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अब तक आपने पढा, मैने मेरे ऑफिस के चौकीदार रमेश का लंड पैंट से बाहर निकालकर सहलाने लगी थी। पहले ही ऑफिस में काफी समय हो चुका था, और जल्दी से घर भी जाना था। तो मैने सोचा, आज के लिए रमेश के लंड को चूसकर माल निकाल दुंगी, और फिर बाकी का बाद में कभी देखा जाएगा। अब रमेश मेरे सामने खडा था, और मै उसके अपने घुटनों के बल बैठकर उसके लंड को थी। मै उसके अपने घुटनों के बल बैठकर उसके लंड को मुंह मे भरने जा रही थी।

अब तक तो रमेश का लंड भी एकदम तनकर सलाम ठोकने लगा था। तो मैने भी ज्यादा देरी न करते हुए, उसको सहलाते हुए लंड अपने मुंह मे भर लिया। अब अगर जल्द से जल्द घर जाना होगा तो जल्द ही उसका पानी निकालना जरूरी था। जल्दी से मै घर के लिए निकल जाऊं इसलिए मै मस्त होकर उसके लंड को चूस रही थी।

थोडी देर चूसने के बाद ही रमेश ने मेरे सर को पीछे से पकड लिया, और अब मेरे मुंह मे धक्के लगाने लगा। वह मेरे मुंह को चोदे जा रहा था। रमेश का लंड बहुत लंबा होने की वजह से पूरा मेरे मुंह मे नही जा रहा था। जैसे ही वो मेरे सर को पकडकर अपना पूरा लंड मेरे मुंह मे घुसाना चाहता, मुझे एक उबकाई सी आ जाती और फिर वो अपना लंड बाहर निकाल लेता। एक दो बार तो उसने अचानक बहुत जोर से धक्का लगा दिया था, जिस वजह से मेरी सांस ही अटक गई थी।

अब मै उसके लंड को चूसते हुए अपने हाथ से उसके अंडकोषों को भी सहला रही थी। लगभग १५ मिनट तक उसने मुझे अपना लंड चुसवाया, और फिर मेरे मुंह मे ही अपना सारा वीर्य गिरा दिया। रमेश के लंड से निकली हुई पिचकारियां मेरे मुंह मे, चेहरे पर, चूचियों पर सब तरफ बिखर चुकी थी। फिर मै जल्दी से उठकर उसका लंड साफ करने लगी, और साथ ही खुद को भी साफ कर लिया।

वैसे भी अब तक काफी समय हो चुका था, और मुझे लगा, अब रमेश भी मान जाएगा। लेकिन वह मानने के मूड मे था ही नही। उसने मुझसे कहा, "क्या हुआ, इतनी जल्दबाजी क्यूं दिखा रही हो?"

तो मैने रमेश से कहा, "रमेश बात को समझो, अभी बहुत लेट हो गया है और घर पे समय से नही पहुंची तो फिर बवाल हो जाएगा। बाकी फिर कभी करते है, आज मुझे जाने दो प्लीज।"

लेकिन वो माननेवालों में से नही था। उसने कहा, "बहुत दिनों के इंतजार के बाद तू हाथ लगी है। मै तुझे आज चोदे बिना तो छोडूंगा नही।"

यह सुनकर मै उसके सामने गिडगिडाने लगी, लेकिन उस बेरहम पर इसका कोई असर नही हुआ। उसने मुझे फिर से अपने पास खींच लिया, और मेरे स्तनों को मसलते हुए मेरे होठों पर अपने होंठ रखकर उन्हें चूमते हुए चूसने लगा। मै उसका विरोध कर रही थी, उसको अपने से दूर धकेलने की नाकाम कोशिश कर रही थी। मेरी लाख कोशिशों के बावजूद मै खुद को उसकी मजबूत पकड से छुडा नही पाई।

जब मै समझ गई कि, यह आज मुझे चोदे बिना ऑफिस से निकलने नही देगा तो मैने भी अब खुद को उसके हवाले सौंप दिया। मेरी तरफ से विरोध कम होते देखकर उसने अपने हाथ नीचे ले जाकर मेरी सलवार का नाडा खोल दिया। सलवार का नाडा खोलते ही सलवार नीचे गिरकर मेरे पैरों में आ गई, जिसे मैने थोडी ही देर में अपने शरीर से अलग कर दिया। जैसे ही उसने देखा, मै उसकी सहायता कर रही हूं, वह मुझसे अलग होकर अपनी शर्ट निकालने लगा।

अब रमेश मेरे सामने बिल्कुल नंगा खडा था, और मै सिर्फ अपनी पैंटी में थी। मेरी पैंटी मुश्किल से मेरी चुत को ढक पा रही थी। रमेश अपनी शर्ट उतारने के बाद मेरे सामने अपने घुटनों के बल बैठ गया।

रमेश ने मेरे चुतड़ों पे अपनी पकड मजबूत कर ली और पैंटी के ऊपर से ही मेरी चुत को सूंघने लगा। धीरे से अपनी नाक से मेरी चुत को सहलाने लगा। फिर धीरे से अपनी एक उंगली से उसने मेरी पैंटी को साइड कर दिया और चुत के मुंह पे एक चुम्मी दे दी।

अब रमेश मेरी चुत का रसपान करना चाह रहा था लेकिन पैंटी उसके बीच आ रही थी। तो उसने अपनी उंगलियां पैंटी में फंसाकर उसे धीरे से नीचे खिसकाने लगा। और आखिर में अब मै अपने ऑफिस के एक चौकीदार के सामने पूरी नंगी खडी थी।

मुझे थोडी शर्म भी लग रही थी, लेकिन चुदास शर्म पर हावी थी। रमेश ने मेरी पैंटी उतारकर साइड में रख दी। और तुरंत ही मेरी चुत का रसपान करने लगा।

रमेश बहुत ही बुरी तरह से मेरी चुत चाट रहा था। उसको देखकर लग रहा था, वो चुत के रस का बरसों से इंतजार कर रहा था। वह लगभग मेरी चुत को खाने की ही कोशिश कर रहा था। उसके इस तरह से चुत चाटने से जल्द ही मेरा शरीर अकडने लगा। मैने कांपते हुए पैरों के साथ उसके सर को अपनी चुत पे दबाकर अपना फव्वारा छोड दिया। रमेश ने भी तब तक चुत से अपना मुंह नही हटाया जब तक एक एक बूंद उसने साफ ना कर दी हो।

चुत से हटने के बाद रमेश उठा और उसने मुझे टेबल की तरफ मुंह करके टेबल पे हाथ रखकर खडा किया। और फिर मुझे थोडा नीचे झुकाया, और मेरी चुत के द्वार को देखने लगा। उसने अपने दोनों हाथों को मेरे दोनों पैरों के बीच मे घुसाकर मेरे पैरों को फैला दिया। और अपने एक हाथ पे ढेर सारा थूक लेकर मेरी चुत के मुहाने पे लगा दिया। फिर वह मेरे पीछे आया, और मेरे चुतड़ों को फैलाकर उसपे एक थप्पड जड दिया।

रमेश ने फिर अपने हाथों से मेरी कमर को कसकर पकड लिया और दूसरे हाथ से अपने लंड को मेरी चुत के मुहाने पे टिकाकर एक जोर का धक्का लगा दिया। बॉस का लंड लेकर मेरी चुत पहले ही खुल चुकी थी, और बॉस का लंड रमेश से मोटा भी था। तो रमेश का लंड अंदर घुसने में कोई खास परेशानी हुई नही। तो रमेश ने बिना रुके दूसरा धक्का भी मार दिया, जिससे उसका लंड सीधा मेरी बच्चेदानी से जा टकराया। लंड बच्चेदानी से टकराते ही मेरे मुंह से चीख निकल गई, जिसे सुनकर रमेश खुश होने लगा।

अब रमेश ने मेरी कमर छोडकर अपने हाथों में मेरे दोनों स्तन पकड लिए, और उन्हें मसलते हुए धक्के लगाए जा रहा था। उसके हर धक्के के साथ लंड बच्चेदानी से टकरा जाता, जिससे मै उछल पडती। इसी बीच वह कभी मेरे बालों को पकडकर खींचता और मेरे मुंह को चूम लेता, तो कभी मेरे चुतड़ों पे थप्पड लगा देता। उसके चोदने के तरीके में एक अलग ही वहशीपन दिखाई दे रहा था, लेकिन मुझे भी यह अच्छा लगने लगा था और मै भी मजे लेने लगी थी।

थोडी देर बाद उसने अचानक अपना लंड खींचकर मेरी चुत से बाहर निकाल लिया। लंड के अचानक बाहर निकलने से मुझे लगा, मुझसे किसीने मेरी बहुत कीमती चीज छीन ली हो।

मैने पलटकर रमेश की तरफ सवालिया नजर से देखा तो उसने कहा, "अब तुम मेरी तरफ मुंह करके टेबल पर बैठ जाओ।"

तो मै भी तुरंत ही उसके कहे अनुसार टेबल पर बैठ गई, और अपनी बांहे खोलकर उसे अपनी तरफ बुला लिया। रमेश ने मेरा हाथ अपने कंधे पर रखा और आगे आकर लंड को मेरी चुत के द्वार पे रखकर एक धक्का दे दिया। इस बार एक ही झटके में उसका लंड अंदर चला गया और अब वो मेरे होठों का रसपान करते हुए मेरी चुत बजाए जा रहा था।

लंड पूरा अंदर जाते ही मैने भी अपने हाथों के हार को उसके गले में डाल दिया और दोनों पैरों को उसकी कमर के इर्द गिर्द लपेट लिया।

थोडी ही देर में मेरा शरीर अकडने लगा तो मैने अपने पैरों को रमेश की कमर पे और जोर से जकड लिया और झड गई। जैसे ही उसने फिर से देखा कि, मेरी पकड ढीली पड रही है, उसने मुझे उसी पोजिशन में उठा लिया। अब रमेश मुझे अपनी गोदी में उठाकर चोद रहा था।

उसका कसरती और गठीला शरीर अब पसीने से भीग रहा था, जिसकी खुशबू मेरे नथुनों में घुस रही थी। मै भी उसके सीने पे चूमते हुए अपने हाथों की उंगलियों से उसके सीने के बालों के साथ खेलने लगी।

थोडी देर धक्के लगाने के बाद उसने कहा, "मै आने वाला हूं, अपना माल कहां गिराऊं?"

मैने उससे कहा, "अंदर ही अपना वीर्य गिरा दो, मै अंदर महसूस करना चाहती हु। बाद में मै पिल ले लुंगी, तो टेंशन मत लेना।"

तो उसने और कुछ तेज झटके मारे और मेरी चुत के अंदर ही झड़ते हुए अपना सारा वीर्य मेरी चुत में भर दिया। उसके झडने के बाद उसने मुझे टेबल पर बिठाया और खुद मेरी कुर्सी पर बैठ गया।

थोडी देर बाद हम दोनों उठे, अपने आप को साफ किया और कपडे पहनकर चुपके से ऑफिस से निकल लिए।

यह मेरे साथ घटित सच्ची कहानी है। आपको यह कहानी कैसी लगी यह हमें जरूर बताइए। धन्यवाद।
 
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