अरमान जाग गए मेरे आखिर में

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Desi kahani, antarvasna: मुझे अपनी बहन से मिलने के लिए जयपुर जाना था तो मैंने दिल्ली से जयपुर की बस ली। मैं जब बस में बैठा तो मेरे सामने वाली सीट में कोई भी नहीं बैठा हुआ था जब बस वहां से चलने लगी तो करीब एक किलोमीटर आगे चलने के बाद बस रुकी और बस में एक लड़की बैठी। मुझे नहीं पता था कि वह मेंरे बगल में ही बैठने वाली है और वह मेरे बगल में बैठ गयी। आधे रास्ते तक तो हम दोनों के बीच कोई भी बात नहीं हुई मैंने भी अपने कानों में हेडफोन लगाया हुआ था और मैं गाने सुन रहा था लेकिन फिर उस लड़की ने मुझसे बात की। उसने मुझे कहा कि क्या आप जयपुर में रहते हैं तो मैंने उसे कहा नहीं मैं तो दिल्ली में रहता हूं मेरी बहन जयपुर में रहती है। वह भी अजीब इत्तेफाक था कि जिस जगह मेरी बहन रहती थी वहीं पर वह लड़की भी रहती थी और उसके बाद मैंने उससे उसका नाम पूछा, उसका नाम कविता है। कविता ने मुझे बताया कि वह दिल्ली में जॉब करती है और कुछ समय पहले ही उसकी जॉब दिल्ली में लगी है।

मैं और कविता एक दूसरे से बातें करने लगे तो सफर का कुछ पता ही नहीं चला और हम लोग जयपुर पहुंच गए। जब हम लोग जयपुर पहुंचे तो हम दोनों ने वहां से ऑटो किया क्योंकि कविता को और मुझे एक ही जगह जाना था। हम लोग ऑटो में भी एक दूसरे से काफी बातें करते रहे मुझे तो यकीन भी नहीं हो रहा था कि मैं कविता से बात कर पा रहा हूँ क्योंकि मेरा नेचर बहुत ही शर्मीला किस्म का है लेकिन उस दिन कविता के साथ बात कर के मुझे अच्छा लग रहा था और कविता को भी मुझसे बात करना काफी अच्छा लगा। मैं जब दीदी के घर पर पहुंचा तो दीदी ने मुझे बताया कि जीजा जी अपने काम के सिलसिले में कुछ दिनों के लिए बाहर गए हुए हैं। मैं दीदी से मिलकर बहुत ज्यादा खुश था इतने लंबे अरसे बाद मैं दीदी से मिल रहा था तो मुझे उनसे मिलना बहुत ही अच्छा लगा। दीदी की शादी को 4 वर्ष हो चुके हैं और जब उनकी शादी हुई तो उस वक्त मैं कॉलेज में पढ़ रहा था। दीदी और मैं साथ में बैठे हुए थे और हम लोग अपने पुराने दिनों को याद कर रहे थे की किस प्रकार से हम लोग शरारत किया करते थे और पापा मम्मी हम दोनों से बहुत ज्यादा परेशान रहते थे। मैंने जब दीदी को कविता के बारे में बताया तो दीदी ने मुझे कहा कि वह तो हमारे पड़ोस में ही रहती है। मैंने दीदी से कहा कि हम दोनों दिल्ली से जयपुर तक साथ में आए और कविता से मेरी काफी अच्छी बातचीत भी हो गई है। दीदी ने मुझे कहा कि हां कविता भी कभी कभार हमारे घर पर आ जाया करती है। कविता की मम्मी और दीदी की काफी अच्छी बनती है।

दीदी ने मुझे कहा कि सुरेश तुम कुछ खा लो तो मैंने दीदी से कहा कि मुझे भूख तो नहीं है लेकिन आप मेरे लिए चाय बना दीजिए और उसके बाद दीदी चाय बनाने के लिए रसोई में चली गई। दीदी चाय बना रही थी तो उस वक्त उनकी सास मेरे पास आकर बैठी और वह मुझसे मेरे हाल चाल पूछने लगी और पापा मम्मी के बारे में उन्होंने मुझसे पूछा तो मैंने उन्हें पापा मम्मी के बारे में बताया। दीदी भी चाय बना कर ले आई थी दीदी ने मुझसे कहा कि सुरेश तुम चाय पी लो। हमने चाय पी ली थी उसके बाद दीदी की सास वहां से चली गई थी वह शायद कहीं घूमने के लिए गई हुई थी। उस दिन तो मुझे पता ही नहीं चला कि कब मेरा दिन कट गया और अगले दिन जब मैं सुबह उठा तो मुझे ऐसा लगा जैसे की कविता घर पर आई हुई है उस वक्त सुबह के 7:00 बज रहे थे। मैं जब कमरे से बाहर आया तो मैंने देखा कि वाकई में कविता वहां पर आई हुई है कविता मुझसे बातें करने लगी और उसने मुझे कहा कि सुरेश आज तुम क्या कर रहे हो तो मैंने कविता को कहा कुछ नहीं मैं तो घर पर ही हूं। कविता ने मुझे कहा कि सुरेश आज हम लोग कहीं घूमने चलते हैं, कविता बड़ी ही बिंदास किस्म की है। मैं पहले इस बारे में सोच रहा था लेकिन तभी दीदी ने कहा कि हां सुरेश तुम कविता के साथ चले जाओ वैसे भी घर पर तुम अकेले बोर हो जाओगे। मुझे भी लगा कि ठीक है और हम दोनों ही उस दिन घूमने के लिए साथ में चले गए। कविता का साथ पाकर मुझे काफी अच्छा लगा और मुझे ऐसा बिल्कुल भी महसूस नहीं हो रहा था कि हम लोगों को मिले हुए अभी कुछ ही घंटे हुए हैं लेकिन कविता और मैं एक दूसरे से काफी अच्छे से बातें कर रहे थे और हम लोगों ने बहुत अच्छा समय साथ में बिताया। मुझे इस बात की बहुत खुशी थी कि कविता के साथ मैंने अच्छा समय बिताया और कविता मेरे साथ काफी खुश थी।

शाम के वक्त हम लोग घर लौट आए थे मैंने कविता का नंबर भी ले लिया था और उस रात मेरी और कविता के बीच में मैसेज चैट के माध्यम से बात हुई। हम लोगों ने काफी देर तक एक दूसरे से बातें की लेकिन मुझे अब दिल्ली वापस लौटना था तो मैं दिल्ली वापस लौट गया। दिल्ली लौटने के बाद भी कविता से मेरी बातें होती रहती थी, कविता कुछ दिनों तक अपने घर जयपुर में ही रहने वाली थी इसलिए उससे मेरी फोन पर ही बातें होती रहती थी और उसके बाद वह दिल्ली आई तो दिल्ली में हम दोनों एक दूसरे को मिलते ही रहते थे। मैं कविता से जब भी मिलता तो मुझे बहुत अच्छा लगता और उसे भी काफी ज्यादा अच्छा लगता। जब भी हम दोनों की मुलाकात होती तो हम दोनों एक दूसरे के साथ काफी खुश रहते। मुझे नहीं मालूम था कविता और मेरे बीच इतनी अच्छी दोस्ती हो जाएगी। मैं समझ नहीं पा रहा था हमारे बीच कौन सा रिश्ता है लेकिन कविता मुझसे अपनी हर एक बातें शेयर किया करती। वह घर पर भी आने लगी थी मैंने उसे पापा मम्मी से भी मिलवा दिया था। हमारी दोस्ती काफी गहरी हो चुकी थी कविता ने मुझे अपने घर पर बुलाया। उस दिन जब उसने मुझे घर पर बुलाया तो हम दोनों साथ में बैठे हुए थे कविता और मैं अच्छा समय साथ में बिता रहे थे लेकिन मैंने कभी कविता के बारे में कुछ ऐसा सोचा नहीं था। जब मैंने कविता की गोरी जांघो को देखा तो मैं अपने अंदर के जज्बातों को काबू ना कर सका और मेरे अंदर एक अलग ही हलचल पैदा होने लगी। मैंने उसकी जांघ पर हाथ को रखा तो शायद अब कविता भी अपने आपको बिल्कुल रोक नहीं पा रही थी और मैं भी अपने आपको रोक नहीं पाया।

इसी वजह से मैंने अपने मोटे लंड को बाहर निकाल लिया। जब मैंने कविता के सामने अपने लंड को किया तो वह मेरे लंड की तरफ देख रही थी। उसकी नजरें मेरे लंड से एक पल के लिए भी हट नहीं रही थी जब उसने अपने कोमल और सफेद हाथों को मेरे लंड पर लगाया तो मेरा लंड और भी ज्यादा कडक होने लगा और मुझे बहुत ही अच्छा लगने लगा। वह बहुत अच्छे से मेरे लंड को हिलाने लगी थी और मेरे अंदर की गर्मी को बाहर निकालने लगी। मुझे बहुत ज्यादा अच्छा लगने लगा था जिस प्रकार से कविता मेरे लंड को हिला रही थी और मेरे अंदर की गर्मी को बढाए जा रही थी। उसने मेरे लंड को अपने मुंह में ले लिया और वह उसे चूसने लगी। पहले तो वह लंड को पूरा अंदर नही ले रही थी अब वह अपने मुंह के अंदर तक लंड ले रही थी वह अच्छे से मेरे लंड को सकिंग करने लगी उसे बहुत ज्यादा मजा आने लगा था। हम दोनो एक दूसरे के साथ सेक्स के मजे ले रहे थे हम दोनों ने एक दूसरे के साथ सेक्स के मजे लेने शुरू कर दिए थे। मैंने कविता के बदन से कपड़े उतारकर उसकी चूत को चाटना शुरू कर दिया था उसकी चूत पर एक भी बाल भी नहीं था। उसकी चूत से निकलता हुआ पानी काफी ज्यादा बढ़ चुका था और मुझे भी बहुत ज्यादा अच्छा लग रहा था जिस तरह से मैं उसकी चूत को चाट रहा था। मैंने कविता की चूत पर अपने मोटे लंड को घुसाया तो वह चिल्लाई। मेरा मोटा लंड कविता की योनि के अंदर समा चुका था और मुझे बहुत मजा आने लगा था जिस तरह से मैं कविता की योनि के अंदर अपने मोटे लंड को डाल रहा था। मेरा लंड कविता की चूत के अंदर बाहर हो रहा था और कविता की चूत से पानी बाहर निकल रहा था।

थोड़ी देर बाद मैंने देखा कि कविता की चूत से खून निकलने लगा है उसने अपने पैरों को चौड़ा कर लिया जिससे कि मैं आसानी से उसकी योनि की दीवार से टकराने लगा था। मेरा लंड उसकी चूत की दीवार से टकरा रहा था और मैं उसे बडे ही तेज गति से धक्के मार रहा था मुझे उसे चोदने में बहुत मजा आ रहा था। मुझे उसकी सिसकारियां सुनकर और भी ज्यादा गर्मी महसूस हो रही थी मुझे साफ तौर पर यह बात पता चल चुकी थी कि वह बहुत ज्यादा देर तक मेरा साथ दे नहीं पाएगी क्योंकि उसने मुझे जिस तरह से अपने पैरों के बीच में जकडना शुरू किया और उसकी गर्म सिसकारियां कुछ ज्यादा ही अधिक हो चुकी थी। मैंने कविता की चूत से कुछ ज्यादा ही पानी बाहर की तरफ निकल दिया था और उसकी चूत के अंदर मेरा माल गिर चुका था मेरा वीर्य उसकी चूत में गिरते ही मैं कविता के ऊपर लेटा हुआ था। कविता मुझे कहने लगी सुरेश तुम अपने लंड को बाहर निकालो। मैंने अपने लंड को बाहर निकाला। कविता की योनि से अभी पानी बाहर की तरफ को टपक रहा था। कविता को बहुत ज्यादा अच्छा लग रहा था उसके बाद भी मेरे और कविता के बीच में शारीरिक संबंध बनते रहे और हम दोनों को एक दूसरे के साथ शारीरिक संबंध बनाने में बड़ा ही मजा आता है।
 
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