मेरे पति रितेश को देहरादून जाना था, मैं उसके जाने के तैयारी करने लगी।
तभी वह मेरे पास आकर बोला- सॉरी यार… मुझे तुम्हें अकेले छोड़कर जाना पड़ रहा है।
‘कोई बात नहीं यार… अगर मुझे खुजली होगी तो केले से काम चला लूंगी।’
रितेश मेरे पुट्ठे पर हाथ मारता हुआ बोला- यार, तीन चार जवान केले मेरे घर पर ही हैं। मैं सबकी नजर को अच्छी तरह से देखता हूँ, जिसको भी मौका मिलेगा वो तुम्हारी चूत में गोते तुरन्त ही लगा लेगा। खास कर मेरा जीजा अमित!
रितेश की बात सुनकर मुझे झटका लगा, क्योंकि इन चार-पाँच दिनों में मुझे अमित की बिल्कुल भी याद नहीं रही, पर जैसे ही रितेश ने अमित की बात छेड़ी, मेरे चहेरे पर मुस्कान आ गई और मैंने रितेश को कहा- अमित के केले को ही अपनी चूत में लूँगी क्योंकि मुझे उसे अपनी चूत का मूत पिलाना है।
जैसा कि मेरे और रितेश के बीच कोई परदा नहीं था तो हम दोनों ने तय किया कि एक दूसरे को रोज मोबाईल पर दिन भर की बातें बतायेंगे।
खैर रितेश देहरादून के लिये निकल गया, लेकिन मेरे दिमाग में अमित को रिझाने का तरीका नजर नहीं आ रहा था।
इसी उधेड़ बुन में बैठे हुए रात का निवाला अपने मुँह में डाल रही थी कि अमित ने एक बार फिर फ़िकरा कस दिया, बोलने लगा- अगर रितेश के बिना मन नहीं लग रहा है तो उसे वापिस बुला लेते हैं।
कहकर हँसने लगा।
तभी ससुर जी ने मुझसे बड़े प्यार से कहा- बेटी, अब तुम इस घर की हो और तुम्हें किसी भी प्रकार की पर्दे की जरूरत नहीं है। मुझे और तुम्हारी सास को छोड़कर इस घर में तुमसे बड़ा कोई नहीं है जिससे तुम्हें परदा करना पड़े, इसलिये मैं और तुम्हारी सास का मत यह है कि तुम भी नमिता की तरह गाउन पहन कर घर में रह सकती हो।
मैंने संकोचवश कह दिया- नहीं बाबूजीम ऐसे मैं कमर्फटेबल हूँ।
इस पर मेरी सास बोल उठी- नहीं बेटा, तुम नमिता की तरह गाउन पहन सकती हो।
‘ठीक है माँ जी, जब रितेश आ जायेंगे तो मैं उनसे गाऊन मंगवा लूँगी और फिर पहन लिया करूँगी।’
‘तभी बड़ी तेजी से नमिता दौड़ते हुए ऊपर गई और एक गाउन लेकर आ गई और बोली- भाभी, मेरी और तुम्हारी कद काठी एक जैसी है, तुम इसे पहनकर आ जाओ, तब तक मैं मां और बाबूजी को खाना खिला देती हूँ और फिर हम लोग साथ में खाना खायेंगे।
मैं गाउन लेकर ऊपर आ गई, लेकिन यह क्या… मेरे पास तो पैन्टी ब्रा भी नहीं थी क्योंकि रितेश की जिद के कारण मैंने काफी दिनों पहले से ही पैन्टी ब्रा पहना छोड़ दी थी।
तभी मेरे दिमाग में एक खुराफ़ात आ गई और मैं बिना पैन्टी ब्रा के ही गाउन पहन कर आ गई।
कमरे में इस समय मैं, नमिता और अमित ही थे।
बाकी के दोनों देवर भी खाना खाकर जा चुके थे और अब मेरे पास वो हथियार था जिससे अमित को मेरे काबू में आना ही था।
मैं नमिता की नजर बचा कर बीच बीच में अपने को झुका लेती और अमित को अपने चूचियों के दर्शन करा देती।
अमित के चेहरे से निकलते हुए पसीने का मतलब समझ कर मुझे खूब मजा आता।
मैं फिर से झुककर बैठ गई और जैसे ही रितेश की नजर मेरे जिस्म के अन्दर पड़ी तो वो अचानक बहुत तेज खांसने लगा और नमिता अमित के लिये पानी लेने बड़े ही तेजी से रसोई की तरफ भागी।
और मुझे एक पल का मौका मिल गया और मैंने अमित से कहा- और अमित जी, कौन सा दूध पीयोगे, मेरा या जो आ रही है उसका?
मैं कह कर शांत हो कर सीधी बैठ गई और खाना खाने लगी।
अमित के पास अब इतना मौका नहीं था कि वो मेरी बात का उत्तर दे सके।
तभी वह मेरे पास आकर बोला- सॉरी यार… मुझे तुम्हें अकेले छोड़कर जाना पड़ रहा है।
‘कोई बात नहीं यार… अगर मुझे खुजली होगी तो केले से काम चला लूंगी।’
रितेश मेरे पुट्ठे पर हाथ मारता हुआ बोला- यार, तीन चार जवान केले मेरे घर पर ही हैं। मैं सबकी नजर को अच्छी तरह से देखता हूँ, जिसको भी मौका मिलेगा वो तुम्हारी चूत में गोते तुरन्त ही लगा लेगा। खास कर मेरा जीजा अमित!
रितेश की बात सुनकर मुझे झटका लगा, क्योंकि इन चार-पाँच दिनों में मुझे अमित की बिल्कुल भी याद नहीं रही, पर जैसे ही रितेश ने अमित की बात छेड़ी, मेरे चहेरे पर मुस्कान आ गई और मैंने रितेश को कहा- अमित के केले को ही अपनी चूत में लूँगी क्योंकि मुझे उसे अपनी चूत का मूत पिलाना है।
जैसा कि मेरे और रितेश के बीच कोई परदा नहीं था तो हम दोनों ने तय किया कि एक दूसरे को रोज मोबाईल पर दिन भर की बातें बतायेंगे।
खैर रितेश देहरादून के लिये निकल गया, लेकिन मेरे दिमाग में अमित को रिझाने का तरीका नजर नहीं आ रहा था।
इसी उधेड़ बुन में बैठे हुए रात का निवाला अपने मुँह में डाल रही थी कि अमित ने एक बार फिर फ़िकरा कस दिया, बोलने लगा- अगर रितेश के बिना मन नहीं लग रहा है तो उसे वापिस बुला लेते हैं।
कहकर हँसने लगा।
तभी ससुर जी ने मुझसे बड़े प्यार से कहा- बेटी, अब तुम इस घर की हो और तुम्हें किसी भी प्रकार की पर्दे की जरूरत नहीं है। मुझे और तुम्हारी सास को छोड़कर इस घर में तुमसे बड़ा कोई नहीं है जिससे तुम्हें परदा करना पड़े, इसलिये मैं और तुम्हारी सास का मत यह है कि तुम भी नमिता की तरह गाउन पहन कर घर में रह सकती हो।
मैंने संकोचवश कह दिया- नहीं बाबूजीम ऐसे मैं कमर्फटेबल हूँ।
इस पर मेरी सास बोल उठी- नहीं बेटा, तुम नमिता की तरह गाउन पहन सकती हो।
‘ठीक है माँ जी, जब रितेश आ जायेंगे तो मैं उनसे गाऊन मंगवा लूँगी और फिर पहन लिया करूँगी।’
‘तभी बड़ी तेजी से नमिता दौड़ते हुए ऊपर गई और एक गाउन लेकर आ गई और बोली- भाभी, मेरी और तुम्हारी कद काठी एक जैसी है, तुम इसे पहनकर आ जाओ, तब तक मैं मां और बाबूजी को खाना खिला देती हूँ और फिर हम लोग साथ में खाना खायेंगे।
मैं गाउन लेकर ऊपर आ गई, लेकिन यह क्या… मेरे पास तो पैन्टी ब्रा भी नहीं थी क्योंकि रितेश की जिद के कारण मैंने काफी दिनों पहले से ही पैन्टी ब्रा पहना छोड़ दी थी।
तभी मेरे दिमाग में एक खुराफ़ात आ गई और मैं बिना पैन्टी ब्रा के ही गाउन पहन कर आ गई।
कमरे में इस समय मैं, नमिता और अमित ही थे।
बाकी के दोनों देवर भी खाना खाकर जा चुके थे और अब मेरे पास वो हथियार था जिससे अमित को मेरे काबू में आना ही था।
मैं नमिता की नजर बचा कर बीच बीच में अपने को झुका लेती और अमित को अपने चूचियों के दर्शन करा देती।
अमित के चेहरे से निकलते हुए पसीने का मतलब समझ कर मुझे खूब मजा आता।
मैं फिर से झुककर बैठ गई और जैसे ही रितेश की नजर मेरे जिस्म के अन्दर पड़ी तो वो अचानक बहुत तेज खांसने लगा और नमिता अमित के लिये पानी लेने बड़े ही तेजी से रसोई की तरफ भागी।
और मुझे एक पल का मौका मिल गया और मैंने अमित से कहा- और अमित जी, कौन सा दूध पीयोगे, मेरा या जो आ रही है उसका?
मैं कह कर शांत हो कर सीधी बैठ गई और खाना खाने लगी।
अमित के पास अब इतना मौका नहीं था कि वो मेरी बात का उत्तर दे सके।