परदे के पीछे का रिश्ता

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Antarvasna, hindi sex story: मैंने अपनी शादी के लिए बहुत सपने देखे थे और आखिरकार मैं जैसा चाहती थी वैसा ही पति मुझे मिला। सब कुछ बड़े अच्छी तरीके से चल रहा था जीवन में सब कुछ था जीवन बहुत ही रंगीन और उसे मैं अपने तरीके से ही जीना चाहती थी। मेरे मां बाप ने भी मुझे बड़े लाड प्यार से पाला था और आखिरकार मैं उनकी इकलौती बेटी जो थी सब कुछ मेरा ही तो था। मेरे हर एक अरमान हमेशा पूरे हो जाया करते थे और जब मुझे पहली बार देखने के लिए विवेक आये तो मैं फूली नहीं समा रही थी। मुझे तो ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे सपने सच होते जा रहे हैं विवेक के रूप में मुझे एक आदर्श पति जो मिलने वाला था और मैं अपने सपनों को सच होता देख खुशी से झूम उठी थी।

मेरा खुशी से झूम उठना बिल्कुल भी गलत नहीं था वैसे शादी के बाद उन्होंने मेरी हर वह जरूरत पूरी की उन्होंने भी मुझे उतना ही प्यार दिया जितना कि मेरे माता-पिता मुझे देते थे विवेक के माता-पिता ने भी मुझे अपनी बेटी का दर्जा दिया था। मेरे जीवन में कोई भी समस्या नहीं थी घर में बड़ी-बड़ी गाड़ियां थी और एक अच्छा घर और एक अच्छी जिंदगी सब कुछ तो मेरे पास था लेकिन यह सब कुछ उस वक्त धराशाई हो गया जब विवेक की कंपनी डूबने की कगार पर आ गई। विवेक बहुत ज्यादा परेशान रहने लगे थे और वह जब शराब पीकर आते तो मुझसे बिल्कुल भी बात नहीं किया करते थे उनके चेहरे पर उदासी थी जिसे मैं देख नही पाती थी। मुझे भी लगता था कि विवेक बहुत ज्यादा परेशान हो चुके हैं मेरे पास भी उनकी समस्या का कोई हल नहीं था लेकिन एक दिन मैंने विवेक से पूछ ही लिया कि आखिर आपकी कंपनी में कितना नुकसान हुआ है। वह मुझे कहने लगे देखो मेघा तुम जानकर क्या करोगी अब जो होना था वह तो हो चुका है हमारी कंपनी के शेयर भी नीचे गिर चुके हैं और कुछ ही समय बाद कंपनी दिवालिया घोषित हो जाएगी।

मैं पूरी तरीके से चिंतित हो चुकी थी लेकिन मुझे विवेक पर पूरा भरोसा था कि वह कोई ना कोई रास्ता तो जरूर निकाल लेंगे। उनकी कंपनी पर कोई भी पैसा लगाने को तैयार नहीं था लेकिन उन्हें पूरा भरोसा था कि उनकी कंपनी में कोई ना कोई तो पैसा जरूर लगाएगा जिससे कि उनकी कंपनी डूबने से बच जाएगी। आखिरकार इतने लोगों का भी तो सवाल था करीब दो हजार लोग तो काम पर थे उन लोगों के सामने भी नौकरी जाने का संकट था और किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर आगे क्या होने वाला है। विवेक को तो सिर्फ किसी के सहारे की जरूरत थी और उनका सहारा बनने के लिए फिलहाल तो कोई दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा था। वह समंदर में जैसे अकेले ही गोते लगा रहे थे और जब भी विवेक घर आते तो वह चिंता में रहते मैंने एक दिन विवेक से कहा मैं आपके सर की मालिश कर देती हूं आपको अच्छा लगेगा। विवेक कहने लगे नहीं मेघा रहने दो लेकिन मैंने विवेक के सर की मालिश की और कहा की सब कुछ ठीक हो जाएगा बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए। मैंने विवेक से कहा क्या मैं पापा से कहूं वह कहने लगे नहीं तुम उन्हें यह सब मत बताना वह मेरे बारे में क्या सोचेंगे लेकिन पापा भी शायद उनकी मदद नहीं कर सकते थे क्योंकि उनके पिता जी ने अपनी मेहनत से जो इतनी बड़ी कंपनी खड़ी की थी उसका पैसा चुका पाना पापा के बस की बात भी नहीं थी वह तो मैं सिर्फ अपने आप को तसल्ली दे रही थी ताकि विवेक के चेहरे पर मुस्कान आ सके। मैं विवेक के सर की मालिश कर रही थी तभी विवेक के फोन पर एक अनजान नंबर से फोन आया और विवेक ने फोन उठाया तो ना जाने वह क्या बात कर रहे थे मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था। विवेक ने मुझे कहा मेरा मेघा मैं जा रहा हूं थोड़ी देर बाद लौटूंगा मैंने विवेक से कहा आप कब तक आ जाएंगे वह कहने लगे पता नहीं उसके बाद विवेक ने ड्राइवर से कहा कि चलो ऑफिस ले चलो। ड्राइवर ने भी गाड़ी स्टार्ट की और विवेक अपने ऑफिस चले गए थे मैं घर पर अकेली थी विवेक के माता पिता भी इस दुनिया में नहीं है और विवेक घर पर इकलौते ही थे लेकिन उनके ऊपर इतनी बड़ी समस्याएं आन पड़ी थी कि वह इससे निकल ही नहीं पा रहे थे।

विवेक को शायद सहारा मिल ही चुका था वह जब घर लौटे तो उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी और वह बहुत खुश थे मैंने विवेक से कहा इतने दिनों बाद आपके चेहरे की मुस्कान देखकर अच्छा लग रहा है। वह कहने लगे तुम्हें मालूम है आज मुझे पिताजी के पुराने दोस्त का लड़का मिला उसका नाम अभिलाष है और वह जब ऑफिस में आए तो उन्होंने मुझे ऑफर दिया और कहा कि कंपनी में आधे आधे की हिस्सेदारी रहेगी और जितना पैसा भी बकाया है वह सब हम देने को तैयार हैं। मैं भी उनकी बात मान गया क्योंकि मुझे इस वक्त किसी ना किसी की जरूरत थी उन्होंने भी मेरी मदद के लिए हामी भर दी तो मेरे सारे रास्ते खुल चुके है। अब मैं दोबारा से अपनी कंपनी को वैसे ही चला सकता हूं जैसे कि पहले चला रहा था मेरी सारी चिंता दूर हो चुकी है। विवेक के चेहरे पर खुशी देखकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा था उनकी मुस्कुराहट अब उनके चेहरे पर लौट आई थी। अगले दिन मैंने विवेक से कहा कि मैं सोच रही थी कि पापा मम्मी से हम लोग मिलने चलते हैं विवेक ने भी मुझे मना नहीं किया और कहने लगे हां क्यों नहीं हम लोग आज ही उनसे मिल आते हैं। मैं और विवेक पापा मम्मी से मिलने के लिए चले गए इतने समय बाद अपने पापा मम्मी से मिलना बहुत ही सुखद एहसास था। मुझे बहुत अच्छा लगा जब पापा मम्मी मुझे इतने समय बाद मिले आखिरकार वह भी तो मेरी याद में तड़प रहे थे।

हम लोग उस दिन मेरे घर पर ही रुकने वाले थे और शायद पापा को भी इस बात की खबर लग चुकी थी कि विवेक की कंपनी डूबने वाली है। उन्होंने मुझसे इस बारे में बात की विवेक ने उन्हें सारी बात बताइ और कहा लेकिन अब सब कुछ ठीक हो चुका है हमारी कंपनी में पापा के दोस्त के बेटे पैसा लगाने को तैयार हो चुके हैं और मैं कंपनी को दोबारा से उसी मुकाम पर खड़ा कर दूंगा जिस मुकाम पर वह पहले थी लेकिन अब कंपनी की आधी हिस्सेदारी अभिलाष के पास भी रहेगी। पापा कहने लगे बेटा तुम जो भी काम करो सोच समझ कर करना आखिरकार विवेक भी समझदार थे वह पापा की बात को सलाह के तौर पर मानने को तैयार थे। उन्होंने कहा कि मैं दोबारा ऐसी गलती नहीं करूंगा जिससे कि कंपनी खतरे में आ जाए आखिरकार इतने वर्षो की मेहनत के बाद ही हमने इतनी बड़ी कंपनी खड़ी की थी उसे भला मैं एक ही झटके में कैसे अपने हाथ से जाने दे सकता हूं। हम लोग उस दिन घर पर ही रहे और अगले दिन जब हम लोग अपने घर लौटे तो विवेक कहने लगे कि आज रात को अभिलाष डिनर पर आएंगे, मैंने विवेक से कहा ठीक है। मैंने नौकरों से कह दिया था कि आज खाने में कोई कमी नहीं होनी चाहिए और नौकरो ने भी मेरे बातों को बड़े ध्यान से सुन लिया था। जब शाम के वक्त विवेक और अभिलाष घर पर आए तो मैंने अभिलाष से पहली बार ही मुलाकात की थी लेकिन अभिलाष का रूप रंग और उसकी कद काठी को देखकर मुझे बहुत बड़ा अच्छा लगा। उस दिन हम लोगों ने साथ में डिनर किया अभिलाष ने मेरे खाने की बड़ी तारीफ की और विवेक इस बात से बड़े खुश हुए। उस दिन तो अभिलाष अपने घर चले गए थे लेकिन उसके बाद उन्होंने जब मुझे मैसेज भेजने शुरू किए तो मैं उनकी भावनाओं को समझ चुकी थी वह अंदर से मेरे बारे में क्या सोचते हैं और आखिरकार मैंने उनके साथ एक रात गुजारने का मन बना ही लिया। हम दोनों की मैसेज पर ही रजामंदी हो चुकी थी और उन्होंने मुझे अपने एक फ्लैट का एड्रेस भेजो।

मैं उनके फ्लैट में चली गई जब मैने उनके फ्लैट की डोर बेल बजाई तो अभिलाष मेरा इंतजार कर रहे थे उन्होंने मुझे अंदर आने को कहा जब मैं अंदर गई तो वह मुझे कहने लगे आईए बैठिए ना लेकिन मैं बैठने तो नहीं आई थी। मैंने अभिलाष से कहा मैं बैठने के लिए तो नहीं आई हूं अभिलाष मुझे कहने लगे थोडी प्यार भरी बातें हो जाए उसके बाद हम लोग भी प्यार कर लेंगे। हम दोनों कुछ देर तक साथ में बैठे और जब अभिलाष ने मेरे होंठो को चूमना शुरू किया तो मुझे अच्छा लग रहा था और काफी देर तक वह मेरे होठों को चूमते रहे। जैसे ही अभिलाष ने मेरे कपड़ों को उतारकर मेरी योनि को चाटना शुरू किया तो मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था और वह मेरी योनि को बड़े अच्छे से चाटे जा रहे थे। मेरी योनि से पानी बाहर आने लगा था जब अभिलाष ने अपने मोटे और लंबे लंड को मेरे मुंह पर से सटाया तो मैंने भी उनके लंड को अपने मुंह के अंदर ले लिया और उसे चूसने लगी। उनके लंड को चूस कर मुझे बड़ा अच्छा लगा और काफी देर तक मैं उनके लंड को अपने मुंह में लेकर ही चुसती रही।

जब उन्होंने अपने लंड को मेरी योनि के अंदर प्रवेश करवाया तो मुझे बड़ा अच्छा लगा और मैंने अपने दोनों पैरों को चौड़ा कर लिया था। जिसके साथ वह मुझे बड़ी तेजी से धक्के मार रहे थे उन्होंने मुझे कहा आप अपने पैरों को थोड़ा और चौड़ा कर लो मुझे ताकि आपकी योनि में अपने लंड को डालने में आसानी हो। मैंने अपने पैरों को चौड़ा कर लिया और वह मुझे तेज गति से धक्के मारते काफी देर तक मेरी चूत के अंदर वह आपने मोटे से लंड को अंदर बाहर करते मैंने उनका पूरा साथ दिया और वह खुश हो चुके थे। वह मेरे बदन की गर्मी को अब महसूस ना कर सके उन्होंने मेरी योनि के अंदर ही अपने वीर्य को गिरा दिया उसके बाद हम दोनों ने साथ में बैठकर वाइन का मजा लिया और फिर मैं अपने घर वापस लौट आई। मेरे और अभिलाष के रिश्ते परदे के पीछे ही ठीक है।
 
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