Antarvasna, hindi sex kahani: 19 वर्ष की आयु में जब पहली बार मैं अपने गांव से बाहर निकला तो मेरे लिए सब कुछ नया था मेरे पास अकेले रहने का कोई अनुभव नही था और ना ही मैं कभी अकेला रहा था लेकिन उसके बावजूद भी मैंने हिम्मत करते हुए अकेले रहने का फैसला किया। मेरे पिताजी ने मुझे गांव से दूर शहर पढ़ने के लिए भेजा था क्योंकि वह गांव में सिर्फ अशिक्षा के कारण ही कुछ कर नहीं पाए और खेती-बाड़ी में ही उन्होंने अपना जीवन आधा गुजार दिया। वह गांव में खेती का काम करते हैं लेकिन वह चाहते थे कि मैं शहर में पढ़ लिख कर एक बड़ा आदमी बन जाऊं इसीलिए तो उन्होंने मुझे शहर पढ़ने के लिए भेज दिया। उन्होंने मुझे कहा कि बेटा तुम किसी भी चीज की चिंता मत करना तुम सिर्फ अपने पढ़ाई में ध्यान देना और मैं उनके सपनों को साकार करने के लिए शहर चला आया। शहर आने से मेरे अंदर की हिचकिचाहट दूर नहीं हुई थी क्योंकि मैं बहुत ही ज्यादा घबराता था और किसी से भी खुलकर मैं बात नहीं कर पाता था।
मेरे अंदर इस बात को लेकर शायद एक डर था कि मैं गांव का रहने वाला सामान्य सा लड़का हूं और यदि मैं अपनी पहचान उन्हें बताऊंगा तो शहर में शायद वह लोग मुझे स्वीकार नहीं कर पाएंगे। ऐसा मेरे साथ कई बार हुआ इसलिए मैं अपनी पहचान को छुपाने की कोशिश में किसी से भी बात नहीं किया करता लेकिन 19 वर्ष की आयु में जब पहली बार मुझे एहसास हुआ कि घर की जिम्मेदारियां क्या होती है तो उन्ही जिम्मेदारियों ने मुझे मजबूत बनाया और मैं धीरे-धीरे समय के साथ सब कुछ सीखता रहा। मेरी दोस्ती कॉलेज के लड़कों से होने लगी थी लेकिन अक्षय से मेरी सबसे गहरी दोस्ती हुई अक्षय और मेरे बीच में दोस्ती इतनी मजबूत थी कि हम लोग एक दूसरे को ही हमेशा बहुत ही सपोर्ट किया करते। अक्षय चंडीगढ़ का ही रहने वाला था और अक्षय के साथ मैं कई बार उसके घर पर चला जाया करता था अक्षय ने जब मुझे अपने घर वालों से मिलवाया तो उसके परिवार वालों ने भी जैसे मुझे अपना मान लिया था और वह मुझे बहुत ही ज्यादा प्यार करते थे। अक्षय की मां मुझे अपने बेटे समान मानती थी और वह मुझे कहती की जब भी तुम्हें कोई परेशानी हो तो तुम मुझे बताना अक्षय की मम्मी मुझे बहुत अच्छी लगती थी। मुझे अपनी मां की उन्होंने कभी याद नहीं आने दी मेरी खुशी इसी बात से थी कि कम से कम कोई तो है जो मुझे समझ पाता है।
एक दिन मैं बहुत अकेला महसूस कर रहा था उस दिन मैं अपने हॉस्टल के कमरे में बैठा हुआ था तभी मुझे अक्षय का फोन आया और वह कहने लगा तुम कहां हो। मैंने अक्षय से कहा कि मैं तो अभी अपने रूम में ही हूं अक्षय मुझे कहने लगा मैं अभी तुम्हारे रूम में आ रहा हूं। अक्षय जब मेरे रूम में आया तो मैं बहुत ज्यादा उदास था शायद मेरी उदासी का कारण यही था कि मुझे अपने घर की बहुत याद आ रही थी। जब अक्षय ने मुझे कहा कि तुम मेरे साथ मेरे घर पर चलो तो मैंने अक्षय से कहा नहीं मैं तुम्हारे घर आकर क्या करूंगा अक्षय मुझे कहने लगा कि यदि तुम मुझे अपना मानते हो तो तुम मेरे साथ अभी चलो। अक्षय की जिद से मैं उसके घर चला गया जब उसकी मां को यह बात पता चली तो वह मुझे कहने लगे कि बेटा क्या हम तुम्हारे अपने नहीं हैं। उनके यह बात कहने पर मुझे एक अपनापन सा महसूस हुआ और मैंने उन्हें कहा कि मेरे पिताजी ने अपने जीवन में जिंदगी भर सिर्फ खेती-बाड़ी का ही काम किया और उनके सपनों को पूरा करने के लिए मैं आज शहर आया हूं लेकिन शहर आने से भी मुझे अच्छा नहीं लगता है क्योंकि मुझे मेरे परिवार की बहुत याद आती है। इस बात से अक्षय की मम्मी कहने लगी कि बेटा तुम्हें जब भी ऐसा महसूस होता है तो तुम घर आ जाया करो उनके इतने अपनेपन से मुझे बहुत अच्छा लगा और मैं उसके बाद उनसे मिलने के लिए अक्सर उनके घर पर चला जाया करता था। मैं जब भी उनसे मिलने के लिए उनके घर पर जाता तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। एक बार मेरे पिताजी भी मुझसे मिलने के लिए आए थे और धीरे धीरे मेरी पढ़ाई भी पूरी होती जा रही थी पता ही नहीं चला कि कब समय बीतता चला गया और मेरे कॉलेज की पढ़ाई खत्म हो गई।
हमारे कॉलेज में प्लेसमेंट के लिए कुछ कंपनियां आई थी जो मैं चाहता था कि मेरा सबसे अच्छी कंपनी में सिलेक्शन हो जाए उसके लिए मैंने बहुत जी तोड़ मेहनत की और हुआ भी ऐसा ही की मेरा एक बड़ी कंपनी में सलेक्शन हो गया। मेरा सिलेक्शन होने के बाद मैं मुंबई जाने की तैयारी करने लगा कंपनी के मेन हेड ऑफिस में मेरा सलेक्शन हुआ था और वहां पर सिलेक्ट होने के लिए लड़के पूरी तरीके से पागल थे लेकिन सिर्फ मेरा ही उस कंपनी में सलेक्शन हो पाया। अक्षय ने मुझे कहा विजय जो तुम चाहते थे वही हुआ मैंने उससे कहा हां यार यह सब तुम्हारी वजह से भी तो संभव हो पाया है यदि मुझे तुम्हारा साथ यहां नहीं मिलता तो शायद इतना लंबा सफर तय कर पाना आसान नहीं था। समय के साथ जिम्मेदारियों का एहसास भी आने लगा था और मैं मुंबई चला गया मैं मुंबई गया तो वहां पर काफी समय तक मुझे एडजेस्ट करने में परेशानी हुई लेकिन धीरे-धीरे मैं मुंबई के तौर तरीके सीख चुका था। मैं मुंबई के रंग में पूरी तरीके से रंगने लगा था और मैं बहुत ज्यादा खुश भी था क्योंकि मेरे लिए खुशी की बात थी कि कम से कम मैं कुछ अच्छा कर पाया हूं। अक्षय से मेरी बात हर रोज हुआ करती थी और मेरे परिवार वाले भी बहुत खुश थे मुझे कंपनी की तरफ से ही रहने के लिए फ्लैट दिया गया था जिसमें कि मैं रहता था।
मुंबई में आने के बाद सब कुछ बदल चुका था क्योंकि अब मेरा दोस्त अक्षय भी मेरे साथ नही था मैं अपने जीवन में आगे बढ़ गया था परंतु उसके बावजूद भी मैंने अपने जीवन को मुंबई के हिसाब से ढाल लिया था हालांकि यह मेरे लिए थोड़ा कठिन जरूर था लेकिन इतना भी कठिन नहीं था कि मैं मुंबई की जिंदगी में अपने आपको ढाल नहीं पाता। एक अच्छी जॉब के साथ ही अच्छा सैलरी पैकेज भी मायने रखता था और मेरी अच्छी तनख्वाह होने की वजह से मैं अब एक अच्छी सोसाइटी में बैठने लगा था सब कुछ बदलता हुआ नजर आ रहा था और मेरे पिताजी का सपना भी अब साकार हो चुका था। मैं घर पर भी पैसे भिजवा दिया करता था ताकि उन्हें भी कभी किसी चीज की कमी ना रहे मैंने उन्हें कभी भी किसी चीज की कमी नहीं होने दी। जल्द ही सब कुछ बदल चुका था लेकिन मेरे जीवन में अब भी एक हिस्सा खाली था क्योंकि मेरे पास कोई भी अपना नहीं था जिससे कि मैं अपने दिल की बात कह पाता। अक्षय भी मुझसे दूर था मेरा परिवार भी मुझसे दूर था इसीलिए मैं जब पहली बार सुनिधि से मिला तो उससे मिलकर ऐसा लगा कि जैसे उसके पास मेरी हर एक बात का जवाब है। मुझे उस के साथ अच्छा लगता मै सुनीधि से जिस दिन नहीं मिलता उस दिन मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था। हम दोनों की मुलाकातों का दौरा बढता ही जा रहा था और मुझे भी अच्छा लगने लगा था क्योंकि सुनिधि के साथ समय बिताना मेरे लिए बड़ा ही अच्छा रहता था। एक दिन मैंने सुनिधि को अपने फ्लैट पर बुलाया तो उस दिन मैंने सुनिधि के गाल पर एक पप्पी दे डाली जिससे कि वह मुझसे नाराज हो गई और उसके बाद वह मेरा फोन भी नहीं उठा रही थी लाख कोशिशों के बाद मुझे उसे मनाया। वह मुझसे मिलने के लिए दोबारा फ्लैट में आने लगी लेकिन मैं उससे दूरी बनाकर ही रखता था परंतु जब उसने मेरे हाथ को पकड़ा तो उसकी आंखों में जैसे कुछ चल रहा था।
मैं उसकी आंखों को पढ़ने की कोशिश कर रहा था जैसे ही मैंने उसके हाथ को सहलाना शुरू किया तो वह पूरी तरीके से मचलने लगी थी और मुझे भी बड़ा अच्छा लग रहा था। मैंने काफी देर तक उसके हाथ को अपने हाथों में लेकर रखा उसके बाद जब मैंने अपने लंड को बाहर निकाला तो सुनिधि ने उसे अपने हाथों में ले लिया और कहने लगी विजय आज मुझे लगा कि शायद यह सब भी जरूरी है। यह कहते हुए उसने मेरे लंड को मुंह के अंदर समा लिया जब उसने मेरे लंड को मुंह मे समाया तो मैं बिल्कुल भी रह ना सका और मेरे अंदर की गर्मी लगातार तेज होने लगी थी। मेरे अंदर की गर्मी बढ़ती जा रही थी और जब सुनिधि ने अपने कपड़े उतारने शुरू किए तो उसके नंगे बदन को देखकर मेरे अंदर भी एक आग पैदा होने लगी। मैं उसकी पैंटी को उतारकर उसकी योनि को चाटने लगा था मैने उसकी योनि से गीला पदार्थ बाहर निकाल दिया और उसकी नशीली आंखों मैं मैंने अपने आगोस मे लिया था।
मैंने जब अपने लंड को उसकी चूत पर लगाया तो वह मुझे कहने लगी थोड़ा धीरे से करना। मैंने अपने लंड को उसकी योनि के अंदर डाला और उसके साथ में उसे तेज गति से धक्के मारने लगा। मैं अब उसे बड़ी तेज गति से धक्के मार रहा था और मुझे उसे धक्के मारने में मजा भी आ रहा था। काफी देर तक मैंने उसकी योनि के मजे लिए और जिस प्रकार से मैं उसे धक्के मार रहा था उससे वह भी बड़ी खुश नजर आ रही थी और अपने पैरों को चौड़ा कर रही थी। जब हम दोनों की इच्छा ही नहीं भरी तो मैंने उसे घोड़ी बना दिया और घोड़ी बनाकर पेलना शुरू किया घोड़ी बनाकर चोदने का एक अलग ही मजा आ रहा है। उसकी बड़ी चूतडे मुझसे टकरा रही थी जब वह मुझसे अपनी चूतडो को टकराती तो मुझे बढ़ा ही मजा आ जाता और मैं उसे तेजी से धक्के मारे जा रहा था। मैंने जैसे ही अपने वीर्य को सुनिधि की योनि के अंदर घुसाया तो वह कहने लगी तुमने तो अपनी गर्मी उतार दी है लेकिन अभी मेरे गर्मी शांत नहीं हुई है। उसके बाद दोबारा से मैंने सुनिधि के साथ 10 मिनट तक सेक्स संबंध का आनंद लिया। 10 मिनट बाद में सुनिधि की इच्छाओं को पूरा कर पाया।
मेरे अंदर इस बात को लेकर शायद एक डर था कि मैं गांव का रहने वाला सामान्य सा लड़का हूं और यदि मैं अपनी पहचान उन्हें बताऊंगा तो शहर में शायद वह लोग मुझे स्वीकार नहीं कर पाएंगे। ऐसा मेरे साथ कई बार हुआ इसलिए मैं अपनी पहचान को छुपाने की कोशिश में किसी से भी बात नहीं किया करता लेकिन 19 वर्ष की आयु में जब पहली बार मुझे एहसास हुआ कि घर की जिम्मेदारियां क्या होती है तो उन्ही जिम्मेदारियों ने मुझे मजबूत बनाया और मैं धीरे-धीरे समय के साथ सब कुछ सीखता रहा। मेरी दोस्ती कॉलेज के लड़कों से होने लगी थी लेकिन अक्षय से मेरी सबसे गहरी दोस्ती हुई अक्षय और मेरे बीच में दोस्ती इतनी मजबूत थी कि हम लोग एक दूसरे को ही हमेशा बहुत ही सपोर्ट किया करते। अक्षय चंडीगढ़ का ही रहने वाला था और अक्षय के साथ मैं कई बार उसके घर पर चला जाया करता था अक्षय ने जब मुझे अपने घर वालों से मिलवाया तो उसके परिवार वालों ने भी जैसे मुझे अपना मान लिया था और वह मुझे बहुत ही ज्यादा प्यार करते थे। अक्षय की मां मुझे अपने बेटे समान मानती थी और वह मुझे कहती की जब भी तुम्हें कोई परेशानी हो तो तुम मुझे बताना अक्षय की मम्मी मुझे बहुत अच्छी लगती थी। मुझे अपनी मां की उन्होंने कभी याद नहीं आने दी मेरी खुशी इसी बात से थी कि कम से कम कोई तो है जो मुझे समझ पाता है।
एक दिन मैं बहुत अकेला महसूस कर रहा था उस दिन मैं अपने हॉस्टल के कमरे में बैठा हुआ था तभी मुझे अक्षय का फोन आया और वह कहने लगा तुम कहां हो। मैंने अक्षय से कहा कि मैं तो अभी अपने रूम में ही हूं अक्षय मुझे कहने लगा मैं अभी तुम्हारे रूम में आ रहा हूं। अक्षय जब मेरे रूम में आया तो मैं बहुत ज्यादा उदास था शायद मेरी उदासी का कारण यही था कि मुझे अपने घर की बहुत याद आ रही थी। जब अक्षय ने मुझे कहा कि तुम मेरे साथ मेरे घर पर चलो तो मैंने अक्षय से कहा नहीं मैं तुम्हारे घर आकर क्या करूंगा अक्षय मुझे कहने लगा कि यदि तुम मुझे अपना मानते हो तो तुम मेरे साथ अभी चलो। अक्षय की जिद से मैं उसके घर चला गया जब उसकी मां को यह बात पता चली तो वह मुझे कहने लगे कि बेटा क्या हम तुम्हारे अपने नहीं हैं। उनके यह बात कहने पर मुझे एक अपनापन सा महसूस हुआ और मैंने उन्हें कहा कि मेरे पिताजी ने अपने जीवन में जिंदगी भर सिर्फ खेती-बाड़ी का ही काम किया और उनके सपनों को पूरा करने के लिए मैं आज शहर आया हूं लेकिन शहर आने से भी मुझे अच्छा नहीं लगता है क्योंकि मुझे मेरे परिवार की बहुत याद आती है। इस बात से अक्षय की मम्मी कहने लगी कि बेटा तुम्हें जब भी ऐसा महसूस होता है तो तुम घर आ जाया करो उनके इतने अपनेपन से मुझे बहुत अच्छा लगा और मैं उसके बाद उनसे मिलने के लिए अक्सर उनके घर पर चला जाया करता था। मैं जब भी उनसे मिलने के लिए उनके घर पर जाता तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। एक बार मेरे पिताजी भी मुझसे मिलने के लिए आए थे और धीरे धीरे मेरी पढ़ाई भी पूरी होती जा रही थी पता ही नहीं चला कि कब समय बीतता चला गया और मेरे कॉलेज की पढ़ाई खत्म हो गई।
हमारे कॉलेज में प्लेसमेंट के लिए कुछ कंपनियां आई थी जो मैं चाहता था कि मेरा सबसे अच्छी कंपनी में सिलेक्शन हो जाए उसके लिए मैंने बहुत जी तोड़ मेहनत की और हुआ भी ऐसा ही की मेरा एक बड़ी कंपनी में सलेक्शन हो गया। मेरा सिलेक्शन होने के बाद मैं मुंबई जाने की तैयारी करने लगा कंपनी के मेन हेड ऑफिस में मेरा सलेक्शन हुआ था और वहां पर सिलेक्ट होने के लिए लड़के पूरी तरीके से पागल थे लेकिन सिर्फ मेरा ही उस कंपनी में सलेक्शन हो पाया। अक्षय ने मुझे कहा विजय जो तुम चाहते थे वही हुआ मैंने उससे कहा हां यार यह सब तुम्हारी वजह से भी तो संभव हो पाया है यदि मुझे तुम्हारा साथ यहां नहीं मिलता तो शायद इतना लंबा सफर तय कर पाना आसान नहीं था। समय के साथ जिम्मेदारियों का एहसास भी आने लगा था और मैं मुंबई चला गया मैं मुंबई गया तो वहां पर काफी समय तक मुझे एडजेस्ट करने में परेशानी हुई लेकिन धीरे-धीरे मैं मुंबई के तौर तरीके सीख चुका था। मैं मुंबई के रंग में पूरी तरीके से रंगने लगा था और मैं बहुत ज्यादा खुश भी था क्योंकि मेरे लिए खुशी की बात थी कि कम से कम मैं कुछ अच्छा कर पाया हूं। अक्षय से मेरी बात हर रोज हुआ करती थी और मेरे परिवार वाले भी बहुत खुश थे मुझे कंपनी की तरफ से ही रहने के लिए फ्लैट दिया गया था जिसमें कि मैं रहता था।
मुंबई में आने के बाद सब कुछ बदल चुका था क्योंकि अब मेरा दोस्त अक्षय भी मेरे साथ नही था मैं अपने जीवन में आगे बढ़ गया था परंतु उसके बावजूद भी मैंने अपने जीवन को मुंबई के हिसाब से ढाल लिया था हालांकि यह मेरे लिए थोड़ा कठिन जरूर था लेकिन इतना भी कठिन नहीं था कि मैं मुंबई की जिंदगी में अपने आपको ढाल नहीं पाता। एक अच्छी जॉब के साथ ही अच्छा सैलरी पैकेज भी मायने रखता था और मेरी अच्छी तनख्वाह होने की वजह से मैं अब एक अच्छी सोसाइटी में बैठने लगा था सब कुछ बदलता हुआ नजर आ रहा था और मेरे पिताजी का सपना भी अब साकार हो चुका था। मैं घर पर भी पैसे भिजवा दिया करता था ताकि उन्हें भी कभी किसी चीज की कमी ना रहे मैंने उन्हें कभी भी किसी चीज की कमी नहीं होने दी। जल्द ही सब कुछ बदल चुका था लेकिन मेरे जीवन में अब भी एक हिस्सा खाली था क्योंकि मेरे पास कोई भी अपना नहीं था जिससे कि मैं अपने दिल की बात कह पाता। अक्षय भी मुझसे दूर था मेरा परिवार भी मुझसे दूर था इसीलिए मैं जब पहली बार सुनिधि से मिला तो उससे मिलकर ऐसा लगा कि जैसे उसके पास मेरी हर एक बात का जवाब है। मुझे उस के साथ अच्छा लगता मै सुनीधि से जिस दिन नहीं मिलता उस दिन मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था। हम दोनों की मुलाकातों का दौरा बढता ही जा रहा था और मुझे भी अच्छा लगने लगा था क्योंकि सुनिधि के साथ समय बिताना मेरे लिए बड़ा ही अच्छा रहता था। एक दिन मैंने सुनिधि को अपने फ्लैट पर बुलाया तो उस दिन मैंने सुनिधि के गाल पर एक पप्पी दे डाली जिससे कि वह मुझसे नाराज हो गई और उसके बाद वह मेरा फोन भी नहीं उठा रही थी लाख कोशिशों के बाद मुझे उसे मनाया। वह मुझसे मिलने के लिए दोबारा फ्लैट में आने लगी लेकिन मैं उससे दूरी बनाकर ही रखता था परंतु जब उसने मेरे हाथ को पकड़ा तो उसकी आंखों में जैसे कुछ चल रहा था।
मैं उसकी आंखों को पढ़ने की कोशिश कर रहा था जैसे ही मैंने उसके हाथ को सहलाना शुरू किया तो वह पूरी तरीके से मचलने लगी थी और मुझे भी बड़ा अच्छा लग रहा था। मैंने काफी देर तक उसके हाथ को अपने हाथों में लेकर रखा उसके बाद जब मैंने अपने लंड को बाहर निकाला तो सुनिधि ने उसे अपने हाथों में ले लिया और कहने लगी विजय आज मुझे लगा कि शायद यह सब भी जरूरी है। यह कहते हुए उसने मेरे लंड को मुंह के अंदर समा लिया जब उसने मेरे लंड को मुंह मे समाया तो मैं बिल्कुल भी रह ना सका और मेरे अंदर की गर्मी लगातार तेज होने लगी थी। मेरे अंदर की गर्मी बढ़ती जा रही थी और जब सुनिधि ने अपने कपड़े उतारने शुरू किए तो उसके नंगे बदन को देखकर मेरे अंदर भी एक आग पैदा होने लगी। मैं उसकी पैंटी को उतारकर उसकी योनि को चाटने लगा था मैने उसकी योनि से गीला पदार्थ बाहर निकाल दिया और उसकी नशीली आंखों मैं मैंने अपने आगोस मे लिया था।
मैंने जब अपने लंड को उसकी चूत पर लगाया तो वह मुझे कहने लगी थोड़ा धीरे से करना। मैंने अपने लंड को उसकी योनि के अंदर डाला और उसके साथ में उसे तेज गति से धक्के मारने लगा। मैं अब उसे बड़ी तेज गति से धक्के मार रहा था और मुझे उसे धक्के मारने में मजा भी आ रहा था। काफी देर तक मैंने उसकी योनि के मजे लिए और जिस प्रकार से मैं उसे धक्के मार रहा था उससे वह भी बड़ी खुश नजर आ रही थी और अपने पैरों को चौड़ा कर रही थी। जब हम दोनों की इच्छा ही नहीं भरी तो मैंने उसे घोड़ी बना दिया और घोड़ी बनाकर पेलना शुरू किया घोड़ी बनाकर चोदने का एक अलग ही मजा आ रहा है। उसकी बड़ी चूतडे मुझसे टकरा रही थी जब वह मुझसे अपनी चूतडो को टकराती तो मुझे बढ़ा ही मजा आ जाता और मैं उसे तेजी से धक्के मारे जा रहा था। मैंने जैसे ही अपने वीर्य को सुनिधि की योनि के अंदर घुसाया तो वह कहने लगी तुमने तो अपनी गर्मी उतार दी है लेकिन अभी मेरे गर्मी शांत नहीं हुई है। उसके बाद दोबारा से मैंने सुनिधि के साथ 10 मिनट तक सेक्स संबंध का आनंद लिया। 10 मिनट बाद में सुनिधि की इच्छाओं को पूरा कर पाया।