चाचा मर गए और मुझे मरनी में जाना पड़ा
टाइटल पढ़ के आप हैरान हो गए यह मुझे पता हैं..! लेकिन मुझे जब यह चूत अपने दूर के चाचा के चौथे पर मिली तो मैं खुद भी दंग रह गया था. यह चुदाई की कहानी हैं मेरी और वंदना की. कहानी को आगे बढ़ाने से पहले मैं बताऊँ की वंदना मुझे कैसे मिली. दरअसल मैं मेरे बापूजी के दोस्त इशांत अंकल की मरनी पे उनके वहाँ धुलिया गया हुआ था. धुलिया की संकरी गलियों में मुझे दो दिन हो गए थे. चाचा जी की मौत की खबर सुन के मैं राजस्थान से निकल तो गया लेकिन उनकी अंतिमविधि में मुझे शामिल होने का मौका नहीं मिला इसलिए मेरे बापूजी ने मुझे उनकी चौथ की रस्म ख़तम कर के ही वापस राजस्थान आने को कहाँ. और चाचा के घर के सामने उनके एक दोस्त के वहाँ मुझे रुकने का अवसर मिला. वही दोस्त की बिटिया थी वंदना जिसकी चूत मैंने दो रात मारी थी.
पहली ही रात को मैं अपने मोबाइल के ऊपर गेम खेल रहा था तब वंदना आई और उसने मुझे पूछा, "क्या आप भी अन्जिनियरिंग की पढाई करते हैं?"
मैंने हंस के हाँ में सर हलाया. वंदना ने एक बुक निकाली और मुझे दिखा के बोली, "मुझे यह सम में कुछ समझ नहीं आ रही हैं. दरअसल मैं भी इजनेरी शाखा में ही पढाई करती हूँ, लेकिन डिप्लोमा. और आप तो जानते ही हैं की डिप्लोमा वालों के लिए थोडा टफ होता हैं क्यूंकि हम 10 के बाद सीधा दाखिला लेते हैं.!"
मैंने वंदना की और देखा, एक मिनिट में ही यह देसी लड़की बहुत कुछ बोल जो गई थी. उसकी उम्र कुछ 19 की होंगी, घुंघराले बाल और मस्त स्माइल. अभी भी उसके गालों के ऊपर स्माइल की वजह से चने बने हुए थे. मैंने उसके हाथ से कापी ली और सम का जवाब दो मिनिट में ही निकाल के दिया. यह सम सच में थोडा हार्ड था. उसने मुझे थेंक्स कहा और वो मेरे गाल पे हलके से किस कर के भाग गई. मैं दो मिनिट के लिए तो सोचता ही रहा की वंदना यह क्या कर के गई. फिर मुझे लगा की शायद उसकी चूत के अंदर भी लौड़ा लेने के लिए आग लगी होंगी तभी तो वो मुझे ऐसे किस दे के भागी. मैं मनोमन सोचने लगा की मरनी पे ना आया होता और शादी में आया होता तो तेरी चूत का चंदनपूर बना के ही जाता. मैं खिन्न हुआ अपनी किस्मत पर की काश वंदना आज यह ना करती; या चाचा जी का देहांत ना हुआ होता.
वो रात तो मैंने अपने लंड के ऊपर हाथ घिस के कुछ तरह निकाल दी लेकिन दुसरे दिन सुबह सुबह ही मुझे वंदना के चुतियापे का फिर से नजारा मिला. दरअसल मैं उनके वहाँ रुका था इसलिए नास्ता भी वही करना था मुझे. वंदना के पिताजी तो सुबह जल्दी अपनी ऑफिस के लिए निकल गए और उसकी मम्मी किचन में पराठे पका रही थी. वंदना ही किचन से पराठे ला ला के मेरी प्लेट में परोस रही थी. एक एक पराठे में उसने अपने कसे हुए सेक्सी चुंचे मुझे 3-3 बार तो दिखाए ही थे. वो जानबूझ के निचे झुकती थी; जिस से मेरी नजर ना चाहते हुए भी उसके स्तन के ऊपर जायें. और चाय निकालने के वक्त भी उसका वही नाटक चालू रहा. मैंने मनोमन सोचा की इस लड़की की चूत में आज लंड नहीं गया तो यह मेरा पुरुष बलात्कार कर देंगी.
वंदना की चूत की गरमी उसके सर चढ़ी थी
वंदना ने चाय देते देते अपने चुंचे दो बार और मुझे दिखाएँ और वो हंस रही थी. मैंने चाय की प्याली निचे रखी और मरे हुए चाचा जी को मन में याद कर के क्षमा मांगी. मैंने मनोमन चाचा जी से कहा, "चाचा जी माफ़ करना मैं भी उसी चूत के झमेले में फस गया हूँ जिस चूत के चक्कर में राजा और महाराजाओ के राजपाठ घुस गए. आया तो आप जे चौथे पे हूँ लेकिन अब लगता हैं की यह प्रवास आप की चौथ से ज्यादा इसकी चोद से याद रखना पड़ेंगा. आप मुझे दिल से क्षमा करें..!"
और फिर जब वंदना आखरी परोथा ले के आई तो मैंने उसकी गांड के ऊपर हाथ फेर दिया. वो पीछे मुड के हंसी और मुझे आँख मार दी. साला धुलिया की लड़की इतनी गरम होती हैं मुझे तो आज ही पता चला. तभी वंदना की मम्मी किचन से आई और वंदना को कहने लगी, "बेटा मैं इशांत अंकल के वहाँ जाउंगी तेरी चाची का नास्ता ले के. तू भी कोलेज चली जाना."
वंदना बोली, "नहीं मम्मी आज कोलेज नहीं जाती हूँ. मैं इन से कुछ और प्रोब्लेम्स सिख लूँ. यह यहाँ हैं इसलिए उन्हें भी कंपनी मिल जायेंगी."
वंदना की मम्मी दो प्लेट में नास्ता ले के चली गई और वंदना आके सीधे मेरी गोद में ही बैठ गई. उसके ढीले कपड़ो की वजह से उसके आधे चुंचे मैं ऊपर से ही देख सकता था. उसने नखरे वाली स्टाइल में पूछा, "क्यों मेरे मास्टरजी मुझे सिखाओगे ना."
मैंने उसकी चूत वाले हिस्से के ऊपर हाथ रखा और उसे ऊपर चलने के लिए इशारा किया. वंदना ने निचे के लोहे के फाटक की ऊपर निचे की दोनों कड़ी लगाई ताकि उसके खुलने पे हम लोग अलर्ट हो सकें. और फिर हम दोनों ऊपर के कमरे में चले गए. वंदना अपना कोलेज का बेग और बुक्स ले आई ताकि किसी को शक ना हो अगर कोई आ भी जाएँ तो. कमरे में आते ही उसने मुझे गले से पकड़ के अपनी और खिंचा और किस करने लगी. मैंने उसके चुंचे पकडे और उसे उसके बूब्स दिखाने को कहा. वंदना ने अपनी टी-शर्ट खोली और अपने टाईट इंडियन चुंचे मुझे दिखाए. माय गॉड क्या जबरदस्त टाईट चुंचे हैं इस देसी लड़की के. मेरा लंड तो जैसे की फट से कूदने लगा. मैंने उसे उसकी चूत दिखाने के लिए भी कहा. और इस लड़की ने बिना कोई हिचकिचाहट के अपनी पेंट की क्लिप खोल दी. और उसने अपनी ज़िप खोल के पेंट थोड़ी निचे कर दी. उसकी पेंटी मुझे साफ़ दिख रही थी अब तो. मन कर रहा था की उसकी पेंटी ही फाड़ दूँ और उसकी चूत बहार निकाल लूँ...क्रमश:
टाइटल पढ़ के आप हैरान हो गए यह मुझे पता हैं..! लेकिन मुझे जब यह चूत अपने दूर के चाचा के चौथे पर मिली तो मैं खुद भी दंग रह गया था. यह चुदाई की कहानी हैं मेरी और वंदना की. कहानी को आगे बढ़ाने से पहले मैं बताऊँ की वंदना मुझे कैसे मिली. दरअसल मैं मेरे बापूजी के दोस्त इशांत अंकल की मरनी पे उनके वहाँ धुलिया गया हुआ था. धुलिया की संकरी गलियों में मुझे दो दिन हो गए थे. चाचा जी की मौत की खबर सुन के मैं राजस्थान से निकल तो गया लेकिन उनकी अंतिमविधि में मुझे शामिल होने का मौका नहीं मिला इसलिए मेरे बापूजी ने मुझे उनकी चौथ की रस्म ख़तम कर के ही वापस राजस्थान आने को कहाँ. और चाचा के घर के सामने उनके एक दोस्त के वहाँ मुझे रुकने का अवसर मिला. वही दोस्त की बिटिया थी वंदना जिसकी चूत मैंने दो रात मारी थी.
पहली ही रात को मैं अपने मोबाइल के ऊपर गेम खेल रहा था तब वंदना आई और उसने मुझे पूछा, "क्या आप भी अन्जिनियरिंग की पढाई करते हैं?"
मैंने हंस के हाँ में सर हलाया. वंदना ने एक बुक निकाली और मुझे दिखा के बोली, "मुझे यह सम में कुछ समझ नहीं आ रही हैं. दरअसल मैं भी इजनेरी शाखा में ही पढाई करती हूँ, लेकिन डिप्लोमा. और आप तो जानते ही हैं की डिप्लोमा वालों के लिए थोडा टफ होता हैं क्यूंकि हम 10 के बाद सीधा दाखिला लेते हैं.!"
मैंने वंदना की और देखा, एक मिनिट में ही यह देसी लड़की बहुत कुछ बोल जो गई थी. उसकी उम्र कुछ 19 की होंगी, घुंघराले बाल और मस्त स्माइल. अभी भी उसके गालों के ऊपर स्माइल की वजह से चने बने हुए थे. मैंने उसके हाथ से कापी ली और सम का जवाब दो मिनिट में ही निकाल के दिया. यह सम सच में थोडा हार्ड था. उसने मुझे थेंक्स कहा और वो मेरे गाल पे हलके से किस कर के भाग गई. मैं दो मिनिट के लिए तो सोचता ही रहा की वंदना यह क्या कर के गई. फिर मुझे लगा की शायद उसकी चूत के अंदर भी लौड़ा लेने के लिए आग लगी होंगी तभी तो वो मुझे ऐसे किस दे के भागी. मैं मनोमन सोचने लगा की मरनी पे ना आया होता और शादी में आया होता तो तेरी चूत का चंदनपूर बना के ही जाता. मैं खिन्न हुआ अपनी किस्मत पर की काश वंदना आज यह ना करती; या चाचा जी का देहांत ना हुआ होता.
वो रात तो मैंने अपने लंड के ऊपर हाथ घिस के कुछ तरह निकाल दी लेकिन दुसरे दिन सुबह सुबह ही मुझे वंदना के चुतियापे का फिर से नजारा मिला. दरअसल मैं उनके वहाँ रुका था इसलिए नास्ता भी वही करना था मुझे. वंदना के पिताजी तो सुबह जल्दी अपनी ऑफिस के लिए निकल गए और उसकी मम्मी किचन में पराठे पका रही थी. वंदना ही किचन से पराठे ला ला के मेरी प्लेट में परोस रही थी. एक एक पराठे में उसने अपने कसे हुए सेक्सी चुंचे मुझे 3-3 बार तो दिखाए ही थे. वो जानबूझ के निचे झुकती थी; जिस से मेरी नजर ना चाहते हुए भी उसके स्तन के ऊपर जायें. और चाय निकालने के वक्त भी उसका वही नाटक चालू रहा. मैंने मनोमन सोचा की इस लड़की की चूत में आज लंड नहीं गया तो यह मेरा पुरुष बलात्कार कर देंगी.
वंदना की चूत की गरमी उसके सर चढ़ी थी
वंदना ने चाय देते देते अपने चुंचे दो बार और मुझे दिखाएँ और वो हंस रही थी. मैंने चाय की प्याली निचे रखी और मरे हुए चाचा जी को मन में याद कर के क्षमा मांगी. मैंने मनोमन चाचा जी से कहा, "चाचा जी माफ़ करना मैं भी उसी चूत के झमेले में फस गया हूँ जिस चूत के चक्कर में राजा और महाराजाओ के राजपाठ घुस गए. आया तो आप जे चौथे पे हूँ लेकिन अब लगता हैं की यह प्रवास आप की चौथ से ज्यादा इसकी चोद से याद रखना पड़ेंगा. आप मुझे दिल से क्षमा करें..!"
और फिर जब वंदना आखरी परोथा ले के आई तो मैंने उसकी गांड के ऊपर हाथ फेर दिया. वो पीछे मुड के हंसी और मुझे आँख मार दी. साला धुलिया की लड़की इतनी गरम होती हैं मुझे तो आज ही पता चला. तभी वंदना की मम्मी किचन से आई और वंदना को कहने लगी, "बेटा मैं इशांत अंकल के वहाँ जाउंगी तेरी चाची का नास्ता ले के. तू भी कोलेज चली जाना."
वंदना बोली, "नहीं मम्मी आज कोलेज नहीं जाती हूँ. मैं इन से कुछ और प्रोब्लेम्स सिख लूँ. यह यहाँ हैं इसलिए उन्हें भी कंपनी मिल जायेंगी."
वंदना की मम्मी दो प्लेट में नास्ता ले के चली गई और वंदना आके सीधे मेरी गोद में ही बैठ गई. उसके ढीले कपड़ो की वजह से उसके आधे चुंचे मैं ऊपर से ही देख सकता था. उसने नखरे वाली स्टाइल में पूछा, "क्यों मेरे मास्टरजी मुझे सिखाओगे ना."
मैंने उसकी चूत वाले हिस्से के ऊपर हाथ रखा और उसे ऊपर चलने के लिए इशारा किया. वंदना ने निचे के लोहे के फाटक की ऊपर निचे की दोनों कड़ी लगाई ताकि उसके खुलने पे हम लोग अलर्ट हो सकें. और फिर हम दोनों ऊपर के कमरे में चले गए. वंदना अपना कोलेज का बेग और बुक्स ले आई ताकि किसी को शक ना हो अगर कोई आ भी जाएँ तो. कमरे में आते ही उसने मुझे गले से पकड़ के अपनी और खिंचा और किस करने लगी. मैंने उसके चुंचे पकडे और उसे उसके बूब्स दिखाने को कहा. वंदना ने अपनी टी-शर्ट खोली और अपने टाईट इंडियन चुंचे मुझे दिखाए. माय गॉड क्या जबरदस्त टाईट चुंचे हैं इस देसी लड़की के. मेरा लंड तो जैसे की फट से कूदने लगा. मैंने उसे उसकी चूत दिखाने के लिए भी कहा. और इस लड़की ने बिना कोई हिचकिचाहट के अपनी पेंट की क्लिप खोल दी. और उसने अपनी ज़िप खोल के पेंट थोड़ी निचे कर दी. उसकी पेंटी मुझे साफ़ दिख रही थी अब तो. मन कर रहा था की उसकी पेंटी ही फाड़ दूँ और उसकी चूत बहार निकाल लूँ...क्रमश: