू पिए पड़ा रहता है . कमाई करता नहीं . घर-गुजारा कैसे होगा. तीसरे दिन ये लाली को पीटता . तब कोई पंचायत का सदस्य लाली के लिए निर्णय करने नहीं आया.

पंच- रामू की लुगाई है वो चाहे जैसे रखे उसका हक़ है .

मैं- लुगाई है गुलाम नहीं . एक सम्मानजनक जीवन जीने का लाली का हक़ भी उतना ही है जितना की आप सब का . मैं मानता हूँ की घर से भागना अनुचित है उसके लिए लाली को सजा दी जाये पर किसीको भी झूठी शान के लिए मार देना अन्याय है .

पंच- पंचायत ने निर्णय कर दिया है समाज के हितो की रक्षा के लिए ये फैसला ऐतिहासिक होगा. आने वाली पीढियों के लिए मिसाल होगी.

मैं-मैं नहीं मानता इस निर्णय को

पंच- राय साहब आपका बेटा पंचायत का अपमान कर रहा है आप समझिए इसे.

पिताजी अपनी कुर्सी से उठे और मुझसे बोले- घर जाओ अभी के अभी

मैं- जब तक मेरी आपत्ति मानी नहीं जाती मैं हिलूंगा भी नहीं यहाँ से .

जिन्दगी में पहली बार ऐसा हुआ था की राय साहब की बात किसी ने काटी हो. पुरे गाँव के सामने खुद राय साहब ने भी नहीं सोचा होगा की उनका खुद का बेटा उनके सामने ऐसे खड़ा होगा. ..........

 
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