• Hello Friends You can Register on the Forum and by posting you can earn money too.

Romance तेरी मेरी आशिक़ी (कॉलेज के दिनों का प्यार)

[color=rgb(0,]ग्यारहवाँ भाग[/color]

[color=rgb(51,]सुजाता मौसी दूसरे कमरे से निकलती हुई बोली, "अरे मैं पहले ही बोली थी उस लड़की को घर में ज्यादा मत आने-जाने दो। लेकिन तुम लोग मेरी बात कभी सुनते ही कहां हो? अब घर में चोरी हुई तो समझ में आ गया"

" चोरी?.." मैं खुद से दोहराते हुए बोला।

"हां, आदिति के गहने चोरी हो गए हैं। भैया मेरे तरफ देखते हुए बोले।

"अरे उन जैसी लड़कियों का यही काम होता है। उस जैसी लड़की तो सबसे पहले किसी अमीर लड़के को फंसाती हैं फिर उसके घर वालों के सामने अच्छे बनने का नाटक भी करती हैं और उसके घर आती जाती रहती हैं फिर मौका देखकर सारा माल उड़ा ले जाती हैं।" सुजाता मौसी बोली।

पहले तो सुजाता मौसी की बात सुनकर मुझे कुछ समझ में नहीं आ रही थी। आखिर मौसी कहना क्या चाहती थी मगर फिर उनकी इसी बात को बार-बार दोहराते रहने कारण मैं समझ गया था कि उनक इशारा दीपा की तरफ था।

शायद वह मेरे घर वाले को यह बताना चाह रही थी कि दीपा ही आदिति भाभी के सारे गहने लेकर चंपत हो गई है।

आदिती भाभी के तीन लाख के गहने गायब हो चुके थे।
मुझे तो अब भी भरोसा नहीं हो रहा था कि सुजाता मौसी दीपा पर ऐसा इल्जाम लगा सकती हैं।

"निशांत बेटा दीपा के फोन लगाकर उससे गहने के बारे में पूछो। " मेरी मां रोयासी (रोतेज जैसे ) आवाज में बोली।

" मां दीपा चोरी के बारे में क्या बताएगी उसे कैसे मालूम होगा गहनों के बारे में?" मैंने मां से बोला।

"जब गहने लेकर वो गई है, चोरी उसने की है। तो गहनों के बारे में और कौन बताएगी?" सुजाता मौसी मुझसे बोली।

मौसी की बात सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था।

"मौसी आपका दिमाग तो खराब नहीं है ना ? दीपा के बारे में कैसी बातें कर रही हैं आप " मैं इस बार गुस्से में बोला था।

"ओ ...हो... निशांत तुम्हें गुस्सा आ रहा है। अरे अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है जो लोगों को सही से पहचान सको ?" मौसी ताने- मारती हुई बोली। उसके बाद वह अपननी चेहरा दूसरी तरफ फेर ली।

" निशांत दीपा को कॉल कीजिए" आदिति भाभी बोली।

"भाभी आप भी.....?"

मेरी बात पूरी होने से पहले ही अर्जुन भैया बोले, "दीपा से बात कर लो शायद उन्हें गहने के बारे में कुछ जानकारी हो

सारे घरवालों की बात सुनकर मुझे बहुत दुःख हुआ और मौसी पर और ज्यादा गुस्सा आने लगा, क्योंकि कहीं न कहीं उनकी बातों का असर घर के सभी लोगों पर थोड़ा बहुत हुआ था।

भैया का यह बात सुनकर मैंने इस बार सभी के चेहरों की तरफ देखा। उन सभी लोगों के शक की सुई दीपा पर ही जा रही थी।

मैं दीपा के बारे में कुछ सोच ही रहा था कि तभी मेरे कानों में भाभी की आवाज सुनाई पड़ी।

"दीपा क्या तुम इस वक्त मेरे घर आ सकती हो?" भाभी फोन पर दीपा से बात कर रही थी।

"क्यों दी (दीदी ) क्या हुआ? आप अचानक से मुझे इस वक्त क्यों बुला रही है? सब खैरियत तो है ना ?" दीपा एक ही साँस में ये सारी बाते बोल दी।

"बस तुम अभी घर आ जाओ। मैं तुम्हें सब बताती हूं।" आदिति भाभी बोली।

"ठीक है दी(दीदी ), मैं आधे घंटे में पहुंचती हूं।" दीपा ने यह बोलकर फोन काट दिया।

सब लोग कुछ देर तक मौन रहे फिर मैं बोला, " भैया हम बिना किसी सही जानकारी के सिर्फ शक के आधार से दीपा पर चोरी का इल्जाम कैसे लगा सकते हैं ? अगर उसने यह सब नहीं किया हो तो?"

निशांत मैं दीपा को अच्छी तरह से जानता हूं। वह ऐसी लड़की नहीं हैं। वह कभी भी चोरी नहीं कर सकती है। बस इन लोगों के संतुष्टि के लिए उसे यहां आने दो।" अर्जुन भैया बोले।

"ठीक है।" मैंने बोला।

दीपा आधे घंटे के अंदर ही हम लोगों के बीच मेरे घर में खड़ी थी

आदिती दी ( दीदी) आपने इतनी जल्दी मुझे बुलाया। क्या बात करनी थी? बताइए मैं आ गई हूं।" दीपा आते ही आदिती भाभी से बोल पड़ी।

"दीपा कल रात मेरे सारे गहने चोरी हो गए हैं।" आदिति भाभी बोली।

" क्या?.. आप के गहने चोरी हो गए हैं ? आपने अपने गहने कहां रखे थे? " दीपा चौकते हुए बोली।

"ओहो... कैसी अनजान होकर बोल रही है? ...आपने गहने कहां रखा था?" सुजाता मौसी मुंह बनाती हुई बोली।

सुजाता मौसी की बात सुनकर दीपा को भी थोड़ा थोड़ा शक हो गया कि शायद सुजाता मौसी उसे ही चो समझ रही हैं।

"सुजाता मौसी आप कहना क्या चाहती हैं? दीपा सुजाता मौसी से बोली।[/color]


[color=rgb(0,]साथ बने रहिए।[/color]
 
[color=rgb(0,]बारहवाँ भाग[/color]
[color=rgb(51,]

जो गहने तुमने चुराए हैं उसे"वापस कर दो।" मौसी गुस्से से बोली।

मौसी की बात सुनकर दीपा आश्चर्य चकित रह गई। उसका शक बिलकुल सही था। सुजाती मौसी उसपर ही चोरी का इल्जाम लगा रही हैं।

मौसी, ये क्या बोल रही हैं आप। मैंने कोई गहने नहीं चुराए हैं। दीपा ने नम आँखों से सुजाता मौसी से कहा।

मैं तो पहले ही कह रही थी, कि ये जितनी भोली-भाली दिखती है उतनी है नहीं। देखो कितनी ढीठ हो गई है। एक तो चोरी करती है ऊपर से मुझे आँख दिखाती है। सुजाता मौसी ने कहा।

मैंने कोई चोरी नहीं की है। अरे ये मेरा भी घर है। मैं अदिति दी को अपनी बड़ी बहन मानती हूँ। भला मैं उनके गहनें क्यों चुराऊगी। दीपा एकदम रुआसी होकर बोली।

हाँ तुमने ही बहू के गहने चोरी किए हैं। मैंने खुद तुम्हें बहू के कमरे के पास देखा था। सुजाता मौसी ने अकड़कर कहा।

मैं कब दीदी के कमरे के पास आई और आपने कब मुझे देखा। दीपा इस बार थोड़ा गुस्से में बोली।

कल रात में जब मैं बाथरूम जाने के लिए उठी थी तब। सुजाती मौसी ने कहा।

मौसी आपका कमरा भाभी के कमरे से थोड़ी ही दुरी पर है और वहाँ से भी टॉयलेट जाते समय या वापस आते समय कभी भीआदिती भाभी का कमरा ठीक से दिखायी देता। और तब आपने उस वक्त दीपा को आदिती भाभी के कमरे तरफ से आते देखा था। मौसी की बात पर दीपा ने मौसी से पूछा।

हाँ मैं तो कब से कह रही हूँ कि आदिती बहू के जो गहने चोरी हुए हैं उसे तुमने चुराए हैं। मौसी बोली।

आप यह क्या बके जा रही है ? पहली बात तो मैं कल रात को अदिति के कमरे के पास आई ही नहीं थी। चलो एक बार मान भी लेती हूँ कि मैं रात में अदिति दी के कमरे के पास आई थी तो क्या इसका मतलब ये हुआ कि गहने मैंने चुराए हैं। दीपा भी इस बार गुस्से में बोली।

"बहन अगर तुम मेरे गहने ले गई हो तो प्लीज मुझे वापस कर दो। वो सभी मेरे शादी के मुहूर्त वाले गहने थे।" आदिति भाभी लगभग भीख मांगती हुई दीपा से बोली।

सुजाता मौसी तक तो ठीक था, लेकिन भाभी का उसपर विश्वास न करना और दोषी मान लेना उसे बहुत तकलीफ ले रहा था।

"आदिति दी (दीदी) आप भी......?" दीपा को अपने वाक्य पूरा करने से पहले ही उसकी आंखों से आंसू निकल पड़े। उसकी आँखों से आंसू निकल कर उसके दोनों गालो से लुढ़कर नीचे जमीन पर फैल रहे थे।

उस वक्त दीपा को यह समझ नहीं आ रहा था कि आखिर लोग चोरी का इल्जाम उस पर क्यों लगा रहे हैं ? उसने किसी का क्या बिगाड़ा हैं जो लोग इस तरह से उससे बदले लेने के लिए तुले हुए हैं ।

"दीपा बेटी मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं होगी यदि तुम बहू के सभी गहने वापस कर देती हो।" मेरी मां दीपा से बोली।

दीपा मेरी मां की बात सुनकर और भी फूट फूट कर रोने लगी।

"मां आप दीपा से यह क्या बोल रही हो? आपके पास क्या सबूत है कि गहने दीपा के पास हैं ?" उस वक्त यह वाक्य मैंने थोड़ी तेज आवाज में बोला था जिसके कारण सभी लोग मेरी तरफ देखने लगे थे।

"निशांत इस घर का कोई भी सदस्य अभी तक इस घर से बाहर नहीं निकला है सिवाय दीपा के। मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि दीपा ही आदिती बहू के सारे गहने लेकर भागी है।" सुजाता मौसी बोली ।

"दीपा सुबह मेरे साथ कॉलेज गई थी ना कि वह अपने घर गई थी।" मैंने कहा।

सुजाता मौसी मेरी बातों को सुनकर कोई जवाब नहीं दिया।

"मुझे लगता है इस चोरी की सूचना पुलिस को दे दीजिए। पुलिस खुद ही पकड़ लेगी असली चोर को और ये इस तरह से किसी को बदनाम करने से कहीं ज्यादा बेहतर होगा।" मैं अर्जुन भैया से बोला।

"निशांत तुम ठीक कह रहे हो। हमें चोरी की सूचना पुलिस को दे देनी चाहिए।" अर्जुन भैया बोले।

"नहीं.. इस घर में पुलिस नहीं आ सकती है। इससे हमारी और भी बदनामी होगी। आज तक इस घर में कभी कोई चोरी नहीं हुई है और न हीं कभी इस घर में कोई पुलिस आई है। मैं नही चाहती हूँ कि घर की बात बाहर फैलाया जाये। अगर यह बात लोगों को पता चलेगी कि इस घर में चोरी होने लगी है तो फिर क्या इज्जत रह जाएगी।" मेरी मां बोली ।

"विमला तुम सही बोल रही हो। जब चोर हमारे सामने ही है तो पुलिस की क्या जरूरत है।अगर पुलिस आती भी है और चोर को पकड़ भी लेती है तो पैसे लेकर ऐसे चोर को छोड़ देगी।इससे हमारा कोई फायदा भी ना होगा । इससे अच्छा है कि हम इस वक्त इसे धक्के देकर घर से बाहर निकाल देते हैं और इसके घर जाकर बहू सारे गहने ले आते हैं।" सुजाता मौसी बोली।

यह सुनकर दीपा डर गई कि अगर यह बात उसके भैया को पता चली तो वह उनकी नजरों में गिर जाएगी।

"नहीं-नहीं ऐसी गलती मत करिएगा वरना मेरे भैया को यह सब जानकारी होगी तब वह अपनी जान दे देंगे" दीपा विनती करती हुई बोली।

"अच्छा है तब तो हम ऐसा ही करेंगे ताकि तुम्हारा भाई भी जान ले कि उसकी बहन उसके पीछे क्या-क्या गुल खिला रही है।... मुझे तो लगता है इस चोरी में तुम्हारा भाई भी शामिल होगा।" सुजाता मौसी बोली।

"सुजाता मौसी आपको शर्म आनी चाहिए ऐसी घिनौनी बातें करते हुए। पहले आपने दीपा को बदनाम किया और अब उसके भाई को बदनाम कर रही हैं। अब तो आपने बेशर्मी की सारी हदें पार कर दी है" मैं गुस्से में बोला।

बेशर्मी की हदें तो इस लड़की ने पार कर दी, अपने दोस्त की बहन के गहने चोरी कर के" मौसी फिर मुंह बनाती हुई बोली।

"निशांत तुम इन लोगों को समझाओ ना! देखो ये लोग क्या-क्या मेरे बारे में बोले जा रहे हैं?" दीपा रोती हुई बोली।

"सुजाता मौसी आप इतने कॉन्फिडेंस के साथ इस चोरी का इल्जाम दीपा पर कैसे लगा सकती है?"

" क्योंकि जिस रात बहू के गहने चोरी हुई है उस रात मैंने सुबह 3:00 बजे दीपा को आदिति बहू के कमरे की तरफ से आते हुए दीपा को देखा है। और मैं यकीन के साथ कह रही हूँ उस वक्त उसके हाथों में गहने भी थे।" सुजाता मौसी बोली।

"उस वक्त दिपा भाभी के कमरे से नही आ रही थी" मैनें कहा ।

"तब कहाँ से आ रही थी ?" मेरी माँ बोली ।

"वह..." मेरी बात को पूरा करने से पहले ही दीपा हाथ जोड़कर इशारो मे ही उस रात वाली घटना को जिक्र ना करने की विनती करने लगी । उस वक्त वह कहना चाह रही थी कि मैं चोरी की बदनामी के दर्द सह लूंगी। मगर ये लोग यदि यह जान जाएंगे कि उस रात मैं तुम्हारे साथ थी तो यह लोग मेरे लिए चोर के साथ चरित्रहीन जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल करने लगेंगे जो मेरे लिए असहनीय होगा ।

मैंने दीपा के बेवस आंखो के तरफ़ देखा, उसकी आँखों से आंसु निकल फर्श पर गिर कर फैल रहे थे।

आदिती भाभी के कमरे और जिस कमरे मे सुजाता मौसी सो रही थी । वे दोनो कमरा एक दूसरे से विपरीत दिशा में थे यानी आदिति भाभी के कमरे से ना तो सुजाता मौसी के कमरे का दरवाजा दिख सकता था और न ही सुजाता मौसी के कमरे या खिड़की से आदिति भाभी के दरवाजे या उनके कमरे से आने वाला कोई व्यक्ति ही दिख सकता था।

"अगर आपने सुबह 3:00 बजे दीपा को अदिति भाभी के कमरे की तरफ से आते हुए देखा है तो उस वक्त वहां पर आप क्या कर रही थी । और यदि दीपा अपने हाथों में गहने लिए हुई थी तब आपने उस वक्त किसी को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी।" मैं सुजाता मौसी से बोला।

मेरी यह बात सुनकर सुजाता मौसी हक्का-बक्का सा हो गई । क्योंकि उन्हें भी अच्छी तरह से मालूम था कि वह जिस कमरे में सोई थी वहां से आदिति भाभी के कमरे या उनके दरवाजे से किसी व्यक्ति को आते हुए देखना नामुमकिन था।

" मैं उस वक्त टॉयलेट से आ रही थी तभी मेरी नजर दीपा पर पड़ी थी" सुजाता मौसी घबराती हुई बोली।

"लेकिन सुजाता मौसी टाँयलेट तो आपके कमरे से ढक्षिण दिशा में है तो आपने दीपा को भाभी के कमरे से आते हुए कैसे देख लिया?" मैं बोला।

मेरी बातों को सुनकर सभी लोग मौसी को देखने लगे। इस बार मौसी कुछ नहीं बोल पा रही थी बस चुपचाप खड़ी थी ।

"भैया इस घर में अभी तक कोई पुलिस नहीं आई है मगर इस बार पुलिस जरूर आएगी और पुलिस मैं बुलाऊंगा।" यह बोलते हुए मैंने अपना मोबाइल निकाल कर पुलिस स्टेशन में कॉल करने लगा।

"निशांत बेटा रुक जाओ, पुलिस मत बुलाओ।" मौसी डरी हुई आवाजों में बोली।

मैंने मौसी की तरफ देखा तो वह काफी डरी हुई लग रही थी। अब सभी के नजरें एक बार फिर से मौसी के तरफ जा टिकी थी । मगर दीपा अभी भी पहले जैसे ही रो रही थी ।वहां पर उपस्थित सभी लोग यह समझ नहीं पा रहे थे आखिर मौसी इतनी डर क्यों गई हैं ।

"अब हम लोगों को पुलिस बुला लेनी चाहिए क्योंकि हम शक के आधार पर किसी को चोर नहीं ना बता सकते हैं। जब पुलिस आएगी तब वह खुद दूध का दूध और पानी का पानी कर देगी यानी पुलिस खुद चोर को पकड़ लेगी और इससे किसी निर्दोष को बदनाम होने से भी बच्चाया जा सकता है। अगर दीपा ने सचमुच चोरी की होगी तो पुलिस उसे पकड़ कर ले जाएगी।" मैं बोला।

मेरी यह बात सुनकर सभी लोगों ने अपनी सहमति दिखाई मगर मौसी चुपचाप कुछ मिनटों तक मूर्त बन कर खड़ी रही फिर अचानक से धीमी स्वर में बोली,"

निशांत बेटा आदिति बहू के गहने मैंने ही छुपा कर रख दिए हैं । "

"क्या?..." सभी एक साथ बोल पड़े।

[/color]
[color=rgb(0,]साथ बने रहिए।[/color]
 
[color=rgb(0,]तेरहवाँ भाग[/color]

[color=rgb(51,]
"क्या?..." सभी एक साथ बोल पड़े।

अब यह सुनने के बाद दीपा रोना बंद कर चुकी थी और हम सभी सुजाता मौसी को देख रहे थे। सभी यह जानकर हैरान थे कि भाभी के सभी गहने सुजाता मौसी छुपा कर रखी हैं।

"हां बेटा सारे गहने मैंने ही छुपा कर रख दिए हैं। इसके लिए मुझे माफ कर दो" सुजाता मौसी लगभग रोती हुई बोली।

"मगर सुजाता मौसी आपने ऐसा क्यों किया। मैं तो कभी सोच भी नहीं सकती थी कि आप ऐसा कर सकती हो।" आदिति भाभी सुजाता मौसी के पास जाकर बोली।

"अर्जुन द्वारा मेरी बेटी शिल्पा का रिश्ता ठुकराने के कारण मैं तुम लोगों से काफी नाराज थी और मैं चाहती थी कि बहू के गहने चुराकर मैं बहू को ही बदनाम करवा दूँगी इसके लिए मैंने सोच रखा था कि सब लोगों को बोल दूंगी कि उसने सारे गहने अपने मायके वालों को दे दिया है , जिससे बहू सब लोगों के नजर से गिर जाएगी फिर तुम लोगों को लगने लगेगा कि मैंने शिल्पा का रिश्ता ठुकरा कर बड़ी गलती कर दी है।" सुजाता मौसी बोली।

"लेकिन कोई यह कैसे मान सकता था कि आदिति भाभी अपना खुद का गहना खुद ही चुरा लिया है" मैंने सुजाता मौसी से पूछा।

"कोई माने या ना माने मगर रिश्तेदार और मोहल्ले वाले तो मान ही सकते थे ना।" सुजाता मौसी कुटिल शब्दों में बोली।

"अच्छा मौसी तो आप मेरे घर में रहकर मेरी ही पत्नी के खिलाफ साजिश रच रही थी। वाह बहुत बढ़िया... बहुत बढ़िया।" अर्जुन भैया ताली बजाते हुए बोले।

भैया की यह बात सुनकर सुजाता मौसी ने अपना चेहरा नीचे झुका लिया और चुपचाप खड़ी हो गई।

"अगर चोरी का इरादा भाभी को बदनाम करना था तो फिर इसमें दीपा को क्यों घसीट रही थी?" मैंने सुजाता मौसी से पूछा।

बेटा मैं इस चोरी में दीपा को बदनाम करना नहीं चाह रही थी मगर गहने चोरी होने की खबर मिलते ही सब लोगों की नजर सबसे पहले दीपा पर ही गई थी क्योंकि दीपा यहां से सबसे पहले बाहर निकली थी तो उस वक्त अदिति बहू पर आरोप लगाना उचित नहीं समझा। मौसी सीधे गर्दन झुकाए हुई बोलती रही।

सब लोग सुजाता मौसी के इस हरकत से शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे मैं चुपचाप बरामदे में लगी सोफे पर जाकर बैठ गया।

दीदी मैं तुम्हें अपने परिवार के सदस्य जैसा ही मानती थी और आप मेरे ही घर में रहकर मेरे रिश्तेदारों को मेरी ही बहू को बदनाम करने के बारे में सोच रही थी मां गुस्से से आकर सुजाता मौसी से बोली।

मुझे माफ कर दो बहना मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई । सुजाता मौसी रोती हुई बोली।

अब मुझे लगता है कि मैंने अर्जुन के लिए शिल्पा का रिश्ता न मानकर बहुत अच्छा किया था, क्योंकि आपके बारे में मुझे पहले से पता था कि आप इधर की बात उधर और उधर की बात इधर करने में माहिर हैं। बिना किसी मतबल के लोगों को नीचा दिखाना आपकी आदत है। तो शिल्पा की परवरिश तो आपने ही की है। कहीं-न-कहीं शिल्पा में आपके ही गुण तो होंगे। जो भी मैंने किया अच्छा ही किया। कम-से-कम अर्जुन की जिंदगी खराब होने से बच गई। माँ ने सुजाता मौसी से कहा।

मौसी कुछ देर तक वहीं खड़ी रही। कुछ समय बाद मौसी कमरे की तरफ गई और अपना बैग उठाकर लाई और उसमें छुपा कर रखे भाभी के सारे गहने निकालकर मेरी मां के हाथों में रख दिया।

मेरे घरवाले दीपा के साथ किए गए अपने बर्ताव के लिए दीपा से माफी मांग रहे थे।

दीपा मुझे माफ कर दो बहन मैंने भी तुम्हें गलत समझा अदिति भाभी दीपा से माफी मांगती हुई बोली।

हां बेटी मुझे भी माफ कर दो मैं भी अपनी बहन की हां में हां मिलाते हुए तुम्हें बहुत कुछ बुरा भला कह दिया है मेरी मां दीपा के हाथों को अपने हाथों में पकड़ती हुई बोली।

ये आप लोग कैसी बात कर रहे हैं। आप सब मुझसे बड़े हैं। और आप तो मेरी माँ जैसी हैं। मुझे तो माँ का प्यार नसीब नहीं हुआ, लेकिन वो बिलकुल आपकी तरह ही रही होंगी। माँ बाप बच्चों से माँफी नहीं माँगते।आशीर्वाद देते हैं। अपने जो कुछ मुझे कहा वह कोई गलत नहीं था क्योंकि अगर मैं भी आपकी जगह पर होती तो मैं भी यही बोलता बोलती। क्योंकि एक बहन दूसरी बहन की बातों को झूठा नहीं मान सकती है। और सुजाता मौसी ने भी इसी बात का फायदा उठाया है।

मेरी माँ दीपा की इस बात से बहुत प्रभावित हुई और आगे बढ़कर उसके माथे को चूमकर आशीर्वाद दिया।

दीपा ने घर वालों को माफ कर दिया था अदिति भाभी दीपा द्वारा माफ किए जाने के कारण अब बहुत खुश थी जबकि सुजाता मौसी वहीं पर झूठे घड़ियाली आंसू बहा रही थी।

मौसी अब आप भी चुप हो जाइए आप ने अपनी गलती स्वीकार कर ली समझो आपने अपनी सजा पा ली है प्लीज प्लीज अब मत रोइए दीपा सुजाता मौसी के पास जाकर बोली।

बेटी तुम मुझे भी माफ कर दो मेरे कारण तुम्हें लोगों से इतना बेइज्जत होना पड़ा । मौसी दीपा से बोली

मौसी मैंने आपको माफ कर दिया है बस आप चुप हो जाइए और इतना बोलते हुए दीपा ने मौसी को गले लगा लिया।

दीपा के इस अपनेपन और प्यार भरे बर्ताव से मेरे घरवाले काफी खुश हो गए दीपा ने अपनी बेइज्जती करने वालों को यूं ही माफ कर दिया था। जिसके कारण दीपा के बड़प्पन से सभी प्रभावित हुए। दीपा द्वारा सुजाता मौसी को माफ करने के बाद मेरे घर वालों ने भी सुजाता मौसी को माफ कर दिया।

अदिति दीदी आप मुझे अपने घर जाना होगा वरना भैया को फिर से इंतजार करना पड़ेगा। दीपा आदिति भाभी के पास जाकर बोली।

ठीक है बहन जाओ मगर इन सभी बातों को भुला देना प्लीज। अदिति भाभी बोली

आदिति दी आप कैसी बात कर रही है मैं इस बात तो कुछ देर पहले ही भूल गई हूं ।दीपा आदिति भाभी को गले लगाती हुई बोली

दीपा को पहले जैसा खुश देखकर मैं भी अब खुश हो गया था।

निशांत बेटा दीपा को इसके घर तक छोड़ दो। मेरी मां मुझसे बोली

मैंने अर्जुन भैया के तरफ देखा।

हां शाम हो गई है जाकर दीपा को इसके घर छोड़ आओ। भैया ने जाने की इजाजत देते हुए कहा।

मैं बाइक लेकर दीपा के घर के लिए निकल पड़ा वह मेरे साथ बाइक पर चुपचाप मूर्त होकर बैठी थी मैंने दीपा को शांत बैठा देख कर बोला, " दीपा प्लीज आप सब लोगों को माफ कर दो उन लोगों ने कुछ ज्यादा ही बोल दिया था।"

मैंने तो उन लोगों को कब का माफ कर दिया । बस तुम्हें माफ नहीं किया। दीपा शांत स्वर में मुंह बनाती हुई बोली।

मगर मैंने क्या किया मुझे क्यों नहीं माफ किया तूने। मैंने चौकते हुए दीपा से कहा।

क्योंकि तुम उस वक्त से यू उदास उदास सा चेहरा बनाए हुए हो। दीपा इस बार हंसती हुई बोली। उसकी हंसी सुनकर मैं भी हंस पड़ा।

कुछ मिनट बाद मैं दीपा के घर पहुंच चुका था वह गाड़ी से उतर कर अपने घर के दरवाजे से अंदर जाने लगी फिर पीछे मुड़कर बोली। क्या कुछ देर तुम रुक नहीं सकते हो।

मैंने उसकी आंखों की ओर देखा फिर मुस्कुरा कर बोला। यदि आप बोलेंगी तो मैं सारी उम्र भी यहीं रुकने को तैयार हूं।

मैं बाइक को दरवाजे के पास डबल स्टैंड पर खड़ा करके उसके घर के अंदर चला गया। उस वक्त दीपा के घर में उसके भाई आशीष नहीं थे।

दीपा का घर कोई महलों जैसे नहीं था मगर काफी बड़ा था उसका घर काफी पुराना था, क्योंकि उसके घर की दीवारों के रंग तक उतर चुके थे। दीपा के भैया दूध का व्यापार किया करते थे उसके घर के अंदर ही बहुत बड़ी गौशाला बनी हुई थी जिसमें लगभग 20 से 25 गाय भैंस थी उसके घर और गौशाला के चारों ओर 6 फीट ऊंची दीवार से बाउंड्रिंग की हुई थी जिस के ऊपरी हिस्से पर कांटेदार तार से घिरा हुआ था उसके अंदर ही एक छोटा सा खेत नुमा बगीचा था जिसमें आम , नींबू के पौधों के अलावा घास फूल पत्ते भी थे। कुल मिलाकर यह घर कम मैदान अधिक लग रहा था मगर आगे का हिस्सा देखकर एक अच्छी खासी पुरानी हवेली कहना गलत नहीं हो सकता था।वैसे मैं दीपा को घर तक कई बार छोड़ने आया था मगर घर के अंदर आज पहली बार आया था।

निशांत मेरा यही घर है एक छोटा सी कुटिया । दीपा अपने हाथों से अपने घर और गौशाला की ओर इशारा करती हुई बोली।

बहुत प्यारा घर है । मैंने बोला

हां मेरे लिए और मेरे भैया के लिए यह सबसे प्यारा घर है । शायद तुम्हें इस घर में अच्छा ना लग रहा हो। दीपा बोली।

पागल हो सच में मुझे तुम्हारा घर काफी अच्छा लग रहा है ठंडी हवा, खुला आसमान कमरे के नजदीकी पेड़ पौधे और फूलों से लद्दा फूलों का पौधा वाकई में काफी खूबसूरत है। मैंने बोला।

इस कुर्सी पर बैठो मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं। दीपा एक प्लास्टिक की कुर्सी मेरी तरफ बढ़ाते हुए बोली।

कुर्सी बीच से टूटी हुई थी जिसे पतले तार से जोड़कर बैठने लायक बनाया गया था।

नहीं नहीं मैं चाय नहीं पियूँगा। अभी तो वापस जाना होगा फिर कभी आऊंगा तो जरूर पी लूंगा। मैंने बोला।

मैं वहां कुर्सी से उठकर वापस घर जाने के लिए दरवाजे के पास आ गया मुझे दरवाजे तक छोड़ने के लिए मेरे साथ साथ दीपा भी आई। कुछ पल तक मैं उसके चेहरे को निहारता रहा उसके बाद उसके हाथों को पकड़कर उसे अपनी बाहों में लपेट लिया वह भी मुझसे कुछ मिनटों तक लिपटी रही। उसके बाद वह मेरे गालों को चूम कर मुझसे थोड़ी दूरी पर खड़ी हो गई उस वक्त उसकी आंखों में मेरे लिए बेइंतेहा मोहब्बत दिख रही थी।

ठीक है दिपा मैं अब निकलता हूं ।अब अगले दिन कॉलेज में हमारी मुलाकात होगी। मैंने कहा ।

दीपा अपनी गर्दन हाँ में हिलाकर मुझे जाने की इजाजत दी । मैं अपनी बाइक स्टार्ट कर अपने घर चला गया।

[/color]
[color=rgb(0,]साथ बने रहिए।[/color]

[color=rgb(51,][/color]
 
[color=rgb(0,]चौदहवाँ भाग[/color]
[color=rgb(51,]

अगले दिन मैं और दीपा सुबह ठीक 9:00 बजे कॉलेज पहुंच गए । उस दिन कॉलेज में प्रत्येक दिन की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही हलचल थी । उस दिन हमारे कॉलेज मे छात्रसंघ चुनाव के लिए उम्मीदवारों का नॉमिनेशन शुरू होने वाला था I

वैसे मुझे इन सब में ज्यादा रुचि नहीं होने के कारण इस पर ध्यान ना देकर मैं और दीपा कॉलेज की लाइब्रेरी में जा कर बैठे गए। वैसे मुझे लाइब्रेरी में पढ़ने की ज्यादा कुछ खास आदत नहीं थी।

मैं अधिकांश समय लाइब्रेरी में बुक पढ़ने के लिए नहीं बल्कि दीपा के साथ समय बिताने के लिए जाता था। हमारी आंखें लाइब्रेरी की किताबों से ज्यादा दीपा के चेहरे पर टिकी रहती थी। मुझे हमेशा लगता था कि उसके गुलाबी होठों और मासूमियत भरे चेहरे पर ही मेरी आंखें जमी रहे।

मैं लाइब्रेरी में बैठा किसी सोच में गुम था। दीपा कोई किसी विषय से संबंधित किताब पढ़ रही था और बीच बीच में मुझसे बात कर रही थी, लेकिन मैं अपनी ही सोच में गुम था। तभी दीपा ने मुझसे कुछ पूछा, लेकिन मैंने उसका कोई जवाब नहीं दिया तो उसने मेरे कंधे को पकड़कर हिलाया जिससे मैं होश में आया।

क्या सोच रहे हो निशांत मैं तुम्हे कब से आवाज दे रही हूँ। दीपा ने मुझसे कहा।

कुछ नहीं दीपा बस ऐसे ही। मैंने कहा।

तुम कुछ छुपा रहे हो मुझसे। बताओ ना। दीपा ने मुझसे पूछा।

मैं जो कुछ सोच रहा हूँ उसे सुनकर कहीं तुम मुझे गलत न समझो और नाराज न हो जाओ। जो मैं नहीं चाहता। मैंने कहा।

क्या तुमको मेरे प्यार पर भरोसा नहीं रहा जो तुम ऐसी बात कर रहे हो। दीपा ने कहा।

देखो दीपा तुम मुझे गलत मत समझो, लेकिन में कल जब तुम्हारे घर गया तो मैंने देखा कि तुम्हारे घर की आर्थिक स्थिति बिल्कुल भी ठीक नहीं है। जबकि तुम्हारे भइया दूध का व्यापार करते हैं। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है। मेरी बातों को तुम बुरा मत मानना दीपा और अगर तुम्हें न बताना हो तो कोई बात नहीं। बस मेरे मन में कल से यही सब घूम रहा है। मैंने दीपा से कहा।

नहीं निशांत मैं तुम्हें गलत क्यों समझूँगी, जो सच्चाई है वो छुपाई थोड़ी ही जा सकती है। बात ये है कि पहले हमारी आर्थिक स्थिति बहुत बढ़िया थी, मेरे पापा बड़े बड़े सरकारी कॉन्ट्रेक्ट लेते थे। मेरे पापा मम्मी को बहुत प्यार करते थे। हम पहले मुरादाबाद में रहते थे। ये मेरा पैतृक निवास स्थान है। मैं उस समय 11 साल की थी जब मेरी मम्मी को कैंसर हुआ था। पापा ने मम्मी की बहुत इलाज कराया। मम्मी की बीमारी के कारण पापा अपने काम पर ध्यान नहीं दे पा रहे थे। जिससे उनका काम धीरे धीरे डूबता गया। सारा पैसा मम्मी के इलाज में खर्च हो गया।

मेरे पापा के भाई और चचेरे भाई आर्थिक स्थिति से इतने सुदृढ़ नहीं थे, फिर भी उन्होंने पापा की हर संभव मदद करने की कोशिश की, लेकिन कब तक करते। मम्मी की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। पैसे भी लगभग पूरे खर्च हो गए थे, फिर पापा ने दोस्तों से कर्ज लिया। वो पैसा भी माँ के इलाज में लग गया। और एक दिन माँ हम सबको छोड़कर दुनिया से चली गई। उस दिन के बाद पापा एकदम टूट गए। दोस्तों ने कुछ वक्त तो पैसों को तकाजा नहीं किया, लेकिन कुछ समय बाद वो पापा से पैसों के लिए जोर डालने लगे। चूँकि पैसे पूरे खर्च हो गए थे तो मजबूरन पापा को मुरादाबाद वाला घर बेचकर उनके कर्ज चुकाना पड़ा। जो थोड़े बहुत पैसे बचे थे वो पापा ने भइया के खाते में जमा कर दिया। फिर हम लोग मुरादाबाद छोड़कर यहाँ आकर बस गए।

उस समय मैं 13 साल की थी और भइया 20 साल के थे। मम्मी को मौत के बाद पापा ने काम धाम छोड़ दिया और मम्मी का गम भुलाने के लिए शराब का सहारा ले लिया। वो जो भी थोड़ा बहुत कमाते थे अपनी शराब खर्च कर देते थे। घर की आर्थिक स्थिति और भी खराब हो गई। पापा का ध्यान हम दोनो बहनों भाइयों से हट गया था। भइया ने अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर छोटे-मोटे काम करके अपनी और मेरी परवरिश की। फिर भइया ने घर को बेचने पर बचे हुए पैसों से 10 भैंस और गाय खरीद ली और दूर का व्यापार करने लगे। जब मैं 17 साल की हुई तो अधिक शराब पीने के कारण पापा का लीवर खराब हो गया। जिसके इलाज में दूध बेचकर भइया ने जो पैसे जमा किया था वो भी खर्च हो गए।

अब पापा के इलाज के लिए हमारे पास पैसे नहीं थे तो भइया ने यहाँ का खेत गिरवी रखकर साहूकार से पैसे उधार लिए। और पापा का इलाज कराया, परंतु फिर भी भइया पापा को नहीं बचा सके। माँ के मरने के बाद भइया ने मुझे माँ, बाप और भाई का प्यार दिया है। पापा के मरने के बाद भइया एक-एक पैसा जोड़ रहे हैं ताकि वो अपना घर और खेत वापस पा सकें। और मेरी अच्छे से परवरिस कर सकें। मेरी हर फरमाइश भइया पूरी करते हैं। अब मेरे लिए वही मेरी माँ, मेरे पापा और मेरे भइया हैं। मैं अपने भइया से बहुत प्यार करती हूँ। और कल जो तुमने घर की स्थिति देखी है। उसके लिए भइया बोलते हैं कि घर की मरम्मत तो हम बाद में करवा लेंगे, लेकिन पहले साहूकार से अपने खेत वापस पाना है। जिसके लिए भइया दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। दीपा अपनी कहानी बताते बताते सिसकने लगी।

मैंने आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया और उसके बालों पर उँगली फेरते लगा।

मुझे माँफ कर दो दीपा। मेरा इरादा तुम्हारा दिल दुखाने का नहीं था। मैंने तो बस अपने मन में जो बात थी बस वही कहा था, मुझे नहीं पता था कि मेरी बात से तुम्हारे पुराने जख्म हरे हो जाएँगे। मैंने दीपा से कहा।

ये तुम कैसी बातें कर रहे हो मैंने तुमसे प्यार किया है और तुम्हें सब जानने का कह है। दीपा ने कहा।

अब दीपा सामान्य हो चुकी थी और मेरी तरफ देख रही थी।

अच्छा दीपा एक बात बताओ मान लो कि अगर तुम्हाने भाई ने हम दोनो को प्यार स्वीकार नहीं किया और मेरी शादी तुमसे नहीं होने दी तो तुम क्या करोगी। मैंने दीपा की आँखों में देखते हुए कहा।

अगर मेरे भाई ने हमारे प्यार को मंजूरी नहीं दी और शादी से मना कर दिया तो मैं तुमसे शादी नहीं करूँगी। फिर भइया जिससे भी मेरी शादी करवाएँगे मैं उसी से शादी करूँगी। दीपा ने बड़ी दृढ़ता से जवाब दिया।

लेकिन प्यार तो तुम मुझसे करती हो तो शादी किसी और से क्यों करोगी। हम दोनों भागकर भी शादी कर सकते हैं। मैंने दीपा को देखते हुए कहा।

मैं तुम्हारे कुछ दिन के प्यार के लिए अपने माँ बाप समान भाई के प्यार और परवरिश पर कालिख नहीं पोत सकती। मेरे भाई और उसका प्यार मेरे लिए इस जहान में सबसे अजीज है तुमसे भी अजीज निशांत और मैं तुम्हारे साथ घर से भागकर अपने भाई के प्यार और स्नेह का अपमान नहीं करूँगी। तुम्हें भूलना मंजूर है मुझे, लेकिन मेरे भाई की परवरिश पर कोई उँगली उठाए ये मुझे बिलकुल भी मंजूर नहीं। दीपा ने एकदम सटीक लहजे में जवाब दिया।

एक बात कहूँ दीपा। आज तुम्हारी बातें सुनकर मेरे दिल में तुम्हारे लिए इज्जत और भी बढ़ गई है। मैं अपने आपको भाग्यशाली समझता हूँ कि तुमने मुझसे प्यार किया है। तुम्हारी सोच, तुम्हारी अपने भाई के प्रति समर्पण और परिवार के प्रति प्यार देखकर तुम्हारी इज्जत मेरी नजरो में बहुत बढ़ गई है। यहाँ आजकल की लड़ाकियाँ घरवालों की परवाह न करते हुए अपने प्रेमी के साथ भाग जाती हैं। अपने माँ बाप की परवरिस का अपमान करती हैं। और कहाँ तुम हो। तुम्हारी सोच बहुत अच्छी है दीपा। मैने दीपा की आँखों मे देखते हुए प्यार से कहा।

और एक बात दीपा। अब मेरी शादी होगी तो सिर्फ तुमसे होगी और मैं तुम्हारे भइया को किसी भी तरह मना ही लूँगा। मैंने दीपा से शरारत के कहा।

मेरी बात सुनकर दीपा शरमाने लगी और अपना सिर फिर से किताबों में घुसा लिया। थोड़ी देर शांत बैठने के बाद दीपा ने इस शांति को भंग किया।

अच्छा ये सब छोड़ो निशांत। ये बताओ तुम छात्रसंघ के चुनाव में किसे वोट देने वाले हो?

" दीपा किताबों को पढ़ते हुए तिरछी नजर से मुझे बोली।

"अरे अभी किसी का नॉमिनेशन तक नहीं हुआ है और तुम अभी से ही वोट देने की बात पूछ रही हो । अच्छा! तुम ही बताओ । तुम किसे वोट दोगी?" मैंने बोला।

" मैं तो दिवांशु को वोट दूंगी । वह आज नॉमिनेशन फार्म भरेगा " दीपा किताब से नजर हटाती हुई बोली।

"कौन देवांशु? " मैं थोड़ा हैरान होकर पूछा था।

"अरे वो मेरे क्लासमेंट हैं।" दीपा बोली।

" अच्छा कहीं वो अमिताभ बच्चन दाढ़ी स्टाइल वाला तो नहीं ? " मैं हिंट देते हुए उसे बोला।

" हां .... हां ! तुम सही कह रहे हो, इस बार छात्रसंघ चुनाव में वह चुनाव लड़ेगा '' दीपा ने जवाब दिया ।

" मगर वह तो प्रथमवर्ष का छात्र है I भला उसे कौन वोट देगा ? और वैसे भी कोई उसको क्यों जिताना चाहेगा ? अगर गलती से वह चुनाव जीत जाएगा तो कॉलेज में क्या कर लेगा ? उसे अभी कॉलेज के कमियों खूबियों के बारे में कुछ जानकारी नहीं होगी।इसकी जगह पर अगर कोई सीनियर छात्र छात्रसंघ चुनाव जीतता है तो वह कॉलेज में कुछ बदलाव भी ला सकता है मगर यह तो .....खैर इसकी बात छोड़ो I" मैंने कहा।

आधे घंटे बाद लाइब्रेरी से हम दोनों अपने-अपने क्लास रूम में चले गए उधर दीपा अपने क्लास रूम में थी मगर दीपा द्वारा देवांशु के पक्ष में बोलना और उसका सपोर्ट करने वाली बातें मेरे दिल में चुभ रही थी।
मुझे समझ में नहीं आ रहा था आखिर दीपा हमेशा देवांशु को लेकर इतना सकारात्मक क्यों रहती है जबकि वह दिखने में एक नंबर का ऐय्यास और बड़े बाप की बिगड़ी हुई औलाद लगता है।

" कहीं ऐसा तो नहीं दीपा देवांशु को पसंद करती है ..... नहीं.... नहीं ऐसा कभी नहीं हो सकता है। दीपा कभी भी ऐसा नहीं कर सकती है।" मैंने खुद से बुदबुदा कर बोला।

कॉलेज के ब्रेक के समय मैं कैंटीन में बैठकर पिछले 20 मिनट से दीपा की इंतजार कर रहा था। वैसे आज ऐसा पहली बार हो रहा था कि मुझे कैंटीन में बैठकर दीपा का इंतजार करना पड़ रहा है, वरना ऐसा कभी नहीं हुआ कि कॉलेज के मध्यांतर के समय दीपा अपने क्लास रूम से बाहर कैंटीन में आकर मेरे साथ ना बैठी हो।

मैंने दीपा के नंबर पर कॉल किया,"हेलो दीपा यार तुम अपने क्लास रूम से बाहर नहीं आओगी क्या? मैं पिछले आधे घंटे से तुम्हारी इंतजार कर रहा हूँ।"

"सॉरी निशांत आज मैं कैंटीन में नहीं आ पाऊंगी मुझे कुछ काम है ।" बोलकर दीपा कॉल कट कर दी।
मैं दीपा कि इस बर्ताव से काफी दुखी हो गया था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर दीपा अचानक से ऐसा बर्ताव क्यों कर रही है?

खैर अब मध्यांतर खत्म हो चुका था। मैं फिर से अपने क्लास रूम में चला गया।

उस दिन जब कॉलेज खत्म हुआ तो मैं कॉलेज में दीपा के इंतजार करने के बजाय सीधा अपने घर चला आया था। कॉलेज से छुट्टी होने के बाद दीपा ने मुझे कई बार कॉल किया मगर मैंने उसके किसी भी कॉल का कोई जवाब नहीं दिया ।

मैं उस वक्त काफी बुरा महसूस कर रहा था । मध्यांतर समय में इस तरह से दीपा द्वारा मुझे नजरअंदाज करने वाली बात सहजता से मेरे गले के नीचे नहीं उतर रही थी। कभी-कभी तो ऐसा लग रहा था जैसे वह मेरे घर पर हुई चोरी के घटना वाली बात को लेकर अभी तक मेरे घर वालों और मुझ से रूठी हुई है।

मगर फिर दूसरे पल ही ख्याल आता कहीं ऐसा तो नही अब वह देवांशु के करीब जा रही हैं। और जैसे ही ये ख्याल मेरे दिमाग में आता मैं परेशान हो उठता।

जब मैंने व्हाट्सएप खोला तो देखा दीपा की 100 से अधिक मैसेज आ चुके थे और सब मैसेज में वह सिर्फ यही पूछ रही थी , "निशांत तुम्हें हुआ क्या है? तुम इतने नाराज क्यों हो ? .....कोई दिक्कत है तो बताओ ।" और इसी तरह के कई सारे मैसेज भरे पड़े थे।

मैंने लगभग 9 बजे रात में उसकी कॉल का जबाब दिया।

" हेल्लो " मैंने बहुत धीमे स्वर मे बोला।

"यार! तुम मेरे काँल का जबाब क्यो नही दे रहे थे? मैं तुम्हे कॉल कर - कर के परेशान हुई जा रही थी और तुम मुझे जबाब देना भी जरूरी नही समझ रहे थे।" दीपा कॉल उठाते ही ये सारी बातें एक ही साँस में बोल दीं।

" नही ऐसी कोई बात नही है । बस थोड़ा व्यस्त था जिसके कारण कॉल या मेसेज का जबाब नही दे पा रहा था।" मैं उदासीन आवाज में बोला।

'' यार मैं तो डर ही गयी थी कि कहीं तुम मुझसे नाराज ना हो गये हो।" दीपा नार्मल हो कर बोली जैसे अब सब कुछ सही हो गया हो।

" भला मैं तुमसे कैसे नाराज हो सकता हूं ? तुम तो जानती हो , तुमसे एक पल की दूरी भी मेरे लिए जन्मों की लगती है" मैंने बोला।

जब आप किसी से प्यार करते हो, तो उससे आप चाहे लाख नाराजगी जता लो , उससे दूर जाने के कई हथकंडे आजमा लो। मगर आप जैसे ही कभी उसके सामने जाओगे या उससे एक पल के लिए भी बात कर लोगे, तो पहले से चली आ रही नाराजगी या वर्षों की दूरी पल भर में ही दूर हो जाती है । मेरे साथ भी कुछ उस वक्त ऐसा ही हुआ।

मैं दीपा से उस दिन नाराज था उसकी सैकडों काँल मैसेज का मैंने कोई जवाब नहीं दिया था। लेकिन जैसे ही उससे थोड़ी सी बात कर लिया सारी नाराजगी खत्म सी हो गई।

[/color]

[color=rgb(0,]साथ बने रहिए।[/color]
 
[color=rgb(0,]पन्द्रहवाँ भाग[/color]

[color=rgb(51,]मैं दीपा से उस दिन नाराज था उसके सैकडों काँल मैसेज का मैंने कोई जवाब नहीं दिया। लेकिन जैसे ही उससे थोड़ी सी बात कर ली सारी नाराजगी खत्म सी हो गई ।

उसके बाद हम दोनों के बीच लगातार कई घंटे बातें हुई और हम दोनों फिर से नॉर्मल हो गए फिर अचानक मैंने दीपा से पूछा, " दीपा तुम कॉलेज के मध्यांतर समय में कहाँ थी यार। मैं कैंटीन में तुम्हारा इंतजार ही करता रहा मगर तुम आई ही नहीं। "

"ओह .....माफ करना ! मैं तो तुम्हें बताना ही भूल गई थी । पता है आज कॉलेज में मेरे सहपाठी देवांशु ने छात्रसंघ चुनाव के लिए नॉमिनेशन फॉर्म भर दिया है । आज मैं और मेरी पूरी क्लास देवांशु के साथ ही चुनाव जीतने के लिए कुछ रणनीति बना रहे थे। यही कारण था कि मैं तुम्हारे साथ कैंटीन में नही आ पायी थी। माफ करना निशांत" दीपा बोली।

" ठीक है यार, कोई बात नही।" मैंने बोला।

दीपा का कैंटीन में ना आ पाने से जितना बुरा नहीं लगा था उस वक्त मुझे उससे कहीं ज्यादा बुरा उसके मुंह से यह सुन के लग रहा था कि वह देवांशु की वजह से कैंटीन में नहीं आई थी।

इसके बाद हम दोनों के बीच लगभग आधे घंटे बातें हुई उसके बाद शुभ रात्रि बोलकर दोनों सोने चले गए।
मैं बिस्तर पर सोने तो जरूर चला गया था मगर मुझे बिस्तर पर बिल्कुल भी नींद नही आ रही थी I दीपा के मुंह से बार-बार देवांशु का नाम सुनना मेरे दिल को बिल्कुल रास नहीं आ रहा था।

वैसे दीपा और देवांशु के बारे में मैंने आज तक ऐसी कोई भी बातें नहीं सुनी थी जिससे मुझे चिंता करने की जरूरत पड़े मगर फिर भी देवांशु के कारण मेरा दिल हमेशा असहज महसूस करता था।
*
अगले दिन सुबह मैं कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रहा था । स्नान करने के बाद मैं दीपा के पसंदीदा रंग की सफेद शर्ट और काला जींस पहन रहा था। वैसे ये रंग अब सिर्फ दीपा का ही पसंदीदा नहीं रह गया था, बल्कि सफेद और काला रंग मेरा भी पसंदीदा रंग बन चुका था। तभी भाभी आकर मुझे छेड़ने लगी ।

क्या बात है छोटे आज बड़ा बन ठन कर किससे मिलने जा रहे हो। अदिती भाभी मुझे छेड़ती ही बोली।

ऐसी कोई बात नहीं है भाभी। बस आज मन किया तो थोड़ा तैयार होकर कॉलेज जा रहा हूँ। मैने भाभी से नजर चुराते हुए कहा।

अगर कोई बात हो तो मुझे बता दो हो सकता है मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूँ। भाभी ने मेरे कंधे पर मारते हुए कहा।

जैसा आप समझ रही हैं वैसी कोई बात नहीं है भाभी। मैने धीरे से कहा।

वो क्या है न निशांत बेटा। आज तुम जिस कॉलेज में पढ़ रहे हो मैं वहाँ की प्रिंसिपल रह चुकी हूँ तो तुम मुझसे झूठ तो नहीं बोल सकते। तुम्हारी शक्ल पर लिखा है कि तुम्हारे मन में चोर है। अदिती भाभी चुटकी लेते हुए बोली।

आप कब प्रिंसिपल बनी मेरे कॉलेज की। मैं भाभी की बात न समझते हुए उनसे पूछा।

तुम न छोटे। जो कर रहे हो उन सब के लिए भी अभी छोटे हो। अदिति भाभी हँसती हुई बोली।

भाभी की बाते मेरी समझ से परे थी और मेरे सिर के ऊपर से जा रही थी। मुझे डर था कि कहीं मेरे मुह से दीपा के नाम न निकल जाए। इसलिए मैं जल्दी से तैयार होकर कपड़े पर जोरदार ख़ुशबू वाला इत्र लगाकर अपने घर से बाहर निकलने लगा तो भाभी ने मेरा हाथ पकड़ लिया।

" क्या बात है देवर जी अपनी भाभी से बचकर भागना चाहते हो। मुझे तो लगता है कि आज तुम किसी को अर्पोज- प्रपोज करने के इरादे से इतना बन-ठन कर जा रहे हो ?" अदिति भाभी फिर मजाक करती हुई बोली।

मैंने भी सोचा कि भाभी से अगर थोड़ा भी टाल मटोल करके बात की तो वो मेरा पीछा नहीं छोड़ेगी। इसलिए मैंने भी सीधी बात करनी की सोची।

"अरे नहीं भाभी ऐसी कोई बात नहीं है । वैसे भी हम जैसे सीधे-साधे लड़के को कोई लड़की भाव भी नहीं देती है। " मैंने भी मजाक में झूठ बोल दिया।
"मुझे तो नहीं लगता कि जो तुम बोल रहे हो ऐसा कुछ होता होगा। भाभी मुस्कुराती हुई बोली।

फिर आपको कैसा लगता है कि क्या क्या होता होगा। मैंने भी मुस्कुराते हुए भाभी से पूछा।

मुझे तो लगता है लड़कियां आपके पीछे तितली बनकर घूमती होगी ।" भाभी मुस्कुराती हुई बोली।

अपनी ऐसी किस्मत कहाँ भाभी फिलहाल अभी ऐसा तो कुछ भी नहीं हुआ है । ....अगर ऐसी कोई लड़की मिली जो तितली की तरह मेरे आगे पीछे घूमेगी तो आपको को बता दूंगा" मैंने यह बोल कर बाहर निकल लेना ही उचित समझा वरना भाभी अभी और पता नहीं क्या क्या बोलती।

कमरे से बाहर आकर मैंने नाश्ता किया और कॉलेज के लिए निकल पड़ा।

मैंने दीपा के पसंदीदा रंग की सफेद शर्ट और काला जींस पहन रखा था। जो मुझपर भी फब रहा था। वैसे किसी ने सच कहा है , सच्चे प्यार में हमेशा दोनो की पसंद -नापसंद एक जैसी ही होती है। आप या तो अपनी प्रेमिका के पसंद को अपनी पसंद बना लेते है या फिर आपकी पसंद प्रेमिका की पसंद बन जाती है।"

मगर यह भी प्रचलित है कि प्यार करने वाले लोग हमेशा एक जैसी सोच रखने वाले लोगों की तरफ ही आकर्षित होते हैं।
अब ये दोनों बातें कितना सही या फिर कितना गलत हैं । यह तो मुझे मालूम नहीं है मगर दीपा और मेरी पसंद- नापसंद काफी हद तक मिलती थी।

मैं घर से सीधा कॉलेज पहुंचा। दीपा भी कॉलेज आ चुकी थी । हमेशा की तरह आज भी दीपा को कॉलेज छोड़ कर उसके भैया वापस घर चले गए थे।

"हाय दीपा , शुभ प्रभात " मैं दीपा को देखते ही बोला।

"शुभ प्रभात मेरे छोटे बाबू " दीपा मुस्कुराती हुई बोली।

दीपा जब भी मेरे निकनेम "छोटे " से मुझे संबोधित करती थी तब मैं समझ जाता था कि दीपा आज बहुत अच्छे मूड में है।

हम दोनों कॉलेज के मुख्य द्वार से एक दूसरे का हाथ थाम कर धीरे धीरे कॉलेज की इमारत की तरफ बातें करते हुए बढ़ने लगे । इस बीच हम दोनों के कई सहपाठी "हाय -हेलो" बोलकर जा रहे थे जिसके कारण हम दोनों के बातचीत में खलल पड़ रही थी।

हम कॉलेज के लाइब्रेरी की ओर अभी बढ़ ही रहे थे कि उसी बीच देवांशु अपने कई दोस्तों के साथ वहां पहुंचा और उसने दीपा से कहा," शुभ प्रभात दीपा "

"शुभ प्रभआत देवांशु " दीपा बोली ।

"अपने सहपाठी और पार्टी के सभी सदस्य तुम्हारे ही इंतजार कर रहे हैं" देवांशु बोला ।

"क्या बात है ? आज कॉलेज में सब लोग मेरा इन्तजार कर रहे हैं। कोई खास बात है क्या ?" दीपा खुश होते हुए बोली ।

उस वक्त दीपा देवांशु से बहुत खुश होकर बातें कर रही थी और मैं उसके बगल में एक अनजान व्यक्ति सा मूर्त जैसे चुपचाप खड़ा था।

" अरे चुनाव प्रचार के लिए कुछ स्लोगन लिखना था सब लोग स्लोगन लिखने के लिए कई लड़के- लड़कियों के नाम सुझा रहे थे लेकिन मैंने उन लोगों से साफ बोल रखा है, मेरे चुनाव प्रचार के लिए स्लोगन केवल दीपा ही लिखेगी क्योकि दीपा जैसा कोई स्लोगन नहीं लिख सकता है । तब से वे लोग बेसब्री से तुम्हारा ही इंतजार कर रहे हैं।" देवांशु बोला ।

" क्या सच में ... धन्यवाद देवांशु जो तुमने स्लोगन लिखने के लिए मेरे नाम सुझाव दिया है । सच में मुझे स्लोगन लिखने में बहुत मजा आता है ।" दीपा इतनी खुश होकर बोल रही थी जैसे वह भूल चुकी हो कि मैं भी उसके साथ हूं ।

"ठीक है दीपा क्लास रूम में चलो कुछ मंत्रणा भी करनी है ।

" यह बोलकर देवांशु वहां से आगे बढ़ गया लेकिन जाते वक्त मुझे अपनी दोनों आंखों से घूरता गया । उसकी इस हरकत से मेरा खून खौल गया था ।

मैं अच्छी तरह से जानता था कि वह दीपा को पसंद करता है और वह छात्रसंघ चुनाव के बहाने दीपा के करीब आना चाहता है ।
मुझे उस वक्त लगा कि दीपा को देवांशु से दूर रहने को बोल दूं । मगर मैं यह नहीं चाहता था कि दीपा मेरी इन बातों का अलग मतलब निकाल ले और मुझसे नाराज हो जाए । इसीलिए मैंने उस वक्त उससे कुछ नहीं बोला और हम दोनों अपने-अपने क्लास रूम में चले गए ।

मैं क्लास रूम में बस यही सोच रहा था कि कहीं अगर देवांशु सच में दीपा के करीब आने में सफल हो गया तो मेरा क्या होगा ? मैं तो दीपा बिना जी ही नहीं पाऊंगा । मगर मुझे अपनी मोहब्बत और दीपा पर पूरा यकीन था कि वह ऐसा कभी नहीं कर सकती हैं।

उस दिन के बाद दीपा अधिकांश समय देवांशु के चुनाव प्रचार में ही कॉलेज में इधर-उधर व्यस्त रहने लगी। , अब तो उसने कई दिनों से कैंटीन में मेरे साथ बैठकर चाय तक भी नहीं पी थी।

मुझे दीपा को देख कर ऐसा लगने लगा था की यह चुनाव देवांशु नहीं बल्कि दीपा लड़ रही हो । हर जगह दीपा के लिखे स्लोगन लगे हुए थे, कॉलेज की पूरी दीवार उसी से भरी पड़ी थी । दीपा हमेशा इसी सब में व्यस्त रहने लगी थी और इधर दिन प्रति दिन दिवांशु और मेरे बीच तकरार बढ़ती ही जा रही थी ।

एक दिन देवांशु मुझे कॉलेज के बाहर मिला और वह दीपा के बारे में कुछ ज्यादा ही बातें कर रहा था ।जिसके कारण मेरा खून खौल उठा था ।

" देखो निशांत हर चीज की कुछ मर्यादा होती है और किसी भी व्यक्ति को अपनी मर्यादा को नहीं तोड़ना चाहिए । अब देखो तुम बीकॉम के छात्र होकर मेरी क्लास की बंदी को पटाने की कोशिश कर रहे हो इससे मेरे क्लास के मर्यादा टूट रही हैं जो की गलत बात है ।" देवांशु मुझे समझाते हुए बोला ।

वैसे वह समझाने से ज्यादा मुझे डराने की कोशिश कर रहा था । वह खुद को कॉलेज का बहुत बड़ा तोप मानने लगा था । उसे लगता था कॉलेज के सारे संकाय और सारे छात्र उसके साथ खड़े हैं । और तो और उसे यह भी गलतफहमी थी कि कॉलेज की अधिकांश लड़कियां उस पर मरती हैं ।

" देखो देवांशु मैं तुझे पहले भी बोल चुका हूं । मेरी तुमसे किसी बात पर कोई लड़ाई नहीं फिर तुम बार-बार मुझसे क्यों उलझने की कोशिश करते रहते हो?" मैं बोला

"निशांत मुझे भी तुमसे लड़ने का कोई शौक नहीं है बस तुम दीपा का पीछा करना छोड़ दो । वैसे भी तुम तो जानते हो दीपा मुझसे प्यार करती है फिर भी तुम उसके आगे पीछे कुत्ता बनकर क्यों घूमते रहते हो ?" देवांशु बोला ।

देवांशु की यह बात सुनकर मेरा खून खौल उठा। उस वक्त मुझे ऐसा लगा उसे वहीं जमीन में गाड़ दूँ मगर इसलिए कुछ नहीं बोल पाया क्योंकि आजकल दीपा भी उसके साथ घूमती रहती थी ।

अपनी हद में रहकर बात करो देवांशु। ये मत भूलो कि तुम भी मेरी तरह ही इस कॉलेज के आम छात्रों की तरह हो, लेकिन मुझे लगता है कि तुम अपने आपको अभी से छात्रसंघ का नेता समझने लगे हो और अगर तुमको लगता है कि दीपा तुमसे प्यार करती है तो इतना डर किस बात पर रहे हो। क्या तुमको अपने प्यार पर भरोसा नहीं है या तुम मुझको अपने आपसे बेहतर समझते हो। मैने भी देवांशु को दू टूक शब्दों में जवाब दिया।

छात्रसंघ का नेता तो मैं बन ही गया हूँ, क्योंकि मेरे समर्थन में सारे छात्र/छात्राएँ हैं। उनके समर्थन को देखते हुए मैं अपने आपको विजेता मान रहा हूँ। जहाँ तक दीपा की बात है तो मुझे अपने प्यार पर पूरा भरोसा है, लेकिन मुझे तुझपर भरोसा नहीं है। वो तो मासूम है जो तेरी चुकनी चुपड़ी बातों में आ जाएगी, लेकिन में ऐसा कदापि नहीं होने दूँगा। देवांशु बोला।

अच्छा जा भाग यहाँ से मेरा दिमाग और मत खराब कर और आज के बाद अपने काम से मतलब रखना। मैंने कहा।

मैं जल्द-से-जल्द देवांशु को वहाँ से भगाना चाहता था क्योंकि उसकी बात सुनकर मेरी दिमाग खराब हो गया था। अब मुझे दीपा पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था।
[/color]


[color=rgb(0,]साथ बने रहिए।[/color]
 
[color=rgb(0,]सोलहवाँ भाग[/color]

[color=rgb(51,]मगर मुझे यह पता नहीं था कि दीपा देवांशु को एक दोस्त समझकर या फिर छात्रसंघ चुनाव का एक उम्मीदवार समझकर या एक क्लासमेट समझकर उसके साथ घूमती रहती है ।[/color]
[color=rgb(51,]
"देखो देवांशु तुम दीपा के सहपाठी हो, साथ ही छात्र संघ चुनाव के उम्मीदवार भी हो। इसलिए मैं अब तक चुप हूं वरना मैं जिस वक्त अपनी औकात पर आ जाऊंगा ना तो फिर तुम्हें तुम्हारी औकात अच्छी तरह से याद दिला दूंगा ।" मैंने उसके शर्ट के कॉलर को अपनो हाथों से पकड़ते हुए कहा।

मेरे द्वारा उसका कॉलर पकड़ने के बाद उसके कुछ दोस्तों ने भी मेरे शर्ट का कॉलर पकड़ लिया, परन्तु देवांशु उन लोगों को सर से इशारा कर मुझसे दूर हटने को कहा । उस वक्त वह समझ चुका था कि अगर उस वक्त वह कुछ भी करेगा तो उससे उसके इमेज पर काफी ज्यादा बुरा असर पड़ेगा क्योंकि कुछ सप्ताह बाद ही छात्र संघ के चुनाव होने वाला था और वह नहीं चाहता था कि चुनाव के पहले कोई ऐसा बखेड़ा खड़ा हो जो उसकी छवि को प्रभावित करे ।

इसलिए उस वक्त वह विवाद ना कर मुझे सिर्फ धमकी देकर वहां से निकल गया और जाते-जाते बोला, "तुम्हें चुनाव के बाद देख लूंगा। मैं तुम्हारा वो हाल करूंगा कि तुम उसके बाद मेरे क्लास की बंदी को तो क्या कभी अपने क्लास की बंदी तक को देखने से डरोगे ।"

उस दिन के बाद देवांशु और मेरे बीच अच्छी खासी दुश्मनी हो गई थी । लेकिन हम-दोनों की इस दुश्मनी के बारे में दीपा को बिल्कुल भनक नहीं थी । दीपा जब भी मेरे पास आती थी तो देवांशु की ही बातें किया करती थी

। उसकी हर बातों में देवांशु की बड़ाई और अच्छाई ही नजर आती थी ।

जिसे सुन सुन कर मैं पक चुका था। एक दिन कैंटीन में मैं और दीपा हर रोज की तरह बैठकर बातें कर रहे थे । उस समय दीपा की मीठी बातों के साथ कैंटीन की कड़क चाय भी थी ।

"निशांत क्या बात है? आजकल तुम कुछ ज्यादा खोए खोए से रहने लगे हो और मुझसे भी कुछ कटे कटे से दिखाई देते हो । कोई परेशानी है तो प्लीज मुझसे भी शेयर किया करो?" दीपा चाय की पहली शिप सुड़क कर पीती हुई बोली ।

मुझे दीपा की बातों को सुनकर लगा कि मैं उसे बोल दूं कि यह सारी परेशानी जो चेहरे से दिख रही है उसकी असली वजह तुम्हारी और देवांशु की दोस्ती है, लेकिन मैं इस बार भी उसके विरोध में कुछ बोलने में असमर्थ रहा। दीपा के बार बार पूछने पर भी मैंने उसे कुछ नहीं बताया।

"नहीं दीपा ऐसी कोई बात नहीं हैं । मैं खुश तो हूं , देखो मेरे चेहरे को कितनी खुशी दिख रही है ।" मैंने अपने होठों पर नकली मुस्कान लाते हुए कहा।

अब मुझसे तो न छुपाओ छोटे, मैं कई दिन से देख रही हूँ कि तुम परेशान से हो। मुझसे भी पहले की तरह ठीक से बातें नहीं करते। जरूर कोई बात है जो तुम मुझको बताना नहीं चाहते। दीपा थोड़ा नाराजगी के साथ बोली।

मैं उसकी बात सुनकर सोच में पड़ गया। मैंने सोचा कि अगर दीपा को सब बता दूँ तो हो सकता है कि मेरी सोच जानकर वो मुझसे नाराज न हो जाए। मैंने बहुत सोचने के बाद मुझे दीपा से ये बात घुमाकर पूछना ही बेहतर लगा।

देखो मेऱी बात सुनकर तुम बुरा नहीं मानोंगी और मुझसे नाराज नहीं होगी तभी मैं कुछ बताऊँगा। मैंने दीपा से कहा।

अरे छोटे बाबू। मैं तुमसे नाराज हो सकती हूँ क्या। तुम बताओ। दीपा ने मेरे कंधे पर थपकी लगाते हुए कहा।

दीपा मैं देवांशु के बारे में तुमसे कुछ बात करना चाहता हूँ। मैंने दीपा से कहा।

देवांशु के बारे में तुम्हें क्या बात करनी है। दीपा ने कहा।

यार ये देवांशु तो अब छात्रसंघ का चुनाव लड़ रहा है और शायद जीत भी जाए, लेकिन तुमको लगता है कि वो चुनाव जीतने के बाद कुछ कर पाएगा कॉलेज की भलाई के लिए, रेंगिग रोकने के लिए और सबसे बड़ी बात लोगों छात्र-छात्राओं के बीच अपनी अपनी अच्छी छवि बना पाएगा। मुझे तो नहीं लगता कि वो ऐसा कुछ कर पाएगा। अगर वो चुनाव जीत गया तो पता नहीं कॉलेज का क्या होगा, बस यही बाते कुछ दिन से मुझे परेशान कर रही हैं। मैंने दीपा को देखते हुए कहा।

बस इतनी छोटी सी बात सोचकर तुम परेशान हो रहे हो। यार देवांशु बहुत अच्छा लड़का है और मुझे लगता है कि वह कॉलेज की भलाई के लिए बहुत कुछ करेगा, ओर तुमको राज की एक बात बताऊँ, वो बहुत पैसे वाला है, कॉलेज की बहुत लड़कियाँ जो मेरी दोस्त हैं, उसको पसंद करती हैं। दीपा ने मुझसे कहा।

क्या मुझे तो पता ही नहीं था कि उसके बहुत सारी दीवानी इस कॉलेज में घूम रही हैं। अच्छा एक बात बताओ तुम्हें वो कैसा लगता है। मैंने दीपा से पूछा।

मुझे तो वो अच्छा लगता है और हम दोनो अच्छे दोस्त भी हैं। इसीलिए तो मैं उसकी तरफ से उसका बढ़-चढ़ कर प्रचार कर रही हूँ। दीपा ने मुस्कराते हुए कहा।

क्या बात है दीपा रानी। उसकी इतनी तारीफ़। मुझे तो जलन होने लगी है देवांशु से। अच्छा एक बात सच सच बताना दीपा। क्या तुमने मुझसे मिलने से पहले या मुझसे मिलने के बाद कभी भी उसके बारे में वैसा नहीं सोचा जैसा तुम्हारी सहेलियाँ उसके बारे में सोचती हैं। मुझे ऐसा लगता है कि शायद वो तुम्हें पसंद करता है। मैने दीपा की आँखों में आँखें डालकर सवाल किया।

पहले तो दीपा मेरे सवाल पर मुझे कुछ देर देखती रही। मैं भी उसको ही देख रहा था और उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रहा था। उसके चेहरे के भाव बिलकुल वैसे ही थे जैसे मेरे साथ हमेशा रहने पर उसके चेहरे का भाव होता है। मेरे इस सवाल पर उसके चेहरे का भाव एक क्षण के लिए भी नहीं बदला।

ये कैसी बाते कर रहे हो तुम। मैंने उसे सिर्फ एक अच्छा दोस्त माना है और जहाँ तक मुझे लगता है कि उसके मन में भी मेरे लिए दोस्ती वाला ही एहसास है। तुम्हें पता नहीं कहाँ से ये सब फालतू ख्याल आता रहता है। मैं उसके साथ इस चुनाव में हूँ क्योंकि वह मेरा अच्छा दोस्त है। बाकी मैं तो अपने छोटे बाबू को पसंद करती हूँ और उसी से प्यार करती हूँ। दीपा ने मेरे कंधे पर अपना सिर रखते हुए कहा।

मुझे ये जानकर बहुत खुशी हुई और साथ में ये दुःख भी हुआ कि मैं दीपा के उपर शक कर रहा था और बेमतलब गुस्सा कर रहा था।

मुझे माफ कर दो दीपा। वो बस मेरे मन में आया और मैंने ऐसे ही पूछ लिया था। मेरा इरादा तुम्हें दुःख पहुचाने का नहीं था। मैंने दीपा के माथे को चूमते हुए ये बात कही।

तुम भी न पता नहीं क्या बात लेकर बैठ गए। "अच्छा सुनो मैं चुनाव के लिए एक नया स्लोगन लिख रही हूँ - शांत और रैगिंग विरोधी कॉलेज कैंपस बनाना है !
छात्रसंघ नेता देवांशु मिश्रा को जिताना है!!" दीपा बोली।

"हां ठीक ही है" मैने कहा।

"मतलब तुम्हे पसंद नही आया ?" दीपा आश्चर्यचकित होकर बोली

"बिलकुल पसंद हैं, बहुत पसंद है। यह बहुत अच्छी स्लोगन हैं ।" मैं दीपा से बोला ।

"मुझे पता था निशांत यह स्लोगन तुम्हें 100 फीसदी पसंद आएगी ।" दीपा इतराती हुई बोली।

कॉलेज में छात्र संघ चुनाव की तैयारियां सभी पार्टी वाले कर रहे थे । कॉलेज से कुल चार विद्यार्थी उम्मीदवार थे जिसमें से तीन वाणिज्य संकाय के तीसरे वर्ष के विद्यार्थी थे जबकि एक कंप्यूटर संकाय से प्रथम वर्ष का विद्यार्थी उम्मीदवार था ।

प्रथम वर्ष का विद्यार्थी उम्मीदवार केवल देवांशु था और वह लोगों के बीच खुद का ऐसे प्रचार-प्रसार कर रहा था जैसे वह कोई बहुत बड़ा नेता हो और इस छात्र संघ चुनाव में उसकी जीत पक्की होने वाली हो।

उस दिन कॉलेज खत्म होने के बाद दीपा अपने घर जाने वाली थी, मगर उसके भैया उस दिन समय से उसे लेने नहीं आए थे। उसने भैया से कॉल करके पूछा तो उसके भैया आशीष ने बताया उन्हें कॉलेज आने में अभी आधे घंटे से भी अधिक समय लग सकता है। तुम चाहो तो ऑटो पकड़ कर घर चली जाओ या फिर आधे घंटे तक मेरा इंतजार भी कर सकती हो। उस दिन दीपा के भैया किसी काम से बाहर निकले हुए थे।

"क्या हुआ ? तुम्हे कॉलेज से लेने तुम्हारे भैया कब तक आने वाले हैं?" दीपा के कॉल डिस्कनेक्ट करने के तुरंत बाद मैंने उससे पूछा ।

"अरे यार भैया आधे घंटे बाद आएंगे और इस तरह से आधे घंटा किसी का इंतजार करना मुझे अच्छा नहीं लगेगा । यहाँ आधे घंटे खड़े-खड़े मुझे बोरियत महसूस।"दीपा बोली ।

" तो फिर ऐसा करो आज तुम मेरे घर चलो । वहां साथ रहकर कुछ बातें करेंगे ।" मैंने कहा ।

नहीं छोटे। मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर नहीं चल सकती। भइया और तुम्हारे घर वाले क्या सोचेंगे, उनकी छोड़ो पास-पड़ोस के लोग क्या सोचेंगे कि मैं किस मतलब के लिए तुम्हारे घर के चक्कर लगाती हूँ। दीपा ने अपनी बात स्पष्ट की।

कोई कुछ नहीं कहेगा और न ही कुछ सोचेगा। तुम न पता नहीं क्या उलूल-जुलूल सोचती रहती हो। और जब घरवालों को कोई दिक्कत नहीं होगी तो बाहर वालों को इतनी तवज्जो क्यों देना और तुम्हे कब से बाहर वालों की बातों की इतनी फिकर होने लगी। मैंने कहा।

मेरी बात सुनकर दीपा के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

[/color]

[color=rgb(0,]साथ बने रहिए।[/color]
 
[color=rgb(51,][/color]
[color=rgb(0,]सतरहवाँ भाग[/color]
[color=rgb(51,]

"अरे बातें तो हम फ़ोन से भी खूब किया करते हैं फिर इसके लिए घर जाने की क्या जरूरत है छोटे बाबु ? ऐसा तो नहीं तुम्हारा कुछ और ही इरादा है?" उसने मुस्कुराते मुझे छेड़ते हुये बोला ।

"अरे ऐसी कोई बात नहीं है मेरी दीपा डार्लिंग, वह क्या है ना तुम्हारी दोस्त की दीदी तुम्हें बुलाती रहती है तो सोचा आज तुम्हें साथ लेकर चले ।" मैंने भी उसे चिढाते हुए कहा।

"हां यार मुझे भी आदिति दी (दीदी ) से मिलना है । बहुत दिन से उनसे नहीं मिल पाई हूं ।" दीपा कुछ सोचती हुई बोली ।

"तो फिर चलो ।" मैंने कहा ।

चलो फिर। दीपा बोली।

दीपा मेरे साथ घर जाने को तैयार हो गयी । दीपा को लेकर मैं अपने घर आ गया था । एक कमरे में मैं, दीपा, आदिती भाभी और मेरी मां एक साथ बैठकर बातचीत कर रहे थे ।

"दीपा तुम्हारी बातचीत अंजलि से होती है? अदिति भाभी बोली ।

"हां कल ही तो बात हुई है । अंजलि बोल रही थी उसका वहां मन नहीं लग रहा है । वह वापस अपने शहर में ही रहकर पढ़ना चाहती हैं ।" दीपा बोली ।

अंजलि आदिति भाभी की छोटी बहन और दीपा की बेस्ट फ्रेंड थी।मैं अभी तक अंजलि से सिर्फ एक बार ही मिला था वो भी अर्जुन भैया के विवाह के समय । वैसे अंजली के वजह से ही मैं दीपा के करीब आ पाया हूँ । क्योंकि अगर अंजलि दीपा की फ्रेंड नहीं होती तो शायद दीपा से मेरे भैया की शादी में मिल पाना असंभव होता।

"यहां तो अंजली 2 दिन पहले ही कॉल की थी ।" भाभी बोली ।

"वैसे मुझसे तो अंजली की हमेशा बातचीत होती रहती है ।" दीपा बोली ।

इस तरह से वहां पर अंजली की बातें कुछ मिनटों तक होती रही, इसके बाद आदिति भाभी और दीपा रसोईकी तरफ चली गई और दोनों मिलकर कुछ स्पेशल खाने में बनाने लगी।

मैं अपने कमरे में आकर देवांशु के बारे में सोचने लगा ।

मैं कॉलेज में ज्यादा लोगों से मेल-मिलाप नहीं रखता था लेकिन फिर भी इतने दिनों में मेरे कई दोस्त बन चुके थे । इनमें से अधिकांश दोस्त मेरे सहपाठी ही थे बाकी 1-2 छात्र दोस्त सीनियर भी थे । जिनके साथ मैं अक्सर फुटबॉल खेलने चल जाया करता था । थोड़े ही दिनों में मेरे सरल व्यवहार के चलते उन लोगों से मेरा इतना गहरा रिश्ता हो गया था जैसे मैं उन्हें बचपन से जानता था।

मैं उस वक्त देवांशु के बारे में कुछ सोच ही रहा था कि मेरे एक सीनियर क्लास के दोस्त ने कॉल किया।

"हेलो!... बोलिए राहुल भैया, कैसे कॉल करना हुआ?" मैंने कॉल उठाते हुए बोला ।

"बस समझो ऐसे ही.... और सब बताओ क्या चल रहा है ?" राहुल भैया बोले ।

"कुछ खास नहीं बस घर पर बैठे हैं ।" मैंने बोला ।

"छात्र संघ के चुनाव में किसे सहयोग करने वाले हो तुम" राहुल भैया ने पूछा ।

अपने सीनियर छात्र राहुल भैया का यह प्रश्न सुनकर मुझे लगा कि इन्होंने छात्र संघ चुनाव के किसी उम्मीदवार को वोट डालने और चुनाव प्रचार के लिए कहने के लिए मुझे कॉल किया हैं ।

"भैया अभी तो कुछ निर्णय नहीं लिया है, मगर जो अच्छा उम्मीदवार होगा, जो कॉलेज के बारे में सोचेगा, रैगिंग बंद कराएगा और सबसे बड़ी बात जो कॉलेज में चली आ रही फैकल्टी की परेशानी को दूर करने के बारे में सोचेगा हम तो अपना मत उसी को देंगे ।" मैंने कहा

"तब तो मेरे समझ से तुम किसी को वोट नहीं दोगे ।" राहुल भैया बोले ।

"ऐसा क्यों आपको लग रहा है ?" मैंने आश्चर्य से पूछा ।

" क्योंकि तुम जिस तरह के उम्मीदवार खोज रहे हो उस तरह का कोई भी उम्मीदवार अपने कॉलेज में नहीं है ।" राहुल भैया बोले ।

"ऐसा आप क्यों बोल रहे हैं ?कॉलेज में तो बहुत सारे ऐसे उम्मीदवार हैं जो कॉलेज के बारे में सोचते हैं। अब आप देवांशु को ही ले लीजिये कितना अच्छा उम्मीदवार है ।" मैंने चुटकी लेते हुए कहा ।

"चल हट... तू किसकी बात रहा है ! पहली बात की देवांशु प्रथम वर्ष का जूनियर छात्र है, दूसरी बात यह कि वह एक नंबर का बेवकूफ और ऐय्यासी करने वाला इंसान हैं । उसे लड़कियों के पीछे चक्कर मारने से छुट्टी मिलेगा तब ना कॉलेज के बारे में सोचेगा ।" उन्होंने तपाक से जवाब दिया ।

"लेकिन उसकी क्लास के तो सभी विधार्थियों देवांशु के बहुत बड़े प्रशंसक हैं खासकर के लड़कियां ।" मैंने कहा ।

"यह सब बकवास बातें हैं । हां यह जरूर है कि कुछ लड़कियां उसके शोऑफ के वजह से और उसके पैसों की वजह से उस पर विश्वास करती है और उसके पीछे घूमती रहती हैं। नहीं तो वो एक बड़े बाप की निहायत ही बिगड़ी हुई औलाद है ।" राहुल भैया बोले।

वैसे आपकी टीम से तो ऋषि भैया चुनाव लड़ रहे हैं तो आप का वोट तो निश्चित उनके लिए ही होगा?" मैंने पूछा।

"नहीं कुछ महीनों से हम लोगों के बीच अनवन चल रही है । इस बार मेरा उसके साथ सपोर्ट नहीं रहेगा । हम सभी दोस्तों ने मिलकर यह निर्णय लिया है कि हम में से कोई भी विद्यार्थी ऋषि को वोट नहीं करेगा और ना ही उसके सहयाग में आएगा" राहुल भैया बोले ।

"मैं तो बहुत दिनों से देख रहा हूं ऋषि और आपके कई सारे दोस्त सब एक साथ ही थे फिर अचानक से अलग, ऐसा क्यों ?कुछ समझ में नहीं आया। मैंने पूछा ।

"हां कुछ परेशानियाँ थीजिसकी वजह से हम लोग उसका सहयोग ना करने का फैसला लिया हैं और हम सब दोस्तों ने सोचा है इस बार हम किसी दूसरे उम्मीदवार को वोट करेंगे या फिर हम कोई दूसरा उम्मीदवार ही खड़ा करेंगे जो इस कॉलेज के लिए बेहतर होगा ।" राहुल भैया ने जबाब दिया ।

"तो फिर आप लोगों ने किस उम्मीदवार को अपना मत देने का निर्णय लिया है?" मैंने पूछा ।

" इनमें से किसी उम्मीदवार को वोट तो नहीं देंगे मगर हम लोगों ने सोचा है एक नया उम्मीदवार खड़ा करेंगे और सभी लोगों ने तुम्हारे नाम चुनाव किया है, मैंने तुम्हे ये बात बताने के लिए ही फोन किया है। । हम सभी दोस्तों को मानना है कि हम में से कोई ऋषि के खिलाफ चुनाव में खड़े होकर उसका विरोध नहीं करेगा, नहीं तो बात और बिगड़ सकती है और इससे हमारे बीच निजी तौर पर दुश्मनी पैदा हो सकती है ।"राहुल भैया ने जबाब दिया ।

अपना नाम छात्रसंघ चुनाव के लिए उम्मीदवार के रूप में सुनकर मैं चौक गया। मैंने कभी सोचा नहीं था कि इन सीनियर से दोस्ती करने के कुछ महीने बाद ही ये लोग मुझपर इतना ज्यादा भरोसा करने लगेंगे और इतनी बड़ी जिम्मेदारी के लिए मेरा चुनाव करेंगे।

"क्या.... मेरा नाम? अरे मैं तो नया विद्यार्थी हूं , मुझे वोट कौन करेगा ? मैंने तो कभी कॉलेज के द्वारा आयोजित सामाजिक काम में भी अपना सहयोग नहीं दिया है, ना ही लोगों के बीच ज्यादा कुछ जान पहचान है मेरी । ना बाबा ना मैं छात्र संघ चुनाव के लिए खड़ा नहीं हो सकता हूं । आप किसी और को देख देख लीजिए ।"मैंने राहुल भैया को समझाते हुए कहा।

"देखो हम दोस्तों ने तो आखिरी निर्णय ले लिया है कि इस चुनाव में तुम्हें उम्मीदवार बनाया जाएगा । अब बात रही कि तुम्हारी ज्यादा लोगों से जान पहचान नहीं है । जिससे तुम्हे सहयोग कम मिलेंगा । यो सोचना तुम्हारा काम नहीं हे। देखो निशांत हम लोग तुम्हारे साथ हैं और मैंने इस कॉलेज में 3 साल समय दिया है जिसके कारण मेरे बहुत सारे दोस्त भी बने हैं और सभी दोस्तों के भी बहुत सारे छात्र-छात्राएँ दोस्त हैं और वो सभी मेरे साथ हैं । मैं दावे के साथ कहता हूं अगर तुम इस चुनाव में खड़े हए तो तुम्हें जिताने की जिम्मेदारी मेरी होगी ।...... बाकी तुम सोचो क्या करना है?" राहुल भैया मुझे समझाते हुए बोला।

लेकिन मैं अपने आपको अभी इस काबिल नहीं समझता कि मैं इतनी बड़ी जिम्मेदारी उठा पाऊँगा। चलो मान लिया कि मैं चुनाव का उम्मीदवार बनने के लिए तैयार हो गया और जीत भी गया तो फिर आगे क्या। मैं आगे क्या करूँगा। मुझे तो कोई अनुभव भी नहीं है कि छात्र नेता करते क्या हैं। मैंने अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा।

तुम उसकी चिन्ता बिलकुल मत करो निशांत। हम सब हैं हर समय तुम्हारा सहयोग करने के लिए। बस तुम हाँ करो बाकी हम सब देख लेंगे। राहूल भैया ने मुझे समझाते हुए कहा।

राहुल भैया की बात सुनकर मैं थोड़ा असमंजस की स्थिति में आ गया । उस वक्त मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उन्हें हां बोलूँ या ना । मैंने अब तक किसी भी प्रतियोगिता या चुनाव में भाग नहीं लिया था । जिसके कारण मैं अंदर से डर भी रहा था कि अगर मैं चुनाव हार गया तो बेइज्जती ऊपर से हो जाएगी ।

वो सब तो ठीक है, लेकिन घर वाले इसके लिए बिलकुल भी तैयार नहीं होंगे। क्योंकि मेरी माँ कभी नहीं चाहेंगी कि मैं इस तरह के किसी भा कार्य का हिस्सा बनूँ। मैंने उन्हें समझाते हुए कहा।

अब उन्हें समझाना और मनाना तुम्हारा काम है और मुझे उम्मीद है कि तुम हमें निराश नहीं करोगे। राहुल भैया ने मुझसे कहा।

[/color]
[color=rgb(0,]साथ बने रहिए।[/color]

[color=rgb(51,][/color]
 
[color=rgb(0,]अठारहवाँ भाग[/color]

[color=rgb(51,]
मैंने कुछ सोच समझकर राहुल से बोला, "राहुल भैया मैं इस वक्त आपको कुछ नहीं बता पाऊंगा। आप मुझे एक दो दिन के लिए सोचने का समय दीजिये उसके बाद ही मैं आपको बता पाऊँगा कि मुझे इस चुनाव में खड़ा होना हैं या नही।" मैने राहुल भैया से कहा।

ठीक है तुम्हारी जैसी मर्जी। अच्छी तरह से सोच लो उसके बाद मुझे कॉलेज में या फिर कॉल करके बता देना" राहुल भैया ने यह बोलकर फोन काट दिया।

कॉल डिस्कनेक्ट होने के बाद मैं अपना मोबाइल टेबल पर रखकर चुपचाप बिस्तर पर लेट गया और आंखें बंदकर सोचने लगा।

मुझे क्या करना चाहिए। राहुल भैया की बात मान लूँ और चुनाव में उम्मीदवार बनूँ या इन सब से दूर रहूँ। क्या करूँ मुझे कुछ समय में नहीं आ रहा था।

फिर अचानक से मेरे दिमाग में देवांशु की वह सारी बातें याद आने लगी जो हमेशा मुझसे गुस्से में बोलता था और साथ ही इस चुनाव में उसके जीत जाने का गुरूर भी मेरे आंखों के सामने नाचने लगा।। जिसके कारण मुझे लगने लगा कि मुझे छात्रसंघ चुनाव लड़ना ही चाहिए क्योंकि अगर मैं उम्मीदवार बना तो दीपा स्लोगन लिखने या चुनाव प्रचार के लिए उसके पास नहीं जाएगी बल्कि वह हमेशा मेरे साथ ही रहेगी।जिसकी वजह से देवांशु चाहकर भी दीपा के साथ समय बिताने में कामयाब नहीं होगा और सबसे बड़ी बात अगर मैं जीत गया तो फिर उसका सारा गुरुर तोड़कर रख दूंगा।

ये सारी बातें सोचने के बाद भी मैं किसी अंतिम बिंदु पर नहीं आ पाया था। मैंने अपना फोन उठाकर अपने सहपाठियों और 1-2 दोस्तों को कॉल कर के छात्र संघ के चुनाव में उम्मीदवार बनने के बारे में चर्चा किया ।इस बात से मेरे सभी दोस्त खुश हो गए और सब ने मुझे छात्रसंघ चुनाव लड़ने को बोला साथ ही सब लोगों ने मुझे सहयोग करने का वादा भी किया। इन सब से बात करने के बाद मैं खुद को छात्र संघ चुनाव का उम्मीदवार बनने के लिए तैयार कर लिया। अब इसके लिए मुझे घरवालों से बात करनी थी। तभी कमरे में दीपा आई।

"ओ ... छोटेबाबू क्या सोच रहे हैं? चलिए खाना बन गया है।सब लोग खाने पर इंतजार कर रहे हैं।" कमरे में आते ही दीपाबोली।

दीपा रुको तुमसे एक बात करनी है।" मैंने बोला।

मेरी बात सुनकर दीपा कमरे में रुक गई और बोली,"कोई बातें नहीं, चलो पहले खाना खा लेते हैं।"

मैं फिर दोबारा न बोल कर चुपचाप दीपा के साथ खाना खाने के लिए चल दिया। हम सभी एक साथ बैठकर खाना खा रहे थे।

मेरे परिवार में दूर-दूर तक किसी ने कोई राजनीतिक में भाग नहीं लिया था। वह चाहे कॉलेज की राजनीति कहो या फिर कॉलेज से बाहर की, लेकिन पापा कभी-कभी चुनावी रैलियों में हिस्सा लेने के लिए दूसरे शहर जाया करते थे। इसीलिए मैंने अपने घर वालों से इस बारे में चर्चा कर लेना उचित समझा।

"भैया मेरे कॉलेज में छात्र संघ चुनाव होने वाला है और उसके उम्मीदवारों का नामांकन भी शुरू हो चुका है। मेरे कुछ दोस्तों ने इस चुनाव में मुझे उम्मीदवार बनाने के लिए चुना है" मैंने अपने अर्जुन भैया से बोला।

मेरी यह बात सुन कर सभी लोग मेरी तरफ देखने लगे और दीपा तो बहुत आश्चर्य चकित होकर मेरी तरफ देख रही थी।

"वाह! यह तो बहुत अच्छी बात है। मगर तुम्हारे दोस्तों ने इस चुनाव के लिए तुम्हे ही उम्मीदवार उम्मीदवार क्यों चुना?" अर्जुन भैया बोले।

"भैया उन लोगों का मानना है कि इस चुनाव के लिए मैं एक अच्छा उम्मीदवार हो सकता हूं।" मैंने बोला।

"ठीक है अगर तुम्हारे दोस्तों को ऐसा लगता है तो तुम इस चुनाव में जरूर भाग लो, वैसे भी कॉलेज समय में राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना बहुत अच्छी बात है।" अर्जुन भैया बोले।

लेकिन तुझे चुनाव लड़ने की क्या जरूरत है। तू जिस काम के लिए के लिए कॉलेज जाता है वो काम कर, इन फालतू के कामों में अपना समय और पैसा क्यों बरबाद कर रहा है। तुझे पता है तेरा भाई कितनी मेहनत करता है ताकि घर को अच्छे से संभाल सके और तुझे पढ़ा सके। माँ ने अर्जुन भैया की बात खत्म होने के बाद कहा।

लेकिन मैं पढ़ाई के साथ-साथ कॉलेज की और भी गतिविधियों में हिस्सा लेना चाहता हूँ। तो इसमें बुराई क्या है। आपको तो खुश होना चाहिए कि मैं छात्रसंघ का चुनाव लड़ रहा हूँ। मैंने माँ से कहा।

मैं नहीं चाहती कि तू इन सब चक्करों में पड़े। माँ ने कहा।

क्या माँ आप भी। अगर निशांत कुछ अच्छा करने का सोच रहा है तो आप उसे क्यों मना कर रही हैं। आखिर परेशानी क्या है इसमें अगर वह छात्रसंघ का चुनाव लड़े तो। अर्जुन भैया बोले।

तुझे पता है न। तेरे पापा इसी राजनीति के चक्कर में अपनी कंपनी और हम लोगों से कई कई दिनों तक दूर रहते थे। कभी इस चुनावी रैली में तो कभी उस चुनावी रैली में। और उनके इसी रवैये के चलते कंपनी की स्थिति डावाडोल हो गई थी। उसके बाद वो कंपनी का हादसा। जिसने तेरे पापा को हम सबसे छीन लिया। मैं अपने बच्चे को इस राजनीति के चक्कर में नही पड़ने दूँगी। माँ ने कहा।

क्या माँ आप कहाँ पुरानी बातें लेकर बैठ गई हैं। जो बीत गया सो बीत गया। अब क्या सारी जिंदगी उसे याद करके हम कुछ अच्छा करने से पीछे हट जाएँ। भैया ने माँ को समझाते हुए कहा।

माँ तो मान ही नहीं रही थी कि मैं छात्रसंघ चुनाव लड़ूँ, परंतु भैया और भाभी के बार-बार समझाने के बाद आखिरकार माँ को मानना ही पड़ा।

माँ से इजाजत मिलने के बाद मैं बहुत खुश था। हम सब खाना खाने के बाद अपने-अपने कमरे में सोने चले गए और उस दिन दीपा अपने घर ना जाकर इस बार भी वह मेरे ही घर रुक गई थी। मगर चुनाव लड़ने के फैसले से वह थोड़ी खफा हो गई थी। उसे लग रहा था कि यह मेरा गलत फैसला है।

दीपा उस रात सब से छुपकर मेरे कमरे में आई और मुझे समझाते हुए बोली, "निशांत मुझे लगता है तुम्हे चुनाव में भाग नहीं लेना चाहिए क्योकि इससे तुम्हारी पढ़ाई भी बाधित हो सकती है।"

वैसे दीपा की यह बात बिल्कुल सही थी। और उसका यह भी मानना था कि जो लोग नेता नही बनना चाहते हो उसे छात्र संघ चुनाव से दूर ही रहना चाहिए वरना पढ़ाई के लिए समय नहीं मिल पाएगा। जिससे उसका भविष्यभी प्रभावित हो सकता है।

"दीपा इस चुनाव के लिए मेरे सभी दोस्तों ने मुझे उम्मीदवार चुना हैं क्योकि कॉलेज के सिस्टम को सही तरीके से चलाने के लिए एक अच्छे उम्मीदवार की जरूरत होती हैं। और इस चुनाव में जो भी उम्मीदवार खड़े हुए हैं उनमे से कोई ऐसा उम्मीदवार नहीं है जो कॉलेज को सही तरीके से चला सके इसलिए मैं इस चुनाव में उम्मीदवार बनने की योजना पर अपने दोस्तों को सहमति दे दिया हूँ ताकि अगर मैं यह चुनाव जीत जाऊँ तो कॉलेज के सिस्टम को सही तरीके से चला सकूं। क्या तुम नहीं चाहती कि मैं यह चुनाव जीतकर कॉलेज के लिए कुछ अच्छा करूँ।" मैंने दीपा को समझाते हुए कहा।

निशांत अगर तुम्हें लगता है छात्र संघ चुनाव में तुम्हें चुनाव लड़ने चाहिए तो तुम उम्मीदवार अवश्य बनो । मैं तुम्हारे साथ हूं" दीपा मुस्कुराती हुई बोली।

दीपा की यह बात सुनकर मैं खुश हो गया और साथ ही मुझे बहुत अच्छा भी लगा कि दीपा इतनी जल्दी मेरे सपोर्ट में आ गयी। अब मुझे खुद पर और अपने प्यार पर विश्वास हो गया था कि हम गलत नहीं हैं। उसवक्त बात करते हुए मुझे यह महसूस हुआ कि दीपा देवांशु को सिर्फ एक अच्छा उम्मीदवार सोच कर ही उसके सपोर्ट में खड़ी थी ना कि किसी और वजह से।

मैंने दीपा को गले लगाते हुए बोला," थैंक यू दीपा मुझे पूरा विश्वास था कि तुम मेरा इस चुनाव में सपोर्ट करोगी"।

पहले तो दीपा कुछ देर तक ऐसे ही मुझसे लिपटी रही फिर मैंने उसे अपने आपसे अलग किया और बोला।

अगर मैं चुनाव में हिस्सा ले रहा हूँ तो फिर तुम किसको अपना सहयोग दोगी।मैने दीपा से कहा।

ये भी कोई पूछने की बात है निशांत। ऑफकोर्स तुम्हें याऱ। दीपा मेरे कन्धे पर चपत लगाती हुई बोली।

फिर उस देवांशु के लिए प्रचार कौन करेगा। मैंने दीपा से मुस्कुराते हुए कहा।

देवांशु की बात सुनकर दीपा कुछ देर खामोश रही फिर मेरी आँखों में देखती हुई बोली।

मुझे पता है निशांत तुम देवांशु के बारे में क्या सोचते हो, जब भी कभी तुम्हारे मुँह से देवांशु का जिक्र होता है तो तुम्हारे चेहरे का भाव बदल जाता है। अगर मैं कभी देवांशु का जिक्र कर देती हूँ तो तुम्हें बहुत दुख होता है। तुम्हारे चेहरे की रौनक तुरंत गायब हो जाती है। तुम्हें लगता है कि वो देवांशु मुझे तुमसे छीन लेगा। ये कभी नहीं हो सकता निशांत, मैं तुम्हारी हूँ और हमेशा तुम्हारी रहूंगी। तुमने देवांशु के बारे में मुझसे कभी सीधा सवाल नहीं पूछा हमेशा घुमा-फिरा कर सवाल पूछते हो ये जानने के लिए कि मेरे दिल में उसके लिए क्या है। वो सिर्फ मेरा दोस्त है और तुम मेरी दुनिया। तुम्हारे लिए तो मैं ऐसे कई देवांशु को कुरबान कर सकती हूँ। तुम्हारे लिए मैं पूरी दुनिया छोड़ सकती हूँ सिर्फ अपने भैया और उनका मेरे लिए लिए गए फैसले को छोड़कर

इतना कहकर दीपा थोड़ी देर चुप रही और फिर से मेरी आँखों में दिखती हुई बोली।

"निशांत छात्र संघ चुनाव क्या है? मैं तो हर कदम से कदम मिलाकर तुम्हारे साथ रहूंगी। यह तो तुम्हारा सबसे अच्छा फैसला है कि तुमने कॉलेज और विद्यार्थियों की भलाई के लिए छात्र संघ चुनाव लड़ने का फैसला लिया हैं।"

दीपा की बात सुनकर मुझे अब अपने आपसे शर्म आ रही थी। मैंने दीपा के बारे में कितना गलत समझा। जाने अनजाने में उसके दिल दुखाया। यही सब सोचकर मेरा सिर दीपा के सामने झुक गया। दीपा ने जब ये देखा तो उसने मुझे आवाज दी।

क्या हुआ छोटे बाबू। तुम अपना मुँह लटका कर क्यों खड़े हो।

दीपा की बात का मैंने कोई जवाब नहीं दिया। मेरी आँखें पश्चाताप के कारण डबडबा गई थी। मेरे जवाब न देने पर दीपा ने मेरी ठुड्डी पकड़कर मेरे चेहरा ऊपर किया।

क्या हुआ निशांत। तुम रो रहे हो। मेरी बाते अगर तुम्हें अच्छी न लगी हो तो मुझे माफ कर दो। दीपा ने मेरे आँखों में आँसू देखकर उन्हें पोछते हुए कहा।

तुम माफी माँग कर मुझे और शर्मिंदा मत करों। मैंने तुम्हारे प्यार पर शक किया दीपा। मुझे माफ कर दो, लेकिन मैं क्या करूँ देवांशु के बार बार करने पर कि वो तुमसे प्यार करते है और तुम्हें पाकर रहेगा ऊपर से तुम भी उससे हँस हँस कर बात करती थी। उसके साथ घूमती थी, उसके लिए चुनाव प्रचार कर रही थी तो मुझे लगा कि शायद तुम भी उसमें रुचि लेने लगी हो। जिसके कारण मैं बहुत परेशान हो गया था। मैं तुमसे इस बारे में बात करना चाहता था, लेकिन मैं डर गया था कि कहीं तुम ये सुनकर कि मैंने तुम पर शक किया है, तुम मुझसे नाराज न हो जाओ। जो मुझे तनिक भी बरदास्त नहीं होती। प्लीज मुझे माफ कर दो दीपा। मैंने दीपा के सामने अपने हाथ जोड़ते हुए कहा।

ये क्या कर रहे हो तुम छोटे। मैं तुमसे कभी नाराज हो सकती हूँ क्या। और इसमें रोने की क्या वात है। तुम तो मेरे बहादुर छोटे हो। तुम हँसते हुए अच्छे लगते हो। रोते हुए नहीं। और देवांशु मेरे बारे में ऐसा कैसे सोच सकता है। मैं तो उसे कितना अच्छा समझती हूँ, लेकिन उसके इरादे तो कुछ और हैं मुझको लेकर। कल देखती हूँ मैं उसके कॉलेज में ऐसा मजा चखाऊंगी कि याद रखेगा कि दीपा किसका नाम है। दीपा ने मुझे समझाते हुए कहा।

नहीं दीपा अभी तुम ऐसा कुछ मत करना। तुम मेरे साथ हो यही मेरे लिए बहुत है। मैंने दीपा से कहा।

ठीक है जैसे मेरा छोटा बाबू बोलेगा मैं वैसा करूँगी। दीपा ने मस्ती में कहा।

मैंने दीपा की बात सुनकर उसके होठों को चूम लिया। उस वक्त ऐसा लग रहा था जैसे सारी दुनिया मेरे साथ खड़ी हैं और मुझे कहीं भी, किसी भी मोड़ पर किसी से डरने की कोई जरूरत नहीं है।

चाहे दुनिया आपके लाख खिलाफ हो लेकिन आप जिससे मोहब्बत करते हैं और वह आपके साथ होता है तो सारी दुनिया से लड़ लेने की ताकत खुद ब खुद आ जाती है।

मैं उसके चेहरे को प्यार भरी नजरों से देख रहा था

"छोटे बाबू ऐसे क्या देख रहे हो?" वह चुटकी लेती हुई बोली।

"बस यही कि मेरी दीपा डार्लिंग कितनी खूबसूरत लग रही हैं !" मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

"अच्छा! तो मुझे हमेशा हमेशा के लिए अपने पास ही बुला लो न, फिर देखते रहना दिन रात, सुबह शाम ।" दीपा शर्माती हुई बोली।

"वैसे तुम्हे जल्द ही हमेशा-हमेशा के लिए अपने पास ले आयूंगा लेकिन अभी तुम मेरे पास हो तो क्यों ना अभी से ही देखते रहने की प्रैक्टिस कर लेते हैं?" मैंने दीपा के बातों के जवाब दिया।

उसके बाद मैंने उसकी गर्दन के पीछे अपने हाथ रख कर उसके होठों से अपने होठ लगा दिया और इसी तरह से उसके होठों को लगातार कई मिनटों तक चुमता रहा। उस रात दीपा लगभग आधी रात तक मेरे कमरे में ही मेरे साथ सोई ।मगर सुबह होने से पहले वह अपने कमरे में सोने चली गई। उस रात हम-दोनों काफी खुश थे।

[/color]
[color=rgb(0,]साथ बने रहिए।[/color]
 
[color=rgb(0,]उन्नीसवाँ भाग[/color]

[color=rgb(51,]
अगले दिन हम दोनों कॉलेज पहुंचे। कॉलेज पहुँचने के बाद मैं राहुल भैया से मिला। मैंने छात्रसंघ चुनाव में अपना नामांकन भरने की सहमति जता दी। राहुल भैयामेरी सहमति पर बहुत खुश हुए। फिर मैंने दीपा , राहुल भैया और उनकेकई दोस्तों के साथऑफिस पहुंच कर छात्र संघ चुनाव के लिए नामांकन फार्म भरा ।

नामांकन फार्म भरने के बाद हम सभी ने चुनावी रणनीति बनाने के लिए एक सभा का आयोजन किया । उस सभा में राहुल भैया के बहुत सारे दोस्त ,मेरे सहपाठियों के अलावा दीपा भी मेरे साथ थी । मुझे यह देख कर बहुत खुशी हो रही थी कि दीपा अब देवांशु के साथ ना होकर मेरे साथ मेरी जीत के लिए रणनीति बना रही थी।

हॉल में इतने सारे विद्यार्थियों को अपने समर्थन में खड़ा देख मुझे अपनी जीत निश्चित लग रही थी, परंतु मैं पूर्वानुमानों में विश्वास नहीं रखता था, इसलिए जब तक चुनाव नहीं हो जाते तब तक मुझे अपनी जीत की लिए जी तोड़ मेहनत करनी थी। देवांशु यह जानकर हैरान था कि उसके विरोध में अब मैं भी चुनाव लड़ रहा हूं और उसकी परेशानी का दूसरी वजहदीपा भी थी क्योंकि अब दीपा उसकी कोई बात ना सुनकर मेरे लिए प्रचार कर रही थी ।

"आप लोगों को पता है मैं इस चुनाव में क्यों खड़ा हुआ हूं । कॉलेज में हो रही रैंगिंग और फैकेल्टी प्रॉब्लम को दूर करना ही मेरा मकसद हैं और इसे दूर करने के लिए ही मैं इस चुनाव का हिस्सा बना हूँ । बस आप लोग अपना वोट मुझे दें और साथ में अपने दोस्तों से भी मुझे वोट करने के लिए कहें ताकि मैं जीतकर कॉलेज में चली आ रही परेशानियाँ दूर कर सकूँ ।" सभा शुरू करते ही मैं उपस्थित सभी विधार्थियों से बोला ।

मेरी बात खत्म होने के बाद उपस्थित सभी विद्यार्थियों की तालियों से पूरा क्लास रूम गूंज उठा ।

"मैं जानता हूं आपके सहयोगकेबिना कुछ भी हो पाना असंभव है, इसीलिए मैं आप लोगों में से ही कुछ लोगों को चुनकर उन्हें चुनाव पूर्व की तैयारियों और रणनिति बनाने की जिम्मेदारियाँ सौंपना चाहता हूँ। ताकि हम इस चुनाव जीतने में सफल हो सके । तो क्या आप लोग मेरे साथ खड़े हैं?" मैंने सभा में उस्थित सभी विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा।

"हां हम सब लोग आपके साथ हैं।" सभी एक साथ बोल पड़े ।

" कॉलेज में प्रचार-प्रसार की सारी जिम्मेदारी राहुल भैया निभाएंगे" मैंने कहा ।

इतना कहने के बाद राहुल भैया के स्वागत के लिए उपस्थित सभी लोगों ने जोरदार तालियां बजाकर उनका स्वागत किया।

" दूसरी जिम्मेदारी मैं विक्रम को दूंगा । वह छात्र संघ चुनाव के अन्य सभी उम्मीदवार पर नजर रखेंगें कि वो लोग हमारे विरोध में क्या कर रहे हैं और हमें चुनाव में हराने के लिए क्या रणनीति बना रहे हैं। फिर उनकी रणनीति के हिसाब से अपनी पार्टी के उससे बेहतर रणनीति तैयार की जा सके और लोगों के सामने पेश की जा सके। "मैंने कहा ।

इसके बाद फिर सब लोगों ने ताली बजाकर विक्रम का स्वागत किया ।

"स्लोगन ,संबोधन भाषण लिखने के अलावा कॉलेज की और लड़कियों के वोट अपनी पार्टी के लिए प्राप्त करने तथा उन्हें कन्वेंश करने की जिम्मेदारी दीपा को दी जाती हैं ।" मेरी यह बात खत्म होते ही पूरे हॉल में तालियां की आवाज फिर से एक बार गूंज उठी ।

इसके अलावा भी मैंने छोटी-छोटी जिम्मेदरियाँ और भी लोगों को सौंप दिया क्योंकि हम जानते थे । किसी भी चुनाव कोजीतने के लिए एक अच्छी रणनीति और सभी विद्यार्थियों से सही तरीके से संपर्क होना जरूरी था ।

उस सभा के बाद हम सब अपने अपने काम में लग गए । अब कॉलेज में मेरी फोटो वाले छोटे छोटे प्रचार पेपर लोगों तक पहुंचने लगा । कॉलेज की दीवार पर हर जगह मेरे ही प्रचार पेपर चिपके हुए थे ।

अब मैं काफी खुश रहा करता था । दीपा हमेशा मेरे साथ ही रहती थी । चुनाव के लिए कुछ ना कुछ नई नई तरकीब बताती रहती थी । जिससे हम चुनाव को जीत सके ।

एक दिन कॉलेज में मैं क्लास रूम से बाहर आ रहा था तभी मेरी मुलाकात देवांशु से हो गई ।

उसने मुझे रोकते हुए कहा, "क्यों बे निशांत तुझे क्या लगता है तू मेरे विरोध में खड़ा होकर चुनाव जीत जाएगा ? और वो दीपा जो आजकल तुम्हारे पीछे पीछे घूम रही है इससे तुम्हें क्या लगता है दीपा अब तुम्हारी हो जाएगी? दीपा का पीछा करना छोड़ दो ।"

"देखो देवांशु मैं तुझे पहले भी समझा चुका हूं, मुझे तुमसे कोई पंगा नहीं करना है । बात रही दीपा की तो उसे मेरे साथ रहना ही अच्छा लगता है । मुझे जो काम करना चाहिए वह कर रहा हूं । तुम अपना काम देखो और हां एक बात कान खोल कर सुन लो दीपा सिर्फ मेरे पीछे पीछे नहीं रहती हैं बल्कि दीपा मुझसे प्यार भी करती है" मैंने कहा।

"दीपा तुम्हें प्यार करती है या तुम उससेप्यार करते हो? यह तो मुझे पता नहीं लेकिन तू कान खोल कर सुन ले । मैं दीपा को पसंद करता हूं और मैं जिस चीज को पसंद करता हूं वह मेरी हो जाती हैं" देवांशु मुझे उंगली दिखाते हुए कहा ।

"अगर अगली बार दीपा की नाम भी लिया तो तुझे...... खैर छोड़ो तुम जैसे लोगों से बात करना ही बेकार है ।" मैंने कहा।

मैं बात को खामखा आगे नहीं बढ़ाना चाहता था, क्योंकि छात्रसंघ चुनाव बहुत नजदीक था और बात बढ़ने से विद्यार्थियों पर इस बात का गलत संदेश जा सकता था। इसलिए मैं वहाँ से जाने लगा।

"ओ... निशांत रुको इतनी भी क्या जल्दी हैं । कहां जा रहे हो? भाई चलो आपस में लड़ने से कोई फायदा नहीं हैं । हम दोनों एक सौदा कर लेते हैं ।" मुझे रोकते हुए देवांशु बोला ।

"सौदा कैसा सौदा। मैं चौकते हुए बोला ।

"देखो तुम दीपा से प्यार करते हो।चलो मैं तुम्हारे लिएअपने प्यार की कुर्बानी दे देता हूँ और दीपा का पीछा करना छोड़ देता हूँ लेकिन इसके बदले में तुम्हें छात्र संघ चुनाव से अपना नाम वापस लेना होगा" देवांशु बोला।

"पहली बात कि सौदा हमेशा एक समान चीजों के साथ किया जाता है । और यहां दीपा कोई चीज नहीं है जो मैं तुमसे उसका सौदा करूँ और चुनाव से तो अब मैं हटने से रहा। मैं शायद एक बार तुम्हारी बातों पर गौर करता अगर तुम निःस्वार्थ भाव से मुझे चुनाव से नाम वापस लेने के लिए कहते तो। लेकिन तुम तो मुझसे सौदा कर रहे है। तो मि. देवांशु यह सौदा तो किसी भी सूरत में अब होने से रहा।" मैं यह बोल कर वहां से चला गया ।

हमारे चुनाव प्रचार सही तरीके से हो रहा था। जिसको जो भी जिम्मेदारी दी गई थी वो उसे बखूबी निभा रहा था।कॉलेज के लगभग सभी विद्यार्थी मेरे ही समर्थन में थे । इस चुनाव प्रचार में दीपा भी हमेशा मेरे हर कदम से कदम मिलाकर मेरे साथ थी कुछ दिन बाद ही वोटिंग होने वाली थी।

चुनावसे एक दिन पहले हमने फिर से एक सभा का आयोजन किया जिसमें कॉलेज के अधिकतर विद्यार्थियों नेअपनी उपस्थिति दर्ज करवाई ।

उस बैठक में राहुल भैया दीपा द्वारा लिखा गया संबोधन भाषण पढ़कर सभी विद्यार्थियों का दिल जीत लिया।

अगले दिन वोटिंग हुई । सभी विद्यार्थीयों नेअपने अपने पसंद के उम्मीदवार को वोट किया । उस दिन दीपा ने मेरी जीत के लिए भगवान से सभी मंदिरों में जाकर प्रार्थनाएं किया । 2 दिन बाद छात्रसंघ चुनाव के विजेता उम्मीदवार के नाम की घोषणा होने वाली थी ।

चुनाव का विजेता घोषित होने वाले दिन हम सभी लोग कॉलेज में थे । उस दिन मैं बहुत नर्वस हो रहा था, मेरे साथ सभी उम्मीदवारों का यही हाल था। लेकिन राहुल भैया और दीपा मुझे हमेशा की तरह उस दिन भी जीत की उम्मीद का दिलासा देरहे थे और मेरे साथ बैठे हुए थे।

कॉलेज के सभी फैकल्टी मंच पर बैठे थे और कॉलेज के सभी विद्यार्थी और उम्मीदवार कुर्सी पर मैदान में बैठे हुए थे । कुछ देर बाद छात्र संघ चुनाव आयोग ने विजेता उम्मीदवार का नाम घोषित कर दिया।

जिस वक्त छात्र संघ चुनाव आयोग के अध्यक्ष विजेता के नाम बोलने वाले थे । उस वक्त मेरे दिल की धड़कने जोरों से चल रही थी । मेरी बगल में बैठी दीपा मेरे हाथ को अपने हाथों से पकड़ रखी थी । शायद वह मेरी जीत के लिए उस वक्त भी भगवान से दुआएं मांग रही थी ।

जैसे ही विजेता के रूप में मेरा नाम घोषित हुआ वह खुशी से उछल पडी। मैं जीत गया था । मेरे आंखों में खुशी के आंसू डबडबा आया । दीपा मुझसे लिपट गई । उसके बाद राहुल भैया आकर मुझसे गले मिलें । इसके साथ ही कॉलेज के सभी विद्यार्थी मेरे पास आकर मुझे जीत की बधाइयां देने लगे ।मैं बहुत खुश था और मुझसे कहीं अधिक खुश दीपा थी।

मोहब्बत में हमेशा एक की जीत दोनों की खुशी के लिए पर्याप्त होती है । उस वक्त यही कारण थी कि मेरी जीत पर दीपा मुझसे कहीं ज्यादा खुश दिख रही थी।

[/color]
[color=rgb(0,]साथ बने रहिए।[/color]
 

[color=rgb(0,]बीसवाँ भाग[/color]

[color=rgb(51,]
मेरी जीत पर कॉलेज के सभी छात्र-छात्राएं काफी खुश थे। मैं भी काफी खुश था।और मैं चाहता था मेरी जीत की जानकारी मेरे घरवालों को भी होनी चाहिए।ताकि वो भी मेरी जीत की खुशी का जश्न मनाये।

इसलिए यह खुशखबरी बताने के लिए मैंने अपनी मां को फोन किया।
"हेलो मां मैं निशांत बोल रहा हूं"

"हां छोटे बोलो। कॉलेज से वापस कब आ रहे हो।" मां बोली।

" मां मैं छात्र संघ चुनाव जीत चुका हूं।
मैं कॉलेज का छात्र नेता बन गया हूँ।" मैंने अपनी खुशी को दुगुना करते हुए मां को बताया।

"देखो बेटा अपनी पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान दो।और अगर पढ़ाई लिखाई नहीं हो रही है तुमसे तो भैया काऑफिस ज्वाइन कर लो।" मां थोड़ी चिढ़ी हुई बोली।

मुझे लगा छात्र नेता बनने की खुशखबरी सुनकर मेरी माँ खुश होगी। मगर वह तो चिढ़ सी गयी।

"मां...." मैं बोला।

"मैंने तुझे कितनी बार समझाया है कि इन सब चक्करो में मत पड़ो। मैं तो तुझे चुनाव में भी खड़ा नहीं होने देना चाहती थी लेकिन अर्जुन की वजह से मैं मना नहीं कर पाई।" मां बोली।

लेकिन माँ आपको तो मेरी जीत पर खुश होने चाहिए था। मैंने माँ से कहा।

मैं तेरी कोई दुश्मन नहीं हूँ निशांत। जिस दिन तू कोई अच्छा काम करेगा उस दिन मैं बहुत खुश होऊँगी। माँ ने कहा।

मेरे जीत पर माँ से इस तरह की बात सुनकर मैं उदास सा हो गया।
मैं उदास होकर कॉलेज के कॉरिडोर में खड़ा था। उसी वक्त कुछ लड़के-लड़कियां अपने हाथों में माला लिए मेरे पास आए। सभी के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी।

" बहुत बहुत बधाई निशांत।आपकी जीत के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं" सभी एक साथ बोले।

धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद आप सभी लोगों का मेरा सहयोग करने और मुझे इस काबिल समझने के लिए कि मैं कॉलेज के लिए कुछ कर सकता हूँ। मैंने सभी का अभिवादन स्वीकार करते हुए कहा।

वो सभी लोग मुझे शुभ कामनाएं देकर वापस लाइब्रेरी की ओर चले गए उसके बाद वहां दीपा आई।

" निशांत क्या हुआ उदास लग रहे हो?" दीपा आते ही मेरे हाथ को पकड़ती हुई बोली।

"नहीं बस ऐसे ही" मैंने कहा।

"कुछ तो बात है, वरना ऐसे उदास ना होते।देखो तुम्हारी जीत की खुशी में सारा कॉलेज जश्न मना रहा है और तुम यहां उदास एकांत में खड़े हो।कहीं तुम्हें देवांशु ने कुछ तो नही कहा। दीपा मेरी उदासी को झांकती हुई बोली।

" नही, नही।मेरी तो देवांशु से अभी तक कोई मुलाकात ही नहीं हुई है।मां से बात हुई है। मेरी जीत पर मां खुश नहीं है और वो ये सब छोड़कर मुझे भैया के ऑफिस ज्वाइन करने के लिए बोल रही है।" मैंने उदासी भरे स्वर में कहा।

"बस इतनी सी बात के लिए मेरा राजा बाबू उदास है। ओहो... निशांत यह सारी बातें छोड़ो हमलोग इस बारे में घर पर चलकर मां से बात कर लेंगे।अभी चलो। देखो सारे लड़के - लड़कियां तुम्हें खोज रहे हैं और राहुल भैया भी तुम्हें ही ढूंढ रहे हैं।"दीपा मुझे जबरदस्ती वहां से बाहर खिंचती हुई बोली।

" तो आप दोनों छुपकर ईधर खड़े हैं भाई साहब। मेरे वजह से ही जीते हो और जीतते ही मुझसे दूर निकल रहे हो।" राहुल भैया नजदीक आते ही मजाकिया लहजे से बोले।

"नहीं भैया ऐसी कोई बात नहीं है।आपको कैसे भूल सकता हूँ? चलिए बैठकर बात करते हैं।"

दीपा, मैं और राहुल भैया तीनों लोग कॉलेज के सेमिनार हॉल में चले गए।राहुल भैया ने कुछऔर लड़कों को कॉल कर के सेमिनार हॉल में आने के लिए कहा।हम लोगों ने इस जीत को किसी एक की व्यक्तिगत जीत ना मानते हुए इसमें शामिल सारे लोगों की जीत समझा और सभी लोगों का आभार व्यक्त किया।

उस समय हम लोगों के बीच बहुत सारी कॉलेज संबंधी बातें हुई और इस जीत को सेलिब्रेट करने का 1 दिन निर्धारित किया गया।इसके बाद कॉलेज के बंद होने से पहले हम सभीअपने-अपने घर जाने के लिए निकल आए।

"दीपा अब तक तुम्हारे भैया नहीं आए हैं तुम्हें रिसीव करने के लिए" मैंने दीपा से पूछा।

"वो आज आएंगे भी नही, क्योंकि वो एक रिश्तेदार की शादी में बाहर गए हुए हैं। " दीपा चहकती हुई बोली।

"वाह!""कहो तो मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ दूँ" मैंने कहा।

" अच्छा, एक अकेली अबला नारी घर में अकेली रहने वाली है और तुम वाह ! बोल रहे हो छोटे बाबू।" वह मुझे छेड़ने के मूंड़ से बोली।

तुम और अबला हाहाहाहा। अबला। मैंने दीपा को चिढ़ाते हुए कहा।

अच्छा हँस लो हँस लो। मेरा भी समय आएगी फिर बताऊँगी तुमको मैं। दीपा ने कहा।

"तो मैं चलूं तुम्हारे साथ, आज इस अबला नारी के साथ ही रात बिताते हैं।" मैंने भी मस्ती के लिए बोल दिया।

यह भी भला कोई पूछने वाली बात है चलो इतना बोलकर दीपा मेरी बाइक के पास जाकर खड़ी हो गई।

मैंने भी मौके की नजाकत समझकर गाड़ी स्टार्ट करके उसे पीछे बैठने के लिए कहा दीपा के बैठने के बाद हम होनों उसके घर के लिए निकल पड़े। रास्ते में हम दोनों खूब बकबक करते रहे हैं। हमारे रास्ते खत्म हो गए मगर दीपा की बकबक अभी भी खत्म नहीं हुई थी।

"नीचे उतारिए मेरी बकबक करने वाली प्यारी दीपा जी।" मैंने बाइक को उसके घर के पास रोकते हुए बोला।

"ओहो...मुझे लगा तुम मेरी प्यारी जानेमन बोलोगे लेकिन तुमने तो प्यारी दीपा बोलकर मेरा दिल ही तोड़ दिया दीपा दांत निकालकर हंसती हुई बोली।

मैं भी उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया। मैं दीपा को उसके घर तक छोड़कर वापस अपने घर जाने लगा। तभी दीपा बोली," तो आज मेरे छोटे बाबू अपनी इस अबला नारी को इस सुनसान रात को घर में अकेले ही छोड़कर चले जायेगें?"

तुम कहो तो मैं तुम्हें कभी छोड़कर ही न जाऊँ, लेकिन अभी मुझे जाना पड़ेगा। घर में मम्मी और भैया मेरा इंतजार कर रहे होंगे। मैंने दीपा से कहा।

आज रात मेरे पास ही रुक जाओ न। मैं अकेली यहाँ बोर हो जाऊँगी और मुझे डर भी लगेगा। दीपा बड़े प्यार से मुझे मनाती हुई बोली।

तो चलो फिर मेरे घर चलते हैं। मेरा ख्याल है कि तुम्हें वहाँ डर नहीं लगना चाहिए। मैंने दीपा को छेड़ते हुए कहा।

नहीं निशांत मैं रोज-रोज बिना कारण के तुम्हारे घर नहीं चल सकती। तुम समझो न। लोग तरह तरह ही बाते बनाएँगे। और पता नहीं माँ और अदिति दी क्या सोचेंगी। दीपा ने अपनी बात कही।

कुछ नहीं होगा यार तुम न बिना मतलब सोचती बहुत हो। मैंने दीपा से कहा।

तुम ही रुक जाओ यहाँ पर मेरे साथ। वैसे भी भैया पता नहीं कब तक लौटेंगे। दीपा ने कहा।

बात तो वही हो गई दीपा। अगर किसी ने मुझे भैया की अनुपस्थिति में तुम्हारे घर पर रात को देख लिया तो पता नहीं क्या सोचेगा। मैंने दीपा से कहा।

किसी के सोचने से क्या होता है निशांत, और कौन सा हम कोई गलत काम कर रहे हैं कि किसी से डरें हम। दीपा ने मुझसे कहा।

तुम्हारे साथ रात रुकने पर अगर मेरा कुछ गलत काम करने का मन हुआ तो। मैं दीपा को आँख मारते हुए बोला।

तुम न निशांत बहुत गंदे हो। दीपा शरमाती हुई बोली।

अच्छा ठीक है मैं रात रुक रहा हूँ तुम्हारे साथ। अब खुश। मैंने दीपा से कहा।

मेरी बात सुनकर दीपा बहुत खुश हुई और मुझसे लिपट गई थोड़ी देर हम एक दूसरे से लिपटे खड़े रहे।

अच्छा रुको मैं भैया को फोन करके बता देता हूँ कि मैं आज रात घर नहीं आऊँगा।

फिर मैंने अर्जुन भैया को फ़ोन करके सारी बात बता दी। उन्हें पहले से ही दीपा और मेरे बारे में पता था, इसलिए उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी तो उन्होंने रात रुकने के लिए अनुमति दे दी।

भैया से अनुमति मिलने के बाद मैं और दीपा बरामदे से घर के अंदर आ गए। मैं अंदर आकर उसी टूटी हुई कुर्सी पर बैठ गया। दीपा ने मुझे पीने के लिए पानी लाकर दिया और कपड़े बदलने के लिए दूसरे कमरे में चली गई।

[/color]

[color=rgb(0,]साथ बने रहिए।[/color]
 
Back
Top