सतीत्व भंग : लंड चीज ही ऐसी है।

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लंड दी प्यासी : जो चोदे सो निहाल

लंड किसे अच्छा नहीं लगता, सुनने में अश्लील लगने वाला यह वाक्य इस दुनिया पर चहल पहल और सृजन का पर्याय है। मेरे पति देव एक किसान हैं और मैं खुद ही जमींदार घराने से हूं। खाये पिए घर के होने के चलते, मेरा हुस्न कम उमर में ही निखर गया था, घर का माहोल ऐसा था, कि जल्दी ही अठारह साल में शादी हो गयी। मैने अपने मन में शादी से पहले से ही जो सपना संजोया था कि शादी के बाद् ही सबकुछ अपने पति को सौंप दूंगी, वो मैंने किया। जब पति देव ने मेरे हुस्न की गठरी खोली तो मेरे बदन की चमक से चकाचौंध हो गये। मेरे पल्लू को ह्टाकर जब उन्होंने पहली बार मेरे उन्नत वक्षस्थलों को देखा तो उनका रक्तचाप बढ गया। नसों में दौड़ते खून की धमक लंड तक पहुंची होगी, उन्होंने तपाक से अपनी धोती के अंदर हाथ डालकर अपना लंड यथाव्त स्थापित किया और फिर मेरे चोली के बटनों को छुने में वो हकलाने लगे, उनके हाथ कांप रहे थे। शायद वो पहली बार ऐसा कर रहे थे या फिर उनको मर्दाना कमजोरी रही होगी।

मैं मना रही थी कि यह प्रथम मिलन की परिकल्पना से होने वाले सुखद अहसास के चलते होने वाली कंपन हो तो ज्यादा बेहतर है, पर बात कुछ और ही निकली। वो शायद पुंसत्व के उस चरम पर न पहुंच सके थे, जहां पर कि उनको अपने आप पर इतना भरोसा रहता कि वो मेरे लजीज हुस्न का भरपूर आनंद उठा पाते। इस वजह से उनके हाथ कांप रहे थे। मैने सहयोग किया, उनके हाथों को थाम कर उन्हें हिम्मत दी और फिर उनका हाथ अपने वक्षस्थल पर रख दिया। वो सहज हुए, उन्होने अपने कांपते हाथों से शरमाते हुए मेरा अंगवस्त्र खोला। अब मैं बिना चोली के नग्न थी, मेरे गोल, अक्षत वक्षस्थल एक दम उन्नत और सुदृढ थे, वो किसी आदर्श भारतीय कुंवारी कन्या के स्तनों के सच्चे प्रतिनिधि थे। मैने उनको थाम कर एक हाथ से अपना मुह छुपा लिया। स्त्री सुलभ लज्जा और व्यवहार मुझमें कूट कूट कर भरा था, उन्होंने मेरे होटों को अपने होटों में दबाते हुए जीभ से मुख के भीतर अंदर बाहर करना शुरु किया, वो लगभग हांफ रहे थे और आह्ह आह्ह!! की आवाज निकाल रहे थे। इस तरह से पांच मिनट तक बेतहाशा मुझे चूमने के बाद और मेरे स्तनों को मसलने के बाद वो ढीले पड़ गये।

जब उन्माद चरम पर था, उनकी वासना ढल गयी। सांसे बुझती हुई और शरीर निढाल, उनके अंत: वस्त्र अंडरवीयर पर गीला नन्हां धब्बा उभर आया था। मैं निराश हो गयी, उत्तेजित होकर एक भावनात्मक और जूनूनी सेक्स की चाहत करती हुई एक अक्षत योनि कंवारी कन्या के लिए इससे बड़ा अभिशाप कुछ नहीं हो सकता। मैने उनके अंडरवीयर को निकाल फेंका, अपने जीभ की नोक से उनके अंडकोष और शिश्नाग्र के मुंड को सहलाते हुए प्यार से अंदरुनी अंगों और गांड का चुम्बन और आलिंगन किया, इस उम्मीद में कि शायद उस नन्हें से लंड में कुछ जान आ सके, पर अफसोस कि ऐसा कुछ न हुआ और वो निढाल पड़े रहे। मेरी सुबह बेचैनी और तनाव से जूझते हुए बीति।

चूत का दीवानापन देवर का दीदार हुआ

तो क्या मेरी नियती में यही बदा था? लेकिन कहते हैं जहां चाह वहां राह! मेरे देवर जी गर्मी की छुट्टियों में यूनिवर्सिटी की बैचलर की पढाई पूरी करके आये। गोरा चिट्टा रंग, एकहरा बदन गठीला शरीर और सेक्सी काया, वो हालीवुडिया फिल्मों के हीरो लगते थे। मैने अपनी जवानी की प्यास बुझाने के लिए उनको बेहतर समझा। फांसने के लिए हुस्न का चक्रव्यूह काफी था, जब पतिदेव खेतों पर काम करने चले गये, सास दोपहर में सो गयीं तो मैंने उनके कमरे के सामने वाले हैंडपंप पर स्नान करने का प्लान बनाया, आंगन के बीचोबीच चापाकल पर बैठ कर अपने बदन को दिखाने से काम बन सकता था। मैने अपनी चोली उतार कर साड़ी को बदन पर लपेट लि्या, पेटीकोट भी न पहना।

जब हैंडपंप के जगत पर बैठ कर मैने बालटी से पानी उड़ेलना शुरु किया अपने चमकीले गोरे बदन पर तो साड़ी मेरे बदन के एक एक इंच में चिपकती हुई मेरे हुस्न की ज्योग्राफी और हिस्ट्री बयान करने लगी। देवर जी अपनी खिड़की से इस सारी क्रीडा को देख रहे थे। मैंने जान बूझ कर यह जाल फेंका था, अचानक मैने अपनी पूरी पीठ नंगी की। बाजू से मेरे सुडोल स्तन और कांख के बीच का क्षेत्र उन्हें दृष्टिगोचर हुआ तो उन्होंने खिड़की को पूरा खोल कर सम्पूर्ण आनंद लेना शुरु किया। अब बारी थी मुझे आखिर जाल फेंकने की और जब मैने अपने नग्न स्तन पर से साड़ी हटाई तो भीगे हुए चूंचे देख उनका दिमाग खराब हो गया, अचानक हमारी नजरें मिल गयीं। मैने एक गहरी मुस्कान दी और फिर वो मुझे देखते ही रह गये। मेरे नुकीले निप्पलों से गिरते पानी की धार मेरे कमर पर गिर कर चूत की तरफ जा रही थी।

इस दृश्य को देखने के बाद देवर जी का पुरुषत्व जगा और आकर उन्होंने मुझे अपने बाहों में भर लिया। यह बाहें एक सम्पूर्ण पुरुष काया की थीं, लम्बी कठोर उन्माद से युक्त और जूनूनी। उन्होंने पीछे से मेरे पिछवाड़े पर अपना कटि प्रदेश जमाते हुए मुझे भीगे बदन ही दबोच लिया था। मैं काम से आहत थी। मैने धीमे से कहा, आंगन में ये सब ठीक नहीं है, चलिए मेरे कमरे में। और उन्होंने मुझे अपनी बाहों में उठा कर मेरे कमरे में बेड पर पटक दिया। मैं अब पूरी ही नंगी थी, जांघों के बीच चूत पर काले काले बाल भीगे थे और देवर जी ने अपना मुह लगा कर किसी पपीहे की भांति उन स्वाति की बूंदों को पीना शुरु किया। इस प्रकार से पीते हुए उन्होंने जब अपने होटों के बीच मेरे योनि के लबों को दबोच जीभ से चूत के खुले प्रदेश में उपर नीचे रगड़ते हुए भग नाशा को अपने नाक से छेड़ना शूरु किया तो मैं सम्पूर्ण आहत थी। यह कल्पना सरीखा स्वप्न सच हो रहा था। मैने उनके सर को अपने हाथों से अपने जांघों के बीच दबोचते हुए अपनी जांघों को कस लिया। अब उनकी गर्दन मेरे जांघों के बीच फंसी थी और जीभ मेरे चूत के अंदर मेरे रस का पान कर रही थी। यह सब कितना जूनूनी हो रहा था कि मैं लगभग अपनी गर्दन दायें बाये ं करते हुए मूर्छित सी हो रही थी। कि उस कामयुक्त प्रेमी ने मेरे स्तनों के अग्रभाग निप्पलों पर कब्जा जमा लिया।

उन कंचुकों को दबोचते हुए उसने मेरे योनि में अपने जीभ का प्रवाह जारी रखा, अंदर बाहर और उपर नीचे फिसलने से गर्मा गरम जीभ ने मेरे योनि को कामरस से भर दिया था और नासिकाग्र से लगातार होने वाले भगनाशा के घर्षण के साथ ही मेरी उत्तेजना ने जवाब दे दिया और मैंने पिचकारी छोड़ी, फचाक और देवर जी के चेहरे को नहलाती हुई सफेद पारद्र्शी कामद्रव्य उनको भिगोता चला गया। मैने जांघें खोल दीं और निढाल पड़ी रही पर देवर जी ने अपना उन्नत और कठोर लंड मेरे मुह के आगे कर दिया, ईशारा साफ था अब मुझे उनको देसी मुखमैथुन का आनंद देना था और इस बार वो पूरे शबाब पर थे। मैने उनके शिश्न का अग्रभाग अपने जीभ के नोक से साफ करते हुए अपने होटों के बीच में आधे लंड को दबाया। साढे सात इंच का लंड काफी पर्याप्त था और कठोर भी था, मेरा मुह भर आया था।

मैने अपने उंगलियों से उनके अंडकोषों को सहलाते हुए लंड को अपने हलक में उतरने दिया, वो आहारनलिका में घुस जाता अगर मैने कंट्रोल करके अंड्कोषों को जोर से दबा न दिया होता, वो लगभग कराहते हुए लंड को बाह्र खींच रहे थे। हम दोनों ही जूनूनी हो चले थे। पांच मिनट तक मुखमैथुन का आनंद लेने के बाद वो मेरी जांघों के बीच आए। लंड को उपर नीचे सरकाते हुए योनि को एकदम भिगो दिया। लंड की रगड़ से योनि बेतहाशा गरम हो चुकी थी और गीली भी। इसलिए उसने अब मेरे योनिद्वार को आहत करने के लिए अंदर का रास्ता पकड़ा, दीवारों पर बेतहाशा जोर पड़ रहा था और मैं लगभग चीखने वाली थी कि अपने गुलाबी होटों से मेरे गीले होटों को उन्होंने बंद करते हुए मेरी आवाज को लगाम दे दी। धीरे धीरे लंड पर दबाव बढाते हुए मेरी योनि को चीरता हुआ उनका हथियार मेरे गर्भाशय द्वार के दरवाजे तक दस्तक दे गया। मैं लगभग कामोन्मादित और मूर्छित सी हो रही थी, दर्द और आनंद का यह संगम मेरे नियति को बदलता महसूस हो रहा था।

वो अब मेरे अंदर समा चुके थे, पूर्णतया और संपूर्णता से। मैने उनके पीठ पर अपने नाखूनों से चिह्न बनाते हुए उनको हल्का सा आहत किया और वो बदले में मुझे पूरी गति से धक्के देते रहे। उनके अंडकोषों के मेरे गुदा द्वार पर बारंबार बढते दबाव और टकराहट से मुझे आनंद आ रहा था। एक जूनूनी प्रेमी के साथ रिश्ते की पवित्रता और सतीत्व की मर्यादा भंग करने के कारण मुझे अत्यंत ग्लानि भी हुई पर यारों लंड चीज ही ऐसी है न छोड़ी जाए, ये मेरे यार के जैसी है न छोड़ी जाए। देवर जी ने मुझे बलभर और जीभर के चोदा, हर कल्पना को साकार करते हुए आज भी हम देवर भौजाई सेक्स के नित नये आयाम गढते हैं।
 
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