शाम को मैं और आलोक साथ आये और माँ को फिर उसी तरह चोदा. तीन दिन यह खेल चला, फिर पापा लौट आए. पापा के आ जाने से मौका ही नहीं मिलता था.
पापा किसान थे, इस वजह से वो हमेशा घर पर ही रहते थे. अब मुझे बिना चोदे ही रहना पड़ रहा था. कभी कभी मौका मिलता था तो माँ की चूची को दबा लेता या चूत को सहला लेता था...
मैं उन सभी पाठकों का भी बहुत आभारी हूँ जिन्होंने मेरी उपरोक्त रचना को पढ़ने के बाद अपने मूल्यवान समय में से कुछ कपल निकाल कर उस पर अपने विचार लिख कर भेजे.
कुछ पाठकों एवं पाठिकाओं ने यह भी लिखा था कि रचना बहुत छोटी थी लेकिन उन्हें पसंद आई.
उन लोगों द्वारा स्पष्ट विचार प्रकट करने के लिए मैं उनका...