(Un Dino Ki Yaden-2)
अगले दिन मनोज एक नई सीडी लाया था। वो भी समलिंगी लड़कों की सीडी थी। रोज की तरह हम दोनों ने स्नान किया। मैं तो आज लुंगी में ही था। उसे भी मैंने एक लुंगी दे दी। मुझे लगा कि कुछ मामला हुआ तो ये लुंगियाँ उतार फ़ेंकेंगे।
फ़िल्म के साथ साथ हमारी फ़िल्म भी आरम्भ हो गई थी। उसने कुछ ही देर के बाद अपनी कमीज उतार दी थी। मैंने भी अपनी बनियान उतार दी।
"सुन गुलशन, आज कुछ ओर मजा करते हैं.. तू मेरी पीठ पर गुदगुदी कर. ठीक है ना?"
"जैसा तू कहे. चल उल्टा लेट जा।"
मनोज जल्दी से उल्टा लेट गया और मैं उसकी पीठ को सहलाने लगा। मेरा मन फ़िल्म देख देख कर कुछ करने को होने लगा था। मैंने उसकी लुंगी ढीली कर दी और उसे नीचे सरका दी। उसकी चिकनी गाण्ड मेरे सामने आ गई थी। मैंने उसकी दोनों टांगें खोल दी और उसके चूतड़ों को दबाने लगा। मेरा लण्ड उसकी गाण्ड देख देख कर बेकाबू होने लगा था। मैंने उसकी गाण्ड की दरार पर अंगुली ऊपर नीचे रगड़ी। उसे बहुत आनन्द आने लगा था। उसकी गाण्ड का सिकुड़ा हुआ छेद और उस पर झुर्रियां.
उसे कुरेदने में उसे बहुत सुख मिल रहा था। उसके मुख से सिसकारी भी निकल रही थी। उसकी गाण्ड के छेद का छल्ला बार बार अन्दर-बाहर हो कर खुल और बन्द हो रहा था।
मैंने दारू के गिलास में अपनी अंगुली भिगो कर उसे उसकी गाण्ड में धीरे से डाल दी। उसने भी प्रत्युत्तर में मेरा लण्ड जोर से दबा दिया।
तभी उसने अपना सर उठा कर मेरा खुशबूदार लण्ड अपने मुख में भर लिया। मुझे एकदम गीला गीला सा लगा। मुझे लगा कि उसके कड़क लण्ड का स्वाद मैं भी ले लूँ।
"मनोज, सीधा हो जा, मुझे भी तेरा लण्ड चूसना है . देख फ़िल्म में भी तो वो चूस रहा है।"
मनोज सीधा हो गया। उसका लण्ड बहुत ही कड़क रहा था। मैं उसकी बगल में करवट लेकर लेट गया। उसने अपना लण्ड मेरे मुख के समीप कर दिया और मैंने अपना लण्ड उसके मुख के समीप कर लिया। मैंने उसका लण्ड अपने मुँह में ले लिया। बहुत अजीब सा लगा था। गोल गोल नरम सुपारा . फिर उसका लण्ड का डण्डा. मैंने उसे दबा कर चूसना शुरू कर दिया। उसकी तो चोदने जैसी गाण्ड चलने लगी और उसने तो जैसे धक्का मारना आरम्भ कर दिया। उसके लण्ड चूसने से मेरा शरीर पिघलने लगा था, जैसे अकड़न सी भर गई थी।
"मनोज, मेरा तो निकलने वाला है . ओह्ह्ह . बस कर ."
"मेरा भी गुल्लू . अरे आह ."
तभी मेरा वीर्य उसके मुख में ही निकल गया। मैंने लण्ड को उसके गले तक दबा दिया। तभी मनोज का भी वीर्य मेरे गले के पास जोर से निकल गया। ना चाहते हुए भी उसका वीर्य मेरे गले में उतरता चला गया।
कुछ देर तो हम दोनों ही निढाल से वैसे ही पड़े रहे। फिर हम दोनों दीवार का टेक लगा कर विश्राम करने लगे। धीरे धीरे हम दोनों ने शराब समाप्त की, चिकन खाया. पेट भर गया तो जान आई।
आधे घण्टे तक सुस्ताने के बाद हम फिर तरोताजा थे। तभी मैंने अपने मन की बात मनोज से कह दी।
"तेरी गाण्ड तो बड़ी मस्त है यार . मन तो कर रहा था की तेरी गाण्ड मार लूँ !"
मनोज हंस पड़ा- मेरी भी इच्छा यही थी कि एक बार यार अपन दोनों सुहागरात तो मना लें।
"अरे चल ! सुहागरात तो दुल्हन के साथ मनाते हैं !"
"तो क्या हुआ. मैं दुल्हन बन जाता हू और तू मेरी मार देना।"
"साला, चुदेगा क्या.?"
"अरे चल यार मान जा ना . यह लुंगी मैं ओढ़ लेता हूँ, और तू मुझे लड़की समझ कर चोद डाल।"
उसने लुंगी को अपने सर पर डाल कर घूंघट सा बना लिया और अपनी गाण्ड ऊंची करके घोड़ी बन गया। मेरे मन में लड्डू फ़ूटने लगे। मनोज की गाण्ड को मन में रख कर मैं तो रोज मुठ्ठ मारता था, आज तो मौका ही दे दिया है उसने। लण्ड मेरा अपने आप ही फ़ूल कर मोटा हो गया।
"अरे भोसड़ी के . तेल डाल कर गाण्ड मारना."
"ओह्ह. हाँ . अभी ले !"
मैंने तेल की शीशी ली और अपने लण्ड पर तेल लगाया और फिर उसकी गाण्ड के छेद पर भी लगा दिया। मुझे लगा कि उसे गाण्ड मरवाने की जल्दी थी। वो इस बात से बहुत ही उत्तेजित था कि अब उसकी गाण्ड चुदेगी।
उसका नीचे लटका हुआ लण्ड गजब का तन्ना रहा था। मैंने उसका तन्नाया हुआ लण्ड पकड़ा और अपना लण्ड उसकी गाण्ड से चिपका दिया। तेल की चिकनाई के कारण मेरा लण्ड थोड़ी सी कोशिश के बाद उसके गाण्ड के छेद में फ़ंस गया।
बस फिर क्या था, हल्के से जोर से लण्ड अन्दर सरकने लगा। मनोज भी प्रसन्न हो गया।
मजा आ गया यार गुल्लू . साले भड़वे ! तूने तो मेरी गाण्ड मार ही दी . क्या आनन्द आ रहा है . मार साले मार ."
मैंने लण्ड को अन्दर-बाहर करते हुए उसकी गाण्ड पेलनी आरम्भ कर दी, बिल्कुल ब्ल्यू फ़िल्म में जैसे मारते हैं, वैसे ही ! मैंने उसका कड़क लण्ड मसलते हुये उसकी मारना चालू रखा। बहुत कसा छेद था। कुछ सी देर में मेरे लण्ड का माल निकल गया।
"यार, गुल्लू बहुत मजा आता है यार . तू भी गाण्ड मरा कर देख ले."
मेरा मन भी ललचा गया। थोड़ा सा आराम करने के बाद और और एक पेग शराब और पीने के बाद हम दोनों फिर से तैयार थे। इस बार मेरी गाण्ड चुदनी थी। मनोज की ही तरह मैंने भी घोड़ी बन कर उसे चोदने की दावत दी। उसने पहले तो मेरी गाण्ड को बहुत थपथपाया . दबाया . फिर जीभ से चाटा भी। फिर मेरे चूतड़ों के दोनों पट चीर कर उसने जीभ से मेरी शैम्पू की खुशबू से भरपूर मेरी गाण्ड चाटी। जीभ को छेद में घुसाया भी। उफ़्फ़ बहुत आनन्द आया. फिर उसने अपनी अंगुली से मेरी गाण्ड में तेल लगा कर चोदा। मेरी गाण्ड अन्दर तक चिकनी हो गई थी। थूक और तेल का मिश्रण छेद को बहुत चिकना कर रहा था।
तभी उसका फ़ूले हुए सुपारे को मैंने अपनी गाण्ड की छेद पर महसूस किया। नरम सा, गरम सा . कठोर और दमदार। फिर उसका लण्ड मेरी गाण्ड को ढीला छोड़ने पर चाकू की तरह अन्दर घुस गया। उसने अब धीरे धीरे लण्ड को अन्दर-बाहर करके गाण्ड को मारनी शुरू कर दी। बहुत मीठी मीठी सी अनुभूति होने लगी थी।
"पूरा घुसा दे रे मनोज . चोद दे गाण्ड को यार !"
"ना ना ! धीरे धीरे . मुझे तो बहुत मजा आ रहा है . साली मां की भोसड़ी . क्या कसी गाण्ड है !"
"अरे दे ना झटका . फ़ाड़ दे साली को . बहुत उतावली थी रे ये गाण्ड लौड़ा लेने को . मार साली हरामी को."
मनोज अपनी आँखें बन्द किए हौले हौले से मेरी गाण्ड मार रहा था। मुझे बहुत ही आनन्द आ रहा था। मेरा लण्ड फ़ूल कर जैसे फ़टने लगा था। उसका लण्ड जने कब मेरी गाण्ड में पूरा उतर चुका था और भरपूर आनन्द दे रहा था।
तभी मनोज झड़ने लगा। उसने अपना लण्ड दबा दबा कर अपने वीर्य को पूरा अन्दर निकाल दिया। फिर वो मेरी पीठ पर झुक सा गया। उसका लण्ड सिकुड़ कर अपने आप ही बाहर सरकने लगा था।
फिर मनोज ने मेरे अकड़े हुये लण्ड को मुठ्ठी मार कर झड़ा दिया। मैंने अपने जीवन में पहली बार गाण्ड मरवाई थी, मुझे इसमें बहुत आनन्द आया था। लगा कि यार लोग लड़कियों के पीछे यूँ ही मरा करते हैं . एक छेद ही तो चाहिये माल निकालने के लिये।
उसके बाद मैं जब तक आगरा में रहा, मैंने तो बहुत मज़ा किया मनोज के साथ। मनोज भी बहुत खुश था इस सेक्स से . इस बारे में कोई नहीं जानता था . हम दोनों बिल्कुल सुरक्षित थे . हम दोनों कभी कभी तो आगरा से दिल्ली, ग्वालियर, झांसी, जयपुर आदि शहरों में भी घूम आते थे और वहाँ पर हनीमून मनाते थे।
अगले दिन मनोज एक नई सीडी लाया था। वो भी समलिंगी लड़कों की सीडी थी। रोज की तरह हम दोनों ने स्नान किया। मैं तो आज लुंगी में ही था। उसे भी मैंने एक लुंगी दे दी। मुझे लगा कि कुछ मामला हुआ तो ये लुंगियाँ उतार फ़ेंकेंगे।
फ़िल्म के साथ साथ हमारी फ़िल्म भी आरम्भ हो गई थी। उसने कुछ ही देर के बाद अपनी कमीज उतार दी थी। मैंने भी अपनी बनियान उतार दी।
"सुन गुलशन, आज कुछ ओर मजा करते हैं.. तू मेरी पीठ पर गुदगुदी कर. ठीक है ना?"
"जैसा तू कहे. चल उल्टा लेट जा।"
मनोज जल्दी से उल्टा लेट गया और मैं उसकी पीठ को सहलाने लगा। मेरा मन फ़िल्म देख देख कर कुछ करने को होने लगा था। मैंने उसकी लुंगी ढीली कर दी और उसे नीचे सरका दी। उसकी चिकनी गाण्ड मेरे सामने आ गई थी। मैंने उसकी दोनों टांगें खोल दी और उसके चूतड़ों को दबाने लगा। मेरा लण्ड उसकी गाण्ड देख देख कर बेकाबू होने लगा था। मैंने उसकी गाण्ड की दरार पर अंगुली ऊपर नीचे रगड़ी। उसे बहुत आनन्द आने लगा था। उसकी गाण्ड का सिकुड़ा हुआ छेद और उस पर झुर्रियां.
उसे कुरेदने में उसे बहुत सुख मिल रहा था। उसके मुख से सिसकारी भी निकल रही थी। उसकी गाण्ड के छेद का छल्ला बार बार अन्दर-बाहर हो कर खुल और बन्द हो रहा था।
मैंने दारू के गिलास में अपनी अंगुली भिगो कर उसे उसकी गाण्ड में धीरे से डाल दी। उसने भी प्रत्युत्तर में मेरा लण्ड जोर से दबा दिया।
तभी उसने अपना सर उठा कर मेरा खुशबूदार लण्ड अपने मुख में भर लिया। मुझे एकदम गीला गीला सा लगा। मुझे लगा कि उसके कड़क लण्ड का स्वाद मैं भी ले लूँ।
"मनोज, सीधा हो जा, मुझे भी तेरा लण्ड चूसना है . देख फ़िल्म में भी तो वो चूस रहा है।"
मनोज सीधा हो गया। उसका लण्ड बहुत ही कड़क रहा था। मैं उसकी बगल में करवट लेकर लेट गया। उसने अपना लण्ड मेरे मुख के समीप कर दिया और मैंने अपना लण्ड उसके मुख के समीप कर लिया। मैंने उसका लण्ड अपने मुँह में ले लिया। बहुत अजीब सा लगा था। गोल गोल नरम सुपारा . फिर उसका लण्ड का डण्डा. मैंने उसे दबा कर चूसना शुरू कर दिया। उसकी तो चोदने जैसी गाण्ड चलने लगी और उसने तो जैसे धक्का मारना आरम्भ कर दिया। उसके लण्ड चूसने से मेरा शरीर पिघलने लगा था, जैसे अकड़न सी भर गई थी।
"मनोज, मेरा तो निकलने वाला है . ओह्ह्ह . बस कर ."
"मेरा भी गुल्लू . अरे आह ."
तभी मेरा वीर्य उसके मुख में ही निकल गया। मैंने लण्ड को उसके गले तक दबा दिया। तभी मनोज का भी वीर्य मेरे गले के पास जोर से निकल गया। ना चाहते हुए भी उसका वीर्य मेरे गले में उतरता चला गया।
कुछ देर तो हम दोनों ही निढाल से वैसे ही पड़े रहे। फिर हम दोनों दीवार का टेक लगा कर विश्राम करने लगे। धीरे धीरे हम दोनों ने शराब समाप्त की, चिकन खाया. पेट भर गया तो जान आई।
आधे घण्टे तक सुस्ताने के बाद हम फिर तरोताजा थे। तभी मैंने अपने मन की बात मनोज से कह दी।
"तेरी गाण्ड तो बड़ी मस्त है यार . मन तो कर रहा था की तेरी गाण्ड मार लूँ !"
मनोज हंस पड़ा- मेरी भी इच्छा यही थी कि एक बार यार अपन दोनों सुहागरात तो मना लें।
"अरे चल ! सुहागरात तो दुल्हन के साथ मनाते हैं !"
"तो क्या हुआ. मैं दुल्हन बन जाता हू और तू मेरी मार देना।"
"साला, चुदेगा क्या.?"
"अरे चल यार मान जा ना . यह लुंगी मैं ओढ़ लेता हूँ, और तू मुझे लड़की समझ कर चोद डाल।"
उसने लुंगी को अपने सर पर डाल कर घूंघट सा बना लिया और अपनी गाण्ड ऊंची करके घोड़ी बन गया। मेरे मन में लड्डू फ़ूटने लगे। मनोज की गाण्ड को मन में रख कर मैं तो रोज मुठ्ठ मारता था, आज तो मौका ही दे दिया है उसने। लण्ड मेरा अपने आप ही फ़ूल कर मोटा हो गया।
"अरे भोसड़ी के . तेल डाल कर गाण्ड मारना."
"ओह्ह. हाँ . अभी ले !"
मैंने तेल की शीशी ली और अपने लण्ड पर तेल लगाया और फिर उसकी गाण्ड के छेद पर भी लगा दिया। मुझे लगा कि उसे गाण्ड मरवाने की जल्दी थी। वो इस बात से बहुत ही उत्तेजित था कि अब उसकी गाण्ड चुदेगी।
उसका नीचे लटका हुआ लण्ड गजब का तन्ना रहा था। मैंने उसका तन्नाया हुआ लण्ड पकड़ा और अपना लण्ड उसकी गाण्ड से चिपका दिया। तेल की चिकनाई के कारण मेरा लण्ड थोड़ी सी कोशिश के बाद उसके गाण्ड के छेद में फ़ंस गया।
बस फिर क्या था, हल्के से जोर से लण्ड अन्दर सरकने लगा। मनोज भी प्रसन्न हो गया।
मजा आ गया यार गुल्लू . साले भड़वे ! तूने तो मेरी गाण्ड मार ही दी . क्या आनन्द आ रहा है . मार साले मार ."
मैंने लण्ड को अन्दर-बाहर करते हुए उसकी गाण्ड पेलनी आरम्भ कर दी, बिल्कुल ब्ल्यू फ़िल्म में जैसे मारते हैं, वैसे ही ! मैंने उसका कड़क लण्ड मसलते हुये उसकी मारना चालू रखा। बहुत कसा छेद था। कुछ सी देर में मेरे लण्ड का माल निकल गया।
"यार, गुल्लू बहुत मजा आता है यार . तू भी गाण्ड मरा कर देख ले."
मेरा मन भी ललचा गया। थोड़ा सा आराम करने के बाद और और एक पेग शराब और पीने के बाद हम दोनों फिर से तैयार थे। इस बार मेरी गाण्ड चुदनी थी। मनोज की ही तरह मैंने भी घोड़ी बन कर उसे चोदने की दावत दी। उसने पहले तो मेरी गाण्ड को बहुत थपथपाया . दबाया . फिर जीभ से चाटा भी। फिर मेरे चूतड़ों के दोनों पट चीर कर उसने जीभ से मेरी शैम्पू की खुशबू से भरपूर मेरी गाण्ड चाटी। जीभ को छेद में घुसाया भी। उफ़्फ़ बहुत आनन्द आया. फिर उसने अपनी अंगुली से मेरी गाण्ड में तेल लगा कर चोदा। मेरी गाण्ड अन्दर तक चिकनी हो गई थी। थूक और तेल का मिश्रण छेद को बहुत चिकना कर रहा था।
तभी उसका फ़ूले हुए सुपारे को मैंने अपनी गाण्ड की छेद पर महसूस किया। नरम सा, गरम सा . कठोर और दमदार। फिर उसका लण्ड मेरी गाण्ड को ढीला छोड़ने पर चाकू की तरह अन्दर घुस गया। उसने अब धीरे धीरे लण्ड को अन्दर-बाहर करके गाण्ड को मारनी शुरू कर दी। बहुत मीठी मीठी सी अनुभूति होने लगी थी।
"पूरा घुसा दे रे मनोज . चोद दे गाण्ड को यार !"
"ना ना ! धीरे धीरे . मुझे तो बहुत मजा आ रहा है . साली मां की भोसड़ी . क्या कसी गाण्ड है !"
"अरे दे ना झटका . फ़ाड़ दे साली को . बहुत उतावली थी रे ये गाण्ड लौड़ा लेने को . मार साली हरामी को."
मनोज अपनी आँखें बन्द किए हौले हौले से मेरी गाण्ड मार रहा था। मुझे बहुत ही आनन्द आ रहा था। मेरा लण्ड फ़ूल कर जैसे फ़टने लगा था। उसका लण्ड जने कब मेरी गाण्ड में पूरा उतर चुका था और भरपूर आनन्द दे रहा था।
तभी मनोज झड़ने लगा। उसने अपना लण्ड दबा दबा कर अपने वीर्य को पूरा अन्दर निकाल दिया। फिर वो मेरी पीठ पर झुक सा गया। उसका लण्ड सिकुड़ कर अपने आप ही बाहर सरकने लगा था।
फिर मनोज ने मेरे अकड़े हुये लण्ड को मुठ्ठी मार कर झड़ा दिया। मैंने अपने जीवन में पहली बार गाण्ड मरवाई थी, मुझे इसमें बहुत आनन्द आया था। लगा कि यार लोग लड़कियों के पीछे यूँ ही मरा करते हैं . एक छेद ही तो चाहिये माल निकालने के लिये।
उसके बाद मैं जब तक आगरा में रहा, मैंने तो बहुत मज़ा किया मनोज के साथ। मनोज भी बहुत खुश था इस सेक्स से . इस बारे में कोई नहीं जानता था . हम दोनों बिल्कुल सुरक्षित थे . हम दोनों कभी कभी तो आगरा से दिल्ली, ग्वालियर, झांसी, जयपुर आदि शहरों में भी घूम आते थे और वहाँ पर हनीमून मनाते थे।