समाज सेवा या देसी सेक्स बूझो तो जाने [भाग-1]

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मुझे देसी सेक्स करने का टाईम ही नही मिला और समाज सेवा करते करते एक दौर ऐसा आ गया कि रोज ही ट्रेनिंग, वर्कशाप, लेक्चर, और कार्यक्रम आयोजित करते करते महिला सहभागियो की बहुतायत में हमें इतना सूकून मिलने लगा कि हम इस माहौल के आदी हो गए। चारो तरफ़ यौवन का अहसास आपको हमेशा ही अपने अंदर एक सुलगती आग का आदी बना देता है। लेकिन अगर यह आग बुझाई ना जाए तो फ़िर यह आपको भी जला सकती है।

40 के दशक में आकर भी मेरे अंदर जो देसी सेक्स की आग थी, वह समाज सेवा और लेखनी से जुड़े रहने के कारण और इन हसीन सायो के आसपास रहने के कारण जगी रहती थी। और कल जिस शख्सियत से मैं मिला था वह अपने मादक यौवन से मुझ जैसे भंवरे को मदहोश कर चुकी थी। मैने दूर से ही उसकी जवानी के अंदर बहते पानी को महसूस कर लिया था। तो आज मैं मिस सारा के साथ डिनर पर था। होटल कांटिनेंटल इन्न और मेट्रो सिटीज की चकाचौंध से भरे शहरे में हम और हमारे अंदर जलती सेक्स की आग्।

कमरे की कालबेल बजी और मिस सारा को देखने के लिए बेताब मेरे कदम दरवाजे की तरफ़ बढ़ गए। मेरे दिल की हालत एकदम छोटे बच्चे की तरह हो गई थी जिसे चांद चाहिए होता है। मैने दरवाजा खोला और हवा के खूश्बूदार झोके की तरह वो अंदर आ गईं। हमने व्हिस्की ली और फ़िर हल्की चर्चा होने लगी। खुमारी चढ रही थी और बातो की गंभीरता कम होती जा रही थी। मिस सारा मेरे एक फ़ीट की दूरी पर सोफ़े पर ही बैठी थीं। उनके उन्नत स्तन और उनकी दूधिया चमक का आभास मुझे झीनी ड्रेस से हो रहा था।

देसी सेक्स का जूनून बनाये रखते हुए मैने चर्चा को गरम बनाते हुए मिस सारा से पूछ डाला? समाज सेवा करते हुए, सबको खुश रखने के चक्कर में आदमी कितना अकेला हो जाता है कि खुद का ख्याल नही रख पाता। इस बात का जवाब उनकी आंखो ने झुक कर दिया और शायद खुमारी चढ रही थी इसलिए उनका एक हाथ मेरे हाथो मे आ गया। मैने महसूस किया खून का दबाव उनकी नसों में तेज हो चुका था। मैने उंगलियो के पोरो को सहलाया और मुझे बिजली का करंट सा दौड़ता महसूस हुआ। मैने मिस सारा को अपने पास खीच लिया तो वो उठकर सीधा मेरी गोद में बैठ गईं। उनकी मुलायम गांड का नक्शा मेरे शिश्न के मुंड को कुछ जलता हुआ सा महसूस करा रहा था। मैने उन्हे अपनी बाहों में भर लिया और मेरे होठ पीछे से उनके गर्दन और कानो को छूने लगे। मैने अपनी जीभ उनके गर्दन के पिछ्ले हिस्से पर फ़ेरी। वह मेरी बाहो में मचलने लगीं। मेरी जीभ उनके कान के नीचे के हिस्से पर फ़िसलने लगी।

मेरे हाथ भी बराबर हरकत में थे और उनके हाथ मेरे शिश्न पर अपनी जकड़ मजबूत किये जा रहे थे। मेरी उंगलियों ने उनकी कमर पर छलकते हुए पीछे से गांड पर छेड़छाड़ करनी शुरु कर दी। हल्की चिकोटी काट्ते हुए मैने उसकी गांड और योनि के बीच की तरफ़ धीरे धीरे रुख किया और उसने मेरे पैंट की जीप खोल कर मेरा शिश्न पकड़ लिया। आग लग चुकी थी। मैने उसकी साड़ी और पेटीकोट दो झटको में खोल कर रख दी। इसके बाद उसने अपनी ब्लाउज खुद खोल दी। अब नीचे सिर्फ़ जालीदार इम्पोर्टेड पैंटी थी जो प्लेब्वाय की थी और उपर दो दूधिया स्तनो को ढकने में नाकाबिल ब्रा बस अपनी टेम्पोरेरी उपस्थिति खत्म होने का इंतजार कर रही थी

अगले भाग में पढिए कैसे मैने इस खूबसूरत समाजसेविका की काम सेवा की और उसके अंदर की वासना की आग बुझाई
 
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