पुराणी प्रेमिका का चक्कर

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Purani Premika Ka Chakkar

फ्रेंड्स, पिछले हफ़्ते मेरे जीवन में एक अद्भुत घटना हुई थी जो मैं आप लोगों के साथ इस कहानी के माध्यम से साझा करना चाहूँगा। मैं अपने ऑफिस के बाहर घर जाने के लिए रिक्शा ढूँढ रहा था।

ख़ाली रिक्शा मिल नहीं रही थी इसलिए मैं थोड़ा आगे चलने लगा। थोड़ी दूर जाकर मुझे शेयर रिक्शा की लाइन नज़र आई। मैं लाइन में जाकर खड़ा हो गया और यहाँ-वहाँ देखने लगा।

तभी मुझे अपने कॉलेज की मोहब्बत दीपाली नज़र आई। वह अपने पति के साथ सिनेमा हॉल से बाहर निकलकर शेयर रिक्शा की लाइन की ओर आने लगी। उसका पति साथ में होने की वज़ह से मैंने उसके साथ बात करना ठीक नहीं समझा।

वह दोनों मेरे पीछे आकर खड़े हो गए। लाइन थोड़ी लम्बी थी इसलिए दीपाली का पति सिगरेट पीने के लिए रोड़ के उस पार एक पनवाड़ी की दुकान पर चला गया।

जैसे ही दीपाली का पति पनवाड़ी के साथ बात करने में मशगूल हो गया, मैं दीपाली की तरफ़ पलट गया। दीपाली मुझे देखकर आश्चर्य चकित हो गई और अपने मुँह पर हाथ रखकर ख़ुशी को व्यक्त करने लगी।

[मैं:] और बताओ दीपाली, कैसी चल रही है तुम्हारी शादी-शुदा ज़िन्दगी?

[दीपाली:] .कट रही है बस। सुबह-शाम घर का सारा काम करो और रात को पति के लिए बिस्तर पर पैर फ़ैलाओ। मेरे ऊपर चढ़कर इनकी मर्दानगी ५ मिनट के अंदर निकल जाती है। मेरा छोड़ो, तुम बताओ तुम्हारा क्या हाल है?

[मैं:] मैं तो पहले भी मौज़ किया करता था और अब भी मौज़ कर रहा हूँ। अगर तुम्हारे पास वक़्त है तो मिलकर थोड़ी बातें करें?

[दीपाली:] इनसे कुछ बहाना बनाकर निकलने की कोशिश करती हूँ, देखते है क्या होता है।

मैं लाइन से बाहर आकर थोड़ा दूर खड़ा हो गया ताकि अगर बात बने, तो हम दोनों एक साथ निकलते हुए न दिखे। तभी, दीपाली का पति रोड़ क्रॉस करके दीपाली के साथ आकर खड़ा हो गया।

दीपाली अपने पति के साथ कुछ देर बात करने लगी और फिर लाइन से निकलकर दूर चलने लगी। मैंने उसे आगे बढ़ते रहने का इशारा किया और उसका पीछा करने लगा। थोड़ी दूर जाकर, हम दोनों आख़िरकार साथ मिले।

मैंने चलते वक़्त, दीपाली का हाथ पकड़ लिया और उसने भी कोई विरोध नहीं किया। वह अपनी उबाऊ शादी-शुदा ज़िन्दगी की कहानी बताने लगी। मैंने कुछ देर उसकी बातें सुनी और फिर उसे अपने मन की बात बता दी।

मैं चाहता था कि दीपाली और मैं मेरे घर जाकर रंगरेली मनाए। इससे उसका और मेरा, दोनों का मनोरंजन हो जाएगा। दीपाली ने तो पहले साफ़ मना कर दिया था, लेकिन मैंने उससे प्यार से समझाया।

[मैं:] देखो दीपाली, तुम अपनी ज़िन्दगी से ऊब गई हो इसलिए मैं तुम्हसे यह बात कह रहा हूँ। तुम्हारा पति दोस्तों के साथ शराब पीकर घर देरी से लौट सकता है तो तुम्हें भी मौज़ करने का अधिकार मिलना चाहिए।

मेरी बातें सुनकर दीपाली ख़ुश हो गई और मेरे घर आने के लिए राज़ी हो गई थी। हम लोग रिक्क्षा पकड़कर मेरे घर पहुँचे और सोफ़े पर बैठ गए। मैं दीपाली की जाँघ पर हाथ रखकर उसे सहलाने लगा और कॉलेज के दिनों की मस्ती के बारे में बातें करने लगा।

जैसे ही मेरा मूड बनने लगा मैं दीपाली की चुम्मियाँ लेने लग गया। उसकी चुम्मियाँ लेते हुए मैंने दीपाली की साड़ी का पल्लू निकालकर उसकी चूचियाँ दबाने लगा।

दीपाली के ब्लाउज को खोलकर उसके गोल-मटोल चूचियों को ब्रा में से निकाल दिया और उन्हें दबाने लगा। दीपाली भी गरम होकर मूड में आ रही थी। मैंने उसकी चूचियों को बारी-बारी करके चूसा और उसकी निप्पल को अपनी उँगली से खींचने लगा।

[मैं:] तेरी चूचियाँ तो बहुत बड़े हो गए हैं। लगता है तेरा पति रोज़ इनपर हाथ घुमाता है।

वह भी मस्त और गरम होकर मेरे लौड़े को पैंट के अंदर से निकालकर सहला रही थी। मैंने उसकी चूचियों को चूसकर गीला कर दिया था और उसके निप्पल भी कड़क हो गए थे।

दीपाली की गदराई हुई कमर को कसके पकड़कर मैं सोफ़े पर लेट गया और उसे अपने ऊपर चढ़ा लिया। उसकी साड़ी के अंदर अपने हाथ घुसाकर मैं उसकी मोटी और चौड़ी गाँड़ को मसलने लगा।

दीपाली की गाँड़ की दरार में अपनी उँगलियाँ फसाकर उसकी गाँड़ फैलाने लगा। वह ज़ोर से सिसकियाँ लेने लगी थी, तब मैंने उसके होंठों को अपने मुँह में भर दिया।

कुछ देर बाद, मैंने दीपाली की पैंटी निकालकर फेंकी और उसकी साड़ी को उठा दिया। दीपाली की चिकनी गाँड़ देखकर मैंने उसके चुत्तड़ पर ४-५ थप्पड़ मार दिए। मैं दीपाली की गाँड़ की छेद के अंदर अपनी दो उँगलियाँ घुसाकर उन्हें अंदर-बाहर करने लगा।

उसकी गाँड़ पर थप्पड़ मारते हुए उसकी गोरी गाँड़ की चमड़ी को लाल कर दिया। दीपाली मेरा नाम चिल्लाकर मुझे उकसाह रही थी।

[दीपाली:] चल मेरी जान, अब अपने लौड़े का स्वाद मुझे चखने दे। काफ़ी साल हो गए फिर भी तेरे लौड़े को मैं भूल नहीं पाई।

दीपाली घूमकर मेरे लौड़े के पास मुँह करके लेट गई। मैं दीपाली के चुत्तड़ों को फ़ैलाकर उसकी गाँड़ की छेद के अंदर अपनी नाक घुसाने लगा। वह उत्साहित होकर मेरे काले तनकर खड़े हुए लौड़े को चूसने लगी।

अपनी ज़ुबान को मैंने दीपाली की झाँटो से भरी चूत में घुसाकर उसे अच्छे से चाटने लगा। उसकी चूत में थूक मारकर मैंने उसकी चूत की पँखुड़ियों को ज़ुबान से फैला दिया था। वह उत्तेजित होकर ज़ोर से सिसकियाँ लेने लगी थी।

मैंने अपनी उँगली को दीपाली की गाँड़ की छेद में घुसा दिया था, जिसकी वज़ह से वह ज़ोर से चीख़ उठी। मैंने उसके मोटे चुत्तड़ों पर अपने हाथ फ़ैलाकर उन्हें दबाने लगा।

दीपाली की चूत चाटते हुए मैं उसकी गाँड़ की छेद में ज़ोर-ज़ोर से अपनी उँगली को अंदर-बाहर करने लगा थे। वह मेरे मुँह पर अपनी गाँड़ को आगे-पीछे करके घिस रही थी।

[मैं:] मेरे लौड़े पर बैठ जाओ दीपाली। मेरा लौड़ा तुम्हारी गीली चूत के अंदर घुसने के लिए तड़प रहा है।

वह पलटकर मेरे लौड़े पर बैठ गई। मैंने अपने लौड़े की नोक को दीपाली के चूत के पास रखकर उसे बिठा दिया। मैंने दीपाली की साड़ी के अंदर हाथ डालकर उसे गाँड़ से उठाकर अपने लौड़े पर उछालने लगा थे।

दीपाली को अपने लौड़े पर उछालते हुए, मैंने उसे अपने गले से लगाकर ज़ोर-ज़ोर से उसकी चुदाई करने लगा। दीपाली की गाँड़ जब मेरी जाँघों पर गिरती, तब 'पच-पच' करके एक मदहोश कर देने वाली आवाज़ आने लगी थी।

दीपाली की चुत्तड़ों को मसलकर मैं उसकी चीख़ें निकालने लगा। चीख़ों की आवाज़ को दबाने के लिए मैंने दीपाली के होंठों को अपने मुँह के अंदर भर लिया और उन्हें चूसने लगा।

दिवार पर टँगी घड़ी को देखकर दीपाली मुझे जल्दी करने को कहने लगी। मैंने दीपाली को अपने ऊपर से हटा दिया और सोफ़े के पास खड़ा हो गया। मैंने दीपाली को उठाकर सोफ़े पर बिठा दिया।

उसके पैरों को पकड़कर फैलाया और अपने लौड़े को उसकी चूत के पास लेकर गया। उसकी चूत पर थूक मारकर अपने लौड़े को अंदर-बाहर घुसाने लगा। अपना पूरा वज़न दीपाली के ऊपर डालकर, मैं उसकी चूत की ज़ोर-ज़ोर से ठुकाई कर रहा था।

दीपाली के पति का फ़ोन आ गया और वह चुदाई को रोककर खड़ी हो गई और अपने पति से बात करने लगी। मैं सोफ़े पर बैठकर बेसब्री से उसके बात के ख़तम होने का इंतज़ार करने लगा। जब उसकी बात ख़तम हो गई, तब मैंने उसकी गाँड़ को अपने चेहरे की तरफ़ घुमा दिया।

मैंने उसकी कमर को पकड़कर उसे आगे झुका दिया और अपने लौड़े पर उछालने लगा। वह मेरा नाम चिल्लाते हुए मेरे लौड़े पर अपनी गाँड़ पटक रही थी।

उसकी चर्बीदार कमर को पकड़कर मैं तेज़ी से दीपाली को अपने लौड़े पर उछालने लगा। उसकी गाँड़ की छेद में दो उँगलियाँ घुसाकर मैं उसे उकसाह रहा था।

थोड़ी देर बाद, मैंने दीपाली की जाँघों को पकड़कर उसे अपने ऊपर बिठा दिया। अपने लौड़े को उसकी चूत पर कुछ देर रगड़ने के बाद उसे अंदर घुसाकर चुदाई को जारी रखा। थोड़ी देर ऐसे ही दीपाली की चुदाई करते के बाद मेरा लौड़े का पानी निकलने को आया था।

[मैं:] मेरा माल निकलने वाला है। बोलो तुम्हें बच्चा चाहिए कि मेरा प्रसाद?

[दीपाली:] (हस्ते हुए) इस बार अपना प्रसाद ही दे दो, बाबाजी।

दीपाली मेरे सामने सोफ़े के पास ज़मीन पर बैठ गई। मैं खड़ा होकर अपने लौड़े को उसके मुँह में घुसा दिया। दीपाली मेरे लौड़े को अच्छे से चूसने लगी थी। मेरी गोटियों को अपने उँगलियों से सहलाकर वह मेरे लौड़े को तेज़ी से हिलाकर चूस रही थी।

मैंने दीपाली का चेहरा पकड़ लिया और एक झटके में अपने लौड़े का माल उसके मुँह के अंदर निकाल दिया। दीपाली मेरा माल पी गई और अपनी साड़ी ठीक करने लगी। कुछ देर बाद, मैं दीपाली को उसके घर के पास तक छोड़ने गया।
 
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