बाबा की शीशी

sexstories

Administrator
Staff member
(Baba Ki Shishi)

यदि घर में एक अदद भाभी हो तो मन लगा रहता है। उसकी अदायें, उसके द्विअर्थी डॉयलोग बोलना, कभी कभी ब्लाऊज या गाऊन में से अपने सुडौल मम्मे दिखाना. दिल को घायल कर देती है। तिस पर वो हाथ तक नहीं धरने देती है। भाभी की इन्हीं अदाओं का मैं कायल था। मेरी भाभी तो बस भाभी ही थी. बला की खूबसूरत. सांवला रंग. लम्बाई आम गोवा की युवतियों से काफ़ी अधिक. होगी लगभग पांच फ़ुट और छ: इन्च. भरे हुये मांसल उरोज. भारी से चूतड़. मन करता था बस एक बार मौका मिल जाये तो उसे तबियत से चोद दूँ. पर लिहाज भी तो कोई चीज होती है। बस मन मार कर बद मुठ्ठ मार लेता था। भैया भी अधिकतर कनाडा ही रहते थे। जाने भाभी बिना लण्ड खाये इतने महीनों तक कैसे रह पाती थी।

बहुत दिनों से भाभी पापा का पुराना मकान देखना चाहती थी. पर आज तो उन्होंने जिद ही पकड़ ली थी। सालों से वो हवेली सुनसान पड़ी हुई थी। मैंने नौकरों से कह कर उसे आज साफ़ करने को कह दिया था। टूटे फ़ूटे फ़रनीचर को एक कमरे में रखने को कह दिया था। लाईटें वगैरह को ठीक करवाने को इलेक्ट्रीशियन भेज दिया था। दिन को वहाँ से फोन आ गया था कि सब कुछ ठीक कर दिया गया है। वैसे भी वहां चौकीदार था वो घर का ख्याल तो रखता ही था। उन्होंने बताया बाहर चौकीदार मिल ही जायेगा, चाबी उससे ले लेना।

फिर मैं हवेली जाने से पहले एक बार मेरे मित्र तांत्रिक के पास गया। वो मेरा पुराना राजदार भी था. मेरे कई छोटे मोटे कामों के लिये वो सलाह भी देता था। भाभी के बारे में मेरे विचार जान कर वो बात सुन कर बहुत हंसा था. पापी हो तुम जो अपनी ही भाभी के बारे में ऐसा सोचते हो.

"पर इस दिल का क्या करूँ बाबा. ये तो उसे चोदने के लिये बेताब हो रहा है।"

उसने कहा- . साले तुम बदमाश हो. फिर भी तुम्हें मौका तो मिलेगा ही।

फिर अन्दर से एक शीशी लेकर आया, बोला- यह शीशी तुम ले जाओ. इसे किसी भी कमरे के कोने में छिपा देना और इसका ढक्कन खोल देना. ध्यान रहे कि एक घण्टे तक इसका असर रहता है. फिर इसे एक घण्टे के बाद मात्र पाँच मिनट में तुरन्त बन्द कर देना वर्ना यह शीशी तुम्हारा ही तमाशा बना देगी।

बाबा मेरा मित्र होते हुये भी उनको रिश्वत में मैंने एक हजार रुपये दिये और चला आया। हाँ उसे रिश्वत ही कहूंगा मैं. फिर आज के जमाने में मुझे विश्वास नहीं था कि बाबा का जादू काम करेगा या नहीं, पर आजमाना तो था ही. मेरे लण्ड में आग जो लगी हुई थी।

मैंने शीशी सावधानी से जेब में रख ली और बाहर गाड़ी में भाभी का इन्तजार करने लगा। उफ़्फ़्फ़ ! टाईट जीन्स और कसी हुई बनियान में वो गजब ढा रही थी। मेरा लण्ड तो एक बारगी तड़प उठा। बाल ऊपर की और घोंसलानुमा सेट किये हुये थे।

"ठीक है ना जो. कैसी लग रही हूँ?"

"भाभी. एकदम पटाखा. काश आप मेरी बीवी होती."

"चुप शैतान कहीं का. तेरी भी अब शादी करानी पड़ेगी. अब चलो."

यहाँ से बीस किलोमीटर दूर मेरा यह पैतृक निवास था. मेरे पापा डॉक्टर थे. बहुत नाम था उनका. यह सम्पत्ति मेरी और भैया की ही थी। पुराना गोवा का यह एरिया अब तो कुछ उन्नति की ओर बढ़ गया था। दिन को करीब ग्यारह बजे हम दोनों वहाँ पहुंच गये थे। चौकीदार वहीं बाहर खड़ा हुआ इन्तजार कर रहा था।

"बाबू जी, यह चाबी लो. सब कुछ ठीक कर दिया है. आप आ गये हो, मैं अब बाजार हो आता हूँ।"

"जल्दी आ जाना. हम यहाँ अधिक देर नहीं रुकेंगे." मैंने चौकीदार को आगाह कर दिया।

मैंने फ़ाटक खोला और गाड़ी अन्दर ले गया। फिर भाभी को मैंने पूरी हवेली घुमा दी। मैंने सबसे पहला काम यह किया कि बाबा कहे अनुसार बैठक में कोने में वो शीशी खोल कर एक कोने में छुपा दी। सब कुछ साधारण सा था. कुछ भी नहीं हुआ। शीशी में से धुआं वगैरह कुछ भी नहीं निकला। मैं निराश सा होने लगा।

पर दस मिनट में मुझे अचानक कुछ भाभी में परिवर्तन सा लगा। हाँ. हाँ. भाभी शायद उत्तेजित सी थी. उनके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान तैरने लगी, उनकी आँखें गुलाबी होने लगी, उनके गाल तमतमाने लगे।

मुझे लगा कि जैसे भाभी की टाईट जीन्स उनके बदन पर और कस गई है, उनके बदन में लचक सी आने लगी है। क्या भाभी मेरे ऊपर मोहित होने लगी हैं. या ये उस शीशी का असर है।

यही मेरे पास एक मात्र मौका था। मैंने हिम्मत करके बैठक के कमरे में भाभी का हाथ पकड़ लिया। सोचा कि वो कुछ कहेगी तो सॉरी कह दूँगा !

पर भाभी तो बहुत रोमान्टिक हो गई थी। मेरे हाथ को अपने से लिपटा कर बोली- जो. आज मौसम कितना सुहावना लग रहा है !!

"हाँ भाभी, गोवा का मौसम तो हमेशा सुहावना ही रहता है." मेरे तन में जैसे बिजलियाँ दौड़ पड़ी।

"यह मकान कितना रोमान्टिक लग रहा है. कैसा जादू सा लग रहा है?"

"आओ भाभी यहाँ बैठते है. और ठण्डा पीते हैं."

मैंने कोल्ड ड्रिंक का एक केन खोल कर भाभी को दे दिया।

"पहले तू पी ले. ले पी ना."

"नहीं पहले आप. भाभी !"

मैंने भाभी को अपनी ओर खींच लिया। उह्ह्ह्ह ! वो तो कटे वृक्ष की भांति मेरी गोदी में आ गिरी।

"जो. जरा देखना तो. यहाँ कोई दूसरा तो नहीं है ना.."

"नहीं भाभी. बस मैं और तुम. बिल्कुल अकेले."

"हाय. तो फिर इतनी दूर क्यों हो? कितना मजा आ रहा है. सारे शरीर में जैसे चींटियां रेंग रही है. जरा शरीर को रगड़ दो. भैया !"

मेरा लण्ड तो भाभी की हरकत पर पहले से ही टुन्न हो गया था। मेरा शरीर खुशी और जोश से से कांपने लगा था। मैंने तुरन्त भाभी को अपनी बाहों में दबा लिया और उनके सेक्सी तन को मैं यहाँ वहाँ से रगड़ने लगा।

"उफ़्फ़. जो ! कितने कस रहे है ये कपड़े. क्या करूँ?"

"भाभी उतार दो प्लीज. तब थोड़ी सी हवा लग जायेगी इसे भी."

"तो उतार दे ना. आह्ह. देख तो यह तन से चिपका जा रहा है."

मैंने भाभी की चिपकी हुई बनियाननुमा टॉप खींच कर उतार दी. उफ़्फ़्फ़ ! उनके बड़े बड़े मम्मे उनकी ब्रा में समा भी नहीं रहे थे.

"अरे. यार. यह कितना फ़ंस रहा है. हटा दे इसे भी."

भाभी ने ब्रा को खींच कर हटा ही दी.

हे ईश्वर ! बला के सुन्दर थे भाभी के उरोज। तभी भाभी जैसे तड़प उठी. ये जीन्स. अरे यार. उह्ह्ह. खींच कर उतार दे इसे. साली कितनी तंग है ये.।

मेरे तो होश जैसे उड़े उड़े से थे. ये सब मेरी मर्जी के मुतबिक ही तो हो रहा था। कुछ ही क्षण में भाभी बिल्कुल नंगी मेरी गोदी में थी।

"अब तेरे ये कपड़े. अरे उतार ना इन्हें यार.!"

मुझे तो बस मौका चाहिये था। मैंने भी अपने कपड़े उतार दिये पर अपना तना हुआ लण्ड भाभी से छुपाने लगा।

"कैसा नशा नशा सा है. है ना. वो आराम से उस बिस्तर पर चलें.?"

मैंने भाभी को अपनी बाहों में उठा लिया और प्यार से उन्हें बिस्तर पर लेटा दिया। मैंने एक ही नजर में देख लिया कि भाभी का तन चुदाई के लिये कैसे तड़प सा रहा था। भाभी की चूत बहुत गीली हो चुकी थी. भाभी ने लेटते ही मुझे दबोच लिया। फिर नशीली आँखों से मुझे देखते हुये मुझ पर चढ़ने लगी।

"जो भैया ! प्लीज बुरा मत मानना."

मेरे नंगे शरीर पर वो चढ़ गई. भाभी के मुख से लार सी निकलने लगी थी। उनकी आँखें लाल सुर्ख हो गई थी. उनकी जुल्फ़ें उनके चेहरे पर नागिन की तरह बल खा रही थी। फिर एकाएक उनके गरम कांपते हुए होंठ मेर लबों से भिड़ गये। उनकी जीभ लपलपाती हुई मेरे मुख की गहराइयों में उतर गई।

"उफ़ ! यह सांप सी क्या चीज है.?" मुझे गले के अन्दर भाभी की जीभ कुछ अजीब सा अहसास दे रही थी.।

जैसे मेरी सांसें रुकने लगी थी. मुझे तेज खांसी आ गई. मेरा लण्ड उसकी गर्म चूत पर घिस रहा था। भाभी के मुख से जैसे गुर्राहट सी आने लगी थी।

तभी भाभी चीख पड़ी. साले हलकट. हरामी. लेटा हुआ क्या माँ चुदा रहा है. चोदता क्यों नहीं है.?

उफ़्फ़ ! भाभी के शरीर में इतनी आग !!. उसकी चूत अपने आप ही मेरे लण्ड पर जैसे जोर जोर पटकने लगी। तभी मेरा लण्ड उसकी चूत में रास्ता बनाता हुआ अन्दर उतरने लगा।

वो चीखी. मार डाला रे. पूरा घुसेड़ दे मादरचोद. जरा अह्ह्ह्ह्ह. मस्ती से ना. साला भड़वा. लण्ड लेकर घूमता है और भाभी को चोदता भी नहीं है।

मैंने अपनी कमर ऊँची की और लण्ड को उसकी चूत की तह पहुँचाने की कोशिश करने लगा। फिर मुझे जबरदस्त जोश आ गया. मैंने भाभी को अपने नीचे पलटी मार कर दबा लिया. और भाभी को चोदने लगा।

मेरा ध्यान इस दौरान भाभी के चेहरे तरफ़ गया ही नहीं. भाभी के मुख से गुर्राहट और चीखें अजीब सी लग रही थी।

मुझे भी होश कहाँ था. मैं तो उछल उछल कर जोर जोर से उसे चोदने में लगा था। भाभी और मैं. आँखें बन्द करके रंगीनियों का आनन्द ले रहे थे।

"चोद हरामी चोद. जोर नहीं है क्या? दे अन्दर जोर का एक धक्का. फ़ाड़ दे साली भोसड़ी को."

उसमें अब गजब की ताकत आ गई थी। उसने मुझे उठा कर एक तरफ़ गिरा दिया और अपने चूतड़ उभार कर घोड़ी सी बन गई।

"ले भैया. अब मार दे मेरी गाण्ड. मस्त मारना साली को. चल चल जल्दी कर."

मैं जल्दी से उठ कर अपनी पोजीशन बना कर उसके पीछे सेट हो गया। उफ़ कितना मोहक छेद था. प्यारा सा. चुदने को तैयार था। मैंने अपने लण्ड का सुपाड़ा उस पर रखा और जोर लगाया।

उसका छेद फ़ैलने लगा. सुपाड़ा अन्दर फ़ंसता चला गया। फ़ैलते फ़ैलते उसका छेद तो मेरे डण्डे के आकार का फ़ैल गया। लण्ड बिना किसी संकोच के उन्दर धंसता चला गया। मेरे लण्ड में एक तेज मीठी सी चुभन होने लगी। अन्दर बाहर करते हुए लण्ड पूरा भीतर तक चला गया।

भाभी की हुंकार तेज होने लगी थी। मेरा लण्ड भी तेज चलने लगा था. और तेज होता गया. पिस्टन की भांति मेरा लण्ड उसकी गाण्ड में चल रहा था। उसकी दोनों भारी सी चूचियाँ मेरे हाथों से मसली जा रही थी. खूब जोर जोर से दबा रहा था मैं भाभी की चूचियों को।

फिर तो बस कुछ ही देर में मेरा तन. उखड़ने सा लगा था। मैं बस झड़ने ही वाला था।

"भाभी. सम्भल कर. मेरा तो होने वाला है.!"

"भैया. मेरे मुख में झड़ना." यह कहानी आप HotSexStpry.xyzपर पढ़ रहे हैं।

"तो आजा. भाभी. जल्दी . उह्ह. जल्दी.!"

मैंने उसकी गाण्ड से अपना लण्ड बाहर खींच लिया. भाभी ने पलट कर अपना मुँह खोल लिया.

मैंने दबा कर लण्ड को उसके दोनों होंठों के बीच घुसा दिया. फिर प्यार मुहब्बत की वो पहली प्यारी सी धार. उफ़्फ़्फ़ निकल ही पड़ी।

पहली पिचकारी मुख के अन्दर तक गले तक. चली गई. फिर पिचकारियों के रूप में मेरा लण्ड वीर्य उगलता ही चला गया।तभी मेरे मुख से एक चीख सी निकल गई- उसकी जीभ सांप की तरह दो भागों में विभक्त थी, उसके दांतों के दोनों जबड़े बाहर निकल आए. उसके चेहरे का रंग तेजी से बदल रहा था। आँखें लाल सुर्ख अन्दर की ओर धंसी हुई मुझे घूर रही थी।

भाभी का शरीर जैसे ढीला होता जा रहा था। मैं उछल कर उससे दूर हो गया.

तभी दीवार की घड़ी ने दो बजने का संकेत दिया। मेरे होश उड़ गये. यह तो उसी शीशी का असर था।

भाभी का शरीर अचानक मुझसे अलग हो गया और छत से जा टकराया।

मुझे जैसे किसी अन्जान शक्ति ने उठा कर दूर फ़ेंक दिया।

मुझे आधा होश था और मुझे पता था कि मुझे क्या करना है. मैं लपक कर कोने पर जाकर उस शीशी को बन्द कर दिया, फिर उठ कर बाहर की ओर भागा पर सीढ़ियों से फिसल कर मैं अन्धकार की गहनता में खोता चला गया।

मुझे जब होश आया तो मेरे शरीर में जगह जगह चोटें थी. पांव की एक हड्डी टूट चुकी थी. चेहरे पर जैसे जलने के निशान थे।

"आपकी भाभी ना होती तो आपको कौन बचाता?"

"क्या हो गया था भैया आपको. खुदा की मेहरबानी है आप को कोई सीरियस चोट नहीं लगी।" भाभी ने अपनी चिन्ता जताई।

"पर ये सब अचानक कैसे हो गया?"

तभी बाबा की हंसी सुनाई दी- आप सभी प्लीज बाहर चले जायें.

"बाबा. क्या ये?"

"हाँ. मैंने कहा था ना कि यह एक घण्टे ही काम का है. फिर भी गनीमत है कि तुमने समय पर शीशी को बन्द कर दिया. वैसे मजा आया ना.?"

"बाबा. मुझे माफ़ कर देना. अब ऐसा कभी नहीं करूँगा."

"यह तो सोचना ही पाप था. पर चिन्ता की कोई बात नहीं है. आपकी भाभी को कुछ भी याद नहीं रहेगा. आप बस अपना मन साफ़ रखो. भाभी को माता के समान समझो. अब प्रायश्चित के लिये तैयार हो जाओ. रोज सवेरे मुठ्ठ मारो, सारी मन की गन्दगी को निकालो और मन को स्वच्छ कर लो. फिर रोज किसी भूखे को भोजन कराओ और फिर तुम भोजन करना। इतना बहुत है तुम्हारे लिये।"

बाबा हंसते हुये चला गया। मुझे विश्वास नहीं हुआ कि आज के युग में भी ये सब जादू टोना चलता है. जीवित है।

"नहीं. नहीं यह मेरे मन का भ्रम है." तभी मेरी टांग में दर्द उठा.

"लेटे रहो जो. कोई बुरा सपना देखा था क्या?" मेरी प्रियतमा, मेरी जान. दिव्या मेरे पास बैठी हुई मुस्कराते हुये मेरे बाल सहला रही थी।
 
Back
Top