मेरी कंवारी भाभी की चूत [भाग-2]

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यारों मैं बंटी इस कहानी के पहले भाग ' मेरी कंवारी भाभी की चूत [भाग-1] में बता चुका हूं कि कैसे मैंने अपने बड़े भाई के साथ अहमदाबाद में रहने वाली भाभी को उस रात अपने बेड में बिठा कर फ़िल्म दिखाते हुए रोमांटिक सीन्स के साथ ही उनका हाथ कंबल के अंदर अपने लंड से टच करा दिया था। भाभी शरमा रहीं थीं पर उनका मन चुदाई वाला खेल खेलने को कर रहा था, ये बात पक्की थी। मैंने हिम्मत करते हुए अपने हाथ से उनके पैरों को सहलाना शुरु कर दिया था और इसलिये वो अपने पैरों को सिकोड़ चुकी थीं। खैर अब खेल को आगे बढाना था और जब कदम रख दिया था तो पैर पीछे नहीं खींच सकता था। इसलिये मैंने अब थोड़ा जबरी करने की कोशिश की। इस बार मैंने उन्हें उठा कर अप्ने गोद में बिठा लिया। वो अपने पैरों को मोड़ कर और सकुचा गयीं। लेकिन भागने की कोशिश नहीं की एक बार भी। उनकी नाईटी के अंदर उनकी दूधिया जवानी चूंचों को झलकाती हुई मेरे उपर कयामत ढा रही थी। वो सीधा मेरे लंड पर बैठने के बाद और विचित्र तरीके से बिहैव करने लगीं।

बेड पर लेट कर उन्होंने अपने हाथों से मुह और आंखें बंद कर लीं और अपना पिछवाड़ समेत चूत मेरे सामने कर दिया। मैं समझ गया वो भाभी थोड़ी गांव के माहोल से थीं इसलिये शरमाती थीं। मेरे सामने उनका पिछवाड़ा था, चमता हुआ चूतड़ों का संगम उनके सफ़ेद मैक्सी के उपर से ही झलक रहा था और काली काली पैँटी में से उभरे हुए फ़ुद्दी के फ़ांक मेरे होश उडा रहे थे। ये जाल मुझे फ़ांसने के लिये फ़ेंका गया था। मैंने अपना लंड सीधा किया, अपना लोवर उतारा और फ़िर भाभी को वैसे ही उकड़ूं रहने दिया। पीछे से मेक्सी उठा दी। अब नंगी इंडियन गांड मेरे सामने चमक रही थी। मैंने पीठ पर हाथ फ़ेरते हुए अपनीं उंगलियां गांड की दरार वाली घाटी पर फ़िसलायीं, और चूम लीं। टेस्टी गांड थी भाभी की बिल्कुल कवारी टीनेजर्स की तरह कोई बदबू नहीं और निर्दोष फ़ुद्दी भी थी उनके पास इस बात का अंदाजा आ गया था मुझे। मैंने चड्ढी को किनारे कर दिया और चूत व गांड मेरे सामने हो गये। वो हिल डूल नहीं रही थी। यह चुदवाने के लिये मौन प्रस्ताव था। इसका मजा भी अलग है। बिन बोले चोद डालो, मैने उनकी चूत को सहलाया और एक उंगली की। वह वाकैई टाईट थी और फ़िर थूक लगा के चूत के होटों को गीला किया, मेरा लन्ड पहले से खड़ा था और इसलिये मैंने अब चोदने का प्लान बनाया।

अपना सुपाड़ा चूत के उपर रगड़ते हुए, पीछे से ही धक्का दिया और भाभी चिल्लाने लगीं। पहले मुझे आश्चर्य हुआ और लगा कि वह नौटंकी कर रही हैं, लेकिन जल्दी ही अहसास हो गया कि वह सच में चिल्ला रही थीं, मैने महसूस किया कि उनकी चूत की झिल्ली अभी फ़टी नहीं थी और इसलिये प्यार से मैने अपना हाथ बढाते हुए उनके मुह को बंद किया और एक जबरदस्त झटका अंदर मारा। फ़च से खून की धार बाहर निकली और उनके फ़ुद्दी की झिल्ली फ़ट चुकी थी। अंदर लंड को पेलते हुए मैं मारे खुशी के पागल हुआ जा रहा था। भाभी की आंखों में खुशी के आंसू आ गये थे अब वो वास्तव में महिला बन चुकी थीं और उन्हें मजा आ रहा था। जिसकी चूत में अंदर तक लंड न गया वो क्या खुश रहेगा। शायद भाई साहव का लंड इतना सख्त नही था। इसलिये ऐसा रह गया था। आधे घंटे पेलने के बाद मैं झड़ गया। इसके बाद भाई साहब को भी पेलने में ज्यादा मजा आने लगा था, भैया भाभी की जिंदगी खुशहाल हो गयी और बाद में मेरी कृपा से उनको एक लड़का भी पैदा हुआ।
 
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