कहानी मेरे दीदी की ननद की

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प्रीति! यही तो नाम है उसका, गोरा बदन छरहरा कसाव पतली गांड और दबंग बड़े चूंचे, ये उसके बदन का एक मामूली सा भूगोल है। लेकिन सच तो यह है कि चोदने के लिये परफ़ेक्ट बनी इस लौँडिया को देखते ही मेरा लंड डिस्को करने लगता था चढ्ढी के अंदर में। वो मेरी दीदी की ननद है और इस लिये मुझे उस तक जाने के लिये बस अपनी दीदी की ससुराल जाना पड़ता था। वो मुझे चाहती थी और कई बार मौका पाकर मैं उसके चून्चे और होट चूस चुका था। बस बाकी रह गयी थी पुरकस जबरदस्त चुदाई जो कि बस एक मौके की तलाश थी मुझे और ये काम भी फ़ाईनल हो जाना था। चोदवाने को तो वो भी तैयार थी लेकिन उसकी मम्मी हम दोनों पर कड़ी नजर रखती थीं और् इसलिये मुझे ये मौका मिल नहीं पा रहा था। एक रात जब ठंडियों के दिन थे, मैं टायलेट गया। आज में उसकी जवानी की कहानी अपने लौड़े से लिखने की सोच चुका था। वहां जाकर मैंने उसे अपने मोबाईल से मिसकाल करी और वो चुपचाप अपनी मम्मी से नजरें बचा कर दबे पांव बाथरुम में चली आयी।

मेरा लंड ठंड के मारे और तेज पेशाब के चलते खड़ा था। मैंने उसके आते ही अपना लंड उसके हाथ में थमा दिया और उसके रसीले होटों को चूसने लगा। उसने अपने एक हाथ मेरे गले में डाल दिये और मेरे और पास आ गयी। उसकी गर्म सांसें मेरे चेहरे पर टकरा कर मुझे और उत्तेजित कर रही थीं। ये प्यार की एक अलग कहानी लिखने के लिये मुझे प्रेरित कर रही थी। मैंने अपने हाथों से उसके गुदाज कोमल नितम्ब मसल्ने शुरु कर दिए और वह मचलने लगी। उसके होट मेरे होटों पर नाच रहे थे। ये कहानी आपके लिये सुनायी जा रही है इसलिये इस कहानी को सिर्फ़ अपने दिल तक रखें और किसी से जरुर सुनायें चुपके चुपके तो देखिए आगे क्या हो रहा है। हर कोने को छूते हुए मैन्ने उसका मुंह खोल कर अपनी जीभ उसके मुह में डाल दी, बिल्कुल लंड की तरह और फ़िर सीधा जीभ उसके खुले मुंह में अंदर बाहर पेलने लगा। उसे ये चुम्मा का तरीका पसंद आया। मैंने उसके मुह के रस को खूब पीना जारी रखा और अपने हाथों से उसकी गांड को मसल मसल कर और मुलायम बना चुका था। अब बारी थी चुदाई के खेल की।

मैंने अपना लंड उसके हाथ के कब्जे से बाहर निकाला। वो उसे सहला कर और मसल कर एक दम लोहे की राड बना चुकी थी। अब बारी थी उसे चोदने की। मैंने उसकी सलवार खोल दी और पैरों से बाहर निकाल दी। कम्बख्त गोरी चूत अंधेरे में भी चमक रही थी पर उसने बहुत दिनों से अपनी झांटें नहीं बनायीं थीं। काली काली झांटों में गोरी गोरी चूत एक दम मुझे खल्ल्लास कर गयी। मैंने उसे गोद में उठा लिया, हल्की फ़ुल्की फ़ूलकुमारी की फ़ूली हुई चूत को अपने लंड के सुपारे के उपर रखा और कमर में एक हाथ डाल कर धीरे से उसे अपने लंड के उपर सरका दिया। वह अचकचायी और मेरा लंड उसकी चूत को चीरते हुए अंदर था। एक दम अंदर बिल्कुल फ़ाड़ता हुआ जैसे ही मैंने अपने हथियार पूरा अंदर अंडकोष की जड़ तक पेला। वह चिल्लाई उई मां पर मैंने कहा जाने मन अभी तो हमारी कहानी शुरु ही हो रही है। उसके होटों को अपने होटो में कस लिया और धक्के लगाने लगा। वह खुद ही मेरे गले में अपना हाथ का घेरा डाले उचक उचक के चुदवाने लगी। दस मिन्ट बाद मैंने उसे नीचे उतार कर कुतिया स्टाइल में अपना लंड पीछे से डाल चोदना शुरु किया। थोड़ी देर बाद वह खुद ही अपना गांड आगे पीछे दोलन गति कर मुझे चोदने लगी। और फ़िर मेरा सारा वीर्य उसकी चूत में ही निकल गया। गरमा गरम लावे के अंदर जाने से उसे संतोष की प्राप्ति हुई। तो पाठकों कैसी लगी कहानी जरा बताना!
 
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