मेरी अधूरी जवानी की बेदर्द चुदाई

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Meri Adhuri Jawani Ki Bedard Chudai

मैं अजमेर की रहने वाली 30 साल की शादीशुदा औरत हूँ। हम ३ बहनें हैं, मैं सबसे छोटी हूँ, मेरी शादी बचपन में मेरी बहनों के साथ ही हो गई थी जब मैं शादी का मतलब ही नहीं जानती थी। मेरी बड़ी बहन ही बालिग थी, बाकी हम दो बहनों के लिए तो शादी एक खेल ही था। Meri Adhuri Jawani Ki Bedard Chudai.
उस वक्त हम दोनों बहनों की सिर्फ शादी हुई थी जबकि बड़ी बहन का गौना भी
साथ ही हुआ था, वो तो ससुराल आने जाने लग गई, हम दोनों एक बार जाकर फिर
पढ़ने जाने लगी। हमें तब तक किसी बात का कोई पता नहीं था, जीजाजी जीजी के
साथ आते तो हम बहुत खुश होती, हंसी-मजाक करती, मेरी माँ कभी कभी चिढ़ती और
कहती- अब तुम बड़ी हो रही हो, कोई बच्ची नहीं हो जो अपने जीजा जी से इतनी
मजाक करो !
पर मैं ध्यान नहीं देती थी।
कुछ समय बाद मेरे ससुराल से समाचार आने लग गए कि इसको ससुराल भेजो, इसका गौना करो।
और मैं मासूम नादान सी ससुराल चली गई। उस वक्त मुझे साड़ी पहनना भी नहीं
आता था, हम राजस्थान में ओढ़नी और कुर्ती, कांचली, घाघरा पहनते हैं, में
भी ये कपड़े पहन कर चली गई जो मेरे दुबले पतले शरीर पर काफी ढीले-ढाले थे।
मुझे सेक्स की कोई जानकारी नहीं थी, हमारा परिवार ऐसा है कि इसमें ऐसी
बात ही नहीं करते हैं, न मेरी बड़ी बहन ने कुछ बताया, ना ही मेरी माँ ने!

बाद में मुझे पता चला कि मेरी सास ने जल्दी इसलिए की कि मैं पढ़ रही थी,
उसका बेटा कम पढ़ा था, वो सोच रही थी कि इसे जल्दी ससुराल बुला लें, नहीं
तो यह इसे छोड़ कर किसी दूसरे पढ़े लिखे के साथ चली जाएगी। जबकि हमारे
परिवार के संस्कार ऐसे नहीं थे, मुझे तो कुछ पता भी नहीं था। शादी के कई
साल बाद मैंने पति को तब देखा जब वो गौना लेने आया। मुझे देख कर वो
मुस्करा रहा था, मैंने भी चोर नजरों से उसे देखा, मोटा सा, काला सा,
ठिगना, कुछ पेट बढ़ा हुआ !
मेरे पति थोड़े ठिगने हैं करीब 5'4″ के, मैं भी इतनी ही लम्बी हूँ। मेरे
पति चेन्नई में काम करते हैं, 6-7 पढ़े हुए हैं जबकि में ऍम.ए. किए हूँ।
वैसे मैं बहुत दुबली-पतली हूँ, मेरा चेहरा और बदन करीना कपूर से
मिलता-जुलता है, मेरा बोलने-चलने का अंदाज़ भी करीना जैसा है इसलिए मुझे
कोई करीना कहता है तो मुझे ख़ुशी होती है। मैं अपनी सुन्दरता देख इठला
उठी। जब मैं घर में उसके सामने से निकलती कुछ घूंघट किये हुए तो वो खींसे
निपोर देता ! मुझे ख़ुशी होती कि मैं सुन्दर हूँ। इसका मुझे अभिमान हो
गया और मैं उसके साथ गाड़ी में अपनी ससुराल चल दी। गाड़ी में उसके साथ उसके
और परिवार वाले भी थे, हम शाम को गाँव में पहुँच गए।
गाँव पहुँचने के बाद मैंने देखा कि मेरी ससुराल वालों का घर कच्चा ही था,
एक तरफ कच्चा कमरा, एक तरफ कच्ची रसोई और बरामदा टिन का, बाकी मैदान में!

मेरे पति 5 भाइयों में सबसे छोटे थे जो अपने एक भाई-भाभी और माँ के साथ
रहते थे, ससुर जी का पहले ही देहांत हो गया था !
वहाँ जाते ही मेरी सास और बड़ी ननद ने मेरा स्वागत किया, मुझे खाना
खिलाया। घर मेहमानों से भरा था, भारी भरकम कपड़े और गहने पहने हुई थी,
मैंने पहली बार घूंघट निकाला था, मैं परेशान थी।
मेरी ननद मुझे कमरे में ले गई जिसमें कच्ची जमीन पर ही बिस्तर बिछाये हुए
थे, उसने मुझे कहा- कमला, ये भारी साड़ी जेवर आदि उतार कर हल्के कपड़े पहन
ले, अब हम सोयेंगे !
मैंने अपने कपड़े उतार कर माँ का दिया हुआ घाघरा-कुर्ती ओढ़नी पहन ली, मेरे
स्तन बहुत छोटे थे इसलिए चोली मैं पहनती नहीं थी। गर्मी थी तो चड्डी भी
नहीं पहनी और अपनी ननद के साथ सो गई आने वाले खतरे से अनजान !
मैं सोई हुई थी, अचानक आधी रात को असहनीय दर्द से मेरी नींद खुल गई और
मैं चिल्ला पड़ी। चिमनी की मंद रोशनी में मैंने देखा कि मेरी ननद गायब है
और मेरे पति मेरी छोटी सी चूत में जिसमें मैंने कभी एक उंगली भी नहीं
घुसाई थी, अपना मोटा और लम्बा लण्ड डाल रहे थे और सुपारा तो उन्होंने
मेरी चूत में फंसा दिया था। घाघरा मेरी कमर पर था, बाकी कपड़े पहने हुए थे
और वो गाँव का गंवार जिसने न तो मुझे जगाया न मुझे सेक्स के लिए शारीरिक
और मानसिक रूप से तैयार किया, नींद में मेरा घाघरा उठाया, थूक लगाया और
लण्ड डालने के लिए जबरदस्त धक्का लगा दिया।

मेरी आँखों से आँसू आ रहे थे और मैं जिबह होते बकरे की तरह चिल्ला उठी !
मेरी चीख उस कमरे से बाहर घर में गूंज गई।
बाहर से मेरी सास की गरजती आवाज आई, वो मेरे पति को डांट रही थी कि छोटी
है, इसे परेशान मत कर, मान जा !
मेरे पति मेरी चीख के साथ ही कूद कर एक तरफ हो गए तब मुझे उनका मोटे केले
जितना लण्ड दिखा। मैंने कभी बड़े आदमी लण्ड नहीं देखा था, छोटे बच्चों की
नुनिया ही देखी थी इसलिए मुझे वो डरावना लगा।
उन्होंने अन्दर से माँ को कहा- अब कुछ नहीं करूँगा ! तू सो जा !
फिर उन्होंने मेरे आंसू पोंछे !
मेरी टाँगें सुन्न हो रही थी, मैं घबरा रही थी। थोड़ी देर वो चुपचाप लेटे,
फिर मेरे पास सरक गए, उन्होंने कहा- मैंने गाँव की बहुत लड़कियों के साथ
सेक्स किया है, वो तो नहीं चिल्लाती थी?
उन्हें क्या पता कि एक चालू लड़की में और अनजान मासूम अक्षतयौवना लड़की में
क्या अंतर होता है !
थोड़ी देर में उन्होंने फिर मेरा घाघरा उठाना शुरू किया, मैंने अपने दुबले
पतले हाथों से रोकना चाहा मगर उन्होंने अपने मोटे हाथ से मेरी दोनों
कलाइयाँ पकड़ कर सर के ऊपर कर दी, अपनी भारी टांगों से मेरी टांगें चौड़ी
कर दी, फिर से ढेर सारा थूक अपने लिंग के सुपारे पर लगाया, कुछ मेरी चूत
पर !
मैं कसमसा रही थी, उन्हें धक्का देने की कोशिश कर रही थी पर मेरी दुबली
पतली काया उनके भैंसे जैसे शरीर के नीचे दबी थी। मैंने चिल्ला कर अपनी
सास को आवाज देनी चाही तो उसी वक्त उन्होंने मेरे हाथ छोड़ कर मेरा मुँह
अपनी हथेली से दबा दिया।

मैं गूं गूं ही कर सकी। मेरे हाथ काफी देर ऊपर रखने से दुःख रहे थे।
मैंने हाथों से उन्हें धकेलने की नाकाम कोशिश की। उनके बोझ से मैं दब रही
थी। मेरा वजन उस वक्त 38-40 किलो था और वे 65-70 किलो के !
अब उन्होंने आराम से टटोल कर मेरी चूत का छेद खोजा जिसे उन्होंने कुछ
चौड़ा कर दिया था, अपने गीले लिंग का सुपारा मेरी छोटी सी चूत के छेद पर
टिकाया और हाथ के सहारे से अन्दर ठेलने लगे। 2-3 बार वो नीचे फिसल गया,
फिर थोड़ा सा मेरी चूत में अटक गया।
मुझे बहुत दर्द हो रहा था जैसे को लोहे की छड़ डाली जा रही हो, जिस छेद को
मैंने आज तक अपनी अंगुली नहीं चुभाई थी, उसमें वो भारी भरकम लण्ड डाल रहा
था।
मेरे आँसुओं से उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, वो पूरी बेदर्दी दिखा रहा
था और मुस्कुरा था कि उसे सील बंद माल मिला जिसकी सील वो तोड़ रहा था !
मेरी दोनों टांगों को वो अपने पैरों के अंगूठों से दबाये हुए था, मेरे
ऊपर वो था, उसके लिंग का सुपारा मेरी चूत में फंसा हुआ था। अब उसने एक
हाथ को तो मेरे मुंह पर रहने दिया दूसरे हाथ से मेरे कंधे पकड़े और जोर का
धक्का लगाया, लण्ड दो इंच और अन्दर सरक गया, मेरी सांस रुकने लगी, मेरी
आँखें फ़ैल गई।

फिर उसने लण्ड थोड़ा बाहर खींचा, मैं भी लण्ड के साथ उठ गई। उसने जोर से
कंधे को दबाया और जोर से ठाप मारी, मैं दर्द के समुन्दर में डूबती चली
गई। आधे से ज्यादा लण्ड मेरी संकरी चूत में फंसा हुआ था, मेरी चूत से खून
आ रहा था पर उन्हें दया नहीं आई,
वो और मैं पसीने-पसीने थे, मुँह से हाथ उन्होंने उठाया नहीं था और फिर
उन्होंने आखिरी धक्का मारा और उनका पूरा लण्ड मेरी चूत में घुस चुका था,
उनका सुपारा मेरी बच्चेदानी पर ठोकर मार रहा था।
मैं बेहोश हो गई पर दर्द की वजह से वापिस होश आ गया। मैं रो रही थी, सिसक
रही थी, मेरा चेहरा आँसुओं से तर था पर दनादन धक्के लग रहे थे, मेरे
चेहरे से हाथ हटा लिया गया था, मेरे कंधे तो कभी कमर पकड़ कर वे बुरी तरह
से मुझे चोद रहे थे।

15-20 मिनट तक उन्होंने धक्के लगाये, मेरी चूत चरमरा उठी, हड्डियाँ कड़कड़ा
उठी, मुझे बिल्कुल आनन्द नहीं आया था और वे मेरी चूत में ढेर सारा वीर्य
डालते हुए ढेर हो गए और भैंसे की तरह हांफने लगे।
मैं रो रही थी, सिसकियाँ भर रही थी, मेरी चूत से खून और वीर्य मेरी
जांघों से नीचे बह रहा था।
थोड़ी देर में सुबह हो गई, मेरे पति बाहर चले गए, मेरी ननद आई, उसने मेरी
टांगें पौंछी, मेरे कपड़े सही किये, मुझे खड़ा किया। मैं लड़खड़ा रही थी, वो
हाथों का सहारा देकर मुझे पेशाब कराने ले गई।
मुझे तेज जलन हुई, मैंने रोते-रोते कहा- मुझे मेरे गाँव जाना है !
मेरी सास ने बहुत मनाया पर मैं रोती रही, चाय नाश्ता भी नहीं किया। आखिर
उन्होंने एस.टी.डी. से मेरे घर फ़ोन किया। एक-डेढ़ घंटे बाद मुझे मेरे भाई
और छोटे वाले जीजाजी लेने आ गए और मैं अपनी सूजी हुई चूत लेकर अपने मायके
रवाना हो गई वापिस कभी न आने की सोच लेकर !
मैंने दसवीं की परीक्षा दी और गर्मियों की छुट्टियों में फिर ससुराल जाना
पड़ा। इस बार मेरे पति स्वाभाव कुछ बदला हुआ था, वो इतने बेदर्दी से पेश
नहीं आये, शायद उन्हें यह पता चल गया कि यह मेरी ही पत्नी रहेगी।
मैं इस बार 4-5 दिन ससुराल में रुकी थी पर वे जब भी चोदते, मेरी हालत
ख़राब हो जाती। पहली चुदाई में ही चूत में सूजन आ गई, बहुत ही ज्यादा
दर्द होता, मुझे बिल्कुल आनन्द नहीं आता।

वो रात में 7-8 बार मुझे चोदते पर उनकी चुदाई का समय 5-7 मिनट रहता। रात
भर सोने नहीं देते, वो मुझे कहते- मैंने बहुत सारी लड़कियों से सेक्स
किया है, उन्हें मज़ा आता है, तुम्हें क्यों नहीं आता?
मैं मन ही मन में डर गई कि कहीं मुझे कोई बीमारी तो नहीं है? कहीं मैं
पूर्ण रूप से औरत हूँ भी या नहीं?
अब मैं किससे पूछती? मेरी सारी सहेलियाँ तो कुंवारी थी।
फिर मैं वापिस पीहर आ गई, पढ़ने लगी। मेरा काम यही था, गर्मी की छुट्टियों
में ससुराल जाकर चुदना और फिर वापिस आकर पढ़ना। मेरे पति भी चेन्नई
फेक्टरी में काम पर चले जाते, छुट्टियों में आ जाते।
अब मैं कॉलेज में प्राइवेट पढ़ने लग गई, तब मुझे पता चला कि मुझे आनन्द
क्यूँ नहीं आता है।

मेरे पति मुझे सेक्स के लिए तैयार करते नहीं थे, सीधे
ही चोदने लग जाते थे और मुझे कुछ आनन्द आने लगता तब तक वो ढेर हो जाते।
रात में सेक्स 5-7 बार करते, पर वही बात रहती।
फिर मैंने उनको समझाया- कुछ मेरा भी ख्याल करो, मेरे स्तन दबाओ, कुछ हाथ फिराओ !
अब तक मैंने कभी उनके लण्ड को कभी हाथ भी नहीं लगाया था, अब मैंने भी
उनके लण्ड को हाथ में पकड़ा तो वो फुफकार उठा। उन्होंने मेरे स्तन दबाये
पेट और जांघों पर चुम्बन दिए, चूत के तो नजदीक भी नहीं गए।
मैंने भी मेरी जिंदगी में कभी लण्ड के मुँह नहीं लगाया था, मुझे सोच के
ही उबकाई आती थी, अबकी बार उन्होंने चोदने का आसन बदला, अब तक तो वो
सीधे-सीधे ही चोदते थे, इस बार उन्होंने मेरी टांगें अपने कंधे पर रखी और
लण्ड घुसा दिया और हचक-हचक कर चोदने लगे।
मेरी टांगें मेरे सर के ऊपर थी, मैं बिल्कुल दोहरी हो गई थी पर चमत्कार
हो गया, मुझे आनन्द आ रहा था, उनका सुपारा सीधे मेरी बच्चेदानी पर ठोकर
लगा रहा था, मुझे लग रही थी पर आनन्द बहुत आया।

इस बार जब उन्होंने अपने माल को मेरी चूत में भरा तो मैं संतुष्ट थी। फिर
मैंने अपनी टांगें ऊपर करके ही चुदाया, मुझे मेरे आनन्द का पता चल चुका
था। फिर मेरे गर्भ ठहर गया, सितम्बर, 2000 में मेरे बेटा हो गया।
बेटा होने के बाद कुछ विशेष नहीं हुआ ! मैं प्राइवेट पढ़ती रही, मेरे पति
साल में एक बार आते तब मैं ससुराल चली जाती और मेरे पति महीने डेढ़ महीने
तक रहते, मैं उनके साथ रहती और जब वे वापिस चेन्नई जाते तो मैं अपने पीहर
आ जाती। इसका कारण था कई लोंगो की मेरे ऊपर पड़ती गन्दी नज़र !
मेरे ससुराल में खेती थी, जब फसल आती तो वे मुझे मेरा हिस्सा देने के लिए
बुलाते थे। लेकिन ज्यादातर मैं शाम को मेरे पीहर आ जाती थी।
एक बार मुझे रात को रुकना पड़ा, मैं मेरे घर पर अकेली थी, मेरे जेठों के
घर आस पास ही थे, मेरी जिठानी ने कहा- तू अकेली कैसे सोएगी? डर जाएगी तू
! मेरे बेटे को अपने घर ले जा !

मेरे जेठ का बेटा करीब 18-19 साल का था, मैं 27 की थी, मैंने सोचा बच्चा
है, इसको साथ ले जाती हूँ !
खाना खाकर हम लेट गए, बिस्तर नीचे ही पास-पास लगाए हुए थे, थोड़ी देर
बातें करने के बाद मुझे नींद आ गई !
आधी रात को अचानक मेरी नींद खुल गई, मेरे जेठ का बेटा मेरे पास सरक आया
था और एक हाथ से मेरा एक वक्ष भींच रहा था और दूसरे वक्ष को अपने मुँह
में ले रहा था, हालाँकि ब्लाउज मैंने पहना हुआ था।
मेरे गुस्से का पार नहीं रहा, मैं एक झटके में खड़ी हो गई, लाइट जलाई और
उसे झंजोड़ कर उठा दिया !
मेरे गुस्से की वजह से मुंह से झाग निकल रहे थे, वो आँखें मलता हुआ पूछने
लगा- क्या हुआ काकी?
मुझे और गुस्सा आया मैंने कहा- अभी तू क्या कर रहा था?
पठ्ठा बिल्कुल मुकर गया और कहा- मैं तो कुछ नहीं कर रहा था।
मैंने उसको कहा- अपने घर जा !
वो बोला- इतनी रात को?
मैंने कहा- हाँ !

उसका घर सामने ही था, वो तमक कर चला गया और मैं दरवाजा बंद करके सो गई।
सुबह मैंने अपनी जेठानी उसकी माँ को कहा तो वो हंस कर बात को टालने लगी,
कहा- इसकी आदत है ! मेरे साथ सोता है तो भी नींद में मेरे स्तन पीता है।
मैंने कहा- अपने पिलाओ ! आइन्दा मेरे घर सुलाने की जरुरत नहीं है !
मुझे उसके कुटिल इरादों की कुछ जानकारी मिल गई थी। उसकी माँ चालू थी,
गाँव वालों ने उसे मुझे पटाने के लिए लालच दिया था इसलिए वो अपने बेटे के
जरिए मेरी टोह ले रही थी। उसे पता था उसके देवर को गए दस महीने हो गए थे,
शायद यह पिंघल जाये पर मैं बहुत मजबूत थी अपनी इज्जत के मामले में !
इससे पहले कईयों ने मुझ पर डोरे डाले थे, मेरे घर के पास मंदिर था, उसमें
आने का बहाना लेकर मुझे ताकते रहते थे। उनमें एक गाँव के धन्ना सेठ का
लड़का भी था जिसने कहीं से मेरे मोबाइल नंबर प्राप्त कर लिए और मुझे बार
बार फोन करता। पहले मिस कॉल करता, फिर फोन लगा कर बोलता नहीं ! मैं इधर
से गालियाँ निकलती रहती।

फिर एक दिन हिम्मत कर उसने अपना परिचय दे दिया और कहा- मैं तुमको बहुत
चाहता हूँ इसलिए बार बार मंदिर आता हूँ।
मैंने कहा- तुम्हारे बीवी, बच्चे हैं, शर्म नहीं आती !
फिर भी नहीं माना तो मैंने उसको कहा- शाम को मंदिर में आरती के समय
लाऊडस्पीकर पर यह बात कह दो तो सोचूँगी।
तो उस समय तो हाँ कर दी फिर शाम को उसकी फट गई। फिर उसने कहा- मुझे आपकी
आवाज बहुत पसंद है, आप सिर्फ फोन पर बात कर लिया करें। मैं कुछ गलत नहीं
बोलूँगा। मैंने कहा- ठीक है ! जिस दिन गलत बोला, बातचीत कट ! और मेरा मूड
होगा या समय होगा तो बात करुँगी।
यह सुनते ही वो मुझे धन्यवाद देने लगा और रोने लगा और कहने लगा- चलो मेरे
लिए इतना ही बहुत है ! कम से कम आपकी आवाज तो सुनने को मिलेगी !
मैं बोर होने लगी और फोन काट दिया। उसके बाद वो दो चार दिनों के बाद फोन
करता, मेरा मूड होता तो बात करती वर्ना नहीं ! वो भी कोई गलत बात नहीं
करता, मेरी तारीफ
करता। इससे मुझे कोई परेशानी नहीं थी।

मेरा पति चेन्नई से नौकरी छोड़ कर आ गया था। मेरा बी.ए. हो चुका था, मैंने
गाँव में स्कूल ज्वाइन कर लिया, टीचर बन गई वहाँ भी और टीचर मुझ पर लाईन
मारते, पर मैंने किसी को घास नहीं डाली।
फिर मेरे पति को वापिस चेन्नई बुला लिया तो चले गए तो मैंने भी स्कूल छोड़
दिया और पीहर आ गई !
जब भी मेरे बड़े जीजाजी अजमेर आते तो मुझसे हंसी मजाक करते थे, मैं मासूम
थी, सोचती थी कि मैं छोटी हूँ इसलिए मेरा लाड करते हैं। वे कभी यहाँ-वहाँ
हाथ भी रख देते थे तो मैं ध्यान नहीं देती थी। कभी वो मुझे अपनी बाँहों
में उठा कर कर मुझे कहते थे- अब तुम्हारा वजन बढ़ गया है !
मेरे जीजाजी करीब 46-47 साल के हैं 5'10" उनकी लम्बाई है, अच्छी बॉडी है,
बाल उनके कुछ उड़ गए हैं फिर भी अच्छे लगते हैं। पर मैंने कभी उनको उस नजर
से नहीं देखा था मैंने उनको सिर्फ दोस्त और बड़ा बुजुर्ग ही समझा था।
इस बीच में कई बार मैं अपनी दीदी के गाँव गई। वहाँ जीजा जी मुझसे मजाक
करते रहते, दीदी बड़ा ध्यान रखती, मुझे कुछ गलत लगता था नहीं।
फिर एक बार जीजा जी मेरे पीहर में आये, दीदी नहीं आई थी।
वे रात को कमरे में लेटे थे, टीवी देख रहे थे। मेरे पापा मम्मी दूसरे
कमरे में सोने चले गए। मेरी मम्मी ने आवाज दी- आ जा ! सो जा !
मेरा मनपसंद कार्यक्रम आ रहा था तो मैंने कहा- आप सो जाओ, मैं बाद में आती हूँ।
जीजा जी चारपाई पर सो रहे थे, उसी चारपाई पर बैठ कर मैं टीवी देख रही थी।
थोड़ी देर में जीजाजी बोले- बैठे-बैठे थक जाओगी, ले कर देख लो।

मैंने कहा- नहीं !
उन्होंने दोबारा कहा तो मैंने कहा- मुझे देखने दोगे या नहीं? नहीं तो मैं
चली जाऊँगी। थोड़ी देर तो वो लेटे रहे, फ़िर वे मेरे कंधे पकड़ कर मुझे अपने
साथ लिटाने की कोशिश करने लगे।

मैंने उनके हाथ झटके और खड़ी हो गई। वो डर गए। मैंने टीवी बंद किया और
माँ के पास जाकर सो गई।
सुबह चाय देने गई तो वो नज़रें चुरा रहे थे। मैंने भी मजाक समझा और इस बात
को भूल गई। फिर जिंदगी पहले जैसी हो गई। फिर मैं वापिस गाँव गई, मेरे पति
आये हुए थे।
अब स्कूल में तो जगह खाली नहीं थी पर मैं एम ए कर रही थी और गाँव में
मेरे जितना पढ़ा-लिखा कोई और नहीं था, सरपंच जी ने मुझे आँगन बाड़ी में लगा
दिया, साथ ही अस्पताल में आशा सहयोगिनी का काम भी दे दिया।
फिर एक बार तहसील मुख्यालय पर हमारे प्रशिक्षण में एक अधिकारी आये,
उन्होंने मुझे शाम को मंदिर में देखा था, और मुझ पर फ़िदा हो गए।
मैंने उनको नहीं देखा !
फिर उनका एक दिन फोन आया, मैंने पूछा- कौन हो तुम?
उन्होंने कहा- मैं उपखंड अधिकारी हूँ, आपके प्रशिक्षण में आया था !

मैंने कहा- मेरा नंबर कहाँ से मिला?
उन्होंने कहा- रजिस्टर में नाम और नंबर दोनों मिल गए !
मैंने पूछा- काम बोलो !
उन्होंने कहा- ऐसे ही याद आ गई !
मैंने सोचा कैसा बेवकूक है !
खैर फिर कभी कभी उनका फोन आता रहता ! फिर मेरा बी.एड. में नंबर आ गया और
मैंने वो नौकरी भी छोड़ दी। फिर उनका तबादला भी हो गया, कभी कभी फोन आता
लेकिन कभी गलत बात उन्होंने नहीं की।
एक बार बी.एड. करते मैं कॉलेज की तरफ से घूमने अभ्यारण गई तब उनका फोन
आया। मैंने कहा- भरतपुर घूमने आए हैं।
तो वो बड़े खुश हुए, उन्होंने कहा- मैं अभी भरतपुर में ही एस डी एम लगा
हुआ हूँ, मैं अभी तुमसे मिलने आ सकता हूँ क्या?
मैंने मना कर दिया, मेरे साथ काफी लड़कियाँ और टीचर थी, मैं किसी को बातें
बनाने का अवसर नहीं देना चाहती थी और वो मन मसोस कर रह गए !
फिर काफ़ी समय बाद उनका फोन आया और उन्होंने कहा- आप जयपुर आ जाओ, मैं
यहाँ उपनिदेशक लगा हुआ हूँ, यहाँ एन जी ओ की तरफ से सविंदा पर लगा देता
हूँ, दस हज़ार रुपए महीना है।
मैंने मना कर दिया। वे बार बार कहते कि एक बार आकर देख लो, तुम्हें कुछ
नहीं करना है, कभी कभी ऑफिस में आना है।

मैंने कहा- सोचूँगी !
फिर बार बार कहने पर मैंने अपनी डिग्रियों की नकल डाक से भेज दी।
फिर उनका फोन आया- आज कलेक्टर के पास इंटरव्यू है !
मैं नहीं गई।
उन्होंने कहा- मैंने तुम्हारी जगह एक टीचर को भेज दिया है, तुम्हारा नाम
फ़ाइनल हो गया है, किसी को लेकर आ जाओ।
मैं मेरे पति को लेकर जयपुर गई उनके ऑफिस में ! वो बहुत खुश हुए, हमारे
रहने का इंतजाम एक होटल में किया, शाम का खाना हमारे साथ खाया।
मेरे पति ने कहा- तुम यह नौकरी कर लो !
दो दिन बाद हम वापिस आ गए। साहब ने कहा था कि अपने बिस्तर वगैरह ले आना,
तब तक मैं तुम्हारे लिए किराये का कमरे का इंतजाम कर लूँगा।
10-12 दिनों के बाद मेरे पति चेन्नई चले गए और मैं अपने पापा के साथ
जयपुर आ गई। साहब से मिलकर में पापा ने भी नौकरी करने की सहमति दे दी।
मैं मेरे किराये के कमरे में रही, एक रिटायर आदमी के घर के अन्दर था कमरा
जिसमें वो, उसके दो बेटे-बहुएँ, पोते-पोतियों के साथ रहता था। मकान में 5
कमरे थे जिसमें एक मुझे दे दिया गया। बुजुर्ग व्यक्ति बिल्कुल मेरे पापा
की तरह मेरा ध्यान रखते थे।
मैं वहाँ नौकरी करने लगी। कभी-कभी ऑफिस जाना और कमरे पर आराम करना, गाँव
जाना तो दस दस दिन वापिस ना आना !
साहब ने कह दिया कि तनख्वाह बनने में समय लगेगा, पैसे चाहो तो उस एन जी ओ
से ले लेना, मेरे दिए हुए हैं।
मैंने 2-3 बार उससे 3-3 हजार रूपये लिए। साहब सिर्फ फोन से ही बात करते,
मीटिंग में कभी सामने आते तो मेरी तरफ देखते ही नहीं। फिर मेरा डर दूर हो
गया कि साहब कुछ गड़बड़ करेंगे। वो बहुत डरपोक आदमी थे, वो शायद सोचते कि
मैं पहल करुँगी और मेरे बारे में तो आप जानते ही हैं !
फिर मैंने कई बार जीजा जी से बात की, उन्हें उलाहना दिया कि मैं यहाँ
नौकरी कर रही हूँ और आप आकर एक बार भी मिले ही नहीं।

तो जीजा आजकल, आजकल आने का कहते रहे, टालते रहे।
मैंने कहा- घूमने ही आ जाओ दीदी को लेकर !
दीदी को कहा तो दीदी ने कहा- बच्चे स्कूल जाते हैं, मैं तो नहीं आ सकती,
इनको भेज रही हूँ !
एक दिन जीजा ने कहा- मैं आ रहा हूँ !
मैंने उस होटल वाले को कमरा खाली रखने का कह दिया जहाँ मैं और मेरे पति
साहब के कहने पर रुके थे क्यूंकि मेरा कमरा छोटा था। वो होटल वाला साहब
का खास था, उसने हमसे किराया भी नहीं लिया था।
और अब भी उसने यही कहा- आपके जीजा जी से भी कोई किराया नहीं लूँगा ! उनके
लिए ए.सी. रूम खाली रख दूँगा।
उसके होटल 2-3 ए.सी. रूम थे।

मैंने कहा- ठीक है !
जीजा जी आए मेरे कमरे पर, दोपहर हो रही थी, खाना मैंने बना रखा था, खाना
खाकर हए एक ही बिस्तर पर एक दूसरे की तरफ़ पैर करके लेट गए।
शाम हुई तो हम घूमने के लिए निकले।
मैंने कहा- साहब के पहचान वाले के होटल चलते हैं, घूमने के लिए बाइक ले लेते हैं।
उसको साहब का कहा हुआ था, उसके लिए तो मैं ही साहब थी, मेरे रिश्तेदार
आएँ तो भी उसको सेवा करनी ही थी होटल में ठहराने से लेकर खाना खिलाने की
भी !

हम होटल गए तो वो कही बाहर गया हुआ था ! मैंने सोचा अब क्या करें?
मैंने उसको फोन कर कहा- मुझे आपकी बाइक चाहिए !
उसने बताया कि वो शहर से दूर है, एक घंटे में आ जायेगा, हमें वहीं रुक कर
नौकर से कह कर चाय नाश्ता करने को कहा।
मुझे इतना रुकना नहीं था, मैं जीजाजी को लेकर चलने लगी ही थी, तभी उस
होटल वाले का जीजा अपनी बाइक लेकर आया। वो भी मुझे जानता था, उसने पूछा-
क्या हुआ मैडम जी?
वहाँ सब मुझे ऐसे ही बुलाते हैं, मैंने उसे बाइक का कहा तो उसने कहा- आप
मेरी ले जाओ !
मैंने जीजाजी से पूछा- यह वाली आपको चलानी आती है या नहीं? कहीं मुझे
गिरा मत देना !
तो जीजाजी ने कहा- और किसी को तो नहीं गिराया पर तुम्हें जरूर गिराऊँगा !
मैं डरते डरते पीछे बैठी, जीजाजी ने गाड़ी चलाई कि आगे बकरियाँ आ गई।
जीजाजी ने ब्रेक लगा दिए, बकरियों के जाने के बाद फिर गाड़ी चलाई तो मैं
संतुष्ट हो गई कि जीजाजी अच्छे ड्राइवर हैं !
अब वो शहर में इधर-उधर गाड़ी घुमा रहे थे, कई बार उन्होंने ब्रेक लगाये और
मैं उनसे टकराई, मेरी चूचियाँ उनकी कमर से टकराई, उन्होंने हंस कर कहा-
ब्रेक लगाने में मुझे चलाने से ज्यादा आनन्द आ रहा है !

मुझे हंसी आ गई।
थोड़ी देर घूमने के बाद हम वापिस होटल गए, उसे बाइक दी और पैदल ही घूमने निकल गए।
मैंने जीजाजी को कहा- अब खाना खाने होटल चलें?
उन्होंने कहा- नहीं, कमरे पर चलते हैं। आज तो तुम बना कर खाना खिलाओ !
मैंने कहा- ठीक है !
हम वापिस कमरे पर आ गए, मेरा पैदल चलने से पेट थोड़ा दुःख रहा था ! मैंने
खाना बनाया, थोड़ी गर्मी थी, हम खाना खा रहे थे कि मेरी माँ का फोन आ गया।
उसे पता था जीजाजी वहाँ आये हुए हैं।
उन्होंने जीजाजी को पूछा- आप क्या कर रहे हो?
तो उन्होंने कहा- कमरे पर खाना खा रहा हूँ, अब होटल जाऊँगा।
फिर माँ ने कहा- ठीक है !
पर जीजा जी ने मुझसे कहा- मैं होटल नहीं जाऊँगा !
मैंने कहा- कोई बात नहीं ! यहीं सो जाना !
मैं कई बार उनके साथ सोई थी, हालाँकि पहले हर बार हमारे साथ जीजी या और
कोई था पर आज हम अकेले थे पर मुझे कोई डर नहीं था।
हम खाना खाने के बाद छत पर चले गए। कमरे में मच्छर हो गए थे इसलिए पंखा
चला दिया और लाईट बंद कर दी।
हम छत पर आ गए तो मैंने उन्हें कहा- यहाँ छत पर सो जाते हैं।
उन्होंने कहा- नहीं, यहाँ ज्यादा मच्छर काटेंगे।

मैंने कहा- ठीक है, कमरे में ही सोयेंगे।
फिर मेरे पेट में दर्द उठा तो जीजा जी ने पूछा- क्या हुआ?
मैंने कहा- पता नहीं क्यों आज पेट दुःख रहा है।
जीजाजी ने पूछा- कही पीरियड तो नहीं आने वाले हैं?
मैं शरमा गई, मैंने कहा- नहीं !
उन्होंने कहा- दर्द की गोली ले ली।
वो मुझे एक दर्द की गोली देने लगे, मैंने ना कर दिया, वो झल्ला कर बोले-
नींद की गोली नहीं है, दर्द की है।
फिर मैंने गोली ले ली !
फिर हम लेट गए, दोपहर की तरह आड़े और दूर दूर ! कमरे का दरवाज़ा खुला था।
हम बातें करने लगे। जीजा जी ने लुंगी लगा रखी थी, मैंने मैक्सी पहन रखी
थी। मैं लेटी लेटी बातें कर रही थी और जीजा जी हाँ हूँ में जबाब दे रहे
थे।

मेरी बात करते हाथ हिलाने की आदत है, मेरे हाथ कई बार उनके हाथ के लगे,
उन्होंने अपने हाथ पीछे कर लिए और कहा- अब सो जाओ, नींद आ रही है।
रात के ग्यारह बज गए थे, जीजाजी को नींद आ गई थी, मैं भी सोने की कोशिश
करने लगी और मुझे भी नींद आ गई !
रात के दो ढाई बजे होंगे कि अचानक मेरी नींद खुली, मुझे लगा कि मेरे जीजा
जी मेरी चूत पर अंगुली फेर रहे हैं। मेरी मैक्सी और पेटीकोट ऊपर जांघों
पर था, मैंने कच्छी पहनी हुई थी।
मेरा तो दिमाग भन्ना गया, मैं सोच नहीं पा रही थी कि मैं क्या करूँ !
मेरे मन में भय, गुस्सा, शर्म आदि सारे विचार आ रहे थे। मैंने अपनी चूत
पर से उनका हाथ झटक दिया और थोड़ी दूर हो गई.पर आगे दीवार आ गई, वो भी
मेरे पीछे सरक गए और मुझे बांहों में पकड़ लिया।
वो धीमे धीमे कह रहे थे- मुझे नींद नहीं आ रही है प्लीज !
और मेरे चेहरे पर चुम्बनों की बौछार कर दी। मैं धीमी धीमी आवाज में रो
रही थी, उन्हें छोड़ने का कह रही थी, पर वो नहीं मान रहे थे।
मैंने पलटी मार कर उधर मुँह कर लिया, उनकी बांहे मेरे शरीर पर ढीली थी पर
उन्होंने छोड़ा नहीं था मुझे। उन्होंने अपनी एक टांग मेरे टांगों पर रख
दी, मेरे कांख के नीचे से हाथ निकाल कर मेरे स्तन दबाने लगे, कभी नीचे
वाला और कभी ऊपर वाला।
जीजाजी मेरी गर्दन पर भी चुम्बन कर रहे थे और फुसफुसा रहे थे- मुझे कुछ
नहीं करना है, सिर्फ तुम्हें आनन्द देना है !

मैं मना कर रही थी- मुझे छोड़ दो !
पर वो कुछ भी नहीं सुन रहे थे, जोर से मैं बोल नहीं सकती थी कि कहीं मकान
मालिक सुन ना लें, मेरी बदनामी हो जाती कि पहले तो जयपुर बुलाया, कमरे
में सुलाया तो अब क्या हुआ?
मैं कसमसा रही थी ! आज मुझे पता चला कि जीजाजी में कितनी ताकत है, मुझे
छुड़ाने ही नहीं दिया। ऐसे दस मिनट बीत गए, मैं थक सी गई थी, मेरा विरोध
कमजोर पड़ने लगा, उन्होंने जैसे अजगर मुर्गे को दबोचता, वैसे मुझे अपनी
कुंडली में कस रहे थे धीरे धीरे !
उन्हें कोई जल्दी नहीं थी ! वो बराबर मुझे समझा रहे थे- चुपचाप रहो, मजा
लो ! तुम्हारे पति को गए साल भर हो गया है, क्यों तड़फ रही हो? मैं सिर्फ
तुम्हें आनन्द दूँगा, मुझे कोई जरुरी नहीं है ! और आज अब मैं तुम्हें
छोड़ने वाला नहीं हूँ !
मैं कुछ नहीं सुन रही थी, में तो कसमसा रही थी और छोड़ने के लिए कह रही
थी। वो थोड़ा मौका दे देते तो मैं कमरे के बाहर भाग जाती पर उन्होंने मुझे
जकड़ रखा था।
फिर उन्होंने मेरे स्तन दबाने बंद किए और अपना हाथ नीचे लाये, मेरी कच्छी
नीचे करने लगे।
मैं तड़फ कर उनके सामने हो गई, मेरी आधी कच्छी नीचे हो गई पर मैंने उनका
हाथ पकड़ लिया और ऊपर कर दिया।
वो मेरे पेट को सहलाने लगे फिर दूसरे हाथ से मेरे हाथ को पकड़ लिया और
पहले वाले हाथ से फिर कच्छी नीचे करने लगे, साथ साथ मुझे सहयोग करने का
भी कह रहे थे।
मैंने नहीं माना और मैंने उनके सामने लेटे लेटे अपनी टांगें दूर दूर करने
के लिए एक टांग पीछे की पर एक टांग मुझे उनकी टांगों के उपर रखनी पड़ी !
वे अपना हाथ मेरी गाण्ड की तरफ लाये जहाँ कच्छी आधी खुली थी और खिंच रही
थी। उनकी अंगुलियों को गाण्ड के पीछे से चड्डी में घुसने की जगह मिल गई।
उन्होंने पीछे से चड्डी में हाथ डाला और मेरी चूत सहलाने लगे जिसे अब वो
सीधे छू रहे थे, वे मेरी चूत के उभरे हुए चने को रगड़ रहे थे। मैं फिर
कसमसा रही थी पर उन्होंने मुझ पर पूरी तरह काबू पा लिया था, एकदम जकड़ा
हुआ था, अब तो मैं हिल भी नहीं पा रही थी। उन्होंने 5 मिनट तक मेरी चूत
के दाने को पीछे से रगड़ा, मेरी छोटी सी चूत में पीछे से अंगुली डालने की
असफल कोशिश भी कर रहे थे !
मैं कुछ भी करने की स्थिति में नहीं थी, मेरी सारी मिन्नतें बेकार जा रही
थी, इतनी मेहनत से हम दोनों को पसीने आ रहे थे, पर पता नहीं आज जीजाजी का
क्या मूड था, मैं उन्हें यहाँ आने का कह कर और होटल में नहीं जाने का कह
कर पछता रही थी। अगर मेरे बस में काल के चक्र को पीछे करने की शक्ति होती
तो मैं पीछे कर उन्हें यहाँ नहीं सुलाती !
खैर अब क्या होना था, मैंने जो इज्जत तीस साल में संभाल कर रखी थी, आज जा
रही थी और मैं कुछ भी नहीं कर पा रही थी मैंने अपने सारे देवताओ को याद
कर लिया कि जीजाजी का दिमाग बदल जाये और वो अब ही मुझे छोड़ दें, पर लगता
है देवता भी उनके साथ थे।
फिर अचानक वो थोड़े ऊँचे हुए एक हाथ से मुझे दबा कर रखा और दूसरे हाथ से
मेरी चड्डी पिंडलियों तक उतार दी और एक झटके में मेरी एक टांग से बाहर
निकाल दी। अब चड्डी मेरे एक पांव में थी और मेरी चूत पर कोई पर्दा नहीं
था।
उन्होंने मेरी दोनों टांगों को सीधा कर अपने भारी पांव से दबा लिया, फिर
वे एक झटके से उठे और नीचे हुए, उनका लम्बा हाथ मुझे उठने नहीं रहा था,
मेरी टांगें चौड़ी की, एक इस तरफ और दूसरी उस तरफ।
मैं छटपटा रही थी कि अचानक उन्होंने अपना मुंह मेरी चूत पर लगा दिया। बस
मुंह लगाने की देर थी कि में जम सी गई, मेरा हिलना डुलना बंद !
आज तक किसी ने मेरी चूत नहीं चाटी थी, पिछले एक साल से मैं चुदी नहीं थी,
पिछले आधे घंटे से मैं मसली जा रही थी ! मेरी चूत पर जीजा का मुँह लगते
ही मैं धराशाई हो गई, सब सही-गलत भूल गई, मेरे शरीर में आनद का सोता उमड़
पड़ा, मुझे बहुत आनन्द आने लगा।
जीजाजी जोर-जोर से मेरी चूत चूस रहे थे, चाट रहे थे, हल्के-हल्के कट रहे
थे, मेरे चने को दांतों और जीभ से चिभाल रहे थे, मेरी चूत की फ़ांकों को
पूरा का पूरा अपने मुँह में भर रहे थे, अपनी जीभ लम्बी और नोकीली बना कर
जहाँ तक जाये, वहाँ तक मेरी चूत में डाल रहे थे।
मेरे चुचूक कड़े हो गए थे, मेरे मुँह से सेक्सी आहें निकल रही थी, मैं
उनके सर पर हाथ फेर रही थी, उनके आधे उड़े हुए बालों को बिखेर रही थी !
उन्हें मेरी आहों और उनके बालो में हाथ फेरने से पता चल गया कि अब मुझे
भी मजा आ रहा है, उन्होंने मेरे कमर के पास अपने दोनों हाथ लम्बे करके
मेरे दोनों स्तन पकड़ लिए और मसलने लगे।
मुझे और ज्यादा मजा आने लगा, मैंने उनके मुंह को इतनी जोर से आपनी जांघों
में भींचा कि उनकी साँस रुकने लगी और उन्होंने मेरे स्तन जोर से भींचे और
मेरी चूत में काटा कि मैंने जांघें ढीली कर दी। वो इतनी बुरी तरह से मेरी
चूत को चूस रहे थे कि उनकी लार बह कर नीचे बिस्तर तक पहुँच रही थी।
मैंने जितनी टांगें ऊपर उठा सकती थी, उठा ली और जोर जोर से सिसकारने लगी,
मैं उन्हें जोर से चाटने का कह रही थी।
इस सब को करीब 15 मिनट हुए होंगे कि मेरा पानी उबल पड़ा, उन्होंने मुँह
नहीं उठाया और चाट कर मेरा पूरा पानी निकाल दिया, मैं ठंडी पड़ गई, मुझे
जिन्दगी का पहला आनन्द, परम आनन्द मिल गया।
वो अब भी चाट रहे थे, मुझे उन पर दया आ गई, मैंने उन्हें अपने ऊपर खींचना
चाहा पर वो बोले- मुझे सिर्फ तुम्हें आनन्द दिलाना था, मेरी कोई जरुरत
नहीं थी।
पर मैंने कहा- नहीं, आप आओ मेरे ऊपर ! आपने मुझे इतना आनन्द दिया, अब मैं
भी आपको आनन्द देना चाहती हूँ !

अब मैं मुस्कुरा रही थी, हंस रही थी !
जो जीजा थोड़ी देर पहले मेरी नफरत का केंद्र था, अब मुझे सारी दुनिया से
प्यारा लग रहा था !
तब जीजाजी ने कहा- पहले बाथरूम जाकर आओ !
मैंने कहा मुझे जाने की जरुरत नहीं है आप मुझे कर लो !
उन्होंने कहा- मैं जाकर आता हूँ, फिर तुम जा आना !
मैंने कहा- ठीक है !
वो गए, फिर मैं गई।
जिसने कभी किसी पर-पुरुष को देखा नहीं, उसने 2010 जब 30 साल की थी

तब
जीजाजी जो 46 साल के थे उनको कैसे समर्पित हो गई ! सब वक़्त की बात है। अब
तक मेरे कमरे का दरवाजा खुला ही था। पहले जीजाजी बाथरूम जाकर आये, फिर
मैं बाथरूम गई, मैंने देखा मेरे मकान मालिक के और उनके बेटों के कमरों
में कूलर चल रहे थे और उनके कमरे में नाईट बल्ब की रोशनी में देखा कि सब
घोड़े बेच कर सो रहे थे।
मैं निश्चिंत होकर अपने कमरे में वापिस आई। कमरे में आने के बाद अब मैंने
दरवाजा ढुका दिया। जीजाजी एक तरफ लेटे थे, मैं जाकर सीधा उनके सीने पर
लेट गई। फिर उन्होंने मुझे अपनी बांहों में पकड़ लिया और मुझे चूने लगे,
साथ ही साथ उनका हाथ मेरे पीठ पर भी फिर रहा था।
उन्होंने धीरे से मुझे नीचे लिटा दिया, मैंने उनको अपने ऊपर जोर से पकड़
लिया। वो नीचे होना चाहते थे और मुझे शर्म आ रही थी इसलिए मैं उन्हें
अपने मुँह के पास पकड़े हुए थी। वो मेरे गालों पर चुम्बन देते, थोड़ा थोड़ा
मेरे होंटों को भी चूस रहे थे। मुझे होंट चुसवाना कभी अच्छा नहीं लगता था
क्योंकि मेरी साँस नहीं आती थी, लेकिन जीजाजी थोड़ा सा चूसकर बार बार छोड़
देते थे इससे मुझे साँस लेने का अवसर भी मिल जाता था।
इस बीच वो नीचे सरक गए और मेरी मैक्सी पेटीकोट समेत ऊपर करने लगे, मैं भी
अपनी गाण्ड उठा कर उनकी सहायता कर रही थी।
वो फिर मेरी धोई हुई चूत को सूंघ रहे थे और मैं फिर से उत्तेजित हो रही
थी उनके चूत चाटने के ख्याल से।
पहले उन्होंने धीरे से अपनी जीभ मेरी पूरी चूत पर फेरना शुरू किया मैंने
शर्म से अपनी मैक्सी को अपने मुँह पर ओढ़ लिया। अब मैक्सी और पेटीकोट कमर
से लेकर मेरे मुँह पर ढका हुआ था और मेरी जमा-पूंजी खुली पड़ी थी, जिसे आज
लुटना था और मेरा लुटाने का इरादा था।
अब वो अपनी जीभ मेरे चने पर फिरा रहे थे, कभी हल्का सा दांतों से काट रहे
थे, कभी जीभ को जितना अन्दर ले जा सकते, ले जा रहे थे। मैंने अपनी तीस
साल की जिन्दगी में जो आनन्द नहीं पाया, वो आज पा रही थी।
करीब दस मिनट तक वो चाटते रहे, मैं उनके स्वयम्-नियन्त्रण पर हैरान थी कि
उन्हें यह पूर्व-क्रीड़ा करते करीब एक घंटा हो गया पर वो चुदाई की कोशिश
नहीं कर रहे थे। मैंने आनन्द में अपनी टांगें पूरी ऊँची कर अपनी चूत को
उभार दिया था, वो हाथों से कपड़ो के ऊपर से ही मेरे स्तन दबा रहे थे।
जीजाजी की लुंगी तो पहले ही हट चुकी थी, अब कपड़ों की सरसराहट सुन कर मैं
समझ गई कि वो अपना अंडरवियर उतार रहे हैं। आने वाले वक़्त की कल्पना से
ही मेरे कलेजा धड़क रहा था, मेरी जिन्दगी का एक महत्वपूर्ण मोड़ आ रहा था,
आज पहली बार मेरे पति के अलावा कोई दूसरा मेरी सवारी करने की तैयारी में
था।
मैं दम साधे आने वाले पलों का इन्तजार कर रही थी। मेरी दोनों टांगें पूरी
तरह से ऊपर थी जो मेरे सर से भी पीछे जा रही थी, दुबला पतला होने का यही
तो फायदा है।
अब वे घुटनों के बल बैठ गए थे और अपने मुँह से ढेर सारा थूक अपने लण्ड पर
लगा रहे थे, थोड़ा मेरी पहले से गीली चूत पर भी लगाया और अपने लण्ड को
मेरी छोटी सी चूत के छेद पर अड़ा दिया।

मुझे अपनी चूत पर उनके सुपारे का कड़ापन महसूस हो रहा था।
मैं सिहर गई।
उन्होंने हल्के से अपने लण्ड को मेरी चूत में ठेला, मेरी चूत ने उनके
सुपारे पर कस कर उनका स्वागत किया। अब उन्हें पता चल गया कि यह किला इतनी
आसानी से फ़तेह होने वाला नहीं है। मेरी चूत में संकुचन हो रहा था, आनन्द
की अधिकता से मैं अपनी चूत को और ऊँचा कर रही थी पर अब तक सिर्फ उनका
सुपारा ही अन्दर गया था। साँस भर कर फिर उन्होंने धक्का दिया, थोड़ा और
अन्दर घुसा, आनन्द के मारे मेरी हल्की सी किलकारी मुँह से निकली तो
उन्हें जोश आया और थोड़ा पीछे खींच कर फिर दांत भींच कर जोर से धक्का
मारा। अब उनका आधे से ज्यादा लण्ड मेरी चूत में घुस चुका था, वो अपने
माथे का पसीना पौंछ रहे थे और मेरे कान में बोले- तेरी चूत इतनी कसी कैसे
है? लगता ही नहीं कि तुम दस साल के बेटे की माँ हो।
मैंने जबाब उनका कान काट कर दिया। मेरे कान काटने से उन्हें फिर जोश आया
और धचाक से अपना पूरा लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया। अब उनकी गोलियाँ मेरी
गाण्ड से टकरा रही थी।
अब उन्होंने अपने हाथ मेरी गाण्ड के नीचे डाल कर मेरे चूतड़ कस कर पकड़ लिए
और धक्के लगाने लगे। मेरी चूत की फांके बुरी तरह से उनके लण्ड से कसी हुई
थी इसलिए वो जब ऊपर होते तो मेरी चूत भी उठ जाती इसलिए वो ज्यादा ऊँचा
होकर धक्के नहीं लगा पा रहे थे। फिर थोड़ी देर में मेरी चूत गीली होने लगी
और इतनी देर में उनका लण्ड भी चूत में सेट हो गया था। मेरी चूत में करीब
दस महीने के बाद लण्ड घुस रहा था, दोस्तो, मैं सच कहती हूँ कि मैंने कभी
अपनी चूत में अंगुली भी नहीं की थी इन दस महीनों में। अब उनका लण्ड आसानी
से मेरी चूत में आ-जा रहा था पर जब मैं मजे में अपनी चूत भींच देती तो
उनकी रफ़्तार धीरे हो जाती, फिर धक्के देने में जोर आता पर वो हचक हचक कर
चोद रहे थे, उनके मुँह से लगातार मेरी तारीफ निकल रही थी- इतनी शानदार
चूत मैंने आज तक नहीं देखी, आज जितना मजा कभी नहीं आया, आज मेरे जिन्दगी
का मकसद पूरा हो गया, तुम मेरी सेक्स की देवी हो, तुम जो चाहे मुझसे ले
लो ! आदि आदि।
और मैं उन बातों से मस्त होकर चुदवा रही थी। करीब दस मिनट ऐसे चोदने के
बाद उन्होंने मेरी टांगें सीधी कर दी और मुझे रगड़ने लगे। 3-4 मिनट के बाद
उन्होंने फिर से टांगें ऊँची कर दी। इस बार मैंने अपनी टांगें उनकी कमर
में कस दी पर 4-5 धक्कों से ही वो थकने लगे तो मैंने फिर से ऊँची कर ली।
अब उनका लण्ड सीधा मेरी बच्चेदानी से टकरा रहा था और मुझे दर्द के साथ
आनन्द भी आ रहा था। मैं झड़ने लगी, मेरे मुँह से गूँ गूँ की आवाजें आ रही
थी और करीब एक मिनट तक मेरा शरीर ऐंठता रहा।
उन्हें पता चल गया था इसलिए वो जोर जोर से चोद रहे थे। फिर मैं अचानक
ढीली पड़ गई और उन्होंने लण्ड बाहर निकाल लिया,
मैंने कहा- आपका आ गया क्या?
उन्होंने कहा- नहीं, अभी कहाँ आएगा !

मुझे बड़ा अचरज हुआ।
उन्होंने कहा- पहले तुम्हें दोबारा गर्म करता हूँ।
उन्होंने थोड़े चुम्बन दिए, स्तन दबाये। उन्होंने मेरी चोली खोलने की
कोशिश क़ी तो मैंने मना कर दिया और कहा- ऊपर से दबा लो, यहाँ पराये घर
में हैं।
फिर उन्होंने कुछ नहीं कहा और ऊपर से ही मेरी चूचियाँ दबाने लगे। एक हाथ
से मेरे चूत के चने को हल्के हल्के छेड़ रहे थे, उसे गोल गोल घुमा रहे
थे।

मुझे आज पता चला कि कोई आदमी इतनी काम कला में निपुण भी हो सकता है !
आज तक मेरे पति ने ऐसा मुझे तैयार नहीं किया था।
मुझे मेरे जीजाजी बहुत प्यारे लग रहे थे कि उन्हें मेरे आनन्द की कितनी
चिंता है और उनमें रुकने का कितना स्टेमिना है।
उनके थोड़ी देर के प्रयास से मैं फिर से गर्म हो गई थी, मैं तब तक तीन बार
झड़ चुकी थी जो मेरी जिन्दगी में पहला मौका था एक रात में। मेरे पति के
साथ तो कभी कभी ही चरम सुख मिलता था।
अब मैं जीजाजी को अपने ऊपर खींचने की कोशिश करने लगी, वे समझ गए,
उन्होंने मेरी सूखी चूत को थूक से गीला किया और अपना लण्ड मेरी चूत में
सरका दिया एक ही झटके में !
मैं थोड़ा उछली फिर शांत हो गई। मेरी टांगें मेरे सिर के ऊपर थी। मेरे
जीजाजी मेरी टांगों नीचे से हाथ डाल कर मुझे दोहरी कर अपने हाथ मेरे वक्ष
तक ले आये और वे धक्के के साथ स्तन भी दबा रहे थे, मेरे आनन्द की कोई
सीमा नहीं थी।
करीब दस मिनट की चुदाई के बाद मैं फिर झड़ने के करीब थी। अब लगातार चुदाई
से मेरी चूत में जलन भी होने लगी थी, चूत कुछ सूज भी गई थी।
मैंने जीजाजी को कहा- आपको कोई बीमारी है क्या? आधे घंटे से चोद रहे हो
और आपके एक बार भी पानी नहीं निकला?
यह सुनकर हँसे और कहा- मेरा अपने दिमाग पर काबू है, चाहूँ तो 5-7 मिनट
में पानी निकाल सकता हूँ और चाहूँ तो 30-40 मिनट तक भी चोद सकता हूँ।

मुझे बड़ा अचम्भा हुआ !
फिर मैंने कहा- मैं थक गई हूँ, ऐसा लगता है कि मुझे 3-4 जनों ने मिलकर
चोदा है, अब आप अपना पानी निकाल लो !
उन्होंने कहा- ठीक है, तुम दो मिनट तक पड़ी रहो।
फिर उन्होंने तूफानी रफ़्तार से धक्के मारने शुरू किये। मैं दांत भींच कर
सहन कर रही थी राम राम करते।
फिर उनका पानी छूटा तो उन्होंने मुझे इतनी जोर से भींचा कि मेरी हड्डियाँ बोल उठी।
आज मुझे पता चला कि मेरे जीजाजी में रीछ जैसी ताकत थी, मन ही मन में उनके
प्रति प्रंशसा का भाव जगा।
कुछ देर मेरे बदन पर लेटे रहने के बाद वो उठ कर बाथरूम में चले गए, मैं
उठी तो मुझे लगा मेरी चूत सुन्न हो गई है, टटोल कर देखा तो पता चला कि है
तो सही।
फिर उनके आने के बाद मैं बाथरूम गई और वहा बैठ कर जब मैंने मूतना शुरु
किया तो मेरी चूत जल उठी, मुझे पता चल गया कि आज मेरी चूत का बजा बज गया
है।
पर अभी तो साढ़े तीन ही बजे थे, अभी रात बाकी थी और मेरी चूत का तो बाजा और बजना था।
मैं जब बाथरूम से वापिस आई तो जीजाजी लेटे हुए थे, लुंगी तो नहीं लगी हुई
थी पर अंडरवियर पहना हुआ था।
मैं भी जाकर पास में लेट गई और अपनी एक टांग उनकी कमर पर रख दी।
उन्हें शायद नींद आ रही थे, वे कसमसाए और मुझे बांहों में भर कर बोले- अब
सो जाओ।मैंने उन्हें कहा- ऐसे मेरी नींद खुल जाती है तो फिर मुश्किल से
ही आती है्।
तो उन्होंने मेरी तरफ मुँह करके मुझे चूम लिया और कहा- चलो अब नहीं सोते
हैं, बातें करते हैं।

अब उन्होंने पूछा- तुम्हें कैसा लगा?
तो मैंने कहा- मुझे नहीं पता कि अच्छा हुआ या बुरा !
फिर उन्होंने मुझे कहा- मुझे डर लग रहा था कि कहीं तुम कोई उल्टा कदम न
उठा लो लेकिन अब जब तुम्हें खुश देखा तो मेरी परेशानी ख़त्म हो गई !
फिर उन्होंने पूछा- तुम मान कैसे गई?
तो मैंने कहा- अगर मुझे पता होता कि आप ऐसा करोगे तो मैं आपको यहाँ
बुलाती ही नहीं और यह अनजान शहर नहीं होता, मेरा या आपका घर होता तो मैं
आपको भगा देती। पर खैर मेरी किस्मत में ही यही लिखा था। आप तो सो गए थे,
फिर यह आपको क्या सूझा?
तो उन्होंने कहा- तुमने जो मैक्सी पहनी थी, उसकी बांहों के पास कट है, जब
भी तुम मोबाईल पर बात करती वो कंधे नंगे हो जाते और मैं किसी के कंधे
देखकर उत्तेजित हो जाता हूँ। पहले तो मैं सो गया पर रात को दो बजे मुझे
पेशाब लगा, तब तुम नींद में मेरे नजदीक सो रही थी। फिर मेरी वासना जाग
उठी और मेरे दिमाग में यही था कि इसका पति काफी समय से बाहर है, मुझे
इसको संतुष्ट करना है। इसलिए मैंने तुम्हें पकड़ लिया।
फिर उन्होंने मुझे पूछा तो मैंने बताया कि पिछले छः माह से मेरे पति ने
फोन नहीं किया इसका मुझे गुस्सा था और जब मैं नौकरी पर जाती हूँ तो सबकी
नज़र मुझ पर होती है तो मैंने सोचा कि सेक्स करना ही है तो जीजाजी के साथ
ही करूँ, कम से कम मेरे परिवार के तो हैं, मेरी बदनामी तो नहीं करेंगे।
और जब आपने जबरदस्ती मेरी चूत चाटी तो मैं पागल हो गई और मैंने सारा
विरोध छोड़ दिया। फिर जब आप अपना नहीं कर रहे थे तो मुझे आप पर दया आई कि
बेचारे ने चाट कर इतना आनन्द दिया और इतनी दूर से आए हैं तो इन्हें भी
इनाम मिलना चाहिए, इसलिए मैंने आपको अपने ऊपर खींचा।
बातें करते जा रहे थे और मेरे जीजाजी मुझे सहलाते भी जा रहे थे। हमें
बाते करते करीब 20 मिनट हो गए थे कि अचानक वे उठे, अपनी चड्डी एक टांग से
बाहर निकाली, अपने सुपारे के ऊपर थूक लगाया और मेरी चूत में डाल दिया।
मैं चिहुंक उठी क्योंकि सूजन से मेरी चूत का छोटा सा दरवाजा भी बंद हो
गया था पर सुपारा घुसा तब ही दर्द हुआ, अन्दर जाने के बाद अच्छा लगा।
मैंने कहा- अभी तो आपने किया है ! फिर से?
उन्होंने कहा- मुझे सिर्फ़ तुम्हें आनन्द देना है, मेरे लिए जरुरी नहीं है !
और इस बार वो मेरे ऊपर आड़े लेट गए उनका लण्ड घुसा हुआ था और उनका सर और
पांव मेरे ऊपर नहीं थे, वे मुझे टेढ़े होकर चोद रहे थे, उनके लण्ड का बीच
का हिस्सा बार बार मेरे चूत के चने से घर्षण कर रहा था।

मुझे फिर आनन्द
आने लगा और मैंने उनको मेरी टांगें उठा कर चोदने को कहा।
फिर उन्होंने मेरे ऊपर चढ़ कर मेरी टांगें अपने कंधों पर रख ली और
जोर-जोर से चोदने लगे।
मेरी सांसें तेज हो रही थी, मैं आनन्द से धीमे-धीमे चिल्ला रही थी,
उन्हें पता था इसलिए वो बिना रहम किये जबरदस्त तरीके से धक्के मार रहे थे
कि मेरी चूत से आनन्द का सोता उमड़ पड़ा और मैं ठंण्डी पड़ गई।

उन्होंने एक झटके से अपना लण्ड बाहर निकाल लिया।
मैंने पूछा- क्या हुआ? आपके भी आ गया?
तो उन्होंने कहा- नहीं, मुझे निकालना नहीं है, मैं तो तुझे आनन्द दे रहा
था, मेरी जरुरत नहीं है।
मुझे पहली बार पता चला कि इस आदमी में कितना आत्मनियन्त्रण है !
हम फिर से लेट कर बातें करने लगे। करीब साढ़े चार बज गए थे। साथ ही साथ
जीजाजी के हाथ मेरे पूरे बदन पर फिरा रहे थे, मैं पूरी बेशरम हो गई थी
मेरी मैक्सी पूरी ऊपर थी, चड्डी का पता नहीं था और एक टांग उनके ऊपर रख
कर अपनी नंगी चूत उनकी जांघ पर रगड़ रही थी।
सुबह के करीब पाँच बजे फिर जीजाजी ने मेरी चूत टटोलनी शुरू की और एक बार
फिर मैं चुद रही थी। उन्होंने मुझे घोड़ी बनने को कहा पर मैंने मना कर
दिया, मुझे डर था कि अब मकान मालिक आदि जागने वाले हैं।
उन्होंने कहा कि जैसे कुत्ता कुत्ती के पीछे पड़ता है, वैसे मैं तेरे
पीछे पड़ा हूँ और जबरदस्ती चोद रहा हूँ !
मुझे भी ऐसे ख्याल आये और मैं बुरी तरह से उत्तेजित हो गई मैंने उनको
बुरी तरह से जकड़ लिया और वो पूरे बीस मिनट तक मेरी चूत का बाजा बजाते
रहे।
मैं इस बीच दो बार झड़ चुकी थी।
फिर उन्होंने अचानक अपना लण्ड बाहर निकाला और मेरे कमरे में जिस तरफ मटकी
रखती हूँ, वहाँ पानी जाने की नाली है, वहाँ गए।
मैंने कहा- ऐसे क्यों निकाला? कंडोम तो होगा ना !
उनके जबाब से मेरा कलेजा धक से रह गया कि कंडोम तो दोनों बार लगाया ही
नहीं, अँधेरे में मिला ही नहीं ! कहाँ गया पता नहीं !
मुझे फिकर हुई तो उन्होंने कहा- मैंने पहले भी बाहर ही निकाला है, चिंता मत करो !
तब तक पौने छः हो गए और मैं नित्य-क्रिया के लिए उठ गई।
सुबह का प्रकाश फैला तो मैं जीजाजी से और जीजाजी मुझसे नज़रें चुराने लगे।
फिर मैंने जीजाजी को चाय पिलाई, मैं जीजाजी से आँखें चुरा रही थी, वे भी
मुझसे आँखें चुरा रहे थे।
मैंने चाय बनाई और उनकी तरफ सरका दी। उन्होंने भी चुपचाप चाय उठाई और पी
ली। फिर वो अपने कपड़े उठा कर बाथरूम में चले गए और वहीं से शर्ट और जींस
पहन कर ही आये। मैंने भी उन्हें कंघा, तेल आदि दिए और अपने कपड़े उठा कर
बाथरूम में चली गई, अपने पाप धोने पर वहाँ मल-मल कर नहाने के बाद भी सोच
रही थी कि सिर्फ तन ही धुल रहा है मन नहीं।
मैं सब घटनाओं को सोच रही थी कि यह क्या हो गया? मैंने अपने जिंदगी में
पहली बार दूसरे मर्द के साथ सेक्स किया, वो भी अपने जीजाजी के साथ !
मैं सोच रही थी कि मैंने अपनी दीदी की अमानत पर डाका डाला है।
पहले मैंने सोचा था कि जीजाजी को अपने साथ में काम करने वालों से
मिलवाऊँगी पर अब मन में अपराध की भावना आ गई और सोचा अब तो कमरे से बाहर
ही कैसे जाऊँगी। मैंने सोच लिया अब किसी को कहूँगी ही नहीं कि जीजाजी आये
थे।
मैं विचार कर रही थी कि इसमें मेरी कोई गलती नहीं है, मैंने तो उनको बहुत
रोका पर एक तरह से तो उन्होंने मेरा बलात्कार ही किया था।
मैंने सब इश्वर की इच्छा मान ली कि उसकी मर्जी थी कि तीस साल की उम्र में
मेरा धर्म भ्रष्ट होना था, मुझे जीजा अच्छे भी लगे थे कि काश ये मेरे
जीजाजी नहीं होते तो दीदी के बारे में तो सोचना नहीं पड़ता।
फिर मैंने सोच लिया कि जो हो गया सो हो गया, अब नहीं होना चाहिए, रात गई और बात गई।

ऐसा सोचते मैं नहा कर अपने कमरे में आ गई।
जब मैं नहा कर कमरे में गई तो मैंने देखा कि मेरे कमरे दूसरा गेट जो बाहर
गली में खुलता है उसमें से एक कुत्ता कमरे में घुस गया है और कमरे में
रखे बर्तनों को सूंघ रहा है।
मैं जोर से कुत्ते पर चिल्लाई तो कुत्ता तो भाग गया और जीजाजी हड़बड़ा कर उठ गए।
उन्होंने कुत्ते को भागते देखा तो लजा कर कुछ डर के साथ बोले- सॉरी !
मुझे नींद आ गई !
इस सारे घटनक्रम पर मेरी हंसी छुट गई। मुझे यह अच्छा लगा कि शेरदिल
जीजाजी जो किसी से नहीं डरते हैं, मुझसे डर रहे हैं, आज तक मुझे उनसे डर
लगता था।
मुझे हँसता देख कर वो भी मुस्कुरा दिए और कमरे का वातावरण कुछ हल्का हो गया।
फिर मैं नाश्ता बनाने की तैयारी करने लगी और वो बाज़ार चले गए। मैंने खाना
बनाया तब तक वो भी बाज़ार से मिठाई, नमकीन और फल लेकर आ गए।
अब हम दोनों कुछ राहत महसूस कर रहे थे।
फिर मैंने उन्हें कहा- नाश्ता कर लो !
तो उन्होंने कहा- हम साथ ही खायेंगे !
फिर हम दोनों ने नाश्ता किया, ज्यादा बातचीत नहीं की और नाश्ते के बाद
फिर दूर दूर लेट गए। मेरे कमरे का घर के अन्दर वाला गेट खुला था और मकान
मालिक की बहू एक दो बार देख कर भी जा चुकी थी।जीजाजी सो गए जींस शर्ट
पहने हुए ही। और ऐसे सोये कि शाम को चार बजे जगे।
तो मैंने चाय बना कर पिलाई फिर मैं अपने ऑफिस का काम करने लगी। एक दो
बातें उन्होंने मेरे काम के बारे में पूछी फिर उन्होंने अपना बटुआ निकाला
और दो हज़ार हज़ार के नोट मुझे देने लगे।
मैंने मना किया तो कहा- अच्छी सी साड़ी ले लेना !
बहुत कहने पर मैंने ले लिए। उनके पास दस दस के नोट थे तो मैंने कहा मुझे
सौ रूपये खुले दे दो !
उन्होंने दे दिए, मैंने सौ का नोट देना चाहा तो उन्होंने मना कर दिया।
मैंने कहा- इतने दिलेर हो तो पाँच-दस हज़ार और दे दो !

वो सचमुच देने लगे तो मैंने उन्हें रोक दिया।
वो कहने लगे- जो तुमने मुझे दिया है वो अनमोल है, तुम्हारे लिए रूपये तो
क्या जान भी हाजिर है।
मैं इतना सुनकर भावविभोर हो गई और कहा- नहीं मुझे जान नहीं आप जिन्दे ही चाहिएँ।
तभी दीदी का फोन आया, उन्होंने बात की, उसने पूछा- कब आ रहे हो?
तो जीजाजी बोले- शाम को छः बजे गाड़ी है, वो गाँव रात बारह बजे पहुँचेगी।
तो दीदी ने कहा- स्टेशन गाँव से इतनी दूर है, रात को कौन लेने आएगा? आप
फिर सुबह ही आना !
जीजाजी ने कहा- ठीक है !
फिर दीदी ने मुझसे बात की, मैंने उन्हें कहा- तुम चिंता मत करो, आज उसी
होटल में रह जायेंगे, कल आ जायेंगे।
तो दीदी ने कहा- अपने जीजाजी को सब जगह घुमा देना !
मैंने कहा- तुम चिंता मत करो !
फिर फोन रख दिया। अब मैंने सोचा कि आज फिर जीजाजी रुकेंगे !
इस बात की ना तो ख़ुशी हो रही थी ना दुःख।

तभी होटल वाले का फोन आ गया- मैडम जी, आपके जीजाजी यहीं हैं क्या? या चले गए?

मैंने कहा- यहीं हैं।
तो उन्होंने कहा- खाना यहीं खाना है !
मैंने कहा- ठीक है, पर ये प्याज-लहसुन नहीं खाते !
उसने कहा- आप चिंता न करें, हम जैन खाना बना देंगे।
शाम सात बजे हम होटल के लिए रवाना हुए। आज मैंने सलवार-कुर्ती पहनी थी जब
मैं कपड़े बदलने के लिए बाथरूम जा रही थी तब जीजाजी ने कहा था- अब तो मेरे
सामने ही बदल लो !मैंने शरमा कर मना कर दिया और मैं बाथरूम से ही कपड़े
बदल कर आई थी।
सलवार कुर्ती में मैं कम से कम दस साल छोटी लग रही थी, मैं वैसे ही पतली
हूँ इसलिए कॉलेज की छात्रा सी लग रही थी, जीजाजी तो देखते ही रह गए और
उनकी निगाहें मुझ से हट ही नहीं रही थी, वो मेरी तारीफ पर तारीफ किये जा
रहे थे।
मैं काफी कुछ करीना की तरह लगती ही हूँ, ऐसा कई लोगो ने मुझे कहा था,
जीजाजी की तारीफें सुन कर मुझे ख़ुशी हो रही थी और मैं शरमा भी रही थी।
99 प्रतिशत औरतें तारीफ पर खुश होती हैं, भले ही झूठी ही हो, वैसे मेरी
तो वो सच्ची तारीफ ही कर रहे थे।
वो अवाक से थे सलवार कुर्ती में मेरी जवानी देख कर !
और हम बाज़ार में चल रहे थे मुझे लग रहा था कि अकेले होते तो वो मुझे मसल
देते। सारे समय उनकी निगाहें मुझ से हट नहीं रही थी।
होटल पहुँचे तो वहाँ साहब भी आये हुए थे, वो होटल के लॉन में कई लोगों से
घिरे हुए बैठे थे।
मैं सीधे होटल के अन्दर आ गई और जीजाजी के साथ कुर्सी पर बैठ गई।
होटल वाले ने आकर कहा- मैडम जी, साहब भी आये हुए हैं।
मैंने कहा- मैंने देख लिया है और उन्होंने भी हमें देखा है।
थोड़ी देर में साहब भी अन्दर आ गए और मेरे जीजाजी से हाथ मिला कर अपना
परिचय दिया। जीजाजी ने भी अपना परिचय दिया और वे बातें करने लगे, मैं
सिर्फ सुन रही थी। आज मुझे पता चला कि जीजाजी बोलने में कितने होशियार
हैं। उन्होंने साहब को भी प्रभावित कर दिया, मैं भी उनकी तरफ प्रशंसात्मक
दृष्टि से देखती रही।

तब होटल वाले ने कहा- आप सब खाना खा लीजिए।
तो साहब बोले- मैंने खाना अपने बंगले में बनवा लिया है, आप भी चलो, वहीं
खाना खाते हैं।
मैंने मना कर दिया, मुझे पता है कि वे मांस-मच्छी खाते हैं, मीणा हैं और
जीजाजी तो प्याज भी नहीं खाते।
फिर साहब चले गए और हम खाना खाने बैठे।
होटल मालिक भी हमारे साथ ही बैठा, उसने जीजाजी को बीयर को पूछा। मैंने
जीजाजी की तरफ देखा, जीजाजी ने मना कर दिया।
होटल वाला हंसा- कहीं आप साली जी से तो नहीं डर रहे हैं?
उन्होंने कहा- नहीं !
होटल वाला भी बड़ा आदमी था, उम्र में भी मुश्किल से 25 साल का था और मेरी
बहुत इज्जत करता था।
खाना खाने के बाद उसने पान का पूछा, उसको भी हमने मना कर दिया।
फिर उसने कहा- जीजाजी, आप मैडम के जीजाजी हैं तो हमारे भी जीजाजी हैं आप
आज यहीं सो जाओ मेरे होटल में ! मैडम का कमरा तो छोटा है !
तब मैं बीच में बोली- नहीं, वहाँ मकान मालिक का कमरा ख़ाली है, ये वही सोते हैं।

तो उसने कहा- ठीक है।
उसने खाना खाने आने के लिए जीजाजी को धन्यवाद दिया और कहा- कभी इधर आना
हो तो यहीं आना, आपका स्वागत है।
मुझे भी बड़ी ख़ुशी हुई उसका व्यवहार देख कर ! भले ही वो साहब के कारण था।
फिर हम वापिस अपने कमरे में आ गए। मैं अपनी मैक्सी लेकर बाथरूम में चली
गई बदलने के लिए, तब तक जीजाजी ने भी कपड़े उतार कर लुंगी लगा ली।
मैं भी कमरे में आई और बत्ती बुझा कर लेट गई।
मैंने कमरे में आते ही दरवाजा बंद कर दिया जबकि पिछली रात मैंने पूरा
दरवाज़ा खोल रखा था अपनी असुरक्षा की भावना के कारण।
और जीजाजी ने जबरदस्ती मेरी चूत चाटी तब दरवाजा खुला हुआ ही था पर मेरा
कमरा एक तरफ अलग को था कोई चल कर आये तभी आ सकता है।
जीजाजी ने जब मुझे पकड़ा तो कमरे की रोशनी तो वैसे भी बन्द थी और रात के
दो-ढाई बजे थे, किसी के देखने का कोई सवाल ही नहीं था, पर जब उन्होंने
मुझे चोदना शुरू किया तब उन्होंने गेट को थोड़ा ढुका दिया था। पर आज कोई
ऐसी बात नहीं थी इसलिए मैंने कमरे में आते ही दरवाजा बंद कर कुण्डी लगा
ली थी, जीजाजी उस बिस्तर पर एक तरफ लेटे हुए थे और एक तरफ मैं भी लेट गई।
मैंने जिंदगी में कभी सेक्स के लिए कभी पहल नहीं की थी, अगर वो चुपचाप
रात भर सोये रहते तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता और मैं भी आराम से सो
जाती।
मेरी सक्रिय यौन जीवन को काफ़ी साल हो चुके थे पर मैंने अपने पति से भी
कभी पहल नहीं की, सेक्स मुझे कभी अच्छा ही नहीं लगा था।
हाँ जब वो छेड़ना शुरू करते तो उनकी संतुष्टि कराते कराते कभी मुझे भी मज़ा
आ जाता पर मेरे लिए यह कोई जरुरी काम नहीं था।
मैं सीधी सो रही थी कि जीजाजी ने मेरी तरफ करवट ली और मुझे भी अपनी तरफ
मोड़ लिया और बांहों में भर लिया।
मैं थोड़ी कसमसाई, फिर मैंने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया। मुझे पता चल गया
था कि अब इनको नहीं रोक सकती, जहाँ मैं और वो तन्हाई में हैं तो मेरा
विरोध कोई मायने नहीं रखता, रात के अँधेरे में जब दो जवान जिस्म पास हों
तो सारे इरादे ढह जाते हैं।
अब मुझे दीदी नहीं दिख रही थी, जीजाजी नहीं दिख रहे थे दिख रहा तो मेरा
प्यारा आशिक दिख रहा था जिसने मुझे जिंदगी का वो आनन्द दिया था जिससे मैं
अब तक अनजान थी।
जीजाजी मेरे गले गाल और कंधे पर चुम्बनों की बौछार कर रहे थे, उन्होंने
कई बार मेरे लब भी चूसने चाहे पर मैंने उनका मुँह पीछे कर दिया, मुझे ओंठ
चूसना-चुसवाना अच्छा नहीं लगता था, एक तो मेरी साँस रुक जाती थी दूसरा
मुझे दूसरे के मुँह की बदबू आती थी।
जीजाजी मेरे सारे बदन पर हाथ फेर रहे थे। मैंने मैक्सी खोली नहीं थी, ना
ही ब्रेजियर खोला, वो ऊपर से ही मेरे छोटे छोटे नारंगी जैसे स्तन दबा रहे
थे, मेरे शरीर पर बहुत कम बाल आते हैं, मेरे साथ वाली लड़कियाँ पूछती हैं
कि मैंने हटवाए हैं क्या? जबकि कुदरती मेरे बाल कम आते हैं टाँगों पर तो
रोयें भी नहीं हैं थोड़े से जहाँ आते हैं वो ऊपर की तरफ ! चूत तो वैसे भी
मेरी चिकनी रहती है।
मेरे जीजाजी मेरे चिकने बदन की तारीफ करते जा रहे थे और हाथ फेरते जा रहे
थे। उनका हाथ मेरे चिकने बदन पर फिसल रहा था, मेरी मेक्सी कमर पर आ गई
थी, उनकी लुंगी भी फिसल कर हट गई थी, वे सिर्फ चड्डी पहने हुए थे।

फिर वे थोड़ा ऊँचे हुए और अपनी अंगुली से मेरा छेद टटोला और अपना सुपारा
छेद पर भिड़ा दिया।
मैंने भी उनके लण्ड को अपनी चूत में लेने के लिए अपनी चूत को ढीला छोड़ा
और थोड़ी अपनी गाण्ड को ऊँची की, मेरी दोनों टांगें तो पहले से ही ऊँची
थी।
जीजाजी ने अपने दोनों हाथ मेरे चूतड़ों के नीचे ले जाकर मेरी चूत को और
ऊँचा किया और एक ठाप मारी।
थूक से और मेरे पानी से गीली चूत में उनका लण्ड गप से आधा घुस गया। मुझे
थोड़ा दर्द हुआ क्योंकि मेरी चूत के पपोटे पिछली चुदाई की वजह से थोड़े
सूजे हुए थे। पर जब लण्ड अन्दर घुस गया तो फिर मेरा दर्द भी ख़त्म हो गया
और मेरे बदन में आनन्द की हिलोरें उठने लगी।
जीजाजी ने हल्का सा लण्ड पीछे खींचा और फिर जोर से धक्का मारा, मैं सिहर
उठी, उनका सुपारा मेरी बच्चेदानी से टकरा गया। उनका लण्ड झड तक मेरी चूत
में घुस चुका था, उन्होंने पूरा घुसा कर राहत की साँस ली और मैंने अपनी
चूत का संकुचन कर उनके लण्ड का अपनी चूत में स्वागत किया जिसे उन्होंने
अपने लण्ड पर महसूस किया। जबाब में उन्होंने एक ठुमका लगाया।
मैंने साँस छोड़ कर उनको स्वीकृति का इशारा दिया और उन्होंने घस्से लगाने
शुरू कर दिए। मैंने अपनी आँखों पर वहीं पड़ी अपनी चुन्नी ढक ली और आनन्द
लेने लगी, मुँह ढक लेने से शर्म कम लगती है।
और चुन्नी के अन्दर से उनको कभी कभी चूम भी लेती थी। उन्होंने कस कर दस
मिनट तक धक्के लगाये, फिर मेरी टांगें सीधी कर दी, अपने दोनों पैर मेरे
पैरों पर रख दिए और अपने पैर के अंगूठों से मेरे पैर के पंजे पकड़ लिए और
दबादब धक्के मारने लगे। दोनों पैर सीधे रखने की वजह से मेरी चूत बिल्कुल
चिपक गई थी और उनका लण्ड बुरी तरह से फंस रहा था।
थोड़ी देर में ही उन्हें पता चल गया कि इस तरह तो वो जल्दी स्खलित हो
जायेंगे तो उन्होंने फिर से अपने पैर मेरे पैरों से हटा कर बीच में किये
और मेरे कूल्हे पर हल्की सी थपकी दी। मैं उनका मतलब समझ गई और फिर से
अपनी टांगें ऊँची कर दी।
इतनी देर की चुदाई के बाद मेरा पानी निकल गया था और फिर उन्होंने अपना
लण्ड फिर से बाहर निकाला और अपनी थूक से भरी जीभ मेरी चूत पर फिराई।

मैंने कहा- धत्त ! बड़े गंदे हो ! अब वहाँ मुँह मत लगाओ !
तो उन्होंने कहा- पहले लगाया तब?
मैंने कहा- अब आपका लण्ड घुस गया है, अब नहीं लगाना !
उन्होंने कहा- मैंने पहले तेरी चूत चाटी, अब अपने लण्ड का भी स्वाद ले रहा हूँ !
पर मैंने कहा- नहीं अब आप मुझे चूमना मत !
उन्होंने कहा- मुझे तो चोदना है, चूमने की जरुरत नहीं है।

मैंने कहा- ठीक है !
एक बार फिर उन्होंने अपना लण्ड मेरी चूत में फंसा दिया। सुपारा घुसा तब
थोड़ा दर्द हुआ फिर सामान्य हो गया।
अचानक मुझे याद आया, मैंने पूछा- कंडोम लगाया या नहीं?
उन्होंने कहा- नहीं !
मैंने उचक कर कहा- तो फिर अपना लण्ड बाहर निकालो और कंडोम पहनो !
उन्होंने हंस कर कहा- अभी पहन लिया है, चैक कर लो !
मैंने कहा- मुझे आपकी बात का विश्वास है !
उन्होंने कहा- नहीं, चैक करो !
और चोदते हुए उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और मेरी अंगुलियों से अपने लण्ड को
छुआ दिया। कंडोम पहना हुआ थाम मेरी अंगुली आधे लण्ड को छू कर रही थी और
अंगुली से घर्षण करते हुए उनका लण्ड मेरी चूत में दबादब जा रहा था।
उन्होंने कहा- अपने हाथ से चूत पर पहरा रखो कि यह अन्दर क्या घुस रहा है !
मैंने कहा- मेरे हाथ से तो अब यह घुसने से नहीं रुकेगा !
हालाँकि उनके कहने से मैंने हाथ थोड़ी देर अपनी चूत के पास रखा। फिर मुझे
उनकी बातों से आनन्द आने लग गया और मैंने उनको कमर से पकड़ लिया।
करीब बीस मिनट से वो मुझे लगातार चोद रहे थे पूरी गति से ! उनके माथे से
पसीना चू रहा था जिसे वो अपनी लुंगी से पौंछ रहे थे पर कमर लगातार चला
रहे थे।मेरी चूत में जलन होने लगी थी और मैं उन्हें अपना पानी जल्दी
निकाल कर मुझे छोड़ने का कह रही थी। वे भी मुझे बस दो मिनट- दो मिनट का
दिलासा दे रहे थे पर उनका पानी छुटने का नाम भी नहीं ले रहा था।
मैंने उन्हें धक्के देने शुरू किये तो वो बोले- अपना पानी निकले बिना तो
लण्ड बाहर निकालूँगा नहीं ! और तू ऐसे करेगी तो मुझे मज़ा नहीं आएगा और
सारी रात मेरा पानी नहीं निकलेगा।
तो मैं डर गई, मैंने कहा- मैं क्या करूँ कि आपका पानी जल्दी निकल जाये?
तो वो बोले- तू नीचे से धक्के लगा और झूठमूठ की सांसें-आहें भर तो मेरा
पानी निकल जायेगा।मरता क्या ना करता ! उनके कहे अनुसार करने लगी। उन्हें
जोश आया और वे तूफानी रफ़्तार से मुझे चोदने लगे। अब वे भी कुछ थक गए थे
और अपना पानी निकालना चाहते थे। मेरी झूठ-मूठ की आहें सच्ची हो गई और
मुझे फिर से आनन्द आ गया, मैं जोर से झड़ने लगी और मैंने उन्हें जोर से
झकड़ लिया।
उनका सुपारा उत्तेजना से कुत्ते की तरह फ़ूल गया था, वे बिजली की गति से
धक्के लगा रहे थे, उनके मुँह से आह आह की आवाज़ें आ रही थी और मुझे चोदने
के साथ वो मेरी माँ को चोदने की बात भी कर रहे थे, साथ ही कह रहे थे-
साली आज तेरी चूत फाड़ कर रहूँगा ! बहुत तड़फाया है तूने साली ! बहुत मटक
मटक कर चलती थी मेरे सामने ! आज तेरी चूत लाल कर दूँगा तुझे और कोई आशिक
बनाने की जरुरत ही नहीं है, मैं ही बहुत हूँ !
ऐसी कई अनर्गल बातें करते हुए उन्होंने एक झटका खाया और मुँह से भैंसे की
तरह आवाज निकली।
मुझे पता चल गया कि जिस पल का मैं इंतजार कर रही थी, आखिर वो आ गया।
मैंने अपनी इतनी देर रोकी साँस छोड़ी। फिर भी उन्होंने धीरे धीरे आठ दस
धक्के और लगाये और मेरी बगल में पसर गए और गहरी गहरी सांसें लेने लगे।
वो पसीने से तरबतर हो गए थे, करीब तीस मिनट लगातार चुदाई की थी उन्होंने
! उन पर अब उम्र भी असर दिखा रही थी !
तो उनको अपनी उखड़ी सांसें सही करने में 4-5 मिनट लगे फिर 2-3 लम्बी लम्बी
सांसें लेकर वो बाथरूम की तरफ चले गए।
मुझ से तो उठा ही नहीं जा रहा था, मेरा कई बार पानी निकल गया था। जीजाजी
बाथरूम से वापिस आये और लेट गए। मैंने सरक कर उनके सीने पर अपना सर टिका
दिया क्यूंकि वो मुझे बहुत प्यारे लग रहे थे, उनका सीना अभी तक बहुत तेज
साँसें भर रहा था।

उन्होंने मुझे अपने ऊपर से हटा कर कहा- थोड़ी देर रुको, मैं थोड़ा दम ले लूँ !

मुझे थोड़ी हंसी आई और मैंने उन्हें कहा- बस थक गए?
वो बोले- हाँ, थक गया !
तो मैंने कहा- इसका मतलब आप बूढ़े हो गए हो !
मेरी वाचालता बढ़ती जा रही थी और वो मुस्कुरा रहे थे।
मैंने कहा- आज आपको हरा दिया मैंने ! देखो आप पसीने पसीने हो रहे हो और
मुझे कुछ नहीं हुआ है।
तब वे बोले- अभी तो छोड़ दो ! छोड़ दो ! की भीख मांग रही थी और अब बातें आ
रही हैं? अपनी मुनिया से पूछ !
तो मैंने कहा- यह कह रही है कि और डालो !
मुझे पता था कि अभी थोड़ी देर तो वो डालने से रहे !
फिर उन्होंने कहा- मैं आधे घंटे से तेरे ऊपर कूद रहा हूँ, ऐसा कर, तू दस
मिनट ऐसे धक्के मार कर दिखा दे तो मैं मान जाऊँगा तुझे !
मैंने कहा- यह काम आपको ही मुबारक ! हम तो नीचे वाले ही अच्छे !
फिर जीजाजी थोड़ी देर चुपचाप लेटे रहे, मैंने भी फिर उनको परेशान नहीं
किया, मैं भी चुपचाप एक तरफ लेटी रही। 5-10 मिनट बाद जीजाजी मेरी तरफ
घूमे और मेरी जांघों पर अपनी एक टांग रख दी !
मैं भी उनकी तरफ घूम गई ! फिर हम धीमी आवाज़ में बातें करने लगे, वे बार
बार मुझे चूम लेते थे, उनका चुम्मा कभी मेरे गाल, कभी माथे पर, कभी कंधों
पर, कभी मेरी चूचियों पर, कभी मेरा हाथ अपने मुँह के पास ले जाकर हथेली
को चूम लेते, यानि उनका चूमना चलता रहा, साथ ही उनका हाथ भी मेरे पूरे
चिकने शरीर पर फिसलता रहा कंधे से जांघों, पिंडलियों तक ! कभी कभी मेरी
मुनिया की फांकों को भी सहला देते पर मुझे उन्होंने पहले ही इतना निचोड़
दिया कि मेरी उनको ऊपर चढ़ाने का बिल्कुल मूड नहीं था !
फिर जीजाजी की सांसें भारी होने लगी, मैंने सोचा फिर चुदने का खतरा आया
और मेरा उस वक़्त तो क्या अगले दस दिन चुदने का मूड नहीं था। पिछले दो
दिनों से मेरा इतनी बार पानी निकला कि शायद अन्दर से सूख गया था इसलिए
चुदने के नाम से ही मेरी कंपकंपी छुट रही थी। वो तो मैं पहले यों ही उनको
छेड़ रही थी। उनके पहले दौर से ही मेरी मुनिया के अन्दर दर्द हो रहा था
जैसे छिल गई हो !
उनका लिंग चड्डी और लुंगी के ऊपर से ही मेरी कमर और पेट पर चुभ रहा था,
मैंने उनको मिन्नत भरे स्वर में कहा- आप अब मुझे सोने दें ! मैंने आपकी
सारी बात रखी अब आप भी मेरी बात रख लो आप सुबह जल्दी कर लेना !
मेरी आशा के विपरीत उन्होंने मेरी बात रख ली और कहा- ठीक है, तुम जो
कहोगी वही होगा मेरी जान !
और उन्होंने 2-4 लम्बी लम्बी सांसें ली अपनी उत्तेजना कंट्रोल करने के
लिए और मुझे छोटे बच्चे की तरह थपक थापक कर सुलाने लगे। फिर उनके प्रति
मेरा प्यार बढ़ गया, मैं भी छोटे बच्चे की तरह उनसे चिपक कर सोने की कोशिश
करने लगी। हम दोनों दो मिनट तो इतना चिपके कि बस पूछो मत जैसे एक दूसरे
में समां जायेंगे !
मुझे और जीजाजी को नींद आने लगी थी, हम सारी रात चिपक के सोते रहे ! सारी
रात जीजाजी अधनींदी अवस्था में मुझे चूमते रहे, मेरी चूचियाँ और जाँघों,
चूत पर हाथ फेरते रहे, दबाते रहे। उनका घुटना तो मेरी टांगों के बीच में
ही रहा और कभी कभी उनका घुटना मेरी चूत पर रगड़ खाता रहा जैसे जीजाजी
अपना घुटना भी मेरी चूत में डाल देंगे !
वो नींद में ही कभी मुझे अपने सीने पर खींच रहे थे, मेरी हल्की काया उनके
खींचने पर आधी तो उन पर हो ही जाती पर फिर नीचे सरक जाती, मुझे नींद में
ऐसा लग रहा था ! हमारी पिछली रात की भी नींद बाकी थी, दिन में सिर्फ झपकी
ही आई थी इसलिए वो और मैं ना चाहते हुए भी नींद ले रहे थे।
करीब चार बजे सुबह हम दोनों पूरी तरह से जाग गए थे और जीजाजी अब मुझे
पूरी तरह से सहला रहे थे, मैं भी थोड़ी थोड़ी पिंघल रही थी।

पर जब उन्होंने पूछा- अब ऊपर आ जाऊँ?
मेरे मुँह से फिर से ना निकल गई और वे मायूस हो गए।
मैंने उन्हें कहा- आपकी गाड़ी पौने सात बजे है और आपको अभी बाथरूम जाना
है, नहाना है ! मुझे भी आपके लिए चाय-नाश्ता भी तैयार करना है।
इतना सुनते ही वे मुझसे दूर हट गए, मुझे उनकी मायूसी अच्छी नहीं लगी,
मैंने सोचा वे फिर से कहेंगे तो मैं मान जाऊँगी या वे जबरदस्ती ही कर लें
!
पर वे तो एक तरफ हो गए, दस मिनट के बाद मैं ही बोली- चलो अब आपका इतना ही
मन है तो कर लो !
पर वे बोले- अब तुम्हारे बार-बार मना करने के कारण मेरा मूड ऑफ़ हो गया
है, अब मेरा लिंग बैठ गया है, अब यह नहीं उठेगा, इसको वक्त लगता है। उतना
वक्त है नहीं मेरे जाने में ! वर्ना मेरा नहाना, खाना सब लेट हो जायेगा।
मुझे उस दिन पता चला कि पुरुषों का भी मूड होता है।
जीजाजी उठ कर बाथरूम में चले गए, मैंने फटाफट उनके लिए परांठे बना दिए,
फिर वो नहा कर आये तब तक चाय तैयार कर दी। वो चाय-नाश्ता करके चलने लगे
तो कहा- तुम अगले हफ्ते मेरे घर आना, जागरण और हवन है ! मैं यह निमंत्रण
देने ही आया था।

मैंने कहा- ठीक है !
वे निकल गए !
करीब बीस मिनट बाद उनका फोन आया कि वे गाड़ी में बैठ गए हैं और गाड़ी चल दी है।
मैंने चहक कर पूछा- अबकी बार तो आपकी सारी इच्छाएँ पूरी हो गई ना? संतुष्ट हो ना !
वे बोले- मैं बहुत संतुष्ट हूँ ! मेरी ज़िन्दगी की ख्वाहिश पूरी हो गई,
तुझे बहुत बहुत धन्यवाद ! मैं तेरा गुलाम हो गया जान ! जो तू मांगे वो
हाज़िर है !
मैं हंस कर रह गई और कहा- मुझे कुछ नहीं चाहिए !
उन्होंने कहा- अब मेरे मोबाईल के सिग्नल जा रहे हैं, बाद में बात करूँगा !
मैंने कहा- ठीक है ! अब मैं भी नहाने जाऊँगी। ओ के !
फिर उन्होंने फोन काट दिया।
अगले 5-6 दिनों तक वे मुझसे दिन में कई बार बात करते रहे, मैं एक ही बात
कहती रही- उन रातों को भूल जाओ, अपन दोनों ने जो कुछ किया, गलत किया !
वे बार बार एक ही बात कहते- यह हमने नहीं किया, इश्वर ने ही कराया, हम तो
उसके हाथ की कठपुतलियाँ हैं, अपने हाथ में होता तो इतने साल क्यों लगते?
उनकी बात सही लगती पर फिर मैं कहती- अब नहीं करेंगे ! जो हो गया, सो हो गया !
मैं घर जाते ही दीदी से मिली, वो मुझे देख कर बहुत खुश हुई। घर पर बहुत
मेहमान आये हुए थे, पूरा घर भरा था !
मैं भी खाना खाकर छत पर चली गई, जागरण का कार्यक्रम वहीं था। जीजाजी
सामने भजन गाने वालों के पास बैठे हुए थे, मैं भी उनके परिवार की औरतों
में बैठी हुई थी।
छत पर बड़ा हाल और कमरा बना हुआ था, सामने काफी खुली छत थी जहाँ भजन का
कार्यक्रम हो रहा था।
जीजाजी की नज़रें सिर्फ मुझ पर ही जमी थी !
रात को एक बजे कार्यक्रम ख़त्म हुआ और सब लोग सोने चले गए ! काफी औरतें
हाल में और पुरुष बाहर छट पर सो गए।

मुझे, दीदी को और बच्चों को जीजाजी ने नीचे कमरे में सुला दिया और खुद
बाहर बरामदे में सो गए। मुझे डर था कि जीजाजी कुछ गड़बड़ न कर दें इसलिए
मैं कमरे में नीचे सो रही थी। वहाँ पास में मैंने अपने बेटे और जीजाजी के
बेटे-बेटी को सुला दिया। दीदी कमरे में तख्त पर सो गई। मैंने नीचे इतने
बच्चों को सुला दिया कि किसी और के आने की गुंजाइश ही ना रहे !
वैसे सब थके हुए थे और कोई हलचल नहीं हुई। सुबह हवन और दोपहर को बिरादरी
का खाना था जिससे 5 बजे तक निपट गए !
अब सब मेहमान अपने घरों को चल दिए थे, सिर्फ मैं रही थी ! मेरे
मम्मी-पापा, भाई भी वापिस अपने गाँव चले गए, मुझे चलने को कहा तो जीजाजी
ने कहा- यह कल आ जाएगी अभी इसको साड़ी दिलानी है।
शाम को उन्होंने कहा- चल, यहाँ मेरे रिश्तेदार रहते हैं, वहाँ घुमा कर लाता हूँ !
दीदी ने कहा- हाँ, इसे घुमा कर ले आओ !
मैं जीजाजी की बाइक पर बैठ गई, वो मुझे अपने रिश्तेदारों के घर घुमाने
लगे। जब भी हम किसी एक घर से दूसरे घर जाते वो बार-बार मुझसे कहते- आज
रात को मेरे पास आ जाना !
मैं बार बार मना कर देती- नहीं ! यह गलत है, जो हो गया उसे भूल जाओ !
जीजाजी बार-बार मेरी मिन्नतें करते- ऐसा मत करो ! मैं तुम्हारे बगैर मर
जाऊँगा ! और बार बार ब्रेक लगते ताकि मैं उनकी पीठ से टकराऊँ !
शाम गहरी हो गई थी, आखिर में वो अपने भांजे के घर ले जा रहे थे जो थोड़ा
शहर से बाहर था। फिर उन्होंने कहा- मुझे कुछ नहीं करना ! बस आइसक्रीम
खिला देना !
मुझे पता था वो चूत चटवाने का कह रह थे। यह कहानी आप HotSexStory.xyz
पर पढ़ रहे हैं।
मुझे फिर से वो बात याद कर नशा आना शुरू हो गया था !
पर मैंने कहा- अभी सर्दी है, जुकाम हो जायेगा !
तो वो बोले- वो गरम आइसक्रीम है ! अब तू नहीं मानी तो देख ले तुझे यहीं
से उठा ले जाऊँगा !
मैंने सोचा कि अब इतना तरसाना ठीक नहीं है, मैं उनकी पीठ से चिपकती हुई
बोली- चलो ठीक है ! पर सिर्फ आइसक्रीम ही खिलाऊँगी !

वे खुश हो गए !
भांजे के घर गए, वहाँ एक कमरे में उनके भांजे का छोटा बच्चा सो रहा था,
भांजे की पत्नी रसोई में थी। उस कमरे में घुसते ही वो पलंग पर बैठ गए और
मुझे अपनी जांघ पर बिठा कर चूम लिया। मेरी साड़ी पेटीकोट समेत ऊँची कर
चड्डी के ऊपर से ही चूत को चूम लिया।
कमरे में अँधेरा था तो सब उन्होंने कुछ सेकण्ड में ही कर लिया। मैं कमरे
से बाहर निकल गई, उनके भांजे की बहू से मिली और हम फिर अपने घर आ गए !
खाना खाया और जीजाजी ने इशारा किया कि मैं ऊपर हाल में सोता हूँ !
और हाल एक तरफ पलंग पर मेरे बेटे और अपने बेटे को कहा- सो जाओ !
और खुद हाल में चारपाई पर सो गए !
बाहर की ओर उनके एक और कमरा बना था, उसकी कुण्डी खुली रखी थी ताकि उसकी
जरुरत पड़े तो रात को कुण्डी नहीं खोलनी पड़े ! पर जीजाजी किस्मत के बहुत
तेज थे, इस बात की नौबत ही नहीं आई ! जीजाजी का बेटा थोड़ी देर में ही
नीचे चला गया कि मैं ऊपर नहीं सोऊँगा मैं तो अपनी मम्मी के पास ही
सोऊँगा।
तो दीदी ने कहा- तू अपने बेटे के पास जाकर हाल में सो जा ! तेरे जीजाजी
भी वहीं चारपाई पर सो रहे हैं, तुम माँ-बेटा पलंग पर सो जाना !
मैं चुपचाप आकर हाल में सो गई, मुझे हाल में सोता देख कर जीजाजी की तो
बांछें खिल गई !
उस हाल के साथ ही एक कमरा और बना हुआ था, उसका एक दरवाज़ा तो हाल में था
दूसरा नीचे सीढ़ियों की तरफ था, उस कमरे में मोटा गद्दा बिछा हुआ था !
मैं चुपचाप पलंग पर अपने बेटे के पास सो गई और दस मिनट में मुझे नींद भी आ गई।
करीब आधे-पौन घंटे बाद मुझे महसूस हुआ कि कोई मेरा सर सहला रहा है !
मैं जगी तो देखा कि जीजाजी खड़े खड़े मेरा सर सहला रहे थे। मुझे नींद आ रही
थी, मैंने उनको कहा- चुपचाप जाकर सो जाओ !
वो मुझे हाथ जोड़ने लगे, मैंने ध्यान नहीं दिया तो वो मेरा हाथ पकड़े-पकड़े
ही नीचे जमीन पर बैठ गए घुटनों के बल और नीची आवाज़ में मिन्नतें करने
लगे कि शाम को तो वादा किया था और अब मना कर रही हो !
मैं उठ कर एक तरफ सरक गई। पलंग काफी बड़ा था, मैंने कहा- चलो आ जाओ, यहीं सो जाओ !
पर वे बोले- यहाँ नहीं, अभी कहीं तुम्हारा बेटा जाग गया तो वो क्या
सोचेगा? मेरी मम्मी के पास मौसाजी क्या कर रहे हैं?
मैं फिर उनके साथ खड़ी हुई, वो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे हाल से जुड़े कमरे
की तरफ ले जाने लगे !
कमरे में और हाल में रोशनी बंद थी, जीजाजी के हाथ में मोबाईल था, उसकी
रोशनी में वो चल रहे थे। कमरे में जाते ही उन्होंने मुझे उस गद्दे पर
लिटा दिया, जो दरवाज़ा नीचे सीढ़ियों की तरफ जाता था, उसकी धीरे से कुण्डी
लगाई और हाल की तरफ जिसमें मेरा बेटा सो रहा था, ढुका दिया !
हाथ से मोबाईल को पास के आले में रखा, साथ में कंडोम भी था, मुझे पता चल
गया कि चुदना तो है ही ! मैं मानसिक रूप से तैयार होने लगी। मैंने मैक्सी
और पेटीकोट पहना था उसको मैंने कमर पर कर अपनी चड्डी उतार कर सिरहाने रख
ली ताकि अँधेरे में ढूंढ़ कर पहनने आसानी रहे !
जीजाजी ने पंखा पूरी गति में कर दिया और टटोलते हुए मेरे पास आये।तब तक
मैंने उनका आधा काम कर दिया था, चड्डी उतर कर दोनों घुटने खड़े कर दिए थे,
टटोलते ही सीधी नंगी चूत मिली उन्हें और वे उस पर टूट पड़े, उसे बुरी तरह
से चाटने लगे।
मुझे भी बड़ा आनन्द आ रहा था, मैंने कहा- जी भर कर आइसक्रीम खा लो ! फिर
बार बार मत कहना ! आज इसको पूरी खा जाओ।
वो बोले- यार, तेरी आइसक्रीम इतनी शानदार है कि इससे जी भरता ही नहीं है,
चाहे कितनी बार ही खाओ !
और वो मेरी चूत बुरी तरह से चाट रहे थे, काट रहे थे, अपनी जीभ को गोल कर
अन्दर घुसा रहे थे। मुझे बड़ा आनंद आ रहा था पर मुझे खतरे का अंदेशा भी
था कि कहीं दीदी न आ जाएँ या मेरा बेटा न जाग जाये !
दस मिनट हो गए उनको चूत चटाई करते हुए, मैं एक बार परमानन्द ले भी चुकी
थी, मैंने उन्हें रोका और कहा- अब आइसक्रीम बहुत हुई ! जो करना है फटाफट
कर लो !
वो जैसे यही सुनना चाहते थे, अपनी लुंगी हटाई, चड्डी को एक पैर में किया,
मेरी टांगे तो ऊँची थी ही, अपने लण्ड पर थोड़ा थूक लगाया और मेरी चूत में
एक झटके से पेल दिया, पर पूरा नहीं घुस सका, थोड़ा पीछे खींचा और साँस रोक
कर जोर का झटका मारा और जड़ तक अन्दर ठेल दिया।

मेरे मुँह से अटकते अटकते निकला- धी ..रे..आ..ह..दू.खे..!
और उन्होंने लाड से मेरे गाल थपथपा दिए और कहा- दुखता है? अब नहीं
दुखाऊँगा ! मेरी जान के दुख रहा है ! इस साले लण्ड ने मारी है, अभी रुक,
इसको मैं मारूँगा !
मुझे हंसी आई, मैंने आनन्द में आकर चूत में संकुचन किया और उनकी गति धीमी
पड़ गई, वो बोले- क्या करती हो? मेरे लण्ड को तोड़ोगी क्या? साली की चूत है
या गाण्ड की दरार ! इतनी कसी !
मुझे ख़ुशी हुई, मैंने कहा- मुझे चोदना है तो गाण्ड और लण्ड में जोर रखना
पड़ेगा ! वर्ना अंदर-बाहर नहीं कर सकते। यहाँ कोई नाथी का बाड़ा नहीं है,
यह मेरी छोटी सी प्यारी सी चूत है !
अब जीजाजी मुझे जोर जोर से चोद रहे थे !
अचानक मुझे कुछ याद आया कि ये मेरे कमरे पर मुझे घोड़ी बनने का कह रहे थे,
मैंने सोचा आज इनकी वो इच्छा तो पूरी कर दूँ !
मैंने कहा- थोड़ा रुको और इसे बाहर निकालो !
वो अपना लण्ड निकालते हुए बोले- क्या हुआ?

मैंने कहा- कुछ नहीं !
कह कर मैंने उस गद्दे पर उनकी तरफ पीठ कर दोनों घुटने मोड़ कर अपना सर
गद्दे पर टिका दिया और अपने चूतड़ थोड़े ऊँचे कर दिए। बस यह ध्यान रखा कि
कहीं ये अपना लण्ड मेरी कुंवारी गाण्ड में न फंसा दें जिसमें एक अंगुली
घुसने की भी गुंजाइश नहीं है।
पर शायद उनका ऐसा कोई इरादा नहीं था इसलिए उन्होंने थोड़ा मेरे कूल्हों को
ऊपर किया, मैं काफी ऊपर हो गई तो उन्होंने अपने हिसाब से मुझे थोड़ा नीचे
किया और आधा लण्ड पीछे से मेरी चूत में फंसा दिया।
वो अपनी उखड़ी सांसें सही कर रहे थे, उम्र उन पर अपना प्रभाव डाल रही थी !
पर मैं उर्जा से भरपूर थी और मुझे पता था ये थक भले ही जाओ पर रुकने का
स्टेमिना तो बहुत है इनमें और मुझे उनको जल्दी झाड़ना था क्यूंकि किसी के
आने का डर सता रहा था मुझे !
मैं खुद थोड़ा पीछे हुई और मैंने अपने आप को आगे-पीछे करना शुरू किया और
वो जितनी देर सीधे रहे, उसमें मैंने 7-8 धक्के लगा दिए !
मेरे धक्कों से उन्हें भी बहुत जोश आया और बोले- साली चुदाने को बहुत मर
रही है तो ले !
ऐसा कह कर वे मेरी पतली कमर को पकड़ कर तूफानी गति से धक्के मारने
लगे।उनकी कमर पीछे जाती तो वो हाथों से मेरी कमर को आगे की और धकेलते और
जब धक्का मारते तो कमर को अपनी और खींचते इस प्रकार जितना हो सके अपने
लण्ड को मेरी चूत में घुसा रहे थे।
5-7 मिनट के बाद मैं घोड़ी बने बने थक गई थी, मैंने कहा- अब मेरी चूत सूख
चुकी है, इसमें जलन हो रही है, जल्दी से अपना निकाल लो !
तो उन्होंने कहा- चलो सीधी लेट जाओ !
मैं सीधी सो गई। उन्होंने सीधा अपना मुँह मेरी चूत पर लगाया और ढेर सारा
थूक मेरी चूत में छोड़ दिया।
मैं चिहुंक गई- क्या करते हो? गंदे ! अब कोई मुँह लगाता है क्या?

वो हंस कर बोले- पहले जो लगाया था?
मैंने कहा- अब तो आपने इसकी चटनी बना दी, पहले तो तरोताज़ा थी ना !
वो बोले- इसमें क्या है, मैंने अपने लण्ड की खुशबू डाली है इसमें !
और फिर अपना लण्ड मेरी चूत में डाला, मेरी टांगे उठाई, उन्हें अपने कंधे
पर रखी और गपागप चोदने लगे।
मैं बिल्कुल दोहरी हो गई थी, मेरी चूत जितनी उनके लण्ड के पास हो सकती
थी, हो गई थी और वो हचक हचक कर मुझे चोद रहे थे।
मैं देवी-देवताओं को मना रही थी कि इनका पानी निकल जाए !
पूरा कमरा फचक फचक की आवाजों से गूंज रहा था और मेरे तीसरी या चौथी बार
पानी आ गया था। अब वे मुझे बोझ लग रहे थे, मैं कुछ रूआंसी होकर कह रही
थी- आप अपना डॉक्टर के पास जाकर इलाज करवाओ, आपको कोई बीमारी है जो इतनी
देर से छूटता है ! या आप पर बुढ़ापा आ गया है, अन्दर पानी ही नहीं है तो
छूटेगा क्या?
वो मेरी किसी बात पर ध्यान ना देकर दांत भींच कर सुपरफास्ट स्पीड से
धक्के लगा रहे थे अपने पंजे मेरे कूल्हों पर गड़ा कर !
फिर अचानक उनके शरीर ने एक झटका खाया, मुझे पता चला कि अब मेरी मुक्ति हुई !
उनके मुँह से लार निकल कर मेरे गाल पर गिरी और उन्होंने मेरे गाल चूम लिए।
7-8 धक्के धीरे धीरे और लगाए और.
और मैं कहना भूल गई कि जब घोड़ी के बाद उन्होंने मुझे चोदना शुरू किया, तब
कंडोम लगा लिया था !
जीजाजी ने अपना कंडोम निकाला, उसके मुँह पर गांठ लगाई और मुझे बताया- देख
कितना पाना आया है, तुम कह रही हो कि है नहीं !
मैंने कहा- इस गन्दी चीज़ को मुझसे दूर रखो और मुझे जाकर सोने दो !
उन्होंने भी गद्दे की सलवटें सही की, दरवाज़े की कुण्डी खोली और कंडोम को
कहीं छुपाया और चुपचाप सो गए !
यह थी मेरे जीजाजी के घर में मेरी पहली चुदाई ! सुबह जल्दी उठ कर मैं
नीचे चली गई, तब तक जीजाजी सो ही रहे थे, मेरा बेटा भी नींद में था।
नीचे जाते ही मेरा सामना दीदी से हुआ और वो कुछ गौर से मेरी तरफ देख रही
थी !

पत्नियाँ अपने पति के प्रति हमेशा शक्की रहती ही हैं !
उसे पता था कि सारी रात मैं उसी हाल में सोई रही थी जहाँ उसके पतिदेव सो
रहे थे पर मैंने अपने चेहरे पर ऐसे भाव ही नहीं आने दिए और कहने लगी- उस
लड़के ने तो सोने ही नहीं दिया, कभी उसको पानी पिलाओ, कभी पेशाब कराओ, मैं
तो परेशान हो गई !
मेरे ऐसे बात करने पर दीदी कुछ सामान्य हुई, उसने सोचा होगा कि इसका बेटे
इतना जग रहा था तो क्या हुआ होगा ! फिर उसने ऐसे विचार अपने मन से हटा
दिए और राजी राजी बातें करने लग गई !
मैंने भी चाय-नाश्ता तैयार किया और जीजाजी से बात तो क्या उनके सामने ही नहीं आई।
शाम को दीदी ने कहा- इसको साड़ी दिला कर लाओ और इसको कोई फार्म भरना है,
इसको पासपोर्ट साइज की फोटो खिंचानी है, वो सब भी करवा आओ !

मैं जीजाजी के साथ बाइक पर बैठ बाज़ार चली गई।
जीजाजी मुझे बाज़ार लेकर गए, रास्ते में उन्होंने कहा- आज सारे दिन तुमने
मुझसे बात क्यों नहीं की? यहाँ तक कि मेरे सामने भी नहीं आई !
मैंने कहा- आपको पता नहीं है, दीदी को शक हो गया था, बात करने से क्या
मतलब? आपका काम तो कर दिया ना !
तो वो मुस्कुराये और कहा- मेरा मन नहीं भरा, आज फिर करना पड़ेगा !
मैंने कहा- आपकी मांग बढ़ती ही जा रही है, यह गलत है। आपको पता है कि अगर
किसी को पता चल गया तो मेरी इज्ज़त मिटटी में मिल जाएगी। औरतों की सिर्फ
इज्ज़त ही होती है, पूरुषों को कई कुछ नहीं कहता, सब औरत को ही गलत
कहेंगे !
उन्होंने कहा- तुम चिंता मत करो, किसी को पता नहीं चलने दूँगा ! तुम हाँ तो कहो !
मैंने कहा- नहीं का मतलब नहीं अब !
वो फिर मिन्नतें करने लगे, मैंने थक कर कहा- ओ के, हाँ !

तो उन्होंने कहा- कब और कहाँ?
मैंने एक गाने की लाइन गा दी- देख के मौका, मारा चोक्का, दिल की बात बताई रे !
और कहा कि इस मामले में पहले से योजना बना कर नहीं चलता है, मौका मिलते
ही अपना काम निकल लो !
वे खुश हो गए, मुझे एक अच्छी और महँगी साड़ी दिलाई और कहा- अपनी दीदी को
इसकी कीमत कम बताना !
मेरी फोटो खिंचवाई और एक हम दोनों की साथ खिंचवाई !
फिर हम घर आ गए !
रात को फिर कमाल हुआ जीजाजी की किस्मत तेज़ रही। फिर मुझे उसी हाल में
सोना पड़ा, फर्क इतना हुआ कि अपने बेटे के साथ जीजाजी की छोटी बेटी को भी
मुझे साथ सुलाना था !
आज मैं जब ऊपर सोने आई तो मैंने मैक्सी के नीचे पेटीकोट और चड्डी पहनी ही
नहीं, ब्रेजरी की कसें भी खोल रखी थी, मुझे पक्का पता था जीजाजी छोड़ेंगे
तो नहीं !
मैं उन बच्चों को लेकर सो गई। दीवार की तरफ बच्चों को सुलाया और दूसरी
तरफ मैं सो गई। जीजाजी भी अपनी चारपाई पर आकर लेट गए।
मुझे थोड़ी देर में नींद आ गई !
करीब बारह बजे मेरी नींद खुली, जीजाजी मेरे सर के पास खड़े थे और मेरे
स्तन सहला रहे थे जोकि कसें खुलने के कारण बाहर ही थे।
मैं एकदम चमक गई, मैं उनका मुँह पकड़ कर अपनी आँखों के पास लाई, अँधेरे
में पता चल गया कि हाँ जीजाजी ही हैं, तो आश्वस्त हो गई।
वो थोड़ी देर सहला कर मेरा हाथ पकड़ कर मुझे उठाने लगे। मुझे वास्तव में
नींद आ रही थी, मैंने कहा- मुझे सोने दो और आप भी सो जाओ आज कुछ नहीं
करना !
तो उन्होंने धीरे से मेरा वाला गाना गया- देख के मौका, मारा चौक्का ! अभी
चोक्का मारने का मौका है ! फिर बार बार नहीं मिलेगा !
मैंने सोचा- चलो भाई, चुदना तो है ही, ऐसे तो ये छोड़ेंगे नहीं ! इनकी
किस्मत तो देखो कैसे बार-बार इनको एकांत मिल जाता है।
फिर से अँधेरे में उनके साथ रवाना हुई साथ वाले कमरे के गद्दे पर जाने के
लिए, उन्होंने करीब करीब मुझे उठा ही लिया था, मुश्किल से मेरी एक टांग
कभी कभी नीचे ज़मीं पर लग रही थी, बाकी तो वे मुझे अपने से लिपटाये हुए चल
रहे थे।
फिर मेरी मंजिल आ गई यानि की ज़मीं पर बिछा हुआ गद्दा ! यह कहानी आप
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उन्होंने कल वाला काम किया यानि कुण्डी लगाने और दरवाज़ा ढुकाने का, पंखा
पूरी गति पर कर दिया और मेरी बाहों में आ गए।
मैंने उनसे पूछा- यह कमरा और यह गद्दा सिर्फ चुदाई के काम ही आता है
क्या? यहाँ न तो कोई सोता है ना और ना इसका कोई और काम है? वे बोले- मेरी
जान, यह कमरा और यह गद्दा खास आपकी चुदाई के लिए ही तैयार करवाया है !

और मुझे चूमने लगे।
थोड़ी देर में मेरी मैक्सी कमर पर थी वे नीचे से हाथ डाल कर मेरे स्तन भी
दबा रहे थे, छोटे छोटे नारंगी के आकार के थे, उन्हें वो बुरी तरह से दबा
रहे थे, मुझे स्तन दबवाना अच्छा नहीं लगता है इसलिए मैंने उन्हें कहा- अब
बस करो ! दर्द हो रहा है !
क्यूँकि वे मेरे स्तन की भूरी घुंडियों को अपनी उंगलियों में मसल रहे थे।
उनके हाथ मेरे पूरे बदन पर घूम रहे थे, खास कर मेरी चूत पर ! वहाँ उनका
हाथ ज्यादा समय ले रहा था कभी उंगलियों से मेरी चूत के चने को मसल रहे थे
तो कभी एक अंगुली मेरी चूत में अन्दर-बाहर कर रहे थे। आनन्द से मेरी चूत
चिकनी हो रही थी, हालाँकि चूत की फांकें पिछलीचुदाई से सूजी हुई थी पर
उनके हाथ में जादू था। मेरी चूत की फ़ांकों में एक दिक्कत है कि कई दिनों
के बाद चुदाई होगी तो चूत कसी हो जाएगी जैसे कुंवारी हो और चूत की फांकें
सूज जाएगी जो कई दिनों तक सूजी रहेगी ! फिर 10-15 दिन तक चुदती रहेगी तो
सूजन उतर जाएगी। ऐसा कई बार मेरे पति से चुदाने पर होता ही था !
खैर थोड़ी देर में जीजाजी के होंठ मेरी चूत के द्वार पर थे ! वे पता ही
नहीं कब नीचे खिसक गए थे। मैंने भी अपनी टांगें उठा ली अपनी चूत आराम से
चटवाने के लिए !
वो अपनी जबान से पूरी चूत को चाट रहे थे और मेरी सूजी हुई चूत की फांकों
को आराम मिल रहा था जैसे उनकी थूक और लार का मरहम लग रहा था।

वे अपने
मुँह में मेरी चूत की फांकों और मेरे चने को चिभल रहे थे और 3-4 मिनट में
मेरा पानी छूटने लगा। मेरा सारा शरीर कांप रहा था, झटके खा रहा था।
उन्हें शायद पता चल गया था इसलिए उनके चाटने की गति बढ़ गई थी और अपनी जीभ
को कड़ी करके मेरी चूत के चने पर रगड़ रहे थे। दो चार झटकों के बाद मैं
शान्त पड़ गई, मैंने उनका कन्धा पकड़ कर रुकने का इशारा किया। पानी निकलते
ही औरत को अपनी चूत पर कुछ करना अच्छा नहीं लगता है !
मेरी आँखें बंद थी और आनन्द को महसूस कर रही थी जो स्खलन के रूप में निकला था।
मैंने उनको अपने पास खींचा और उनकी गर्दन पकड़ कर गालों पर चुम्मा देकर काट लिया !
वे उछल पड़े और बोले- साली, निशान लगाएगी? सुबह तेरी बहन को क्या जबाब दूँगा?
ऐसा बोल कर अपने गाल को हथेली से रगड़ कर निशान मिटाने लगे जो मेरे
दांतों से पड़ गया था।
अब मैं संतुष्ट थी, मैंने कहा- आपको आइसक्रीम खानी थी, खा ली ! अब मुझे
भी सोने दो और आप भी सो जाओ !
मुझे उनको छेड़ना था, मुझे पता है जिसका लण्ड खड़ा हो वो ऐसे नहीं छोड़ेगा
भले ही बलात्कार ही करना पड़े तो करेगा !
वे फिर से मुझे चूमते हुए बोले- मारोगी क्या मुझे? सारी रात हाथ में पकड़ा
बैठा रहूँगा मैं !
मैंने हंस कर कहा- चलो, जल्दी करो, इस चूहे को इसका बिल दिखाओ !
इतना सुनते ही उन्होंने अपने सुपारे को थूक से चिकना किया और मेरी चूत
में पेल दिया जो इंतजार ही कर रही थी उसका !
उनका लण्ड बहुत सख्त हो रहा था, मुझे ऐसा लगा जैसे पत्थर का हो, मुझे चुभ
रहा था पर उसकी रगड़ अच्छी भी लग रही थी। वे दनादन धक्के लगा रहे थे,
मेरी टांगें पूरी ऊपर थी, पंजे पीछे गद्दे को छू रहे थे जैसे मैं योग कर
रही हूँ !
वो पूरे जोर से धक्के मार रहे थे, पूरा लण्ड जड़ तक मेरी चूत में ठूंस रहे
थे, उनके आंड मेरी गांड से टकरा रहे थे, उनकी जांघें मेरे कूल्हों से
टकरा रही थी, पट-पट की आवाजें आ रही थी, उनका लण्ड मेरी चूत में दबादब
घुस रहा था, उनके मुँह से ऐसी आवाज़ आ रही थी जैसे कोई लकड़ी काटने वाला
कुल्हाड़ा चला कर लकड़ी काट रहा हो !
फिर वो हट गए, एक झटके में मुझे उठा दिया मैं कुछ सोच पाऊँ, तब तक तो
मुझे उल्टा कर दिया। मैं समझ गई कि पिछली रात घोड़ी बनकर इनको मज़ा दे दिया
है तो ये आज फिर बनायेंगे।
मैंने सोचा कि पुरुषों को ज्यादा मौके देना ही ठीक नहीं है, पर अब तो बनना ही पड़ा।
अब फिर मुझे पीछे से जबरदस्त धक्के लग रहे थे, मैं बार बार मुँह के बल
गिर रही थी पर मेरी कमर उनकी हथेली में पकड़ी हुई थी, मेरी चूत में दर्द
होने लग गया था, अब मैं उन्हें फिर से जल्दी निकालने की मिन्नतें कर रही
थी।
फिर उन्होंने मुझे सीधा लिटा दिया, दोनों टांगें सीधी रखी और फिर से मेरे
ऊपर छा गए, मेरी टांगों के ऊपर अपनी टांगें फंसा कर कूद कूद कर चोदने
लगे। उनके कूल्हे बिजली की गति से ऊपर-नीचे हो रहे थे, लण्ड पिस्टन की
तरह अन्दर-बाहर हो रहा था, मेरे मुँह से आह आह की आवाज़ें आ रही थी, उनकी
सांसें धौंकनी की तरह चल रही थी।
20-30 धक्के मारने के बाद उन्होंने मेरी टांगें फिर उठा कर अपने कंधे पर
रख ली और दे दनादन !
मैं बुरी तरह थक गई थी, मेरा स्खलन 3-4 बार हो चुका था, अब मुझे मज़ा नहीं
आ रहा था पर जानबूझकर आह उह मुमः की सेक्सी आवाज़ें निकल रही थी ताकि
जीजाजी को मज़ा आये और उनका निकल जाये।
मैं नीचे से ऊँची हो होकर चुदा रही थी, अचानक जीजाजी ने झटका खाया और
मैंने उनको धक्का दे दिया।

वो अचकचा गए कि क्या हुआ।
मैंने कहा- कोई इतनी देर ऐसे करता है क्या? मैं मर जाती तो?
मैं फटाफट वहाँ से उठी और लड़खड़ाते कदमो से बाथरूम में गई, काफी देर तक
ठन्डे पानी से अपनी चूत धोई और चुपचाप पलंग पर सो गई। जीजाजी की तरफ देखा
ही नहीं !
मैं जीजाजी के ही घर दो रात लगातार उन से चुद कर अगले दिन मैं वापिस अपने
पीहर चली गई। जीजाजी खुद मुझे अपनी बाइक पर बिठा कर पर बस में बिठाने आये
और मना करने के बाद थम्सअप की बोतल और काफी सारे फल लाकर दिए।
3-4 दिन के बाद मैं वापिस जयपुर चली गई अपनी ड्यूटी पर।
जीजाजी से मेरी रोज़ ही मोबाईल पर बात होती थी, उन्हें पता था कि जहाँ
मैं रहती थी, उस कमरे में बीएसएनएल के सिग्नल कम आते थे इसलिए उन्होंने
कहा कि वे मुझे दूसरा फोन लाकर देंगे जिसमें दो सिम लग जाएँगी और एक ऍम
टी एस की सिम ला देंगे जिससे आपस में मुफ़्त बात हो सकेगी।
मैंने उनसे सहमति जता दी।
फोन पर बात करते तो ज्यादातर उनका विषय सेक्स ही होता था।

धीरे धीरे मैं
भी उनकी बातों में रूचि लेने लग गई थी। वो अपनी सेक्स की बातें बताते कि
उन्होंने कितनी लडकियों के साथ सेक्स किया है और तो और उन्होंने बताया की
होली के दिनों में अपने दोस्तों के साथ उन्होंने कई बार गधियों को भी
चोदा था ! और कई बार लड़कों की भी गाण्ड मारी थी, मुझे नहीं पता था कि कोई
गाण्ड भी मार या मरा सकता है !
मेरे सेक्स-ज्ञान में वृद्धि हो रही थी पर मैं यह बात मान नहीं रही थी तो
उन्होंने कहा- क्या बात करती हो? औरतें तो कुत्ते से और घोड़े से भी चुदवा
लेती हैं या एक साथ दो-दो तीन-तीन आदमियों से चुदवा लेती हैं।
यह मैंने कहीं नहीं सुना था इसलिए मैं उनकी बातें किसी बेवकूफ की तरह सुन
रही थी जैसे पाँचवीं में पढ़ने वाले बच्चे को कोई बी.ए. के सवाल पूछ रहे
हो !
मैं बार यही कहती कि ऐसा थोड़े ही होता है !
तो जीजाजी ने कहा- अबकी बार मैं अपने मोबाइल में ऐसी फिल्में लेकर आऊँगा
तब तुम देख लेना।

मैंने कहा- ठीक है !
वैसे मैंने कई बार ब्लू फिल्म अपने पति के साथ देखी थी पर जानवरों वाली
बात मुझे हज़म नहीं हो रही थी।
वो मुझे फोन करते और और हमारी बातें काफी लम्बी चलती जिनमें वो बार बार
मेरी चूत चाटने का जिक्र करते, मेरे खयालों में उनका चूत चाटना आ जाता और
मेरी सांसें गर्म हो जाती, मुँह से सिर्फ हूँ हु की आवाज़ निकलती और वे
मुझे बातो से ही गर्म कर देते।
फिर फोन पर ही यहाँ वहाँ अपना बदन छूने का कहते पर मुझे अपने हाथ से ऐसा
करना अच्छा नहीं लगता ! पर मुझे अपने आप मज़ा लेने आता है, मैं तकिये को
खड़ा करके या सोफे की किनारे पर अपनी चूत रगड़ती, थोड़ी देर और मेरा स्खलन
हो जाता। यह तरीका मुझे बहुत पहले से आता था, पतिदेव तो साल-छः महीने में
आते थे तो कभी कभी चुदने का ख्याल आ ही जाता था तो ऐसे ही अपने को
संतुष्ट कर लेती थी पर 2-4 महीनों में एक बार !
चुदने की मन में बहुत ज्यादा तब आती थी जब ऍम सी आने का समय आता पर मैं
अपने को काबू में कर लेती थी। पर अब जीजाजी से रिश्ते बन गए तो ये तो
रोज़ ही फोन पर सेक्सी बातें करते तो 8-10 दिनों में मुझे तकिये की सवारी
करनी ही पड़ती। उन्हें भी यह बात पता चल गई इसलिए वो बात करते करते कहते-
अब तकिये को खड़ा कर ले और थोड़ा चूत के दाने को तकिये पर रगड़ ले !
ऐसे ही बातें करते 15 दिन बीत गए।
तब जीजाजी ने कहा- दीपावली में वहाँ से कब रवाना होना है, मुझे बता देना
ताकि मैं तुमसे एक बार वहीं आकर मिल लूँ और जो मैंने तुम्हारे लिए मोबाइल
और सिम ली है वो तुम्हें दे सकूँ !
मैंने बताया कि मैं उस दिन ऑफिस से गाँव जाने के लिए निकलूँगी तो जीजाजी
ने कहा- अपने पापा और मम्मी को पहले मत बताना कि इस दिन आऊँगी।
मुझे यह बात समझ नहीं आई पर मैंने कहा- ठीक है, नहीं कहूँगी !
और उन्होंने कहा- तो बस स्टैण्ड पर बारह बजे आ जाना !
मैंने कहा- ठीक है, मैं आ जाऊँगी !
साथ ही उन्होंने कहा- तुम मेहंदी लगा कर आना, मुझे तुम्हारे मेहंदी लगे
हुए हाथ बहुत अच्छे लगते हैं।
मैंने कहा- ठीक ! पर हम वहाँ थोड़ी देर ही मिल सकते हैं, फिर हम साथ ही बस
में बैठकर आ जायेंगे। आप अपना गाँव आये, तब उतर जाना और मैं अपने गाँव आ
जाऊँगी।
मेरा गाँव उनके गाँव से थोड़ा आगे है।

उन्होंने कहा- ठीक है।
मैं 12 बजे बस स्टैण्ड पहुँची तो वो वहाँ थे ही नहीं। मैंने उनको फोन
किया तो वो बोले- मैं स्टैण्ड के बाहर पहुँच गया हूँ, तुम भी इधर आ जाओ।
मेरे हाथ में जो बैग था, उसमें काफी सामान था इसलिए मैं उसे मुश्किल से
उठा कर चल रही थी पर बाहर जाते ही वे सामने मिल गए और मुझे देखते ही वो
देखते ही रह गए।
मैंने हरी साड़ी पहन रखी थी, काजल, बिंदी, मेहंदी, नेलपालिश यानि सब नखरे
कर रखे थे मैंने और मैं बहुत ही सुन्दर लग रही थी।
मुझे देख कर उनका मुँह खुला का खुला रह गया और मैं अपनी सुन्दरता पर कुछ
शरमाई और कुछ गर्व महसूस किया।
वे बोले- कहीं मैं बेहोश ना हो जाऊँ ! तुम मुझे इतनी सुन्दर लग रही हो !
मैंने कहा- यह मेरा बैग उठाओ, इसका बोझ लगेगा तो होश आ जायेगा।
और मैं हंस पड़ी ! मेरी खिलाहट सुन वे भी मुस्करा दिए !
फिर हम वहाँ से रवाना हुए तो मैंने पूछा- अब हम कहाँ चल रहे हैं?
तो उन्होंने कहा- मैंने एक होटल में कमरा लिया है, वहाँ चल रहे हैं।
मैंने कहा- आपका दिमाग ख़राब है? होटल में कैसे चल सकते हैं? किसी ने देख लिया तो?
वे बोले- तुम चिंता मत करो, यहाँ हमें कोई नहीं जानता, और होटल में भी
मैंने तुम्हें पत्नी लिखवाया है।
मैंने कहा- नहीं, मैं होटल नहीं जाऊँगी !
तो वो मिन्नतें करके बोले- एक बार चलो तो सही, चाहे वहाँ रुकना मत।

मैं बेमन से उनके साथ रवाना हुई !
हम एक सिटी बस में बैठे, हम आमने-सामने बैठे थे, जीजाजी ने चश्मा पहन रखा
था, मेरे सामने देखते ही उन्होंने आँख मार दी, मुझे अचानक एक पल के लिए
तो गुस्सा आ गया पर फिर याद आया कि आँख मारने वाला तो मेरा आशिक है, फिर
मैं मुस्कुरा दी।
होटल के सामने एक रेस्तराँ था, वहाँ हमने लस्सी पी, मुझे वैसे भी भूक लगी
हुई थी। रेस्तराँ वाले ने एक दस रूपये का सिक्का दिया जो जीजाजी ने मुझे
दे दिया।
मैंने पहली बार दस रूपये का सिक्का देखा था, मुझे बड़ा सुन्दर लगा था
जैसे सोने का हो !
सड़क पार करते ही होटल था, उसमें भी नीचे खाने का और फास्ट फ़ूड का स्थान
था और ऊपर रहने का होटल था। उसमें खास बात यह थी कि फास्ट फ़ूड वाले
रेस्तराँ से ही होटल में जाने की लिफ्ट थी।
जीजाजी का कमरा तीसरी मंजिल पर था, होटल पाँच मंजिल का था जिसमें
रिसेप्शन दूसरी मंजिल पर था। मुझे यह बड़ा अच्छा लगा कि मुझे रिसेप्शन के
सामने से नहीं जाना पड़ेगा।
हम दोनों लिफ्ट में चढ़े, जीजाजी ने 3 नंबर का बटन दबा दिया। लिफ्ट में हम
दो ही थे, लिफ्ट चलते ही जीजाजी मुझे पकड़ कर चूमने लगे।
मैंने कहा- मैं भागी नहीं जा रही हूँ, यहाँ छोड़ दो, कोई देख लेगा !
जीजाजी ने मुझे छोड़ दिया। लिफ्ट रुकी और जीजाजी ने कमरे का दरवाज़ा खोला
और हम कमरे में पहुँच गए।
कमरा ऐ.सी. था, ऐ.सी. टी.वी. सब चल रहे थे. बहुत ही शानदार कमरा था, बड़ा
सा पलंग, मेज-कुर्सी, अलमारी, अटेच्ड लेट-बाथ !
मैं सीधे फ्रेश होने बाथरूम में घुस गई। मैं बाथरूम से वापिस आई तो.

जीजाजी पलंग के पास खड़े थे !
मेरे बाहर आते ही उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में ले लिया और अपने सीने से
चिपका लिया। मैं भी किसी बेल की तरह उनसे लिपट गई। हम खड़े-खड़े जैसे एक
दूसरे में समाना चाह रहे थे। हम करीब दो मिनट ऐसे ही एक दूसरे से चिपके
खड़े रहे, जीजाजी ने मुझे इतनी जोर से अपनी बाहों में भींच रखा था कि मेरी
हड्डियाँ कड़कड़ाने लगी थी। आज हम पहली बार रोशनी में एक दूसरे की बाहों
में समाये थे इसलिए मुझे उनसे शर्म आ रही थी, मैं अपना मुँह उनके सीने
में छिपा रही थी और वे बार-बार मेरा मुँह ऊपर कर चूमने की कोशिश कर रहे
थे।
हम दोनों को एक दूसरे से चिपक कर खड़े होने में असीम सुख मिल रहा था जैसे
कई जन्मों के बिछड़े प्रेमी प्रेमिका मिले हों।
फिर हम अलग हुए, हमारे चेहरे से मिलने की ख़ुशी फ़ूट रही थी। अलग होकर हम
दोनों ने लम्बी और गहरी सांसें ली यानि इतनी देर जैसे हमारी सांसें ही
रुक गई थी हम दोनों मुस्कुरा रहे थे, कुछ शर्म आ रही थी तो नज़रें भी चुरा
रहे थे और एक दूसरे को छिपी नजरों से देख रहे थे।
मेरे जीजाजी की नजरो में मेरे लिए प्रंशसा और चाहत का भाव था और मैं भी
उन्हें खुश होकर देख रही थी। मेरा विचार था कि मैं थोड़ी देर रुक कर गाँव
चली जाऊँगी !
फिर उन्होंने अपना बैग खोल कर अपनी लुंगी बाहर निकाली और अपने कपड़े
उतारने लगे। उन्हें कपड़े उतारते हुए कुछ शर्म आ रही थी इसलिए मैंने टीवी
चालू कर लिया और फिल्म देखने लगी, मेरी मनपसंद फिल्म 'जब वी मेट' आ रही
थी।
जीजाजी ने अपने कपड़े हेंगर पर टांगें और बाथरूम में चले गए। थोड़ी देर में
वापिस आये और मेरे पास आकर पलंग पर बैठ गए, मुझे फिर से बाहों में लेकर
चूमने लगे।
मैंने शरारत से कहा- इतनी अच्छी फिल्म आ रही है, देखने दो ना !
वो मुझे अपनी तरफ झुकाते अभी इससे भी अच्छी फिल्म हम बनाते हैं !
मैंने कहा- रुको, मेरी साड़ी में सलवटें पड़ जाएँगी !
उन्होंने कहा- यह बात तो सही है, फटाफट उतार देते हैं और कुछ पलो में
मेरी साड़ी जीजाजी के हाथ में थी।
जीजाजी मेरी साड़ी वार्डरोब में रख दी और मेरे बैग से मेरी सेक्सी मैक्सी
निकाल कर मुझे देते हुए कहा- चलो, फटाफट यह पहन कर आओ !
मैंने कहा- इसे पहननी क्या जरूरी है? ऐसे ही आ जाओ ना ! कुछ भी पहनो उसे
तो उतरना ही है। यह कहानी आप HotSexStory.xyz पर पढ़ रहे हैं।
पर उन्होंने कहा- नहीं, इसमें तुम बहुत सेक्सी लगती हो, इसे ही पहन कर आओ
! और नीचे पेटीकोट और चड्डी मत पहनना ! वैसे भी उनकी कोई जरुरत नहीं है।
ऐसा कहते हुए उन्होंने जबरदस्ती मुझे पलंग से नीचे खड़ा कर दिया। मैं
मैक्सी लेकर बाथरूम में गई क्योंकि उनके सामने मुझे शर्म आ रही थी और
अपने कपड़े बदले, पेटीकोट तो नहीं पहना पर चड्डी तो पहनी।
मैं बाहर आई तब तक वे पलंग पर लेट गए थे और बेसब्री से मेरा इंतजार कर
रहे थे। मैं उनके पास गई तो उन्होंने अपनी बाहें उठा कर मेरा स्वागत
किया। मैं भी उनकी बाहों में समां गई!
अब वे मुझे बुरी तरह से चूम रहे थे, उनके हाथ मेरे सारे शरीर पर घूम रहे
थे। मेरी मैक्सी कुछ ही पलों में मेरी कमर पर पहुँच गई थी, मैं शरमा कर
उसको बार-बार नीचे करने की असफल कोशिश कर रही थी !
वे मेरी पीठ की तरफ हाथ डाल कर मेरी ब्रेजरी के हुक खोलने की कोशिश कर रहे थे।

मैंने कहा- क्या हुआ? आपसे एक हुक भी नहीं खुला?
उन्होंने कहा- अभी खुल जायेगा, खुलेगा नहीं तो टूट जायेगा।
मैंने कहा- तोड़ना मत प्लीज ! नहीं तो आपको दूसरी दिलानी पड़ जाएगी।
मैं थोड़ी देर बिना हिले रही और उन्होंने उसे खोल दिया और मुझे सीधा करके
मेरे स्तन दबाने लगे। उन्होंने मेरी मैक्सी काफी ऊपर कर मेरे स्तनों को
नंगा कर दिया जो छोटे छोटे नारंगी के आकार के थे। वे उन्हें सहला रहे थे,
उनकी भूरी घुन्डियों को अंगूठे और अंगुली से मसल रहे थे। मुझे भी आनन्द आ
रहा था, मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी। मैंने उन्हें कहा- आपने कई
बार मेरे स्तनों की मांग की थी, अब ये आपके सामने हैं, जो करना है कर लो
इनका !

वे मसलते हुए बोले- हाँ, बहुत तड़फाया है इन्होंने ! इतना तो तेरी चूत ने
भी नहीं तड़फाया।
तो मैंने हंस कर कहा- तो क्या करोगे इनका? कही उखाड़ मत ले जाना इनको !
वे बोले- इतनी प्यारी चीज को प्यार करूँगा !
और सीधे मेरे स्तनों पर मुँह लगा दिया और उन्हें चूसने लगे।
मैं सिहर गई, मेरे सारे शरीर में आनन्द की तरंगें उठने लगी !
वो बारी बारी से दोनों को चूस रहे थे, एक चूसते, तब तक दूसरे को हाथों से
दबाते और फिर उन्होंने अपना मुँह पूरा खोल कर मेरे पूरे स्तन को मुँह में
भर लिया और उसे साँस के साथ और अन्दर खींचने लगे। मेरा स्तन उनकी साँस के
साथ उनके मुँह में खींचा जा रहा था और मुझे आनन्द आ रहा था।
आज हम दोनों बिना किसी डर से सेक्स कर रहे थे इसलिए बहुत ज्यादा आनन्द आ रहा था।
मैंने कहा- अब इन्हें छोड़ो, कोई और आपकी जीभ का इंतजार कर रहा है।
उन्होंने स्तन छोड़े, फटाफट मेरी चड्डी उतारी, मेरे पाव खड़े कर उन्हें
थोड़ा चौड़ा किया और सीधे मेरी चूत में अपना मुँह घुसा दिया !
मैं पहले से ही स्तन चुसवा कर गर्म हो गई थी, अब मेरी किलकारियाँ निकल
रही थी। कमरे में ए.सी. टी.वी. पंखे सब चल रहे थे, दरवाज़ा बंद था और
साऊँड प्रूफ भी था इसलिए में खुल कर आ.ह आ..ह कर रही थी, उनकी सधी हुई
जीभ मेरी संवेदना को जगा रही थी। उनके चूत चूसने का ढंग निराला है, वे
काफी पूर्वक्रीड़ा करते हैं, अपने पर उनका गज़ब का काबू है।
थोड़ी देर में मैं स्खलित हो गई, मैंने उनको रोक दिया पर उनका मन अभी चूत
चाटने से भरा नहीं था इसलिए थोड़ा रुक कर फिर से अपनी जीभ मेरी चूत में
घुसा दी। मेरी सिसकारियाँ फिर शुरू हो गई। आज मुझे पता चला कि बिना डर के
सेक्स में कितना मज़ा आता है।
वो फिर मेरी चूत को बुरी तरह से चूस रहे थे जैसे स्तन को मुँह में भरा
वैसे मेरी सारी चूत को काफी हद तक मुँह में भर रहे थे ! मुझे फिर आनन्द
की तरंगें मेरे बदन में महसूस हो रही थी, मैंने उन्हें कहा- जाओ अपन मुँह
बाथरूम में धोकर आओ और कुल्ला भी कर आओ, बस बहुत हो गया यह चाटना और
चूसना ! अब आगे की कार्यवाही करो !
मैंने जितनी देर चूत चटवाई, मैक्सी को शर्म से अपने मुँह पर रखी थी मुझे
शर्म आ रही थी और जीजाजी आज तीन ट्यूबलाईट की रोशनी में आराम से मेरी चूत
को देख रहे थे। हालाँकि मैंने उन्हें कई बार लाईट बंद करने कहा जिसे
उन्होंने अनसुना कर दिया।
वे बाथरूम में मुँह धोने गए मैंने दीवार पर टंगी घड़ी में समय देखा तो एक
बजकर पचास मिनट हुए थे।
कुछ ही पलों में जीजाजी आ गए, अपनी लुंगी और चड्डी खोली और मेरी टांगें
अपने कंधे पर ली अपने लण्ड के सुपारे को थोड़ा थूक से चिकना किया, मेरी
चिकनी चूत में सरका दिया।
मैं मैक्सी मुँह पर ढके ढके ही कराह उठी- आ.ह्ह्ह्हह
थो.डा.धी.रे.. डालो दुखता है !
उन्होंने सहमति जताते हुए मेरी गाण्ड थपथपा दी और फिर उन्होंने मेरे
चेहरे की तरफ देखा और बोले- यह चेहरा क्यूँ ढक रही हो? आज तो मैं चुदते
हुए तेरे चेहरे के भाव देखूँगा। ऐसा कह कर मेरे चेहरे से जबरदस्ती मैक्सी
को हटा दिया। मुझे उनके सामने देखने में शर्म आ रही थी इसलिए मैंने पलंग
पर पड़े होटल वाले तौलिये को अपने मुँह पर ओढ़ लिया पर आज जीजाजी किसी
समझौते के मूड में नहीं थे, उन्होंने मुझ से चोदते चोदते ही तौलिया छीना
और दूर सोफे पर फेंक दिया। अब मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और जीजाजी मेरे
गालों, आँखों की बंद पलकों और होटों को चूमने लगे।

कमर उनकी लगातार चल रही थी !
अब मेरी चूत ने भी उनका लण्ड अपने अन्दर खपा लिया था इसलिए मुझे दर्द
नहीं हो रहा था और दनादन अन्दर-बाहर हो रहा था !
थोड़ी देर में उन्होंने आसन बदल लिया, मेरी टांगें सीधी कर दी और मेरे
पैरों पर अपने पैर जमाकर कूद-कूद कर मुझे चोदने लगे। थोड़ी देर के बाद
मुझे घोड़ी बना दिया और पीछे से मेरी रगड़पट्टी करने लगे। फिर पलंग के
किनारे पर घोड़ी बनाया और पंलग से नीचे खड़े हो कर पीछे से चोदने लगे।
फिर वापिस मुझे पलंग पर लिटा दिया। मुझे पता था आज इनको कोई डर नहीं है
इसलिए मेरी चुदाई लम्बी चलेगी।
मैं भी शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार थी इसलिए मैं उनको कुछ नहीं कह
रही थी, बस चुदा रही थी, जैसे वे मुझे इधर-उधर कर रहे थे, मैं हो रही थी।
और वो लगातार बस चोद रहे थे, और चोद रहे थे।
ए.सी. चल रहा था, तो भी उन्हें पसीने आ रहे थे जिसे वे बार बार पास पड़ी
लुंगी से पौंछ रहे थे, खासकर उनके ललाट और गर्दन के पास ज्यादा पसीना आ
रहा था।
ना जाने कितने आसन बदले, उन्होंने मुझे जैसे रुई की गुड़ीया समझ लिया हो
पर मैं भी उन्हें मज़ा दिलाना चाहती थी इसलिए मैंने उन्हें रोका नहीं !
मेरा पानी ना जाने कितनी बार निकला था, मुझे याद नहीं ! कम से कम 7-8 बार
तो निकला ही होगा !
थोड़ी देर बाद मुझे फ़िर मज़ा आने लगता और मेरी चूत गीली हो जाती ! ऐसा कई
बार हुआ और फिर उनका स्खलन हुआ !
उनके मुँह से भैंसे के डकारने जैसी आवाज़ें निकली और स्खलन होते होते
उन्होंने धीरे धीरे 15-20 झटके और लगाये, फिर हटे, अपना कंडोम हटाया।
मैंने घड़ी की तरफ देखा 2 बज कर 40 मिनट !
इसका मतलब इन्होने पूरे 50 मिनट मेरी चुदाई की ! आसन बदलने में कोई 5
मिनट बिताये होंगे तो भी 45 मिनट मेरी चुदाई हुई थी, जो कभी धीरे, कभी
मंथर गति से और कभी खूब तेज़ चली थी।

मैं अर्ध बेहोशी में पहुँच गई थी।
वे बाथरूम से वापिस आये और मुझे खड़ा करके कहा- बाथरूम जा कर आओ।
मैं बाथरूम में चूत धोकर आई और पलंग पर लेट गई और कहा- मेरा गाँव जाने का
पूरा कार्यक्रम खराब कर दिया ! आपने इतनी देर चुदाई की कि मेरी गाड़ी भी
चली गई और मुझे चलने लायक नहीं छोड़ा।
वे हंसने लगे, कहा- आज मेरे मन माफिक चुदाई हुई है, हम गाँव कल चलेंगे,
आज की रात अभी बाकी है जान। तुम आराम करो, मेरे मोबाईल में सेक्सी
फिल्में देखो, मैं अपने एक दोस्त से मिलकर आ रहा हूँ !
मैंने कहा- ठीक है !
वे बाहर गए, मैंने दरवाज़ा बन्द किया, कुण्डी लगाई और पलंग पर लेट गई और
थोड़ी देर बाद सामान्य होने के बाद मोबाईल में सेक्सी फिल्में देखने लगी
और जीजाजी के स्टेमिना के बारे में सोचने लगी कि इतनी मैराथन चुदाई कर वे
बाहर चले गए और मैं उठ भी नहीं पा रही हूँ !
वे बिल्कुल तरोताज़ा बाहर गए हैं। जीजाजी के जाने के बाद मैं मोबाईल पर
सेक्सी वीडियो देखने लगी। इन वीडियो को देख कर मैं हैरान रह गई !
उनमें एक लड़की के साथ कई लडकों की, बलात्कार की फिल्में, गुदा मैथुन,
लड़कियों द्वारा आपस में सेक्स और मैं यहाँ जिस चीज का जिक्र नहीं कर सकती
उनका सेक्स ! मैं तो अचंभित रह गई कि मैं कुएँ का मेंढक रह गई !
इस दुनिया में ऐसा ही होता है क्या?
जीजाजी का मोबाईल इन फिल्मों से भरा था, मुझे उनको देखने में ज्यादा मज़ा
आया जिसमें किसी लड़की को नींद की गोली खिला कर कोई सेक्स करता था !

जीजाजी कोई 6 बजे तक आये तब तक मैं वे फिल्में ही देखती रही और पिछली 45
मिनट की चुदाई का दर्द भूल कर मैं फिर से गर्म हो गई। अब मुझे उस होटल
में ठहरने का कोई डर नहीं लग रहा था क्यूंकि किसी के सामने से तो मैं
कमरे में आई नहीं थी और अब मुझे यहाँ मस्ती से चुदाई कराने का आनन्द भी
मिलना था इसलिए जब जीजाजी ने दरवाज़े की बेल बजाई तो मुझे बड़ी ख़ुशी हुई
पर सावधानी वश मैंने पूछा- कौन है?
जीजाजी की आवाज़ आई- मैं ही हूँ !
तो मैंने फटाफट दरवाज़ा खोल दिया और जीजाजी ने अन्दर आकर दरवाज़े को कुण्डी
लगा कर बन्द कर दिया।
जीजाजी ने मुझे वीडियो देखते देखा तो मुस्कुरा दिए और पूछा- कैसे लगी?
मैं काफी गर्म हो चुकी थी, मेरा चेहरा लाल-भभूका हो रहा था और मैं उन्हें
देख कर मुस्कुरा रही थी, मैंने कहा- देखो, ये वीडियो मुझे तो बनावटी लग
रहे हैं, इतनी छोटी लड़की इतने बड़े आदमी से कैसे चुदवा सकती है?
उन्होंने हंस कर कहा- जैसे तुम मुझसे चुदवाती हो ! पता है तुम मुझसे
16-17 साल छोटी हो। वैसे भी यह लड़की 18 की है और 34 साल वाले से चुदवा
रही है।
मैंने कहा- आप देखो तो सही, इसे कितना दर्द हो रहा होगा !
और मैं उनको अपने पलंग पर वीडियो दिखने के बहाने बुला रही थी ताकि वे भी
उसको देख कर मुझे मसल दें। मुझे पता था कि उनके तो ये सारे वीडियो देखे
हुए होंगे ही पर मेरी चूत पनिया गई थी और वो लण्ड मांग रही थी !
मैंने कभी अंगुली आदि नहीं की थी, वो मुझे पसंद भी नहीं था, मैं चाहती थी
कि जीजाजी मुझे चोद कर ठंडा कर दें !
आज होटल के कमरे में मेरी वासना पूरे उफान पर थी ! जीजाजी शायद मेरी
प्यास समझ गए थे उन्होंने फटाफट कपड़े खोल कर लुंगी लगाई और पलंग पर आकर
मुझे बांहों में भींच लिया।
मैंने वीडियो बंद नहीं किया था, उसमें से सेक्सी आवाज़ें आ.ह्ह्ह्हह्ह
उ.ह्ह्ह्हह्हह्ह्ह या...फक..मी.. आदि आ रही थी और उसमें वो आदमी
उस लड़की को बुरी तरह चोद रहा था।
मैंने जीजाजी की तरफ मोबाईल किया तो वो बोले- इसे तुम्हीं देखो, मैं तो
असली देखूँगा !
और वो मेरी चूत के पास सरक गए, मैं मोबाईल में वीडियो देखती रही और उनके
हाथ मेरी टांगों के पास लगते ही टांगे खुदबखुद चौड़ी हो गई ! जीजाजी के
होंट सीधे मेरी चूत की फांकों पर पहुँच गए, आनन्द के अतिरेक से कुछ क्षण
के लिए मेरी आँखे बंद हो गई और मेरे मुँह से सिसकारी निकल गई ! मुझे पता
था कि मैं इतनी गर्म हो गई हूँ कि उनके चाटने से जल्द ही मेरा पानी छुट
जायेगा !
उनकी अनुभवी जीभ और होंट मेरी चूत में चल रहे थे, उन्होंने कई बार साँस
के साथ मेरी पूरी चूत को अपने मुँह में भर लिया था तथा बार बार अपनी जीभ
मेरे चूत के दाने पर रगड़ रहे थे और तभी अचानक मेरी पनियाई चूत से पानी का
बांध टूट गया और मैं झटके खा कर शांत हो गई। पिछले दो घंटों से जो सेक्सी
वीडियो देखने से मेरे दिमाग में तनाव था वो शांत हो गया, मैं अभी झटके
खाती रुकी ही थी की कपड़ों की सरसराहट सुनकर देखा कि जीजाजी लुंगी हटा रहे
हैं और अपनी चड्डी नीचे कर रहे हैं।
मैंने कहा- अब आप क्या कर रहे हो? अभी मत करो, सारी रात पड़ी है। पहले
नीचे खाना खाने चलेंगे !

जीजाजी ने कहा- मैं सिर्फ सूखी चुनाई करूँगा !
मैंने कहा- यह क्या होती है?
तो उन्होंने बताया कि तुम्हें चाटते चाटते मेरे खड़े लण्ड में दर्द होने
लगा है इसलिए इसे भी तुम्हारी चूत में डालूँगा और अपना पानी नहीं
निकालूँगा, बिना पानी निकाले ही 8-10 मिनट तुम्हारी चुदाई करूँगा ! यह
कहानी आप HotSexStory.xyz पर पढ़ रहे हैं।
मेरे लिए यह नया अनुभव था कि कोई आदमी चोद कर बिना पानी निकाले कैसे रह
पायेगा ! मैंने कहा ऐसा करो- कंडोम लगा लो ! क्या पता पानी छुट गया तो
मुझे परेशानी हो जाएगी कि इसका पति यहाँ नहीं है और बच्चा कहाँ से आ गया
!
वो हंस कर बोले- चिंता मत करो, पानी निकलने का कंट्रोल मेरे दिमाग में
है। मुझे पता है कि 5 मिनट में पानी निकालना है या आधे घंटे में या
निकालना ही नहीं, ऐसे ही सूखी चुनाई करनी है।
मैं निरुत्तर हो गई ! मुझे अपने जीजाजी के स्टेमिना के बारे तो पता था
ही, मैंने अपनी टांगें ऊँची कर दी और फिर से वो चुदाई का वीडियो देखने
लगी। जीजाजी ने मेरी टांगें अपने कंधे पर रखी और अपने लण्ड पर थूक लगा कर
मेरी चिकनी और सूजी हुई चूत में पेल दिया।
जब लण्ड सूजी फाड़ों से लगा तो थोड़ा दर्द हुआ और लण्ड जब उस बाधा को पार
कर लिया फिर जड़ तक पहुंच हो गया मैं आनन्द और दर्द से कराह उठी !
और आपको तो पता ही है औरत की चुदते हुए कराहने की आवाज़ से आदमी को चोदने
का हौसला बढ़ जाता है, वो ज्यादा जोश में धक्के लगता है।
जीजाजी ज्यादा जोर से धक्के लगते जा रहे थे और मुझे पुचकारते भी जा रहे
थे, कह रहे थे- दुखता है? धीरे डालूँ?
मेरे गाल पर लाड से हाथ भी फेर रहे थे, मुझे तो मज़ा आ रहा था, मैंने कहा-
नहीं, जोर जोर से ही चोदो ! मेरे फिर से पानी निकलने को है।
वे बोले- मुझे पता है, चाटने से ज्यादा पानी चोदने से निकलता है इसी लिए
तेरी चुदाई कर रहा हूँ, चाटने से तो ओवर फ्लो का पानी ही निकलता है और
चोदने से ही असली पानी निकलता है।
मैं हैरान थी उन्हें इतना गूढ़ ज्ञान कहाँ से मिला !
5-7 मिनट में ही मेरी किलकारियाँ निकलने लगी थी, मैंने मोबाईल पास में
डाल दिया था, उसे कोई देख भी नहीं रहा था पर फिर भी बेचारा आ.ह्ह्ह्ह
ओ.ह की आवाज़ें दे रहा था। मेरी आँखें बंद थी, मेरा दिमाग बस मज़े की
तरफ था, जीजाजी मेरी गाण्ड को कस कर पकड़ कर दबादब धक्के मार रहे थे, मैं
भी नीचे से उछल-उछल कर उनका लण्ड अपनी चूत में पूरा ले रही थी, मेरी चूत
ने पानी छोड़ दिया और मैं शांत हो गई।

मुझ शांत देख कर जीजाजी ने अपना लण्ड बाहर निकाल कर लुंगी लपेट ली
हालाँकि लुंगी तम्बू की तरह हो रही थी।
वे बोले- अभी बाथरूम जाऊँगा तो धीरे धीरे यह बैठ जायेगा।
और वे बाथरूम में चले गए। मैंने मोबाईल देखा, उसमें वो आदमी अपने वीर्य
से उस लड़की को नहला रहा था, मुझे बड़ी घिन आई और मैंने मोबाईल बंद कर
दिया !
मुझे वीर्य देखना कभी अच्छा नहीं लगता था और आज जीजाजी ने अपना वीर्य
निकाले बिना मुझे चोदा तो मैं बहुत खुश हुई !
थोड़ी देर में वे बाहर आये, अब वे शांत लग रहे थे, उन्होंने कहा- अब फ्रेश
होकर कपड़े पहन लो, खाना खाने चलते हैं।
कमरे में तो यह पता ही नहीं चल रहा था की दिन है या रात पर घड़ी 7 बजा
रही थी और मैं फटाफट नहाने चल दी। नहाने के बाद मैंने पूरी राजस्थानी
ड्रेस पहनी घाघरा, लुगड़ी आदि और जीजाजी के साथ लिफ्ट से नीचे खाना खाने
चल दी।
जीजाजी ने खाना खाते हुए मुझे कहा- जितनी भूख हो उससे खाना कम खाना,
सेक्स में आनन्द आएगा।
यह ज्ञान भी मेरे लिए नया था कि पेट थोड़ा कम भरना चाहिए जब चुदना या चोदना हो !
मैंने कहा- मुझे चुदाई के बाद भूख लगी तो?
जीजाजी ने हंस कर कहा- तुम चिंता मत करो, मेरे बैग में मिठाई, नमकीन,
काजू की कतली आदि है। जब हम सोयेंगे और भूख होगी तो खा लेंगे !
मैंने कहा- ठीक है।
और फिर हम खाना खा रहे थे तो वहाँ बैठे लोग हमें ज्यादा देख रहे थे, मेरी
पोशाक की वजह से मैं पूरी गाँव वाली लग रही थी पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़
रहा था, वे कौन सा मुझे जानते थे और जीजाजी की नज़र तो मेरे ऊपर से हट ही
नहीं रही थी, मुझे पता था कि उनका पानी नहीं निकला था और वो अन्दर उबल
रहा होगा !
मैं मन ही मन उनकी हालत पर मुस्कुरा रही थी।
वे मुझे खाना परोस रहे थे, मैंने उन्हें कहा- लड़की होने के फायदे हैं !
देखो हमारी चूत के पीछे आप कितनी चमचागिरी कर रहे हो और पैसे खर्च कर रहे
हो ! मैं जो कहती हूँ वो करते हो, लड़कों को इतना करना पड़ता है। अच्छा
हुआ मैं लड़का नहीं बनी, मुझसे तो इतना नहीं होता ! देखो मज़ा दोनों को
आता है प़र पसीने पसीने आदमी ज्यादा होता है, लड़की को कभी कुछ खर्च नहीं
करना पड़ता और लड़के उन्हें साथ ही गिफ्ट भी देते है।
जीजाजी मेरी बातें सुनकर मुस्कुरा रहे थे, बोले- जो तुम इतनी कीमती चीज
हमें देती हो, उस पर ये सब कुर्बान है। तुम्हें क्या पता तुम हमें कितनी
कीमती चीज देती हो ! अपनी इज्जत ! समझी? अभी किसी को पता चल जाये तो
लड़कों को फर्क नहीं पड़ता और लड़की बदनाम हो जाती है। समझी इन पैसों का तो
क्या, और कमा लेंगे प़र इज्जत?
मैं चुप हो गई, वास्तव में जीजाजी सही कह रहे थे।
खाना खाकर फिर से हम वापिस रेस्टोरेंट के पास ही लिफ्ट से सीधे तीसरी
मंजिल में अपने कमरे के कॉरीडोर में पहुँच गए ! नीचे रेस्टोरेंट था उसके
ऊपर रिसेप्शन और कुछ कमरे थे उसके ऊपर हमारा कमरा और भी काफी कमरे थे और
उससे भी ऊपर दो मंजिलें और थी यानि उस होटल में काफी कमरे थे ! हमारा
कमरा काफी अच्छा था, जीजाजी ने बताया जो सबसे अच्छा और महंगा था, वही
हमने लिया है।
हम अपने कमरे में दाखिल हो गए और सीधे बिस्तर पर ढेर हो गए !
मैं टीवी का रिमोट लेकर मनपसंद चैनल स्टार प्लस लगा कर देखने लगी! जीजाजी
ने फोन लगा लिया और किसी से बात करने लगे !
अभी हमने अपने कपड़े नहीं बदले थे, जीजाजी ने कहा- अभी बदलना ही मत ! अभी
चाय मंगवाएँगे, पियेंगे !

मैंने कहा- ठीकहै।
उन्होंने वहीं इंटरकाम से दो चाय का आर्डर दे दिया और वे बाथरूम में चले गए।
थोड़ी देर में घण्टी बजी, मैंने कहा- अन्दर आ जाओ !
मुझे पता था कि चाय लेकर बैरा आया होगा। बैरा ही था !
उसने मुझे गौर से देखा मुझे उसकी नज़र कुछ अच्छी नहीं लगी। उसने मुझे पलंग
पर बैठी हुई को चाय देनी चाही पर मैंने उसे डांट कर कहा- वहीं मेज पर रख
दे !
मेरे तेवर देख कर वो सकपका गया और चाय वही मेज पर रख कर मुझसे नज़र चुराता
फटाफट बाहर चला गया, दरवाज़ा बंद कर दिया !
जीजाजी आये तो मैंने यह बात बताई तो वो हंसने लगे और कहा- यार तुम्हें
बहुत गुस्सा आता है? एकदम झाँसी की रानी हो तुम !
मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई, हमने चाय पी, थोड़ी देर में घण्टी बजी, मुझे
पता था बैरा चाय के बर्तन लेने आया होगा।
यह दूसरा बैरा आया था पहले वाला नहीं आया ! बर्तन ले जाने के बाद जीजाजी
ने दरवाज़ा बन्द कर दिया, मेरे पास आकर बैठ गए और टीवी देखते देखते मुझे
सहलाने लगे।
मैंने भी अपना सर उनके कंधे पर रख दिया !
मैंने कहा- अब तो मैं ये भारी भरकम कपड़े उतार दूँ?
जीजाजी ने मुस्करा कर कहा- हाँ ! बिल्कुल हल्की हो जाओ ! सारे उतार दो !
मैं उनका अभिप्राय समझ कर मुस्करा उठी, मैंने कहा- आप दूसरी तरफ मुँह
करो, मैं कपड़े बदलती हूँ !
तो उन्होंने मुँह फेर लिया और बोले- ब्रेजरी और कच्छी मत पहनना !

मैंने कहा- ओके !
और मैं सिर्फ मैक्सी पहन कर सारे कपड़े वार्डरोब में रखे और उनके पास आई।
तब तक उन्होंने भी कपड़े खोल कर लुंगी लगा ली ! मैं पलंग के पास आई, कहा-
बाथरूम में जा रही हूँ !
तो वे बोले- इस मैक्सी का बोझ क्यों रखा है? इसे भी उतार दो और सिर्फ यह
तौलिया लपेट लो !
मैंने इंकार किया पर मेरा इंकार कहा चलना था, वो जबरदस्ती मैक्सी हटाने
लगे तो मैंने कहा- ठीक है। मैं बाथरूम से सिर्फ तौलिया लपेट कर ही आऊँगी
!
तो उन्होंने मुझे छोड़ दिया। मैं बाथरूम में गई, पेशाब किया, चूत को अच्छी
तरह से धोया और मैक्सी उतार कर जैसे राम तेरी गंगा मेली में मन्दाकिनी ने
लपेटा था, वैसे सिर्फ़ तौलिया लपेट कर बाहर आई !
मैं तौलिया लपेट कर मस्तानी चाल से पलंग के पास गई तो देखा कि जीजाजी ने
कम्बल ओढा हुआ है और उनकी लुंगी एक तरफ पड़ी है, चड्डी और बनियान भी कमरे
के फर्श पर लावारिसों की तरह पड़े हैं।
मैं यह सोच कर रोमांचित हो गई कि कम्बल के अन्दर जीजाजी बिलकुल नंगे हैं
और मैं नई नवेली दुल्हन की तरह कुछ शरमाती, कुछ सकुचाती उस तौलिये में
अपने पूरे बदन को ढकने की असफल कोशिश करती उनके पास आई ! अब मैं उस
तौलिये को साड़ी तो नहीं बना सकती ना ! स्तन ढकूँ तो जांघें दिखे और
जांघों को ढकूँ तो स्तन उघड़ रहे थे और मुझे चलते हुए आते भी शर्म आ रही
थी !

उनके पास आते ही उन्होंने लपक कर मेरा तौलिया छीन के फर्श पर अपनी
बनियान-चड्डी पर फेंक दिया और बोले- आज तुम्हारी और अपनी दोनों की शर्म
दूर कर दूँगा। अब इस कमरे में ना तुम कपड़े पहनोगी और ना मैं !
मैं भी नंगी होते ही फटाफट उनके कम्बल में घुस गई ताकि अपना नंगापन ढक
सकूँ ! मेरे अन्दर जाते ही वे मुझसे चिपक गए, उनका नंगा शरीर मेरे नंगे
बदन से चिपक रहा था, मुझे झुरझुरी सी आ रही थी, उनका शरीर वासना की आग
में जल रहा था !
जीजाजी का बदन मेरे बदन से चिपका बड़ा भला लग रहा था ! उनका नंगा सीना
मेरे स्तनों से रगड़ खा रहा था ! वे मुझे बुरी तरह चूम रहे थे और मैं
उनकी बाँहों में मछली की तरह फिसल रही थी, उनके नंगे बदन से रगड़ खा रही
थी, उनका लिंग मेरे पेट कमर और जांघों से टकरा रहा था।
मैं भी उनके गालों-कन्धों पर चूम रही थी और उत्तेजना से काट भी रही थी।
वे भी उसके जबाब में मेरे गाल-कंधे और वक्ष पर काट रहे थे और हंस कर कह
रहे थे- आज मैं तुझे काटने को मना नहीं करूँगा, बस खून मत निकाल देना,
बाकी ये निशान तो कल तक हट जायेंगे !
और जोश में मैंने उनके गाल पर अपने दांतों के निशान बना दिए कि वे सिसिया
कर रह गए और जबाब में मेरे भी गाल काट कर मुझे सिसिया दिया !
अब वे चूमते चूमते नीचे सरक रहे थे, गालों से स्तन चूसे, फिर पेट की नाभि
में जीभ फिराई और मेरी चूत में आग सी जल गई, मुझे पता चल गया कि जीजाजी
खतरनाक सेक्स एक्सपर्ट हैं।
मेरे पति को तो मालूम ही नहीं था कि औरत के किन किन अंगों को चूमने पर मज़ा आता है।
जीजाजी पेट से जांघें, पिण्डली चूमते-चूमते सीधे मेरे पैरों के पंजों के
पास चले गए और उन्होंने मेरे पैर के पंजे का अंगूठा अपने मुँह में ले
लिया और चूसने लगे।
मैं उन्हें रोकती, तब तक मेरे शरीर में आनन्द की तरंगें उठने लगी, आज
मुझे पता चला कि पैर के अंगूठे या अंगुलियों को चूसने से भी स्त्री
कामातुर हो सकती है।
मैं सोचती रह गई कि जीजाजी ने यह ज्ञान कहाँ से लिया होगा !
मेरे मुँह से आनन्दभरी किलकारियाँ निकल रही थी पर अपने पैरों गन्दा समझ
कर मैंने उनको वहाँ से हटाना चाहा और कहा- छीः ! कोई पैरों को भी चाटता
है क्या?
वे बोले- तू मेरी जान है और तेरे अंग अंग में मुझे स्वर्ग नज़र आता है। तू
कहे तो मैं तेरी गाण्ड भी चाट सकता हूँ !

मैंने शरमा कर कहा- धत्त !
फिर वे पैरों को छोड़ कर मेरे मनपसंद स्थान पर आ गए, यानि कि मेरी..चूत
! रात के करीब 10 बज गए थे, मुझे भी थकान के कारण नींद आ रही थी, मैंने
उनसे कहा- अब मैं मैक्सी पहन लूँ क्या?
पर उन्होंने कहा- नहीं, रात भर नंगे ही सोयेंगे और रात को कभी भी मूड बन
गया तो मैं तुम्हें चोदना शुरू कर दूँगा।
मैंने कहा- ओ के ठीक है। मुझे क्या फर्क पड़ेगा, आप ही थकेंगे, मुझे तो
सिर्फ टांगें चौड़ी करनी हैं, कूदना तो आपको है।
और एक पुरानी कहावत और जोड़ दी- सड़क का क्या बिगड़ेगा, इस पर चलने वाले थकेंगे !
वे हंस पड़े और बोले- फिर तू चुदते हुए जल्दी जल्दी निकालने का क्यूँ कहती
है जब तेरा कुछ बिगड़ना ही नहीं है?
मैंने मुस्कुरा कर कहा- मैं तो आपका ख्याल करती हूँ, बुड्ढे आदमी हो इसलिए !
तो वे बोले- अब तो तुम्हें पता चल गया होगा कि मैं कितना बुड्ढा हूँ !
मैंने कहा- पता तो है न ! आपने मुझे कितना परेशान किया है ! तो जवानी में
क्या करते होंगे, बेचारी मेरी दीदी की क्या हालत होती होगी?

वो हंस पड़े !
मैंने कहा- अब सो जाओ !
तो वे बोले- नहीं, क्रिकेट का मैच आ रहा है, वो देख कर सोऊँगा, तुम सो जाओ !
मुझे तो कोई रुचि थी नहीं क्रिकेट में, मैं तो सो गई, वे भी मेरे पीछे
चिपक कर लेट गए और मैच देखने लगे !
कोई डेढ़-दो घंटे के बाद मेरी नींद खुल गई क्योंकि जीजू पीछे से मेरे
कूल्हे मसल रहे थे और मेरी एक टांग थोड़ी उठा कर मेरी चूत का छेद टटोल रहे
थे। मैं उनकी कोशिश को सरल करने के लिए थोड़ी टांग उठाते हुए बोली- क्या
हुआ ?
तो वे बोले- यार भारत मैच हार गया है साउथ अफ्रीका से ! इसलिए गम गलत
करना है ताकि मुझे नींद आ जाये !
मैंने हंस क कहा- यह तो मुझे पता ही था कि कभी भी आपका लण्ड मेरी चूत में
घुस सकता है पर इतनी जल्दी की आशा नहीं थी।
मैंने कहा- हारे, तो गम गलत करना है ! जीत जाते तो भी जीत की ख़ुशी में
चोदते ! यानि मेरी चुदाई तो होनी ही है।
ऐसा कहते हुए मैंने उनके लिए रास्ता बनाया अपनी टांग थोड़ी उठा कर !
और जीजू ने थोड़ा मेरी चूत के छेद पर थूक लगा कर पीछे से ही मेरी चूत में
अपना लण्ड सरका दिया था और घस्से लगाने लगे। इस वक़्त वो बहुत जोर से चोद
भी रहे थे, साथ ही मेरे स्तन भी बेदर्दी से मरोड़ रहे थे !
मैं उनके हाथ से अपना स्तन छुड़ाते हुए बोली- क्या करते हो? दर्द हो रहा
है। भारत को क्या मेरी चूचियों और चूत ने हराया है जो इन पर गुस्सा उतार
रहे हो?

यह सुनकर उन्होंने स्तन मरोड़ना तो बंद कर दिया पर चूत के भरी भरकम धक्के
जारी रखे ! उन्होंने कंधे पकड़ रखे थे और अपनी एक टांग भी मेरे ऊपर रख रखी
थी वर्ना उनके धक्कों से में कुछ आगे खिसक सकती थी।
मेरी चूत में भी जीजू के धक्कों से कुछ हलचल मचनी शुरू हो गई थी ! मैं
अपने शरीर का रहस्य नहीं जान पाई कि कभी तो 6-8 महीनों में एक बार भी चूत
से पानी नहीं निकलता है। या कभी मन में ही नहीं आती है और कभी 6-8 घंटों
में ही 8-10 बार पानी निकल जाता है। यह भी कुदरत का करिश्मा ही है।
मैंने जीजू को ऊपर आने को कहा ताकि मैं भी आनन्द ले सकूँ ! पीछे से मुझे
इतना आनन्द नहीं आता है।
मैंने अपनी दोनों टांगें योग करने के अंदाज़ से उठा दी, तब तक जीजाजी ने
पास की दराज़ से निकाल कर कंडोम पहन लिया और मेरे ऊपर आकर घुड़सवारी करने
लगे, जिसे सही मायने में ऊँट सवारी कहना ज्यादा सही है क्यूंकि ऊँट पर
बैठने वाला ही कभी आगे और कभी पीछे होता है क्योंकि ऊँट के चलने का अंदाज़
ही ऐसा होता है।
उनके धक्के जबरदस्त लग रहे थे, मैंने अपनी टांगें पूरी उठा ली थी जितनी
उठा सकती थी, अब मेरी चूत बिल्कुल खड़ी अवस्था में थी जिसमें जीजू अपना
लण्ड पूरा पेल रहे थे जड़ तक !
मैंने कहा- मेरी टांगों से नीचे हाथ डालकर मेरे चूचे पकड़ लो और इन्हें
दबाओ, मुझे इन्हें दबवाना अच्छा लग रहा है।
जीजाजी ने कोशिश कि पर उनकी लम्बाई ज्यादा होने के कारण उनका बोझ मुझ पर
पड़ रहा था इसलिए उन्होंने थोड़ी देर बाद मेरे स्तन छोड़ दिए और वापिस मेरे
कूल्हे पकड़ कर झटके लगाने लगे। कमरे में खप-खप, खच-खच और हमारी जांघें
टकराने की आवाज़ें गूंज रही थी पर हमें कोई डर नहीं था किसी के सुनने का
!
करीब 10 मिनट की चुदाई के बाद मेरा दूसरी बार पानी निकल गया और जीजाजी ने
भी झटका खा कर अपना पानी छोड़ दिया !
मेरी ख़ुशी मिश्रित आवाज़ निकली- वाह, आज तो आपने कमाल कर दिया, सिर्फ 10
मिनट में ही पानी निकाल दिया !
वे बोले- यार, मैंने कहा ना कि अब मैं अपने दिमाग से कंट्रोल कर लेता हूँ
कि पानी 10 मिनट में निकलना है या 40 मिनट में !

मैंने कहा- आप ऐसे दिमाग को कंट्रोल कैसे करते हो?
तो वे बोले- सेक्स करते वक़्त सेक्स को दिमाग में नहीं रखता हूँ, तुम्हारी
आह-उह पर ध्यान नहीं देता हूँ ! कोई टेंशन वाली बात सोचता रहता हूँ तो
मेरा पानी आधा घंटा भी नहीं निकलेगा और जल्दी निकलना हो तो सेक्स का सोच
लेता हूँ ! तुम्हें पता नहीं है कि मैं काफ़ी कम उम्र से सेक्स कर रहा
हूँ, हस्तमैथुन, लड़कों से गुदामैथुन और जो उन्होंने बताया वो मैं यहाँ
नहीं बता सकती प्रतिबंध की वजह से !
और कहा- कई लड़कियों, कई भाभियों, कई रंडियों के साथ मैंने सेक्स किया है।
आज में 46 साल का हूँ तो मेरा सेक्स-अनुभव सालों साल का है। जितनी
तुम्हारी उम्र भी नहीं है। इतने अरसे के बाद मुझसे से कंट्रोल होना शुरू
हुआ है। हाँ ! स्तम्भन का ज्यादा वक्त तो मुझ में पहले से ही ईश्वर की
देन ही है। मेरे दोस्त लोग हस्त मैथुन करते थे तो उसको 61-62 कहते थे
यानि 61-62 बार लण्ड को आगे पीछे करने से उनके पानी छुट जाते थे पर मेरे
को 200-250 बार आगे पीछे करना पड़ता था !
और वो हंस पड़े, मैं बेवकूफ सी उनकी बातें सुन रही थी और एक ज्ञान लेकर
में सोने लगी और वे भी मेरी पीठ से चिपक कर सो गए !
सुबह सुबह कोई 6 बजे मेरी नींद जीजाजी के चुम्बनों से खुली ! वो मुझे
यहाँ-वहाँ चूम रहे थे।
मैंने कहा- यह सुबह-सुबह भगवान के भजन के वक़्त यह क्या कर रहे हो?
जीजाजी बोले- तभी तो भगवान के भजन में ढोलक बजानी है।
मुझे उनकी बात पर हंसी आ गई, मैंने कहा- अपनी और मेरी हालत देखो, बाल
बिखरे हुए और सारा शरीर अस्त व्यस्त हो रहा है, मुँह धोया ही नहीं और आप
इस काम के लिए शुरू हो गए?
जीजाजी बोले- सूखी चुनाई करूँगा ! सूखी चुनाई का मतलब ऐसे ही चोदेंगे और
अपना पानी नहीं निकालेंगे !
मैंने सोचा- अब ये मानेंगे तो नहीं और अपने क्या फर्क पड़ता है। बेचारे
ने इसी काम के लिए इतना खर्चा किया है। और ऐसा मौका बार बार तो मिलना
नहीं है। चल कम्मो अपनी ड्यूटी पर ! ड्यूटी क्या टांगें उठा कर लेटना है,
कपड़ों का एक रेशा ही नहीं था बदन पर ! पर रात भर से मेरी टंकी फुल हो रही
थी।
मैंने कहा- मुझे बाथरूम जाकर आने दो नहीं तो आपके डालते ही मेरा निकल
जायेगा यहीं बिस्तर पर ही !

उन्होंने कहा- जाकर आ जाओ !
मैं वापिस आई तो देखा जीजाजी का लण्ड सीधा खड़ा जैसे छत को देख रहा है।
मैंने उसे हाथ में पकड़ कर दबाया और कहा- इसकी अकड़ नहीं निकली अब तक !
जीजाजी बोले- तुम मेरी ड्रीमगर्ल हो ! तुम्हें देखते ही यह तुम्हारे
सम्मान में खड़ा हो जाता है।
मैं मुस्कुराती हुई बिस्तर पर लेटी, अपनी टांगें उठाई और बोली- आ जाओ !
जीजाजी मेरे ऊपर आये, चूत को थूक से चिकना किया और लण्ड पेल दिया ! पिछले
दिन से चुद रही चूत ढीली पड़ गई थी इसलिए सटासट लण्ड अन्दर-बाहर जा रहा
था।
मैंने कहा- कंडोम तो लगा लो ! क्या पता आपके छुट जाये तो?
जीजाजी ने कहा- स्टॉक ही नहीं बचा ! कहाँ से छुटेगा अब? अब तो मुश्किल से
छुटेगा, तुम चिंता मत करो !
करीब दस मिनट की चुदाई के बाद मैं स्खलित हो गई, मेरा सारा बदन हल्का
लगने लगा। उन्हें यह पता चल गया और उन्होंने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया,

अपनी चड्डी-बनियान पहन लिया और मुझे भी कहा कि सिर्फ मैक्सी पहन लूँ
क्यूंकि अभी वेटर से चाय मंगवायेंगे !
मैंने भी अपनी मैक्सी पहन ली चड्डी को भी तकिये के नीचे दबा दिया।
थोड़ी देर में जीजाजी ने इन्टारकॉम से फोन कर चाय मंगवा ली।
हमने चाय के साथ हल्का नाश्ता किया और जीजाजी नहाने चले गए।
नहा कर वापिस आये तब तक मैं लेटी हुई ही थी, उन्होंने कहा- नहा कर फटाफट
तैयार हो जाओ तो मेरा भी मूड बने !
मैंने कहा- पहले ही चोद दो ना ! नहाने के बाद वापिस ख़राब करोगे मुझे !
उन्होंने कहा- अगर मूड हो तो फिर नहा लेना ! पर मुझे पता है तुम जितनी
बार नहा कर बाहर आओगी, मुझे तुम्हें चोदना पड़ेगा क्यूंकि अब इसमें से में
पानी निकालूँगा नहीं और यह तुम्हें नहाई हुई देखते ही खड़ा हो जायेगा!
मैंने कहा- यार, तुम मुझे बार बार परेशान करोगे ! अपना पानी निकाल लो ना !
तो वो बोले- अरे तुम्हें पता नहीं है, तेरी दीदी बहुत शक्की है, मैं जब
भी कोई रात बाहर बिताता हूँ तो उसको शक हो जाता है कि किसी दूसरी को चोद
के आए होंगे ! अरर अभी मैं अपना पानी निकाल लूँ तो शाम को तेरी बुड्ढी
दीदी को देख कर मेरा लण्ड खड़ा नहीं होगा ! तुम्हें पता है, बुढ़ापा है,
मेरा कल से 3 बार पानी निकल चुका है। सब खाली हो गया है। अब शाम तक मुझे
वापिस स्टॉक बनाना है। हाँ तुम ही रहो शाम को चुदने तो अभी निकाल दूँ !
तो भी रात को तुम्हें देखते ही फिर खड़ा हो सकता है।
मैं क्या बोलती, मुझे उनकी बातें समझ में नहीं आ रही थी, बस यह पता था कि
मेरी सूखी चुनाई कितनी बार भी हो सकती है।
मैं नहा कर आई तो वे तैयार ही थे, बोले- यार, कोई नहा कर आता है तो उसके
शरीर से, बालों से पानी टपकता है तो मेरा मन हो जाता है।
मैंने कहा- मैं बाल धोकर आई हूँ, मुझे बाल सुखाने तो दो !

पर वे नहीं माने !
मेरे सर पर तौलिये बंधा था, मुझे उन्होंने बिस्तर पर लिटाया और शुरू हो गए !
इस बार उन्होंने मेरी नहाई धोई चूत भी चाटी, फिर लण्ड डाला और झटके देने शुरू !
बस वो यह ध्यान रख रहे थे कि मैं कब स्खलित होती हूँ और फिर हट जाते !
इस धक्कमपेल में मेरे सर का तौलिये भी हट गया और गीले बालों की वजह से
बिस्तर पर बड़ा निशान बन गया। मैंने कहा- ये होटल वाले क्या सोचेंगे कि
यहाँ पेशाब कर दिया !
जीजाजी ने कहा- इसकी चिंता हम क्यों करें कि हमारे पीछे होटल वाले हमारे
बारे में क्या सोचेंगे ! वे तो ये भी सोचेंगे कि साला कैसा माल पटा कर
लाया है और रात भर से मज़े ले रहा है।
मेरी और जीजू की उम्र में अंतर साफ पता चलता है।
मैंने सुना कि बन्दर अपना सम्भोग कई घंटों में पूरा करते है क्योंकि वे
शिलाजीत चाटते रहते है इसलिए थोड़ा चोदा और हट गए, फिर चोदा और हट गए। इस
प्रकार वे अपना पानी 7-8 घंटों में निकालते है। वही स्थिति जीजाजी ने भी
कर दी थी, 10 बजे तक वे मुझे कोई 5-6 बार चोद चुके थे और उनका खड़ा का
खड़ा, बस पेशाब कर आते, तब बैठता और थोड़ी देर मुझे सहलाते और फिर खड़ा हो
जाता।
मेरी हालत ख़राब हो गई, मैंने कहा- देखो आपने मेरी चूत की क्या हालत कर
दी है। अब तो रुक जाओ !
वे बोले- ठीक ! अब हमें यह कमरा भी छोड़ना है। साड़ी पहन कर तैयार हो जाओ
! अभी हमें खाना भी खाना है।
मैं फटाफट तैयार हुई, उन्होंने भी अपनी जींस और शर्ट पहन लिया।
तभी उन्हें कुछ याद आया और उन्होंने बैग से एक ट्यूब निकाली, क़ुडर्मिस
नाम की थी, बोले- चलो तुम्हारी चूत पर दवा लगाता हूँ ! वास्तव में बहुत
लाल हो रही है। और जगह-जगह से कुछ कट भी गई है। मेरे लण्ड की भी हालत
ख़राब है।
ऐसा बोल कर उन्होंने मेरे सामने ही अपनी जीन की चैन खोली लण्ड को बाहर
निकाला चमड़ी को ऊपर कर सुपारे पर ट्यूब से दवाई लगाने लगे। उनका सुपारा
भी बहुत लाल हो रहा था !
अपने लण्ड पर दवाई लगा कर उसे मोड़ कर अन्दर डाल लिया और चैन बंद कर दी
में किसी बच्चे की तरह उनकी ध्यान से हरकत देख रही थी।
फिर उन्होंने कहा- अब मैं तुम्हारे लगा दूँ, पलंग के किनारे पर लेट जाओ
और टांगे नीचे फर्श पर रखो।
मैं लेट गई, जीजाजी ने साड़ी पेटीकोट ऊँचा किया, मेरी चड्डी को काफी नीचे
किया और ट्यूब लेकर हल्के-हल्के हाथों से मेरी चूत पर दवाई लगाने लगे।
दवाई का ठंडा ठंडा स्पर्श मेरी टूटी फूटी चूत को भला लग रहा था।
वे आराम से मेरी चूत के पपोटों, चने के आसपास और ग़ाण्ड और चूत के बीच की
चमड़ी पर दवाई लगा रहे थे जहाँ से मेरे जीजाजी के ऊपर चढ़ कर चोदने से कट
लग गया था ! उनकी अंगुली दवा अन्दर तक लगा रही थी तभी मुझे चरर्र की चेन
खुलने की आवाज़ आई।
मैं चौंकी, मैंने देखा कि जीजाजी अपना लण्ड बाहर निकाल रहे हैं।

मैंने कहा- क्या करते हो? अभी तो दवा लगाई है।
उनका लण्ड तना हुआ था, वे बोले- अन्दर तक अंगुली पहुँच नहीं रही थी, इससे लगेगी !
ऐसा कह कर काफी ट्यूब अपने लण्ड पर लगाई और दवा लगी चिकनी चुत में पेल
दिया और हौले हौले धक्के लगाने लगे !
मैंने भी ठंडी साँस भर कर चड्डी पहने पहने जितनी चौड़ी टांगे हो सकती थी,
की और 5 मिनट में फिर से स्खलित हो गई क्यूंकि उनके दवा लगाने से मैं
थोड़ी गर्म तो पहले से ही थी।

जीजाजी को पता चला कि मैं स्खलित हो गई हूँ तो अपना लण्ड बाहर निकाल लिया
और मोड़ कर वापिस अपनी पैंट में डाल लिया, मेरी चूत पर फिर से क्रीम लगाई
और चड्डी ऊँची कर पहना दी !
फिर हमने कमरा छोड़ा, मैं तो लिफ्ट से नीचे गई, जीजाजी रेसेप्शन पर गए,
नीचे रेस्तराँ में खाना खाया और बस स्टैंड पर गये। बस में साथ-साथ बैठे,
सारे रास्ते वे पास वालों की नज़र बचा कर मेरी जांघ पर हाथ फेरते रहे, गोद
में बैग रख कर मेरा हाथ कई बार अपने लण्ड पर रखते रहे, उनका लण्ड फनफना
रहा था, मुझे पता था कि आज दीदी बहुत जोरों से चुदेगी !
फिर उनका गाँव आ गया, वे उतर गए, जब तक मेरी बस नहीं चली, खिड़की के पास
खड़े रहे, मेरी बस दूर मोड़ तक गई तब तक मुझे देखते रहे। उनका चेहरा उदास
था, मैं भी उन्हें उदास देख कर उनके प्यार लाड को याद कर उदास हो गई, फिर
अपने गाँव पहुँच गई !
मैं अपने गाँव तक पहुँची तब तक जीजाजी का आधे घंटे में दो बार फोन आ गया !
मैं समझ गई कि जीजाजी का मन मेरे में अटका है, उन्होंने बस में हाथ फेरते
हुए कई बार कहा था कि मन कर रहा है।
तो मजाक में मैंने कहा था- आ जाओ, यही बस में ही चोद दो ! हिम्मत आपकी होनी चाहिए !
और वे कसमसा कर रह गए थे !
हमारी सीट के बराबर में खड़ा एक लड़का जो 20-22 साल का था हमारी बातें सुन
कर और जीजाजी की हरकतें देख कर बेचारा गर्म हो रहा था और बार बार अपनी
पैँट ठीक कर रहा था।
मैंने यह बात जीजाजी को बताई तो उन्होंने कहा- इसे भी देख कर बात करना और
हाथ फेरना सीखने दो, हमारा क्या जाता है !
और वो बार-बार मुझे होटल में कम चोदने का अफ़सोस कर रहे थे पर मेरा जी
जानता था कि मैंने उन्हें कैसे झेला था !
खैर मैं गाँव पहुँच गई और उनसे दिन में कई बार बात होने लगी, मम्मी पापा
से छुप कर उनसे बात करने के लिए मुझे कभी छत पर जाना पड़ता था और कभी
लेट्रिन में बैठ कर बात करनी पड़ती थी !
उनकी बातें घूम फिर कर सेक्स पर ही आती थी।
अब वे बार-बार मुझसे जल्दी मिलने की बात कह रहे थे !
फिर एक दिन मैंने उन्हें कहा- आप कल आकर मेरे घर मुझसे मिल सकते हो !
सुनते ही वो खुश हो गए और बोले- क्या वाकई?
मैंने कहा- हाँ, कल 11 बजे तक आ जाओ, मम्मी ननिहाल जा रही हैं, पापा को
खेत पर जाना है, भाई जो स्कूल में पढ़ाने जाता है, वो स्कूल में ठेके पर
टीचर लगा हुआ है तो ये सभी वापिस शाम को आयेंगे !
मैंने उन्हें यह नहीं बताया कि भाभी आई हुई है और उसके एक बेटा और एक
बेटी और मेरा एक बेटा भी है। उन्होंने मेरी भाभी और उसके बच्चों का तो यह
सोचा कि वे भाभी के पीहर में होंगे और मेरे बेटे के बारे में यह सोचा कि
वो स्कूल जायेगा !
यह सोच कर वे खुश हो गए और बोले- मैं स्कूल से निकल कर बाइक से सीधा तेरे
गाँव आ जाऊँगा।
जीजाजी भी सरकारी टीचर हैं, उनका स्कूल मेरे गाँव से 25-30 किलोमीटर पर है।

मैंने कहा- हाँ, आ जाओ !
मैंने सोचा, देखेंगे, किस्मत हुई तो मौका देखा कर चौका मार लेंगे वरना
मिल तो जायेंगे क्योंकि मुझे अगले दिन जयपुर जाना था।
सुबह उन्होंने फोन पर पूछा- मम्मी ननिहाल गई क्या?
मेरी मम्मी जा रही थी इसलिए मैंने दबी आवाज में कहा- हाँ जा रही हैं !
फिर पूछा- और पापा?
मैंने कहा- वे तो जल्दी ही खेत पर गए।
यह सुनकर वे अपनी स्कूल से रवाना हो गए।
करीब 45-50 मिनट के बाद उनका फोन आया- मैं तेरे गाँव के बस स्टैण्ड तक
पहुँच गया हूँ, घर आ जाऊँ क्या?
मैंने कहा- हाँ आ जाओ जल्दी !
उस वक्त मैं कमरे में झाड़ू लगा रही थी, भाभी बाहर हाल में पोचा लगा रही
थी, मैं बिल्कुल धूल से भरी हुई थी, नहाई भी नहीं थी, घागरा और
कुर्ती-कांचली पहन रखी थी।
और वो 2-3 मिनट में बाइक लेकर घर आ गए। घर में घुसते ही मेरा और भाभी के
दोनों बच्चे उनके सामने गए खुश होकर और उनके सर पर मानो बम पड़ा ! रही
सही कसर मेरी भाभी जो पौचा लगा रही थी, उसने धोक लगा कर पूरी कर दी !
मुझे उनका चेहरा देख कर हंसी आ रही थी, उनके चेहरे पर पूरे बारह बज रहे थे !
बच्चे बाहर उनकी बाइक पर चढ़ रहे थे !
मुझे मालूम था वे आते ही मुझे बाँहों में पकड़ेंगे, वे फाटक से अन्दर आये
और जब मैंने धोक देकर कहा- आइये जीजाजी, जीजी को साथ नहीं लाये?
तो उन्होंने आशीर्वाद देते मेरा कन्धा गुस्से में जोर से दबाया मेरे मुँह
से कराह निकल गई पर हंसी भी उनकी हालत देख कर जबरदस्त आ रही थी !
फिर मैंने धीरे से कहा- मैं कल जयपुर जा रही हूँ, आपसे मिलना हो गया, यही
क्या कम है !
जीजा मुझे बाहों में लेने की कोशिश करने लगे, मैंने कहा- अरे अभी मैं धूल
से भरी हूँ, मेरी हालत ख़राब है !
ऐसा कह कर मैं एकदम नीचे बैठ कर उनकी बाहों से निकल कर बाहर भाग जाना
चाहती थी पर जीजाजी बहुत चपल थे और बहुत तेज़ भी, मेरी कोशिश उन्होंने
खुद नीचे झुक कर फ़ेल कर दी और मुझे पकड़ कर सीधा खड़ा कर दिया, सीधे मेरे
कुर्ती के ऊपर से ही स्तन पकड़े और मैं नहीं-नहीं करूँ, तब तक मेरे चुम्बन
लेकर होंठ भी चूस लिए और बोले- मेरी जान तू कैसी भी हालत में हो, मुझे तो
बहुत प्यारी लगेगी !
मैंने उन्हें कहा- अभी देखो, मुझ पर भरोसा रखो, आपका काम हो जायेगा ! अभी
बच्चे पड़ोस में जीमने जायेंगे तब मौका निकल जायेगा !
उनके मन में थोड़ी आशा जगी, उन्होंने अपनी पैंट का उभार दिखाया और कहा-
मुन्ना जाग गया है अपनी मुन्नी से मिलने के लिए !

मैं हंस पड़ी !
फिर उनको चाय पिलाई और बच्चों को जीमने भेज कर मैं बाथरूम में चली गई नहाने !

जीजाजी भूखे शेर की तरह मेरे घर में इधर उधर घूम रहे थे !
मैं नहा कर आई तब वे कमरे में थे, मैं कमरे में गई खुले और गीले बालों के साथ !
जीजाजी की उत्तेजना चरम सीमा पर थी !
भाभी बाहर झाड़ू लगा रही थी, मैं कमरे में गई तो मुझे कोई गाना याद आया
मैंने वो गा कर थोड़ा ठुमका लगा कर जीजाजी के अपनी कमर हिला के गाण्ड से
टक्कर मारी तो अनजान खड़े जीजाजी पलंग पर गिर गए, मुझे फिर से हंसी छुट
गई, मैं उन्हें देख कर बहुत खुश थी, मेरे लिए सेक्स कोई मायने नहीं रखता
पर जीजाजी का दिमाग सेक्स पर ही घूम रहा था इसलिए वे बस कैसे चोदूँगा-
कैसे चोदूँगा ही अपने दिमाग में सोच रहे थे, कुछ फिक्रमंद भी थे इसलिए
उन्होंने गाण्ड से ठुमका लगा कर गिराने का कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया !
मैं खड़ी थी, जीजाजी पलंग पर बैठे थे। मुझे उन पर कुछ दया आई, मैंने अपनी
मैक्सी उठाई और अपनी नंगी चूत उनके सामने कर दी और बोली- अभी भाभी नहाने
जाएगी, तब तुम चौका लगा लेना और यह आइसक्रीम खा लो !
ऐसा कहते ही बैठे-बैठे जीजाजी ने अपना मुँह मेरी नहाई-धोई चिकनी चूत पर
लगाया और सपर-सपर चाटने लगे। आनन्द से मेरी आँखे बंद होने लगी। एक मिनट
भी नहीं चाटा होगा कि बच्चों का शोर सुनाई दिया और मैंने फटाफट अपनी
मैक्सी नीचे की और कमरे से बाहर आ गई। यह कहानी आप HotSexStory.xyz
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अब जीजाजी का चेहरा और उनकी झुंझलाहट देखने लायक थी !
मैंने उन तीनों बच्चो को कहा- जल्दी जीम कर आ गए?
तो मेरे बेटे ने कहा- जीमन अच्छा नहीं था !
मेरी भाभी वहाँ आ गई थी और बच्चों से कह रही थी- तुम्हें एक जगह और भी जाना है !
बच्चे मना कर रहे थे- वहाँ नहीं जायेंगे, बहुत दूर घर है।
मैंने कहा- यहाँ तो तुम्हें जिमा कर 2-2 रूपये ही दिए थे, वहाँ 5-5 रूपये
देंगे और उनके जिमन भी अच्छा है।
जीजाजी भी जाने का जोर दे रहे थे कि वहाँ जीम के आओगे तो तुम्हें बाइक पर घुमाऊँगा।
खैर जीजाजी की किस्मत ने जोर मारा और बच्चे रवाना हो गए।
उनके जाते ही मैंने दरवाज़ा बंद किया, भाभी ने पानी की बाल्टियाँ बाथरूम
में रखी और अपने कपड़े लेकर बाथरूम में घुस गई।
अब घर सुनसान हो गया था, हम कमरे में भागते से गए और अन्दर वाले कमरे में
जाकर मैंने जीजाजी को कहा- अब फटाफट कर लो !
पर उन्होंने कहा- उस कमरे में नहीं, वहाँ से बाहर का ध्यान नहीं रहेगा।
इस बाहर वाले कमरे में आओ, इससे बाहर भी दीखता भी रहेगा और कमरे की
खिड़की से बाथरूम का दरवाजा भी दीखता रहेगा कि भाभी बाहर निकली तो हमें
पता चल जायेगा।

हम ये बातें फुसफुसा कर कर रहे थे !
मुझे जीजाजी का विचार पसंद आ गया, मैं जीजाजी के दिमाग की कायल हो गई और
उस कमरे में आकर खिड़की से बाथरूम का दरवाज़ा देखा वो बंद था, खिड़की पर
मच्छर जाली लगी थी इसलिए हमें तो बाहर का दिख रहा था बाहर से अन्दर कुछ
नहीं दीखता था।
मैं सीधे पलंग पर लेट गई, अपनी मैक्सी ऊँची कर दी और जीजाजी को कहा-
फटाफट अपना पानी निकाल लो ! और कुछ भी चूमा चाटी नहीं करनी है, वक़्त
बहुत कम है, किसी के आने पर आपका बिना निकले ही रह सकता है, फिर मुझे दोष
मत देना !
जीजाजी ने पैंट की चैन खोली अपने अकड़े हुए लण्ड को मुश्किल से बाहर
निकाला और मेरी ऊँची की हुई टांगों के बीच में बसी चूत के छेद में थूक
लगा कर पेल दिया !
मैंने कहा- कंडोम कहाँ है? मैं ऐसे नहीं चुदवाऊँगी !
वे बोले- यार तुमने हाथ फ़ेरने दिया नहीं, चाटने दिया नहीं, अब 2 मिनट तो
मेरे नंगे लण्ड को तुम्हारी नंगी चूत में जाकर चमड़ी से चमड़ी तो मिलने दे,
मेरी जेब में कंडोम है, अभी लगा लूँगा ! तुम्हारे चूत में ऐसे ही थोड़ी
देर घुसेगा तो यह ज्यादा गर्म हो जायेगा और मेरा भी पानी फटाफट निकल
जायेगा !
मैंने कहा- ठीक है !

अब वे जोर जोर से धक्के लगा रहे थे और उनके हर धक्के से कुछ पुराना पलंग
थोड़ा चूं चूं कर रहा था, मैं सोच रही थी कि कहीं बाहर यह आवाज़ नहीं चली
जाये। पर कोई विकल्प नहीं था।
दो मिनट बाद ही जीजाजी ने लण्ड बाहर निकल लिया और जेब से कंडोम का पैकेट
निकाल कंडोम निकलने लगे।
मैं एकदम पलंग से उठ कर बाहर गई, जीजाजी ने पूछा- क्या हुआ? कहाँ जा रही हो?
मैंने कहा- मैं थोड़ा ध्यान रख कर आ रही हूँ।
मैंने बाहर हाल में जाकर कुछ कुर्सिया खिसकाई ताकि भाभी को पता चले कि
मैं हाल में काम कर रही हूँ, साथ ही भाभी को आवाज़ देकर कहा- पानी ज्यादा
मत ख़राब करना, जल्दी से नहा लो !
वो बोली- अभी तो मैंने शुरू किया है, क्यों परेशान करती हो? अभी मुझे
नहाने में समय लगेगा !
यह सुनकर मुझे पता चल गया कि भाभी अभी नहीं बाहर आएगी और मैं फटाफट
जीजाजी के पास पहुँच गई। वो अपने लण्ड पर कंडोम चढ़ाये हाथ में लेकर
मुट्ठिया दे रहे थे। मुझे पता था ये अपना पानी जल्दी निकलने की कोशिश में
हैं, मैं यहाँ नहीं थी तब वे रुके नहीं थे और हाथ से काम चला रहे थे !
मैं फिर से फटाफट लेट गई और अपनी मैक्सी उठा कर अपनी टांगें ऊँची कर फिर
से चोदने की दावत दी !
जीजाजी तैयार ही थे, उन्होंने फटाफट अन्दर डाला और एक्सप्रेस ट्रेन की
तरह शुरू हो गए। उनके कूल्हे बिजली की गति से ऊपर-नीचे हो रहे थे और उनकी
तूफानी रफ़्तार से मेरी चूत पसीज गई थी, पानी छोड़ रही थी, मुझे स्वर्गिक
आनंद मिल रहा था और मैं पीछे तिरछी होकर खिड़की को देखना बंद कर जीजाजी
से चिपक गई और अपनी गाण्ड उचका-उचका कर चुदा रही थी। मेरी दबी-दबी
आहें-कराहें निकल रही थी।
पहले मेरा मज़े लेने की कोई इच्छा नहीं थी, मैं सोचती थी कि जीजाजी का
पानी निकाल कर इन्हें खुश करना है, पर मेरे भी आनन्द के सोते फ़ूट पड़े थे।
और जीजाजी ने भी झटका खाकर धीरे-धीरे होकर अपना लण्ड फटाफट बाहर निकाला,

कंडोम की गांठ लगा कर अपनी जेब में डाल लिया और बाहर हाल में चले गए !

उनके चेहरे से संतुष्टि झलक रही थी।
मैंने भी अपने पानी से गीली हुई चूत को वहाँ पड़े पुराने कपड़े से पौंछा,
फटाफट चड्डी पहन ली और मैक्सी को सही कर भाभी के बाथरूम के पास चली गई।
मुझे अचम्भा हुआ कि जीजू की चुदाई सिर्फ 6-7 मिनट चली थी, यानि मौके के
हिसाब से वे सही में अपना पानी निकाल लेते हैं ! हाँ गति उनकी बहुत तेज़
थी।
जीजू बाहर हाल में लेट कर अपनी सांसें सही कर रहे थे !
भाभी भी नहा कर बाहर आ गई, थोड़ी देर में बच्चे भी आ गए और अब मेरी ड्यूटी
पूरी हो गई थी इसलिए मुझे कोई चिन्ता नहीं थी !
थोड़ी देर बाद जीजाजी के साथ बाज़ार गई उनकी बाइक पर बैठ कर, मैंने जब तक
दूकान से सामान लिया तब तक आगे एक गन्दा नाला था, जिसमें जीजाजी जेब में
लाया हुआ कंडोम फेंक आये !

वापिस घर पहुँची तो मैंने जीजाजी को कहा- आप अपने गाँव कल ही जाना, सुबह
मेरी जल्दी की गाड़ी है, आप मुझे बाइक पर स्टेशन छोड़ देना ! आपके ससुरजी
भी शाम को आ जायेंगे, उनसे भी मिल लेना और जो बच्चो से वादा किया था,
इन्हें भी बाइक पर घुमा लाओ ! चलो हमें हमारे खेत ले जाओ !
वहाँ पापा की चाय लेकर जानी थी !
अब बाइक पर मैं, मेरी भाभी उसके दो बच्चे एक टंकी पर, दूसरा उसकी गोद में
! जीजाजी और भाभी के बीच में मैं ही बैठी थी, मुझे पता था इतने जने बाइक
पर बैठेंगे तो एक दूसरे से चिपक कर बैठना पड़ेगा और मैं नहीं चाहती थी कि
मेरे जीजाजी के पीठ में मेरी भाभी के स्तन चुभें !
वास्तव में वहाँ मुझे ईष्या हो रही थी।
इस प्रकार हम सब बाइक पर बैठ गए, रास्ते में काफी रेत थी, जीजाजी सावधानी
से चला रहे थे पर एक मोड़ पर हमारी बाइक रेत के कारण टेढ़ी हो गई पर
जीजाजी ने गिरने नहीं दिया।
खैर हम खेत पर पहुँच गए, पापा बहुत खुश हुए जीजाजी को देख कर !
फिर हम वापिस आ गए, तब मेरी मम्मी भी ननिहाअल से आ गई, वो बड़ी शक्की है,
उन्होंने पूछा- तेरे जीजाजी कब आये? ये कभी आते तो नहीं हैं, आज कैसे आ
गए? और तेरी दीदी को साथ क्यों नहीं लाये?
ऐसी बातें वो मुझसे पूछ रही थी। मैंने उसका शक दूर किया पर अब मुझे पता
चल गया था कि अब ऐसा कोई काम नहीं करना है जिससे मम्मी को और शक हो जाये।
ये बातें मैंने जीजाजी को भी इशारों से बता दी थी !
जीजाजी ने पूछा- यार, मैं रात को रुकूँगा तो मेरा काम हो सकता है क्या?
पर मैंने उनको सख्ती से चेतावनी दे दी कि आपका काम मैंने कर दिया है, अब
रात को आपने कुछ करने की कोशिश की तो अपना रिश्ता आज से टूट जायेगा !
इतना सुनते ही जीजाजी चुप हो गए और बोले- मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा, मैं
संतुष्ट हूँ, बस अपने रिश्ते तोड़ने वाली बात मत करो यार ! मेरे दिल में
दर्द होता है !
मुझे जल्दी उठना था, रात को सामान भी बांधना था। वास्तव में जीजाजी ने
अपना वादा निभाया, मुझे नहीं छेड़ा, चुपचाप हाल में सोते रहे।
मुझे पता था कि मेरी मम्मी कमरे में सो रही हैं पर हर आहट पर उनके कान
लगे हुए हैं, अब उनको क्या पता कि जो होना था वो दोपहर में ही हो गया !
औरत का मन होता है तो वो कहीं भी और कभी भी चुदवा लेती है, उसके लिए कोई
पहरा काम नहीं आता है !
सुबह चार बजे जयपुर के लिए गाड़ी थी, मैंने जीजाजी को और अपने भाई को 3.30
बजे उठा दिया था, वो दोनों और मैं साथ-साथ स्टेशन गए। मुझे पता था कि
लेडीज डिब्बा गार्ड के डिब्बे के पास लगता है इसलिए हम काफी पीछे गए,
आगे-आगे भाई चल रहा था और उसके कंधे पर मेरा बैग था। स्टेशन के इस तरफ 4
बजे से पहले इतने यात्री भी नहीं थे इसलिए जीजाजी चलते चलते कई बार मेरे
चूतड़ों पर हाथ फेर देते थे तो कभी स्तन दबा देते थे। कुछ ठण्ड भी लग रही
थी और मैं उनके चिपक कर भी चल रही थी। मेरा भाई जो आगे चल रहा था, उसे
हमारी इस लीला का कुछ पता नहीं था !
मैं भी रात में जीजाजी के सेक्स के लिए कोशिश नहीं करने पर उनसे खुश थी,
मुझे पता था कि उनके लिए कितना मुश्किल हुआ होगा पने पर काबू करना इसलिए
मैंने चलते चलते उनका गाल चूम कर उन्हें इसका इनाम दे दिया !
गाड़ी आई और मैं बैठ गई, जीजाजी और मेरा भाई दोनों बाहर रहे। मेरी भी
ट्रेन चल रही थी, मैं उन्हें देख रही थी, साथ जाते जाते दोनों ही लम्बे
थे, दोनों लम्बू वापिस घर जा रहे थे जब तक मैं देखती रही मैं और वे दोनों
हाथ हिलाते रहे। फिर मैं आकर बर्थ पर बैठ गई और अपनी ड्यूटी संभाल ली !
जीजाजी का फोन आता, कहते- अब जब भी तुम्हें गाँव जाना हो, मुझे फोन करना,
मैं जयपुर आ जाऊँगा, एक रात वहीं होटल में ठहरेंगे, फिर साथ ही गाँव आ
जायेंगे !

मैंने कहा- पहले कुछ नहीं कह सकती, बाद में सोचेंगे !
मेरी माहवारी की तारीख जीजाजी को पता होती, मेरी माहवारी हमेशा महीने के
4 दिन पहले आती उस हिसाब से जीजाजी हर माहवारी की तारीख का अंदाज़ अगले
महीने 4 दिन पहले से लगा लेते !
अब आप सोचेंगे माहवारी का कहानी में क्या मतलब? पर मतलब है इसलिए यह बात
बता रही हूँ !
मैंने उन्हें 3-4 दिन पहले गाँव जाने की तारीख बता दी तो उन्होंने कहा-
तेरी माहवारी आने की तारीख है उस दिन, इसलिए तू मेडिकल स्टोर से
संडे-मंडे की गोलियाँ ले लेना, दो दिन पहले से रोज़ की एक ! ये गोलियाँ
माहवारी का दिन आगे खिसकाने के काम आती हैं !
पर मुझे गोलियाँ लेना पसंद नहीं था इसलिए मैं उन्हें झूठ ही कह दिया कि हाँ ले ली !
वो फोन पर बात करते, उनके लिए मेरे फिक्स डायलोग थे ! जैसे वो एक बात
पूछते थे- अपना काम कब व कैसे होगा?
मेरा डायलोग था- देख के मौका मारो चौका !
वो पूछते- कंडोम कितने लाऊँ?
मेरा डायलोग होता था- एज यू लाइक !
हर फोन पर मुझसे चुम्बन जरूर मांगते थे और कहते थे- ये चुम्बन जब तुम
मुझसे मिलेगी तो वापिस लौटा दूँगा !
जब तक चुम्बन नहीं देती, मुझे फोन नहीं रखने देते, अगर रख भी देती तो
चुम्बन के लिए वापिस लगा देते !
जिस दिन मैं रवाना हुई, जिसका डर था, वही हो गया, मेरी माहवारी शुरू हो गई !
मैंने कपड़ा लगाया और रवाना हुई। अब मैंने जीजाजी फोन किया- कहाँ हो?
वो बोले- रास्ते में हूँ, आ रहा हूँ मेरी जान !
मैंने कुछ अटकते अटकते कहा- आपका काम तो नहीं होगा !

उन्होंने एकदम से पूछा- क्यों?
मैंने कहा- मेरी माहवारी शुरू हो गई है !

उन्होंने फिर पूछा- संडे मंडे गोली नहीं ली क्या?
मैंने झूठ ही कहा- आज सुबह ही ली है पर नहीं रुका !
जीजाजी ने कहा- अरे यार। दो दिन पहले से लेनी थी। खैर कोई बात नहीं। मुझे
तेरे साथ रहना है ! रात भर मेरे सीने से चिपक कर सो जाना, मेरा दिल हल्का
हो जायेगा और मुझे तुमसे बातें करनी हैं, साथ रहना है, सेक्स कोई जरूरी
नहीं है।
वे मुझे होटल में ले गए और फ़िर वही कहा कि सेक्स जरूरी नहीं है।
मैं उनकी बातें सुनकर उनके प्रति प्यार में भर गई, फिर मैंने कहा- वैसे
मेरे इतना ज्यादा खून नहीं आता है, फिर आज तो पहला दिन है !
तो बोले- फिर तुम चिंता मत करो, वैसे भी मैं कंडोम साथ लाया हूँ और उनको
प्रयोग करता ही हूँ, बस आइसक्रीम खाने को नहीं मिलेगी !
मैंने सोचा- चलो, ज्यादा नाराज़ तो नहीं हुए ! मैं सोच रही थी कि मेरी
गलती से उनका आनन्द चला गया पर वो मुझ पर नाराज़ नहीं हुए !
मुझे किसी ने कहा था कि औरत के जब माहवारी आती है तो कुछ बदबू सी आती है,
अब मुझे इस बदबू का कोई पता ही नहीं चलना था क्योंकि मेरे नाक में कोई
बीमारी है, मुझे ना तो कोई खुशबू आती है और ना ही बदबू, इस कारण मैं कई
बार सब्जी बनाते बनाते जला देती हूँ !
इसलिए जीजाजी कभी अपने बिस्तर पर खुशबू छिड़क कर या फ़ूल बिछा कर चुदाई
करते हैं तो मैं कहती हूँ मुझे उस खुशबू का कोई पता ही नहीं चलता तो
क्यों पैसे लगाते हो !
फिर उन्होंने कहा- तुम्हारी नाक का ऑप्रेशन करवाना पड़ेगा !
मैंने कहा- मुझे नहीं करवाना, मुझे तो चीरे और टांके के नाम से ही डर
लगता है और आपको फायदा है, आप भले कैसे ही रहो, मुझे तो बदबू आएगी नहीं !

और मैं हंस देती थी !
जीजाजी ने कहा- तब तो अच्छा है, मेरे सेंट और स्प्रे के पैसे बच गए !
पर मुझे लग रहा था कि शायद जीजाजी को मेरी बदबू ना आ जाये ! इसलिए मैंने
उन्हें उलाहना दिया- आज मैं आपके काम की नहीं हूँ, इसलिए आप ना तो नजदीक
आ रहे हैं और ना ही मुझे गले लगा रहे हैं !

इतरा कर कही हुई मेरी यह बात सुनकर जीजाजी फटाफट मेरे पास आकर लेट गए और
मुझे गले से लगा लिया, बोले- ऐसी बात नहीं है जान ! तूने मुझे पहले ही
बता दिया था ना फिर भी मैंने तुझे उस वक़्त भी यही कहा था ना कि मुझे
तुम्हारे से चिपक कर सोना है, उससे ही मुझे बहुत ख़ुशी मिल जाएगी !
ऐसा सुनकर मैं भी खुश हो गई और उनके चिपक गई !
अब वो मुझे बाँहों में पकड़ कर चूम रहे थे, उनके हाथ मेरे कंधों और स्तनों
पर फिर रहे थे, वो मेरी गोलाइयों को मसल रहे थे, उनके होंठ मेरे चेहरे,
मेरे गाल, चिबुक, मेरे कानों की लटकन और ललाट पर चुम्बन कर रहे थे !
मैं भी कभी कभी उन्हें चूम लेती थी और फिर वो मेरे होंठ चूसने लगे, बीच
बीच में वो मेरे साँस लेने के लिए छोड़ देते !
मुझे आज तक यह तरीका नहीं आया कि होंट चूसते चुसाते साँस कैसे ली जाती
है, जीजाजी को भी पता था इसलिए वो होंट छोड़कर मुझे साँस लेने का मौका दे
रहे थे !
मैं गर्म हो रही थी और गोली ना लेने के लिए पछता भी रही थी, पर अब क्या हो सकता था।
अब वे मसलते-मसलते पेट तक आ गए थे और जांघों पर हाथ फेर रहे थे इस बीच
उन्होंने अपनी लुंगी हटा कर चड्डी उतार दी थी, अपना फनफनाता और बुरी तरह
से अकड़ा लण्ड मेरे हाथ में पकड़ा दिया था जिसे मैं कभी दबा रही थी, मसल
रही थी और कभी उसे ऊपर नीचे कर रही थी।
वो आड़े होकर मेरे हाथ में ही झटके लगा रहे थे। मैंने हथेली गोल करके ऐसा
उनका लण्ड पकड़ा हुआ था जैसे वो चूत चोद रहे हों। अब उनके लण्ड का स्पर्श
मेरी कमर और पेट पर हो रहा था ! मेरी सांसें तेज हो गई थी, चूत में जैसे
चींटियाँ काट रही थी और ऐसा लग रहा था कि चूत में कुछ अटका हुआ है जिसे
अन्दर कुछ डाल कर निकलना पड़ेगा !

मेरे चेहरे पर बदलते भाव जीजाजी ने महसूस कर लिए और मेरी चूत चड्डी के
ऊपर से ही दबाने लगे। वो अन्दर अंगुली नहीं करके पूरी चूत को अंगूठे और
अंगुली के बीच में पकड़ कर दबा रहे थे और मेरी सिसकारियाँ निकल रही थी।
आखिर मेरे सब्र का बांध टूट गया और मैंने बेशरम हो कर पूछ लिया- आप
चोदोगे मुझे? इस हालत में भी चोद दोगे? आपको अजीब और गन्दा तो नहीं
लगेगा?
वे मेरी आँखों के लाल डोरे वासना से थरथराते होंट देख रहे थे, बोले- मुझे
कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं कई बार तेरी दीदी को माहवारी में चोद चुका हूँ
और वैसे भी मुझे कंडोम लगा कर चोदना है, जो भी लगेगा, कंडोम के लगेगा हम
सावधानी से चुदाई करेंगे !
फिर मैंने सावधानी से अपनी चड्डी उतारी, मेरी टांगें ऊँची हो गई थी, फिर
मैंने सावधानी से चूत पर लगा कपड़ा हटाया, उस पर खून नहीं लगा हुआ था,
वैसे भी मेरे खून नाम मात्र का आता है, मेरी चूत के अन्दर कुछ लाल लाल सा
लग रहा था।
मैं जीजाजी के चेहरे की तरफ देख रही थी पर मुझे वहाँ घृणा नज़र नहीं आई
बल्कि उनके चेहरे पर मेरी चूत देख कर चोदने का जोश दिख रहा था।
मैंने राहत की साँस ली, चड्डी और कपड़े को पलंग के नीचे रख कर अपनी टांगें
उठा कर उनका इंतजार करने लगी।

उन्होंने फटाफट दराज़ से कंडोम निकाला, वे कमरे में आते ही अपनी काम की
चीजें कंडोम आदि दराज़ में रख देते हैं, और उसे अपने लण्ड पर चढ़ा लिया।
वो अपने घुटनों के बल बैठे थे, फिर कंडोम के ऊपर ही अपने सुपारे पर थूक
लगाया और उसे पकड़ कर मेरी चूत के छेद पर अटका दिया। उन्हें पता था कि गलत
जगह र्ख कर धक्का लगने पर मेरी चूत और गाण्ड के बीच की चमड़ी कट सी जाती
है और मैं दर्द से दोहरी हो जाती हूँ और फिर वो घाव कई दिन बोरोलीन लगाने
से ठीक होता है। इसलिए वे पहले अपने हाथ से अपने लण्ड को सही जगह टिकाते
हैं फिर अन्दर धकेलते हैं, आधा अन्दर चले जाने के बाद फिर और से धक्का
मारते हैं। उन्होंने वही किया और उनका लण्ड मेरे इंतजार करती और खून से
गीली चूत में सररर से जैसे उसे चीरता सा चला गया।
थोड़ी देर तक जब तक उनका लण्ड मेरी कई दिनों की बिना चुदी चूत जो महीने भर
में बिना चुदाई के कुंवारी जैसी हो जाती है, को रवां करता है, 10-15
धक्कों के बाद मेरी चूत इस नए मेहमान को पूरा कबूल करती है फिर उसके
स्वागत के लिए पानी छोड़ती है, तब यह आराम से आ जा सकता है, फिर उनके
धक्के तूफानी हो जाते हैं। अब उन्हें मेरे घर की तरह जल्दी तो छूटना नहीं
था पर स्थिति खास अच्छी भी नहीं थी।
मुझे जब मज़ा आता तो मैं अपनी योनि का संकुचन करती तो उनकी गति धीमी हो
जाती और बोलते- तेरे पास यह गोड गिफ्ट है, ऐसा कोई नहीं कर सकती, तू तो
अपनी चूत को भींच कर मुझे किसी कुंवारी लड़की को चोदने जैसा मज़ा दे देती
है।

और फिर मैं ज्यादा भींच लेती तो उनकी चुदाई रुक जाती और बोलते- साली
तोड़ेगी क्या? यार कुछ तो ढीला छोड़ जिससे मैं अन्दर-बाहर कर सकूँ !
और मैं मुस्कुरा कर थोड़ा ढीला छोड़ती और फिर कस लेती ! फिर ढीला छोडती !
इससे उनका और मेरा आनन्द बढ़ जाता और वे दुगने जोश से धक्के मारने लगते !
मेरा भी पानी कई बार छुट गया था जिसका सबूत मैंने उनका गला काट कर दे
दिया था, फिर 15 मिनट के बाद वे भी झटके खाते-खाते रुक गए और सावधानी से
अपना लण्ड बाहर निकाला।
कंडोम लाल हो रहा था पर उन्होंने उसे हटाकर कंडोम के मुँह पर गांठ लगा दी
और उसमें जीजाजी के अजन्मे करोड़ों बच्चो को भी बंद कर दराज़ में दाल दिया
और नंगे ही बाथरूम जाकर पेशाब कर और लण्ड को धोकर आ गए।
फिर मैं गई और गीज़र चला कर गर्म पानी से 10-15 मिनट तक चूत धोई। गर्म
पानी मेरी चुदी चूत को भला लग रहा था, मैं आधे घंटे तक बाथरूम में ही रही
और गर्म पानी से अपनी चूत सेंकती रही जो मुझे बड़ी भली लग रही थी !
क्योंकि माहवारी में मेरा चुदाने का मौका कई साल बाद आया था इसलिए कुछ
ज्यादा ही दर्द था पर जीजाजी ने सही कहा था कि आ तेरी नाली साफ कर दूँ
ताकि कचरा जो अटका हुआ है तेजी से बहे !
वास्तव मेरी योनि से रक्तस्राव की रफ़्तार तेज हो गई थी ! मेरे इतनी देर
बाथरूम में रहने के दौरान जीजाजी 2-3 बार बाथरूम के पास आकर देख गए थे कि
अब तक मैं बाथरूम में क्या कर रही हूँ !
होटल में हम दोनों ही बाथरूम का दरवाज़ा बंद नहीं करते है इसलिए वे देखने
आये तो कभी तो मैं उन्हें कमोड पर बैठी मिली और कभी चूत पर गर्म पानी के
छपके लगाती !
और वो मुस्कुरा कर वापिस चले जाते ! जबाब में मैं भी हंस कर कहती- देखो
आपने पीट पीट कर इसका क्या हाल कर दिया है, इसको गर्म पानी से सेक रही
हूँ।

थोड़ी देर बाद फिर आये और बोले- मुझे भी पेशाब लगी है !
मैंने कहा- कर लो ! मेरे सामने मूत निकलता नहीं है? सीटी की आवाज़
निकालूँ क्या जिससे आपको सू सू लग जाये जैसे बच्चे को लग जाता है !
वे हंस पड़े अपना लण्ड निकाल कर कमोड के अन्दर धार मारनी चाही, मैं लगातार
उन्हें देख रही थी और वास्तव में काफी देर तक उनको पेशाब नहीं लगी। फिर
उन्होंने अपनी आँखें बंद रखी तब उनकी धार बड़े जोर से बह निकली !
फिर हम वहाँ से पलंग पर आ गए और पास में बैठ कर टीवी देखने लगे !
उनके हाथ मेरे यहाँ-वहाँ घूम रहे थे और कई बार उन्होंने मेरा मुँह चूमा
और कहा- इस हालत में भी अपने दर्द की परवाह ना करके जो तुमने चुदा कर
मुझे मजा दिया है इसके लिए धन्यवाद !
मैं मुस्कुरा कर रह गई !
 
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