पिताजी को भारी पड़ी लालच

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Pitaji Ko Bhaari Padi Laalach

नमस्ते दोस्तो। आप लोगों के लिए आज मैं एक रोमांचक और कामुक कहानी पेश करने जा रहा हूँ। इस कहानी की घटना हमारे घर का एक रहस्य है, इसलिए मैंने पात्रों के नाम नहीं बताए हैं ताकि हमारे परिवार की बदनामी न हो।

एक दिन मैं पेशाब करने के लिए उठा। घड़ी देखकर पता चला कि सुबह के ०७: ३० बजे है। इस वक़्त तो माँ पिताजी के लिए टिफ़िन बनाती है और पिताजी ऑफिस जाने के लिए तैयार होते है।

अपने कमरे में से निकलकर मैं टॉयलेट की तरफ जा रहा था। कुछ कदम चलकर मैं रुक गया और ध्यान से हॉल रूम में से आ रही आवाज़ को सुनने लगा। मुझे माँ के रोने की आवाज़ आ रही थी।

मैं हॉल रूम की तरफ बढ़ा तभी मुझे पिताजी की भी उपस्थिति महसूस हुई। मैं हाल रूम के बिलकुल नज़दीक आकर खड़ा हो गया और छुपकर देखने लगा। माँ डाइनिंग टेबल पर बैठकर रो रही थी और पिताजी माँ के बाजू में बैठे थे।

उनका हाथ माँ के कंधे पर था। मुझे ऐसा लगा कि पिताजी माँ को कुछ समझा रहे थे।

[पिताजी:] देखो, मेरा कहना मानो। इसमें हम दोनों का फ़ायदा है। मैं तुम्हे वह सुख अब नहीं दे सकता इसलिए मेरा दोस्त तैयार बैठा है। वह अच्छा इंसान है। मैं तुम्हे उसके साथ मज़े लेते देखना चाहता हूँ। इसमें दो फायदे है। तुम्हारी प्यास बुझ जाएगी और मेरा दोस्त हमें उसका फ्लैट मुफ्त में भी दे देगा।

मेरी तनख़्वाह से हम नया घर नहीं खरीद सकते है। तुम ज़्यादा सोचो मत सिर्फ़ हाँ कह दो। रात को मेरा दोस्त आने के लिए तैयार है। आज से ही हम शुरू करते है। चलो अब मैं ऑफिस चलता हूँ, बाई।

पिताजी माँ की गाल को चूमकर ऑफिस चले गए। मैं भी बिना कोई आवाज़ किए अपने कमरे में चला गया। जो कुछ भी मैंने सुना था उसे दुबारा समझने की कोशिश करने लगा। मुझे फिर भी यकीन नहीं हो रहा था।

आखिर ऐसी क्या मज़बूरी है जिसकी वजह से पिताजी का दोस्त हमारे घर पर माँ को खुश करने के लिए आ रहा था। ऐसी कौनसी ख़ुशी थी जो पिताजी माँ को अब नहीं दे सकते थे। मेरे दिमाग में बहुत सारे सवाल आने लगे थे।

मैंने सोचा कि माँ को जाकर पूछता हूँ कि मसला क्या है। फिर मुझे लगा कि माँ झूट बोलकर मुझे टाल देगी। मुझे जानना था कि रात को पिताजी का दोस्त माँ को कैसे खुश करने वाला है।

मैं कॉलेज में जाकर उस बारे में सोचने लगा था। मैंने बहुत सोचा कि ऐसा क्या करू जिससे मुझे मेरे माँ-पिताजी रात को क्या करने वाले थे उसका पता चले। दोपहर को कॉलेज से छूटने का समय हो गया था।

मुझे फिर भी कोई विचार दिमाग में नहीं आया था। कॉलेज के कैंपस पर चलते समय मेरी नज़र सिक्योरिटी कैमरा पर गई। उसे देखकर मुझे एक विचार आया था।

मैंने सोचा कि अगर मैं माँ-पिताजी के बेडरूम में गुप्त कैमरा लगाता हूँ तो मुझे सब कुछ मालुम पड़ जाएगा। मैं एक सिक्योरिटी कैमरा की दूकान पर गया। बहुत खोजने पर मुझे उस दूकान से एक गुप्त कैमरा मिला था।

गुप्त कैमरा कलश के अंदर था। मैंने घर पर आकर उस गुप्त कैमरे को अपने कमरे में चलाकर देखा। लेकिन मुझे वह कैमरा माँ-पिताजी के कमरे में जाकर देखना था। जब से मैं घर आया था माँ तब से बाहर जा ही नहीं रही थी।

शाम के ०६: ०० बज चुके थे और मैं अपने कमरे में परेशान होकर बैठा था। अगर माँ घर से बाहर नहीं निकलती तो मुझे कभी नहीं पता चलता कि उस रात कमरे के अंदर क्या होने वाला था। ०७: ३० बजे माँ घर से बाहर निकली।

माँ जैसे ही घर से बाहर गई मैं तुरंत उसके कमरे में जाकर घुस गया। कलश को मैंने ऐसी जगह पर रख दी जहाँ से मुझे कमरे का पूरा दर्शन मिल जाए।

अपना मोबाइल फ़ोन निकालकर मैंने धीमी आवाज़ पर एक गाना बजाया ताकि माइक्रोफोन की जाँच कर सकूँ। अपने कमरे में जाकर मैं कंप्यूटर पर माँ-पिताजी का कमरा देखने लगा था। हेड-फोन पहनकर मैंने वह गाने को साफ़-साफ़ सुना।

फिर मैं अपना मोबाइल वापस लेकर आ गया और अपने कमरे में जाकर रात में होने वाले कांड का इंतज़ार करने लगा।

रात को मैं खाना खाकर अपने कमरे में चला गया। ठीक ११: ३० बजे पिताजी, उनका दोस्त और माँ बेडरूम में घुसे। माँ बिस्तर पर साड़ी पहनकर बैठी थी। उसे देखकर लग रहा था कि वह किसकी तो शादी के लिए तैयार हुई थी।

पिताजी और उनका दोस्त शराब पीकर बातें कर रहे थे। इस कहानी में मैंने सिर्फ़ उन दोनों के बिच हुई मुख्य बातें ही बताई है।

[पिताजी:] यार अब मेरा मूड बन रहा है। तू जल्दी से जाकर मेरी बीवी को चोद। मैं तो इसे ठीक से चोद नहीं सकता। कम से कम इसकी चुदाई देखकर अपना लौड़ा को हिला सकता हूँ ना। हाँ लेकिन कमीने, इसे चोदने के बाद तू पलट मत जाना। याद है ना तुझे अपना फ्लैट मेरे नाम करना है।

[पिताजी का दोस्त:] हाँ भाई याद है मुझे। पहले मुझे इस माल को चखने तो दे ज़रा। साली को जब भी देखता हूँ ना, मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता है और एक तू है जो इसे चुदाई करते देखना चाहता है। अजीब शौक है तेरे भाई।

(माँ को देखकर) ऐ सुनना जानेमन, यह क्या तूने साड़ी में अपनी जवानी को लपेटकर रखा है। खोल इसे और ज़रा ठुमके लगा। हिला अपनी गांड को। चल आजा मैदान में।

माँ ने अपनी साड़ी खोल दी। ब्लाउज और पेटीकोट में पिताजी और उनके दोस्त के सामने आकर खड़ी हो गई। पिताजी के दोस्त ने अपने मोबाइल में छमा-छम वाला गाना लगा दिया।

पिताजी ने अपनी कुर्सी को पीछे सरका दी और अपनी पैंट खोलकर बैठ गए।

[पिताजी:] खुश कर दे मेरे दोस्त को आज। तुझे गैर मर्द के साथ चुदाई करते देखकर ही मेरा लौड़ा खड़ा होता है। चल नाच ठुमके लगा के।

माँ ने ब्लाउज और पेटीकोट भी निकाल दिया। वह सफ़ेद ब्रा पैंटी में ठुमके लगाने लगी। थोड़ी देर नाचने के बाद पिताजी के दोस्त ने माँ को उठाकर बिस्तर पर फेक दिया। वह तो पूरा नंगा बैठकर ही माँ को नाचते देख अपने लौड़े को तैयार कर रहा था।

वह माँ के ऊपर चढ़कर माँ के होठों को चूसने लगा। माँ लाश जैसे पड़ी थी बिस्तर पर। ब्रा और पैंटी निकालकर पिताजी का दोस्त अपने हाथों से माँ के चूचियों को दबोचकर उन्हें दबाने लगा।

एक हाथ से उसने माँ की चूत में उँगली करनी शुरू कर दी। माँ उत्तेजना की वजह से तिलमिला गई और उस आदमी का साथ देने लगी।

पिताजी के दोस्त ने माँ के टाँगे फैलाकर उसे चोदना शुरू कर दिया। पिताजी उस नज़ारे को देखकर अपना लौड़ा हिला रहे थे। माँ की सिसकियों की आवाज चीखों में बदल गई।

पिताजी का दोस्त माँ की चूत में जोर-ज़ोर से धक्के मारकर चोद रहा था। माँ ने भी उस आदमी की पीठ को कसके पकड़ रखा था। उस आदमी ने माँ की निप्पल को बारी-बारी करके चूसा।

उसने माँ को घोड़ी बनाकर लेटा दिया बिस्तर पर। माँ की चूतड़ों को दबोचकर, फैलाकर वह आदमी माँ की गांड की छेद को चाट रहा था। गुदगुदी होने के कारण माँ अपनी गांड को ऊपर-निचे करके हिलाने लगी।

माँ की मोटी गांड को थूक लगाकर चाटने के बाद उस आदमी ने अपना लौड़ा माँ की चूत में घुसा दिया। माँ की सुडौल कमर को पकड़कर उसने चूत को अपने लौड़े पर पटकना शुरू कर दिया।

अपनी दो उँगली माँ की गांड में घुसाकर उसे भी अंदर-बाहर करने लगा। कुछ देर बाद उसने गांड के अंदर से अपनी उँगलियाँ निकाली और उसे सूँघने लगा। उँगलियों को चाटकर उसने माँ को अपनी गोद पर बिठा दिया।

माँ की गांड को पकड़कर उसे अपने लौड़े पर पटकना शुरू कर दिया। माँ की गीली चूत के अंदर उस आदमी का काला लौड़ा घुसते देख पिताजी ज़ोर-ज़ोर से अपने लौड़े को हिलाने लगे।

उनसे और रहा नहीं गया इसलिए उन्होंने बिस्तर पर खड़े होकर माँ के मुँह पर अपना लौड़े का माल छोड़ दिया। पिताजी फिर बिस्तर पर ही लेट गए। लेकिन उस आदमी का जोश अभी भी बरकरार थी।

वह खड़ा हो गया और माँ को उसकी जाघों से पकड़कर उठाया। माँ की गांड की दरार में अपनी उँगलियाँ फसाकर उसने माँ को अपने लौड़े पर उछालना शुरू कर दिया। माँ ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी।

थोड़ी देर बाद, उस आदमी ने माँ की चूत के अंदर ही अपने लौड़े का पानी छोड़ दिया। इतना करने के बाद भी उस आदमी ने माँ को छोड़ा नहीं। अब ज़मीन पर लेटकर वह माँ की गांड की छेद को चाटने लगा।

माँ उसके गीले लौड़े को चूस रही थी। तभी पिताजी उठे और इन दोनों को अभी भी चुदाई करते देख उन्हें गुस्सा आ गया। पिताजी ने अपने दोस्त को घर से रवाना कर दिया।

कुछ दिनों बाद मुझे पता चला की पिताजी के दोस्त ने उनसे झूट बोलकर माँ की चुदाई की थी। उसे तो बस माँ को चोदना था इसलिए उसने पिताजी के साथ एक चाल चली।

वह ऑफिस में पिताजी की चाय में कुछ मिलाता था जिससे पिताजी का लौड़ा खड़ा होना बंद हो रहा था। आखिर में सच्चाई बाहर आ ही गई थी। माँ और पिताजी को अपनी हरकतों पर बहुत अफ़सोस हुआ।

पिताजी को उनकी लालच की सजा मिल गई थी।
 
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