रंडी को चोदना कोई खेल नहीं:दो जवान आन ड्यूटी[भाग2]

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चोदना सिखाया मीरगंज एलाहाबाद की रंडी ने।

तो कहानी के पहले भाग में बताया कि बसंती दो अनाड़ी गबरु जवानों को मीरगंज एलाहाबाद में अपने रंडीखाने पर चोदना सीखा रही थी। लंड को पकड़ कर के उसने वीरु को अपनी जीभ इसके सुपाड़े के गिर्द नचानी शुरु कर दी थी और जय की फट रही थी कि अबे उसका लंड खा न जाए, अगर ऐसा होगा तो चोद्ना महंगा पड़ जाएगा। ये तो वही बात हुई न कि गांड किसकी मराएगी और फट किसकी रही है। तो अपने लंड को बसंती के मुह के पास पाकर वीरु ने तेजी दिखाते हुए एक धक्का लगा के उसके मुह में डालना चाहा, पर बसंती ने अपना मुह हटा लिया, बोली लगता है कि साहब को चोदने की जल्दी हो रही है, पर रुको मेरी जान मुख चोदन करने से पहले कुछ शगुन तो दो।

वीरु समझ गया, उसने अपने पाकेट से दस रुपये निकाल कर के उसको थमाए और कहा ले अब चूस मां की लोड़ी, बहुत चालाक है तू, ले अब चाट ले मेरा लंड्। इस बात पर बसंती ने अपने मुह में ढेर सारा थूक भरा और वीरु के गरम सुपाड़े को नहला दिया। और अपनी नाजुक उँगली से उसके सुपाड़े को मसलने लगी। उसको सन सनी हो रही थी। पहली बार उसके अंग को किसी महिला ने पकड़ा था, वरना आज तक इसे हिला हिला के मूतने के अलावा किसी और काम में नहीं ला पाया था। बसंती ने पकड़ के उसके लंड की थूक जैसे स्नेहक से मालिश करने के काम को इतनी खूबसूरती से अंजाम देना शुरु किया कि जरा सी देर में वीरु की पिचकारी उसके मुह पर और आंखों पर जा गिरी। बसंती हंसी और ठहाके लगा के हंसी, ऐसा कि बस वीरु शर्मिंदा हो गया और जय की हालत्त खराब, बेईज्जती न हो जाए उसकी वीरु की तरह से, उसने अपना लंड अंदर छुपा लिया और पैंट पहनने लगा। वीरु को एक तरफ धकेल कर के बसंती ने जय को पकड़ा और बोली " कहां भाग रहे हो मेरे लाल, पैसा दिया है तो चोदना नहीं चाहते हो क्या। आओ भी, थोड़ा मस्ती मेरे साथ भी कर लो। और उसने उस्का पैंट नीचे सरका दिया। लंड अब भी अंदर खड़ा था। बसंती ने अपने चूंचे को हिलाते हुए कहा, " ये तुझे अच्छे न लगे जो जा रहे हो, कैसे जवान हो चोदना मांगता है और लड़की देख कर फटता है तेरा।" चल इधर बुरबक। और उसने उसकी चड्ढी भी सरका दी। दो थपकियां गांड पर लगा के उसको सहलाया तो जय का लंड काले अजगर की तरह फुफकारने लगा। इस बार मुह में लेकर बसंती ने कहा कि चोदना चाहता है तो पहले मुह में चोदना सीख इससे तुझे ट्रेनिंग मिलेगी। और जय ने बसंती की जय बोल कर के उसके मुह में लंड दे दिया।

उसे ऐसा ऐहसास हुआ कि उसका लंड किसी मुलायम गर्म कंबल मे घुस गया हो। अंदर लेकर लंड को जब बसंती ने चुभलाना शुरु किया तो जय आह्ह आह्ह करने लगा। दो मिनट में वो भी उसके मुह में ही झड़ गया। वीर्य को गटकती हुई बसंती बोली कि अबे तुम दोनों तो एक दम कच्चे निकले यार। चलो चलो बाहर चलो, जंगली सेक्स का खेल तुम्हारे बस का नहीं है। इस बात पर वीरु जो कि फिर से चोदना चाहता था उस रंडी को बोला " सुन पैसे दिये हैं, बिना चोदे नहीं जाएंगे। इस बात पर बसंती हंसी, अबे अकड़ मत दिखा नहीं तो मरवा के फेंकवा दूंगी यहीं पर नाले में। बसंती से प्यार से बोलने का। तो जय ने फिर उसके हाथ पकड़ के चूमते हुए कहा, मान जाओ, एक बार दरशन करा दो गुप्त दरवाजे के।

रंडी ने गालियों की बरसात कर दी उन चूतियों पर

बसंती हटी " चल बे चूतिये, कैसा गुप्त दरवाजा, उसी से निकल के तू भी तो बाहर आया है।" और उसने जय की गर्दन पकड के अपने लहंगे के अंदर घुसा दिया। सरप्राईज!! अंदर तो कुछ भी नहीं पहना था उसने, इसलिए जय की आंखें चुन्धिया गयी। चिकनी चूत देख कर वो प्रसन्न हो गया। और लगा चपड़ चपड़ चूसने। वाह्ह साले अकल तो है तेरे में, उसने जय को दाद दी और वीरु को बोली, काहे का वीरु है बे तू, दो मिनट तो तेरा ये लल्लू दोस्त भी टिक गया, तू तो साला बस सोच के ही झड़ गया। पर इस बार उसने अपना लंड जब बसंती के हाथ में दिया तो वो लोहा हो चुका था। इधर जय भी उसकी चूत चाट कर चिकनी कर चुका था। इस बार बसंती सोफे पर अपनी दोनों टांगे फैला के लहंगा उठा के बैठ गयी।

खुली हुई चूत लंड को चोदने का आमंत्रण दे रही थी। इस बार वीरु ने अपना लोहा उसकी भोसड़ी में घुसाया और घप्प से अन्दर पेल दिया। फक्क फक्क करती हुई पिस्टन की तरह टाईट चूत में वीरु का लन्ड स्पीड पकड़ लिया था। बहुत जल्दी उसने चोदना सीख लिया था। पहली बार सबके साथ ऐसा होता है और फिर सब ठीक हो जाता है। इस लिए वीरु में कान्फिडेंस आ गया था, धक्के मारते हुए उसने जय को कहा कि इसके मुह में चोदे। इस बार जय ने बसंती के मुह में लंड पेल कर के गहरे धक्के दिये। मूखमैथुन और लंड के चूत में एक साथ लेने से बसंती को ज्यादा मजा आ रहा था। उसके चेले चोदना सीख गये थे और इसलिए वो बहुत खुश थी। आधे घंटे तक सामने से चोदने के बाद वीरु चूत में झड़ गया।

अब बारी थी जय की। वो मुह में चोदना छोड ही नहीं रहा था पर जब वीरु झड़ा तो वो नीचे आया और वीर्य टपकती चूत में बिना सोचे समझे अपना लौड़ा कोंच दिया। दोनों चूंचे पकड़ के ऐंठ दिये और जोरदार झटके लगाने लगा। उसका दिया भी बुझने वाला था। एक दो तीन चार.. और चालीस तक जाते जाते उसके गांड की नस सिकुड्ने बंद होने लगी। बसंती को गोद में पकड़ के वो झड़ गया। अब बसंती की चूत में से दो मर्दों का वीर्य झड़ रहा था। संगम हो गया था वीर्यों के झरने का। बसंती ने दोनों को शाबाशी दी और कहा, बच्चे, चोदना कोई खेल नहीं, बल्कि इसके लिए अभ्यास और दमदार लन्ड की जरुरत है।
 
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