मित्रो, कहानी उसके आगे भी है और यह कहानी मेरी सच्ची कहानी है जिसमें कुछ शब्दों का हेर फेर है और पात्रों का नाम काल्पनिक है बस।
मैं एक लेखक हूँ और आप सभी को यथार्थ से परिचित करना मेरा एक मात्र उद्देश्य है और एक लेखक को क्या चाहिए, उसके प्रशंसक और उनका ढेर सारा प्यार… जो मुझे आप लोगों से भरपूर मिला है।
दोस्तो, मैं विंश शंडिल्य अपनी पिछली कहानी का अगला भाग लेकर आपके समक्ष प्रस्तुत हूँ और जैसा आपने पिछली कहानी में पढ़ा कि कैसे एक नारी माधवी को कई बुरी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा और अंततः उसे एक बुजुर्ग महिला ने अपने घर में शरण दी और उसे अपने अपनी बेटी के जैसा मान सम्मान दिया।
रात में जो हमारी बातें हुई और माधवी ने जो भी मुझे अपने बारे में बताया, फिर सुबह मैंने उसको उसके घर पर छोड़ा और अपने घर आ गया.
घर आकर सोचने लगा कि हम आज 21वीं सदी में जी रहे हैं और क्या सच में एक नारी का सम्मान आज भी उसे प्राप्त नहीं है। जो लड़की या औरत हिम्मत कर जाती है वो अपने सपनों की दुनिया बना लेती है लेकिन आज भी 70 प्रतिशत से ज़्यादा महिलाएं हैं जो आज भी किसी न किसी की हवस का शिकार होती हैं और हम औरतों को ही गलत कहते हैं। कभी कभी तो आत्मग्लानि होती है ऐसे परिवेश का हिस्सा बनकर जहाँ एक नारी सम्मानित होकर भी सम्मानित नहीं। क्या हम एक पूर्ण विकसित स्वदेश का यही सपना अपनी आँखों में सजा रहे हैं। जब तक हम नारी का सम्मान करना नहीं शुरू करेंगे, सच मानिए हम अपना और अपने रिश्तों का भी कभी सम्मान नहीं कर पाएंगे।
किसी भी नारी का या औरत का मन इतना निश्छल होता है कि उसके हृदय को उसके बिना कहे ही समझ सकते हैं, ऐसे जैसे बहते पानी के आर पार सारी वस्तुएँ हम अपनी आँखों पूर्ण रूपेण देख सकते हैं। हम कभी भी कोई भी सही या गलत बात कहें या किसी भी नारी से कहें फिर चाहे वो माँ हो, बीवी हो, बहन हो, बेटी हो, दोस्त हो, वो बिना किसी किन्तु परंतु के उस बात को बड़ी ही सहजता से स्वीकार कर लेती है, जैसे हमने जो कहा है वही एक मात्र सत्य है और बाकी सब मिथ्या और भ्रम।
फिर हम पुरुष उनको दुख देने में कभी पीछे नहीं रहते…
क्यों?
और नारी की निश्छलता को अपना हथियार बना कर हम लालची लोग उसी का शिकार करते हैं और यह भूल जाते हैं कि हमारा यह छल, खेल या वासना किसी की इहलीला भी समाप्त कर सकता है या किसी का जीवन भी बर्बाद कर सकता है।
मैं इसी ऊहापोह में था और यही सारी बातें सोच रहा था कि ना जाने कब मुझे निद्रा ने अपने अंदर समाहित कर लिया और मेरी आँख शाम को 6 बजे खुली, तब जब किसी ने मेरे फोन पर फोन किया।
नंबर पहचान का नहीं था क्योंकि कोई नाम लिखा हुआ नहीं आ रहा था.
मैंने फोन उठाया- हैलो?
उधर से आवाज़ आई- उठ गए आप?
मैं तो सोच में पड़ गया, यह तो माधवी की आवाज़ थी।
मैंने कहा- जी, लेकिन आपको कैसे पता कि मैं सो रहा था?
माधवी- मुझे पता है क्योंकि मैंने आपको 4-5 बार फोन किया लेकिन आपने फोन नहीं उठाया तो मैं समझ गई कि आपका ऑफिस आज बंद है और आप रात भर सोये नहीं हैं तो अभी आप सो रहे होंगे इसलिए मैंने अभी फिर से आपको फोन किया।
मैंने कहा- जी वो बस आँख लग गई थी। आप बताइये कैसे याद किया?
माधवी- माफ कीजिएगा, कल रात आप मेरे कारण सो नहीं पाये।
मैंने कहा- अरे नहीं, इसमे माफी की क्या बात है।
माधवी- फिर भी, मैंने बस ऐसे ही फोन कर लिया, आपसे बात करने का मन कर रहा था तो!
मैंने कहा- ठीक है। अगर कोई काम है तो बताइये?
माधवी- अरे नहीं कोई काम नहीं है। मैं दिन भर बैठी आपके बारे में ही सोच रही थी कि पहली बार कोई मिला जिसके साथ मैंने पूरी रात बिताई और उसने मुझे छूआ तक नहीं और खुद से बढ़ कर मुझे सम्मान दिया। आजकल ऐसा होता कहाँ है, लेकिन आपने मुझे गलत साबित कर दिया कि सभी पुरुष एक जैसे ही होते हैं और कल रात आपसे मिलने के बाद पता चला कि कुछ गंदे लोगों के कारण सभी बदनाम हो जाते हैं। मैं कल पूरी रात आप के साथ थी और अगर आप चाहते तो पिछले और लोगों कि तरह आप भी मेरा फायदा उठा सकते थे लेकिन आपने ऐसा कुछ नहीं किया और मुझे सही सलामत मेरे घर पर भी पहुंचाया। मैं आपका ये एहसान कैसे उतारूँगी।
मैंने कहा- इसमें अहसान की क्या बात है, यह तो मेरा उत्तरदायित्व था कि अगर आपको मेरी सहायता की आवश्यकता है तो मैं आपकी सहायता में तत्पर रहूँ। और रही बात रात की… तो मुझे एक स्त्री का सम्मान करना आता है, मैं शरीर को नहीं मन को जीतना चाहता हूँ। कल रात मैंने आपकी सहायता की, हो सकता है कल जब मुझे किसी की सहायता चाहिए होगी तो कोई मेरी भी सहायता के लिए तत्पर होगा। बस इतना सा मेरा स्वार्थ था और कुछ नहीं। बात रही शरीर की या हवस की तो मैं शारीरिक सम्बन्धों के विपरीत नहीं हूँ। मैं तो बस उसके खिलाफ हूँ जो बिना मन का होता है, अनुचित होता है या किसी दबाव में होता है। अगर बात शारीरिक सम्बन्धों की है तो फिर दोनों की सहमति आवश्यक है। अन्यथा ये सब गलत है।
माधवी- आप सच में बहुत अच्छे हैं। जैसे आपका मन है, वैसे ही आप भी हैं।
मैंने कहा- अब आप मुझे चने के झाड़ पर चढ़ा रही हैं।
माधवी- अरे नहीं, मैं बिल्कुल सच बोल रही हूँ।
कुछ और देर तक बातें करने के बाद हमने अपनी वाणी को विराम दिया और अपनी अपनी दिनचर्या में लग गए।
शाम का समय था तो मैं उठा और अपने लिए एक प्याली चाय बनाई, पीने लगा और माधवी के बारे में सोचने लगा।
तभी कुछ देर बाद फिर से माधवी का फोन आया। मैंने फोन उठाया और पूछा जी बताइये अब क्या हुआ?
माधवी- कुछ नहीं बस ऐसे ही पता नहीं क्यों आपसे बहुत बात करने का मन कर रहा है आज तो मैं फोन कर ले रही हूँ। कहीं मैं आप को परेशान तो नहीं कर रही हूँ?
मैंने कहा- जी बिल्कुल नहीं, आप मुझे बिल्कुल भी परेशान नहीं कर रही हैं। और मैं आपकी मनःस्थिति समझ सकता हूँ कि जब कोई आपको समझने वाला मिले तो मन कि क्या दशा होती है ये मुझे भली भांति अवगत है।
माधवी- जी आपने बिल्कुल सही कहा। मेरे अब तक के जीवन काल में मेरे पिता के बाद आप दूसरे ऐसे पुरुष हैं जिन्होंने मुझे समझा है।
उसके बाद करीब 2 मिनट तक हम दोनों ही शांत थे, मुझे तो ऐसा लग रहा था कि मेरा शब्दकोश ही खाली हो गया है, मैं एकदम निरुत्तर फोन को कान पर लगाए बैठा था और शायद माधवी की भी यही स्थिति थी तभी उसके मुख:विवर से कोई भी शब्द स्फुटित नहीं हो रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो हमारी हृदय गति रुक सी गई है और हमारी मूक वार्तालाप चल रही है। ये पहली बार मेरे साथ था कि इस शांति में भी एक अलग सा क्रंदन था।
खैर कुछ क्षण पश्चात माधवी ने चुप्पी तोड़ी- चाय पी ली आपने?
मैंने कहा- जी पी रहा हूँ। और आपने?
माधवी- मैंने पी ली। बस बैठी हुई हूँ और आपसे बातें कर रही हूँ। कुछ समान लेने बाज़ार जाना है लेकिन अकेले जाने का मन नहीं कर रहा है तो सोच रही हूँ क्या करूँ?
मैंने कुछ नहीं कहा और चुप ही रहा।
माधवी- एक बात बोलूँ आप बुरा तो नहीं मानेंगे?
मैंने कहा- जी बोलिए?
माधवी- क्या आप मेरे साथ बाज़ार चलेंगे अगर आपको कोई आपत्ति न हो तो?
मैंने कहा- जी मुझे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन मुझे अभी सब्जी लेने जाना है, फिर खाना भी बनाना है।
माधवी- क्यों ना हम आज खाना बाहर ही खाएं? क्या कहते हैं आप?
मैंने कहा- वो तो ठीक है! लेकिन आप की चाची जी? उनका क्या होगा?
माधवी- मैंने उनके लिए बना दिया है और वो गर्म कर के खा लेंगी और मैंने उनको बता भी दिया है कि कुछ काम से बाज़ार जा रही हूँ, थोड़े देर से आऊँगी।
मैंने कहा- ठीक है, फिर मैं आधे घंटे में आता हूँ, आप तैयार रहो और आप मुझे अपने घर के बाहर ही मिलना।
माधवी- ठीक है, मैं आपका इंतज़ार कर रही हूँ।
मैं अपनी कुर्सी से उठा और नहाकर तैयार हुआ और निकल गया उसके घर के तरफ करीब आधे घन्टे में मैं उसके घर के पास पहुंच गया।
वो अपने घर के बाहर ही मेरी प्रतीक्षा में लीन थी। पहली बार मैंने देखा था किसी स्त्री को प्रतीक्षा रत। आज वो बिल्कुल ही अलग लग रही थी, सजी धजी बहुत नहीं थी लेकिन ऐसा भी नहीं था कि उसने शृंगार न किया हो।
उसका शरीर न तो बहुत पतला था और न ही मोटा, मध्यम आकार का पूर्ण विकसित शरीर उसके हर अंग को बहुत ही सुंदरता से गौरवान्वित कर रहा था, उसने हल्के गुलाबी रंग की साड़ी पहनी हुई थी, उसी से मिलता हुआ उसका सैंडिल और उसकी चूड़ियाँ भी थी।
कल की अपेक्षा आज उसका व्यक्तित्व कुछ ज़्यादा ही दमक रहा था, चेहरा बिल्कुल गुलाब सा कोमल दिख रहा था, उस पर गुलाबी डिजाइनर बिंदी, कान में गुलाबी रंग के झुमके और उसके होठों पर गुलाबी रंग का लिपस्टिक, बाल खुले हुये, पूरी तरह से एक आकर्षक और मंत्रमुग्ध कर देने वाला रूप।
लेकिन कल की अपेक्षा उसमें एक बात अलग थी कि आज उसने सिंदूर लगा रखा था जो कल उसके माथे पर नहीं था।
शाम के 7:25 हो रहे थे, मैं उसके पास पहुंचा और उससे पूछा कि कहीं मुझे देर तो नहीं हो गई।
उसने मुस्कुरा कर कहा- नहीं बिल्कुल नहीं।
मैंने उसे अपनी गाड़ी पर बैठने का इशारा किया, वो आकर बैठ गई और मैंने गाड़ी बढ़ा दी।
उसके शरीर से एक बहुत ही मादक लेकिन हल्की महक आ रही थी जो किसी को भी पागल करने के लिए काफी थी। हम चुपचाप चलते रहे और करीब 20 मिनट बाद हम एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के पास पहुँच गए। मैंने अपनी गाड़ी जमा की और हम आगे को बढ़ चले।
वो बिल्कुल मेरी बराबरी में और नजदीक चल रही थी। कोई भी देखे तो हमें पति पत्नी ही समझता उस समय और शायद लोग समझ भी रहे थे।
उसका रूप वहाँ के दूधिया उजाले में ऐसा चमक रहा था जैसे अंधेरे में जुगनू चमकता है और लगभग सभी की आँखें उसी पर आकर रुक जा रही थी।
थोड़ी देर हमने कुछ समान खरीदा और ऐसे ही आस पास घूम रहे थे पर न तो वो मुझसे कुछ बोल रही थी और न ही मैं। कुछ देर बाद मैं चुप्पी तोड़ते हुये कहा- आपको कुछ खाना है?
माधवी- नहीं अभी तो नहीं, अगर आप कहें तो खा लेते हैं लेकिन मेरा मन आज मूवी देखने को कर रहा है। अगर आप कहें तो मूवी देखने चलें।
मैंने कुछ सोचा और हाँ कह दिया तो उसने कहा- रुकिए, मैं अभी टिकट लेकर आती हूँ.
मैंने उसे मना किया तो उसने कहा- आपने मेरे लिए इतना कुछ किया तो क्या मैं आपके लिए इतना नहीं कर सकती?
बहुत मना किया मैंने लेकिन वो मानी नहीं और जा कर एक मूवी की दो टिकट लेकर आई।
अभी 8:35 हो रहे थे और 8:45 की पिक्चर थी। जब तक वो टिकट लेकर आई तब तक मैंने उसके लिए जूस खरीद लिया था। वो आई तो मैंने उसको पीने के लिए दिया तो उसने कहा- इसकी क्या जरूरत थी।
खैर फिर हम जूस पीते पीते हाल में चले गए, तब तक मूवी का भी समय हो गया था। हम जाकर अपनी जगह पर बैठे, उसने सबसे पीछे की सीट बुक कराई थी।
मूवी शुरू हुई और हम सभी मूवी देखने में व्यस्त हो गए लेकिन जहाँ हम बैठे थे वहाँ ए.सी. सीधे हमारे ऊपर था तो एक तो मुझे ठंड परेशान कर रही थी और दूसरी माधवी की मादक खुशबू बार बार मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर ले रही थी। मेरा ध्यान मूवी पर जा ही नहीं रहा था.
खैर कैसे भी करके हमने पूरी मूवी देखी और हम बाहर आ गए।
मैंने कहा- चलो अब खाना खा लेते हैं क्योंकि हम लेट हो रहे हैं, तुम्हें घर भी छोड़ना है।
उसने कहा- ठीक है।
हमने खाना खाया, मैंने गाड़ी निकाली और हम उसकी घर की तरफ चल दिये।
रात के 11:30 हो रहे थे, मुझे उसे भी घर छोड़ने की जल्दी थी और मुझे भी घर पहुँचने की!
करीब 15 मिनट बाद हम उसके घर पहुँच गए, उसने मुझे मुस्कुरा कर देखा और अपने घर में चली गई, फिर मैं अपने घर के लिए निकाल गया।
कुछ देर में मैं भी घर पहुँच गया, गाड़ी खड़ी करके अपने ड्राईंग रूम में जाकर बैठ गया और अपना फोन देखा जो काफी देर से बंद था।
उसमें वाट्स ऐप पर बहुत सारे संदेश आये हुए थे। मैंने उन्हे देखना शुरू किया तो उनमें से कई संदेश तो माधवी के थे और कुछ एक दोस्तों के, एक ऑफिस से भी था कि कल मुझे ऑफिस नहीं जाना है क्योंकि इस सप्ताह मेरी जगह किसी और को छुट्टी लेनी थी और मुझे उसकी जगह पर काम करना था। उसने अपनी छुट्टी रद्द कर दी थी.
मैंने माधवी के संदेश खोले। पहले तो उसमें ढेर सारी फोटो थी जिसमें उसने अपनी आज की फोटो भेजी थी और ना जाने कब उसने मेरी और अपनी भी तस्वीर ले ली थी। लेकिन तस्वीरें सारी बहुत अच्छी थीं।
अभी मैं देख ही रहा था कि उसका दोबारा संदेश आया- घर पहुँच गए?
मैं- हाँ।
माधवी- क्या कर रहे हो?
मैं- कुछ नहीं, जो संदेश आए हैं उन्हें ही पढ़ रहा हूँ। लेकिन एक बात बताओ तुमने हमारी फोटो कब ली?
माधवी- जब हम मूवी देखने जा रहे थे तभी ली शायद आपने ध्यान नहीं दिया।
मैं- हो सकता है।
माधवी- आज मुझे तो बहुत मज़ा आया। कई साल बाद मुझे मेरे होने का एहसास हुआ। नहीं तो अब तक तो ऐसा लग रहा था कि मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है। बस काम, घर, ऑफिस, खाना और कुछ नहीं। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
मैं- इसमें धन्यवाद की क्या बात है। मुझे भी आज बहुत दिन बाद अच्छा लगा।
माधवी- आप कल क्या कर रहे हैं?
मैं- मतलब?
माधवी- मतलब कल आपका ऑफिस है?
मैं- क्यों? कोई काम है क्या?
माधवी- नहीं, बस ऐसे ही पूछ लिया।
मैं- नहीं, कल मेरा ऑफिस नहीं है। और अभी कल का कोई प्लान भी नहीं है।
माधवी- ठीक है, चलिये कल बात करते हैं। शुभ रात्रि!
मैं- शुभ रात्रि!
मैंने बात खत्म करके फोन एक तरफ रख दिया, कपड़े बदले और बालकनी में जा कर सिगरेट पीने लगा। सिगरेट पीने के बाद मैं अपने कमरे में गया और बिना किसी चिंता के सो गया क्योंकि कल की कोई बात नहीं थी छुट्टी थी।
पूरे दिन थके होने के कारण मुझे बड़ी चैन की नींद आई।
दूसरे दिन सुबह 9 बजे मैं सो कर उठा। अपने दिनचर्या से निवृत्त होकर मैंने चाय बनाई और बालकनी में खड़ा होकर चाय पीने लगा और पिछले दिन की बातें सोचने लगा। सच में बहुत ही अच्छा लगता है जब आपको कोई अपने दिल से आदर देता है और जब आप किसी को खुशियाँ भेंट में देते है। ऐसा ही समय कुछ कल का था। कल सच में वो बहुत खुश थी जैसे उसकी मुलाक़ात पहली बार खुशियों से हुई थी। उसका साथ मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था।
अभी मैं इन्ही बातों में खोया था कि मेरे फोन की घंटी बजी और मेरे दिल ने कहा कि ये माधवी की ही कॉल होगी और सच में उसकी ही कॉल थी।
मैंने फोन उठाया और कहा- हैलो!
माधवी- गुड मॉर्निंग!
मैं- गुड मॉर्निंग!
माधवी- कैसे हैं आप, और क्या कर रहे हैं?
मैं- कुछ नहीं, बस अभी सो कर उठा, चाय बनाई और पी रहा था. आप क्या कर रही हैं?
माधवी- मैंने भी अभी घर का सारा काम किया और अभी नहा कर आई तो सोचा आपको कॉल कर लूँ।
मैं- अच्छी बात है। और ऑफिस कितने बजे है?
माधवी- आज मेरा ऑफिस नहीं है। आज दिन भर मैं फ्री हूँ। तो अभी तक तो कुछ नहीं समझ आया कि क्या करना है लेकिन देखती हूँ। वैसे आज तो आप का भी ऑफिस नहीं है तो कुछ प्लान बनायें क्या?
मैं- कैसा प्लान?
माधवी- कहीं घूमने चलने का? या मूवी का? या लंच का?
मैं- जैसा आप ठीक समझो? आप बताओ क्या मन कर रहा है?
माधवी- कहीं घूमने चलते हैं फिर लंच साथ में करेंगे।
मैं- ठीक है फिर कितने बजे चलना है बताओ मैं आ जाता हूँ।
माधवी- नहीं, मैं आज आपके घर आती हूँ, वहाँ से चलेंगे।
मैं- ठीक है। कितने देर में आ रही हो?
माधवी- मैं एक घंटे में आ जाऊँगी।
मैं- ठीक है।
हमारी बात खत्म हुई और मैं फिर बालकनी में आ गया और एक सिगरेट जला ली। आज बाहर मौसम भी बहुत अच्छा हो रहा था, ऐसा लग रहा था कि बारिश होने वाली है।
खैर मैं भी नहाया और तैयार होकर माधवी की प्रतीक्षा में लीन हो गया।
करीब 1:30 घंटे बाद वो आई और उसने दरवाजे की घंटी बजाई। मैंने घड़ी देखी तो उस वक्त 12:15 हो रहा था, फिर मैंने दरवाजा खोला। मेरे दरवाजा खोलते ही मेरी तो आँखें खुली की खुली रह गई। आज उसने पीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी, उससे मिलती हुई चूड़ी, बिंदी हल्के सिंदूरी रंग की लिपस्टिक और तो और सैंडील भी मैचिंग की थी। मतलब वो ऐसी लग रही थी कि उसे जो देख ले उसका मुंह अपने आप खुल जाए।
उसने कहा- क्या यहीं पर रोक कर रखने का इरादा है या अंदर भी बुलाना है?
मैंने कहा- माफ करना!
और उसे अंदर बुलाया, बैठने को कहा. साथ ही मैंने उसे चाय या पानी के बारे में पूछा तो उसने मना कर दिया और कहा- नहीं, चलो चलते हैं।
मैंने कहा- ठीक है.
जैसे हम घर से बाहर निकले और मैं अपनी गाड़ी स्टार्ट करने लगा, तभी अचानक तेज़ बारिश शुरू हो गई।
हम दोनों भाग कर घर के अंदर आए और बारिश बंद होने का इंतज़ार करने लगे लेकिन बारिश थी कि उसे बंद ही होने का मन नहीं कर रहा था।
मैं एक लेखक हूँ और आप सभी को यथार्थ से परिचित करना मेरा एक मात्र उद्देश्य है और एक लेखक को क्या चाहिए, उसके प्रशंसक और उनका ढेर सारा प्यार… जो मुझे आप लोगों से भरपूर मिला है।
दोस्तो, मैं विंश शंडिल्य अपनी पिछली कहानी का अगला भाग लेकर आपके समक्ष प्रस्तुत हूँ और जैसा आपने पिछली कहानी में पढ़ा कि कैसे एक नारी माधवी को कई बुरी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा और अंततः उसे एक बुजुर्ग महिला ने अपने घर में शरण दी और उसे अपने अपनी बेटी के जैसा मान सम्मान दिया।
रात में जो हमारी बातें हुई और माधवी ने जो भी मुझे अपने बारे में बताया, फिर सुबह मैंने उसको उसके घर पर छोड़ा और अपने घर आ गया.
घर आकर सोचने लगा कि हम आज 21वीं सदी में जी रहे हैं और क्या सच में एक नारी का सम्मान आज भी उसे प्राप्त नहीं है। जो लड़की या औरत हिम्मत कर जाती है वो अपने सपनों की दुनिया बना लेती है लेकिन आज भी 70 प्रतिशत से ज़्यादा महिलाएं हैं जो आज भी किसी न किसी की हवस का शिकार होती हैं और हम औरतों को ही गलत कहते हैं। कभी कभी तो आत्मग्लानि होती है ऐसे परिवेश का हिस्सा बनकर जहाँ एक नारी सम्मानित होकर भी सम्मानित नहीं। क्या हम एक पूर्ण विकसित स्वदेश का यही सपना अपनी आँखों में सजा रहे हैं। जब तक हम नारी का सम्मान करना नहीं शुरू करेंगे, सच मानिए हम अपना और अपने रिश्तों का भी कभी सम्मान नहीं कर पाएंगे।
किसी भी नारी का या औरत का मन इतना निश्छल होता है कि उसके हृदय को उसके बिना कहे ही समझ सकते हैं, ऐसे जैसे बहते पानी के आर पार सारी वस्तुएँ हम अपनी आँखों पूर्ण रूपेण देख सकते हैं। हम कभी भी कोई भी सही या गलत बात कहें या किसी भी नारी से कहें फिर चाहे वो माँ हो, बीवी हो, बहन हो, बेटी हो, दोस्त हो, वो बिना किसी किन्तु परंतु के उस बात को बड़ी ही सहजता से स्वीकार कर लेती है, जैसे हमने जो कहा है वही एक मात्र सत्य है और बाकी सब मिथ्या और भ्रम।
फिर हम पुरुष उनको दुख देने में कभी पीछे नहीं रहते…
क्यों?
और नारी की निश्छलता को अपना हथियार बना कर हम लालची लोग उसी का शिकार करते हैं और यह भूल जाते हैं कि हमारा यह छल, खेल या वासना किसी की इहलीला भी समाप्त कर सकता है या किसी का जीवन भी बर्बाद कर सकता है।
मैं इसी ऊहापोह में था और यही सारी बातें सोच रहा था कि ना जाने कब मुझे निद्रा ने अपने अंदर समाहित कर लिया और मेरी आँख शाम को 6 बजे खुली, तब जब किसी ने मेरे फोन पर फोन किया।
नंबर पहचान का नहीं था क्योंकि कोई नाम लिखा हुआ नहीं आ रहा था.
मैंने फोन उठाया- हैलो?
उधर से आवाज़ आई- उठ गए आप?
मैं तो सोच में पड़ गया, यह तो माधवी की आवाज़ थी।
मैंने कहा- जी, लेकिन आपको कैसे पता कि मैं सो रहा था?
माधवी- मुझे पता है क्योंकि मैंने आपको 4-5 बार फोन किया लेकिन आपने फोन नहीं उठाया तो मैं समझ गई कि आपका ऑफिस आज बंद है और आप रात भर सोये नहीं हैं तो अभी आप सो रहे होंगे इसलिए मैंने अभी फिर से आपको फोन किया।
मैंने कहा- जी वो बस आँख लग गई थी। आप बताइये कैसे याद किया?
माधवी- माफ कीजिएगा, कल रात आप मेरे कारण सो नहीं पाये।
मैंने कहा- अरे नहीं, इसमे माफी की क्या बात है।
माधवी- फिर भी, मैंने बस ऐसे ही फोन कर लिया, आपसे बात करने का मन कर रहा था तो!
मैंने कहा- ठीक है। अगर कोई काम है तो बताइये?
माधवी- अरे नहीं कोई काम नहीं है। मैं दिन भर बैठी आपके बारे में ही सोच रही थी कि पहली बार कोई मिला जिसके साथ मैंने पूरी रात बिताई और उसने मुझे छूआ तक नहीं और खुद से बढ़ कर मुझे सम्मान दिया। आजकल ऐसा होता कहाँ है, लेकिन आपने मुझे गलत साबित कर दिया कि सभी पुरुष एक जैसे ही होते हैं और कल रात आपसे मिलने के बाद पता चला कि कुछ गंदे लोगों के कारण सभी बदनाम हो जाते हैं। मैं कल पूरी रात आप के साथ थी और अगर आप चाहते तो पिछले और लोगों कि तरह आप भी मेरा फायदा उठा सकते थे लेकिन आपने ऐसा कुछ नहीं किया और मुझे सही सलामत मेरे घर पर भी पहुंचाया। मैं आपका ये एहसान कैसे उतारूँगी।
मैंने कहा- इसमें अहसान की क्या बात है, यह तो मेरा उत्तरदायित्व था कि अगर आपको मेरी सहायता की आवश्यकता है तो मैं आपकी सहायता में तत्पर रहूँ। और रही बात रात की… तो मुझे एक स्त्री का सम्मान करना आता है, मैं शरीर को नहीं मन को जीतना चाहता हूँ। कल रात मैंने आपकी सहायता की, हो सकता है कल जब मुझे किसी की सहायता चाहिए होगी तो कोई मेरी भी सहायता के लिए तत्पर होगा। बस इतना सा मेरा स्वार्थ था और कुछ नहीं। बात रही शरीर की या हवस की तो मैं शारीरिक सम्बन्धों के विपरीत नहीं हूँ। मैं तो बस उसके खिलाफ हूँ जो बिना मन का होता है, अनुचित होता है या किसी दबाव में होता है। अगर बात शारीरिक सम्बन्धों की है तो फिर दोनों की सहमति आवश्यक है। अन्यथा ये सब गलत है।
माधवी- आप सच में बहुत अच्छे हैं। जैसे आपका मन है, वैसे ही आप भी हैं।
मैंने कहा- अब आप मुझे चने के झाड़ पर चढ़ा रही हैं।
माधवी- अरे नहीं, मैं बिल्कुल सच बोल रही हूँ।
कुछ और देर तक बातें करने के बाद हमने अपनी वाणी को विराम दिया और अपनी अपनी दिनचर्या में लग गए।
शाम का समय था तो मैं उठा और अपने लिए एक प्याली चाय बनाई, पीने लगा और माधवी के बारे में सोचने लगा।
तभी कुछ देर बाद फिर से माधवी का फोन आया। मैंने फोन उठाया और पूछा जी बताइये अब क्या हुआ?
माधवी- कुछ नहीं बस ऐसे ही पता नहीं क्यों आपसे बहुत बात करने का मन कर रहा है आज तो मैं फोन कर ले रही हूँ। कहीं मैं आप को परेशान तो नहीं कर रही हूँ?
मैंने कहा- जी बिल्कुल नहीं, आप मुझे बिल्कुल भी परेशान नहीं कर रही हैं। और मैं आपकी मनःस्थिति समझ सकता हूँ कि जब कोई आपको समझने वाला मिले तो मन कि क्या दशा होती है ये मुझे भली भांति अवगत है।
माधवी- जी आपने बिल्कुल सही कहा। मेरे अब तक के जीवन काल में मेरे पिता के बाद आप दूसरे ऐसे पुरुष हैं जिन्होंने मुझे समझा है।
उसके बाद करीब 2 मिनट तक हम दोनों ही शांत थे, मुझे तो ऐसा लग रहा था कि मेरा शब्दकोश ही खाली हो गया है, मैं एकदम निरुत्तर फोन को कान पर लगाए बैठा था और शायद माधवी की भी यही स्थिति थी तभी उसके मुख:विवर से कोई भी शब्द स्फुटित नहीं हो रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो हमारी हृदय गति रुक सी गई है और हमारी मूक वार्तालाप चल रही है। ये पहली बार मेरे साथ था कि इस शांति में भी एक अलग सा क्रंदन था।
खैर कुछ क्षण पश्चात माधवी ने चुप्पी तोड़ी- चाय पी ली आपने?
मैंने कहा- जी पी रहा हूँ। और आपने?
माधवी- मैंने पी ली। बस बैठी हुई हूँ और आपसे बातें कर रही हूँ। कुछ समान लेने बाज़ार जाना है लेकिन अकेले जाने का मन नहीं कर रहा है तो सोच रही हूँ क्या करूँ?
मैंने कुछ नहीं कहा और चुप ही रहा।
माधवी- एक बात बोलूँ आप बुरा तो नहीं मानेंगे?
मैंने कहा- जी बोलिए?
माधवी- क्या आप मेरे साथ बाज़ार चलेंगे अगर आपको कोई आपत्ति न हो तो?
मैंने कहा- जी मुझे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन मुझे अभी सब्जी लेने जाना है, फिर खाना भी बनाना है।
माधवी- क्यों ना हम आज खाना बाहर ही खाएं? क्या कहते हैं आप?
मैंने कहा- वो तो ठीक है! लेकिन आप की चाची जी? उनका क्या होगा?
माधवी- मैंने उनके लिए बना दिया है और वो गर्म कर के खा लेंगी और मैंने उनको बता भी दिया है कि कुछ काम से बाज़ार जा रही हूँ, थोड़े देर से आऊँगी।
मैंने कहा- ठीक है, फिर मैं आधे घंटे में आता हूँ, आप तैयार रहो और आप मुझे अपने घर के बाहर ही मिलना।
माधवी- ठीक है, मैं आपका इंतज़ार कर रही हूँ।
मैं अपनी कुर्सी से उठा और नहाकर तैयार हुआ और निकल गया उसके घर के तरफ करीब आधे घन्टे में मैं उसके घर के पास पहुंच गया।
वो अपने घर के बाहर ही मेरी प्रतीक्षा में लीन थी। पहली बार मैंने देखा था किसी स्त्री को प्रतीक्षा रत। आज वो बिल्कुल ही अलग लग रही थी, सजी धजी बहुत नहीं थी लेकिन ऐसा भी नहीं था कि उसने शृंगार न किया हो।
उसका शरीर न तो बहुत पतला था और न ही मोटा, मध्यम आकार का पूर्ण विकसित शरीर उसके हर अंग को बहुत ही सुंदरता से गौरवान्वित कर रहा था, उसने हल्के गुलाबी रंग की साड़ी पहनी हुई थी, उसी से मिलता हुआ उसका सैंडिल और उसकी चूड़ियाँ भी थी।
कल की अपेक्षा आज उसका व्यक्तित्व कुछ ज़्यादा ही दमक रहा था, चेहरा बिल्कुल गुलाब सा कोमल दिख रहा था, उस पर गुलाबी डिजाइनर बिंदी, कान में गुलाबी रंग के झुमके और उसके होठों पर गुलाबी रंग का लिपस्टिक, बाल खुले हुये, पूरी तरह से एक आकर्षक और मंत्रमुग्ध कर देने वाला रूप।
लेकिन कल की अपेक्षा उसमें एक बात अलग थी कि आज उसने सिंदूर लगा रखा था जो कल उसके माथे पर नहीं था।
शाम के 7:25 हो रहे थे, मैं उसके पास पहुंचा और उससे पूछा कि कहीं मुझे देर तो नहीं हो गई।
उसने मुस्कुरा कर कहा- नहीं बिल्कुल नहीं।
मैंने उसे अपनी गाड़ी पर बैठने का इशारा किया, वो आकर बैठ गई और मैंने गाड़ी बढ़ा दी।
उसके शरीर से एक बहुत ही मादक लेकिन हल्की महक आ रही थी जो किसी को भी पागल करने के लिए काफी थी। हम चुपचाप चलते रहे और करीब 20 मिनट बाद हम एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के पास पहुँच गए। मैंने अपनी गाड़ी जमा की और हम आगे को बढ़ चले।
वो बिल्कुल मेरी बराबरी में और नजदीक चल रही थी। कोई भी देखे तो हमें पति पत्नी ही समझता उस समय और शायद लोग समझ भी रहे थे।
उसका रूप वहाँ के दूधिया उजाले में ऐसा चमक रहा था जैसे अंधेरे में जुगनू चमकता है और लगभग सभी की आँखें उसी पर आकर रुक जा रही थी।
थोड़ी देर हमने कुछ समान खरीदा और ऐसे ही आस पास घूम रहे थे पर न तो वो मुझसे कुछ बोल रही थी और न ही मैं। कुछ देर बाद मैं चुप्पी तोड़ते हुये कहा- आपको कुछ खाना है?
माधवी- नहीं अभी तो नहीं, अगर आप कहें तो खा लेते हैं लेकिन मेरा मन आज मूवी देखने को कर रहा है। अगर आप कहें तो मूवी देखने चलें।
मैंने कुछ सोचा और हाँ कह दिया तो उसने कहा- रुकिए, मैं अभी टिकट लेकर आती हूँ.
मैंने उसे मना किया तो उसने कहा- आपने मेरे लिए इतना कुछ किया तो क्या मैं आपके लिए इतना नहीं कर सकती?
बहुत मना किया मैंने लेकिन वो मानी नहीं और जा कर एक मूवी की दो टिकट लेकर आई।
अभी 8:35 हो रहे थे और 8:45 की पिक्चर थी। जब तक वो टिकट लेकर आई तब तक मैंने उसके लिए जूस खरीद लिया था। वो आई तो मैंने उसको पीने के लिए दिया तो उसने कहा- इसकी क्या जरूरत थी।
खैर फिर हम जूस पीते पीते हाल में चले गए, तब तक मूवी का भी समय हो गया था। हम जाकर अपनी जगह पर बैठे, उसने सबसे पीछे की सीट बुक कराई थी।
मूवी शुरू हुई और हम सभी मूवी देखने में व्यस्त हो गए लेकिन जहाँ हम बैठे थे वहाँ ए.सी. सीधे हमारे ऊपर था तो एक तो मुझे ठंड परेशान कर रही थी और दूसरी माधवी की मादक खुशबू बार बार मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर ले रही थी। मेरा ध्यान मूवी पर जा ही नहीं रहा था.
खैर कैसे भी करके हमने पूरी मूवी देखी और हम बाहर आ गए।
मैंने कहा- चलो अब खाना खा लेते हैं क्योंकि हम लेट हो रहे हैं, तुम्हें घर भी छोड़ना है।
उसने कहा- ठीक है।
हमने खाना खाया, मैंने गाड़ी निकाली और हम उसकी घर की तरफ चल दिये।
रात के 11:30 हो रहे थे, मुझे उसे भी घर छोड़ने की जल्दी थी और मुझे भी घर पहुँचने की!
करीब 15 मिनट बाद हम उसके घर पहुँच गए, उसने मुझे मुस्कुरा कर देखा और अपने घर में चली गई, फिर मैं अपने घर के लिए निकाल गया।
कुछ देर में मैं भी घर पहुँच गया, गाड़ी खड़ी करके अपने ड्राईंग रूम में जाकर बैठ गया और अपना फोन देखा जो काफी देर से बंद था।
उसमें वाट्स ऐप पर बहुत सारे संदेश आये हुए थे। मैंने उन्हे देखना शुरू किया तो उनमें से कई संदेश तो माधवी के थे और कुछ एक दोस्तों के, एक ऑफिस से भी था कि कल मुझे ऑफिस नहीं जाना है क्योंकि इस सप्ताह मेरी जगह किसी और को छुट्टी लेनी थी और मुझे उसकी जगह पर काम करना था। उसने अपनी छुट्टी रद्द कर दी थी.
मैंने माधवी के संदेश खोले। पहले तो उसमें ढेर सारी फोटो थी जिसमें उसने अपनी आज की फोटो भेजी थी और ना जाने कब उसने मेरी और अपनी भी तस्वीर ले ली थी। लेकिन तस्वीरें सारी बहुत अच्छी थीं।
अभी मैं देख ही रहा था कि उसका दोबारा संदेश आया- घर पहुँच गए?
मैं- हाँ।
माधवी- क्या कर रहे हो?
मैं- कुछ नहीं, जो संदेश आए हैं उन्हें ही पढ़ रहा हूँ। लेकिन एक बात बताओ तुमने हमारी फोटो कब ली?
माधवी- जब हम मूवी देखने जा रहे थे तभी ली शायद आपने ध्यान नहीं दिया।
मैं- हो सकता है।
माधवी- आज मुझे तो बहुत मज़ा आया। कई साल बाद मुझे मेरे होने का एहसास हुआ। नहीं तो अब तक तो ऐसा लग रहा था कि मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है। बस काम, घर, ऑफिस, खाना और कुछ नहीं। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
मैं- इसमें धन्यवाद की क्या बात है। मुझे भी आज बहुत दिन बाद अच्छा लगा।
माधवी- आप कल क्या कर रहे हैं?
मैं- मतलब?
माधवी- मतलब कल आपका ऑफिस है?
मैं- क्यों? कोई काम है क्या?
माधवी- नहीं, बस ऐसे ही पूछ लिया।
मैं- नहीं, कल मेरा ऑफिस नहीं है। और अभी कल का कोई प्लान भी नहीं है।
माधवी- ठीक है, चलिये कल बात करते हैं। शुभ रात्रि!
मैं- शुभ रात्रि!
मैंने बात खत्म करके फोन एक तरफ रख दिया, कपड़े बदले और बालकनी में जा कर सिगरेट पीने लगा। सिगरेट पीने के बाद मैं अपने कमरे में गया और बिना किसी चिंता के सो गया क्योंकि कल की कोई बात नहीं थी छुट्टी थी।
पूरे दिन थके होने के कारण मुझे बड़ी चैन की नींद आई।
दूसरे दिन सुबह 9 बजे मैं सो कर उठा। अपने दिनचर्या से निवृत्त होकर मैंने चाय बनाई और बालकनी में खड़ा होकर चाय पीने लगा और पिछले दिन की बातें सोचने लगा। सच में बहुत ही अच्छा लगता है जब आपको कोई अपने दिल से आदर देता है और जब आप किसी को खुशियाँ भेंट में देते है। ऐसा ही समय कुछ कल का था। कल सच में वो बहुत खुश थी जैसे उसकी मुलाक़ात पहली बार खुशियों से हुई थी। उसका साथ मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था।
अभी मैं इन्ही बातों में खोया था कि मेरे फोन की घंटी बजी और मेरे दिल ने कहा कि ये माधवी की ही कॉल होगी और सच में उसकी ही कॉल थी।
मैंने फोन उठाया और कहा- हैलो!
माधवी- गुड मॉर्निंग!
मैं- गुड मॉर्निंग!
माधवी- कैसे हैं आप, और क्या कर रहे हैं?
मैं- कुछ नहीं, बस अभी सो कर उठा, चाय बनाई और पी रहा था. आप क्या कर रही हैं?
माधवी- मैंने भी अभी घर का सारा काम किया और अभी नहा कर आई तो सोचा आपको कॉल कर लूँ।
मैं- अच्छी बात है। और ऑफिस कितने बजे है?
माधवी- आज मेरा ऑफिस नहीं है। आज दिन भर मैं फ्री हूँ। तो अभी तक तो कुछ नहीं समझ आया कि क्या करना है लेकिन देखती हूँ। वैसे आज तो आप का भी ऑफिस नहीं है तो कुछ प्लान बनायें क्या?
मैं- कैसा प्लान?
माधवी- कहीं घूमने चलने का? या मूवी का? या लंच का?
मैं- जैसा आप ठीक समझो? आप बताओ क्या मन कर रहा है?
माधवी- कहीं घूमने चलते हैं फिर लंच साथ में करेंगे।
मैं- ठीक है फिर कितने बजे चलना है बताओ मैं आ जाता हूँ।
माधवी- नहीं, मैं आज आपके घर आती हूँ, वहाँ से चलेंगे।
मैं- ठीक है। कितने देर में आ रही हो?
माधवी- मैं एक घंटे में आ जाऊँगी।
मैं- ठीक है।
हमारी बात खत्म हुई और मैं फिर बालकनी में आ गया और एक सिगरेट जला ली। आज बाहर मौसम भी बहुत अच्छा हो रहा था, ऐसा लग रहा था कि बारिश होने वाली है।
खैर मैं भी नहाया और तैयार होकर माधवी की प्रतीक्षा में लीन हो गया।
करीब 1:30 घंटे बाद वो आई और उसने दरवाजे की घंटी बजाई। मैंने घड़ी देखी तो उस वक्त 12:15 हो रहा था, फिर मैंने दरवाजा खोला। मेरे दरवाजा खोलते ही मेरी तो आँखें खुली की खुली रह गई। आज उसने पीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी, उससे मिलती हुई चूड़ी, बिंदी हल्के सिंदूरी रंग की लिपस्टिक और तो और सैंडील भी मैचिंग की थी। मतलब वो ऐसी लग रही थी कि उसे जो देख ले उसका मुंह अपने आप खुल जाए।
उसने कहा- क्या यहीं पर रोक कर रखने का इरादा है या अंदर भी बुलाना है?
मैंने कहा- माफ करना!
और उसे अंदर बुलाया, बैठने को कहा. साथ ही मैंने उसे चाय या पानी के बारे में पूछा तो उसने मना कर दिया और कहा- नहीं, चलो चलते हैं।
मैंने कहा- ठीक है.
जैसे हम घर से बाहर निकले और मैं अपनी गाड़ी स्टार्ट करने लगा, तभी अचानक तेज़ बारिश शुरू हो गई।
हम दोनों भाग कर घर के अंदर आए और बारिश बंद होने का इंतज़ार करने लगे लेकिन बारिश थी कि उसे बंद ही होने का मन नहीं कर रहा था।