जैसी करनी वैसी भरनी

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Jaisi Karni Vaisi Bharni

नमस्कार दोस्तो।

आप जिस कहानी को पढ़ने जा रहे हैं, वह कहानी मेरे जीवन से जुड़ी हुई है। इस घटना से पहले, मैंने ज़िंदगी में ऐसी धोकेबाज़ी कभी नहीं देखी थी। मैं चाहता हूँ कि आप लोग इस कहानी को पढ़कर समझें कि दुनिया धोखेबाज़ों से भरी पड़ी है।

मेरा नाम अभिषेक चौरसिया (उम्र २२) है। मैं पटना का रहने वाला हूँ। मेरे पिताजी की एक छोटी-सी चाय की दूकान है, जिसकी वज़ह से हमारी स्थिति अच्छी है। मैंने पढ़ाई तो ज़्यादा की नहीं, इसलिए अपने पिताजी को दूकान चलाने में उनकी मदत करता हूँ।

मेरी एक प्रेमिका थी, जिसका नाम प्रियांशी है। हमारा प्रेम का रिश्ता पिछले २ सालों से चल रहा था। प्रेम सम्बंद में सब कुछ अच्छा ही हो ऐसा तो कभी नहीं हुआ है। मेरे साथ भी नहीं हुआ था।

प्रियांशी को पैसों की लालच थी। वह मुझे रोज़ ताने मारा करती थी और कभी-कभार तो मुझसे नाराज़ होकर कई दिनों तक मिलती नहीं थी।

मैं प्रियांशी के साथ घर बसाने के सपने देखा करता था और एक वह थी जो अमीर बनने का ख़्वाब देखा करती था। ऐसा नहीं था कि उसे मेहनत करके पैसा कमाना था। प्रियांशी को शार्ट-कट तरीक़े से अमीर बनना था।

उसकी बिगड़ैल सहेलियाँ उसे शहर के अमीर लड़को की पार्टी में लेकर जाया करती थी। हम दोनों के प्रेम रिश्ते में दरार आ गई थी। प्रियांशी ने अचानक से मुझसे मिलना बंद कर दिया था। वह मेरे फ़ोन-कॉल भी उठाती नहीं थी।

मैंने सोचा कि ऐसा तो वह पहले भी किया करती थी, इसलिए उस मामले में मैंने ज़्यादा सोचा नहीं था। मगर लगभग १ महीने हो गए थे फिर भी प्रियांशी मुझसे आकर नहीं मिली। एक बार तो बाज़ार में मुझे देखकर उसने रास्ता बदल दिया था। मुझे दुख तो हुआ था, लेकिन मैंने अपने भविष्य के बारे में सोचा और फिर प्रियांशी को भूल गया।

ठीक एक हफ़्ते बाद, मैं जब रात को रेलवे स्टेशन से घर लौट रहा था, तब मैंने प्रियांशी को एक लड़के के साथ मोटर-बाइक पर जाते देखा। रात के क़रीब ०८: ३० बजे थे और वह दोनों एक सुनसान जग़ह की तरफ़ जा रहे थे।

मुझे जानना था कि प्रियांशी ने उस लड़के में ऐसा क्या देख लिया था, जिसके लिए उसने बिना कुछ कहे मुझसे रिश्ता तोड़ दिया था। मैं उनका पीछा करते हुए दौड़ पड़ा और थोड़ी दूर जाकर मैंने उन दोनों को बेंच पर बैठा पाया।

लड़का शराब पी रहा था और प्रियांशी के हाथ में नए कपड़े थे। थोड़ी देर बाद, लड़के जब नशे में आ गया तब उसने प्रियांशी को पकड़कर अपनी गोद में बिठा दिया। लड़के का चेहरा देखने के लिए मैं दबे पाँव चलकर उन दोनों के थोड़ा नज़दीक गया।

वह लड़के को मैं जानता था। वह दरोगा का बेटा बबलू था। वह कई लड़कियों को धोका दे चुका था। प्रियांशी ने ज़रूर बबलू के पास पैसा देखकर उसके साथ रिश्ता जोड़ा होगा क्यूँकि वह है ही लालची।

वह उसकी जाँघों पर अपने हाथ प्यार से सहला रहा था। प्रियांशी ने भी बबलू को अपनी बाहों में भर लिया था।

बबलू ने प्रियांशी को उसके जाँघों से पकड़कर अपने ऊपर चढ़ा लिया और उसकी चुम्मियाँ लेने लगा। प्रियांशी और बबलू, दोनों एक दूसरे की ज़ुबान को एक-एक करके मुँह में भरकर मज़े से एक दूसरे के होंठों को चूस रहे थे।

प्रियांशी की सलवार के अंदर हाथ घुसाकर बबलू उसके चूतड़ को अपने हाथों से मसल रहा था। प्रियांशी भी मस्त होकर सिसकियाँ लेने लगी थी। उसने अपनी कुर्ती को उतारकर अपनी गोल-मटोल चूचियों को बबलू की छाती पर दबाने लगी।

थोड़ी देर बाद, बबलू ने प्रियांशी को नीचे उतार दिया और अपने कपड़े उतारकर अपने मोटे लौड़े को बाहर निकाल दिया। प्रियांशी बबलू के मोटे और काले लौड़े को पकड़कर हिलाने लगी।

जब उसका मोटा और काला लौड़ा पूरी तरह तनकर खड़ा हो गया, तब प्रियांशी ने उसे अपने मुँह में भरकर चूसना शुरू किया।

वह पैरों के बल बैठकर बबलू के मोटे लौड़े को चूस रही थी। बबलू प्रियांशी का चेहरा पकड़कर उसके मुँह में अपना लौड़ा अंदर-बाहर घुसा रहा था। प्रियांशी भी उत्तेजित होकर अपनी चूत की दरार को उँगलियों से घिसने लगी थी।

प्रियांशी बबलू की गोटियों को चूसने लगी थी। बबलू अपनी आँखें बंद करके सिसकियाँ लेते हुए अपना उत्साह जाता रहा था। प्रियांशी अपने उँगलियों को बबलू की गाँड़ की दरार के बिच फ़साकर उसे उत्तेजित कर रही थी।

थोड़ी देर बाद, प्रियांशी खड़ी हो गई और अपनी सलवार और चड्डी को उतारने लगी। उसकी सुडौल गाँड़ देखकर बबलू ने उसके मोटे चूतड़ों पर थप्पड़ मार दिया। प्रियांशी की कमर को पकड़कर बबलू ने उसे अपनी तरफ़ खींच लिया।

उसकी गाँड़ को दबाते हुए बबलू उसकी चूचियों को एक-एक करके अपने मुँह में भरकर चूस रहा था। प्रियांशी की गाँड़ की दरार में अपनी उँगली फ़साकर बबलू ने उसके चुत्तड़ को फ़ैलाना शुरू किया था।

कुछ देर उसकी गाँड़ की छेद में उँगली घुसाने के बाद, बबलू ने प्रियांशी को फ़िरसे उसकी गाँड़ से पकड़कर उठा लिया। प्रियांशी ने बबलू का खड़ा हुआ लौड़ा पकड़ा और उसे अपनी चूत की दरार पर घिसना शुरू किया।

उसने मोटे लौड़े को अपनी चूत के अंदर धीरे से घुसा दिया और अपनी चूचियों को पकड़कर बबलू के मुँह पर घिसने लगी। बबलू प्रियांशी की गाँड़ पकड़कर उसे अपने मोटे लौड़े पर पटक रहा था।

उसका मोटा लौड़ा प्रियांशी की गीली चूत में फ़िसलकर अंदर-बाहर हो रहा था। बबलू उसकी गाँड़ की छेद में अपनी दो उँगलियाँ घुसाकर उसे भी अंदर-बाहर कर रहा था। प्रियांशी मस्त और गरम होकर चिल्लाने लगी थी।

बबलू प्रियांशी को अपने मोटे और काले लौड़े पर इतनी ज़ोर से पटककर उसकी चुदाई कर रहा था कि 'पच-पच' करके आवाज़ मुझे भी सुनाई दे रही थी। प्रियांशी सिसकियाँ लेकर बबलू को उकसाह रही थी।

बबलू और तेज़ी से प्रियांशी की गीली चूत में अपना मोटा लौड़ा घुसाकर उसे ऊपर-निचे उछाल रहा था। कुछ देर बाद, बबलू ने अपना मोटा और काला लौड़ा प्रियांशी की चूत से निकाल दिया। प्रियांशी अपनी उँगली चाटकर अपनी गाँड़ की छेद को चौड़ा कर रही थी।

उसने बबलू का मोटा और काला लौड़ा पकड़कर उसकी नोक को अपनी गाँड़ की छेद पर रख दिया। धीरे-धीरे ज़ोर ड़ालते हुए, बबलू ने अपना मोटा और काला लौड़ा प्रियांशी की गाँड़ में घुसा दिया।

अब बबलू प्रियांशी के चुत्तड़ फैलाकर उसकी गाँड़ की छेद में अपना मोटा लौड़ा अंदर-बाहर कर रहा था। प्रियांशी की चीख़े निकलने लगी थी। कोई उसकी आवाज़ न सुन ले, इसलिए बबलू ने उसके होंठों को अपने मुँह में भर दिया।

प्रियांशी के होंठों को चूसते हुए बबलू ज़ोर-ज़ोर से उसकी गाँड़ की चुदाई करने लगा। कुछ देर बाद, बबलू ने प्रियांशी को अपने ऊपर से उतार दिया। प्रियांशी पैरों के बल नीचे बैठकर बबलू के मोटे और काले लौड़े को अपने मुँह में घुसाकर चूसने लगी।

अपने हाथों से वह अपनी चूत की पँखुड़ियों को फ़ैलाकर उसमें उँगली घुसाने लगी। कुछ देर बाद, प्रियांशी को बबलू ने उठाकर बेंच पर उसे उसके पेट के बल लेटा दिया। प्रियांशी अपनी गाँड़ हिलाकर बबलू को उकसाह रही थी।

बबलू ने प्रियांशी के चूतड़ों पर थप्पड़ मारकर नीचे झुक गया और उसकी गाँड़ की दरार को चाटने लगा। प्रियांशी की गाँड़ की छेद को थूक लगाकर उसमें अपनी ज़ुबान घुसाने लगा।

उत्तेजना के मारे प्रियांशी अपनी गाँड़ को ज़ोर-ज़ोर से बबलू के मुँह पर घिस रही थी। बबलू खड़ा हो गया और अपने मोटे लौड़े की नोक को प्रियांशी की चूत की दरार पर घिसना शुरू कर दिया।

प्रियांशी की कमर पकड़कर बबलू उसकी चूत में अपना मोटा लौड़ा घुसाने लगा था। ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारते हुए, बबलू प्रियांशी की ज़ोर-ज़ोर से चुदाई कर रहा था।

आगे से उसकी चूचियाँ पकड़कर उसे दबाने लगा जिसकी वज़ह से प्रियांशी की चीख़ें निकलनी शुरू हो गई थी। बबलू ने अपने हाथ को प्रियांशी के मुँह पर रख दिया और ज़ोर-ज़ोर से उसकी चूत में लौड़ा घुसाना जारी रखा।

थोड़ी देर और अपने मोटे लौड़े को प्रियांशी की चूत में घुसाते हुए बबलू ने प्रियांशी के कान में कुछ कहा, जिसे सुनकर प्रियांशी 'नहीं, ऐसा मत करना' बोलकर चीख़ उठी थी। कुछ देर बाद, बबलू ने अपने मोटे लौड़े को प्रियांशी की चूत के अंदर दबा दिया।

प्रियांशी पलट गई और उसने बबलू को धक्का मार दिया। बबलू ने उसे चिढ़ाते हुए अपने कपड़े पहने और वहाँ से चला गया। प्रियांशी अकेले बैठकर कुछ सोच रही थी। मामला कुछ गंभीर था, क्यूँकि उसने कपड़े भी नहीं पहने थे।

मुझे जो देखना था वह मैंने देख लिया था, इसलिए वहाँ से चला गया। कुछ दिनों बाद, इलाके में चर्चा होने लगी थी कि प्रियांशी बबलू के बच्चे की माँ बन गई है करके। बबलू ने साफ़ इंकार किया और बोल दिया कि उसका प्रियांशी के साथ कोई सम्बंद नहीं था।

बदनामी के कारण, प्रियांशी और उसके माँ-बाप को शहर छोड़कर जाना पड़ा। प्रियांशी और उसके माँ-बाप, मेरी चाय की दूकान के पास से गुज़र रहे थे। उस दिन, हमारी चाय की दूकान एक भोजनालय में बदल गई थी।

उसी बात का जश्न चल रहा था। मेरी आँखों में ख़ुशी देखकर प्रियांशी को रोना आ गया था। मैं उसे देखकर पलट गया और सोचने लगा कि किसी की बर्बादी पर ख़ुश होना अच्छी बात तो नहीं है। उस दिन के बाद, मैंने प्रियांशी को आज तक नहीं देखा।
 
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