AntarvasnaX जवानी जानेमन

दादी के जाने के बाद घर में अब सन्नाटा सा रहने लगा था, मम्मी भी कुछ ज़ायदा ही चुप चुप रहने लगी थी, पापा को बहाना मिल गया था घर में वापसी का तो वो अब घर में ही रहने लगे थे और मुझे उनको देख कर कुढ़न होने लगती थी, दादी की तेरहवी से कुछ दिन पहले जब घर में केवल हम दोनों ही थे और दादी के बारे में बात कर रहे थे तब अचानक से किसी बात पर मम्मी के गांव की बात निकल आयी थी, उस दिन मैंने मौका देख कर मम्मी से पूछ ही लिया जो बात मैं गांव से वापस आने के बाद से पूछना चाहती थी,
मैं : मम्मी एक बात पुछु आप बुरा मत मानना
मम्मी : हाँ पूछो
मैं : मम्मी क्या दीनू मेरे असली पापा थे ?
मम्मी : क्या पागलो वाली बात बोल रही है
मैं : नहीं मम्मी सच बताओ ना, मुझे इस बात से कोई दिक्कत नहीं है और न मैं आपको गकत समझ रही हूँ बस मैं जानना चाहती हूँ की दीनू मेरे पापा है या नहीं ?
मम्मी : कैसी पागलो वाली बात है ये, तू दीनू के जाने के ४ साल बाद पैदा हुई है, तेरे बाप से पूछ ले अगर तुझे मेरे बात पर शक है तो, उस टाइम तेरे बाप में पागलो जैसी ठरक चढ़ी रहती थी, मुझे डेली गर्भनिरोधक दवाई खिला देता था क्यूंकि वो नहीं चाहता था की मुझे गर्भ ठहरे और उसका मेरे साथ सोने का मौका ना मिले, उसका बस चलता तो गर्भ के अंतिम दिन तक मेरे साथ सोता।

मुझे ये सुन बड़ी निराशा हुई, मम्मी को लगा था की शायद मुझे दीनू की बेटी होने पर दुःख होता लेकिन उनको क्या पता था की मन ही मन पता नहीं कितनी बार मैंने भगवान से माना था की दीनू ही मेरा बाप निकले लेकिन मेरी क़िस्मत ही फूटी है जो ये कमीना इंसान मेरा बाप है,
 
मैंने जब ये फील किया की मम्मी अपने फ्लो में सब बता रही है तो अपनी मन की आखिरी कन्फूशन भी क्लियर कर ही लू और मैं मम्मी से हिम्मत करके पूछ ही लिया
मैं : मम्मी क्या नाना जी ने ही दीनू को मारा था ?
मम्मी : ( मुझे अजीब सी नज़रो से देखते हुए ) क्यों तुझे क्या लेना देना इस बात से ?
मैं : (थोड़ा डर गयी थी) वो मम्मी जैसा बुढ़िया काकी से जानकारी मिली उस हिसाब से दीनू मुझे अच्छा इंसान लगा था तो मुझे इतना कम उम्र में दुनिया से जाने का बुरा लगा था तो मैं तो बस ये जाना चाहती थी की क्या वाक़ई में नाना जी ने दीनू की जान ली थी ?

मम्मी (थोड़ा रुहाँसे शब्दों में ) हाँ तो और कौन कर सकता था, ये सब पिता जी ने ही किया या करवाया, केवल इस लिए क्यूंकि उनको अपनी बेटी और उसकी खुशियों से ज़ायदा प्यार अपनी इज़्ज़त और मान से था, दीनू वाक़ई में अच्छा इंसान था और उसके इसी सीधेपन के कारण मैं उसको प्यार करने लगी, जब मैं पहली बार उस से मिलने गयी थी ये पता चलने के बाद की मुझे नदी से बचा कर लाने वाला दीनू है तो उसने एक बार भी मेरी ओर आँख उठा कर भी नहीं देखा था, मैंने बहुत कोशिश की के एक बार वो मेरी ओर देखे लेकिन वो चुपचाप अपनी आँखे नीची किये बस मेरी बात सुनता रहा है और जब वो जाने लगा तो मैंने उससे पूछा था की फिर दुबारा कब मिलोगे तो उसने मना कर दिया था, तो मैंने उसे जाते जाते धमकी दी थी की अगर वो दुबारा नहीं आया मिलने तब मैं इस बार जान भुझ कर नदी में कूद जाउंगी तब तो आओगे मुझे बचाने, ये सुन कर एक बेचैनी से उसने मेरी ओर देखा और फिर झट से नज़रे झुका ली तो बस उसी पल मैं अपना सब हार बैठी, उसकी आँखों मैं शायद कोई जादू था जिसके देखते ही ऐसा लगा था मनो ये व्यक्ति का साथ हो तो जीवन हसींन हो जाये और बस उसी दिन मैंने ठान लिया था की दीनू ही मेरा है और मैं दीनू की, ये बात मैं कभी पिता जी को नहीं समझा पायी, शायद ये समझने के लिए एक लड़की का दिल होना चाहिए जो पिता जी की पास नहीं था, मुझे शक नहीं पूरा यक़ीन है की दीनू की हत्या के पीछे पिताजी का ही हाथ है, भले चाहे दीनू की हत्या और किसी ने की हो लेकिन हत्या का आदेश पिताजी ने ही दिया होगा, इसीलिए मैंने कभी उनको माफ़ नहीं किया और न करुँगी, अगर मेरे पिताजी ने में मुझे जान से मार दिया होता तो शायद मैं परलोक में उनको माफ़ कर देती लेकिन उन्होंने बिना किसी गलती के दीनू की हत्या की है इसकेलिए मैं उनको इस जनम में तो क्या अगले सात जनम तक भी माफ़ नहीं करुँगी,

मैं : हाँ मम्मी मुझे भी ऐसा ही लगा था, लेकिन बुढ़िया काकी बोल रही थी की ये फैसला शायद बिरादरी वालो ने किया हो
मम्मी : हाँ हो सकता है लेकिन ये मत भूलो की पिताजी ही हमारी बिरादरी के मुखिया थे, तो बिना उनकी मर्ज़ी के हो नहीं सकता था कुछ भी
मैं : हां ये बात तो है मम्मी, लेकिन जो हुआ सो हुआ मैं तो बस आपको ये बताना चाहती थी की मुझे जब दीनू और आप की कहानी का पता लगा तो बहुत दुःख हुआ, काश की आपकी शादी दीनू से होती तब हम सब कितने खुश रहते न
मम्मी : (एक ठंडी आह ले कर ) ऐसा सब की किस्मत में कहा, लेकिन तू फ़िक्र मत कर मैं जानती हु की तू दीपक नाम के लड़के से प्यार करती है, अगर वो लड़का ठीक है तो मैं तेरी शादी उसके साथ हर हाल में करा दूंगी ,
मैं : आपको किसने बताया दीपका के बारे में ?
मम्मी : मैं तेरी माँ हु कुछ दुनिया मैंने भी देखि है, तू फ़िक्र मत कर तेरे बाप को मैं सम्भाल लुंगी, मैं अपनी बेटी की वही शादी करुँगी जहा मेरी बेटी चाहेगी,
मैं : ऐसा कुछ नहीं है मम्मी, अगर ऐसा कुछ होगा तब बता दूंगी, अभी तो मेरी उम्र ही कितनी है
मम्मी : हाँ जब मन हो बता देना।

उस दिन के बाद मेरा बहुत बार मन हुआ की मैं मम्मी को दीपक के बारे में सब सच सच बता दू, फिर डर लगा की कही मम्मी मेरा जॉब पर जाना ना बंद करवा दे और मैं पापा के कारण घर में बिलकुल भी रुकना नहीं चाहती थी इसलिए कुछ बताया नहीं ,

अगले मंथ की सैलरी लेने के बाद मैंने अपने सीनियर को रेसिग्नेशन लेटर दे दिया और जॉब छोड़ दी, और अगले दिन से स्टोर पर जाने लगी, स्टोर के मालिक अंकल ठीक ठाक आदमी थे, ज़ायदा मतलब नहीं रखते थे बस उनको सेल से मतलब रहता था, जिस दिन सेल्स ज़ायदा होती तो मूड अच्छा और कम हुई तो मूड ख़राब, बस अच्छी बात ये थी की ज़ायदा चीड़ चीड़ नहीं करते थे, 15-२० दिन जॉब पर जाते हो गया था मैं खुश थी की कॉल पर लोगो की बकवास सुनने से बच गयी और साथ ही दीपक से भी पीछा छूटा, लेकिन गलतफहमी थी जो जल्दी ही दूर हो गयी, एक दिन मैं स्टोर से घर वापिस जा रही थी की दीपक बाइक लेके कर मेरी गली के बाहर खड़ा मिल गया, मुझे लेकर कर एक थोड़ा सुनसान पार्क के पास ले गया और मुझे गालिया देने लगा

दीपक : बहनचोद खुद को ज़यादा चालक समझ रही है, अभी दो घूसे मुँह पर मरूंगा दांत बहार निकल आएँगे
मैं : मैंने क्या किया है जो तुम गालियां दे रहे हो मुझे
दीपक : बहन की लोड़ी, बकवास मत कर बता रहा हूँ, तुझे समझाया न मैंने प्यार से की मुझे धोका मत दियो फिर भी तूने बिना बताये जॉब छोड़ दी और स्टोर पर नौकरी कर ली , तुझे क्या लग रहा था की मुझे पता नहीं लगेगा, बहनचोद मुझे तेरी सब खबर रहती है मेरे पास
मैं : तो मैंने कौन सा छुप्प के नौकरी करी है स्टोर पर, मुझे वहा की नौकरी पसंद नहीं थी तो छोड़ दी
दीपक : बहनचोद छोड़ दी तो मुझे कौन बताएगा तेरा बाप, एक तो बहनचोद तेरे नखरे इतने है, साली लाइन पर अजा नहीं तो यही इसी पारक में पकड़ कर चौद दूंगा कोई बचाने भी नहीं आएगा, समझ गयी, कल से डेली कॉल करेगी मुझे और शाम में मैं आऊंगा तुझे लेने स्टोर पर कोई नखरे मत करियो समझ गयी ना रंडी।
इतना कह कर दीपक पार्क से निकल गया और मैं वही एक बेंच पर बैठ कर रोती रही, मैं जितना कोशिश करती दीपक से दूर जाने की वो उतना ही मेरे पीछे पड़ जाता, मुझे उस से पीछा छुड़ाने का कोई रास्ता नहीं नज़र आरहा था।
 
उस दिन के बाद से दीपक दीपक रोज़ ऑफिस से आकर मुझे पिक करने लगा मेरी भी मजबूरी थी मैं कोई बखेड़ा नहीं खड़ा करना चाहती थी वैसे भी जीवन में एक के बाद एक घटनाये हो रही थी, दादी के जाने का दुःख ताज़ा था इसलिए घर में भी मन नहीं लगता था ज़्यादा, आपसे बात करके अच्छा लगता था क्यूंकि आप से होने वाली बातें मेरी पर्सनल लाइफ से रिलेटेड नहीं होती थी, आपसे बात करके मूड ठीक रहता था लेकिन दीपक के डेली पिक करने के कारन मैं आपसे भी बात नहीं कर पाती थी, साथ ही मैं एक छोटी सी कास्मेटिक शॉप पर काम करती हूँ ये बताना भी अच्छा नहीं लग रहा था सिलए मैंने आपसे झूट बोला की मैं नई नौकरी ढूंढ रही हूँ,

डेली रात में दीपक से बात करती थी लकिन दो चार दिन बाद मैंने महसूस किया की दीपक मुझसे बात करने के थोड़ी देर बाद अपना फ़ोन अपनी बहन को पकड़ा कर गायब हो जाता था, पहले तो मैंने कोई धयान नहीं दिया लेकिन एक दिन जब वो मुझे पिक करने आया तो मैंने उसकी जेब में दो मोबाइल देखे, मैं समझ गयी की ये फ़ोन अपनी बहन को पकड़ा कर दूसरे फ़ोन से किसी और लड़की से बात करता है, ये मेरे लिए अच्छी खबर थी, जितना वो दूसरी लड़कियों के साथ बिजी रहता उतना मेरी जान बची रहती, रोज़ बात करने के कारन मेरी काजल से अच्छी दोस्ती हो गयी थी, कभी कभार काजल मुझसे मिलने मेरे स्टोर पर आजाती थी।

एक दिन काजल स्टोर खुलने के थोड़ी देर बाद ही मुझसे मिलने आगयी, इस टाइम मैं अकेली होती थी मालिक दोपहर के आस पास आते थे, तो मैंने काजल को बिठा कर इधर उधर की बात करने लगी लेकिन काजल का धयान और कहीं था, थोड़ी देर बेचैनी से इधर उधर देखने के बाद उसने धीरे से कहा
काजल : भाभी मुझे आपसे एक काम था,
मैं : हाँ बोलो क्या बात है
काजल : मुझे ना एक सेक्सी सा ब्रा पेंटी का सेट दे दो इस से पहले आपके स्टोर में आपकी सहेली या मालिक आये,
मैं : मैं क्या मतलब तुझे सेक्सी सा?
काजल : दीदी, समझो ना, आजकल स्कूल में सब लड़किया मस्त सेक्सी सी ब्रा पैंटी डाल के आती है और मैं वही बुढ़िया के जैसा, अच्छा नहीं लगता, मम्मी से बोलने की हिम्मत नहीं होती और दुकान में जाकर बोलने में शर्म आती है तो आप प्लीज मुझे दे दो, मैं पैसे लायी हूँ,

मुझे कुछ समझ नहीं आरहा था की क्या करू लेकिन फिर मैंने सोचा ब्रा पेंटी ही तो है दे देती हूँ

मैंने एक दो अच्छे और ब्राइडल वाले में से हनीमून वाले सेट दिखाए जिसमे से एक पिंक कलर का सेट उसने पसंद कर लिया, डिज़ाइन बहुत सेक्सी था, बहुत ही छोटी लास वाली ब्रा थी और उसी लास से बानी पेंटी थी जो पीछे से बहुत पतली थी, लेकिन उसने पसंद किया था तो मैंने भी कुछ नहीं बोला और पैक करने लगी तो उसने रोक दिया और मेरे हाथ से पैकेट ले कर दूकान में अंदर की साइड में बने हुए काउंटर के पीछे चली गयी और काउंटर के पीछे बैठ कर जल्दी जल्दी चेंज कर उसने नई ब्रा और पेंटी पहन ली, उसके बाद वो मेरे पास रुकी नहीं और दुकान से निकल कर चली गयी , मुझे शक हो गया की ज़रूर इसका कोई चक्कर है वरना ये ऐसी हरकत नहीं करती। लेकिन मैं चुप रही कौन सा मैं उसकी सच में भाभी लगती थी, आखिर उसका भाई ना जाने कब से और कितनी लड़कियों के साथ सो चूका था कुछ असर तो बहन के अंदर भी आएगा।

उस दिन के बाद मैंने काजल पर नज़र रखने लगी, एक रात बात करते करते उसके मुँह से निकल गया की वो शिव चौक पर चौमिन खाने जाती है शाम के समय, शिव चौक मेरे स्टोर क पास ही पड़ता था, शाम के टाइम कभी कभी मालिक हमे नाश्ता करने का थोड़ा टाइम देते थे, मैंने उस टाइम शिव चौक जाना स्टार्ट कर दिया, 2-३ दिन कुछ नहीं हुआ लेकिन चौथे दिन मेरी मेहनत रंग लायी और मैंने काजल को चाऊमीन की रेहड़ी पर एक लड़के के संग चौमिन कहते देख लिया, मैंने कुछ नहीं कहा और चुप चाप वह से वापस आगयी, अगला दिन संडे का था तो मैंने दिन में काजल को फ़ोन किया और इधर उधर की बात करके सीधा मुद्दे की बात पर आयी और साफ़ लहजे में पूछा
मैं : काजल तेरे बॉयफ्रैंड का क्या नाम है
काजल (चौंकते हुए ) क्या मतलब भाभी ?
मैं : भोली मत बन काजल, मुझे सब पता है बस मैं नाम पूछ रही हूँ
काजल : (घबराते हुए ) भाभी आपने भैय्या को तो नहीं बताया ना ?
मैं : पागल है क्या ? ऐसी बात भला बताई जाती है क्या किसी को ?
काजल : थैंक यू भाभी ! उसका नाम रंजीत है, अच्छा लड़का है भाभी, प्लीज भाई को मत बताना
मैं : चिंता ना कर मैंने नहीं बताउंगी किसी को, लेकिन तू मुझे ये बता की उस दिन ब्रा पेंटी इसी के लिए खरीदी थी ? क्या तूने इसके साथ काण्ड कर लिया क्या ?
काजल : नहीं नहीं भाभी, कुछ नहीं किया, बस किस किया है केवल, और वो ब्रा पेंटी इस लिए ली थी क्यूंकि ये बहुत दिने से पीछे पड़ा था की एक पिक्चर भेजो अंदर की, लेकिन मैं टाल रही थी, फिर उस दिन इसने अपने सिर की कसम दे दी तो मुझे बात माननी पड़ी लेकिन मेरे पास ढंग की ब्रा पेंटी नहीं थी तो आपसे खरीद कर लायी।
मैं : हम्म ठीक है, लेकिन इस से ज़ायदा नहीं अभी तेरी उम्र काम है इन सब से दूर रह
काजल : ठीक है भाभी, जैसा आप बोलोगी वैसा ही करूँगा बस आप प्लीज भाई को कुछ मत बोलना नहीं तो वो मुझे जान से मार देगा।
मैं : घबरा मत पगली मैंने तुझे कुछ नहीं होने दूंगी, भाभी बाद में हूँ पहले तेरी सहेली हूँ, लेकिन एक शिकायत है तेरे से, मैंने तुझे इतना मानती हूँ लेकिन तू मुझसे बात छुपाती है।
काजल : भाभी अब आपको सब बता दिया है आगे से कुछ नहीं छुपाउंगी, आप जो पूछो मैं बता दूंगी आपको
मैं : हाँ अब बता दिया है लेकिन, एक बात तूने अब भी छुपा राखी है मुझसे
काजल : कौन सी बात
मैं : तेरी भाई की बात, की रात में वो किसी और लड़की से भी बात करता है
काजल : (झेंपते हुए ) आपको कैसे पता भाभी ?
मैं : वो छोड़, मुझे पूरी बात बता नहीं तो मैं साझुंगी की तू मेरी पक्की सहेली नहीं है।
काजल : मैं आपकी पक्की सहेली हूँ भाभी, हाँ सच है की भाई आजकल किसी लड़की से साड़ी रात बात करता है, पहले भी कभी कभी एक दो लड़की से करता था लेकिन इस वाली से बहुत टाइम से कर रहा है और रेगुलर करता है,
मैं : क्या नाम है इसका ?
काजल : (धीरे से ) विभा, भैय्या के साथ ही काम करती है और वो आपको भी जानती है,
मैंने धीरे धीरे काजल से साड़ी जानकारी ले ली, मैंने ये सब इसीलिए किया था, दीपक ने बहुत कुछ किया हुआ था लड़कियों के साथ लेकिन मेरे सामने वो ऐसे दिखता था मानो उसकी लाइफ में मेरे अलावा और कोई नहीं है, मुझे उस से पीछा छूटने का यही रास्ता नज़र आया की मैं दीपक को रेंज हाथो विभा के साथ पकडू और फिर उस से अपना रिश्ता तोड़ ख़तम कर लू।
 
दीपक की बहन काजल अब मुझसे खुलने लगी थी, एक दिन उसने मुझे अपने बॉयफ्रैंड रंजीत से भी मिलवा दिया था, देखने में कुछ खास नहीं था, बस आजकल के लड़को के जैसे टैटू और टिक टोक टाइप वाला लड़का था, माँ बाप दोनों कमाते थे तो पैसे भी थे, बस बाइक ले कर यहाँ वह घूमता रहता था और इंस्टाग्राम पर रील डालता रहता था, उसके अच्छे खासे फोल्लोवेर्स भी थे सोशल मीडिया पर और शायद इनमे से कोई बात काजल को पसंद आगयी थी जो पहले दोस्ती हुई उन दोनों में और अब दोनों प्रेमी प्रेमिका थे , मुझे अंदाज़ा लगा गया था की रंजीत बस काजल के साथ खेल रहा है लेकिन मैं उसकी पर्सनल लाइफ में ज़ायदा टांग नहीं अड़ाना चाहती थी, लेकिन फिर भी मैंने उसको हल्का सा काजल के सामने समझा दिया था की अभी दोनों बच्चे हो और कोई ऐसी वैसी हरकत ना करे नहीं तो फिर मैं दीपक को सब बता दूंगी फिर आगे का अंजाम तुम दोनों को भुगतना पड़ेगा। मैं जानती की ये अभी तो हाँ बोल रहे है लेकिन मौका मिलते ही ये दोनों सेक्स करके ही मानेंगे, खैर अब ये उनकी ज़िन्दगी थी और आगे उनकी मर्ज़ी।

दीपक का धयान आजकल मुझ पर काम था लेकिन फिर आपका कॉल आगया, मुझे अच्छा लगा की पहली बार अपने खुद से फ़ोन किया था, इस से पहले जब भी बात हुई थी तो कॉल मैंने ही की थी, आपने अपने दोस्त का इशू बताया तो मैंने दीपक को बोल दिया, वो खुश हो गया क्यूंकि उसको ऐसे ही क्लाइंट्स चाहिए होते थे, उसने आपके दोस्त से रिकॉर्ड ठीक करने के नाम पर अच्छे खासे रूपये लिए थे, जिस दिन काम हो गया उस दिन वो बहुत खुश था मुझे एक अच्छे रेस्टुरेंट में ले कर गया लंच के लिए लेकिन जैसे ही हमने आर्डर किया उसका फ़ोन बार बार बजने लगा, पहले तो उसने साइलेंट किया लेकिन जब फ़ोन बार बार बज रहा तो वो फ़ोन लेकर रेस्टुरेंट के बहार चला गया और वह किसी से बात करने लगा, मैं समझ गयी की फ़ोन ज़रूर विभा का होगा नहीं तो मेरे सामने ही बात करता, थोड़ी देर में वो वापस आया इतने में हमारा आर्डर आगया, उसने जल्दी जल्दी एक दो निवाला खा कर उठ गया ये बोल कर की कोई बहुत ज़रूरी काम है और उसे अभी जाना होगा, मैंने कुछ नहीं बोलै और आराम से अपना खाना ख़तम करके घूमती फिरती घर आगयी।

रात में दीपक का कोई कॉल नहीं आया तो मैंने काजल को कॉल किया, काजल से बात हो गयी, मैंने उससे दीपक का पूछा तो उसने बताया की भाई ऊपर अपने रूम में है, मैंने काजल से पूछा की आखिर चल क्या रहा है और फिर उसे दिन वाली घटना बताई, काजल ने मद्धिम आवाज़ में बताया की विभा और भाई को घूमते हुए विभा के किसी जानकार ने देख लिया था और विभा के घर बता दिया है, उसके घरवालों ने विभा को बहुत बुरा भला कहा है और उसको वापस बिहार बुला लिया है इसलिए वो भाई से झगड़ा कर रही है की अब उस को वापस गांव जाना पड़ेगा और वह उसके घर वाले उसकी शादी कर देंगे , वो भाई को बोल रही थी की अगर भाई शादी के लिए रेडी है तो वो यही रह जाएगी और माँ बाप से लड़ लेगी भाई के लिए लेकिन भाई बहाने बना रहा है क्यूंकि भाई तो आपसे शादी करना चाहता है ,

मैंने काजल को समझाया की अपने भाई को समझाए की विभा खूब सुन्दर है और अच्छी है मेरा पीछा छोड़े और उस से शादी कर ले, खैर उस बेचारी की इतनी कहा हिम्मत होती की कुछ कहती बस है कर रह गयी, मैंने काजल को समझा दिया था की वो मुझे कोई भी नयी बात पता चले तो फट से बताये, उस बेचारी को लग रहा था की शायद मैं ये सब उसके भाई को पाने के लिए कर रही हूँ, उस पगली को क्या पता था की मैं ये सब उस के भाई से पीछा छूटने के लिए कर रही थी ,

अगले दिन काजल का फिर फ़ोन आया ये बताने के लिए की उसका भाई ने किसी तरह विभा को समझा दिया और अब विभा और भाई दोनों पटना साथ साथ जा रहे है, भाई विभा को पटना छोड़ कर वापिस आजायेगा और विभा वहा से अपने गांव चली जाएगी, उनकी टिकट अगले दिन की थी।

अगले दिन स्टोर से छुट्टी के बाद मैं सीधा काजल के पास चली गयी, उसका भाई चला गया था तो अकेली थी और अभी उसकी मम्मी भी जॉब पर से वापस नहीं आयी थी, मैंने अपने साथ गोलगप्पे ले कर आयी थी वो खुश हो गयी और हम दोने ने साथ मिल कर खाया, थोड़ी देर बाद मैं दीपक के कमरे में आगयी और दीपक का लैपटॉप ढूंढ निकला, ये उसको ऑफिस से मिला हुआ था, मैंने ऑफिस में बहुत बार यूज़ किया था और मैं आज आयी इसी लैपटॉप के लिए थी, मैंने जल्दी जल्दी लैपटॉप ऑन किया और ऑन करते ही मेरा काम बन गया, सामने ही कई सारी क्रोम की टैब्स खुली हुई थी और उसने होटल इन पटना सर्च किया हुआ था, उसी में से दो होटल्स की डिटेल्स अलग टैब में खुली हुई थी, एक थोड़ा महगा होटल था और दूसरा सस्ता ओयो था, मैंने जल्दी से उन दोनों टैब्स की फोटो खींची और लैपटॉप बंद कर दिया, थोड़ी देर बाद मैं काजल के घर से निकल गयी, मैंने रस्ते में ही प्लान बना लिया की ये भगवान का दिया हुआ मौका है, दीपक विभा को लेकर पटना गया है, और होटल बुक किया है इसका मतलब वो पटना पहुंच कर विभा को लेकर होटल में रुकेगा और और अगर मैं किसी तरह उन दोनों को रंगे हाथ पकड़ लू तो मुझे दीपक से ब्रेक उप करने का बहाना मिल जायेगा और फिर मैं उसके चुंगुल से आज़ाद ,

काजल के अनुसार वो लोग शाम में निकले थे मैंने ट्रैन टाइमिंग चेक की तो मुझे अंदाज़ा हो गया की वो दोनों लेट नाईट की ट्रैन से निकलेंगे, मैं जल्दी से घर आयी और फटाफट अपने लिए एक बैग पैक किया और मम्मी को काम का बहाना बना कर घर से निकल गयी, स्टेशन आते आते रात के ११ बज गए, पटना की लास्ट ट्रैन १० बजे की थी जो जा चुकी थी, अगली ट्रैन सुबह ६ बजे थी जो मुझे रात में पटना पहुँचाती, यानी मैं दीपक से लगभग ८ घंटे लेट थी, लेकिन अब मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था सिवाय वेट करने के, मैंने सुबह की ट्रैन की टिकट ले ले थी और वही वेटिंग रूम में रात काटने लगी, लेकिन जब अकेली बोर होने लगी तो मैंने काजल को कॉल कर दिया और उसका बता दिया की मैं उसके भाई के पास जा रही हूँ पटना लेकिन वो ये बात अपने भाई को ना बताये, उसने मुझे मना किया पटना जाने के लिए लेकिन मैंने तो पक्का इरादा कर लिया था,

जल्दीबाजी में मैं घर से तो आगयी थी लेकिन ये नहीं सोचा था की आने जाने में अच्छे खासे पैसे लगते है, फिर पटना में पता नहीं कहा कहा जाने पड़े, मैंने अपने मोबाइल मे चेक किया तो मेरे अकाउंट में केवल पांच हज़ार थे, मुझे लगा की कहीं कम ना पड़ जाये, अब ये बात दिमाग में आते ही थोड़ी घबराहट होने लगी और जब कुछ समझ में नहीं आया तो मैंने आपको फ़ोन कर दिया, अपने फ़ोन उठा लिया तब अजीब सा लगा आपसे पैसे मांगते हुए लेकिन मेरे पास और कोई चारा नहीं था,

अपने भी बिना सोचे समझे मुझे पैसे डाल दिए, मुझे बड़ी ख़ुशी हुई की कोई तो है जो भले बुरे टाइम में मेरे काम आया , ६ बजे मैं पटना की ट्रैन में बैठ कर दीपक को पकड़ने निकल गई, मैंने इस से पहले केवल मामा के यहाँ गयी थी और वो भी रिजर्वेशन में यहाँ बिना रिजर्वेशन के जा रही थी बड़ी दिक्कत हुई लेकिन कुछ घंटो का सफर गुजरने के बाद एक भैय्या मिल गए, वो हमारे हरयाणे के ही थे और किसी काम से पटना जा रहे थे उनका नाम नीरज है, नीरज भैय्या लम्बे तगड़े जिम जाने वाले गुज्जर है मेरी भाषा से पहचान गए की मैं भी हरयाणा की हूँ तो उन्होंने मुझे अपनी बर्थ पर बैठा लिया, रास्ते में काजल का कई बार कॉल आया, वो बार बार मुझे जाने से रोक रही थी लेकिन मैं कहाँ मांनने वाली थी, नीरज भैय्या को भी कुछ शक सा होने लगा तो मैंने उनको बस इतना बताया की मेरा मंगेतर किसी लड़की के चक्कर में पटना आया हुआ है उसी को लेने जा रही हूँ, नीरज भैय्या को मुझ पर तरस आया और सारे रस्ते उन्होंने मेरा बड़ा धयान रखा, रात में लगभग ९ बजे हम पटना पहुंच गए, भैय्या भी मेरे साथ ही स्टेशन से बाहर आये, मैंने उनको बाई किया तो उन्होंने मना कर दिया और बोलै की रात का टाइम है और वो मुझे होटल तक पंहुचा कर ही जायेंगे, मुझे भी हिम्मत मिली, मैंने नीरज भैय्या को ओयो का नाम और एड्रेस बताया, इतने में एक रिक्शा वाला आगया और उसने अड्रेस सुन लिया, उसने बताया की ये होटल यहाँ से केवल १० मिनट की दुरी पर है, पैदल भी जा सकते है और अगर चाहे तो वो रिक्शे से पंहुचा देगा, हमने रिक्शा किया और होटल पहुंच गया, छोटा सा तीन मंज़िला बिल्डिंग में होटल था, मैंने और भैय्या काउंटर पर पहुंचे, भैय्या ने मुझे इशारे से चुप रहने के लिए कहा और काउंटर के पीछे बैठे लड़के से पूछा दीपक कौन से रूम में है ?

होटल बॉय : कौन दीपक?
नीरज भैय्या : अरे वो जो दिल्ली से आया है अपनी वाइफ के साथ, मैं उसका दोस्त हूँ, उस से मिलने आया हूँ, अगर ठीक लगा तो रात में आपके होटल में ही हम दोनों भी रुक जायेंगे,
ऐसे बोलते बोलते भैय्या ने उसको हलके आँख मार के इशारा किया और वो लड़का मुस्कुराने लगा,
होटल बॉय : सर दीपक जी कमरा नो ३०२ में रुके है तीसरा फ्लोर पर आप जा कर मिल लीजिये,

मैं आगे आगे और दीपक भैय्या पीछे पीछे होटल की सीढिया चढ़ने लगे, अभी हम दूसरे फ्लोर तक भी नहीं पहुंचे थे की अचानक दीपक लगभग भागता हुआ हमारी ओर आया, मुझे देखते ही चिल्लाने लगा, तू यहाँ क्या कर रही है और ये कौन ?
नीरज भैय्या : ओये, मैं कौन हूँ ये बाद में तु ये बता तू यहाँ क्या ड्रामे कर रहा है, ये लड़की बेचारी तेरे चक्कर में रेल के ढ़ाके खा कर यहाँ तक आयी यही और तू चिल्ला रहा है,
दीपक : अरे तू चुप रह भाई, ये हमारे आपस की बात है
नीरज भैय्या : तो ठीक है फेर ये मेरी बहन है अब बता क्या आपस की बात है,
दीपक : भाई तो जो भी है तू बीच में मत बोल मुझे बात करने दे इस से,
मैंने भी नीरज भैय्या को इशारा किया की वो मुझे बात करने दे, क्यंकि नीरज भैय्या की दबंग आवाज़ सुन कर दीपक थोड़ा शांत हो गया था,

मैं: हाँ बोलो क्या कहना था
दीपक : तू यहाँ क्या करने आयी है ?
मैं : मेरी छोड़, तू बता तू किसके चक्कर में यहाँ भगा भगा आया है,
दीपक : मैं तो किसी के चक्कर में नहीं आया
नीरज भैय्या : तो तू फेर यहाँ अंडे देना आया है क्या ? ये बता कमरे में तूने कौन सी लौंडिया लेता राखी है?
इतना बोल कर मैं और भैय्या सीढिया चढ़ कर दीपक के रूम में आगये

दीपक का रूम खली था, बिस्तर की चादर मसली हुई थी और साफ़ पता चल रहा था की दीपक के अलावा भी कोई और वह था लेकिन अब वहा कोई नहीं थी, लग रहा था की हम कुछ मिनट या घंटे से चूक गए, अगर कुछ घंटे पहले हम यहाँ होते तो शायद हम दीपक को रंगे हाथो पकड़ सकते थे, हमारे पास कोई पक्का सबूत तो था नहीं इसलिए हमे थोड़ा शांत होना पड़ा, होटल के रिकॉर्ड में था की विभा आयी थी दीपक के साथ और दीपक का कहना था की वो बस यहाँ फ्रेश होने आयी थी और फिर वो अपने गांव चली गयी, होटल वाला भी पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था इसलिए उसने भी ज़ादा कुछ नहीं बताया, नीरज भैय्या लेट हो रहे थे तो वो भी दीपक को समझा कर निकल गए और अपना फ़ोन नंबर दे गए की अगर कोई दिक्कत हो तो वो आजायेंगे मेरी हेल्प करने।

मैं भी ट्रैन के सफर से थक गयी थी और दीपक से लड़ने के बाद तो और ताकत नहीं थी शरीर में सो मैं अपना बैग लेकर होटल से निकल गयी और पास ही बने हुए दूसरे ओयो रूम में कमरा ले कर चली गयी, मुझे साड़ी रात समझ नहीं आया की आखिर विभा इतनी जल्दी क्यों चली गयी, रात का टाइम गांव निकलने का कोई लॉजिक नहीं था, फिर धयान दिया तो महसूस हुआ की दीपक ने भी मुझे पाने साथ रुकने के लिए नहीं बोला, मैं किसी कीमत पर उसके साथ उसी कमरे में नहीं रूकती लेकिन फिर भी दीपक ने एक बार भी झूठे मुँह भी नहीं बोला, सोचते सोचते नींद आगयी, सुबह ८ बजे आँख खुली तो फ़ोन पर काजल की कॉल आरही थी, काजल का नाम देखते ही मेरा दिमाग जाग गया, ये इसी हरामजादी का खेल था, इस कुतिया ने ही अपने भाई को बताया होगा और और इसके भाई ने मेरे आने से पहले विभा को या तो दूसरे रूम शिफ्ट कर दिया या कुछ देर के लिए होटल से हटा दिया ,

मुझे काजल के साथ साथ खुद पर भी गुस्सा आरहा था, अगर ये बात मुझे रात में समझ आजाती तो मैंने आधी रात में दीपक के रूम पर जा खड़ी होती और तब पक्का विभा मुझे उसी के कमरे मिलती, फिर भी मैं जल्दी जल्दी तैयार हो कर दीपक के होटल की ओर भागी, दीपक ने दरवाज़ खोला लेकिन वो अकेला ही मिला, मैंने उसको बोला की मैं दिल्ली जा रही हूँ और आजके बाद मुझसे कांटेक्ट ना करे, दीपक मुझे कमरे के अंदर ले कर गया और समझने लगा लेकिन मैंने उसकी एक बात नहीं सुनी, अभी हम बात कर ही रहे थे की इतने में होटल का एक स्टाफ आया और दीपक को बुला कर ले गया, मैं उसके रूम में बैठी रही, दीपक के बाहर जाते ही मैंने उसके कमरे की तलाशी लेने लगी लेकिन मुझे कुछ खास नहीं मिला, तभी मुझे डस्टबिन दिखाई दे गया मैंने झाँक कर देखा तो डस्टबिन में कुछ बिस्किट्स के खली पैकेट्स थे और इन्ही पैकेट्स के नीचे मुझे २ इस्तेमाल किये हुए कंडोम्स दिखयी दे गया, मेरा शक यकीन में बदल गया, कुछ देर में ही दीपक आगया और मैंने वापिस से उस से लड़ाई स्टार्ट कर दी।

जब बात काफी बढ़ गयी तब मैंने उसे कंडोम्स दिखाए, पहले तो चुप हो गया फिर बोलने लगा की हो सकता है उस से पहले वाले कस्टमर ने यूज़ किया हो, ये कैसे पता की उसी ने यूज़ किये है, मैं गुस्से से उसके रूम से निकल आयी और फिर वापिस अपने होटल से बैग उठा कर मैं स्टेशन आगयी, अगली ट्रैन पकड़ कर मैं दिल्ली पहुंच गयी ,

मेरा ये छपा कामयाब नहीं हो पाया था लेकिन फिर भी नाराज़गी और लड़ाई के बहाने मैंने दीपक से दूरी बना ली थी, इसी बीच पहली बार आपसे मॉल में मुलाक़ात हुई, जब पहली बार कॉल पर आपसे बात हुई थी तभी मुझे आपकी ऐज मालूम थी फिर भी जब पहली ही मुलाक़ात में अपने अपनी आगे मुझे बताई तो मुझे अच्छा लगा की आप मेरा फ़ायदा उठाने की कोशिश नहीं कर रहे, सबसे अच्छी बात जिसने मुझे आप की ओर आकर्षित किया की आप बात करते टाइम आँखे नीची करके बात कर रहे थे मुझसे और आप ने एक बार भी मेरे अंगो की ओर घूर कर या गन्दी नज़र से नहीं देखा , मुझे आपकी इस बात पर दीनू की बात याद आगयी थी, मम्मी ने भी यही बताया था की दीनू ने कभी उनको गन्दी नज़रो से नहीं देखा था, और बस पता नहीं क्यों मेरे दिमाग में भी ये बात बैठ गयी थी की अच्छे मर्द औरतो को सम्मान की नज़रो से देखते है और बात करते समय उनका धयान बातों पर होता है ना की औरतो के शरीर पर।

आपसे मिलने के बाद मेरे बहुत मन किया की फिर से मिलु आपसे लेकिन फिर lockdown लग गया और बाहर निकलना बंद सा हो गया, लेकिन अच्छी बात ये थी आप से रेगुलर बात होने लगी और मेरा अच्छा टाइम गुजरने लगा, दीपक कभी कभार कॉल करता था लेकिन मैं ज़ायदा बात नहीं करती थी, मैंने काजल से भी बात करना बंद कर दिया था क्यूंकि मैंने जानती थी की उसी के कारण मेरा प्लान फेल हुआ था,

lockdown के कारण मैं घर में पड़ी पड़ी बोर हो गयी थी, मुझे लगा की आप मुझसे फिर मिलने के लिए कहेंगे लेकिन जब आपने कुछ नहीं कहा तो मैं आपसे मिलने सरोजनी नगर के बहाने से आयी, जब हम दिल्ली हाट में घूम रहे थे तब पता नहीं कब और क्यों मैंने आपका हाथ पकड़ लिया और पहली बार मेरे जीवन में एक प्यार वाली फीलिंगस आयी, दीपक ने ना जाने कितनी बार मेरा हाथ पकड़ा था और सैकड़ो बार मैंने उसके बाइक पर पीछे से पकड़ कर बैठी थी लेकिन उस दिन जब ये बिना किसी ज़ोर ज़बरदस्ती के हुआ तो एक अनोखी फीलिंग्स से दिल झूम उठा, मन कर रहा था की ऐसे ही हाथ थामे थामे जिंदगी गुज़र जाये, जब हम वहा से निकल कर स्टेशन तक आये तब बैग हम दोनों के बीच में था और सालो बाद ऐसा हुआ था की मैं बाइक के पीछे बैठी हो और बाइक चलने वाले को पकड़ कर ना बैठी हो, अगर बैग्स ना होते तब मैं ज़रूर पीछे से हग करके बैठती केवल ये देखने के लिए की आखिर कैसी फीलिंग्स आती है क्यूंकि दीपक के साथ बैठ कर मुझे कभी कुछ खास फील नहीं हुआ था ,

खैर उस दिन के बाद मैंने आपसे थोड़ी शरारती बातें करने लगी थी, पता नहीं क्यूंकि आपसे ऐसी बातें करके अच्छा लगने लगा था, आपको पिक्स भेजने का मन करता और जब आप उन फोटोज को देख कर तारीफ करते तो मन ख़ुशी से झूम जाता, ये सारी फीलिंग्स मेरे लिए नयी थी और मुझे बहुत मज़ा आरहा था , लेकिन आप शायद थोड़ा झिझक रहे थे और मुझे आपकी ये झिझक भी अच्छी लगने लगी थी, लेकिन मेरी ये ख़ुशी ज़ायदा दिन नहीं चली,

मेरे पास जॉब नहीं थी उन दिनों तो मैंने एक संडे आपसे मिलने का प्लान बनाया, उस दिन मैंने सोचा था की कुछ ऐसा करुँगी की आपकी थोड़ी ये झिझक ख़तम हो और हम थोड़ा खुल कर मिले और बात करे, उस दिन मैं घर से जैसे ही निकली मुस्कान मुझे स्टेशन पर मिल गयी और जबरदस्ती मेरे साथ चल पड़ी, मैंने आपको बता दिया था की आपसे मिलने आरही हूँ इसलिए उसको साथ लाना पड़ा, मैं उसको ले तो आयी लेकिन मुझे नहीं पता था की मुस्कान ने अपनी करंट लोकेशन दीपक को भेज रखी है, उसी ने के कहने पर मुस्कान मेरे पीछे पीछे आयी थी, मेरे बात ना करने से दीपक को शक हो गया था की मैं किसी दूसरे लड़के से बात कर रही हूँ, वो मुझे व्हाट्सप्प पर देर रात तक ऑनलाइन देखता था इसलिए उसे यक़ीन हो गया था, उस दिन मैंने उस से झूट बोला लेकिन उसने फिर वही धमकिया देना स्टार्ट कर दिया तो मेरे पास वापिस आने के अलावा कोई चारा नहीं था, और जब मुझे पता चल गया की मुस्कान भी दीपक से मिली हुई है तब मेरा मन और टूट गया और मैं बाहर से ही फरीदाबाद लौट गयी,

स्टेशन पर ही दीपक मिल गया, संडे था उसकी भी छुट्टी थी शायद, फिर वही पुरानी बकवास, जान से मार दूंगा, तेज़ाब फेंक दूंगा आदि , लेकिन मैंने कोई जवाब नहीं दिया, मैं मेट्रो स्टेशन पर कोई ड्रामा नहीं करना चाहती थी, मैं वहा से रिक्शा करके घर आगयी ,

दो तीन दिन बाद मैं कुछ सामान लेने घर से बाहर निकली तभी पीछे से दीपक आगया और मेरा मोबाइल छीन लिया और उसमे से आपका नंबर निकल कर अपने मोबाइल में डायल कर लिया, मैंने उस से अपना मोबाइल वापस छिना और घर वापिस आगयी, मैं कॉल किया तो आपका फ़ोन बिजी जा रहा था, मैं समझ गयी की दीपक ने आपको कॉल कर दिया है, जब आपने मुझे उसकी रिकॉर्डिंग भेजी तो मुझे अच्छा लगा उसकी बेइज़्ज़ती सुन कर, आपने अच्छी इज़्ज़त उतारी थी,

लेकिन मैं आपसे बात करने से कतरा रही थी, मुझे पता था की आप मुझसे दीपक के बारे में पूछोगे और मैं आपको बिना पूरी डिटेल में जाये जाए समझा नहीं पाऊँगी , इसलिए आपसे बात करते हुए झिझक सी रही थी और फिर पता नहीं क्यों आपसे मिलकर जो फीलिंग्स आती थी लगता था की कही आप मुझे चैरेक्टर लेस्स लड़की ना समझ लो, इसी उधेरबुन में आपने मुझे जब जॉब का बताया तो मैं ख़ुशी से उछल गयी, आसान काम था और और ऊपर से अच्छी सैलरी भी, मैंने झट से ज्वाइन कर लिया, मैं खुश थी की अब मेरा जीवन जल्दी ही अच्छा हो जायेगा, लेकिन इन सब में मैं एक बात भूल गयी थी और वो था मेरा कमीना बाप,

जॉब लगे थोड़े दिन ही हुए थे की मेरे कमीने बाप ने फिर एक रात मेरे कमरे आकर वही हरकत करने की कोशिश की लेकिन उस दिन मैं जाग ही रही थी, जैसे ही मेरे बाप ने मेरे शरीर को छुआ मैंने शोर मचा दिया, शोर सुन कर मम्मी आगयी और फिर मैंने रोते रोते सारी बात मम्मी को बता दी, मम्मी ने उसी टाइम पापा को घर से निकाल दिया, लेकिन उस रात के मैंने फैसला कर लिया की अब मैं ये घर छोड़ दूंगी, क्यंकि मुझे पता था की पापा फिर कुछ दिन में वापस घर आएंगे और फिर नशे में ऐसी हरकत करेंगे, दो बार दादी ने बचा लिया था और तीसरी बार मैं जाग रही थी इसलिए बच गयी, लेकिन हर दिन बचना संभव नहीं था, मैं पुलिस में भी कंप्लेंट नहीं करना चाहती थी क्यूंकि इसमें बहुत बदनामी होती इसीलिए मैंने मम्मी को सब बता दिया था और मम्मी ने भी ना चाहते हुए हाँ कर दी थी,

मैं जॉब के साथ साथ अपने लिए कोई रूम ढूंढने लगी, इसी बीच एक दिन राबिया का कॉल आया, कोरोना के कारण हॉस्पिटल में बेड नहीं मिल पा रहा था डिलीवरी के लिए उसकी डिलीवरी डेट नज़दीक थी, मैंने एक दो लोगो से पता किया लेकिन कुछ नहीं हो पाया, संयोग से मम्मी की मदिर में एक सहेली बनी थी उन्होंने बताया की उनके पास एक नर्स है जो घर में ही आसानी से डिलीवरी करा देगी, खर्चा भी बच जायेगा और परेशानी भी, मैंने ये बात साजिद को बताई, वो अब अच्छा कमाने लग गया था, पहले तो उसने मना किया लेकिन कोई और विकल्प ना देख कर मान गया, मम्मी और नर्स ने मिलकर राबिया की डिलीवरी कराई, सब सकुशल हो गया, भगवान ने उनको एक प्यारा सा बेटा दिया था, दो दिन बाद वो नर्स अपने घर चली गयी तब राबिया अकेली हो गयी, साजिद ने मुझे कॉल कर के रिक्वेस्ट की कुछ दिन उसके घर रुकने की जब तक की राबिया थोड़ा बहुत चलने फिरने ना लगे,

मम्मी को भी साजिद और राबिया की आदत पंसद आयी थी तो मैं एक सप्ताह के लिए राबिया के घर रहने चली आयी, मैंने हर रोज़ सुबह में उसको खाना खिला कर और अपना खाना पैक कर ऑफिस चली जाती थी, दिन में मोहल्ले की एक दो महिला आकर उसकी मदद कर देती थी और रात में मैं उसी पास सोती और उसकी सहायता करती, एक एक सप्ताह करते करते लगभग मैं एक महीना उसके घर रह गयी, अब मेरा भी दिल लगने लगा था, पुरे घर में राबिया और अयान के अलवा और कोई नहीं था, फिर मैंने एक रात साजिद से बात की, मैंने उसको बोला दादी के जाने के बाद मेरा मन नहीं लगता अपने घर में अगर उसको दिक्कत ना हो तो मैं कुछ टाइम उसके घर रह लुंगी और जो उसके किराये में से कुछ किराया मैं चूका दिया करुँगी, ये सुन कर दोनों मिया बीवी पागल हो गए, साजिद जो खुद राबिया के अकेले रहने के कारण चिंतित रहता था वो झट मान गया लेकिन इस शर्त पर की वो कोई किराया नहीं लेगा, बस उसके लिए यही बहुत था की उसकी बीवी और बेटा अकेले नहीं थे।

उस दिन के बाद से मै पर्मनेंट्ली राबिया के घर में शिफ्ट हो गयी, वैसे भी शाजिद दो साल में आएगा, जब वो आता तब तक मैं अपना कोई और इंतिज़ाम कर लुंगी , राबिया के साथ शिफ्ट करने से अब पापा वाला डर ख़तम हो गया था लेकिन दीपक का पन्गा अभी तक था, वो रोज़ किसी ना किसी बहाने से मेरे ऑफिस के बाहर अधमाकता और फिर वही ज़िद दुहराता रहता की तुझे मैंने और किसी का होने नहीं दूंगा।

मैं रोज़ दीपक के साथ ऑफिस से सीधा अपने घर आती हूँ और वहा मम्मी के पास कुछ समय गुज़ार कर वापिस राबिया के घर चली जाती हूँ।
यही आजकल मेरा रूटीन है, राबिया के घर में होने के कारण मैं आपसे भी ज़ायदा बात नहीं कर पाती क्यूंकि मुझे घर आकर अयान का भी धयान करना होता है और रस्ते में दीपक के कारण भी बात नहीं कर पाती आपसे ,

आपने जब अब ये घूमने चलने के लिए कहा तो मैं इसीलिए झट से तैयार हो गयी क्यूंकि मैं खुद आपके साथ समय गुज़ारना चाहती थी लेकिन मेरे जीवन में इतने बखेरे है की मैं उन्ही में उलझी रह गयी, और अब जो ये मौका मिला तो आज मैं आपके साथ इस खूबसूरत होटल में अपनी ज़िन्दगी के सबसे अच्छे पल बिता रही हूँ , इतना कह कर चन्द्रमा खामोश हो गयी।
 
चन्द्रमा तो अपनी कहानी सुना कर चुप हो गयी थी लेकिन मेरे दिमाग में उथल पुथल चालू थी, चन्द्रमा की कहानी के बीच में ही चद्र्मा को चोदने वाली प्लानिंग हवा हो चुकी थी, जिस लड़की को अभी कुछ घंटे पहले ही बिस्तर में रगड़ कर मज़ा लिया था और आज चोद कर इस कली को फूल बनाने का पूरा इरादा था अब वो इरादा दूर दूर तक कहीं नहीं था, माना की मैं चन्द्रमा को जयपुर चोदने के लिए लाया था लेकिन अब मन में वही फीलिंग्स जाग गयी थी जो चन्द्रमा के लिए जागी थी जिस दिन मुस्कान उसके साथ आयी थी,

मैंने चन्द्रमा की ओर देखा उसी उसी तरह मेरे सीने से गाल टिकाए लम्बी लम्बी साँसे ले रही थी, लगातार कई घंटो से वो अपनी आप बीती सुनाने के लिए बोलती जा रही थी, शायद अब कुछ छन बिना बोलें चुप रहना चाहती थी, मैंने उसके चेहरे की ओर देखा, उसका चेहरा सफ़ेद धुला हुआ लग रहा था आँखे सोंच में डूबी हुई, मैंने हौले से उसके चेहरे को ऊपर उठा कर माथे पर एक हल्का सा किस किया और उसके कंधो पर हाथ सहलाते हुए कहा " आई ऍम सॉरी चन्द्रमा मुझे थोड़ा भी अंदाज़ा नहीं था की तुम्हारे जीवन में इतना कुछ चल रहा है, काश की तुमने मुझ पर थोड़ा और विश्वास किया होता तो शायद मैं तुम्हारे लिए कुछ करता , मैं कोई फिल्म का हीरो नहीं हूँ जो चुटकी बजा कर तुम्हारी सारी समस्या दूर कर दू लेकिन कम से कम तुम्हारे दुःख का साथी बनने की कोशिश ज़रूर करता, लेकिन फिर भी मैं तुम्हारा शुक्रगुज़ार हूँ जो तुमने मुझे अपनी कहानी बता कर अपनी लाइफ में इन्वॉल्व किया,

बस यहाँ एक सच्चाई मैं तुमको भी बताता चालु की जब शरू में हम मिले या बात हुई तब मेरे मन में ऐसा कुछ खास नहीं था, तुमको मैंने बताया था की मेरा ब्रेकअप हुआ था तो मैं बस किसी ऐसे इंसान की तलाश में था जो मेरा दिमाग नीलू की ओर से हटा सके, लेकिन उस दिन मक्डोनल्ड में बातें करते करते जब तुमने मेरी आँखों में आँखे डाल कर बिना बोले जो इशारे किये वो मेरे मन में तुम्हारे लिए एक अलग स्पेशल वाली फीलिंग्स जगा गए लेकिन बाद में जब तुम्हे मैंने दीपक के साथ देखा और महसूस किया की तुम मेरे साथ टाइम पास कर रही हो तो मैंने मन से वो फीलिंग्स हटा दी और कल तुमको जयपुर मैं इसीलिए लेकर आया था की अगर मेरे साथ तुम्हारा मन भी मज़ा लेने का है तो मैं तुम्हारे साथ मज़े वाला रिलेशन ही रखूँगा लेकिन अब मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया की मैं कितना गलत था और मेरी सोच कितनी घटिया हो चुकी है, इसलिए मैं तुमसे हाथ जोड़ कर माफ़ी मांगता हूँ अपनी हरकतों के लिए जो मैंने कल से लेकर अब तक की है, मैं तुमको विश्वास दिलाता हूँ की मैं तुमको बिना तुम्हारी मर्ज़ी के हाथ भी नहीं लगाऊंगा।

इतना बोल कर मैं भी खामोश हो गया, चन्द्रमा बिना कुछ बोले मेरी गोद से सरक कर बिस्तर पर बैठ गयी थी, मैंने उसकी ओर सवालिया नज़रो से देखा तो उसने वाशरुम की ओर इशारा किया और बिस्तर से उठ कर वाशरूम चली गयी, उसके जाने के बाद मैं टाइम देखने के लिए मोबाइल टटोल ही रहा था की साइड टेबल पर रखा फ़ोन बजने लगा, मैंने फ़ोन उठाया तो कॉल रिसेप्शन था, " सर आठ बज चुके है और ब्रेकफास्ट डाइनिंग हाल में लग चूका है आप ब्रेकफास्ट के लिए जा सकते है लास्ट कॉल 10.३० का है"

मैंने थैंक यू बोल कर फ़ोन रख दिया इतने में चन्द्रमा बाथरूम से वापस आगयी और सवालिया निगाहो से पूछने लगी की किसकी कॉल है ?
मैंने उसको बताया की रिसेप्शन से है और ब्रेकफास्ट के लिए बुलाया है लास्ट टाइमिंग 10.३० है उसने कहा की मना कर दो हम बहार खा लेंगे यहाँ महंगा होगा, मुझे उसके भोलेपन पर हसी आगयी, मैंने उसको समझाया की मैंने रूम विथ ब्रेकफास्ट बुक कराया है ब्रेकफास्ट की पैसे जा चुके है चाहे हम खाये या ना खाये।

अभी केवल आठ ही बजे थे अभी बहुत टाइम था वो वापिस आकर बिस्तर में घुस गयी थी शायद इतनी देर से बैठी बैठी थक गयी थी लेकिन मैं बिस्तर से उठ गया, मुझे अब उसके साथ लेटते हुए अजीब लग रहा था, और फ्रेश होने वाशरूम चला गया, फ्रेश हो कर वापस आया तो डेल्हा चन्द्रमा आँखों पर हाथ रखे लेती हुई है, मैंने पूछा की सो रही हो क्या तो उसने कहा नहीं बस लेती हुई हूँ सर दर्द है थोड़ा, मैंने उससे चाय का पूछा तो उसने हाँ कर दी मैंने केतली में पानी डाल कर गरम करने के लिए रख दिया और मग धो कर उसके लिए चाय बना कर दे दी साथ में कुछ कुकीस भी दे दी जो होटल वालो ने ही टी कैटल के साथ रखी थी, वो कुकीस देख कर कर बिस्तर से उठ गयी और जल्दी से फिर से वाशरूम जा कर ब्रश कर के आगयी, मैंने ब्रश नहीं किया था इसलिए मैंने चाय नहीं पि और अपने बैग से ब्रश निकल कर ब्रश करने लगा तब तक चन्द्रमा ने चाय और कूकीज ख़तम कर ली थी और वापिस बिस्तर से तक लगा कर लेट गयी थी , मैंने भी आराम से ब्रश किया और ऑफिस में कॉल करके स्टाफ को कुछ चीज़े समझा दी, मैं नहीं चाहता था की जब मैं चन्द्रमा के साथ घूमने बहार जाऊ तो स्टाफ कॉल करके दिमाग ख़राब करे ,

सब चीजों से फ्री हो कर मैंने अपने बैग से अपने कपडे और टॉवल निकला और बाथरूम में घुस गया, मैंने बाथरूम को लॉक नहीं किया था, ये कल से हम दोनों जब भी वाशरूम गए थे किसी ने भी लॉक नहीं किया था क्यूंकि रूम में केवल हम दोनों ही थे और हम दोनों ने ही वाशरूम ताका झांकी तो करनी नहीं थी फिर डर कैसा , मैंने वाशरूम में आकर अपने कपडे उतरे और केवल अंडरवियर और बनियान में वाशरूम में जाकर गरम पानी चेक करने लगा, रात में मैंने जो चद्र्मा के साथ मज़े लेने का प्लान बनाया था उस में मैंने ac को बहुत चिल्ड किया हुआ था जिसके कारण शरीर ठंढा था और शावर का पानी ठंडा लग रहा था और मैं हलके गुनगुने पानी से नहाना चाहता था,

वाशरूम में शावर थोड़ा अलग था इसमें ३ ओर से पानी आता था, लेकिन तीनो ओर के पानी और गरम पानी को चलाने के लिए केवल एक ही लिवर था तो उसको एडजस्ट करने में ही मैंने लगभग १० मिनट लगा दिया और ऊपर से पूरा भीग भी गया, मुझे आजतक समझ नहीं आया की होटल में शॉवर को इतना कम्प्लीकेटेड क्यों बनाते है, खैर जैसे तैसे मैंने शावर अपनी पसंद अनुसार सेट किया और अपने और चलते शावर से थोड़ा हट कर गीला बनियान उतरने लगा लेकिन पता नहीं कब गले में पड़ी तुलसी माला मेरी बनियान के पट्टे में उलझ गयी,

अब हालत ये थी की बनियान उलटी होकर मेरे मुँह और नाक को ढके हुई थी और मेरे दोनों हाथ बनियान में फसे हुए हवा में उठे हुए थे और गले में पड़ी माला बनियान से उलझ कर टूट कर बिखरने को तैयार, अजीब स्तिथि थी, गजब झल्लाहट हो रही थी, एक तो पहले ही गरम पानी को सेट करने में टाइम लगा और अब ये, मन हुआ की चन्द्रमा को आवाज़ दू लेकिन फिर याद आय की अभी तो इतने लम्बे चौड़े वादे किये है की अब ऐसी वैसी हरकत नहीं करूँगा और अब वो ऐसे देखगी तो यही समझेगी की मैंने जान बुझ कर ऐसा किया है, दूसरा रास्ता ये था की मैं एक झटके से बनियान को खींच दू लेकिन इस स्तिथि में तुलसी माला टूट जाती, मैं कोई बहुत ज़ायदा धार्मिक व्यक्ति नहीं हूँ इसलिए माला के टूटने का मुझे कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन समस्या ये थी की ये माला मेरी मा किसी बाबाजी से लेकर आयी थी और अगर ये माला टूट जाती तो उनको बड़ा दुःख होता,

मैं अभी इसी उपहोह में था की अचानक मुझे अपने गले पर एक कोमल हाथ का स्पर्श महसूस हुआ और उस हाथ ने हलके से पकड़ कर तुलसी माला मेरे बनियाना से अलग कर दिया और बनियान मेरे मुँह से ऊपर करने में मदद किया, बनियान मुँह से हट ते ही मैंने बनियान एक ओर उछाल दी और पलट कर देखा तो सामने चन्द्रमा सामने खड़ी थी, और क्या क़यामत लग रही थी डार्क मेहरून मैचिंग ब्रा और पेंटी में, उसके होंठों पर एक कातिलाना मुस्कान थी, मैं उसकी ओर देखा तो तो बस देखता रह गया, उसका गोरा बदन उस मेहरून ब्रा पैंटी में चाँद के जैसे खिल रहा था, उसने मेरी हैरत भरी निगाहो की ओर देखा और शरारत भरे अंदाज़ में बोली " इतने बड़े हो गए हो लेकिन अभी तक कपडे उतरना भी नहीं आया ?"

मैंने भी बिना कुछ सोचे समझे उसके कमर में हाथ डाला और अपनी ओर खींच लिया, वो भी बिना किसी विरोध के खींचती चली आयी और मेरी भीगी छाती से चिपक गयी , मैंने उसके कान में शरगोशी करते हुए कहा " तुम हो ना तुम सीखा देना कपडे उतरना भी और पहनना भी "

इतना सुन कर वो मेरी बहाने में सिमटी चली गयी और मैंने झुक कर अपने होठ उसके गुलाबी होंटो पर रख दिए, उसने हल्का सा धक्का दिया तो हम दोनों शावर के नीचे आगये लेकिन मैंने किस को टूटने नहीं दिया था मैं उसकी कमर में हाथ डाले उसके रसीले होंटो को किसी मिश्री के डेल के जैसे चूस रहा था ओर वो भी मजे से अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल डाल को मुझे किस करने में पूरा सहयोग दे रही थी,

शावर के नीचे होने के कारण हम दोनों भीग रहे थे लेकिन इस भीगने से कही ज़ायदा हम दोनों मस्ती की दुनिया में डूब चुके थे, मैंने उसके होंटो को चुभलाते हुए उसकी कमर और जांघो को सहला रहा था ओर वो भी अपनी नंगी जांघो को मेरे जांघ और अंडरवियर में छुपे लुण्ड पर घिस का अनोखा मज़ा दे रही थी, मैंने अपने दोनों हाथो को उसकी जांघो पर पंहुचा कर उसको ऊपर उठाने की कोशिश की तो वो इशारा समझ गयी और उसने झट उचक कर अपने पेअर उठा कर अपने झांघो को मेरी कमर से लपेट कर मेरे शरीर से किसी बंदरिया के जैसे चिपक गयी, मैं उसके शरीर को संभाले हुए बाथरूम की दिवार से टिका दिया, उसकी पीठ बाथरूम की दिवार से लगी हुई थी और टांगे मेरी कमर पर, अब मेरे दोनों हाथ आज़ाद थे मैंने अपने हाथो को उसके हाथो के नीचे से निकल कर उसकी सामने की ओर तानी हुई चूचियों को दबोच लिया, उसकी चूचियों को दबोचते ही चन्द्रमा के मुँह से एक आह निकल गयी और मैंने किसी बेसबर इंसान के जैसे उसको मेहरून लैस वाली ब्रा को खींच कर गले की ओर सरका का उसकी नरम मुलायम लेकिन तनी चूचियों को ब्रा की कैद से आज़ाद कर दिया, शावर का पानी कहो या चन्द्रमा के ऊपर चढ़ी हुई मस्ती की चन्द्रमा के निप्पल्स खड़े हो कर लम्बे अंगूर जैसे फूल चुके थे, मुझसे बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था, मैंने बिना देरी किया झट से उसके गुलाबी निप्पल्स को अपने मुँह में लेकर चूसना स्टार्ट कर दिया, मेरे होटो का चन्द्रमा के निप्पल्स को छूना था की चन्द्रम मज़े से पागल होकर कराहने लगी, जितना वो तड़पती कराहती मैं उतनी ही बेसब्री दिखते हुए उसकी चूचियों को निचोड़ निचोड़ कर उनका रस पीता, मैं कभी चन्द्रमा की चूचियों को दबाता, कभी रगता और कभी अपनी जीभ से चन्द्रमा के निप्पल्स चाट चाट कर और ज़ायदा कड़क करता और फिर चुकी को पूरा मुँह में भर कर चूस जाता,

चन्द्रमा भी नीचे से पूरी बेचैनी के साथ अपनी कमर चला रही थी और अपनी पानी से सराबोर पैंटी के ऊपर से ही मेरे लण्ड पर दबाव बना कर घिस रही थी , मेरा लुंड अंडरवियर के अंदर से ही चन्द्रमा के चूत की गर्मी को महसूस करके उबाल खा रहा था और आज़ाद करने की दुहाए दे रहा था, मैंने भी ज़ायदा देर ना करते हुए चन्द्रमा की चूची से एक हाथ हटा कर अपने अंडर वियर को ससार कर अपनी कमर से नीचे किया और बाकी का काम टांगों ने आगे पीछे हो कर अंडरवियर को फर्श तक पंहुचाकर कर दिया,

मैंने वापिस से हाथ चन्द्रमा की कमर तक पहुचाये और उसकी मस्त चूतड़ों को सहलाते हुए हुए पैंटी को चींचने लगा लेकिन चन्द्रमा की टांगे मेरी कमर से लिपटी हुई थी तो उसकी पैंटी को हटाना संभव नहीं हो पाया, मैंने एक बेचारगी वाली निगाहो से चन्द्रमा की ओर देखा तो उसके मुख पर एक मुस्कान आयी, उसने धीमी आवाज़ में कहा, "नहीं उतर रही तो साइड में कर लो," मैं इशारा समझ गया और झट से हाथ डाल कर उसकी पेंटी को चूत के मुँह पर से हटा दिया,

मैं इस पोसिसन में उसकी चूत को नहीं देख सकता था लेकिन उसकी गर्मी को अच्छे से महसूस कर सकता था, उसकी पानी में भीगी चूत किसी भट्टी के जैसे जल रही और थी, मैंने उसकी चूत पर हाथ फेरा तो मेरी पूरी हथेली उसके चूत रास से भर गयी, मेरा लुंड तो पहले से ही आज़ाद था, मैंने लुंड सीधा चन्द्रमा की चूत पर लगाया और नंगी चूत का नंगे लण्ड से मिलन करा दिया,

मैंने अपना लण्ड चन्द्रमा की चूत और पैंटी के बीच फसा कर उसकी चूत के होंठ और क्लीट को अपने लण्ड से रगड़ना जैसे ही चालू किया, चन्द्रमा मज़े से बिलबिलाने लगी और और हाफ्ते हुए अपनी कमर हिला हिला आकर अपनी चूत को मेरे लण्ड पर घिसने लगी, मेरा लण्ड भी बेहाल हुआ जा रहा था, मैंने अपने दोनों हाथो से चन्द्रमा की चूचियों को मसलते हुए बिना लण्ड उसकी चूत में घुसाए ऊपर से ही उसके चूत और क्लीट को रगड़ लगाते हुए धक्के मार रहा था, चन्द्रमा की सांसे तेज़ होने लगी थी और मेरा लण्ड भी अब चन्द्रमा की चूत में जाने को बेहाल था

मैंने अपना एक हाथ नीचे कर चन्द्रमा की चूत के मुँह पर अपने लुंड का टोपा जैसे ही टिकाया वैसे ही चन्द्रमा ने नीचे से एक धक्का लगाया और लण्ड हल्का सा चन्द्रमा की चूत में घुस गया, इतना घूसते ही चन्द्रमा की चीख निकल गयी, लेकिन ये चीज़ अजीब थी इसमें दर्द भी था और मदहोशी भी, चीखते हुए चन्द्रमा मेरे सीने से चिपक गयी और लम्बी लम्बी सांसे लेने लगी, मैं समझ गया चन्द्रमा का पानी निकल गया, लेकिन कैसे समय पर जब मैं अपना लण्ड उसकी चूत में घुसाने ही वाला था, अगर एक सेकंड भी और उसका पानी नहीं निकलता तो मेरा लण्ड चन्द्रमा की चूत में घुस चूका होता,

इसी स्तिथि को शास्त्रों में खड़े लुंड पर धोका कहा गया है, चन्द्रमा का शरीर ढीला हो गया था और वो मेरे कंधो पर सर टिकाये खुद को रिलैक्स कर रही थी, कुछ पलो में जब उसे होश आया तो झट ने नीचे फिसली और गोद से उतर गयी, उसके शरीर के हिलने से लण्ड चूत के लिप्स को छोड़ कर बहार निकल आया था और झटके खा रहा था, चन्द्रमामुझसे एक कदम दूर हो कर जल्दी जल्दी अपनी ब्रा और पैंटी ठीक करने लगी और जब सब ठीक हो गया तो मेरी ओर देखा लेकिन उसकी निगाहे मेरे लण्ड पर थी गयी और लण्ड को बड़े धयान से देखने लगी, पहली बार चन्द्रमा ने मेरे लण्ड को गौर से देखा था, कुछ पल देखते रहने के बाद मेरे पास आयी और धीरे से बोली "ये कब तक ऐसे ही रहेगा ?"
मैं : जब तक इसका काम नहीं हो जाता
चन्द्रमा : अभी इतना सब कुछ तो किया अब और क्या चाहता है ये ?
मैं : ये इसके अंदर सामना चाहता है (मैंने उसकी चूत की ओर इशारा किया )
चन्द्रमा : अभी घुस तो गया था ?
मैं : इसे घुसना नहीं कहते, जब पूरा अंदर चला जायेगा तब असली घुसना कहलायेगा
चन्द्रमा : हम्म, अच्छा अब इसे शांत करो, घने का बाद में देखंगे, अभी मैंने एक वादा पूरा किया शावर में नहाने का
मैं : हाँ लेकिन अभी नहाया कहा है अभी तो नहाना स्टार्ट किया है, और ये ऐसे शांत नहीं होगा तुमको हेल्प करनी होगी
चन्द्रमा : ठीक है कर दूंगी, ये भी क्या याद रखेगा, ये बस रात से परेशां है इसीलिए करुँगी हेल्प इसकी

मैं इतना सुन कर ख़ुशी से फुले नहीं समाया, अभी थोड़ी देर पहले वाला सारा गयान की बेचारी के साथ बड़ा अत्याचार हुआ है, इसको नहीं चोदूगा , ब्लाह बलाह, सब गायब हो गया था, अब तो बस चन्द्रमा का मेहरून ब्रा पैंटी में सजा गोरा शरीर था और उस के पीछे छुपी हुई चूचियां और चूत,

मैंने आगे बढ़ कर चन्द्रमा को फिर से अपनी ओर खींच लिया और और उसके गुलाबी शरीर को चूमने लगा, चन्द्रमा भी मेरे शरीर से चिपकी अपनी ब्रा में कैद चूचियों को मेरी छाती पर रगड़ रही थी और मैं उसके चूतड़ों पर हाथ जमाये उसके चूतड़ों को मसल रहा था, मैंने पैंटी को खिसका कर उसकी गांड की दरार में घुसा दिया था और उसकी गोरी नंगे चूतड़ों को मुट्ठी में ले कर मसलने लगा,

चन्द्रमा की साँसे फिर से भारी होने लगी थी मैंने उसके हाथ को पकड़ कर नीचे ले गया और उसके हाथ में अपना लण्ड दे दिया, चन्द्रमा का हाथ लगते ही लण्ड फुफकारने लगा और मेरे मन में एक अनोखी शांति सी मिल गयी, कुछ देर तक चन्द्रमा मेरे लण्ड से खेलती रही, कभी पकड़ती फिर छोड़ देती, लेकिन जब मैंने उसके हाथ में लण्ड पकड़ा कर आगे पीछे किया तो वो समझ गयी की मैं क्या चाहता हूँ, उसने अपने कोमल हाथो में लण्ड को पकड़ कर जैसे ही आगे पीछे करना शरू किया मेरे मुँह से सिसकारियां निकलने लगी, उसे मेरी सिसकारियों से अंदाज़ा हो गया था की मुझे इसमें मज़ा आरहा है तो चन्द्रमा ने मेरे लण्ड को हिलना तेज़ कर दिया, जिस गति से वो मेरा लण्ड हिला रही उतनी ही गति से मेरी मज़े से भरी सिसकारियां निकल रही थी, मैंने दीवार से टेक लगा ली और चन्द्रमा अब मेरे सामने झुकी हुई मेरे लण्ड की मुठ मार रही थी और मैं मज़े के सागर में डूबा हुआ था,

मैंने हाथ बढ़ा आकर चन्द्रमा की ब्रा खींच कर उसकी चूचियों को आज़ाद किया और चन्द्रमा को अपने पास खींच कर उसकी चूचियों का रस पीने लगा, पास आने के कारण चन्द्रमा के हाथ की स्पीड कम हो गयी लेकिन मैं उसकी चूचियां पीने में लगा रहा और चूची पीते पीते उसकी पैंटी खींच कर उसकी चूत को नंगा कर दिया, चन्द्रमा मेरे सामने अपनी नंगी चूत को अपनी जांघो के बीच में दबाए खड़ी थी, मैंने अपने हाथ से पकड़ कर उसकी जांघो को अलग किया, क्या चूत थी, सांवली चिकनी चूत, जैसे 1-२ दिन पहले ही झांटो को साफ़ किया गया हो, चूत के होंठ एकदम कैसे हुए, इतने कैसे हुए की चूत के अंदर के होंठ दिखाई ही नहीं दे रही थे, चूत फूली हुई और चूत रस से भरी हुई थी, मैंने जैसे ही अपनी ऊँगली से चूत के बाहरी होठो को खोला एक हलकी पट की आवाज़ निकली और ढेर सारा लार जैसा रस बहार निकल आया,

इतनी प्यारी चूत को देख कर सबर करना मूर्खता थी, मैं फट से बाथरूम के फर्श पर बैठ गया और चण्द्रमा की चूत को अपने मुँह में लेकर भर लिया, अब सिसकारने की बारी चन्द्रमा की थी, मैं पूरी तन्मन्यता से चन्द्रमा की चूत को चाट रहा था और अपनी जीभ उसकी चूत के अंदर घुसा घुसा कर उसकी कड़क चूत को चोद रहा था, चन्द्रमा अपनी चूत चटाई से बावली होती हुई अपने जिस्म को अकड़ा रही, लेकिन मैं उसी प्रकार उसकी चूत को चाटता रहा, कुछ देर चाटने के बाद मैंने अपने दोनों हाथो से उसके चूत के होंटो को फैला आकर उसके क्लीट को मुँह में ले लिया और चुभलाने लगा, चन्द्रमा मज़े से पागल होते हुए मेरे सर को अपने हाथो में पकड़ कर अपनी चूत में घुसाने लगी और फिर कुछ पलो के बाद ज़ोर ज़ोर से अपनी चूत आगे पीछे करके मेरे मुँह पर धक्के मरने लगी जैसे अपनी चूत से मेरे मुँह को चोद रही हो, कुछ सेकंड ये खेल और चला और फिर चन्द्रमा एक बार और भरभरा कर स्वखलित हो गयी और कपकाते पैरो के साथ फर्श पर ढेर हो कर बैठ गयी,

उसकी आँखे बंद थी जैसे नशे में हो, कुछ एक मिनट बाद उसने आँखे खोली और मुझे अपने सामने लण्ड हाथ में पकडे देख कर मुस्कुराने लगी, जमीन पर बैठे बैठे खिसक कर मेरे पास आयी और लण्ड को अपने हाथ से वैसे ही हिलाने लगी जैसे अभी कुछ देर पहले हिलाया था,

लण्ड हिलाते हिलाते चन्द्रमा एक पल के लिए रुकी जैसे कुछ सोच रही हो और अचनाक झुक कर लण्ड सीधा अपने मुँह में गप से घुसा लिया, मैं तो मानो स्वर्ग में था, चन्द्रमा पूरी तन्मन्यता से मेरे लुण्ड को चूस रही थी और मैं मज़े की दुनिया में सैर कर रहा था, कल दिन से अब तक मेरा लण्ड अकड़ा रहा था लेकिन चन्द्रमा ने जो ये अनोखा काम किया था इसने मेरे लुण्ड को शांति दे दी थी, मुझसे चन्द्रमा के मुँह की गर्मी अपनी लण्ड पर बर्दास्त नहीं हो रही थी, मैंने चन्द्रमा के सर को अपने हाथो में थमा और नीचे से अपनी कमर उठा उठा कर धक्के मारने लगा,

मुश्किल से 8-१० धक्को में ही लण्ड पानी निकलने को तैयार हो गया, मैंने चन्द्रमा के मुँह को अपने लण्ड से अलग किया और और लण्ड उसके हाथ में पकड़ा कर मुठ मारने को कहा, दो चार बार ऐसा करते ही मेरे लण्ड से ज़ोर की पिचकारी निकली और और हवा में ऊपर जाकर वापिस मेरे झांघो पर आ गिरी, कुछ ३० सेकंड तक लण्ड झटके खाता रहा और अपना रस गिरता रहा, चन्द्रमा ये सब बड़े धयान से देख रही थी, कुछ देर मैं मैं शांत हो गया, शॉवर का पानी वीर्य बहा ले गया था और हम दोनों बाथरूम के फर्श पर बैठे एक दूसरे को प्यार भरी नज़रो से देख रहें थे ,

कुछ देर हम दोने उठे और उसी नग्न अवस्था में साथ साथ नहाया और फिर तैयार हो कर ब्रेकफास्ट करने होटल के डॉयनिंग रूम में चले गए।
 
डाइनिंग रूम में ज़ायदा भीड़ नहीं थी, ज़यादातर लोग ब्रेअकासट करके घूमने निकल चुके थे, हमने भी एक कोने की टेबल पकड़ ली और बैठ गए, बुफे वाला प्रबंध था और वो भी सेल्फ सर्विस तो मैं जा कर प्लेट में नाश्ता ले आया, मैंने हलकी फुलकी ही आइटम्स ली थी, एग्स और जूस आदि और चन्द्रमा के लिए मैंने पोहा , फ्रूट्स आदि लिया था, हम दोनों आमने सामने बैठ कर अपना अपना नाश्ता करने लगे, बाथरूम में हुई घटना के बाद चन्द्रमा ने एक पिंक कलर का टॉप और रेड कलर की शिफॉन की पैरेलल जैसा कुछ डाला था जो थोड़ा ढीला ढाला था ताकि बहार घूमने में ज़्यदा दिक्कत ना आये, बाथरूम वाली घटना के बाद से हम दोनों के ही चेहरे पर एक अलग से ख़ुशी थी जो छुपाये नहीं छुप रही थी, मूड एक दम तरोताज़ा था, मैंने चुप्पी तोड़ते हुए गाला खखारा और चन्द्रमा को सम्बोधित किया

मैं : वैसे आज तुमने गजब रूप दिखायाअपना
चन्द्रमा : (शर्मा गयी ) हम्म मममम
मैं : ये आईडिया आया कहा से एक दम अचानक, मुझे तो सपने में भी उम्मीद नहीं थी की तुम कुछ ऐसा करोगी
चन्द्रमा : हम्म बस बस ज़ायदा मत बोलो, ये देखो को मैंने अपना वादा पूरा किया
मैं : हां ये तो है, मुझे लगा था की शायद तुम टाल मटोल करोगी लेकिन वाक़ई अपने वचन की पक्की निकली
चन्द्रमा : वो तो मैं हूँ ही,
मैं : हां एक बात और, तुमने ये चोरी करना कब से सीखा ?
चन्द्रमा : मैंने क्यों करती चोरी, आप करते हो ऐसी हरकत
मैं : अच्छा जी, बड़ी चोर हो, मेरे बैग से ये ब्रा पैंटी का सेट चुरा आकर पहन लिया और और अब मुझ ही को चोर बोल रही हो
चन्द्रमा : अपनी चीज़ लेने को चोरी नहीं बोलते, मेरी थी इसलिए ले ली
मैं : हाँ थी तो तुम्हारे लिए ही लेकिन आखिर तुमको पता कैसे चला की मेरे बैग में तुम्हारे लिए ब्रा पैंटी रखी है ?
चन्द्रमा : हे हे, खुद को बड़ा चालक समझते हो आप लेकिन इतने समझदार हो नहीं
मैं : मतलब मैं समझा नहीं
चन्द्रमा : मतलब क्या, जब दुसरो के बैग की तलाशी लोगे तो बदले में दूसरा भी तो आपके बैग के तलाशी ले सकता है
मैं : तुमको कैसे पता चला की मैंने तुम्हारे बैग की तलाशी ली है, उस समय तो तुम बाथरूम में थी ना
चन्द्रमा : हाँ बाथरूम में ही थी लेकिन जब मैं बाथरूम से वापस आयी तो मुझे अपने बैग को देखते ही समझ आगया की अपने छेड़छाड़ की है
मैं : अच्छा क्या देख कर शक हुआ तुमको
चन्द्रमा : (निगाहे नीचे करके ) आपने तलाशी तो बड़ी सावधानी से लिया था लेकिन आप से एक गलती हो गयी थी, आपने जब मेरे कपडे वापस रखे थे तब आपने मेरी पैंटी को ब्रा के ऊपर रख दिया था जबकि नहाने जाने से पहले मैं अपनी पेंटी को अपनी ब्रा के नीचे छुपा कर गयी थी,

वापस आकर जब मैंने अपना बैग खोला तो मुझे समझ आगे की आपने ही तलाशी ली है, फिर आप जब बाथरूम गए तो मैंने आपके बैग की तलाशी ले ली, उसमे में ये महरून कलर की ब्रा पेंटी का सेट मिल गया, बस मैं समझ गयी की आप ये मेरे ही लिए लायो हो, आज जब आप नहाने गए तो मैंने चुपके से आपके बैग से निकाल कर पहन लिया और आपके पास बाथरूम में आगयी।

मैं : वाह ! बड़ी समझदार हो यार, कमल ही कर दिया तुमने तो
चन्द्रमा : क्यों आपको अच्छा नहीं लगा क्या मेरे खुद से निकाने पर
मैं : अरे नहीं नहीं, पागल हो क्या ? इससे अच्छा सरप्राइज तो और कुछ हो ही नहीं सकता, ये मैंने स्पेशली triamph से लिया था, सबसे सेक्सी और कम्फर्टेबले इन्ही के आते है इंडिया में, तुम्हे तो अच्छा लगा ना
चन्द्रमा : हम्म मस्त है, बहुत आरामदेह, लेकिन एक बात बताओ आपको मेरा साइज कैसे पता चला ?
मैं : है है है, हम लड़को की आईज में कैमरा है, ऐसी चीज़ो का साइज का अंदाज़ा झट से लगा लेते है हम
चन्द्रमा : बड़ा कमल का कैमरा है ये, और क्या क्या कर लेता है ?
मैं : तुम ऐसे ही सपारिजे देती रहो मैंने इसके कमाल दीखता रहूँगा
चन्द्रमा : बस बस आप रहने ही दो, अच्छा छोड़ो ये बताओ इतने बड़े होटल में बस ऐस सड़ा हुआ ही नाश्ता मिलता है क्या ?
मैं : नहीं सब कुछ है, जो तुमको चाहिए ?
चन्द्रमा : कुछ पराठा पूरी जैसा होता तो मज़ा आता, क्या ये फल फ्रूट जैसा नाश्ता भी कोई नाश्ता है
मैं : तो महारानी साहिबा उठिये कर घूम कर देखिए, यहाँ एक नहीं 2-३ टाइप के पराठे है, डोसा है, पोहा है, पूरी सब्जी है, पनीर है और पता नहीं क्या क्या, और खीर भी है
चन्द्रमा : आप भी ना , जब इतनी मस्त मस्त आइटम थी तो ये क्या रुखा फीखा नाश्ता लाये हो, रुको मैं लेकर आती हूँ

चन्द्रमा मेरे सामने से उठ कर काउंटर की ओर चली गयी और नयी प्लेट लेकर रुमे ढेर सारा खाना सजा लायी फिर प्लेट मेरे सामने रख कर मेरी प्लाट उठायी और उसमे भी ढेर सारा कहना ले कर आगयी, साथ में एक ग्लास ढूढ़ भी ले कर आयी थी।
मैं इतना खाना देख कर दांग रह गया,

मैं : अरे इतना नाश्ता कौन करता है यार
चन्द्रमा : चुप चाप खालो, अच्छे से पेट भर के, मैं भी ढेर सारा खाउंगी , फिर दिन में लंच नहीं करेंगे, लंच के पैसे बचा लेंगे,

मैं जो जूस पीते पीते उसकी बात सुन रहा था, अचानक उसका लोगिक सुन कर हंस पड़ा और मेरे मुँह से जूस के कुछ ड्रॉप्स टेबल पर चन्द्रमा के सामने जा गिरी, मुझे उसकी ये बात सुन कर बहुत हसी आयी थी, खैर मैं अपनी टेबल से उठा नैपकिन लाने के लिए क्यूंकि टेबल पर गिरी जूस की छींटे अजीब लग रही थी, मैं मैं टिस्शु लेकर वापस टेबल पर आया तो नोटिस किया की चन्द्रमा ने मेरी खाने की प्लेट सामने से उठा कर अपने साइड में रख ली है मुझे देख कर अपनी साइड में बैठने का इशारा किया, मैंने भी टिश्यू से जूस साफ़ कर चन्द्रमा के बगल में सोफे पर बैठ गया, डाइनिंग हाल में टेबल पर कुर्सिया भी थी और कुछ क्यूबिकल्स बने हुए थे जिसमे सोफे डालें थे, हम क्यूबिकल्स में ही बैठे थे,
मैं वापस टेबल पर बैठ कर धीरे धीरे अपना नाश्ता करने लगा, चन्द्रमा अब पुरे मन से खा रही थी, मैं मॉर्निंग में बहुत हल्का फुल्का खता हूँ तो मैंने थोड़ा खा कर जैसे ही जूस का गिलास उठाया तो चन्द्रमा ने रोक दिया और मेरे हाथ में दूध का गिलास थमा दिया

मैं : अरे जूस पीना है यार दूध नहीं
चन्द्रमा : नहीं जूस बेकार होता है, वैसे भी डिब्बे वाला है, दूध पियो इसमें शक्ति होती है
मैं : नाह, मुझे दूध कुछ खास पसंद नहीं है
चन्द्रमा : (आँखे नचा कर ) सच में ?
मैं : ( उसकी चालाकी समझ गया ) अरे मेरा मतलब ये वाला, बाकी फ्रेश मिल्क का तो मैं दीवाना हूँ
चन्द्रमा : हाँ पता है मेरेको, कैसे बेदर्दी से नोच के पीते हो, ज़रा भी तरस नहीं आता क्या आपको
मैं : अरे इसी में तो मज़ा है जानेमन, जब तुम्हारे जैसा मस्त दूध मिले पीने को तो हम जैसो की जवानी जानेमन हो जाती है,
चन्द्रमा : हम्म और दूध के साथ साथ और कुछ पि जाते हो आपतो, छी : गन्दा नहीं लगता आपको
मैं : अरे मेरी जान इसी सब से तो मज़ा बढ़ता है, वरना वो पुराने टाइम के जैसे केवल चुदाई करने से तो केवल बच्चे पैदा होते है , चुदाई के साथ साथ ये सारे खेल करने से चुदाई का मज़ा दुगना हो जाता है नेरी जानेमन समझी कुछ

मेरा इतना साफ़ साफ़ चुदाई सुन कर चन्द्रमा का चेहरा लाल हो गया, उसने बैठे बैठे ही मेरी जांघ पर एक तेज़ की चिकोटी काट ली,
मैं उफ़ करके कराह उठा, चन्द्रमा को ची लगा की शायद उसने ज़ायदा तेज़ चूंटी काटी थी इसलिए सॉरी बॉल कर जहा चूंटी काटी थी उसी जगह सहलाने लगी, दो चार बार तो उसने नोर्मल्ली सहलाया लेकिन फिर मुझे ऐसा एहसास हुआ की अब उसके सहलाने में कुछ बदलाव है, अब वो मेरी जांघ सहलाते सहलाते अपने हाथ मेरे लैंड की ओर ले जाती थी, हम दोनों जहा बैठे थे वह से हमे कोई देख नहीं सकता था साथ ही सोफे और टेबल के बीच में जगह बहुत कम था इसलिए टेबल के नीचे क्या हो रहा है वो सामने बैठे व्यक्ति भी जल्दी से पता नहीं चल सकता था, जैसे ही मुझे उसके सहलाने में एक सेक्स वाली फीलिंग महसूस हुई तो मैंने भी बिना एक पल गवाए अपना हाथ सोफे के नीचे ले गया और चन्द्रमा की जांघ पर रख कर धीरे धीरे सहलाने लगा, उसका पैरलल ढीला था तो मुझे सहलाने में बहुत आसानी हो रही थी, मैंने भी उसकी जांघ सहलाते सहलाते अपना उसकी चूत की ओर सरका तो उसने एक अजीब सी वासना भरी मुस्कान से मेरी ओर देखा, उसकी मुस्कान ने मुझे ग्रीन सिग्नल दे दिया था, अब मैं एक हाथ से फोर्क उठाये अपने खान की प्लेट की और देख रहा था ओर दूसरे हाथ को सरका कर चन्द्रमा के पैरलेल के अंदर घुसा दिया, पैरेलल इलास्टिक वाला था इसलिए कोई परेशानी नहीं हुई और मेरा हाथ चन्द्रमा के चुड़तो पर घुमने लगा, देखने वालो को यही लगता की हम दोनों अपना नाश्ता कर रहे है लेकिन असलियत में चन्द्रमा का हाथ मेरी जीन्स के ऊपर से मेरे लण्ड को सहला रहा था और मेरा हाथ पेंटी के ऊपर से चन्द्रमा की चूत को सहलाने का मज़ा भोग रहा था, ये खेल हम दोनों लगभग १० मिनट तक खेलते रहे की तभी हमने एक जोड़े को अपनी ओर आते देखा तो मैनो हम दोनों नींद से जागे और और जल्दी से हाथ बहार निकल कर अपना नाश्ता ख़तम करने में जुट गए, मैंने जल्दी से नाश्ता ख़तम किया और दूध का गिलास उठा कर मुँह से लगा लिया, फिर एक आँख मार कर चन्द्रमा से कहा
"ये सुहागरात वाला दूध तो पिला दिया है, बस अब जल्दी से चलो कमरे में और सुहागरात की बाकि के रस्मे भी पूरी कर दो।

चन्द्रमा ने भी मेरी ओर देखा और फिर से हाथ सोफे के अंदर घुसा आकर मेरे लण्ड को जीन्स के ऊपर से दबा कर रज़ामंदी दे दी।
 
हम दोनों ने जल्दी जल्दी नाश्ता ख़तम किया और उठ गए, हमारा इरादा नाश्ते के बाद पहले बाहर घूमने जाने का था लेकिन डाइनिंग हॉल में नाश्ते के दौरान हुई छेड़ छाड़ ने शरीर में आग फिर से भड़का दी थी, वैसे भी आज चन्द्रमा कुछ अलग ही मूड में थी, मुझे तनिक भी अंदाज़ा नहीं था की वो इतनी जल्दी इतना खुल जाएगी की भरे डाइनिंग हॉल में इतनी बोल्ड हो कर लण्ड रगड़ देगी वो भी बिना किसी की परवाह किये हुए और साथ ही जब मैंने उसकी पेंटी के अंदर हाथ डाल के चूत को रगड़ा था तब भी उसने कोई खास विरोध नहीं किया था, बल्कि एक दो बार जांघ भींचने के बाद उसने खुद अपनी टांगे फैला कर मेरी उँगलियों को चूत तक पहचने में मदद कर दी थी , खैर मुझे क्या इससे ज़ायदा क्या चाहिए था, वो जितना मस्ती करती मुझे उतना उसकी चूत चोदने को मिलती,

हम डाइनिंग रूम से सीधा अपने कमरे की ओर आगये, मैंने डोर ओपन किया तो चन्द्रमा रूम के अंदर चली और बेड की साइड वाल पर लगे बड़े से आइने में खुद को निहारने लगी, मैंने डोर लॉक करके अंदर आया और चन्द्रमा के पीछे खड़ा हो गया, चन्द्रमा ने आईने मुझे अपने पीछे खड़ा देखा तो झट से पलट गयी और मेरे सामने अपना चेहरा करके खड़ी हो गयी, इससे पहले की मैं उसको हग करता और अपने गले से लगता की उसने मुझे अचानक पीछे की ओर धक्का दे दिया, मैं इसके लिए तैयार नहीं था इसलिए सीधा पीछे की ओर बेड पर गिर गया,
मैंने संभालता इससे पहले चन्द्रमा झपट कर बेड पर चढ़ गयी और अगले ही पल वो मेरे पेट पर चढ़ मेरी आँखों में झुक कर देख रही थी, उसकी आँखों में मस्ती के लाल डोरे साफ़ दिख रहे थे मैंने भी नीचे से अपनी गर्दन को ऊपर उठा कर उसके होंटो किस करने की नाकाम सी कोशिश की, चन्द्रमा मेरे ऊपर किसी भूखी शेरनी सी बैठी अपनी कमर चला कर अपनी गर्म चूत को कपड़ो के ऊपर से ही रगड़ने लगी थी, सेक्स की गर्मी उसके मासूम चेहरे पर छायी हुई थी, उसका चेहरा तप रहा था और इस वक़्त उसके चेहरे की सारी मासूमियत गायब थी,

मैंने हाथ बढ़ा कर किसी तरह से चन्द्रमा को अपनी ओर खींचा और उसके तपते हुए होठो को अपने होंठो में लेकर चूसने लगा, चन्द्रमा और मैं एक दूसरे को पागलो की तरह चूस रहे थे और चाट रहे थे, कुछ देर बाद चन्द्रमा ने किस तोडी और ऊपर की ओर उठी, मैंने भी अपना हाथ बढ़ाया चन्द्रमा की गोलाईंयो को थामने के लिए लेकिन उसने मेरा हाथ झटक दिया और फिर खुद अपने टॉप को पकड़ कर एक झटके में टॉप को अपने शरीर से अलग कर दिया, एक ही पल में चन्द्रमा की गोरी कठोर नंगी चूचियां मेरे सामने थी, चन्द्रमा ने अंदर ब्रा नहीं पहनी हुई थी (उसकी सारी ब्रा गीली जो हो गयी थी),

मैंने फिर हाथ बढ़ाया उसकी चूचियों को पकड़ने के लिए लेकिन उसने मेर हाथो को थाम लिया और और हाथो को पकडे पकडे मेरे ऊपर झुकने लगी, जैसे जैसे चन्द्रमा झुक रही थी उसी चूचियां मेरे मुँह के नज़दीक आरही थी और मैं लालची बन्दर की तरह बार बार अपने सर को उठा कर उन चूचियों को अपने मुँह लेने की कोशिश करता, वो मेरे साथ खेल रही थी, अपनी चूचियों को मेरे मुँह के बिलकुल पास ला कर फिर झटके से ऊपर कर लेती, 5-६ बार ऐसा करने के बाद आखिर वो एक मौका चुकी और मैंने उसके निप्पल्स को अपने दांतो से काट लिया, वो सी सी करने लगी लेकिन मैंने उसकी चीची को छोड़ा नहीं और निप्पल्स होटों में लेकर चुभलाने लगा,

वो भी अब झुक कर मुझसे अपनी चूचियों चुसवा रही थी और मैंने अपनी गर्दन उठा उठा कर उसकी चूचियों को चूस रहा था और चाट चाट कर मज़ा दे रहा था, जितना मैं चन्द्रमा की चूचियां चाटता उठा उसके मुँह से सिसकारियां निकलती, चन्द्रमा को शायद अपनी चूचियां चटवाने में कुछ ज़्यदा ही मज़ा आरहा था, वो अपनी चूची को अपने हाथ से पकड़ कर मेरे मुँह में डाल रही थी और ऐसे अपनी चूची मुझसे चुसवा रही थी मानो मुझे अपना दूध पिला रही हो, मुझे भी खूब आनंद आरहा था, मैं पूरी तन्मन्यता से उसकी चूची पि रहा था,

लेक्किन इधर मेरा लण्ड भी अकड़ रहा था और पेंट से निकलने के लिए बेचैन हो चूका था, धीरे धीरे मैंने चन्द्रमा को अपनी बाहों में समेटा और एक झटके से पलटी मार ली, पलटी मरते ही चन्द्रमा मेरे नीचे थी और अब मैं उसके ऊपर पूरी तरह से छा चूका था, अब मेरा मुँह चन्द्रमा की चूची चूसता और हाथ से उसकी चुकी दबाता, उसकी चुकी चूसते चूसते अब मैं नीचे की ओर जाने लगा था और धीरे से उसकी नाभि पर पहुंच कर चूसने लगा, चन्द्रमा की मुँह से सिसकारियां निकल रही थी और वो उन्हह आह अहह कर रही थी, मैंने भी मौका देख कर अपना हाथ उसके पैरलेल में डाला और एक झटके में उसकी पैरलेल उसकी पेंटी समेत खींच कर उसके गोरे शरीर से अलग कर दी,

चन्द्रमा अब बिलकुल नंगी मेरे सामने लेटी थी, मैंने भी जल्दी से अपनी टीशर्ट उतर फेंकी और जल्दी से जीन्स उतार कर केवल कच्चे में आगया, चन्द्रमा ने मुझे नंगा होते देख कर झट से आंखे बंद कर ली, मुझे उस पर प्यार आगया, ये लजाने की अदा केवल हमारी भारतीय नारी में ही पायी जाती है, मैंने जल्दी से अपना बैग खोल कर कंडोम का पैकेट निकला और फाड़ कर बेड के साइड में रख लिया और फिर से चन्द्रमा के ऊपर आगया और फिर चन्द्रमा को किस करते हुए उसकी चूचियां पीने लगा, चन्द्रमा के शरीर में फिर से बिजलिया सी कड़कने लगी थी और वो हर सिसकारी के साथ अपने शरीर को ऐंठ रही थी, मैं अब उसकी चूची को छोड कर उसके शरीर को चूमते हुए उसकी चूत की ओर बढ़ने लगा था, जैसे ही मैं उसके पेडू के पास पंहुचा चन्द्रमा ने अपनी जंघे भींच के अपनी चूत को छुपा लिया और मुझे कंधे से पकड़ कर अपनी ओर खींचा, मैं चन्द्रमा के ऊपर लेट गया और उसके कान के पास अपने होंठ ले जाकर हौले से पूछा

मैं : क्या हुआ जान, नीचे जाने से क्यों रोका ?"
चन्द्रमा : (सेक्स से कपकाती आवाज़ में ) नीचे जाओ, लेकिन इस बार मुँह से मत करना
मैं : फिर क्या करू मेरी जान ?
चन्द्रमा : इस बार, उस से करो जो सब डालते है इसमें
मैं : ओह्ह मतलब लण्ड ?
चन्द्रमा : हाँ, लण्ड डाल दो अब, इस बार मुँह से नहीं , इस बार लण्ड से

मैं समझ गया था की चन्द्रमा की चूत लण्ड के लिए तड़प रही है तभी चन्द्रमा बिना झिझके डायरेक्ट लण्ड मांग रही है, भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती थी, मैंने झट से अपना नेकर भी उतर फेका, मेरा लण्ड तो पहले से हे तन्नाया हुआ था, आज़ाद होते ही हवा में झटके मरने लगा, मैंने जल्दी से कंडोम का पैकेट उठाया और फाड़ कर एक कंडोम अपने लण्ड पर चढ़ा लिया और झुक कर चन्द्रमा की जांघो को फैला दिया, इतनी देर की रासलीला के कारण चन्द्रमा की चूत एकदम पनियाई हुई थी, मैंने झट से अपनी जीभ निकल कर उसकी चुतरस से भीगी चूत चाट लिया,

चूत पर जीभ लगते ही चन्द्रमा एक सीत्कार कर उठी और एक हल्का सा झटका उसने चूत को उठा कर दिया, मैंने चन्द्रमा को गरम करने के लिए दो तीन बार उसकी चूत को अच्छे चाटा और फिर दोनों हाथो से उसी चूत के बाहरी होंटो को फैला दिया, चन्द्रमा की चूत एक दम टाइट थी, पतली दुबली लड़की थी फिर भी चूत खूब फूली हुई थी, मैंने अपना लण्ड उसकी चूत के ऊपर सटाया और उसके ऊपर अधलेटा होकर अपने लण्ड को उसके चूत के होंटो पर रगड़ने लगा, लण्ड की गर्मी महसूस करके चन्द्रमा भी नीचे से अपनी चूत उठा उठा कर लण्ड को अपनी चूत के लिप्स पर फील कर रही थी और मैं अपने होने हाथो से उसकी चूचिओं को पकड़ के कस कस के मसल रहा था,

लगभग २ साल से मैंने कोई चूत नहीं चोदी थी, आज जब लण्ड को पूरा भरोसा हो गया की आज उसकी भूख शांत होने वाली है तो लण्ड भी आज उतावला होकर कंडोम फाड़ कर बाहर आने को बेताब था, इधर चद्र्मा भी सेक्स की आग में तप कर बिस्तर पर अपने हाथ पाव मार रही थी

मैंने भी सही मौका भांप कर उठ खड़ा हुआ और उसकी टांग को उठा कर अपने कंधो पर रखा और अपना लण्ड का टोपा उसकी बिन चुदी चूत के मुहाने पर भिड़ा दिया, उसकी चूत से पहले ही बहुत गीली थी इसलिए लण्ड का सूपड़ा बार बार फिसल रहा था, मैंने जल्दी से पास में पड़े तौलिये से उसकी चूत का रस पोंछा और फिर थोड़ी ताकत लगा कर लण्ड उसकी चूत के होंठों में फसा दिया, मैंने चन्द्रमा की ओर देखा उसकी आँखों में बेकरारी थी, मैंने उसकी कमर को अपने हाथो में मज़बूती से पकड़ा और धीरे धीरे अपना लण्ड उसकी चूत की गहरी गुफा में ठेल दिया, बहुत ही ज़ायदा सँकरी चूत थी उसकी, मुझे पूरी ताकत लगानी पड़ रही थी,

लेकिन कोरी चूत पाने का लोभ था इसलिए मस्ती में डूबा धीरे धीरे लण्ड चन्द्रमा की चूत में पेल दिया, लगभग आधा लण्ड चूत में घुस गया था, मैंने चन्द्रमा की ओर देखा उसकी आँखे बंद थी, उसने अपने हाथो से बिस्तर की चादर को कस कर पकड़ रखा और गहरी गहरी सांसे ले रही थी, मैंने धीरे से उसकी टैंगो को अपने कंधो से उतरा और लण्ड को चूत में डाले डाले ही उसके ऊपर लेट गया, मेरे उसके ऊपर आते ही उसने अपनी आंखे खोल दी और अपनी बाहें मेरे शरीर पर लपेट कर ताबड़तोड़ किस करने लगी, मैंने भी अपने हाथो को उसकी बाहों के नीचे से निकाल कर उसके कंधो को अपने दोनों हाथो से जकड़ा और अपनी कमर को थोड़ा सा पीछे करके पूरी ताकत से धक्का मार कर बाकी का लण्ड भी चन्द्रमा की चूत में पेल दिया,

अचानक हुए चूत पर हमले से चन्द्रमा के शरीर में दर्द की एक लहार दौड़ गयी और उईईई माँ मर गयी बोल के चीख पड़ी, मैंने जल्दी से उसके होंठो को अपने होंठो में दबाया और और चुभलाने लगा, उसके मुँह से दर्द भरी सिसकारियां निकल रही थी लेकिन वो मेरे मुँह के अंदर ही घुट के दम तोड़ रही थी, कुछ पल शांत रहने के बाद मैंने अपनी कमर को हिलना चालू कर दिया था, चन्द्रमा की चूत बड़ी सँकरी थी, उसने मेरे लण्ड को बिलकुल जकड के रखा था, मुझे अपनी कमर चलने में बहुत दिक्कत हो रही थी लेकिन इतनी मज़बूत पकड़ होने के करण मज़ा भी बहुत आरहा था,

मुझे जितनी ताकत लण्ड घुसाने में लग रही उतनी ही ताकत मुझे लण्ड बाहर खींचने में, इधर चन्द्रमा की सांसे उखाड़ने लगी थी, हर धक्के के साथ उसको मुँह से एक दर्द और मस्ती से भरी सीत्कार निकल रही थी और, मैं पूरी ताक़त से पेल रहा था, टाइट चूत के कारण स्पीड नहीं थी लेकिन फिर भी जब लण्ड अंदर जा कर चन्द्रमा की चूत के जड़ से टकराता तो चन्द्रमा की आंख उलटी हो जाती, 5-१० धक्को के बाद ही अचानक चन्द्रमा ने मुझे अपनी ओर खींच के भींच लिया और अपनी टांगों को मेरी कमर पर लपेट कर अपने चूतड़ उचका मेरे लण्ड की ओर ठेलने लगी, मैंने भी अपनी ओर से करारा जवाब दिया और कुछ ही धक्को में वो भर भरा कर झाड़ गयी और शांत हो कर बिस्तर में निढाल हो कर पड़ गयी,

मैंने पाने लण्ड को ऐसे ही उसकी चूत में पड़ा रहने दिया और 1-२ मिनट बिना हिले डुले चन्द्रमा को उसकी सांसे बराबर करने दिया, जब उसकी सांसे कुछ बराबर हुई तो मैंने उसके शरीर पर लेट कर उसके गाल और कान के नीचे किस करने लगा, मैं अब ये सब बहुत धीरे कर रहा था, कुछ देर ऐसा ही करते रहने के बाद मैंने फिर उसकी चूचियों पर कब्ज़ा जमा लिया और हौले हौले उनको दबाने और चूसने लगा, मेरी मेहनत रंग लायी और चन्द्रमा के शरीर में फिर से मस्ती छाने लगी, अब मैं जैसे जैसे उसकी चूचियां दबाता वैसे वैसे उसका शरीर अकड़ कर जवाब देता, मैंने धीरे धीरे उसके पुरे शरीर को चूमा चाटा और फिर जैसे ही उसकी चूत ने मेरे लण्ड पर दबाव बनाया मैंने झट से वापिस अपनी पोजीशन ले ली और उसकी टाँगे के बीच में आकर उसकी गोरी नंगी टांगों को वापस अपने कंधो पर रखा और लण्ड थोड़ा बाहर खींच कर एक जोरदार धक्का लगाया

"आह थोड़ा धीरे "
"धीरे ही है जानेमन" मैंने अपनी स्पीड थोड़ा बढ़ा दी थी लेकिन धक्के छोटे छोटे ही लगा रहा था
"अब अच्छा लग रहा है ना मेरी जान " मैंने चन्द्रमा से पूछा
"हम्म बस करते रहो "
मुझे उसकी बात से अंदाज़ा हो गया था की अब चन्द्रमा को मज़ा आने लगा है, शायद झड़ने से उसकी चूत अंदर से गीली हो गयी थी क्यूंकि अब मुझे धक्के मारने में थोड़ी आसानी होने लगी थी, मैंने चन्द्रमा की कमर पकडे पकडे उसकी चूत में लण्ड पेल रहा था और अब उसकी कमर थोड़ा थोड़ा हिल कर जवाब दे रही थी, चूत गीली तो हुई थी लेकिन कोरी चूत थी तो लण्ड अब भी फस राह था, उसकी चूत के टाइट होने के कारण मेरा लण्ड भी जवाब देने लगा था, मैंने जल्दी से उसकी टांगों को कंधो पर से उतरा और चन्द्रमा के ऊपर झुक कर जल्दी जल्दी धक्के मरने मरने लगा, चन्द्रमा का चेहरा बिलकुल मेरी आँखों के सामने था, उसका चेहरा आग बबूला हो रहा था मानो बुखार से तप रहा हो और इधर मेरे लण्ड की भी सारी गर्मी मेरे चेहरे पर थी,

"मेरा निकलने वाला है मेरी जान "
" मेरा भी " चन्द्रमा ने अटकते हुए कहा

इतना सुन कर मैंने अपनी बची खुची ताक़त लगा कर दो चार लम्बे धक्के चन्द्रमा की चूत की जड़ तक मारे की चन्द्रमा "उयउइ मम्मी मैं तो गयी " चिल्लाते हुए झर्ड्ने लगी और इधर मेरा भी बांध टूट गया और मैंने भी पिच पिच पिचक करके चन्द्रमा की चूत में लण्ड के साथ घुसे कंडोम में झड़ना चालू कर दिया, शायद दोनों एक मिनट तक झड़े होंगे और फिर दोनों निढाल हो कर कर बिस्तर पर लुढ़क गए।
 
मैं और चन्द्रमा को बाँहों में लिए कुछ देर बिस्तर में पड़ा अपनी सांसे नार्मल करता रहा, कुछ देर चन्द्रमा ऐसे ही मेरी बाँहों में पड़ी लिपटी रही फिर बांहो से छिटक कर करवट ले कर एक ओर लेट गयी, उसकी आँखे बंद थी, मैं भी बिस्तर से उठ गया, मेरे लैंड पर अभी तक वीर्य से भरा कंडोम चढ़ा था, मैंने उठ कर सबसे पहले कंडोम उतार कर टिश्यू पेपर में लपेटा ओर डस्टबिन में डाल दिया फिर बाथरूम में जा कर पेशाब किया और लण्ड को अच्छी तरह से धो कर साफ किया, लण्ड धोते टाइम मैंने नोटिस किया की लण्ड की खाल एक दो जगह से छिल गयी है, चन्द्रमा की कोरी चूत इतनी टाइट थी की उसने मेरे पुराने अनुभवी लण्ड को भी घायल कर दिया था, चन्द्रमा की छूट में जब मैंने लण्ड पेला था तब कोई सील वाली रुकावट नहीं मिली थी और ना ही खून निकला था, शायद उसने कभी आवेश में आकर ऊँगली पेली हो चूत में जिस के कारण झिल्ली फट गयी होगी।

मैं बाथरूम से वापस आया तो देखा की चन्द्रमा उसी तरह बिलकुल नंगी बिस्तर में करवट ले कर सो रही थी उसकी कठोर उठी हुई गांड छत की दिशा में थी और मुझे ललचा रही थी, मैं बेड के पास वापस आकर बिस्तर को थोड़ा ठीक किया और ऐसी का टेम्प्रेचर काम कर दिया, मैंने नीचे पड़े चन्द्रमा के कपड़ो को उठा कर सलीके से सोफे के पास रखा और अपना अंडर पहन लिया, मैं इन सब से फ्री हो कर वापस बेड पर आकर लेट गया, चन्द्रमा अभी तक बिना हिले डुले ऐसे ही लेटी हुई थी, मैंने हल्का से झुक कर उसके चूतड़ों पर धीरे से किस कर दिया, दो तीन बार ऐसा करने पर चन्द्रमा थोड़ा सा हिली और धीरे से बड़बड़ाई,

" बस करो ना, डिस्टर्ब मत करो "
" क्यों कोई दिक्कत है क्या"
"हम्म ! दर्द हो रही है मेरे को "
" कहा ?"
" वही जहाँ अपने डाला था "
" ओह्ह ! ज़यादा दर्द है तो कोई दवाई लेकर आयउँ "
" नहीं ! बस अभी डिस्टर्ब मत करो, और आराम करने दो"

मैंने एक फिर से उसकी मस्त गांड के ऊपर किस किया और वापस सीधा हो कर लेट गया, कमरा ठंढा होने लगा था तो मैंने ब्लैंकेट अपने और उसके ऊपर डाल दिया और आराम से लेट गया, मैंने घडी में टाइम देखा तो लगभग ढाई बजने वाले थे, हम दोनों एक तो सुबह ४ बजे की जागे हुए थे और ऊपर से इस चुदाई ने दोनों को थका दिया था, कुछ ही देर में हम दोनों गहरी नींद में सो गए,

रात के लगभग १२ बजे मेरी आँख खुली, मैं हड़बड़ा कर उठा गया, बहुत गहरी नींद आयी थी, एक अच्छी चुदाई के बाद सबसे सुख की नींद आती है मैंने अपने बगल में देखा चन्द्रमा भी सोई हई थी, मैं उठकर बाथरूम गया और पेशाब करके वापस आया देखा चन्द्रमा भी जाग गयी थी, मैं उसके पास गया और उसके साइड में बेड पर बैठ कर एक छोटी सी किस उसके गुलाबी होंटो पर कर दी

" गुड मॉर्निंग जानेमन "
" सुबह हो गयी क्या "
" नहीं अभी रात के १२ बजे है "
" ओह्ह ! फिर ये कोण सा टाइम है गुड मॉर्निंग का "

मैंने वापिस उसके होंटो पर किश किया,
"ओह्ह डार्लिंग, मैंने तुम्हारे सुन्दर मुखड़े के देख लिया तो हो गयी मेरी गुड मॉर्निंग "

" चलो हटो मुझे बाथरूम जाना है " कह कर चन्द्रमा बिस्तर से उठ गयी, चन्द्रमा अभी भी ऊपर से बिलकुल नंगी थी और उसकी कठोर चूचिया तनी हुई और सर उठाये थी मानो चुसवानो को बेताब हो, नीचे चन्द्रमा ने पेंटी पहन रखी थी शायद मेरे सोने के बाद उठी होगी तभी पेंटी पहन ली होगी, चन्द्रमा अपनी मस्त गांड मटकती हुई बाथरूम चली गई, बाथरूम का दरवाज़ा खुला हुआ था इस लिए उसके मूतने की आवाज़ साफ़ मुझ तक आरही थी,

हमने सुबह में केवल ब्रेकफास्ट किया था और फिर लंच चुदाई के चक्कर में गोल हो गया और डिनर सोने में, इतनी रात को खाना मिलना संभव नहीं था इसलिए मैंने फ्रिज और वेलकम बास्केट की तलाशी लेने लगा, इतने में चन्द्रमा बाथरूम से वापस आगयी, मैंने उस से खाने का पूछा तो उसने मना कर दिया, मैंने बास्केट से कुछ चिप्स एंड चॉकलेट के पैकेट्स निकले और फ्रिज से जूस की बोतल निकाल के बेड के साइड में रख के वापस बीएड पर आगया, चन्द्रमा भी वाशरूम से आकर बीएड में बैठ गयी, हम दोनों ने आराम से चिप्स और जूस का आनद लिया,

खाने के बाद मैं बेड से टेक लगा कर अधलेटा हो गया और चन्द्रमा की बाह पकड़ कर अपने ऊपर खींच लिया, चन्द्रमा भी अधलेटी होकर मेरी गोद में समां गयी, उसकी नंगी चूचिया मेरी छाती से चिपकी हुई थी , मैंने चन्द्रमा की पेट सहलाते हुए पूछा

" तुमने पेंटी कब पहनी ?"
" आठ बजे के आस पास उठी थी पेशाब करने तब "
" हम्म दर्द कुछ काम हुआ या नहीं "
" हाँ पहले से थोड़ा ठीक है, लेकिन अभी थोड़ी सूजन है शायद "
" लाओ देखु तो ज़रा "
" हट, हर समय बस उसकी पीछे लगे रहते हो, अब उसको आराम करने दो"
" अरे सिर्फ देखूंगा जानेमन, कुछ नहीं करुगा, देखु तो सही कितना सूजी है ये "

वो थोड़ा नखरा कर रही थी आखिर मेरे कहने पर मान गयी, मैंने उसको बिस्तर पर आराम से लिटाया और और उसकी चूत का निरक्षण करने लगा, वाक़ई में थोड़ा सूज गयी थी, मैंने उसके बाहरी लिप्स को हटा कर देखा तो उसका अंदर वाली लिप्स सूजी हुई थी और एक ओर हल्का सा छिला हुआ भी था, शायद रगड़ लगने से छिल गयी थी,

मैंने अपने वादे के अनुसार कुछ किया नहीं लेकिन मुझे समझ आगे था की उसको अभी दर्द है, फिर मुझे एक आईडिया आया और मैं उठ कर वाशरूम चला गया, वहा से मैंने एक हैंड टॉवल उठा कर हेयर ड्रायर से गर्म किया और जल्दी से गर्म टॉवेल लाकर चन्द्रमा की चूत पर रख दिया, पहले तो वो चौंक गयी लेकिन जैसे ही उसे आराम का एहसास हुआ वो मज़े से अपनी टाँगे फैला कर चूत की सिकाई कराने लगी, मैंने पास पडे एक कुशन को उठा कर उसकी गांड के निचा लगा दिया इस से उसकी चूत उभर गयी और सिकाई में आसानी होने लगी, ऐसे मैंने आठ दस बार किया, ऐसा करने से चन्द्रमा को बहुत राहत मिली और अब उसके चेहरे पर फिर से मुस्कुराहट लौट आयी, कुछ देर बाद मैं भी बेड पर आकर लेट गया।
 
अब मैं और चन्द्रमा दोनों बिस्तर पर एक दूसरे की ओर करवट लिए लेटे हुए थे और हम दोनों एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे, हम दोनों के आँखों में प्यार का समंदर मचल रहा था, चन्द्रमा ने लेटे लेटे अपनी जीभ निकल कर मुँह चिढ़ा दिया, शायद वो अपनी खुद की उमड़ती भावनाओ से शर्मा गयी थी, उसके चेहरे पर शर्म की लाली थी, मैंने भी उसके जीभ चिढ़ाने का जवाब जीभ चिढ़ा कर दिया, लगभग आधी रात का समय था और हम अपनी नींद पूरी कर चुके थे इसलिए नींद नहीं आरही थी, काफी देर हम दोनों ऐसी ही शरारते करते रहे, चन्द्रमा और मैं दोनों ऊपर से नंगे थे, मेरे शरीर पर केवल एक कच्चा था तो चन्द्रमा के शरीर पर बस एक पेंटी, शायद अब उसकी चूत को पूरी तरह आराम आगया था क्यूंकि अब चन्द्रमा खिली खिली सी थी,

कुछ ऐसी ही चुहलबाज़ी करते करते मैंने चन्द्रमा को अपने ऊपर खींच लिया था और उसके सुन्दर चेहरे को दोनों हांथो में लेकर उसके गुलाबी होंटो को चुम लिया, उस समय मुझे चन्द्रमा पर बेहद प्यार आरहा था, मैं कभी चन्द्रमा के माथे को चूमता तो कभी होंटो, लेकिन अद्भुत बात ये थी की हर चुम्बन में प्रेम था कामुकता नहीं, चन्द्रमा भी मेरे किस के जवाब में छोटे छोटे किस कर रही थी और साथ ही अपने हाथ मेरी छाति पर घुमा रही थी, अचानक शायद उसको शरारत सूझी और उसने मेरी नन्ही मुन्नी निप्पल्स को अपने अंगूठे और उंगली में लेकर मसल दिया, ठीक वैसे ही जैसे मैं उसकी चूचियों को मसलता था, अचानक हुई इस हरकत से मैं उछल पड़ा, आज तक ऐसा नहीं हुआ था, एक अजीब सी सनसनी मेरे शरीर में फ़ैल गयी, मैंने झट से चन्द्रमा का हाथ झटका और उसको खींच कर अपने सीने से लगा कर दबोच लिया

मैं : ये क्या हरकत थी
चन्द्रमा : कुछ नहीं बस ऐसे ही मस्ती कर रही थी
मैं : हम्म, बड़ी शरारती हो, अब मत करना
चन्द्रमा : क्यों अच्छा नहीं लगा क्या
मैं : अरे बड़ा अजीब सा लगा, गुदगुदी जैसे
चन्द्रमा : मुझे तो अच्छा लगता है जब आप करते हो
मैं : हम्म और क्या अच्छा लगता है ?
चन्द्रमा : सब कुछ
मैं : फिर भी कुछ स्पेशल जो तुमको सबसे अच्छा लगा हो वो बताओ, ताकि नेक्स्ट टाइम फिर से करूँगा
चन्द्रमा : आपका जो मन में आये कर लो, आप जो भी करते हो मुझे सब अच्छा लगता है,
मैं : वाह! लेकिन फिर भी कोई एक बात बताओ, जैसे मुझे तुम्हारी चूत चूसना अच्छा लगता है
चन्द्रमा : मुझे भी बहुत अच्छा लगता है जब आप चूसते हो, लेकिन सबसे ज़ायदा मज़ा तब आता है जब आप मेरे दूदू पीते हो
मैं : वाओ ! तभी आज इवनिंग में तुम मुझे ललचा ललचा कर पिला रही थी
चन्द्रमा : हम्म, बहुत मज़ा आता है
मैं : और जो आज अंदर डाला वो ?
चन्द्रमा : एक अजीब सी सेंसेशन थी, जैसे शरीर में कोई करंट सा दौर रहा हो, फिर जब अंदर गया तो बहुत सारा दर्द हुआ और फिर उसके बाद वापिस वही संसेसशन स्टार्ट हो गयी और फिर अचानक ऐसा लगा जैसे चारो ओर अँधेरा हो और फिर उस अँधेरे में अचानक कोई आतिशबाज़ी होने लगी हो, जैसे आसमान में उड़ रही हूँ पूरा दिमाग झनझना गया, बहुत मज़ा आया जान।

मैंने झट से चन्द्रमा के होंटो को अपने होंटो की आगोश में ले लिया, पहली बार मैंने चन्द्रमा की मुँह से जान शब्द सुना था, मेरी तो ख़ुशी का ठिकना ही नहीं रहा, मैंने अपने दोनों हाथो से चन्द्रमा के गोरे चिकने जिस्म को सहलाने लगा और साथ साथ किस करता रहा, चन्द्रमा की सांसे अब तेज़ होने लगी थी और हर गहरी होती साँस के साथ हमारा चुम्बन कामुक होता गया,

कुछ मिनट में चन्द्रम की चूचिया मेरे मुँह में थी और मैं बदल बदल कर चन्द्रमा की चूचियों को पी रहा था, चन्द्रमा अपने ऐंठते शरीर के साथ मेरी पूरा सहयोग कर रही थी, मेरा मुँह तो चन्द्रमा की चूचियों पर था लेकिन हाथ उसकी पेंटी के अंदर घुस उसके उभरे हुए चूतड़ों को मसल मसल कर उसकी आग को भड़का रहा था, मैंने उसके चूतड़ों को मसलते हुए उसकी गांड की दरार में ऊँगली चलनी स्टार्ट कर दी, शायद मेरी ऊँगली उसके शरीर में करंट पैदा कर रही थी, क्यूंकि जैसे जैसे मैं उसकी चूची पीते हुए उसकी गाँड़ को कुरेद रहा था उतना ही वो वासना से तड़प कर सिसकारियां लेने लगती, किसी भी लड़की के छुडासी होने का अंदाज़ा करने का सबसे सरल तरीका है उसकी सिसकारियों पर ध्यान केंद्रित करना, जिस कामक्रिया करते हुए उसकी सिसकारियां जितनी कामुक रूप से उसके होटों से निकले उसका सरल अनुमान यही है की लड़की को उस क्रिया में अत्यधिक आन्नद प्राप्त हो रहा है,

मैं पुरे मन के साथ चन्द्रमा के चूतड़ों को मसलता और उसकी गांड के छेद पर अपनी उंगलिया चलता, मैंने एक दो बार अपनी उँगलियों को उसकी छूट की ओर भी लेकर गया लेकिन भांप गया की चन्द्रमा की छूट अभी जख्मी है और वह उसको छूने से दर्द हो रहा है, मैंने चन्द्रमा की गाँड़ सहलाते हुए उसकी पेंटी को नीचे उतार दिया था, बदले में चन्द्रमा ने भी अपने हाथ मेरी कमर में फसा कर मेरा अंडरवियर नीचे की ओर खींच दिया, बाकी का काम मैंने अपने पैरो को चला कर अंडरवियर को अपने शरीर से अलग कर दिया था, अब हम दोनों बिलकुल नंगे थे, चन्द्रमा ने भी शायद मेरे लण्ड का कड़कपन भांप लिया था इसलिए अपने हाथ मेरी गर्दन से हटा कर अपने दाए हाथ से मेरे लण्ड को थम लिया और उसको सहलाने लगी, हम दोनों मज़े के सातवे आसमान पर थे, मैंने चन्द्रमा को लिए लिए एक पलटी लगायी और चन्द्रमा को अपने नीचे कर दिया, मैंने जल्दी से एक कुशन उठा कर उसके चूतड़ों के नीचे लगा कर उसकी छूट को उभरा, लेकिन चन्द्रमा ने प्रतिरोध किया, उसको लगा की शायद मैं लण्ड उसकी चूत में पेलना चाहता हूँ, मैंने उसकी आँखों में देख कर इशारा किया की मैं वो चिंता ना करे मैं लण्ड बिना उसकी मर्ज़ी के उसकी चूत में नहीं डालूंगा ,

मैं वापस उसके ऊपर लेट गया और अपने लैंड को उसकी जांघो के बीच ठीक उसकी छूट से सटा आकर अपनी कमर आगे पीछे करने लगा, चन्द्रमा की घायल चूत ने रस छोड़ना चालू कर दिया था, उसके चुतरस से भीग कर मेरा लुंड एक दम स्लीपीरी हो गया था और सटा सट उसकी चूत को रगड़ कर मज़ा देने लगा, चन्द्रमा ने भी अपनी चूत ऊपर उठा कर मज़े का संकेत दिया, मुझे तो उसकी जांघो के बीच फसा लण्ड ऐसा ही मज़ा दे रहा था मानो मैं चूत चोद रहा हूँ, कुछ देर ऐसे ही धक्के लगाने के बाद मैंने चन्द्रमा को पलट दिया और फिर पीछे से अपना लण्ड उसकी गांड के दरार में सेट कर धक्के लगाने लगा, अगर कोई देखता तो उसे ऐसा ही लगता जैसे मैं चन्द्रमा की गांड मार रहा हूँ, खैर उसकी गांड भी कुछ काम मतवाली नहीं थी, अगर आज शाम में ही उसकी सील ना तोड़ी होती तो शायद किसी तरह चन्द्रमा को समझा बुझा कर उसकी गांड मार रहा होता, मुझे कोई जल्दी नहीं थी इसलिए मैं ऊपर से हो धक्के मार मार कर चुदाई का आनंद ले रहा था।

कुछ देर ऐसे ही धक्के मारे की अचानक चन्द्रमा जोर से चिल्ला कर शांत हो गयी, वो शायद मेरे धक्को से ज़्यदा ही उत्तेजित हो गयी थी और झाड़ गयी, मैं भी उसके शरीर से उतर कर बिस्तर पर लेट गया और उसकी दायी टांग को उठा कर अपनी कमर पर चढ़ा लिया और हौले हौले उसको सहलाने लगा,

कुछ देर में ही चन्द्रमा शांत हो गयी और फिर से मेरे किस का जवाब देने लगी, मैंने फिर से उसको चूतड़ों को सहलाना चालू कर दिया, इस बार उसके चूतड़ों को सहलाते हुए जब अपनी ऊँगली उसकी गांड की दरार में चलायी तो मुझे एक चिपचिपा गीलापन महसूस किया, अपनी ऊँगली उसकी गांड को और कुरेदा तो पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगा जैसे ये रस उसकी गांड के छेद से निकला हो, मैंने अपनी ऊँगली को उसकी गांड के होल पर ही घूमना चालू कर दिया,

इधर चन्द्रमा मेरे बाँहों में पड़ी अपनी चूची मेरे बाए हाथ से दबवा रही थी, कुछ देर ऐसे करते ही चन्द्रमा की सिसकिया वापस से तेज़ होने लगे और उसने एक बहुत गहरी सांस छोड़ी, उसकी सांस छुटते ही उसकी गांड का होल अचानक से खुल गया, मेरी दाए हाथ की प्रथम ऊँगली जो पहले से ही गांड के सुराख़ पर मंडरा रही थी गप से गांड के अंदर घुस गयी,

चन्द्रमा आअह्ह्ह करके रह गयी और इधर चन्द्रमा के गांड की गर्मी अपनी ऊँगली पर फील करके मुझ पर एक नशा सा छा गया और मैंने बिना सोचे समझे अपनी ऊँगली चन्द्रमा की गांड में चलना चालू कर दिया, जैसे जैसे मैं अपनी ऊँगली चन्द्रमा की गांड में पेलता वैसे वैसे चन्द्रमा अपनी कमर को आगे पीछे हिला कर मज़े से से चिल्ला उठती

" ओह्ह समीर जी, आह क्या कर रहे हो ये "
" मज़ा आरहा है न मेरी जान को "
" हाँ बहुत मज़ा आरहा है, करते रहो प्लीज "
" हाँ कर तो रहा हूँ मेरी जान "
" हाँ और तेज़ करो, जोर जोर से "
" मैंने अपने हाथ की रफ़्तार तेज़ कर दी "
" अब कैसा लग रहा है बेबी "
" ओह्ह बहुत मस्त लग रहा है, रुको मत बस ऐसे ही करते रहो "
" ओह्ह " नहीं रुक रहा मैं, बस ये बता दो क्या कर रहा हूँ ?"
" अहह समीर आप मुझे मज़ा दे रहे हो, जिंदगी का सबसे अच्छा मज़ा "
" क्या कहते है इस मज़े को मेरी जान ? "
" सेक्स करना कहते है, समीर, आप और करो मेरे साथ सेक्स, जो जो आता है सब कर लो "
" आह सेक्स तो है ये लेकिन मेरी ऊँगली क्या कर रही है मेरी चन्द्रमा डार्लिंग "
" ओह्ह्ह मम्मी ! आपकी ऊँगली मेरे अंदर है "
" किस चीज़ के अंदर ये भी बताओ "
" आउफफ मम्मी, अरे मेरी गांड के अंदर है ऊँगली आपकी समीर, आपकी ऊँगली मेरी गांड चोद रही है, समीर ऐसे ही मेरी गांड में पेलते रहो, जल्दी जल्दी, मैं निकल जाउंगी समीर, प्लीज निकाल दो मेरी "

मैंने चन्द्रमा के मुँह से ऐसा शब्द सुन कर मस्ती से पागल हो गया और उसकी चुची को छोड़ छाड़ उसकी गांड में गप गप ऊँगली पेलने लगा, कोई एक दो मिनट मैंने फुल स्पीड से उसकी गांड में ऊँगली पेली होगी की उसके चूतड़ हवा में ऊपर नीचे होने लगाए और अपनी चूत को कुशन के ऊपर पटकते हुए भरभड़ा कर झाड़ गयी ,

इस स्वखलन ने चन्द्रमा की हालत पस्त कर दी थी, उसने अपनी कमर सरका कर कुशन को अपने नीचे से हटा दिया और सीधी हो कर लेट गयी, मैंने देखा कुशन पर चन्द्रमा के चूत रस ने एक बड़ा सा निशान छोङ दिया था, मैंने कुशन को उठा कर सोफे की ओर फेक दिया और अपना लण्ड पकड़ कर चन्द्रमा के बगल में लेट गया, मैं अपने लण्ड को सहला सहला आकर चूत मिलने का आश्वासन दे रहा था, कुछ देर में चन्द्रमा ने मेरी ओर करवट ली और मुझे अपना लण्ड सहलाते हुए देख

चन्द्रमा : क्या हुआ इसे ?
मैं : बेचारा इन्तिज़ार में है तुम्हारे "
चन्द्रमा : इसे समझा लो, अब से कल ही मिलेगा जो भी चाहिए, आज नहीं "
मैं : अरे बेचारे ने इतनी मेहनत की है तुमको मज़ा देने में, इसको भी तो कुछ मज़ा मिलना चाहिए, मुझसे तो नहीं संभल रहा लो तुम समझा कर देख लो
चन्द्रमा : (आगे हाथ बढ़ा कर मेरा लण्ड थमते हुए ) " मेला बाबू मान जाओ, कल नहीं रोकूंगी, कल जितना मर्ज़ी कर लेना, आज वहा पर दर्द है है ना बाबू, "
मैं : दर्द तो ठीक है लेकिन इसको समझने के लिए वो वाला ही कर दो जो कल बाथरूम में किया था "
चन्द्रमा : धत, वो तो पता नहीं मेरे पर क्या भूत सवार हुआ था जो कर दिया, अब नहीं करुँगी मैं (चन्द्रमा इठलाई )

वो मना तो कर रही थी लेकिन उसका हाथ पूरी तन्मन्यता से लण्ड की मुठ मार रहा था, मैंने चन्द्रमा के और करीब खिसक आया और उसकी चूचियों पर कब्ज़ा जमा कर उनको रगड़ने लगा, चन्द्रमा का शरीर फिर से लहरे लेने लगा लेकिन इस बार मेरा फोकस चन्द्रमा को मज़ा देने से ज़्यदा अपने लण्ड का माल गिराने पर था, मैं बहुत देर से चन्द्रमा के जिस्म से खेल रहा था और मेरा लण्ड माल गिराने के लिए बेताब था, चन्द्रमा के लहरे लेते शरीर के नीचे से मैंने चुपके से अपना बाया पैर बहार निकल दिया, ऐसा करने से चन्द्रमा मेरी दोनों टांगो के बीच में आगयी, ऐसा होते ही मेरा लुंड चन्द्रमा के मुँह से बस कुछ ही दूरी पर था, मैं बिस्तर के सिरहाने से टेक लगा कर नीचे से अपनी कमर उचका कर लण्ड को ऊपर नीचे करने लगा, चन्द्रमा का सर भी धीरे धीरे मेरे लण्ड की ओर झुक रहा था, मैंने मौके का फ़ायदा उठा कर कमर का चलाना बंद किया और अपने हाथ को बढ़ा कर चन्द्रमा के सर को पकड़ा और अपने लण्ड की ओर झुका दिया, शायद चन्द्रमा मन से तैयार थी बस थोड़ा झिझक रही थी, मेरे ऐसा करते ही उसने गप से लोल्लिपोप के जैसा मेरे लुंड अपने मुँह में ले लिया,

मेरी तो जैसे जान ही निकल गयी, क्या सीन था, मैं बेड के सिरहाने से टेक लगाए आँख बंद कर के मज़े के सागर में गोते लगा रहा था और चन्द्रमा एक हसीन परी जैसी मेरी टांगो के बीच बैठी, मेरी लुंड मुँह में लिए चूस रही थी, ये ऐसा सीन था जिसका सपना हर मर्द अपने जीवन में देखता है और मैं वो खुशनसीब था जो अपने से आधी उम्र की हसीन पारी से लण्ड चुसवा कर सपनो को जी रहा था,

ये सीन मात्र ही काफी था मेरा माल निकलने के लिए ऊपर से चन्द्रमा की लुंड चूसने की कला कमाल थी, जैसे लण्ड चूस रही थी लगता था जैसे सालो से चुस्ती आरही हो, चन्द्रमा ने जो मेरे लण्ड को मुँह में लिए लिए अपनी जीभ से सुपडे को छेड़ा तो जैसे मेरे लण्ड की हर नसों से वीर्य निकलने को बेचैन हो गया,

मैंने जल्दी से चंदमा के सर को अपने हाथो में थमा और और फुल स्पीड में उसके कोमल मुँह को चोदने लगा, चन्द्रमा ने भी पूरा साथ देते हुए अपने होंटो को मजबूती से बंद किये रखा ताकि मेरे लण्ड को चूत मारने जैसा मज़ा मिले, मुश्किल से मैंने एक मिनट धक्के मारे होंगे की मेरा माल छूट गया, मैंने पूरी तेज़ी से अपना लण्ड चन्द्रमा के मुँह से खींचा, मैं नहीं चाहता था की मेरी माल चन्द्रमा के मुँह में गिरे, और फिर लण्ड को पकडे पकडे ही मैं बिस्तर पर झड़ गया,

कुछ देर में जब मैं शांद हुआ तो देख चन्द्रमा भी वही मेरे पैरो के पास निढाल चित्त लेती ही है, मैं जल्दी से बिस्तर से उठा और जा कर वाशरूम से लण्ड धो आया, मैंने चन्द्रमा को देखा वो आँख बंद किये उसी जगह लेटी हुई थी, मैंने धयान से देख तो मुझे अपने वीर्य की कुछ बूंदे उसकी चूचियों पर नज़र आयी, मैंने टिश्यू से उसकी चूचियों को साफ़ किया, उसके होंटो के आस पास लण्ड चूसने के करण लगे लार को भी पोंछा और फिर बिस्तर पर से अपना वीर्य पोंछ कर चन्द्रमा को उठाया और एक टॉवल लेकर वीर्य से गीले हुए बिस्तर को ढक दिया, चन्द्रमा भी उठ कर बाथरूम चली गयी थी वहा से वो फ्रेश हो कर आगयी उसने कुल्ला भी कर लिया था,

हम दोनों बिलकुल नंगे कमरे खड़े थे, मैंने चन्द्रमा की चूत की ओर देख रहा था, मुझे ऐसा करते देख कर चन्द्रमा ने झट से अपनी चूत छुप्पा ली, मुझे खूब प्यार आया उस पर, मैंने फ्रिज से स्प्राइट की बोतल निकली और बिस्तर में आगया, चन्द्रमा भी लेट चुकी थी, हम दोनों ने ही थोड़ी थोड़ी स्प्राइट पी और फिर कुछ देर बाद एक दूसरे की बाँहों समाये नंगे ही सो गए !
 
अगली सुबह हम जल्दी उठ गए, जल्दी जल्दी तैयार हो कर ब्रेकफास्ट किया और होटल से निकल गए, मेरा मूड तो रूम में वापस जा कर सेक्स करना का हो रहा था लेकिन आज चन्द्रमा ने मुझे हाथ नहीं लगाने दिया अपने जिस्म को, नहायी भी अकेल थी और कपडे भी वाशरूम से ही पहन कर आयी थी, खैर पिछले २ दिन दिन में उम्मीद से बहुत ज़्यदा हो चूका था इसलिए मैंने ज़्यादा इंसिस्ट भी नहीं किया दूसरे भूख भी ज़बरदस्त लगी हुई थी इसलिए हम दोनों ने सबसे पहले नाश्ते पर फोकस किया,

होटल से निकलने तब तक लगभग १० बज गए थे, हम दोनों पैदल ही चल रहा थे, मैंने चन्द्रमा से पूछा भी की क्या प्रोग्राम है तो उसने गोल मोल सा ही जवाब दिया, थोड़ा आगे जा कर मार्किट स्टार्ट हो गयी थी, सुबह का टाइम था तो दुकाने अभी खुलना स्टार्ट हुई थी, एक जगह चौराहा आया तो चन्द्रमा थोड़ा कंफ्यूज हो गयी फिर सामने खुली एक कपड़ो की दूकान में जाकर कुछ पूछने लगी, मैंने भी पीछे पीछे दुकान के अंदर चला गया, मुझे लगा की शायद उसको कुछ खरीदना है लेकिन शॉपकीपर चन्द्रमा को कोई एड्रेस समझा रहा था, मैंने चन्द्रमा की ओर सवालिया निगाह से देखा लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया,

जब हम दुकान से निअक्लने लगे तब मेरी नज़र एक फीमेल मेनीक्विन (पल्स्टिक का पुतला) पर पहनाये हुए सूट पर पड़ी , वाइट कुरता और रेड शलवार राजस्थानी चुंदरी वाला प्रिंट था, मुझे अच्छा लगा, मैंने चन्द्रमा को रोक कर उसका धयान आकृषित किया तो शॉपकीर भी झट से आगया और कपडे की तारीफ करने लगा, मैंने भांप लिए की चन्द्रमा को भी ये सूट पसंद आया है, रेडीमेड सूट था तो मैंने सूट खरीद लीया,

चन्द्रमा ने शॉपकीपर से ट्रायल रूम के लिए पूछा तो उन्होंने एक ओर इशारा किया, चन्द्रमा ने जा कर सूट टॉय किया तब तक मैंने पेमेंट कर दी, चन्द्रमा सूट पहन कर बाहर आयी, बहुत पायरी लग रही थी वो उस सूट में, वो वापस जाने लगी सूट चेंज करने तो मैंने मना कर दिया और चन्द्रमा के पहने हुए कपड़े एक बैग में डाल लिए, बहार निकल कर मैं चन्द्रमा के पीछे पीछे चलने लगा, थोड़ी दूर जा कर चन्द्रमा एक बड़े से महल जैसी बिल्डिंग के सामने जा कर रुक गयी, मैंने देख तो वो कोई महल नहीं बल्कि मंदिर था,

मैं समझ गया की चन्द्रमा मंदिर जाना चाहती थी इसीलिए वो बहाना करके यहाँ तक लायी है, मैं खास धार्मिक व्यक्ति नहीं हूँ शायद इसीलिए चन्द्रमा को लगा की मैं कही इंकार ना कर दू, वो यहाँ गलत थी, मेरा भगवान में पूरा विश्वास है बस मुझे लगता है की भगवन को मंदिर की जगह मैं अपने मन में ढूंढ लू,

हमने बाहर से एक पूजा की थाली और प्रसाद लिए, प्रसाद लेने के बाद उसने थाली मेरी ओर बढ़ा दी मैंने उसमे कुछ नोट्स रख दिए, हम दोनों साथ में ही मंदिर के अंदर गए और प्रसाद चढ़ाया और पूजा की, मेरी पूजा तो २ मिनट में ही हो गयी लेकिन मैंने देखा चन्द्रमा अभी भी हाथ जोड़े कोई मन्त्र या मनोकामना बुदबुदा रही है, मैं मंदिर से बहार आकर मंदिर के विशाल आंगन में एक पेड़ के नीचे बानी बेंच पर बैठ गया,

चन्द्रमा के धयानमग्न होने से मुझे पता चल गया था की वो अभी कुछ देर और पूजा करेगी, मैंने अपना मोबाइल निकाल लिए और उसमे देखने लगा, कुछ कॉल और मैसेज थे उसका रिप्लाई देने लगा, इतने में मुझे अपने पास एक तेज़ खुशबु का झोंका आया, मैंने मोबाइल से नज़र हटा कर देख, चन्द्रमा जैसे साक्षात् देवी रूप में मेरे सामने खड़ी थी, माथे पर चन्दन का टीका, हाथ में पूजा की थाली, सफ़ेद और लाल सूट में मनमोहिनी बनी मेरी मन चुरा ले गयी, मैं स्वतः ही अपनी बेंच से उठ खड़ा हुआ, चन्द्रमा ने पूजा की थाली में से प्रसाद के लड्डू का एक टुकड़ा उठा कर मेरे मुँह में डाल दिया, मैं सम्मोहित सा बस चन्द्रमा को एक टक देखता हुआ प्रसाद खा लीया, इससे पहले मैं कुछ बोलता चन्द्रमा ने झुक कर मेरा पैर छू लिए जैसे एक बियाहता अपने पति का पाऊं छू कर आशीर्वाद लेती है, मैंने ऐसा खोया हुआ था की कुछ बोल ही नहीं पाया, बस उसकी पीठ थपथपा दी, चन्द्रमा सीधी होकर बेंच पर बैठ गयी और मैं भी खयालो की दुनिया से बहार निकल कर उसके बगल में बैठ गया,

मैं : ओह्ह भगवन चन्द्रमा कितनी सुन्दर हो तुम
चन्द्रमा : (शरमाते हुए ) उन्हहु बस बस
मैं : नहीं चन्द्रमा, प्लीज मैंने आजतक तुमसे सुन्दर लड़की नहीं देखी, हो सकता है दुनिया में तुमसे ज़ायदा सुन्दर हो लेकिन मेरे लिए तुम दुनिया की सबसे सुन्दर लड़की हो।
चन्द्रमा : बस भी करो और कितनी तारीफ करोगे

मैं : नहीं चन्द्रमा मुझे बोलने दो, आज पता नहीं कितने वर्षो बाद मैं मंदिर आया हूँ और मुझे साक्षात् देवी के दर्शन हो गए, चन्द्रमा मेरी ओर देखो, मैं कोई धर्मात्मा तो नहीं हूँ लेकिन बुरा व्यक्ति भी नहीं हूँ, मैं एक सीधा सदा जीवन बिताने में विश्वास करता हूँ, मेरी उम्र पैंतीस साल है, मैं जनता हूँ की मैं तुमसे लगभग १५ साल बड़ा हूँ लेकिन फिर भी अगर तुम पसंद करो तो मैं तुमसे शादी करने के लिए तैयार हूँ, मैं इतना कमा लेता हूँ की हम दोनों का जीवन सुख से गुज़र जायेगा, और तुमको कमाने की कभी ज़रूरत नहीं पड़ेगी।

मैं जल्दी जल्दी जो मेरे मन में आया बोल डाला, मैंने बिलकुल भी नहीं सोचा था की मैं इस तरह कभी किसी लड़की को परपोज़ करूँगा, शायद मैं चन्द्रमा को इस रूप में देख कर अपने ऊपर कण्ट्रोल खो बैठा और खुलेआम मंदिर के प्रांगण में अपने दिल की बात चन्द्रमा से बोल गया,
मेरी बात सुनकर चन्द्रमा के चेहरे पर एक उपहोह की स्तिथि नज़र आयी, फ़ौरन मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ, चाहे जितनी भी बोल्ड क्यों ना हो चन्द्रमा है तो एक भारतीय नारी, ये परपोज़ वाला कल्चर तो विदेशी है, मैंने झट से बात संभाली

मैं : चन्द्रमा कोई प्रेशर नहीं है, अभी कुछ मत बोलो, कल यहा से वापस घर जाकर मम्मी से बात करना और अगर तुम्हे समझ आये तभी जवाब देना, अगर तुम ना भी बोलोगी तो मुझे कोई शिकायत नहीं होगी, तुमको पूरा अधिकार है हां या ना कहने का, बस इतना याद रखना, अगर हां कहोगी तो मैं दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान होऊंगा और अगर ना बोलोगी तो दुःख बहुत होगा लेकिन फिर भी मैं इसीमे खुश रखूँगा की मुझे अपने जीवन के कुछ सबसे खूबसूरत पल तुम्हारे साथ बिताने को मिले।

इतना बोल कर मैं चुप हो गया, चन्द्रमा कुछ देर ऐसे ही सर झुकाए बैठी रही, कुछ देर बाद उसने सर उठाया तो उसमे आंसू थे, उसने मेरा हाथ अपने नाज़ुक हाथ में थमा और उठ खड़ी हुई, उसने उठते समय मेरे बाज़ू पर एक हलकी से किस की और हौले से कहा "थैंक यू !"
हम दोनों एक दूसरे के हाथ में हाथ थामे मंदिर निकाल आये, इस उम्मीद से की आने वाला पल इस से भी अधिक हसीन होगा।
 
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