एक अजनबी शहर में अनजान से चूत चुदाई

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एक अजनबी शहर में अनजान से चूत चुदाई

बाद जनवरी, 2010 की है। मैं अपने पति के साथ उनके बिज़नेस के सिलसिले में ग्वालियर, मध्य-प्रदेश गई थी। पहले तो सोचा कि ट्रेन से चलते हैं पर बाद में इन्होंने कहा कि नहीं, घूमते-घूमते चलेंगे, रास्ते में आगरा, मथुरा भी देखते हुए जाएँगे। अतः हम दोनों अपनी गाड़ी से लुधियाना से पहले दिल्ली गए और फिर वहाँ से ग्वालियर की ओर चल दिए।

सारे रास्ते हम बहुत ही मज़े करते हुए गए। जब हम आगरा में थे तो मेरे पति को फोन आ गया कि ग्वालियर वाली मीटिंग किसी वज़ह से रद्द हो गई है और अब वो मीटिंग २ दिनों के बाद यानि १४ जनवरी को मोरेना में होगी क्योंकि अधिकतर सदस्य मोरेना में थे, तो हमने सोचा चलो पहले मोरेना में ही रूकते हैं बाद में ग्वालियर सिर्फ घूमने के लिए चले जाएँगे।

अतः हम मोरेना जाकर एक होटल राधिका पैलेस में रूक गए। अच्छा सा, ख़ूबसूरत होटल था। मीटिंग वाले दिन मेरे श्रीमान जी मेरे को आठ बजे ही होटल में छोड़कर, शाम में आने का कहकर चले गए। उस वक्त मैं अपने बिस्तर में लेटी हुई थी और मेरे बदन पर सिर्फ एक रेशमी नाईटी थी जिसमें मेरा बदन छुप कम और दिख ज़्यादा रहा था।

खैर मेरे पति के चले जाने के बाद मैं बिस्तर पर बैठ टीवी देखती रही, फिर मैंने फोन पर चाय का ऑर्डर दिया। १० मिनटों के बाद चाय आई और जो लड़का चाय लेकर आया, मैंने देखा वो मेरे को घूर रहा था। जब मैंने अपनी ओर ध्यान दिया तो पाया कि नाईटी के नीचे खिसक जाने से मैं तो ऊपर से लगभग नंगी ही लग रही थी। मेरी गोल-मटोल, गोरी-गोरी बड़ी चूच के सिर्फ निप्पल ही ढँके थे बाकी ऊपर का सारा बाहर झाँक रहा था।

मैं भी मज़े लेने की मारी, जान-बूझकर लेटी रही और वेटर को घूरते देखती रही। जब वेटर ने २-३ बार पूछा, "मैडम, और कुछ लेंगी" तब मैंने भी पलट कर जवाब दिया, "और क्या है तुम्हारे पास देने को, अगर कोई दमदार चीज़ है तो बात कर।" पर वो झेंप गया और थैंक यू मैम कह कर चला गया। चाय पीने के बाद मैं नहाने चली गई, नहा कर तरो-ताज़ा होकर मैं बाज़ार को निकल गई और बाज़ार में इधर-उधर फालतू की शॉपिंग करती रही। करीब १२ बजे मैं वापिस होटल में आ गई।

थोड़ी देर बिस्तर पर लेट कर फिर टीवी देखा, पर मेरे को तो टीवी भी बोर कर रहा था, तो मैंने अपना लैपटॉप उठाया और अपनी फैन मेल चेक करने लगी और मेल चेक करते-करते मेरे को अपने एक फैन "स्माईल दोस्त" की मेल मिली। वो मोरेना में ही रहता था, मैंने सोचा ये मज़ा करने का अच्छा मौक़ा है अगर अच्छा नौजवान हुआ तो ठीक है नहीं तो वैसे ही मिलकर चाय पिला कर वापिस भेज दूँगी।

अतः मैंने मेल में से उसका मोबाईल नम्बर लेकर उसे कॉल किया। वो भी खाली था तो बोला, "अरे संजना जी आप कहें और हम ना आएँ, ये कैसे हो सकता है, बताईए कहाँ आना है?" जब मैंने होटल का नाम बताया तो वो बोला, "अरे मैं तो आपके बिल्कुल नज़दीक हूँ, बस ५ मिनट में ही पहुँच जाता हूँ।" ठीक ५ मिनट बाद मेरे रूम का दरवाज़े पर दस्तक हुई,

जब मैंने दरवाज़ा खोला तो सामने एक संजीदा, आकर्षक, ३०-३२ साल का नौजवान, ५'८" का क़द, सुन्दर चेहरा, हाथों में फूलों का गुच्छा लिए मेरे सामने खड़ा था, हाथ मिलाया तो उसने दोनों हाथों से मेरा हाथ दबाया और हम अन्दर आ कर सोफ़े पर बैठ गए। कुछ देर हम इधर-उधर की एक दूसरे के बारे में बातें करते रहे। फिर मैंने पूछा, "क्या पीओगे?" तो उसने मेरी बड़ी चूच को देखते हुए कहा, "जो आप प्यार से पिला दें," मैं भी उसका इशारा समझ गई थी।

ख़ैर मैंने वेटर को चिकेन लॉलीपॉप और दो ठंडी बीयर लाने का ऑर्डर दिया। फिर मैंने उससे पूछा "अरे तुम अपना नाम तो बताओ।" वो बोला, "जो आप रख दें, वहीं मेरा नाम !" मैंने कहा, "अरूप चलेगा?" वो बोला, "बिल्कुल !" बातचीत के दौरान मैं महसूस कर रही थी कि अरूप की इच्छा हो रही थी कि बस दो मिनट में वो मेरी साड़ी फाड़ कर मेरे को चोद के रख दे। पर मैंने देखा कि उसकी बातचीत बड़ी संतुलित थी, उसने एक बार भी घटिया भाषा का या गन्दे इशारे का इस्तेमाल नहीं किया,

पर उसकी आँखें मेरी ब्लाऊज़ से झाँक रहीं मेरी बड़ी चूच पर ही टिकी थीं। मैंने भी उसकी इच्छा पूरी करने के लिए अपना पल्लू नहीं सँभाला और उसको नेत्र-भोजन करवा रही थी। तभी डोर-बेल बजी, वेटर ऑर्डर लेकर आ गया। हम दोनों ने साथ बैठकर बीयर पी और चिकेन भी खाया। जैसे बीयर का सुरूर चढ़ता गया हम दोनो ज़्यादा खुलते गए, जो दूर-दूर बैठे थे बिल्कुल क़रीब होकर बैठ गए, फिर बातों-बातों में अरूप ने मेरा हाथ पकड़ कर चूम लिया।

मैंने कहा, "यह तो वो बात हो गई कि जो सारी गाड़ी चुरा सकता था, सिर्फ एक टायर चुराकर ही खुश हो गया लगता है !" मेरी बात सुनकर अरूप ने मेरे को अपनी गोद में बिठा लिया। अब मेरा सिर उसकी गोद में था और उसने बड़े प्यार से मेरे बालों को सहलाते हुए मेरे गालों पर किस करना शुरू किया। चुम्बन में अरूप मेरे को थोड़ा बदमाश लगा क्योंकि वो तो मेरे होठों को खा ही जाता था।

चुम्बन करते-करते उसने अपना एक हाथ मेरी बड़ी चूच पर रखा और दबाने लगा। मेरे को भी मज़ा आने लगा और मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी जिसे उसने बड़े प्यार से अन्दर खींच लिया और चूसने लगा।

फिर उसने मुझसे कहा, "सन्जू, अब सब्र नहीं होता, मैं तुम्हें पूरी नंगी देखना चाहता हूँ।" मैंने कहा, "तुम्हारी गोद मैं लेटी हूँ, सारी की सारी तुम्हारी हूँ, जो चाहे कर लो, मैं मना थोड़े ही करूँगी।" मेरी मंज़ूरी मिलने के बाद उसने एक-एक करके मेरे ब्लाऊज़ के बटन खोले और मेरा ब्रा के ऊपर से ही मेरी बड़ी चूच को चूमा, दबाया और फिर मेरे ब्रा की हुक खोल कर मेरी दोनों बड़ी चूच को आज़ाद किया।

मेरी दोनों छातियों को बारी-बारी से अपने हाथों में लेकर दबाया और चूचुकों को मुँह में लेकर चूसा, जिससे मेरे चूचुक कड़े हो गए। आनन्द के मारे मेरे मुँह से "ओहहहहह, आआआआहहहह, उफ्फ्फ्फ्फफ्, स्स्स्स्सीसीसीसी" जैसी आवाज़ें निकल रहीं थीं।

मेरी चूचियाँ चूसते-चूसते अरूप ने मेरी पेटीकोट और साड़ी टाँगों से उठा कर मेरी टाँगों, जाँघों और मेरी चूत पर हाथ फिराना शुरू किया। मेरी चूत पानी छोड़-छोड़ कर गीली हुई पड़ी थी। मैंने कहा, "मेरा तो सारा सामान देख लिया, अब अपना भी कुछ दिखाओ," यह सुनकर अरूप बोला, "जानेमन, सब तुम्हारा ही तो है।" यह कह कर उसने अपनी शर्ट और बनियान उतारी, फिर पैंट, बूट्स और ज़ुराबें भी उतार दीं,

पर अन्डरवियर नहीं उतारा और कहा, "इसका उदघाटन तुम करो।" मेरे को उसके अन्डरवियर में छुपा उसका मूसल जैसा बड़ा लण्ड दिख रहा था। जब मैंने उसकी अन्डरवियर उतारी तो अन्दर से एक ८ इंच लम्बा मोटा, लोहे जैसा सख्त बड़ा लण्ड बाहर निकला।

उसने अपने बाल साफ कर रखे थे जिस कारण उसका बड़ा लण्ड और भी भयानक लग रहा था। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसका बड़ा लण्ड हाथ में पकड़ कर अपनी ओर खींचा और मुँह में लेकर चूसने लगी। अरूप मेरे बालों में हाथ फिरता रहा और धीरे-धीरे आगे-पीछे होकर मेरा मुँह चोदता रहा। बड़ा लण्ड चुसवाते-चुसवाते वो एक ओर झुका और मेरी साड़ी और पेटीकोट खोल कर उतार दी।

अब हम दोनों बिल्कुल नंगे थे। मैंने उसका बड़ा लण्ड पकड़ा और उसे खींच कर अपने बिस्तर पर ले गई। वहाँ हमने ६९ की स्थिति ले ली, मैंने उसके बड़ा लण्ड को चूसा तो उसने भी अपनी पूरी जीभ मेरी चूत में डाल-डाल कर चाटी। और ९-१० मिनटर के मुख-मैथुन में हम दोनों झड़ गए। कुछ देर यूँ ही लेटे रहे फिर दोनों उठकर बाथरूम में गए, बाथ-टब में एक साथ नहाए।

नहा कर तौलिये से एक-दूसरे के बदन को पोंछा और अरूप मेरे को गोद में उठाकर बिस्तर पर ले आया। जब उसने मेरे को बिस्तर पर लिटाया तो मैंने देखा कि उसका बड़ा लण्ड फिर से अकड़ गया था। मैंने कहा, "ये क्या कह रहा है?" वो बोला, "नाराज़ होकर अकड़ गया है कि मेरे को मेरी सहेली से तो मिलाया ही नहीं, ख़ुद ही सारे मज़े ले लिए, मेरे को तो मज़ा दिलाया ही नहीं !"

तो मैंने कहा, "अरे भाई किसी को नाराज़ नहीं करना चाहिए, इसकी सहेली भी इससे मिलने को बेताब है, आओ दोनों को मिला दें।" इतना सुनते ही अरूप छलाँग लगा कर मेरे ऊपर आ गया और फिर से मेरे होठों, गालों और बड़ी चूच को चूसना शुरू कर दिया।

२-४ मिनट की पूर्व-क्रिया के बाद मेरी चूत फिर से गीली हो गई। मैंने अरूप का कड़क बड़ा लण्ड हाथ में पकड़ा, अपनी टाँगें चौड़ी कीं और उसका बड़ा लण्ड अपनी चूत के मुँह पर रखा। "देखो, सहेली अपने यार का मुँह चूम रही है।" मैंने कहा। तो अरूप बोला, " यार कहता है कि मैं तो सहेली के मुँह में ही घुस जाऊँगा," इतना कहकर अरूप ने धक्का लगाया और उसके बड़ा लण्ड का सुपाड़ा मेरी चूत में घप्प से घुस गया और २-४ शॉट्स में उसने पूरा बड़ा लण्ड अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया।

मैंने देखा कि अरूप के चोदने में भी स्टाईल थी। सारा समय उसनी चुदाई एक ही गति से और लगातार की। थोड़ी देर के बाद उसने स्थित बदलने को कहा, अब उसने मेरे को घोड़ी बनने को कहा और पीछे से अपने बड़ा लण्ड को मेरी चूत में डाल कर चूत चुदाई की

कुछ देर इस तरह से चोदने के बाद वो नीचे लेट गया और मेरे को ऊपर आने को कहा, पर चोदा फिर भी उसी ने, मैंने ऊपर हवा में अपनी कमर रोक कर रखी और वो नीचे से झटके लगाता रहा। इसी दौरान मेरा जिस्म अकड़ गया और मैं झड़ गई पर वो लगा रहा। कभी दाईं ओर से, कभी बाईं ओर से, कभी मैं ऊपर, कभी वो ऊपर, चूस-चूस कर उसने मेरे होंठ सूजा दिए, पी-पीकर उसने मेरे निप्पल भी दुखा दिए पर वो झड़ने का नाम नहीं ले रहा था।

जब दो बार झड़ने के बाद मेरी चूत दुखने लगी तो मैंने कहा, "अब झड़ भी जाओ यार, मेरी तो दुखने भी लगी है !" वो बोला, "बस काम होने ही वाला है बताओ कहा छुडाऊँ, चूत में, बड़ी चूच पर, या मुँह में?" मैंने कहा "जहाँ तुम चाहो !" तो उसने कहा, "तो ठीक है तेरी चूत में झड़ूँगा।" यह कहकर उसने अपनी गति बढ़ा दी और धाड़-धाड़ ज़ोरों से धक्के मार कर मेरे को चोदने लगा।

मेरे को दर्द तो हुआ पर मैं उसके मज़े को खराब नहीं कर सकती थी इसलिए दर्द सहती रही और २ मिनट बाद ही उसने मेरे सिर के बाल ज़ोर से पकड़ लिए और मेरे निचले होंठ को ज़ोर से अपने होठों में भींच लिया और ताबड़तोड़ झटके लगता हुआ मेरी चूत में झड़ गया। मैंने भी उसे कस के अपनी बाहों में जकड़ लिया, उसका बदन पसीने से भींगा हुआ था, साँस धौंकनी की तरह चल रही थी, दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। छूटने के बाद वो कितनी देर मेरे ऊपर ही लेटा रहा।

मैं महसूस कर रही थी कि उसका कड़क बड़ा लण्ड झड़ने के बाद मेरी चूस में ही धीरे-धीरे सिकुड़ रहा था। आखिर अरूप मेरे ऊपर से नीचे उतरा और मेरी बगल में लेट गया। "संजू, ज़िन्दगी में पहली बार इतना मज़ा आया, शायद नेट पर चैटिंग करते-करते तुम्हें चोदने की जो हसरत दिल में पैदा हो गई थी उसे पूरा होने की खुशी थी, पता नहीं क्या, पर बेहद मज़ा आया।"

मैं भी खुश थी, मैंने उसके होठों को किस किया और उठकर बाथरूम को जाते हुए बोली," एक बार और नहाया जाए?" "हाँ, पर नहाने के बाद एक दौर और चलाएँगे?" उसने कहा। तो मैंने आँखों से "हाँ" का इशारा करके बाथरूम की ओर भागी तो वो भी उठा और मेरे को पकड़ने के लिए मेरे पीछे भागा।
 
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