Desi Sex Kahani हरामी साहूकार

लाला के बारे में तो उसने अपनी सहेलियो से सिर्फ़ सुना ही था पर यहाँ तो उसके बेटे ने उसे छूकर वो सारी बाते सच ही कर दी थी जो उसकी उम्र की औरतें उसे सुनाया करती थी की इस उम्र में भी उन्हे सैक्स करने में कितना मज़ा आता है...

बरसो बाद उसकी बंजर ज़मीन पर फिर से पानी रिसना शुरू हो चुका था...
इसलिए वो चाहकर भी अपने बेटे को अपने खेतो की जुताई करने से नही रोक पा रही थी.

नंदू की भूख बढ़ती जा रही थी,
उसने एक एक अपनी चारो उंगलियां अपनी माँ की चूत में उतार दी..
वहां की चिकनाई उसे ऐसा करने में मदद कर रही थी...
शरीर पहाड़ जैसा था उसका पर उसकी अक्ल में इतनी बात नही घुस पा रही थी की औरत की चूत जब पानी छोड़े तो इसका मतलब वो जाग ही रही है,
पर उसके हिसाब से तो वो गहरी नींद में ही थी अब तक..

उसने उस रस से भीगे हाथ को बाहर निकाला और चाट लिया,
और जब स्वाद उसके मुँह लगा तो हर उंगली को कुल्फी की भाँति चूसने लगा...
उसकी चूसने की आवाज़े सुनकर उसकी माँ का शरीर काँप रहा था की कैसे उसी चूत से निकला उसका बेटा वहां के जूस को भी चूस रहा है...

अब उससे सब्र करना मुश्किल सा हो रहा था इसलिए उसने करवट बदलने के बहाने अपने शरीर को सीधा कर लिया...
नंदू तुरंत किसी लक्कड़बग्घे की तरह रेंगकर अपने बिस्तर में घुस गया.

भले ही अपनी माँ के साथ आज वो इतना आगे निकल चुका था पर उनकी डांट का डर अभी तक उसके दिलो दिमाग में था, इसलिए वो किसी भी कीमत पर पकड़ा नही जाना चाहता था...

पहले उपर वो निशि के साथ कुछ करते-2 रह गया और अब नीचे अपनी माँ के साथ भी...
भले ही दोनो तरफ आज की रात वो असफल रहा था पर ये तो पहले दिन की शुरूवात थी,
जो आगे चलकर और भी गुल खिलाने वाली थी.

अगली सुबह लाला हमेशा की तरह अपनी दुकान खोलकर गली में इधर से उधर जा रही औरतों और लड़कियों की गांड देखकर अपना लंड मसल रहा था..

और बुदबुदा भी रहा था : "साली.... मेरी दुकान के सामने से निकलते हुए इनके कूल्हे कुछ ज़्यादा ही मटकने लग जाते है.... पूरे गाँव को अपने खेतो में लिटाकर चोद डालूँगा एक दिन, तब पता चलेगा इन छिनालो को...''

हालाँकि उसे चुतों की कमी नही थी, पर फिर भी ऐसी कोई चिड़िया जो उसके चुंगल में आज तक नही फँस पाई थी, उन्हे देखकर उसके मुँह से ऐसा निकल ही जाता था.

दोपहर होने को थी, उसकी पसंदीदा चूते यानी पिंकी और निशि, जिन्हे वो अभी तक चोद नही पाया था पर वो किसी भी वक़्त उसके रामलाल से चुद सकती थी, वो इस वक़्त स्कूल में थी, वरना आज वो पूरे मूड में था उनमें से किसी एक की चूत का उद्घाटन करने के लिए..

नाज़िया भी उनके साथ स्कूल में ही होगी, वरना उसे एक बार और पेलकर वो उसके संकरेपन को थोड़ा और खोल देता आज..

अंत में उसके पास दो ही विकल्प रह गये, पिंकी की माँ सीमा और नाज़िया की अम्मी शबाना...

शबाना को भी वो कई सालों से चोदता आ रहा था इसलिए उसका मन सीमा की तरफ ही घूम रहा था, इसलिए वो झत्ट से उठा और सीमा के घर जाने के लिए तैयार होने लगा...

लेकिन जैसे ही वो दुकान का शटर गिराने लगा, सामने से उसे शबाना आती हुई दिखाई दे गयी..

वो करीब आई और अपनी मनमोहक मुस्कान के साथ बोली : "लगता है लालाजी किसी मिशन पर निकलने वाले हो...कहो तो मैं आपकी कोई मदद कर दूँ ...''

अब उसके कहने का तरीका ही इतना सैक्सी था की एक पल में ही लाला के लंड ने उसके लिए हां कर दी...
लाला के हिसाब से तो लंड - 2 पर लिखा होता है चुदने वाली का नाम...
और आज ये चुदाई के नाम की पर्ची शबाना के नाम की निकली थी,
जो उसने खुद ही खोलकर उनके सामने रख दी थी..

लाला ने मुस्कुराते हुए कहा : "अररी शबाना...तेरे होते हुए भला मैं कौन से मिशन पर जाऊंगा भला...तू आ गयी है तो चल अंदर गोडाउन में ...एक पुराने चावल का कट्टा खोला था कल...चल तुझे दिखता हूँ वो..''

शबाना : "हाय लाला जी...आप तो अंतर्यामी निकले...आपको कैसे पता की मैं चावल लेने ही आई थी...वो क्या हुआ ना, नाज़िया आने ही वाली है, पर देखा तो घर में चावल ही नही है...तो सोचा की मैं आपसे आकर ले जाऊ ...''

लाला : "अररी, जो भी सोचा तूने, सही सोचा...नाज़िया के लिए तो लाला के चावल तो क्या, सब कुछ पेशे खिदमत है...''

इतना कहते हुए उसने बड़ी ही बेशर्मी से अपने खड़े हुए लंड को उसके सामने ही मसल दिया...

शबाना मुस्कुराते हुए अंदर की तरफ दौड़ गयी और उसके पीछे -2 लाला अपनी दुकान का आधा शटर गिराकर अंदर आ गया..

वो पहले से ही उछल कर एक बोरी पर चढ़ी बैठी थी...
लाला के आने से पहले ही उसने अपने ब्लाउस के हुक आगे की तरफ से खोल दिए और उसके आते ही उन्हे अपने नर्म मुम्मो से लिपटा लिया...

लाला को हमेशा से उसकी यही बात अच्छी लगती थी...
सैक्स करने के लिए अपनी तरफ से वो हमेशा पहल करती थी, बिना कोई वक़्त गँवाए..

वो भी उसके लटक रहे खरबूजों को अपने मुँह में लेकर जोरों से चूसने लगा...

उससे पंगे लेने के लिए वो बोला : "अब तेरे में वो बात नही रही शबाना... अब ये लटक चुके है .. पहले जैसे कड़क नही रहे अब ये...''

वो भी लाला के चेहरे को अपनी छाती पर रगड़ते हुए कसमसाई : "ओह्ह्ह .. लाला...अब तुझे ये क्यों अच्छे लगने लगे...नाज़िया के नन्हे अमरूद चूस्कर उनके कड़कपन का मुकाबला कर रहा है ना तू इनसे... पर कसम से, अपनी जवानी में मैं भी उतनी ही कड़क थी...''

लाला को इस बात की सबसे ज़्यादा खुशी थी की उसी के सामने उसकी बेटी को पेलने के बाद अब वो उसके बारे में इतना खुलकर शबाना से बात कर सकता है...
एक माँ के सामने उसी की बेटी के हुस्न की तारीफ करके उसे सच में काफ़ी मज़ा मिल रहा था.

ऐसे में शबाना को अपनी बेटी से ज़्यादा अच्छा दिखने के लिए लाला को कुछ ज़्यादा ही खुश करने की एनर्जी मिली...
भले ही वो उसकी माँ थी पर थी तो वो एक औरत ही ना,
अपने सामने भला वो किसी और की बड़ाई कैसे सुनती.

इसलिए उसने एक पल भी नही लगाया अपने सारे कपड़े निकालने में ...
गोडाउन की नमी में उसका शरीर काँप कर रह गया जब वो पूरी नंगी होकर लाला के सामने खड़ी हुई..
 
लाला की तरकीब काम कर गयी थी,
शबाना के हाव भाव बता रहे थे की बेटी से कंपेयर करने के बाद उसके शरीर में कितनी सफूर्ती आ चुकी है...

वो झत्ट से लाला के कदमो में बैठी और उसकी धोती को खींचकर उसने अलग कर दिया..
और लाला के लंड को एक ही बार में मुँह में लेकर चूसने लगी..

लाला भी उसके मुँह को बुरी तरह चोदने में लगा हुआ था,
आज वो उसपर किसी भी तरह का रहम नही कर रहा था..

उसने उसके लम्बे बालो का बँधा हुआ जूड़ा पकड़ा और उसके मुँह को किसी कुतिया की तरह चोदने लगा...
ऐसी बेदर्दी से अपने लंड को उसके मुँह में पेलने से उसके लंड पर भी दाँत लग रहे थे

पर इस वक़्त ज़ोर से मुखचोदन में जो मज़ा मिल रहा था उसका कोई मुकाबला नही था.

और जल्द ही लाला का लंड एकदम स्टील जैसा हो गया....
अब तो वो चावल की बोरी को भी भेदकर खोल सकता था...
उसने शबाना को उपर उठाया और उसी पुराने चावल की बोरी पर औंधा करके लिटा दिया और पीछे से उसकी एक टाँग को कुतिया की तरह उठाकर उसमे वो नुकीला रामलाल पेल दिया...

हल्के अंधकार में वो किसी घोड़ी की तरह हिनहीना उठी...

उसकी चूत से बह रहा सारा रस लंड के साथ अंदर की तरफ चला गया और चिकनाई बनकर वो रामलाल की सेवा करने लगा..

उसके मोटे अंगूर दाने जितने निप्पल खुरदूरी बोरी पर घिसकर लाल हो चुके थे...
थोड़ी देर और ऐसी घिसाई चलती रही तो उनमे से दूध टपकने में देर नही लगने वाली थी...
इसलिए शबाना ने अपने हाथ बोरी पर रखकर बीच में दायरा बना लिया और अब लाला के झटके इतने तेज थे की उसके झूलते हुए मुम्मे उसके शरीर को ही चोट पहुँचा रहे थे...
यानी कुल मिलाकर लाला ने अपने लंड से आतंक मचा रखा था.

''अहह लाला....... ओह..... क्या चोदता है रे लाला..... कसम से....इतने सालो से चुदाई करवा रही हूँ तुझसे पर आज भी पिछली बार से ज़्यादा मज़ा मिलता है.... अहह .... ओह लाला.............. उम्म्म्ममममममममम....... चोद साले .....चोद मुझे...... ''

लाला ने उसकी गांड का स्टेयरिंग अपने हाथो में पकड़ा हुआ था और उसे तेज़ी से चलाता हुआ वो जल्द ही उसकी चूत में झड़ने लगा...
अपने लंड नुमा ट्रक को उसने पूरा उसकी चूत में क्रेश कर दिया था.

और हाँफता हुआ सा वो उसके उपर गिरकर अपनी टूटी हुई सांसो को नियंत्रित करने लगा..

लाला तो वहीं बिछी चारपाई पर पसर गया पर शबाना ने अपने कपड़े पहनने शुरू कर दिए...
उसकी बेटी के आने का टाइम हो रहा था...
लाला ने जाते-2 उसे 1 किलो चावल पेक कर दिए और बाकी के चावल शाम को उसके घर पहुँचाने का वादा किया...

शबाना समझ गयी की आज की रात लाला एक बार फिर से उसकी फूल सी बेटी नाज़िया को चोदेगा.
पर अब उसे इस बात से कोई फ़र्क नही पड़ता था...
क्योंकि उसकी चुदाई भी हो चुकी थी और चावल वाला काम भी हो चुका था.

वहीँ दूसरी तरफ स्कूल से आते हुए निशि ने अपनी रात की आप बीती पिंकी को शुरू से आख़िर तक सुना डाली... पिंकी भी उसकी बात सुनकर हंस दी क्योंकि उसे नंदू की हालत पर हँसी आ रही थी,
बेचारे की झंड हो गयी थी रात को...
वैसे दिल तो निशि का भी टूटा था, क्योंकि उसने तो पूरा मन बना लिया था अपने और नंदू के बीच की दीवार को तोड़ने का पर आख़िरी वक़्त पर उसकी माँ ने सारा खेल ही बिगाड़ कर रख दिया..

हालाँकि पिंकी और उसने मिलकर प्लान तो काफ़ी अच्छा बनाया था पर उसकी माँ ने बीच में आकर सब गड़बड़ कर दिया था...
इसलिए पहले उसकी माँ से निपटने की ज़रूरत थी उन्हे...
और इसके लिए उन्होने आपस में मिलकर एक और प्लान बनाया और उसे सार्थक करने के लिए वो घर के बदले सीधा निशि की माँ और भाई के खेतो की तरफ चल दिए..

आज तो निशि ने सोच ही लिया था की बात आगे बढ़कर ही रहेगी.

खेतो मे तो रोज की तरहा एक नयी फिल्म चल रही थी..

अपनी माँ को घोड़ी बनकर झुके देखकर, खेतो में काम कर रहे नंदू की आँखे चौड़ी हो गयी
जब उसने उनकी निकली हुई गांड देखी...
खेतों में बुवाई करने के लिए वो झुक झुक कर आगे बढ़ती जा रही थी, और बीज बोती जा रही थी,
इस बात से अंजान की उसके ठीक पीछे खड़ा उनका जवान पट्ठा उसके पुट्ठे देखकर अपना लंड मसल रहा है...

''आअहहह...... माँमाआआआआआ.... क्या मोटी गांड है रे तेरी...... इसमें एक दिन अपना लंड पेलुँगा इन्ही खेतों में ...कसम से...तेरी बुवाई चलती रहेगी और मेरी चुदाई.... एक कोने से दूसरे कोने तक ऐसे ही घोड़ी बनाकर दौडाऊंगा तुझे... अपना लंड अंदर डाले-2...अहह....''

खुली आँखो से वो शेखचिल्ली की भाँति सपने देखने में लगा था...
वो भी इस बात से अंजान था की उसकी माँ का सारा ध्यान उसी की तरफ है.

कल रात की सारी बाते सोच-सोचकर सीमा की चूत सुबह से ही गीली हो रही थी...
ऐसा नही था की उसे भी ये माँ बेटे का अनुचित आकर्षण पसंद था
पर ये एक ऐसी फीलिंग थी जो एक बार मन में आ जाए तो वो उसके विपरीत सोच ही नही पा रही थी...
हालाँकि वो अच्छी तरह से जानती थी की दुनिया समाज और यहाँ तक की उसकी खुद की नज़रों में भी ये ग़लत है पर वो सब बाते एक तरफ थी और ये वाली फीलिंग एक तरफ
और इस फीलिंग ने उसके मसतिष्क को पूरी तरह से अपने कब्ज़े में ले लिया था..

झुकी होने की वजह से वो अपने पीछे खड़े नंदू को कनखियो से देख भी पा रही थी, जिसका हाथ अपने लंड पर ही था...

वो चाहती तो उसे रंगे हाथो पकड़ कर उससे सब कुछ कबूल करवा सकती थी पर उसे पता था की वो ऐसा करेगा नही...

जैसे रात को उसके जागने के एहसास से ही वो वापिस अपने बिस्तर पर चला गया था...
वो कितना फट्टू है ये वो अच्छे से जानती थी.

अपना काम निपटा कर वो जब खड़ी हुई तो नंदू खुद ही दूसरी तरफ मुँह करके दूर पेड़ के पीछे की तरफ चल दिया...

सीमा : "ओ नंदू.... अब कहाँ चल दिया.... मुझे और बीज पकड़ा ज़रा, आज ये बुवाई का पूरा काम निपटाना है...''

नंदू अपने खड़े हुए लंड को संभालता हुआ दूसरी तरफ चलता चला गया और पीछे मुँह करके बोला : "अभी देता हूँ माँ ....बस थोड़ा मूत आऊं ...बड़ी जोर से लगी है...''

उसकी माँ के चेहरे पर अर्थपूर्ण मुस्कान फैल गयी....
वो जानती थी की कैसा मूत लगा है उसे...

नंदू का लंड इस हदद तक खड़ा था की वो उसकी धोती के बाँधने वाली जगह से उपर की तरफ अपना मुँह निकाल कर खड़ा था...एकदम कुतुब मीनार की तरह...
 
पेड़ के पीछे पहुँचते ही नंदू ने अपनी धोती नीचे खिसकाई और अपना विशालकाय लंड बाहर निकाल कर जोरों से उसकी रगड़ाई करने लगा...

''ओह माँमाआअ...... साली तेरी चूत भी तेरी जैसी चिकनी है....काश कल रात उसे चूस पाता ....अहह......''

दूर खड़ी सीमा की नज़रें अपने बेटे को ढूँढती हुई जब पेड़ो के पास गई तो उसे अपनी तरफ ही मुँह करके खड़े पाया....
भला ये कौनसा तरीका होता है मूतने का...
अपनी माँ की तरफ मुँह करके कौन मूतता है भला...
पर वो अब ये जान चुकी थी की ये मूत नही बल्कि मुट्ठ का मामला है...
उसका बेटा रोजाना उसे देखकर ही उस पेड़ के नीचे जाकर मुट्ठ मारता होगा...

ओह्ह बेचारा....
ऐसे ही करता रहा तो इसने अपना शरीर ही खराब कर लेना है...
जब शादी होगी तो कैसे चुदाई कर पाएगा ये अपनी बीबी की...
और इसका सारा दोष उसी के उपर आएगा, क्योंकि उसकी इस हरकत की असली वजह तो वो खुद ही थी ना...
और ये सोचकर सीमा ने मन ही मन ये निश्चय कर लिया की चाहे उसे अपनी मर्यादा को लाँघना ही पड़े, वो अपने बेटे का शरीर इस तरह से खराब नही होने देगी...
चाहे इसके लिए उसे अपने शरीर को उसे सोंपना ही क्यो ना पड़े...

अपनी संतान के लिए एक माँ क्या-2 कर सकती है ये बताने का वक़्त आ चुका था..
भले ही इसके पीछे उसका खुद का भी स्वार्थ छिपा था..
अपने पति के जाने के बाद बरसो पुरानी चूत में जो जंग लग चुका था वो पानी बहकर उसी की वजह से ही तो बाहर निकला था...
अब उसे उसी पानी में अपने लाड़ले को नहलाना था, ताकि वो ग़लत आदतों की वजह से अपना शरीर खराब ना करे..

उन दोनो के बीच ये रासलीला चल रही थी और उन दोनो की ही नज़रों से अंजान पिंकी और निशि वहां पहुँच चुकी थी...

माँ तो खेतो के बीच थी पर अपने भाई को पेड़ो के नीचे खड़ा देखकर निशि उसी तरफ चल दी...
नंदू अपनी माँ के हुस्न में इतना खोया हुआ था की उसे अपने दांयी ओर से आती अपनी बहन और उसकी सहेली के आने का आभास ही नही हुआ..

जैसे-2 दोनो नंदू के करीब जाती गयी उनकी आँखे आश्चर्य से फैलती चली गयी...
नंदू बड़ी ही बेशर्मी से अपनी माँ को देखकर अपना गन्ने जैसा लंड पीट रहा था..

निशि का तो दिमाग़ ही घूम गया ये देखकर पर पिंकी का शातिर दिमाग़ सब समझ गया...
जिस नंदू को अपनी बहन को चोदने के लिए ये सब जतन वो करवा रही थी वो नंदू तो अपनी माँ का दीवाना निकला..

यानी इस हिसाब से तो उसे पटाना उतना मुश्किल नही होगा जितना वो दोनो अब तक समझ रहे थे....
एक बंदा जब मांदरचोद हो सकता है तो बहनचोद भी हो सकता है...

और उन दोनो के लिए सबसे बड़ी बात ये थी की आज उन दोनो ने ही नंदू का लंड पहली बार देखा था..
एकदम मस्त था वो..
हालाँकि लाला जैसा गठीला नही था पर जवानी के हिसाब से एक नया रूप लिए हुए था वो...

निशि जो पहले से ही उसके लंड को लेने का मन बना चुकी थी, उसके लंड को देखकर अपनी चूत मसलने लगी और धीरे से बुदबुदा उठी 'अहह.... देख ले री.... यही जाएगा तेरी बन्नो के अंदर..... उम्म्म्ममम.... कितना चिकना है ये तो..... चूत में लगते ही फिसलता चला जाएगा अंदर तक....'

वहीं पिंकी भी उसे देखकर ललचा गयी...
उसे भी पता था की लाला से अपनी चूत की ओपनिंग करवाने के बाद उसे ये लंड भी चखने को ज़रूर मिलेगा...
आख़िर नंदू उसे भी काफ़ी पसंद था..

पिंकी ने निशि के कान में फुसफुसा कर कहा : 'तेरा भाई तो और भी बड़ा हरामी निकला...साला अपनी माँ को देखकर ही अपना लंड हिला रहा है...तेरे पीछे तो ये पालतू कुत्ते की तरह घूमेगा...'

उसकी बात सुनकर निशि ने भी फुसफुसा कर कहा : ''और फिर उस कुत्ते से कुतिया वाले पोज़ में अपने अंदर डालवाउंगी इसके लंड को....सस्स्सस्स अहह....''

ये सुनकर पिंकी ज़ोर से हंस दी..
और वो ज़ोर से इसलिए हँसी ताकि नंदू का ध्यान उनकी तरफ आ जाए...
और हुआ भी ऐसा ही....
उसने जैसे ही अपनी तरफ आती हुई निशि और पिंकी को देखा, अपने लंड को झट्ट से उसने फिर से अपनी घोती में डाल लिया...

बातें करते-2 वो दोनो उसके करीब आई तो नंदू बोला : "अर्रे, आज तुम दोनों यहाँ खेतों में कैसे आ गयी....''

और फिर निशि की तरफ देखकर बोला : "अब तेरा पैर का दर्द कैसा है...''

निशि और पिंकी ने रास्ते में ही एक नया प्लान बना लिया था, उसी के अनुसार वो बोली : "बस भैय्या, चला तो जा रहा है पर ज़्यादा ज़ोर देने से दर्द अभी भी हो रहा है...इसलिए सोचा की आपको बोल दूँगी ताकि आप अपनी साइकल पर घर छोड़ आओ मुझे...''

बेचारे नंदू का दिल ज़ोर से धड़क उठा...
रात वाली बातें उसके दिमाग़ से निकल भी नही आई थी और ऐसे निशि का ये बेबाकपन उसे फिर से उन्ही विचारो की तरफ खींच रहा था..

निशि और पिंकी को देखकर नंदू की माँ भी वहां आ गयी...
नंदू ने उन्हे सारी बात बताई तो वो गुस्सा होने लगी की डॉक्टर को ही दिखाना सही रहेगा..
पर निशि ने ज़ोर देकर कहा की घर पर मालिश से कल तक ठीक नही हुई तो वो खुद ही डॉक्टर के पास चलेगी..
उसकी माँ भी जानती थी की डॉक्टर के इंजेक्षन से उसे बचपन से ही डर लगता है..
इसलिए जैसा निशि चाहती थी , उन्होने नंदू को बोलकर निशि को उसकी साइकल से घर जाने को कहा...
और ये भी कहा की शाम को वो खुद ही घर आ जाएगी..

अब साइकल पर कैरियर तो था नही, इसलिए सिर्फ़ निशि ही उसके साथ आगे बैठकर जा सकती थी...
उनके जाने के बाद पिंकी भी अपनी गांड मटकाती हुई अपने घर की तरफ पैदल ही चल दी..

नंदू ने जब निशि को बिठा कर साइकल चलानी शुरू की तो निशि ने खुद ही अपने शरीर को पीछे की तरफ करके छोड़ दिया ताकि उसका भाई उसकी मखमली पीठ का एहसास ले सके..

पर जब नंदू की टाँगे उसकी गांड से रगड़ाई करते हुए उसकी जाँघो पर आई तो उसका पूरा शरीर ही झनझना उठा...
वो तरंगे उसकी टाँगो से लेकर उसकी चूत तक को कंपित कर रही थी...
उसका ढीला शरीर अकड़ने लगा और उसकी छातियाँ और भी बाहर निकल आई...

ये सब देखकर उसका भाई नंदू अपनी किस्मत पर इठला रहा था...
क्योंकि अपनी बहन की तरफ से उसे खुद ही ऐसे सिग्नल मिल रहे थे जिसमें वो उसे आसानी से चोद सकता था..
एक पल के लिए उसे ये भी लगा था की कहीं ये पैर की मोच और मालिश करवाना उसकी बहन की कोई चाल तो नही है पर फिर उसने खुद ही इस ख़याल को नकार दिया की उसमें इतनी अक्ल कहाँ है भला..

पर वो नही जानता था की वो अब उतनी नासमझ भी नही रही है जितना वो सोच रहा है...
पिंकी के साथ मिलकर वो एक चालाक लोमड़ी बन चुकी है
और आज इस लोमड़ी ने अच्छा सा प्लान बना लिया था की कैसे अपना हुस्न दिखाकर नंदू को अपना पालतू कुत्ता बनाना है.
 
रास्ता तोड़ा लंबा था, और नंदू को भी आज जल्दी नही थी क्योंकि इस तरह से निशि को बिठाकर उसने कभी भी साइकल नही चलाई थी..
उपर से उसके शरीर को छूने से उसमें जो उर्जा का संचार हो रहा था वो भी कुछ अलग ही था...
आख़िर जवान जिस्म का स्पर्श अपने आप में एक ताज़गी लिए होता है.

वहीं दूसरी तरफ निशि भी अपनी गांड पर पड़ रहे भाई के ठुड्डे महसूस करके अंदर ही अंदर कराह रही थी...
मन तो उसका कर रहा था की उसका भाई उसे नंगा करके उसकी गांड पर ज़ोर-2 से थप्पड़ मारे ताकि उसकी ये जो उत्तेजना अंदर से निकल रही है वो और भी बढ़ जाए..

तभी नंदू ने अपनी गर्म साँसे उसके कानों में छोड़ते हुए पूछा : "एक बात तो बता , कल रात तुझे मज़ा आया था क्या, जब मैने तेरी टाँगो की मालिश की थी...''

निशि समझ गयी की उसके ठरकी भाई के दिमाग़ में क्या चल रहा है...

वो बोली : "भाई..बोला तो था मैने कल भी...मज़ा भी आया था और कुछ अजीब सा फील भी हुआ था...''

नंदू ने इस बार अपने होंठो से उसके कानो को छू लिया और फुसफुसाया : "कैसा फील हुआ था ...गंदा वाला या अच्छा वाला...''

नंदू के गीले होंठो को अपने कानो पर महसूस करके उसके मुँह से एक हुंकार सी निकल गयी....
अगर ये हरकत उसने बंद कमरे में की होती तो इसका हर्जाना उसे अपना लंड चुस्वाकार चुकाना पड़ता कसम से...
पर गनीमत थी की वो गाँव के बीचो बीच से निकल रहे थे, ऐसे में वो कोई हरकत नही कर सकती थी..

वो फुसफुसाई : "आह....भाई...ये गुदगुदी तो ना करो ना...और मज़ा मिला था इसका मतलब अच्छी वाली फीलिंग ही होगी ना...''

नंदू मुस्कुराया और बोला : "पहले कभी ऐसा मज़ा मिला है क्या...''

वो आवेश में बोल गयी : "हाँ ..बहुत बार...''

और ये बोलते के साथ ही उसने अपनी जीभ दांतो तले दबा दी...
ये क्या बोल गयी पगली..

नंदू ने चौंकते हुए उसके चेहरे को देखा और साइकल रोक दी.. और बोला : "मतलब...?''

अब वो अपनी बात से पलट नही सकती थी....
उसका दिमाग़ जोरो से चलने लगा...
अब वो लाला का नाम तो ले नही सकती थी की उसने पहले भी उसे इस तरह के काफ़ी मज़े दिए है उपर से...
इसलिए उसने ना चाहते हुए भी पिंकी का नाम ले दिया

निशि : "वो...वो भाई..... पिंकी और मैं अक्सर एक दूसरे के साथ ऐसे खेल खेला करते है... तब भी ऐसा ही फील होता है...''

नंदू के तो रोंगटे खड़े हो गये ये सुनते ही...
यानी बंद कमरे में ये दोनो यही किया करती थी....
गुस्सा तो उसे बहुत आया ये सुनकर पर अगले ही पल उसके दिमाग़ में पिंकी का जवान और नंगा जिस्म कौंध गया...

एक दम पका हुआ फल था वो...
उसके बारे में पहले उसने कई बार सोच-सोचकर मुट्ठ मारी थी...
वो भी उसे प्यार भरी नज़रों से देखा करती थी...
पर पिताजी की मृत्यु के बाद वो सब कहां गायब हो गया ये उसे भी पता नही चला...
आज निशि ने जब पिंकी के साथ उस तरह की हरकत करने की बातें कही तो उसे वो सारी बातें याद आती चली गयी..

उसकी बहन तो अपनी तरफ से पहले ही लाइन दे रही थी...
अब पिंकी का ये राज जानकार नंदू के दिमाग़ में उसे पाने का एक फूल प्रूफ प्लान बनना शुरू हो चुका था..

और इसलिए लिए उसे पहले निशि को अपने जाल में फँसना पड़ेगा..
और यही करने तो वो घर जा रहा था..

इसलिए वो बड़े प्यार से बोला : "ओह्ह ...पिंकी के साथ ना...वो तो घर वाली बात है... उसके साथ आए या मेरे साथ..मज़ा मिलना चाहिए बस...आज भी वैसा ही मज़ा दूँगा घर चलकर...''

वो भी खुश हो गयी...
और खुशी के मारे उसकी छातिया थोड़ी और बाहर निकल आई...
जिन्हे देखकर नंदू का लंड स्टील का डंडा बनकर निशि की पीठ में चुभ रहा था...

खैर, किसी तरह से वो घर पहुँचे..
निशि उछलकर साइकल से उतरी और उपर वाले कमरे में भागती चली गयी...
एक बार फिर से नंदू उसके हिलते हुए चूतड़ देखकर अपना लंड अड्जस्ट करने लगा..

निशि लगभग भागती हुई सी अपने कमरे में गयी और वहां से सीधा बाथरूम में.

पूरे रास्ते अपने भाई के ठुड्ड अपने कुल्हो पर खाने की वजह से उसकी गांड लाल हो चुकी थी...
और उसकी वजह से उसकी चूत में जो रक्त संचार हुआ था उससे वो भी एकदम गीली और लाल हुई पड़ी थी...

उसने अपनी सलवार और कच्छी निकाल फेंकी और तौलिये से अपनी गीली चूत को अच्छी तरह से सॉफ किया...
पर वो जितना भी सॉफ करती उतना ही गीलापन अंदर से बाहर निकल आता...
आख़िर में थक हारकर उसने दूसरी कच्छी उठाकर पहन ली और उपर से उसने वही कल रात वाली स्कर्ट पहन ली, उपर की कमीज़ उतारकर एक ढीला सा टॉप पहन लिया..

तब तक नंदू भी उपर आ गया...और आवाज़ देकर उसने निशि को बाहर आने को कहा..

वो तो पहले से ही तैयार थी...
सकुचाते हुए वो बाथरूम से ऐसे निकली जैसे कोई दुल्हन अपनी सेज की तरफ जाती है..

नंदू का लंड अभी तक खड़ा था और आज तो उसने उसे बिठाने और छुपाने की भी कोई चेष्टा नही की,
वो चाहता था की उसके उभार को उसकी बहन देखे और जैसे वो तड़प रहा है वो भी तडपे..

और हुआ भी ऐसा ही...
बाथरूम से निकलकर , आँखे झुका कर जब वो नंदू के करीब पहुँची तो उसकी झुकी नज़रें सीधा अपने भाई के उभार पर ही गयी..जो उसकी धोती में खड़ा हुआ, बँधा हुआ, अपने कड़कपन का एहसास दे रहा था..

उसे देखते ही उसके तन बदन में एक लहर सी दौड़ गयी..
चूत गिचगिचा गयी और उसमें से गाड़ा रस एक बार फिर से रिसने लगा..

नंदू ने उसे पकड़ कर उसके बेड पर लिटा दिया और बोला : "चल अब उल्टी होकर लेट जा ...मैं तेरी टाँगो की मालिश कर देता हूँ ...''

वो बिना कुछ कहे, उसकी बात मानकर , अपनी गांड उचका कर बेड पर लेट गयी...
कल रात के मुक़ाबले आज वो कुछ ज़्यादा ही उत्तेजित थी, शायद इसलिए क्योंकि आज उन्हे रोकने और टोकने वाला कोई नही था...
पूरे घर पर वो दोनो जवान जिस्म अकेले ही थे.

नंदू ने तेल की शीशी उठाई और काँपते हाथो से उसकी लंबी स्कर्ट को उठा कर वो तेल उसकी नंगी टाँगो पर डाल कर उन्हे मसलने लगा..

एक चिर परिचित सा एहसास निशि को फिर से गुनगुना गया...
वो अपनी पतली और सुरीली आवाज़ में कराह उठी.

''आआआआआअहह भैयययययययययययययया''

और आज तो नंदू कल की तरह झिझक भी नही रहा था...
उसके हाथ धीरे-2 उपर आते गये जहां उसकी जाँघो का माँस और भी ज़्यादा होता चला जा रहा था...
नंदू की उंगलियां उसके गोरे माँस में धंसकर एक लाल निशान बना रही थी.

नंदू ने निशि की स्कर्ट थोड़ी और उपर की तो उसे उसकी शहद में भीगी कच्छी दिखाई दे गयी...
शक तो उसे पहले से था की वो भीग रही होगी नीचे से पर उसके गीलेपन को देखकर उसे पूरा यकीन हो गया की वो पूरी तरह से इस खेल का मज़ा ले रही थी.

नंदू ने उसकी स्कर्ट के हुक्स को खोलते हुए कहा : "ये उतार दे..बेकार में तेल लगने से खराब हो जाएगी ..''

उसने मासूम बने रहने का नाटक करते हुए उस ढीली सी स्कर्ट को नीचे सरका दिया...

अब वो सिर्फ़ एक पेंटी में उसके सामने उल्टी होकर लेटी थी...

और कल की तरह उसने एक बार फिर से उसकी कच्छी के लास्टिक को दोनो तरफ से पकड़ा और उसे नीचे करके उतार दिया...
इस बार तो उसने कल की तरह ओपचारिकता करके बोलने की भी ज़रूरत नही समझी...

और निशि ने भी अपने भाई के सामने पूरी तरह से समर्पण करते हुए अपनी कमर उठा कर अपनी गीली कच्छी उतार दी और नंदू को एक बार फिर से अपने भरे हुए तरबूजों के दर्शन करवा दिए...

इस बार तो उन्हे नंदू ने जी भरकर देखा...
अपनी उंगलियों से उन्हे अच्छी तरह से दबाया...
उसकी उंगलियां बड़े ही डेंजर तरीके से उसकी चूत के इर्द गिर्द धूम रही थी...
पर वो उन्हे अंदर की तरफ नही धकेल रहा था...
शायद अपनी बहन को सताने का उसे एक अच्छा उपाय मिल चुका था...

उसने तेल की धार इस बार सीधी उसकी सुबक रही चूत पर गिराई , जिसे महसूस करके वो ऐसे छटपटाने लगी जैसे उसकी ठरक को बड़ाने वाला कोई बटन दबा दिया हो उसने..

''ओह भाई.........सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स...... उम्म्म्मममममममममममम..... ये क्या कर रहे हो.....अहह''

पर उसने उसकी बात का जवाब देने की कोई ज़रूरत नही समझी और एक बार फिर से उसकी गांड का आटा गूंधने लगा...
और इस बार भी उसने उसकी चूत को अनदेखा ही किया, जिसपर उसकी उंगलियाँ महसूस करने के लिए वो अब और ज़ोर से तड़पने लगी थी..

गोर करने वाली बात ये थी की यहाँ तो पैरों में लगी उस मोच की मालिश चल रही थी जो कभी लगी ही नही थी..
और लगी भी थी तो वो काफ़ी नीचे थी...
यहां उपर आकर नंदू किस करह की मालिश में मशगूल हो चुका था ये शायद उसे भी पता नही चल सका था..

निशि के होंठ फड़फड़ा रहे थे....
वो सिसकारी मारते हुए बोली : "आह्ह्ह .... भैययय्या......... वहां करो ना..... जहाँ तेल गिराया था.....अहह''

नंदू ने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी पर काबू किया क्योंकि वो उसकी हालत को अच्छे से समझ पा रहा था..

वो बोला : "हाँ निशि ..वहीं तो कर रहा हूँ ....तेरी गांड की अच्छे से मालिश कर रहा हूँ ...''

एक ही बार में उसने वो सारी हदें पार कर दी जिन्हे बनने में सालो का समय लगा था...
ना चूतड़ बोला ना हिप्स...
सीधा गांड बोलकर नंदू ने दोनो के बीच की शर्म की दीवार को पस्त कर दिया..

निशि सीसीया उठी : "आअहह......गांड पर नही....वहां ....व .वो......वो .....मेरी.... पुसी....पर''

नंदू ने अंजान बनने का नाटक किया : "क्या ?....कहां पर....पुस्सी.....ये का होत है...''

निशि भी जानती थी की उस अनपड़ को भला पुसी का क्या पता...
वो तो ठेठ देहाती था...
उसे तो यही गांड चूत वाली बात समझ आनी थी...

और वैसे भी, नंदू ने खुद ही उस तरह की भाषा का इस्तेमाल करके ये जता दिया था की उनमें अब भाई बहन जैसा कुछ नही रहा है...

निशि : "भाई....वो...वो...मेरी चूत पर...वहां की मालिश करो ना....''

नंदू का लंड एकदम बौरा सा गया ये सुनते ही...
उसकी खुद की सग़ी बहन जो उसके सामने नंगी होकर उल्टी लेटी हुई थी..

और फिर उसने भी अपने काँपते हुए हाथो से ढेर सारा तेल अपनी उंगली में समेटा और उसे धीरे से लेजाकर उसकी कराहती हुई चूत पर रख कर धीरे से दबा दिया.

पक्क की आवाज़ के साथ वो तेल से भीगी उंगली उसकी चूत के अंदर फिसलती चली गयी और पूरी अंदर घुसकर ही मानी...

''आआआआआआआआआअहह ओह भेययय्याआआआआ..... उम्म्म्मममममममममम''

ऐसे मौके पर उसे भी भैय्या कहने में एक अलग ही तरह की उत्तेजना महसूस हो रही थी..

अब तो उनके बीच की रही सही शर्म की दीवार भी गिर चुकी थी...
इसलिए नंदू ने अपने दूसरे हाथ से अपनी धोती की गाँठ खोल कर अपने हुंकारते हुए शेर को बाहर निकाल लिया और अपनी धोती एक तरफ फेंकते हुए वो अपने खड़े हुए लंड को लेकर सीधा अपनी फूल सी बहन के उपर लेट गया...

''अहह भाईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स''

उसकी गांड के चीरे पर उपर से नीचे तक एक डंडे की भाँति वो धँस कर रह गया...
निशि को ऐसा लगा जैसे उसकी गांड पर कोई लंबा सा डंडा फँसा कर रख दिया हो...
 
उसका फूल सा शरीर चरमरा सा गया अपने भाई के वजन से..
पर इस वक़्त तो उसे अपने शरीर से ज़्यादा नीचे रिस रही चूत की चिंता थी , जिसमें कभी भी उसके भाई का लंड घुस सकता था..

पर वो इतना आसान भी नही था और नंदू उसे इतनी आसानी से करना भी नहीं चाहता था...
आज वो अपनी माँ के घर पर ना होने का पूरा फायदा उठा लेना चाहता था...

भले ही निशि अपने भाई के वजन के तले दबी जा रही थी पर फिर भी उसके लंड के एहसास को अपनी चूत पर महसूस करके उसे मज़ा ही मिल रहा था..

नंदू ने धीरे-2 अपने शरीर को आगे पीछे करना शुरू कर दिया..
जैसे रेल गाड़ी में बैठकर धक्के लगते है, ठीक वैसे ही वो अपने शरीर को हिलाने लगा..

निशि को अपनी गांड पर उस डंडे का एहसास उपर से नीचे तक महसूस हो रहा था..
एक अजीब सी शक्ति उसकी चूत के अंदर से उस लंड को अपनी तरफ बुला रही थी पर नंदू था की उसे उपर ही उपर से घिस्से मारे जा रहा था..

बार-2 वो अपने फड़कते होंठो से ये बोलने की कोशिश करती की अब डाल भी दो ना भैय्या पर वो कह नही पाती थी...
नंदू भी उसकी हालत को देखकर उन पलों का मज़ा ले रहा था..

उसने लगभग अपने दोनो होंठ उसके कान में घुसेड़ते हुए कहा : "क्या हुआ निशि ...अब कैसा फील हो रहा है तुझे...बोल ना...''

वो अपनी उसी सुरीली आवाज़ में कराहती हुई बोली : "अहह.....अच्छा .... बहुत अच्छा ...... कल से भी ज़्यादा...... उम्म्म्मम.......''

नंदू तो उसे पूरी तरह से अपनी बोतल में उतारने के चक्कर में था...
नीचे का नाड़ा तो वो खोल ही चुका था अब उपर का हुक खोलना बाकी रह गया था..

वो बोला : "ओ निशि...ऐसा मज़ा तुझे पूरा लेना है क्या...''

निशि तो जैसे बरसों से इसी बात का इंतजार कर रही थी...
वो कराहते हुए बोली : "भैय्या ..आज सारे मज़े दे दो मुझे....मैं तैयार हूँ ...''

नंदू मन में बुदबुदाया 'साली...चुदाई के लिए तो ऐसे कुलबुला रही है जैसे डेली पैसेंजर हो....'

पर उसे अभी चोदने से पहले वो उसके फूल से शरीर का पूरा मज़ा लेना चाहता था..

वो उसके उपर से हटा और उसे सीधा होकर लेटने को कहा..
और नंदू ने उसे अपनी टी शर्ट भी उतारने को कहा ताकि वो उसकी पूरी तरह से मालिश कर सके ..

वो उठी और अपनी टी शर्ट उतार कर वो जन्मजात नंगी होकर अपने बिस्तर पर लेट गयी...
उसे अभी शर्म आ रही थी इसलिए उसने अपनी आँखे बंद कर ली...
पर नंदू तो बेशर्म बन चुका था...
अपनी जवान बहन को अपने सामने नंगा लेटे देखकर उसकी तो आँखे फटी की फटी रह गयी...
वो उसके रसीले बदन को उपर से नीचे तक देखते हुए अपने लंड को मसलने लगा..

और लंड मसलते हुए वो बुदबुदाया : "साली....ऐसा नशीला बदन है तेरा...पहले पता होता तो कब का चोद चुका होता..''

और निशि तो जैसे एक बादल के टुकड़े पर तैर रही थी...
उसके चारों तरफ का माहौल इतना रोमॅंटिक हो चुका था की इस वक़्त तो उसकी चूत पर कोई एक दस्तक भी दे डाले तो वो झड़ जाती...
सैक्स में ऐसी उत्तेजना का संचार होता है शरीर में ये उसे आज ही पता चला..
अब तो वो मन ही मन यही चाह रही थी की नंदू अपने लंड का खूँटा जल्द से जल्द उसकी चूत में गाड़ डाले और उसे इतनी बेरहमी से चोदे की लाला के लंड को लेने में भी उसे तकलीफ़ ना हो.

नंदू ने एक बार फिर से उसकी बॉडी पर ढेर सारा तेल डाला और उसे मसलने लगा...
तेल में चुपड़ कर उसकी बॉडी देसी परांठे जैसी हो गयी..
मन तो उसका कर रहा था की इस करारे परांठे को वो चपर -2 करके खा जाए...

पर उससे पहले उसे चुदाई से पहले की जाने वाली सारी क्रियाओं का मज़ा भी तो लेना था..

वो धीरे से नीचे झुका और उसने निशि के कड़क निप्पल को मुँह में भरकर चूस लिया...

''आआआआआआआआअहह ओह भैय्याययययययाआ''

लाला के पोपले मुँह के मुक़ाबले नंदू के सख़्त होंठ वाकई में कमाल के लग रहे थे उसे...
उसने नंदू के सिर पर हाथ रखकर उसे अपनी छाती के उपर गिरा कर भींच लिया ताकि वो उसे अच्छी तरह से चूस सके..

नंदू तो पहले से ही अपना पूरा मुँह खोलकर उसके मुम्मे को मुँह में डाल चुका था...
निशि ने जब हेल्प की तो एक ही बार में उसने दोनो निप्पल अपने मुँह में लेकर उनपर दांतो से काट लिया, एक करंट सा दौड़ गया अपने भाई की इस हरकत से उसके सहरीर में.

धीरे-2 वो नीचे की तरफ जाने लगा...
जिस खुश्बू को वो कल रात से भुला नही पाया था उसकी तह तक जाकर वो उसे चूस लेना चाहता था...
और जैसे ही उसका चेहरा निशि की चूत के उपर पहुँचा, तो निशि ने एक जोरदार चीख मारकर उसे खुद ही अपनी चूत के अंदर खींच लिया...

''ओह भईआययय्याआआआआआ....... उम्म्म्मममममममममम..... चाआटो मुझे....... अहह चूऊस डाआलो......... मिटा दो मेरे अंदर की......साआरीइ.....खुजली...''

जिस तरह से वो ये सब बोल रही थी उससे सॉफ पता चल रहा था की ये उसका पहली बार नही है..
पर जैसा की निशि खुद ही बोल चुकी थी की उसने पिंकी के साथ ये सब मज़े लिए है तो नंदू भी अपने काम में लगा रहा, अगर उसे ये पता चल जाता की जिस चूत को वो चूस रहा है उसे पिंकी के अलावा लाला ने भी चूसा है तो पता नही वो क्या कर बैठता...

पर अभी के लिए तो उसे अपनी बहन की इस कुँवारी चूत को चूसने में काफ़ी मज़ा आ रहा था...
ऐसा लग रहा था जैसे अन्नानास का ताज़ा रस निकल रहा है उसकी चूत से....
थोड़ा खट्टा और थोड़ा मीठा...
और उसकी चूत के मखमली होंठो को चूसने में भी एक अलग ही मज़ा मिल रहा था....

और अचानक निशि का शरीर हिचकोले खाने लगा...
आज की शाम का पहला ऑर्गॅज़म उसके शरीर से निकालकर चूत के रास्ते रास बनकर बाहर निकलने लगा जिसे उसके भाई नंदू ने बेख़ुबी से चूस कर निपटा दिया...

और अपने उन भीगे होंठो को लेजाकर उसने सीधा निशि के होंठो पर रख दिया और उन्हे बुरी तरह से चूसने लगा..

अपने भाई से मिल रही पहली किस्स और वो भी अपनी चूत के रस से भीगे होंठो से...
ये निशि की उत्तेजना को बड़ाने के लिए प्रयाप्त था...
वो नंदू की गोद में चड़कर उससे बुरी तरह से लिपट गयी, जैसे उसके अंदर समा जाना चाहती हो
और उस स्मूच का जवाब उससे भी बड़ी वाली स्मूच से देने लगी

उसने तो अपनी टांगे भी फेला डाली...
ताकि इस किस्स को करते-2 नंदू अपना लंड अंदर पेल ही डाले...
जो होगा देखा जाएगा...
पर नंदू तो नंदू ही था..
अभी तो उसे अपने राजा बेटे यानी अपने लंड को भी थोड़े मज़े दिलवाने थे
और वो काम उसकी चूत के होंठो से ज़्यादा उसके मुँह के होंठ कर सकते थे.

इसलिए उसने निशि की उस चुदाई के ऑफर को थोड़ी देर के लिए साइड में रखते हुए उसे अपने लंड की तरफ धकेल दिया ताकि वो उसे अच्छे से चूस कर चुदाई के लिए तैयार कर सके..

निशि भी काफ़ी देर से अपने भाई के छोटे भाई को पकड़ने और मुँह में लेने के लिए तड़प रही थी...
अब मौका मिला था तो वो उसे पूरी तरह से इस्तेमाल कर लेना चाहती थी...

वो नागिन की तरह सरकती हुई नीचे तक गयी और नंदू के लंड को हाथ में पकड़ कर उसे एकटक निहारने लगी... अपनी चूत को फाड़ने वाले इस लंड को वो अपनी आँखो में हमेशा के लिए बसा लेना चाहती थी...
जैसे पहला प्यार कभी नही भुलाया जाता ठीक वैसे ही वो इस पहली चुदाई में होने वाले हथियार को हमेशा के लिए अपनी आँखो में बसा लेना चाहती थी...
ताकि आज के बाद जब भी उसकी चुदाई हो तो इस लंड को मन में सोचकर उस पल को याद कर सके और पहली चुदाई का मज़ा हर बार ले सके.

उसने धीरे से अपनी साँप जैसी जीभ निकाली और उसके लंड पर आई ओस की बूँद को चाट कर निगल गयी...

''आआआआआआआअहह भाई....... इतना मीठा है तुम्हारे लंड का पानी...... उम्म्म्ममममम''

और फिर उसके बाद तो वो रुकी ही नही.....
अपनी जीभ और होंठो को उस मोटे खीरे जैसे लंड के चारों तरफ लपेटकर वो उसकी मोटाई और गहराई नापने लगी....
नंदू ने उसके चेहरे को अपने हाथो से पकड़ा और अपना मोटा और लंबा लंड उसके मुँह में डालकर उसके मुँह को चूत की तरह चोदने लगा..
उसके मखमली होंठो में लंड फँसाकर हिलाने में इतना मज़ा मिल रहा था तो उसकी चूत मारने में कितना मज़ा आएगा, यही सोचकर उसका लंड और भी कड़क होकर अंदर बाहर होने लगा.

नंदू अपनी आँखे बंद करके उसके रेशमी होंठो को अपने लंड पर महसूस करके कराहने लगा....

''अहह..... ओह निशि ...... मेरी ज़ाआआआनन्न.... उम्म्म्ममममममममम.... चूऊस साली......अहह....... खा जा इसे पूरा ....''

खाने के नाम से उसे लंड के नीचे लटके टटटे भी याद आ गये...
उसने लंड को बाहर निकाला और उसकी बॉल्स मुँह में भरकर उनका रस निचोड़ने लगी....

नंदू को भी आज से पहले ऐसा मज़ा आज तक नही मिला था....
आज से पहले तो वो अपने हाथ का खिलाड़ी था
और वो जानता था की अब उसे अपना हाथ इस्तेमाल करने की जरुरत नहीं पड़ेगी क्योंकि अब तो ये रोज ही हुआ करेगा...

निशि तो उत्तेजना के मारे इतनी पागल सी हो चुकी थी की उसे अब नंदू के हर अंग को चूसने में मज़ा मिल रहा था... उसकी बॉल्स को चूसते -2 वो कब उसकी गांड के छेद को चाटने लगी ये भी उसे पता नही चला...
नंदू के लिए ये एक अलग तरह का एक्सपीरियेन्स था...
एक अजीब तरह की गुनगुनाहट का एहसास हुआ उसे जब निशि ने उसके लंड को मुट्ठी में भरा,
उसके झूल रहे टटटे उसकी आँखो में धाँसे जेया रहे थे
और उसके करिश्माई होंठ नंदू के निचले छेद पर बुरी तरह जमकर वहां की चुसाई कर रहे थे....
नंदू का पूरा शरीर हवा में तैर रहा था...

और अचानक अपनी बंद आँखो के पीछे उसे ये एहसास हुआ की ये जो मज़ा उसे मिल रहा है वो निशि नही बल्कि उसकी माँ उसे दे रही है...
यानी इस वक़्त भी उसके जहन में उसकी माँ के ख़याल ही आ रहे थे...

और उसे पता भी नही चला की कब अपने चरम पर पहुँचते हुए उसके मुँह से निशि के बदले अपनी माँ के लिए वो शब्द निकल गये जो शायद उसे अपनी बहन के सामने बोलने ही नही चाहिए थे...

''ओह माँ आआआआआआ..... चूस मेरे लंड को........ खा जा इसे....माँ ''

और अगले ही पल उसने चौंकते हुए अपनी आँखे खोल दी....
और ऐसा ही कुछ निशि ने भी किया जब उसने अपने भाई के मुँह से अपनी माँ के लिए वो सब सुना...

पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी...
कमान से निकले तीर की भाँति शब्द भी लौटकर आने वाले नही थे...
और ना ही वो पिचकारी लोटने वाली थी जो उसके उन शब्दो के साथ ही उसके लंड से निकली थी...

एक के बाद एक पिचकारी मारते हुए नंदू के लंड ने निशि के चेहरे को तर बतर कर दिया...

पर झड़ने के बाद होने वाली वो खुशी उसके चेहरे से गायब थी...
क्योंकि निशि की नज़रें उससे लाखो सवाल कर रही थी.
 
और उसे पता भी नही चला की कब अपने चरम पर पहुँचते हुए उसके मुँह से निशि के बदले अपनी माँ के लिए वो शब्द निकल गये जो शायद उसे अपनी बहन के सामने बोलने ही नही चाहिए थे...

''ओह माँ आआआआआआ..... चूस मेरे लंड को........ खा जा इसे....माँ ''

और अगले ही पल उसने चौंकते हुए अपनी आँखे खोल दी.... और ऐसा ही कुछ निशि ने भी किया जब उसने अपने भाई के मुँह से अपनी माँ के लिए वो सब सुना...पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी...
कमान से निकले तीर की भाँति शब्द भी लौटकर आने वाले नही थे...और ना ही उसके लंड की वो पिचकारी लोटने वाली थी जो उसके उन शब्दो के साथ ही उसके लंड से निकली थी...

एक के बाद एक पिचकारी मारते हुए नंदू के लंड ने निशि के चेहरे को तर बतर कर दिया...पर झड़ने के बाद होने वाली वो खुशी उसके चेहरे से गायब थी...क्योंकि निशि की नज़रें उससे लाखो सवाल कर रही थी.

**********
अब आगे
**********

नंदू कुछ देर तक उसके सवालो से भरे चेहरे को देखता रहा और फिर बिना कुछ कहे अपने कपड़े पहन कर बाहर निकल गया और अपनी साइकल उठा कर फिर से खेतों की तरफ चल दिया.

निशि की तो समझ में ही नही आया की ये एकदम से हुआ क्या है...
उसके और नंदू के बीच की वो दीवार अब गिर चुकी थी और ऐसे में तो नंदू को उसके नंगे हुस्न को देखकर पागल हो जाना चाहिए था...
पर वो साला तो माँ के बारे में सोच रहा था..
इसका मतलब सॉफ था, वो उससे ज़्यादा अपनी माँ का दीवाना था,
तभी तो अपनी नंगी बहन से लंड चुसवाते हुए भी उसे उन्ही का ख़याल आ रहा था.

वो झल्लाती हुई सी उठी और अपने बाथरूम में घुसकर अपना चेहरा सॉफ करने लगी...
अब तो पिंकी ही इस बात का कोई समाधान निकाल सकती है...
इसलिए उसने अपना हुलिया ठीक किया और कपड़े पहन कर वो पिंकी के घर की तरफ चल दी.

उधर शाम को लाला ने अपने लंड की गर्मी देखते हुए अपनी दुकान जल्दी बढ़ा दी...
उसकी धोती में क़ैद रामलाल तभी से नाज़िया के नाम की रट लगाए हुए था जब से उसकी माँ शबाना उसे शाम को घर आने का न्योता देकर गयी थी.

एक बार फिर से शबाना की बेटी को उसकी अम्मी के सामने चोदने का मज़ा वो खोना नही चाहता था..
इसलिए अपनी बुलेट पर चावल की बोरी लादकर वो उनके घर की तरफ चल दिया.

शबाना को शायद लाला का ही इंतजार था, इसलिए दरवाजा पहले से ही खुला मिला उन्हे....
लाला अंदर आया, बोरी को साइड में रखा और घर के अंदर चल दिया.

पूरे घर में शांति सी छाई हुई थी और अंधेरा भी था, लाला तो अपने लंड को लालटेन बनाकर नाज़िया को ढूंढता हुआ सा अंदर घुसता चला गया..
नाज़िया तो नही दिखी पर अपने कमरे में कपड़े बदलती हुई शबाना ज़रूर दिखाई दे गयी,
उसका गीला बदन देखकर पता चल रहा था की वो अभी-2 नहा कर आई है...
घर में लाइट नही थी, इसलिए बाहर जल रही मोमबत्ती की हल्की रोशनी वहां पहुँच रही थी जिसमें उसके हुस्न का दीदार हो रहा था लाला को...
वो अभी सिर्फ़ कच्छी ही पहन पाई थी और उपर से नंगी थी और लाला के लंड को और सख़्त करने के लिए उसके वो बड़े मुम्मे ही काफ़ी थे..

लाला : "हाय ...मेरी जान....क्या कहर मचाने का इरादा है...''

शबाना तो लाला को अपने कमरे में देखते ही एकदम से चोंक सी गयी...
ऐसे नाटक करने लगी जैसे उनके आने का पता ही नही चला उस छिनाल को.

अपने मुम्मो को अपने हाथो से ढ़कते हुए वो हड़बड़ाई हुई सी आवाज में बोली : "ओह्ह्ह .. लालाजी...आप......!!!!''

लाला ने अपनी धोती को उपर करके अपना सेवक रामलाल बाहर निकाल लिया ,
लाला के चमक रहे सुपाड़े को देखकर उसकी गीली कच्छी और भी गीली होने लगी,
उसकी चूत अपने ही रस में डूबकर गिचगिचाने लगी.....

लाला : "आया तो मैं नाज़िया के लिए था पर तेरे हुस्न को देखकर अब आँखे हटाने का मन सा नही कर रहा ....''

तब तक शबाना भी अपनी वो नकली शर्म त्याग कर उनके करीब आ गयी और अपने मोटे मुम्मे लाला की छाती से रगड़ते हुए बोली : "नाज़िया और मुझमें ज़्यादा फ़र्क थोड़े ही है लालाजी.... उससे ज़्यादा आग लगी रहती है मेरी निगोडी चूत में ..और आपके लंड को देखकर तो वो और भी भड़क जाती है...''

उसकी बातो से लाला को जलन की बू आ रही थी...
कही ऐसा तो नही था की उसके आने से पहले शबाना ने जान बूझकर नाज़िया को कहीं भेज दिया हो...
भले ही माँ थी वो उसकी पर एक औरत के प्रेमी पर जब उसकी खुद की बेटी नज़र डाले तो वो अपना आपा खो ही देती है...

पर लाला को इससे आगे कुछ सोचने समझने का मौका ही नही मिला क्योंकि नाज़िया ने अपने गीले और नंगे बदन को लाला से रगड़ते हुए अपना सारा पानी पोंछ डाला...
लाला की घनी मूँछ और दाढ़ी से भरे चेहरे को वो बेतहाशा चूमने लगी, लाला के लंड को पकड़ कर उसे दोहने लगी और अपने पैर उचका कर उसे अपनी चूत पर रगड़ने लगी..

लाला : "ओह्ह्ह्ह .....शबाना.....मेरी जान .... आज लगता है तुझे कुछ ज़्यादा ही गर्मी चढ़ी हुई है....''

पर शबाना उन बातो का जवाब देने के मूड में नही थी इस वक़्त...
वो लाला के गठीले बदन को चूमते हुए उनके कुर्ते को निकालने लगी और जैसे ही वो उतरा उसने अपने प्यासे होंठ लाला के निप्पल पर लगा कर उनका दूध पीना शुरू कर दिया...

लाला : "ओह मदारचोद ......साआाअली...... उम्म्म्मममममम...... चाट ले इसे...... आज तो तुझे मेरे टटटे भी चाटने होंगे.... वो तुझ जैसा कोई और नही चाट्ता....''

अपनी ये तारीफ सुनकर वो तैश में आ गयी और उन्हे चूसते हुए नीचे तक जाने लगी...
लाला ने एक झटके में अपनी धोती भी उतार फेंकी और वो अब किसी रेसलिंग के पहेलवान की तरह पूरा नंगा खड़ा था शबाना के अखाड़े में ...
वो नीचे बैठी और लाला के टट्टो को मुँह में लेकर उन्हे जोरों से चूसने लगी जैसे उसके कल के नाश्ते का मक्खन उनमें से ही निकलेगा...

शबाना मे एक खूबी ज़रूर थी जो लाला को हमेशा से पसंद थी और वो ये की उसे अपनी जीभ और मुँह को उसके किसी भी अंग में घुसाने में कोई शर्म या घिन्न नही आती थी...
चाहे वो उसके टटटे हो या फिर उसकी गांड का छेद.

लाला की बॉल्स चूसने के बाद उसका अगला निशाना लाला की गांड का छेड़ ही था...
उसने लाला के एक पैर को अपने कंधे पर रखा और नीचे घुस कर उन्हे नीचे से चाटने लगी...
जैसे कोई कार मैकेनिक गाड़ी के नीचे घुस कर काम करता है, ठीक वैसे ही वो लाला की गाड़ी की मरम्मत करने में लगी हुई थी..

लाला का मोटा लंड किसी हिचकोले खा रहा था
 
''अहह शबाआंआआआआआना ...... उम्म्म्ममममममममममममममम.... मजाआाआ आआआआआअ गय्यहा आआआआअ.... अहह....''

और तभी लाला की आँखे खुली और उन्होने शबाना के ठीक पीछे नाज़िया को खड़े देखा....
जिसके हाथ में कुछ सिलाई के लाए हुए कपड़े थे जो शायद उसने किसी के घर देने के लिए भेजा था...
उसके चेहरे पर भी आश्चर्य के भाव थे क्योंकि वो भी जानती थी की लाला उसके लिए ही शाम को आने वाला है और शायद तभी से उसकी चूत में हो रही कुलबुलाहट उसे चैन से बैठने नही दे रही थी...
ऐसे में एकदम आख़िरी वक़्त पर जब उसकी माँ ने सिलाई के कपड़े देकर उसे देकर आने को कहा तो वो झल्ला गयी थी क्योंकि जहां उसकी अम्मी उसे भेज रही थी वो घर काफ़ी दूर था ...
पर एक बात और थी की रास्ते में लाला की दुकान भी पड़ती थी, और वहां पहुँचकर उसने देखा की लाला दुकान बंद करके उसके घर की तरफ ही जा रहा है तो वो उसी शॉर्टकट रास्ते से वापिस घर की तरफ भाग ली पर तब तक उसकी माँ की चाल कामयाब हो चुकी थी,
लाला का लंड उसके हाथ में था और वो उसके कदमो में पड़ी उसके टटटे और गांड चाट रही थी...

अब लाला को भी थोड़ी मस्ती सूझी...
वो जानता था की नाज़िया की चूत भी उसके लंड के लिए उतनी ही मचल रही है जितनी की शबाना की,
पर शबाना ने अपनी चालाकी से पहले बाजी मार ली थी...
पूरी नंगी होकर वो इस खेल में पहले ही शामिल हो चुकी थी इसलिए अब उसे हटाया तो जा नही सकता था पर इतना ज़रूर था की इस खेल को थोड़ा और रोचक ज़रूर बनाया जा सकता था.

इसलिए लाला कुछ सोच समझकर बोला : "ओह्ह्ह ....शबाना ...मेरी जान...माना की तेरे जैसे टटटे कोई नही चूसता पर नाज़िया जैसा लंड भी कोई और नही चूस सकता ...कसम से...''

लाला का इतना कहना था की शबाना भरभराकर बोली : "ओह्ह्ह लाला.....वो कल की बच्ची क्या चूसेगी... मुझे देखकर ही तो सीखी है वो सब....''

इतना कहते हुए उसने लाला के रामलाल को मुँह में डाला और उसे उपर से नीचे तक अपनी थूक से नहला कर चूसने लगी..

अपनी माँ की ये बात सुनते ही नाज़िया भी जोश में आ गयी
और वो भी बेशर्मो की तरह उनके सामने आती हुई बोली : "नही अम्मी.....ऐसा नही है... मुझे सिखाने में आपसे ज़्यादा मेरे हुनर का हाथ है... मुझमें ही हमेशा से इस तरह से लंड को चूसने की ललक थी, मेरी सहेलियों ने अक्सर बताया था की लंड को कैसे चूसा जाता है, और लाला के लंड को चूसने से पहले मैने ना जाने कितने केले खाए थे अकेले में, घंटो उन्हें चूसकर प्रेक्टिस करती रहती थी, तब जाकर ऐसा हुनर आया है मुझमे ...''

वो तो अपना मुक़द्दमा लेकर सीधा अपनी माँ के सामने कूद पड़ी थी..अनजाने में ही सही पर उनके घर में ज्यादा केले क्यों आते थे, इनका राज खोल दिया था नाज़िआ ने.

शबाना भी उसे एकदम से अपने सामने खड़े देखकर चोंक सी गयी,
क्योंकि उसे गये हुए अभी कुछ ही देर हुई थी और उसके अंदाज़े के अनुसार तो उसे अभी और भी टाइम लगना था वापिस आने में..

पर वो एकदम से सामने भी आ गयी और उसकी बात सुनकर अपनी दलील भी दे रही थी,
इससे सॉफ जाहिर था की उसे अपनी अम्मी की कही बात पसंद नही आई...

पर अब लाला के सामने वो अपनी बेटी से लड़कर उस बात का बतंगड़ नही बनाना चाहती थी,
इसलिए वो खड़ी हुई और अपनी बेटी को पूचकारते हुए प्यार से बोली : "अररी, आजा मेरी लाडो, मैं तो लाला से बस यही कह रही थी की ये तो एक खानदानी हुनर है जो मुझसे तेरे में गया है...तू अपना दिल छोटा ना कर...ये देख, लालाजी तो तेरे लिए ही आए है यहां ..और जब तक तू वापिस आती तो मैने सोचा की मैं ही इनकी कुछ खिदमत कर देती हूँ ...पर अब तू आ गयी है तो तू भी आजा...''

साली बड़ी हरामी औरत थी वो...
उसने बड़े प्यार से अपनी बेटी को अपने शब्दो के जाल में उलझा कर उसे शांत करा लिया...
नाज़िया भी बात को ज़्यादा बढ़ाना नही चाहती थी क्योंकि लाला के आतिशी लंड को देखकर उसकी चूत बुरी तरह से पनिया रही थी...
ऐसे में वो अपनी अम्मी से लड़कर उस खूबसूरत लंड से हाथ धोना नहीं चाहती थी.

इसलिए उसने तुरंत अपनी कुरती उतार फेंकी और नीचे से अपनी शमीज़ को भी उतार दिया...
उसकी नन्ही और नुकीली ब्रेस्ट देखकर लाला का लंड और भी ज़्यादा ज़ोर से हुंकारने लगा...
अपनी कच्छी भी उसने एक ही झटके में उतार डाली और अब वो पूरी नंगी होकर खड़ी थी लाला के सामने,
और उसके नंगे हुस्न को देखकर लाला की लार टपके ही जा रही थी..

और अगले ही पल वो दोनो माँ बेटियां लाला के सामने बैठकर अपने-2 हिस्से के अंगो को चूसने और चुभलाने लगी..

नाज़िया ने लंड को चूसा तो शबाना ने लाला के टट्टो को...

खुशनसीब होते है वो लोग जिनके लंड और टटटे दो अलग-2 मुँह में होते है और वो भी एक ही वक़्त में...
और इस वक़्त लाला के साथ ऐसा हो रहा था...
वो तो अपना मुँह फाड़े , अपनी आँखे बंद किए ऐसे खड़ा था जैसे किसी देश का प्रधान हो...

और लाला के रामलाल को अच्छी तरह से खुश करने के बाद वो दोनो लाला का हाथ पकड़ कर पास पड़े बेड तक ले गयी और उन्हे लिटा कर दोनो लाला के इर्द गिर्द चिपक कर उन्हे चूमने लगी...
एक तरफ मोटे और गद्देदार मुम्मे थे और दूसरी तरफ नन्हीं और कड़क चुचियां..
लाला ने पूरी जिंदगी यही तो कमाया था जो उसे ऐसा सुख मिल रहा था...
और इसका सारा श्रेय उनके लंड रामलाल को जाता था जो इस उम्र में भी ऐसी परफॉर्मेंस देकर उन्हे इस तरह की ऐश करवा रहा था..

पहले चुदना नाज़िया को था इसलिए वो बिना किसी विरोध के लाला के उपर सवार हो गयी और और लाला की आँखो में देखते हुए उसने अपना हाथ नीचे डालकर रामलाल को पकड़ा और उसे अपनी चूत के मुहाने पर रखकर धीरे से सीसीया उठी और फिर अपनी माँ के चेहरे को देखते हुए वो धीरे-2 उस लंबे डंडे पर अपनी चूत के बल उतरने लगी...

एक तो डंडा इतना चिकना और उपर से चूत भी रस बरसा रही थी,
ऐसे में उस मोटे लंड को उस कमसिन चूत में उतरने में ज़रा भी तकलीफ़ नही हुई...
और जल्द ही वो पूरा का पूरा लंड अपनी चूत में हड़प कर गयी..

और उसके बाद जब उसने लाला के सीने पर अपने हाथ रखकर अपनी कमर मटकानी शुरू की तो लाला सिर्फ़ उसकी नन्ही बूबियाँ हिलती हुई देखता रहा...
बाकी का काम यानी अंदर बाहर का वो खुद ही करती रही...

लाला के मोटे लंड पर उसकी कसी हुई चूत किसी मखमली कपड़े का एहसास दे रही थी...
हर बार जब वो अपनी रस से भीगी चूत को लाला के लंड पर ढप्प से टकराती तो चूत के रस की बूंदे छलक कर दूर तक जा गिरती..

और वो बूंदे जब शबाना के शरीर पर पड़ती तो वो ऐसे मचल उठती जैसे तपते हुए रेगिस्तान पर पानी का छिड़काव कर दिया हो...

अपनी बेटी को देखकर लाला के लंड को लेने की इच्छा उसमें भी थी...
पर अभी तो नाज़िया का नंबर लगा हुआ था, इसलिए उसे अपनी बार की प्रतीक्षा करनी थी...

और जल्द ही लाला के साथ-2 नाज़िया का शरीर भी अकड़ने लगा...
और जल्द ही लाला के जिस्म का लावा नाज़िया की चूत से निकले गर्म पानी के साथ मिलकर एक नये रसायन का निर्माण करने लगा... [embed]http://ad.a-ads.com/2315437?size=300x250[/embed]
 
''ओह लाला जी........... अहह क्या लॅंड है आपका..... कसम से...... मन करता है की पूरी जिंदगी आपसे चुदवाती रहु.....अहह....''

उसकी माँ शबाना ने मन में सोचा की अभी से इसके ये जलवे है तो बड़ी होकर पता नही क्या कहर ढाएगी...
सच ही निकला था उसके मुँह से कुछ देर पहले की चुदाई के ये तरीके उसके अंदर से ही निकले है जो उसकी बेटी ने सीख लिए है...

लाला भी अपना सारा पानी निकाल कर अपने आप को थोड़ा हल्का महसूस कर रहा था...

नाज़िया का नम सा शरीर उसके उपर गिरा और वो उसके गुलाबी होंठो को चूसते हुए लंड की पिचकारियों का अंत तक मज़ा लेता रहा...

और इसी बीच शबाना सरककर उन दोनो की टाँगो के बीच पहुँच गयी और चूत और लंड के मिलन स्थल से निकल रही मलाई को चाटकार सॉफ करने लगी...
और करती भी क्यो नही आख़िर खुद की गरज जो थी उसे...
लाला के लंड को लेने की.

दूसरी तरफ निशि भुनभुनाती हुई पिंकी के घर पहुँच गयी...
और उसने एक ही साँस में रास्ते से लेकर लंड चुसाई तक की बात उसे सुना डाली और ये भी बताया की आख़िर में झड़ते हुए नंदू ने किस अंदाज में अपनी माँ का नाम लिया था...

पिंकी भी ये सब सुनकर गहरी सोच में डूब गयी...
मामला पहले से ज़्यादा गंभीर और पेचीदा हो चुका था...
पर अंदर ही अंदर वो जानती थी की अंत में इस खेल में कितना मज़ा आने वाला है...

पिंकी के चेहरे पर पहले तो चिंता के भाव थे..
पर फिर धीरे-2 वो मुस्कुराने लगी
और ऐसे मुस्कुराइ जैसे निशि की बात सुनने के बाद उसे अपनी अगली चाल के लिए कोई आइडिया मिल गया हो.

निशि : "अब कुछ बोलेगी भी...मेरी हालत खराब हुई पड़ी है और तू मुस्कुराए जा रही है...कुछ तो बोल...''

पिंकी : "अब हमे कुछ करने की ज़रूरत नही है...करेगा तो अब नंदू और वो भी जैसा हम कहेंगे वैसा ...''

निशि : "मतलब ??''

पिंकी : "मतलब ये मेरी जान की अब तेरी चूत को ज़्यादा इंतजार नही करना पड़ेगा...तेरा भाई नंदू उसे बुरी तरह रोंदेगा, चोदेगा और अपना लंड अंदर डालकर इसमें अपना पानी भी निकालेगा...''

निशि का चेहरा चमक उठा, उसे पूरा विश्वास था की पिंकी जैसा कह रही है वैसा ज़रूर होगा..

पर कैसे ??

ये पूछने पर पिंकी ने उसे शरारती आवाज़ में कहा : "तू आम गिन ना, पेड़ गिनने से क्या मतलब...?? अब तू सब कुछ मुझपर छोड़ दे...''

पिंकी को तो खुली आँखो से ही नंदू दिखाई दे रहा था...
और वो भी निशि की चुदाई करता हुआ...

फिर उसने अपनी आगे की योजना निशि को सुनाई...
पूरी तो नही पर उतनी ज़रूर बताई जिससे निशि को अंदाज़ा हो गया की उस चतुराई की दुकान पिंकी के दिमाग में क्या चाल चल रही है...

दूसरी तरफ नंदू साइकल लेकर वापिस खेतो की तरफ चल दिया और जाते हुए उसके दिमाग़ की सारी नसें फूल कर फटने को हो रही थी...
आज ही के दिन उसके साथ जो कुछ भी घटा था वो किसी सुखद सपने के साकार होने जैसा ही था पर लास्ट में आकर जो चुतियपन्ति उससे हो गयी थी वो भी किसी डरावने सपने से कम नही थी.

उसने तो सोचा भी नही था की अपनी खुद की बहन निशि के साथ वो इस हद्द तक आगे बढ़ जाएगा...
पर एक बात तो उसने भी नोट की थी की निशि उससे ज़्यादा इस काम को करने को लालायित थी..
यानी जैसा वो आज तक अपनी माँ के बारे में सोचता आया था वैसा ही कुछ उसकी बहन उसके बारे में सोच रही थी...
तभी तो इतनी आसानी से वो उसका लंड चूसने को तैयार हो गयी....

अपनी माँ का ख़याल आते ही उसे अपनी वो बेवकूफी भी याद आ गयी जो उससे निशि के सामने हो गयी थी...
अच्छा भला वो उसका लंड चूस रही थी...
शायद बाद में वो उसे अपनी चूत भी दे देती..
पर उसकी नासमझी की वजह से सारा खेल बिगड़ गया था...
निशि तो हाथ से गयी ही गयी उपर से निशि को ये भी पता चल चुका था की नंदू के मन में अपनी माँ के लिए कैसे विचार है...

सब उसी की ग़लती है....
उसे अपनी माँ और बहन के विचारो को आपस में मिलाना नही चाहिए था...
दोनो को अलग ही रखना था उसे..

रास्ते भर उसे ये भी विचार आते रहे की कहीं निशि अपनी माँ से वो सब ना कह दे...

पर वो ऐसा करेगी नही...

क्योंकि उसके लंड को चूसते हुए जिस तरह के एक्सप्रेशन्स वो दे रही थी उससे सॉफ जाहिर था की वो भी उस खेल को कितना एंजाय कर रही है...
ऐसे में वो अपनी माँ को वो सारी बाते बता कर अपना ही भांडा नही फुड़वाना चाहेगी..
और ना ही आगे मिलने वाले मज़े को खोना चाहेगी...

यही सब सोचते-2 नंदू खेतो में पहुँच गया...
जहाँ उसे उसकी माँ एक बार फिर से घोड़ी बनकर झुकी हुई दिखाई दे गयी...

और एक ही पल में नंदू अभी तक की सारी बातें भूलकर फिर से अपनी माँ की भरंवा गांड को घूरने लगा..
साला एक नंबर का हरामी था वो..
इतना कुछ होने के बावजूद भी उसके लंड को एक मिनट भी नही लगा फिर से पहले जैसा कड़क होने में.

वो धीरे से बुदबुदाया : "निशि का तो पता नही पर माँ की इस गांड में अपना लंड एक दिन ज़रूर पेलुँगा....अहह''

इतना कहते हुए वो बड़ी ही बेशर्मी से अपने लंड को धोती के उपर से ही मसलने लगा..

उधर नंदू की माँ भी अपना काम लगभग निपटा ही चुकी थी...
उसे नंदू के आने का ज़रा भी आभास नही था..
वो उठी और खेतो के दूसरी तरफ बने ट्यूबवेल्ल वाले झोपडे की तरफ चल दी..

ये देखकर नंदू की आँखे चमक उठी,
उसे पता था की उसकी माँ घर जाने से पहले अपने हाथ पैर और चेहरा अच्छी तरह से सॉफ करती है ट्यूबवेल्ल के पानी से...और कभी मौका मिले तो नहा भी लेती है...
आज वो अपनी माँ के साथ नही था इसलिए शायद वो फिर से नहा ले...
और ऐसा मौका नंदू छोड़ना नही चाहता था..
इसलिए पेड़ो के पीछे छिपता छिपाता वो भी दूसरी तरफ बने उस झोपडे की तरफ चल दिया.

अंधेरा होने को था, आस पास के खेतो में काम करने वाले लोग भी अपने घर जा चुके थे...
नंदू की माँ भी जल्द से जल्द हाथ मुँह सॉफ करके घर जाना चाहती थी,घर जाकर उसे खाना भी पकाना था..

अंदर झोपड़ी के एक कोने में ईंटो और सीमेंट से एक छोटी सी पानी की होद्दी बना रखी थी उन्होने,
जिसके पीछे लगे ट्यूबवेल से पानी निकलकर उसमें जाता और वहां से निकलकर दो नालियों से होता हुआ खेतो के दोनो हिस्सो की तरफ मुड जाता..
आराम करने के लिए उन्होने एक खटिया भी डाल रखी थी झोपड़ी में..

नंदू की माँ अंदर आई और अपनी साड़ी निकालकर खटिया पर डाल दी और होद्दी से पानी लेकर अपने चेहरे और हाथो को सॉफ करने लगी..

इसी बीच नंदू भी दूसरी तरफ से घूमकर वहां पहुँच गया और झोपड़ी के पीछे की तरफ से छुपकर अंदर झाँकने लगा..
जहाँ से वो देख पा रहा था उसे अपनी माँ बिल्कुल सामने की तरफ झुकी हुई दिखाई दे रही थी, और झुके होने की वजह से उसके मोटे स्तन लटक कर उनके ब्लाउस से बाहर आने के लिए मचल से रहे थे...
पानी गिरने की वजह से माँ का ब्लाउस पारदर्शी हो चुका था और अंदर की ब्रा भी गीली होकर चमक रही थी...
ठंडे पानी ने नंदू की माँ के निप्पल खड़े कर दिए थे..

नंदू का खड़ा हुआ लंड झोपड़ी की दीवार से टकरा कर ठोकरे मारने लगा...
उफफफफ्फ़ ...इतना सैक्सी दृशय देखने के बाद तो उससे रुका भी नही जा रहा था...
मन तो उसका कर रहा था की पीछे से जाकर अपनी माँ का पेटीकोट घूँघट की तरह उठाए और अपना मोटा केला अंदर पेलकर उनका वही के वही कांड कर दे...
मानेगी तो मानेगी वरना रेप ही सही.

जीतने गंदे विचार उसके मन में आते जा रहे थे उतनी ही तेज़ी से उसके हाथ अपने लंड पर चल रहे थे...
अपनी बहन को इतनी आसानी से पाने के बाद उसे अब माँ को भी अपने अंटी में लेने में ज़्यादा मुश्किल आती दिखाई नही दे रही थी..

वो ये सोच ही रहा था की कुछ ऐसा हुआ जिसकी उसने कल्पना भी नही की थी,
उसकी माँ ने झोपडे के दरवाजे को अंदर से बंद करने वाली डोरी को एक लकड़ी में लपेटकर दरवाजे को अंदर से बंद किया और एक ही झटके में उन्होने अपना ब्लाउस और ब्रा निकाल कर खटिया पर फेंक दी...

जिस माँ को नंगा देखने के लिए वो मरा जा रहा था वो उसके सामने टॉपलेस थी...
माँ के कसावट से भरे मुम्मे ब्लाउस से निकलने के बाद ऐसे झूम रहे थे जैसे बरसो की कैद से निकले हो..
दोनो एक दूसरे से टकरा कर अपनी खुशी का इज़हार भी कर रहे थे...
और उनपर लगे वो मोटे-2 काले निप्पल तो उनकी सुंदरता में चार चाँद लगा रहे थे, माँ ने उन्हे अपनी उंगलियो से उमेठा और पानी लेकर उनपर डाला और उन्हे अच्छे से रगड़ने लगी...

उफफफ्फ़.....
नंदू का लंड तो फटने जैसा हो गया...
और फिर माँ ने अपना पेटीकोट भी उतार कर खटिया पर रख दिया और नंगी होकर खड़ी हो गयी...

फिर वो किसी हिरनी की तरह उछलकर पानी की छोटी सी होद्दी में बैठ गयी और रगड़ -2 कर अपने अंगो से मिट्टी सॉफ करने लगी...

ये तो नंदू के लिए किसी जैकपॉट जैसा ही था...

उसकी माँ तो यही सोचकर नहा रही थी की आज घर का काम यही पर निपटा लेती है,
घर जाएगी , फिर नहाएगी ।।
अभी नंदू नही था इसलिए वो आराम से यहीं नहाकर काम निपटा लेना चाहती थी.

अब उसे क्या पता था की जिस नंदू को वो घर गया हुआ समझ रही थी वो उसकी नंगी जवानी के दर्शन करने के लिए वापिस आ चुका था..
और इस वक़्त उसे नंगा नहाते हुए देख रहा था...

नहाते हुए जब भी उसके हाथ अपने निप्पल्स पर जाते तो एक अजीब सी झंनझनाहट पूरे शरीर में दौड़ जाती और ना चाहते हुए भी उसे अपने बेटे की रात वाली हरकत और आज दिन में लंड हिलाने की हरकत याद आने लगी...

और ऐसा सोचते हुए उनके चेहरे पर जो मुस्कान आई उसका तो कोई मुकाबला ही नही था...
और मुस्कुराते हुए जब उनके हाथ खुद ब खुद चूत की तरफ जाने लगे तो उन उंगलियो को एक पल भी नही लगा उस चूत की परतों को खोलने में जो कल रात से ही एक जबरदस्त रगड़ाई के लिए मचल रही थी...

नंदू देख तो नही पाया पर अपनी माँ की बाहो की हरकत से उसे सॉफ पता चल रहा था की पानी के अंदर वो क्या रगड़ रही है...

उसकी 40 की उम्र की माँ इस वक़्त नंगी होकर पानी में बैठी मुठ मार रही थी...
ये बात उसे अंदर तक उत्तेजित कर रही थी...
अब तो उसका फ़र्ज़ बन जाना था ये की वो अपनी माँ की चूत को हाथो के बदले अपने लंड की रगड़ाई प्रदान करे ताकि वो इस तरह से छुप छुपकर अपनी एनर्जी बेकार ना करे...

और अपनी माँ की चूत में अपना लंड डालने की कल्पना मात्र से ही उसके लंड से एक बार फिर से बर्फानी सफेद पिचकारियां निकलनी शुरू हो गयी...
जो सीधा झोपडे की घांस और सरकंडो से टकरा कर उसमें विलीन हो गयी.

इधर नंदू के लंड से पानी निकला और वहां से उसकी माँ की चूत ने दूध की धार बाहर निकाल फेंकी...
जो उस पानी के साथ मिलकर उसके खेतो में जाकर विलीन होने लगी...

नंदू का मन तो कर रहा था की बाहर निकल रहे उस शराब समान पानी को पीकर अपनी जन्मो-2 की प्यास बुझा ले पर तब तक उसकी माँ छलाँग लगाकर बाहर कूद आई थी...
शायद अंधेरा होने से पहले वो भी घर जाना चाहती थी, इसलिए..

अपनी माँ का पानी से भीगा बदन देखकर उसके लंड ने एक बार फिर से उठने की कोशिश की पर बेचारा उठ नही पाया...
इतना जबरदस्त ऑर्गॅज़म आने के बाद उसकी भी हालत खराब हो रही थी.

नंदू की माँ ने जल्दी -2 गीले बदन से पानी को पोंछा और अपने कपड़े पहन लिए...
नंदू भी भागकर वापिस अपनी साइकल तक पहुँच गया और उसे लेकर थोड़ी दूर जाकर खड़ा हो गया और जब उसे अपनी माँ खेतो से बाहर आती दिखाई दी तो साइकल लेकर वो उनकी तरफ चल दिया...

अपने बेटे को अपने लिए वापिस आया देखकर नंदू की माँ भी खुश हो गयी और खुशी-2 उसके साथ वापिस घर की तरफ चल दी.

भले ही नंदू इस वक़्त अपनी माँ के शरीर की भीनी खुश्बू सूँघकर एक अलग ही दुनिया में खोया हुआ था पर वो इस बात से अंजान था की मास्टरमाइंड पिंकी ने उसके लिए क्या प्लानिंग कर रखी है.
 
नंदू की माँ ने जल्दी -2 गीले बदन से पानी को पोंछा और अपने कपड़े पहन लिए...
नंदू भी भागकर वापिस अपनी साइकल तक पहुँच गया और उसे लेकर थोड़ी दूर जाकर खड़ा हो गया और जब उसे अपनी माँ खेतो से बाहर आती दिखाई दी तो साइकल लेकर वो उनकी तरफ चल दिया...

अपने बेटे को अपने लिए वापिस आया देखकर नंदू की माँ भी खुश हो गयी और खुशी-2 उसके साथ वापिस घर की तरफ चल दी.

भले ही नंदू इस वक़्त अपनी माँ के शरीर की भीनी खुश्बू सूँघकर एक अलग ही दुनिया में खोया हुआ था पर वो इस बात से अंजान था की मास्टरमाइंड पिंकी ने उसके लिए क्या प्लानिंग कर रखी है.

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अब आगे
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पिंकी ने निशि के साथ मिलकर जो प्लानिंग बनाई थी उसके लिए उन्हे एक सही मौके की तलाश थी
और वो मौका उन्हे अगले दिन ही मिलने वाला था
क्योंकि अगले दिन होली थी...

होली तो वो त्योहार होता है जिसमें दोस्त और दुश्मन सब मिलकर एक दूसरे को रंग लगाते है...
ऐसे में एक दूसरे के दिलो में रंग बिरंगी जज्बातों को लिए निशि और नंदू के साथ -2 पिंकी भी थोड़े मज़े लेना चाहती थी..
और वो इसलिए की नंदू उसे शुरू से ही पसंद था..
हालाँकि लाला के लंड को देखने के बाद उसने यही सोच लिया था की अपनी चूत में पहला लंड लेगी तो लाला का ही...
पर बाद में वो नंदू का भी ज़रूर लेगी
ये भी उसने पक्का कर लिया था...
पर अभी तो उसे अपनी सहेली को उसके भाई नंदू का लंड दिलवाना था
और इस बार वो उनकी माँ को बीच में नही आने देना चाहती थी.
और इसलिए उसने जो प्लान बनाया था उसके बाद तो निशि के सामने वो सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी के बारे में सोचने वाला था...

नंदू जब घर पहुँचा तो निशि वहां नही थी,
वो तो अपनी सहेली पिंकी के घर थी और वहीं बैठकर आगे की योजना बना रही थी...
नंदू को यही बात परेशान कर रही थी की वो आज दोपहर वाली बात अपनी सहेली पिंकी को या अपनी माँ को ना बता दे...
दोनो ही सूरत में उसे शर्मिंदा होना पड़ता था..
इसलिए चाहकर भी वो अपनी माँ की तरफ ध्यान नही दे पा रहा था...
टेंशन की वजह से उसका लंड भी खड़ा होने से मना कर रहा था...
हालाँकि अपनी तरफ से उसकी माँ ने भी अपने जलवे दिखाने की कोशिश की थी, पर उसका सारा ध्यान निशि की तरफ ही था..

रात करीब 9 बजे निशि वापिस आई और बिना खाना खाए वो उपर अपने कमरे में चली गयी, ये बोलकर की वो पिंकी के घर से खाना खाकर आई है...
उसकी माँ ने भी ज़्यादा ज़ोर नही दिया पर नंदू अंदर से परेशान हुए जा रहा था..
निशि ने आने के बाद उसकी तरफ देखा तक नही था, उससे सॉफ जाहिर था की वो उसकी बात पर नाराज़ है...

अब वो भला क्या जाने की ये सब तो पिंकी द्वारा बनाई गयी उस चाल का ही एक हिस्सा था जिसके तहत निशि को अपने भाई से नाराज़गी का नाटक करना था...
वरना आज सुबह जो हुआ उसे भुलाकर वो अपनी चूत में अपने भाई का लंड लेने के लिए फिर से तैयार थी...
पर पिंकी की बात पर भी उसे पूरा भरोसा था, उसने एक बात कही थी निशि से की आदमी को अपने पीछे भागाओ ना की उसके पीछे भागो...
ऐसा करने से एक सुपीरियर जैसी जो फीलिंग आती है उसका कोई मुकाबला नही है...
और बाद में जब वो उसका दीवाना बनकर उसे चोदेगा तो उसमें भी वो अपनी जान लगा देगा..
यानी दोनो ही सूरत में उसका ही फायदा था इसलिए उसने पिंकी की बात मानकर सुपीरियर बनने का नाटक ही किया.

नंदू की माँ भी खाना खाकर सो गयी,
आज खेतो में ज़्यादा काम और शाम को नहाते हुए मूठमार प्रोग्राम के बाद उसके शरीर में भी जान नही बची थी...
माँ के सोने के बाद नंदू भी चुपचाप उठकर उपर गया ताकि वो अपनी नाराज़ बहन को मना सके और सुबह की अधूरी प्यास को पूरी तरह बुझा सके पर उपर जाने के बाद उसे पता चला की आज वो अंदर से दरवाजा बंद करके सोई है...
उसने धीरे से दरवाजा खड़काया भी और उसे आवाज़ भी दी पर जागने के बावजूद उसने सोए रहने का बहाना किया और दरवाजा नही खोला...
कुछ देर तक इंतजार करने के बाद वो नीचे जाकर सो गया..

सब कुछ वैसा ही हो रहा था जैसा पिंकी ने प्लान किया था..
बस निशि को अपने भाई को सताना अच्छा नही लग रहा था...
लगता भी कैसे , उसकी खुद की चूत जो उसके नाम को लेकर बहे जा रही थी...
आख़िरकार उसने अपने सारे कपड़े उतार दिए और अपने भाई के नाम की एक जबरदस्त मुट्ठ मार ली..

तब जाकर उसे भी नींद आई.

अगले दिन होली थी, और अपने प्लान के अनुसार निशि सुबह उठकर सीधा पिंकी के घर पहुँच गयी...
निशि की माँ को भी पता था की होली वाले दिन दोनो सहेलियां पूरे दिन हुड़दंग मचाती है, इसलिए उन्होने भी नही रोका...
नंदू जब उठा तो चिड़िया उड़ चुकी थी, पर बेचारे के पास उसका इंतजार करने के सिवा कोई और चारा भी नही था...

आज पिंकी को एक तीर से दो शिकार करने थे....
पहला, निशि को वहां से निकालकर अपने साथ और नंदू से दूर रखना था,
दूसरा, दोनो को लाला के पास भी जाना था ताकि लाला के साथ भी कुछ 'ख़ास' किस्म की होली खेली जा सके...

और अपना लाला तो सुबह से ही तैयार था....
 
रात को नाज़िया की चूत का बाजा बजाने के बाद आज सुबह वो फिर से अपने आप को तरो ताज़ा महसूस कर रहा था....

रोजाना की तरह वो नहाते हुए अपने कसरती लंड पर सरसो के तेल की मालिश कर रहा था, जिसमें नहाकर उसका रामलाल ऐसे दमक उठा जैसे आज लौण्डे की शादी होने वाली है...

लाला ने तेल की धार रामलाल के चेहरे पर मारी और कराहते हुए बोला : "अहह......... रामलाल...तेरी किस्मत तो दिन रात चमकती ही जा रही है, शबाना के बाद नाज़िया और अब पिंकी और निशि भी लाइन में लगी है.....इन दोनो की मारने में तो कसम से बड़ा मज़ा आने वाला है.......ख़ासकर पिंकी की... उसे देखकर तो तेरी नसें भी अकड़ जाती है.....कसम से, एक दिन ऐसा भी आएगा जब तू एक-2 करके दोनो की चूत में घुसेगा, तब असली मज़ा मिलेगा जिंदगी का...''

लाला खुद से और रामलाल से बाते करता हुआ इतना उत्तेजित हो गया की उसके हाथ बिजली की तेज़ी से अपने लंड पर चलने लगे...

वो तो आख़िरी मौके पर जाकर उसने रोक लिया वरना उसके लंड का रायता वहीं फैल जाना था.
और आज के दिन वो ऐसा करना नही चाहता था...
वैसे भी , जब से उसे इन कमसिन लौंडियों का साथ मिला है तब से उसने मूठ मारनी बंद ही कर दी थी...
और आज तो होली का मौका था, अपने लंड की पिचकारी वो बिना किसी की चूत में घुसाए वेस्ट नही करना चाहता था, इसलिए उसने अपना हाथ वापिस खींच लिया और अपनी मुट्ठ की मैराथन को विराम लगाया.

कुछ ही देर में नहा धोकर वो दुकान पर आकर बैठ गया...
थोड़ा बहुत धंदा भी तो देखना था, वरना इस चूत मराई के चक्कर में उसकी गांड मराई हो जानी थी.

करीब आधे घंटे तक वो ग्राहको को समान बेचता रहा...
रंग भी रखे थे उसने दुकान पर जिनकी बिक्री आज बड़े ज़ोर शोर से हो रही थी...
अपनी दुकानदारी में वो इतना खोया हुआ था की उसे पिंकी और निशि के आने का भी आभास नही हुआ...
वो दोनो जब वहां पहुँची तो लाला की दुकान पर करीब 8-10 लोग खड़े थे...
उन्हे निपटाते हुए जैसे ही लाला की नज़र पिंकी पर पड़ी तो वो वही जम कर रह गया...
और रहता भी क्यों नही, आज होली का मौका था और जैसा उसने सोचा था ठीक वैसा ही हो रहा था उसके साथ, जिनके बारे में सोचकर वो सुबह अपने रामलाल को मसल रहा था वो दोनो उसके सामने खड़ी थी,
और आज तो उनके हुस्न में चार चाँद लगे हुए थे, दोनो के चेहरे गुलाल से रंगे हुए थे, और टाइट टी शर्ट में उनकी ब्रा भी गीली होने की वजह से चमक रही थी...जिससे दोनो और भी ज़्यादा सैक्सी दिखाई दे रही थी...

कुछ देर में ही लाला ने उन दोनो को छोड़कर सबको निपटा दिया ,
अकेले होते ही लाला की ज़ुबान से चाशनी बरसने लगी

''आओ आओ.... मेरी राजकुमारियों ... आज तो दोनो के बदन इतने सख़्त दिख रहे है की मन कर रहा है की इन्हे दबोच कर सारा रस निकाल दूँ ....''

पिंकी थोड़ा आगे झुकी, जिसकी वजह से उसकी टी शर्ट के अंदर से उसकी क्लिवेज दिखाई देने लगी,
और बोली : "लाला, कसम से, तेरी यही बाते तो हमें तुम्हारी तरफ खींच लाती है....इन संतरो का सारा रस तुम्हारा ही तो है, अब इसे दबोच कर निकालो या चूस कर निकालो, सब तुम्हारे उपर ही है...''

पिंकी ने जिस अंदाज से ये बाते कही थी, लाला के लंड की पिचकारी निकलते-2 बची....
साली दिन ब दिन हरामी होती जा रही है, अपनी बातो से ही किसी का भी पानी निकलवा दे, ऐसा चालु माल बनती जा रही थी ये पिंकी तो...

पिंकी की देखा देखी, निशि भी लाला का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करते हुए बोली : "सही तो कह रही है ये पिंकी लालाजी, जब से आपके हाथ लगे है, इन निगोडे संतरों में अजीब सी कुलबुली मची रहती है, मन तो करता है की पूरा दिन खुद ही दबा कर इन्हे आराम पहुँचती रहूं , पर आप के होते हुए हम ये काम क्यो करे भला, इसलिए चले आए...''

उन दोनो की मंशा सॉफ थी, आज वो पूरी तरह से लाला की धोती में बवाल मचाने आई हुई थी....

पर लाला को एक बात पिछले कुछ दिनों से खटक रही थी, और वो ये की पहले तो वो खुद ही अपनी तरफ से लाला को उकसाती रहती थी, पर जब से लाला ने उन्हे चोदने की बात मन में पक्की की थी तब से ही वो सिर्फ़ उपर के मज़े लेकर निकल जाती थी....
हालाँकि इसी बीच लाला के लंड को एक और कुँवारी चूत यानी नाज़िया का स्वाद मिल चुका था और अपनी तरफ से वो भी थोड़ा धीरे ही चल रहे था, पर लाला को भी पता था की अपनी तरफ से उन्हे इतना भी ढीला नही पड़ना है की इन कमसिन लड़कियों पर जो उन्होने मेहनत की है, उसका फल कोई और ले जाए...
इसलिए अब वो किसी भी कीमत पर उन्हे चोदना चाहता था.

पर लाला को इस बात का आभास नही था की निशि और पिंकी के बीच किस तरह की मांडवाली हुई है....
वैसे तो दोनो ही लाला को अपनी चूत देने वाली थी, पर पहले निशि को नंदू से मरवानी थी और उसके बाद पिंकी का नंबर आने वाला था लाला के साथ और इस बारे में वो दोनो एकदम अडीग थी...और लाला को ये बात बताने का तो कोई मतलब ही नहीं था.

पर आज उनके हाव भाव से लाला को अंदाज़ा हो रहा था की शायद वो आज ही का दिन है जिसमें रामलाल एक और कुँवारी चूत के खून को चख सकता है...

लाला उन दोनो की बात सुनकर मुस्कुरा दिया और धोती में अपना हाथ डालकर अपने लंड को मसलते हुए बोला : "आज तो लगता है होली सही ढंग से मनानी पड़ेगी...''

इतना कहते हुए उसने अपने सामने खड़ी पिंकी के झूल रहे स्तनों को पकड़कर ज़ोर से दबा दिया...
उसने चिहुंकते हुए सामने पड़ा गुलाल का पेकेट उठाया और उसे खोलकर लाला के उपर उछाल दिया...
पिंकी की देखा देखी निशि ने भी रंग उठाया और भागकर काउंटर के अंदर की तरफ आ गयी और वो रंग लाला पर उडेल कर उन्हे पूरा रंगीन बना दिया..
ऐसा करते हुए दोनो किलकारियां मार कर हंस भी रही थी...

जब लाला ने देखा की दोनो उसपर हावी हो रही है तो उसने अपने कुर्ते की बाजुए उपर की और अपने हाथ में एक रंग का पेकेट उठा लिया...दोनो सहेलिया लाला से बचने के लिए अंदर घर के बीच बने आँगन की तरफ दौड़ गयी... लाला भी किसी गली के गुंडे की तरह मुस्कुराता हुआ उनके पीछे-2 अंदर घर में आ गया और आने से पहले उसने अपनी दुकान का शटर भी गिरा दिया...
आज वो इन हिरनियों से अच्छी तरह से होली खेल लेना चाहता था.

पर अंदर आते ही लाला को लेने के देने पड़ गये....
पिंकी ने बाथरूम से एक पानी की बाल्टी उठाई और उसे खींच कर लाला के चेहरे पर उडेल दिया...
लाला का पूरा शरीर गीला हो गया और गीले कपड़ो में उसकी धोती में खड़ा हुआ काला नाग सॉफ दिखाई देने लगा...

लाला संभला और उसने रंग का पेकेट खोलकर उन दोनो के चेहरो पर रगड़ना शुरू कर दिया...
दोनो क़हक़हे लगाती हुई लाला से लिपट-2 कर रंग लगवाने लगी..
जैसे-2 लाला के हाथ उन दोनो के चेहरो और जिस्मो पर फिसल रहे थे, माहौल में थोड़ी और रंगिनियत आने लगी...
उनका हँसना और कसमसाना कम होने लगा और दोनो के मुँह से लाला के हाथ लगने से हर बार एक मीठी सिसकारी निकलने लगी...
लाला को तो पता ही था की उसके स्पर्श का जवान जिस्म पर क्या असर होता है, इसलिए उसे देर नही लगी अपने हाथो को और भी ज़्यादा सटीक जगहों पर लगाने में ...
यानी अब वो अपने हाथ उन दोनो के स्तनो पर घुमा रहा था....
अपने हाथ वो उनकी टी शर्ट में घुसा कर उनके मुम्मों को बुरी तरह से मसल रहा था

टी शर्ट में कसी हुई मोसम्मियों को मसलने में आज कुछ ज़्यादा ही मज़ा आ रहा था लाला को...
लाला ने पास पड़ा पानी का पाइप उठाया और नल चला कर उसका पानी उन दोनो पर फेंकने लगा....
जैसे-2 दोनो के जिस्म भीगते जा रहे थे, उनका हुस्न पारदर्शी होता जा रहा था...
 
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