कुछ देर सुस्ताने के बाद मैं उठा और कंडोम को ठिकाने लगाने के बाद लण्ड को साफ़ किया और वापस बेड की ओर लौट आया,चन्द्रमा भी बिस्तर में लेट गयी थी लेकिन औंधी पड़ी हुई थी, चूत का पानी उसकी जांघो तक रिस कर जा पंहुचा था, उसकी हालत देख कर लग रहा था की वो उठ कर बाथरूम जाना तो दूर हिलने के मूड में भी नहीं है,
मैंने वापस जा कर बाथरूम से एक हैंड टॉवल गीला कर लाया और उसकी जाँघे और चूत को पोंछ कर साफ़ कर दिया, सफाई के बाद चन्द्रमा भी अच्छा फील कर रही थी, उसने हलकी सी आँख खोल कर मेरी ओर देखा और थैंक यू कह कर वापस अपनी आँखे बंद कर ली, मैंने भी टॉवल बाथरूम की ओर उछाल कर बेड में लेट गया, कुछ देर बिस्तर में ऐसे ही पड़े रहने के बाद चन्द्रमा खिसक कर मेरे पास आयी और कम्बल के अंदर से ही हाथ खींच पर अपनी कमर पर रख लिया और बुदबुदाई " मेको आपकी गोदी में निनी करनी है "
मैंने भी जल्दी से उसे अपनी ओर खींचा और अपनी बाँहों में लेकर आराम से लेट गया, हम दोनों बाएं करवट लेकर लेटे हुए थे चन्द्रमा की पीठ मेरी छाती की ओर थी और उसके नंगे चूतड़ मेरे लण्ड से सटकर गांड की गर्मी का एहसास करा रहे थे, अभी ज़ायदा रात नहीं हुई, कुछ देर ऐसे पड़े रहने के बाद फिर से हमारे जिस्म में चुदाई की गर्मी चढ़ने लगी और हम दोनों फिर एक बार एक दूसरे के जिस्म में समा कर चुदाई का खेल खेलने लगे, चुदाई का नया नया नशा था जो चन्द्रमा के सर चढ़ कर बोल रहा था और मैं भी उस नशे में डूबा हुआ उस हसीना को
चोदने का पूरा मज़ा ले रहा था, लगातार हुई चुदाई के कारण अब चन्द्रमा की चूत खुलने लगी थी और चन्द्रमा को सेक्स में भरपूर मज़ा आने लगा था, हमारा चुदाई वाला खेल रात के लगभग १२ बजे तक चला फिर उसके बाद हम दोनों सो गए, अगले दिन की वापसी जो थी,
सुबह सात बजे के करीब हमने फिर एक बार चुदाई की और इस बार चुदाई करते हुए हम दोनों चुदाई में इतना खो गए की कंडोम पहनने का भी मौका नहीं मिला, और जब मैं स्वखलित होने से पहले अपना लण्ड निकालने लगा तब चन्द्रमा ने रोक लिया और अपनी चूत में ही अपना सारा माल निकलने दिया, शादी से पहले मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था इसलिए मैं कंडोम ही उसे करना चाहता था लेकिन जब चन्द्रमा खुद तैयार थी तो भला मैं क्यों विरोध करता,
उसके बाद हमने साथ ही नहाया और तैयार हो गए, हमने अपना सामन पैक किया और फिर लगभग गयारह बजे तक नाश्ता करके हम अपने कमरे में लौट आये, हमारी चेक आउट टाइमिंग बारह बजे दिन की थी, मैंने चद्र्मा को रूम में छोड़ा और रिसेप्शन पर जा कर बिल पेमेंट करके चेकआउट के लिए कन्फर्म कर दिया,
जब मैं वापस आया तो देखा चन्द्रमा सोफे पर टांग पर टांग चढ़ाये सेक्सी अंदाज़ में बैठी है, उसने अपने कपडे चेंज कर लिए थे, इस टाइम उसने एक डार्क ब्लू कलर का प्रिंटेड टॉप डाला हुआ था जो स्लीवलेस था, आज से पहले मैंने स्लीवलेस टॉप में चन्द्रमा को नहीं देखा था, उसने नीचे ब्लैक टाइट लेगिंग्स डाली हुई थी एक दम पटाखा लग रही थी, मैंने देखते ही उसको गले से लगा लिया और चूमने लगा, उसके चेहरे पर शरारती मुस्कान थी, मैं समझ गया की उसने जानभूझ कर मुझे रिझाने के खातिर ये सेक्सी ड्रेसिंग की थी और सेक्सी स्टाइल में बैठी थी , मैंने उसको बाँहों में ले कर खूब चूमा, हम कुछ देर में ही होटल से निकलने वाले थे फिर पता नहीं कब मौका मिलता, ये सोच कर मेरा मन बेसब्रा हो गया और मैंने जल्दी जल्दी चन्द्रमा को नंगा करना चालू कर दिया, पहले तो चन्द्रमा ने हल्का सा नखरा किया लेकिन मैं जनता था की वो भी यही चाहती है इसलिए कुछ ही सेकंड में हम दोनों नंगे हो गए और वही सोफे पर ही अपने प्यारे खेल में खो गए,
कुछ देर एक दूसरे के जिस्म से खेलने के बाद मैंने सोफे पर चन्द्रमा को झुकाया और और डॉगी पोज़ में कर दिया, अब तक तो चन्द्रमा ने जैसे चाहा था मैंने वैसे ही उसको चोद के मज़ा दिया था लेकिन अब मैं उसकी कुतिया के जैसे चोद कर मज़ा लेना चाहता था, डॉगी पोजीशन कामशात्र की सबसे मनभावन कला है और मैंने इरादा कर लिया था की इस बार चन्द्रमा को कुतिया बना कर ही चुदुँगा, खैर चन्द्रमा तो चुदाई सुख के सागर में ऐसी खोयी थी की वो कही भी किसी भी पोज़ में चुदवा सकती थी,
मैंने वही चन्द्रमा को सोफे के हैंडल को पकड़वा कर झुकाया और पीछे से उसी गरम रस टपकती चूत के होंटो में फसाया और उसकी कमर थाम कर एक झटके में लण्ड चूत की गहराईयों में पेल दिया, इस पोज़ में लण्ड चूत की ऊपर की दिवार को रगड़ता है, अपनी चूत पर एक झटके में हुए वार से चन्द्रमा लड़खड़ा गयी लेकिन मैंने कमर से पकड़ा हुआ था इसलिए संभल गयी, चन्द्रमा ने मेरी ओर शिकायती नज़रो से देखा तो मैं दिलासा दिया की हो गया बस अब वो मज़ा ले, कुछ पल रुक कर मैंने अपनी कमर हिलना चालू कर दिया और उधर चन्द्रमा की भी मज़े भरी आहे निकलने लगी, मैं फर्श पर सीधा खड़ा था और इस पोजीशन में ज़ायदा कण्ट्रोल में था तो मेरे थक्के चन्द्रमा की चूत की जड़ में सीधे उसकी बच्चेदानी पर पड़ रहे थे और वो मज़े से दुहरी हो रही थी
" ओह्ह मममम, ओह्ह हाँ यस यस बेबी, ऐसे करो, ओह्ह मम्म।।।। यस समीर, फ़क में, फ़क में डीप बेबी "
" ओह्ह माय बेबी, यस आई ऍम फूकिंग योर पुसी बेबी "
"ओह्ह समीर, मेरी जान, ऐसे करते रहो यार, बस रुकना नहीं समीर "
" नहीं रुकूंगा बेबी, ऐसी चोदता रहूँगा बेबी, पूरी लाइफ ऐसी चोड़ते रहना चाहता हु मेरी जान को " मज़ा आरहा है ना बेबी "
" ओह्ह समीर बहुत मज़ा आरहा है " ओह्ह समीर अब तक का सबसे बेस्ट चोद रहे हो " ओह्ह मम्मी कितना मज़ा आता है चुदाई में "
" हाँ बेबी बहुत मज़ा आता है, लेकिन जो मज़ा मेरी जान की चूत में है वो सबसे मस्त मज़ा है मेरी जान, है क्या चूत है, मन करता है इसी लण्ड चूत में डाले छोड़ता रहूं पूरी ज़िन्दगी "
" ओह्ह समीर माय बेबी, मैं तो यही चाहती हु बेबी, प्लीज ऐसे ही चोद बेबी, बेबी अब तेज़ मार न धक्के मेरी चूत में "
मैंने भी अब स्पीड बढ़ा दी अपने धक्को की, हमारे पास ज़्यदा टाइम भी नहीं था, मैंने चन्द्रमा की चूत में जड़ तक लण्ड घुसा कर लम्बे लम्बे धक्के मारने लगा
" हाँ बेबी ऐसे मार, ऐसे ही तेज़ तेज़, मैं निकल जाउंगी बेबी, ऐसे ही मार मार के मेरा निकल दे ना प्बेबी प्लीज "
" हाँ बेबी ले धक्के अपनी चूत में, ले तेज़ तेज़ धक्के"
मैं चन्द्रमा की कमर को थामे में अपनी पूरी ताकत से उसकी चूत में थप थप करके धक्के मार रहा था, मेरी आँखों के सामने ही चन्द्रमा की ब्राउन कलर की गांड का होल जो चन्द्रमा की लगातार होती चुदाई से उत्तेजित हो गया था और बार बार अपना मुँह खोल कर मुझे रिझा रहा था,
लेकिन मेरे पास अभी गांड मारने का टाइम नहीं था, अब चन्द्रमा की गांड सुहागरात वाली रात में ही मरूंगा, ये सोचते हुए मैंने अपने चन्द्रमा की चूत में धक्के तेज़ कर दिए, चन्द्रमा भी पीछे से अपने चूतड़ मेरे लण्ड की ओर ठेलने लगी थी और ताल से ताल मिला कर चुदाई का आनंद ले रही थी, चन्द्रमा की सिसकारियां अपने चरम पर थी, मुझे अंदाज़ा हो गया था की बस किसी भी पल चन्द्रमा का माल गिर जायेगा तो मैंने भी अपना सारा कण्ट्रोल छोड़ दिया और पूरी ताकत से 10-१५ धक्के मार कर चन्द्रमा की चूत में झर गया, मेरा लण्ड अपनी पूरी ताकत से चन्द्रमा की चूत में वीर्य की पिचकारी छोड़ रहा था, चन्द्रमा की चूत मेरे साथ ही झड़ी और चन्द्रमा चूत के अंदर लगने वाले हर झटके के साथ सोफे पर ढेर होती गयी, मैं भी हांफ गया था इतनी मेहनत के बाद, मैंने किसी तरह खुद को संभाल कर सबसे पहले पानी पी कर खुद को शांत किया फिर चन्द्रमा की सुध ली,
चन्द्रमा सोफे पर पेट के बल लेटी हुई थी और उसकी चूत से हम दोनों का रस रिस कर सोफे पर टपक रहा था, मैंने चन्द्रमा की चूत के नीचे एक टॉवल रख दिया और वही सोफे के किनारे बैठ गया, दस मिनट तक हम दोनों सुस्ताए फिर घडी की ओर देखा बारह बजने ही वाला था, चन्द्रमा ने जल्दी से उठ कर अपनी चूत को पोंछ कर साफ़ किया फिर हमने जल्दी जल्दी अपने कपडे पहने और रूम से निकलने से पहले एक दूसरे को बाँहों में लेकर किस किया और अपने बैग संभाल कर होटल से निकल आये,
बाहर हमें ऑटो मिल गया था स्टेशन के लिए और हम सीधा स्टेशन आगये, जब तक हम दोनों प्लेटफॉर्म पर पहुंचे तब तक ट्रैन भी आगयी थी, हम दोनों अपनी अपनी सीट पर जा कर बैठ गए, मंगलवार का दिन था इसलिए कोई खास भीड़ नहीं थी, अक्सर दिल्ली शाम में पहुंचने वाली ट्रैन में भीड़ कम होती थी ऊपर से शताब्दी चेयर कार का दाम भी ज़्यादा था शायद इसीलिए ट्रैन बिलकुल खाली जैसी थी,
कुछ देर में हम दोनों अपने बैग्स रख कर सेटल हो गए और आराम से अपनी चेयर पर बैठ गए, ट्रैन चलने से पहले कुछ पेसेन्जर्स और आये तब भी हमारी बॉगी लगभग आधी खाली थी, हमारे से आगे वाली सीट में केवल दो लड़के थे जो ट्रैन चलने के बाद उठ कर दूसरे कम्पार्टमेंट में चले गए शायद वहा उनके दूसरे फ्रैंड्स थे, हमारी सीट्स के आगे पीछे की लगभग सारी सीट्स खाली थी और उन खाली सीट्स को देख देख कर मेरी लार टपक रही थी, मुझे अंदाज़ा हो चला था की अगर ऐसा ही रहा था ये सफर चन्द्रमा के जिस्म से खेलते हुए गुज़र जायेगा,
खैर कुछ देर के इन्तिज़ार के बाद वेटर्स ने स्नैक्स सर्वे कर दिया तो मैंने अपना खेल चालू कर दिया, चन्द्रमा विंडो की साइड बैठी और मैंने मौका देख कर अपना हाथ उसके टॉप में घुसा दिया और उसके बूब्स को मसलना चालू कर दिया, टॉप स्लीवलेस था और थोड़ा टाइट था, चन्द्रमा की चूचिया एक दम उभर के आयी थी इस टॉप में या शायद मैंने तीन दिन से उसकी चूचिओं पर जो मेहनत की थी उसका असर था, चन्द्रमा की चूचिया कुछ ज़्यदा ही बड़ी मालूम होती थी और मैं उसके टॉप में अपना हाथ घुसा कर उसकी चूचिया दबा दबा कर मज़े ले रहा था।
काफी देर ऐसा करने से शायद चन्द्रमा की चूत भी गर्म हो गयी थी, जब उस इ न रहा गया तो चन्द्रमा ने मेरे कान में कहा
" और कितना दबाओगे इनको, अब तो लाल हो गयी होगी "
मैंने भी जवाब में फुसफुसा कर कहा
" क्यों मज़ा नहीं आरहा है क्या जानेमन ? "
चन्द्रमा " बहुत आरहा है लेकिन थोड़ा नीचे भी धयान कर लो उसका भी बुरा हाल है "
तब मुझे धयान आया की चन्द्रमा ने नीचे लेग्गिंग्स डाला है और उसकी इलास्टिक के कारण हाथ अंदर घुसना आसान है, बस फिर क्या था मैंने झट से अपना हाथ उसकी लेग्गेनुंग्स के अंदर डाल कर उसकी चूत को रगड़ चालू कर दिया, मुझे ज़्यदा मेहनत नहीं करनी, चन्द्रमा पूरी रस्ते चुकी रगड़वाकर पहले से ही चुदाई की आग में जल रही थी, चन्द्रमा की पेंटी चूत रस से भीगी हुई थी और फिर मेरी ऊँगली चूत पर लगते ही चूत ने रस कुछ ज़्यदा ही छोड़ना चालू कर दिया, मुझे बिना किसी दिक्कत के चूत का रास्ता मिल गया और मैंने बिना देरी किये चन्द्रमा की चूत में अपनी दो उंगलिया एक साथ पेल दी, चन्द्रमा ने भी अपनी टाँगे खोल कर मेरी उँगलियों का सवागत किया और जैसे ही मेरी उंगलिया उसकी चूत में घुसी उसने झट से अपनी जाँघे कस कर मेरे हाथ को अपनी जांघ में दबा लिया और सीसी करके अपनी चूत में ऊँगली पिलवाने का मज़ा लेने लगी, मुश्किल से मैंने एक दो मिनट ही ऊँगली उसकी चूत में चलायी होगी की चन्द्रमा ने मेरा हाथ अपने हाथ से ज़ोर से पकड़ा और सीसियते हुए झड़ गयी, चण्द्रमा का झरना रुका उसने फट से खींच कर मेरा हाथ अपनी लेग्गिंग्स में से निकल दिया और टिश्यू पेपर से मेरा हाथ पोंछ कर अपने हाथो में लिया और सीट से टेक लगा कर लेट गयी।
हमारा पूरा सफर ऐसे ही मस्ती करते गुज़रा, मैंने कई बार चन्द्रमा को लण्ड पकड़ने का इशारा किया लेकिन वो चलती ट्रैन में हिम्मत नहीं कर पायी, बस कभी कभार उसके अपनी मुट्ठी में जीन्स के ऊपर से ही पकड़ कर भींच देती और फिर फ़ौरन अपना हाथ हटा लेती,
रास्ते में जब हमने रेवाड़ी स्टेशन पास कर लिया तब चन्द्रमा ने मुझसे पूछा
चन्द्रमा : अभी दिल्ली आने में कितना टाइम है ?
मैं : बस इसके बाद गुडगाँव और फिर दिल्ली,
चन्द्रमा : रात के किस टाइम पहुंचेंगे ?
मैं : लगभग ७ बजे तक पहुंच जायेंगे, क्यों क्या हुआ ?
चन्द्रमा : और गुडगाँव किस टाइम आएगा ?
मैं : मुश्किल से ४५ मिनट में , क्यों कोई प्रॉब्लम है क्या ?
चन्द्रमा : नहीं बस ऐसे ही पूछ रही थी,
लगभग 15-२० मं ऐसे ही ख़ामोशी रही जैसे कुछ सोंच रही हो फिर चन्द्रमा अपनी सीट से उठी और अपना बैग उतरने लगी
मैं : क्या हुआ अब ?
चन्द्रमा : एक काम करते है, मैं गुडगाँव उतर जाती हूँ
मैं : क्यों, दिल्ली तक चलो वहा से तुमको कैब से घर भेज दूंगा
चन्द्रमा : नहीं, लेट हो जायेगा, मैं यहाँ गुडगाँव उतर जाउंगी, और यहाँ से सीधा फरीदाबाद के लिए सवारी मिल जाती है, दिल्ली से वापस आने में टाइम ज़्यदा लग जायेगा,
मैंने चन्द्रमा को रोकने की कोशिश की लेकिन नहीं मानी, खैर उसका कहना भी गलत नहीं था, जितनी देर में हम दिल्ली स्टेशन पहुंचते तबतक वो अपने घर पहुंच जाती, फिर मैंने भी ज़्यदा विरोध नहीं किया, उसकी बात का लॉजिक ठीक ही था, मैंने भी अपना बैग उतरा और उसमे से कुछ मिठाई के डिब्बे चन्द्रमा को दिये और जो साड़ी उसने मेरी माँ के लिए खरीदवाई थी वो भी निकल कर उसकी मम्मी के लिए दे दिया, वो मना करती रही लेकिन मैंने समझाया की मेरी माँ साड़ी नहीं पहनती तब वो मान गयी, खैर उसने सब सामान अपने बैग में रख कर अपना बैग रेडी कर लिया,
जब गुडगाँव का स्टेशन आया तो मैं गेट तक उसका बैग लेकर दरवाज़े तक गया, ट्रैन रुकी तो चन्द्रमा ट्रैन से उतर गयी, उसने नीचे उतर कर कुछ पल के लिए मेरा हाथ पकड़ा और बोझिल आँखों से हाथ हिला कर बाय कहा और प्लेटफॉर्म पर चलती हुई स्टेशन के मैं गेट की ओर चली गयी, मैं गेट पर खड़ा चन्द्रमा को जाते हुए देखता रहा, मुझे उम्मीद थी की चन्द्रमा एक बार स्टेशन से बहार निकलते हुए पलट कर ज़रूर देखेगी लेकिन चन्द्रमा स्टेशन के गेट के पास पहुंच कर वह मौजूद भीड़ में खो गयी और आँखों के ओझल हो गयी, मेरी ट्रैन भी अपनी मज़िल की ओर चल दी लेकिन पता नहीं क्यों मेरे दिल जैसे अचानक अँधेरा सा छ गया, चन्द्रमा के होने भर के एहसास से मन में जो एक खुशियों की ज्योत थी मानो वो चन्द्रमा के आँखों से ओझल होते ही बुझ गयी, मैं थके कदमो से चलता हुआ अपनी सीट पर आगया और धम्म से बैठ अपनी सीट पर बैठ गया, मैने चन्द्रमा की खाली सीट की ओर देखा, चन्द्रमा की सीट पर पड़ा इस्तेमाल किया हुआ टिश्यू मुझे मुँह चिढ़ा रहा था।
मैंने वापस जा कर बाथरूम से एक हैंड टॉवल गीला कर लाया और उसकी जाँघे और चूत को पोंछ कर साफ़ कर दिया, सफाई के बाद चन्द्रमा भी अच्छा फील कर रही थी, उसने हलकी सी आँख खोल कर मेरी ओर देखा और थैंक यू कह कर वापस अपनी आँखे बंद कर ली, मैंने भी टॉवल बाथरूम की ओर उछाल कर बेड में लेट गया, कुछ देर बिस्तर में ऐसे ही पड़े रहने के बाद चन्द्रमा खिसक कर मेरे पास आयी और कम्बल के अंदर से ही हाथ खींच पर अपनी कमर पर रख लिया और बुदबुदाई " मेको आपकी गोदी में निनी करनी है "
मैंने भी जल्दी से उसे अपनी ओर खींचा और अपनी बाँहों में लेकर आराम से लेट गया, हम दोनों बाएं करवट लेकर लेटे हुए थे चन्द्रमा की पीठ मेरी छाती की ओर थी और उसके नंगे चूतड़ मेरे लण्ड से सटकर गांड की गर्मी का एहसास करा रहे थे, अभी ज़ायदा रात नहीं हुई, कुछ देर ऐसे पड़े रहने के बाद फिर से हमारे जिस्म में चुदाई की गर्मी चढ़ने लगी और हम दोनों फिर एक बार एक दूसरे के जिस्म में समा कर चुदाई का खेल खेलने लगे, चुदाई का नया नया नशा था जो चन्द्रमा के सर चढ़ कर बोल रहा था और मैं भी उस नशे में डूबा हुआ उस हसीना को
चोदने का पूरा मज़ा ले रहा था, लगातार हुई चुदाई के कारण अब चन्द्रमा की चूत खुलने लगी थी और चन्द्रमा को सेक्स में भरपूर मज़ा आने लगा था, हमारा चुदाई वाला खेल रात के लगभग १२ बजे तक चला फिर उसके बाद हम दोनों सो गए, अगले दिन की वापसी जो थी,
सुबह सात बजे के करीब हमने फिर एक बार चुदाई की और इस बार चुदाई करते हुए हम दोनों चुदाई में इतना खो गए की कंडोम पहनने का भी मौका नहीं मिला, और जब मैं स्वखलित होने से पहले अपना लण्ड निकालने लगा तब चन्द्रमा ने रोक लिया और अपनी चूत में ही अपना सारा माल निकलने दिया, शादी से पहले मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था इसलिए मैं कंडोम ही उसे करना चाहता था लेकिन जब चन्द्रमा खुद तैयार थी तो भला मैं क्यों विरोध करता,
उसके बाद हमने साथ ही नहाया और तैयार हो गए, हमने अपना सामन पैक किया और फिर लगभग गयारह बजे तक नाश्ता करके हम अपने कमरे में लौट आये, हमारी चेक आउट टाइमिंग बारह बजे दिन की थी, मैंने चद्र्मा को रूम में छोड़ा और रिसेप्शन पर जा कर बिल पेमेंट करके चेकआउट के लिए कन्फर्म कर दिया,
जब मैं वापस आया तो देखा चन्द्रमा सोफे पर टांग पर टांग चढ़ाये सेक्सी अंदाज़ में बैठी है, उसने अपने कपडे चेंज कर लिए थे, इस टाइम उसने एक डार्क ब्लू कलर का प्रिंटेड टॉप डाला हुआ था जो स्लीवलेस था, आज से पहले मैंने स्लीवलेस टॉप में चन्द्रमा को नहीं देखा था, उसने नीचे ब्लैक टाइट लेगिंग्स डाली हुई थी एक दम पटाखा लग रही थी, मैंने देखते ही उसको गले से लगा लिया और चूमने लगा, उसके चेहरे पर शरारती मुस्कान थी, मैं समझ गया की उसने जानभूझ कर मुझे रिझाने के खातिर ये सेक्सी ड्रेसिंग की थी और सेक्सी स्टाइल में बैठी थी , मैंने उसको बाँहों में ले कर खूब चूमा, हम कुछ देर में ही होटल से निकलने वाले थे फिर पता नहीं कब मौका मिलता, ये सोच कर मेरा मन बेसब्रा हो गया और मैंने जल्दी जल्दी चन्द्रमा को नंगा करना चालू कर दिया, पहले तो चन्द्रमा ने हल्का सा नखरा किया लेकिन मैं जनता था की वो भी यही चाहती है इसलिए कुछ ही सेकंड में हम दोनों नंगे हो गए और वही सोफे पर ही अपने प्यारे खेल में खो गए,
कुछ देर एक दूसरे के जिस्म से खेलने के बाद मैंने सोफे पर चन्द्रमा को झुकाया और और डॉगी पोज़ में कर दिया, अब तक तो चन्द्रमा ने जैसे चाहा था मैंने वैसे ही उसको चोद के मज़ा दिया था लेकिन अब मैं उसकी कुतिया के जैसे चोद कर मज़ा लेना चाहता था, डॉगी पोजीशन कामशात्र की सबसे मनभावन कला है और मैंने इरादा कर लिया था की इस बार चन्द्रमा को कुतिया बना कर ही चुदुँगा, खैर चन्द्रमा तो चुदाई सुख के सागर में ऐसी खोयी थी की वो कही भी किसी भी पोज़ में चुदवा सकती थी,
मैंने वही चन्द्रमा को सोफे के हैंडल को पकड़वा कर झुकाया और पीछे से उसी गरम रस टपकती चूत के होंटो में फसाया और उसकी कमर थाम कर एक झटके में लण्ड चूत की गहराईयों में पेल दिया, इस पोज़ में लण्ड चूत की ऊपर की दिवार को रगड़ता है, अपनी चूत पर एक झटके में हुए वार से चन्द्रमा लड़खड़ा गयी लेकिन मैंने कमर से पकड़ा हुआ था इसलिए संभल गयी, चन्द्रमा ने मेरी ओर शिकायती नज़रो से देखा तो मैं दिलासा दिया की हो गया बस अब वो मज़ा ले, कुछ पल रुक कर मैंने अपनी कमर हिलना चालू कर दिया और उधर चन्द्रमा की भी मज़े भरी आहे निकलने लगी, मैं फर्श पर सीधा खड़ा था और इस पोजीशन में ज़ायदा कण्ट्रोल में था तो मेरे थक्के चन्द्रमा की चूत की जड़ में सीधे उसकी बच्चेदानी पर पड़ रहे थे और वो मज़े से दुहरी हो रही थी
" ओह्ह मममम, ओह्ह हाँ यस यस बेबी, ऐसे करो, ओह्ह मम्म।।।। यस समीर, फ़क में, फ़क में डीप बेबी "
" ओह्ह माय बेबी, यस आई ऍम फूकिंग योर पुसी बेबी "
"ओह्ह समीर, मेरी जान, ऐसे करते रहो यार, बस रुकना नहीं समीर "
" नहीं रुकूंगा बेबी, ऐसी चोदता रहूँगा बेबी, पूरी लाइफ ऐसी चोड़ते रहना चाहता हु मेरी जान को " मज़ा आरहा है ना बेबी "
" ओह्ह समीर बहुत मज़ा आरहा है " ओह्ह समीर अब तक का सबसे बेस्ट चोद रहे हो " ओह्ह मम्मी कितना मज़ा आता है चुदाई में "
" हाँ बेबी बहुत मज़ा आता है, लेकिन जो मज़ा मेरी जान की चूत में है वो सबसे मस्त मज़ा है मेरी जान, है क्या चूत है, मन करता है इसी लण्ड चूत में डाले छोड़ता रहूं पूरी ज़िन्दगी "
" ओह्ह समीर माय बेबी, मैं तो यही चाहती हु बेबी, प्लीज ऐसे ही चोद बेबी, बेबी अब तेज़ मार न धक्के मेरी चूत में "
मैंने भी अब स्पीड बढ़ा दी अपने धक्को की, हमारे पास ज़्यदा टाइम भी नहीं था, मैंने चन्द्रमा की चूत में जड़ तक लण्ड घुसा कर लम्बे लम्बे धक्के मारने लगा
" हाँ बेबी ऐसे मार, ऐसे ही तेज़ तेज़, मैं निकल जाउंगी बेबी, ऐसे ही मार मार के मेरा निकल दे ना प्बेबी प्लीज "
" हाँ बेबी ले धक्के अपनी चूत में, ले तेज़ तेज़ धक्के"
मैं चन्द्रमा की कमर को थामे में अपनी पूरी ताकत से उसकी चूत में थप थप करके धक्के मार रहा था, मेरी आँखों के सामने ही चन्द्रमा की ब्राउन कलर की गांड का होल जो चन्द्रमा की लगातार होती चुदाई से उत्तेजित हो गया था और बार बार अपना मुँह खोल कर मुझे रिझा रहा था,
लेकिन मेरे पास अभी गांड मारने का टाइम नहीं था, अब चन्द्रमा की गांड सुहागरात वाली रात में ही मरूंगा, ये सोचते हुए मैंने अपने चन्द्रमा की चूत में धक्के तेज़ कर दिए, चन्द्रमा भी पीछे से अपने चूतड़ मेरे लण्ड की ओर ठेलने लगी थी और ताल से ताल मिला कर चुदाई का आनंद ले रही थी, चन्द्रमा की सिसकारियां अपने चरम पर थी, मुझे अंदाज़ा हो गया था की बस किसी भी पल चन्द्रमा का माल गिर जायेगा तो मैंने भी अपना सारा कण्ट्रोल छोड़ दिया और पूरी ताकत से 10-१५ धक्के मार कर चन्द्रमा की चूत में झर गया, मेरा लण्ड अपनी पूरी ताकत से चन्द्रमा की चूत में वीर्य की पिचकारी छोड़ रहा था, चन्द्रमा की चूत मेरे साथ ही झड़ी और चन्द्रमा चूत के अंदर लगने वाले हर झटके के साथ सोफे पर ढेर होती गयी, मैं भी हांफ गया था इतनी मेहनत के बाद, मैंने किसी तरह खुद को संभाल कर सबसे पहले पानी पी कर खुद को शांत किया फिर चन्द्रमा की सुध ली,
चन्द्रमा सोफे पर पेट के बल लेटी हुई थी और उसकी चूत से हम दोनों का रस रिस कर सोफे पर टपक रहा था, मैंने चन्द्रमा की चूत के नीचे एक टॉवल रख दिया और वही सोफे के किनारे बैठ गया, दस मिनट तक हम दोनों सुस्ताए फिर घडी की ओर देखा बारह बजने ही वाला था, चन्द्रमा ने जल्दी से उठ कर अपनी चूत को पोंछ कर साफ़ किया फिर हमने जल्दी जल्दी अपने कपडे पहने और रूम से निकलने से पहले एक दूसरे को बाँहों में लेकर किस किया और अपने बैग संभाल कर होटल से निकल आये,
बाहर हमें ऑटो मिल गया था स्टेशन के लिए और हम सीधा स्टेशन आगये, जब तक हम दोनों प्लेटफॉर्म पर पहुंचे तब तक ट्रैन भी आगयी थी, हम दोनों अपनी अपनी सीट पर जा कर बैठ गए, मंगलवार का दिन था इसलिए कोई खास भीड़ नहीं थी, अक्सर दिल्ली शाम में पहुंचने वाली ट्रैन में भीड़ कम होती थी ऊपर से शताब्दी चेयर कार का दाम भी ज़्यादा था शायद इसीलिए ट्रैन बिलकुल खाली जैसी थी,
कुछ देर में हम दोनों अपने बैग्स रख कर सेटल हो गए और आराम से अपनी चेयर पर बैठ गए, ट्रैन चलने से पहले कुछ पेसेन्जर्स और आये तब भी हमारी बॉगी लगभग आधी खाली थी, हमारे से आगे वाली सीट में केवल दो लड़के थे जो ट्रैन चलने के बाद उठ कर दूसरे कम्पार्टमेंट में चले गए शायद वहा उनके दूसरे फ्रैंड्स थे, हमारी सीट्स के आगे पीछे की लगभग सारी सीट्स खाली थी और उन खाली सीट्स को देख देख कर मेरी लार टपक रही थी, मुझे अंदाज़ा हो चला था की अगर ऐसा ही रहा था ये सफर चन्द्रमा के जिस्म से खेलते हुए गुज़र जायेगा,
खैर कुछ देर के इन्तिज़ार के बाद वेटर्स ने स्नैक्स सर्वे कर दिया तो मैंने अपना खेल चालू कर दिया, चन्द्रमा विंडो की साइड बैठी और मैंने मौका देख कर अपना हाथ उसके टॉप में घुसा दिया और उसके बूब्स को मसलना चालू कर दिया, टॉप स्लीवलेस था और थोड़ा टाइट था, चन्द्रमा की चूचिया एक दम उभर के आयी थी इस टॉप में या शायद मैंने तीन दिन से उसकी चूचिओं पर जो मेहनत की थी उसका असर था, चन्द्रमा की चूचिया कुछ ज़्यदा ही बड़ी मालूम होती थी और मैं उसके टॉप में अपना हाथ घुसा कर उसकी चूचिया दबा दबा कर मज़े ले रहा था।
काफी देर ऐसा करने से शायद चन्द्रमा की चूत भी गर्म हो गयी थी, जब उस इ न रहा गया तो चन्द्रमा ने मेरे कान में कहा
" और कितना दबाओगे इनको, अब तो लाल हो गयी होगी "
मैंने भी जवाब में फुसफुसा कर कहा
" क्यों मज़ा नहीं आरहा है क्या जानेमन ? "
चन्द्रमा " बहुत आरहा है लेकिन थोड़ा नीचे भी धयान कर लो उसका भी बुरा हाल है "
तब मुझे धयान आया की चन्द्रमा ने नीचे लेग्गिंग्स डाला है और उसकी इलास्टिक के कारण हाथ अंदर घुसना आसान है, बस फिर क्या था मैंने झट से अपना हाथ उसकी लेग्गेनुंग्स के अंदर डाल कर उसकी चूत को रगड़ चालू कर दिया, मुझे ज़्यदा मेहनत नहीं करनी, चन्द्रमा पूरी रस्ते चुकी रगड़वाकर पहले से ही चुदाई की आग में जल रही थी, चन्द्रमा की पेंटी चूत रस से भीगी हुई थी और फिर मेरी ऊँगली चूत पर लगते ही चूत ने रस कुछ ज़्यदा ही छोड़ना चालू कर दिया, मुझे बिना किसी दिक्कत के चूत का रास्ता मिल गया और मैंने बिना देरी किये चन्द्रमा की चूत में अपनी दो उंगलिया एक साथ पेल दी, चन्द्रमा ने भी अपनी टाँगे खोल कर मेरी उँगलियों का सवागत किया और जैसे ही मेरी उंगलिया उसकी चूत में घुसी उसने झट से अपनी जाँघे कस कर मेरे हाथ को अपनी जांघ में दबा लिया और सीसी करके अपनी चूत में ऊँगली पिलवाने का मज़ा लेने लगी, मुश्किल से मैंने एक दो मिनट ही ऊँगली उसकी चूत में चलायी होगी की चन्द्रमा ने मेरा हाथ अपने हाथ से ज़ोर से पकड़ा और सीसियते हुए झड़ गयी, चण्द्रमा का झरना रुका उसने फट से खींच कर मेरा हाथ अपनी लेग्गिंग्स में से निकल दिया और टिश्यू पेपर से मेरा हाथ पोंछ कर अपने हाथो में लिया और सीट से टेक लगा कर लेट गयी।
हमारा पूरा सफर ऐसे ही मस्ती करते गुज़रा, मैंने कई बार चन्द्रमा को लण्ड पकड़ने का इशारा किया लेकिन वो चलती ट्रैन में हिम्मत नहीं कर पायी, बस कभी कभार उसके अपनी मुट्ठी में जीन्स के ऊपर से ही पकड़ कर भींच देती और फिर फ़ौरन अपना हाथ हटा लेती,
रास्ते में जब हमने रेवाड़ी स्टेशन पास कर लिया तब चन्द्रमा ने मुझसे पूछा
चन्द्रमा : अभी दिल्ली आने में कितना टाइम है ?
मैं : बस इसके बाद गुडगाँव और फिर दिल्ली,
चन्द्रमा : रात के किस टाइम पहुंचेंगे ?
मैं : लगभग ७ बजे तक पहुंच जायेंगे, क्यों क्या हुआ ?
चन्द्रमा : और गुडगाँव किस टाइम आएगा ?
मैं : मुश्किल से ४५ मिनट में , क्यों कोई प्रॉब्लम है क्या ?
चन्द्रमा : नहीं बस ऐसे ही पूछ रही थी,
लगभग 15-२० मं ऐसे ही ख़ामोशी रही जैसे कुछ सोंच रही हो फिर चन्द्रमा अपनी सीट से उठी और अपना बैग उतरने लगी
मैं : क्या हुआ अब ?
चन्द्रमा : एक काम करते है, मैं गुडगाँव उतर जाती हूँ
मैं : क्यों, दिल्ली तक चलो वहा से तुमको कैब से घर भेज दूंगा
चन्द्रमा : नहीं, लेट हो जायेगा, मैं यहाँ गुडगाँव उतर जाउंगी, और यहाँ से सीधा फरीदाबाद के लिए सवारी मिल जाती है, दिल्ली से वापस आने में टाइम ज़्यदा लग जायेगा,
मैंने चन्द्रमा को रोकने की कोशिश की लेकिन नहीं मानी, खैर उसका कहना भी गलत नहीं था, जितनी देर में हम दिल्ली स्टेशन पहुंचते तबतक वो अपने घर पहुंच जाती, फिर मैंने भी ज़्यदा विरोध नहीं किया, उसकी बात का लॉजिक ठीक ही था, मैंने भी अपना बैग उतरा और उसमे से कुछ मिठाई के डिब्बे चन्द्रमा को दिये और जो साड़ी उसने मेरी माँ के लिए खरीदवाई थी वो भी निकल कर उसकी मम्मी के लिए दे दिया, वो मना करती रही लेकिन मैंने समझाया की मेरी माँ साड़ी नहीं पहनती तब वो मान गयी, खैर उसने सब सामान अपने बैग में रख कर अपना बैग रेडी कर लिया,
जब गुडगाँव का स्टेशन आया तो मैं गेट तक उसका बैग लेकर दरवाज़े तक गया, ट्रैन रुकी तो चन्द्रमा ट्रैन से उतर गयी, उसने नीचे उतर कर कुछ पल के लिए मेरा हाथ पकड़ा और बोझिल आँखों से हाथ हिला कर बाय कहा और प्लेटफॉर्म पर चलती हुई स्टेशन के मैं गेट की ओर चली गयी, मैं गेट पर खड़ा चन्द्रमा को जाते हुए देखता रहा, मुझे उम्मीद थी की चन्द्रमा एक बार स्टेशन से बहार निकलते हुए पलट कर ज़रूर देखेगी लेकिन चन्द्रमा स्टेशन के गेट के पास पहुंच कर वह मौजूद भीड़ में खो गयी और आँखों के ओझल हो गयी, मेरी ट्रैन भी अपनी मज़िल की ओर चल दी लेकिन पता नहीं क्यों मेरे दिल जैसे अचानक अँधेरा सा छ गया, चन्द्रमा के होने भर के एहसास से मन में जो एक खुशियों की ज्योत थी मानो वो चन्द्रमा के आँखों से ओझल होते ही बुझ गयी, मैं थके कदमो से चलता हुआ अपनी सीट पर आगया और धम्म से बैठ अपनी सीट पर बैठ गया, मैने चन्द्रमा की खाली सीट की ओर देखा, चन्द्रमा की सीट पर पड़ा इस्तेमाल किया हुआ टिश्यू मुझे मुँह चिढ़ा रहा था।