Incest पापी परिवार की पापी वासना (Completed)

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जब उनमे से एक थक कर ढेर हो जाता, तो कोई अन्य उसका स्थान ग्रहण कर लेता। उन्हें अपने सैक्स जीवन में एक नवीन स्वतंत्रता का अनुभव हो रहा था, और हर एक को ज्ञात हो गया था कि उनकी जीवन शैली में एक बड़ा परिवर्तन आ चुका है। बिना समाज के बंधनों की परवाह किये, बिना किसी शर्म, ग्लानि अथवा ईष्र्या का अनुभव किये, वे परस्पर अपनी देहों का आनन्द लेने लगे थे। जिसे हमारा समाज पाप की संज्ञा देता है, वह इन दो पापी परिवारों के लिये निष्पाप आनन्द का स्रोत बन चुका था।

[color=rgb(255,]समाप्त समाप्त समाप्त समाप्त समाप्त समाप्त समाप्त समाप्त[/color]
 
जय अपना एक हाथ माँ के स्तनों पर से हटा कर उनकी टाँगों के बीच डाला और उनके फड़कते हुए चोंचले को अपनी उंगलियों से रगड़ता हुआ उन्हें चरम लैंगिक आनन्द देने लगा। | माता की वासना लिप्त चीखों से उत्साहित होकर, और अपनी देह की अति - तीव्र क्षुधा से पागल होता हुआ जय उनकी कोमल कुलबुलाती गुदा में निर्दयतापूर्वक लम्बे सशक्त झटके मार-मार कर प्रहार कर रहा था, जिनके कारणवश उसकी माँ की सुडौल छरहरी देह थरथरा उठती थी, उनकी सम्मिश्र काम-क्रीड़ा के प्रभाव से माता-पुत्र की देह झकझोर रही थीं। | टीना जी के बलशाली ऑरगैस्म के कुछ ही सैकन्ड के अंतराल बाद उनकी कस के जकड़ती गुदा की माँसपेशियों ने जय को भी सैक्स तृप्ति के शिखर पर ला दिया और वो भी एक पाश्विक नाद करता हुआ उनकी गुदा में वीर्य स्खलन करने लगा।

। "आहहहहहहहह! रन्डी मम्मी! देख मैं तेरी गाँड में झड़ रहा हूँ! ले अपनी औलाद का वीर्य अपनी गाँड में ! ले चुकाया मैने तेरे दूध का कर्ज !"

अचानक अपनी कुलबुलाती गुदा में जय के गरम वीर्य की बौछारों का आभास पाकर टीना जी ने अपने नितम्बों को और भी अधिक बलपूर्वक उसके विस्फुटित होते लिंग पर फटकना शुरू कर दिया। वो कामुक माता अपनी लिंग से ठुसी हुई गुदा के भीतर भरती हुई लुभावनी ऊष्मा का पूरा-पूरा आनन्द उठा रही थी क्योंकि उनके सगे पुत्र का वीर्य उनकी गुदगुदाती गुदा को सराबोर कर रहा था। । "ओहहहह, जय !" उन्होंने लम्बी साँस ली। "मार अपने वीर्य की पिचकारी, मेरे लाल। भर दे माँ की गाँड अपने वीर्य से बेटा। दिखा अपने बाप को कि तू भी अब माँ की गाँड मार सकता है! दीपक इसे आशीर्वाद दो !"

हाँ हाँ टीना जरूर! हमारे लड़के ने कितना अच्छा काम किया है आज! बेटा वीर्य बहाओ, चूतों को चोदो! आज तुझे मालूम नहीं, कि मैं और तेरी मम्मी कितनी खुश हैं !" मिस्टर शर्मा ने टिप्पणी की।

जय तो आनन्द के मारे सर से पाँव तक काँप रहा था, वो अपने वीर्य से लबालब अण्डकोष को टीना जी की गुदा के भीतर लगातार खाली करता गया। और जब वीर्य की अंतिम बून्द उसके लिंग के सिरे से टपक गयी, तो लड़के ने अफ़सोसपूर्वक अपने लिंग को माता के वीर्य-भरे गुदा छिद्र से खींच निकाला।

पूरा कमरा सैक्स-क्रीड़ा के अनेक स्वरों से गुंजायमान हो रहा था। सोनिया कुतिया के समान राज के लिंग को पृष्ठ दिशा से ग्रहण किये हुए थी, और मिस्टर शर्मा उसी मुद्रा में डॉली के संग व्यस्त थे, जो अपनी मम्मी की वीर्य से लबालब योनि पर मुखमैथुन कर रही थी। | भोर के पहर तक ऐसी रंगरेलियाँ जारी रहीं, हर संभव मुद्रा में, और हर संभव जोड़े के दरम्यान। और दोनो पापी परिवारों ने उस फ़ार्महाउस को अगले दिल शाम तक नहीं छोड़ा। कभी जोड़े बनाकर चोदते -चाटते , तो कभी त्रिकोणीय सम्भोग करते, और यहाँ तक की कभी-कभी तो चार-चार लोग इकट्ठे सैक्स का आनन्द भी लेते। उन्होंने कामशास्त्र में वर्णित हर सम्भव मुद्रा का उपयोग किया, जिसकी कल्पना उनके वासना से पागल मस्तिष्क कर सकते थे।
 
103 अंतिम अध्याय

टीना जी स्वयं अपने ऑरगैस्म की प्राप्ति के निकट थीं। जिस कोण से जय का लिंग उनकी गुदा में प्रविष्ट हुआ था, और उनके पुत्र के पुरुषांग की विलक्षण मोटाई के फलस्वरूप उनके चोंचले पर बेहतरीन मालिश जारी थी। शीघ्र ही, पापमय लैंगिक आनन्द की लहरों पर लहरें उनके तन बदन में उमड़ने लगीं। जैसे-जैसे उनका बलिष्ठ पुत्र उनकी संकरी जकड़ती गुदा के भीतर और अधिक बलपूर्वक तथ अधिक गहरा ठेलता जाता, टीना जी अपने स्नायुओं में तीव्र कामोन्माद के गुबार को पनपता हुआ महसूस करने लगी थीं।।

"हरामजादी, जय हाँफ़ कर बोला, उसका लिंग माता की गुदा को छेदता जा रहा था। "आज तो गजब की टाइट हो मम्मी !

"जानती हूँ जानेमन वे खिलखिलायीं। "पर तू अपनी बेचारी माँ की गाँड की अच्छी खींचतान कर रहा है, क्यों बे, माँ के बड़वे ?"

टीना जी ऊत्तेजित होकर अपनी टुंसी हई गुदा को उचका-उचका कर पुत्र की रौन्दती छड़ के विपरीत झटकने लगीं। उनके वासना से ओतप्रोत बदन के रोम-रोम में पाप भरा दैहिक आनन्दप्रवाह होने लगा। जब-जब वे अपने कुलबुलाते नितम्बों को पुत्र के ठेलते लिंग पर दे पीटतीं, उनके परालौकिक आनन्द की तीक्षणता बढ़ती जाती।

"ऊ ऊ ऊ ऊह, जय, मेरे लाल !" वे हाँफ़ीं, और बेक़रारी से अपनी गुदा को पुत्र के कौन्धते लिंग पर घुमाने लगीं। "हे ईश्वर, कितना मोटा, कितना सॉलिड है तेरा ये लौड़ा :: ऊ ऊहहहहहहह! मादरचोद, मैं झड़ने वाली हूँ! ::: मैं झड़ने वाली हूँ! चोद साले! चोद कस के रन्डी की औलाद !" ।
जय माँ के तन पर आगे हाथ बढ़ाकर उनके सुडौल गोलाकार स्तनों को दबोचा और गुदामैथुन की गति को और अधिक कर दिया।

ओहहह, सदके जावाँ! ओ ओहहह, मादरचोद! उहहहहहह! चोद अपनी माँ को !" टीना जी निर्लज्जता से अपने नितम्बों को फटकती हुई बिलबिलायीं।।
 
अपने पंजों में टीना जी के सुडौल कूल्हों को दबोच कर जय ने अपने चिकनाहट से सने हुए लिंग को आगे की ओर धकेला। उसने अपने फूले हुए सुपाड़े को अचानक अपनी माता की बेहद - कसी हुई गुदा-द्वार की माँसपेशियों को भेदते हुए अनुभव किया। उसका लिंग माँ के गुदा- छिद्र को भेद कर गुदा की आग्नेय गहरायी में उतर गया।

कुछ देर जय बिना हिले-डुले ज्यों का त्यों जमा रहा जब तक कि उसकी माँ की गुदा उसके मोटे लिंग द्वारा अचानक हुए अतिक्रमण की आदी नहीं हो जाती। फिर आखिरकार जय ने अपने लिंग को धीरे-धीरे टीना जी की चिकनी जकड़ती संकराहट में से वापस पीछे खींचना आरम्भ किया, जब तक केवल उसका सुपाड़ा मात्र अंदर धंसा रह गया। फिर उसने आगे की ओर ठेल दिया, जैसे ही उसका लिंग उनकी ज्वालामुखी जैसी सुलगती गुदा के भीतर घुसा, तुरंत उसे अपने लिंग की सम्पूर्ण लम्बाई पर एक गुदगुदाती रोमांचक अनुभूति का अनुभव हुआ।

"दर्द तो नहीं हो रहा, मम्मी ?" वो हाँफ़ता हुआ बोला, और अपने लिंग को और जोर से टीना जी की तंग गुदा में और गहरा घोंपने लगा।

"मादरचोद, तूने अपना साँड जैसे लौड़ा मेरी बेचारी गाँड में घुसेड़ रखा है और पूछता है दर्द तो नहीं होता !" टीना जी चीख पड़ीं। "अपने पहलवान बेटे से गाँड मरवाने से जो दर्द होता है, बड़ा मीठा होता है! तू लगे रह, एक सैकन्ड भी नहीं रुकना! देखो दीपक हमारा बेटा कैसे माँ की गाँड मार रहा है !"

"चक दे पट्ठे, मार माँ की गाँड ऐसी गरम गाँड तुझे इस शहर के किसी रन्डी खाने में नहीं मिलने की! तेरे बाप ने हर घाट का पानी पिया है, पर तेरी माँ जैसी टाइट गाँड नसीब से मिलती है !" मिस्टर शर्मा ने पुत्र का उत्साहवर्धन किया।

अपनी माँ की सिकोड़ती गुदा की मक्खन सी कोमलता के भीतर लयबद्ध रीती से ठेलते-ठेलते जय के नवयुवा स्नायुओं में शीघ्र ही लैंगिक आनन्द की लहरियाँ उमड़ने लगीं। अपने लिंग पर मातृ - गुदा की तप्त चिकनाहट द्वारा मालिश करवाता हुआ जय कामोत्साह से अपने कठोर लिंग को टीना जी की तंग गुदा के भीतर - बाहर रौन्दता चला जा रहा था। वो अपने क्रुद्ध लिंग पर टीना जी की गुदा के कोमल पुचकारते माँस की नमी को जकड़ता हुआ अनुभव कर रहा था। अपनी माँ की तप्त गुदा में हर झटके के साथ जय के पुरुष स्तम्भ पर ऊपर और नीचे दौड़ते हुए तीव्र लैंगिक आनन्द की तीक्षणता में वृद्धि हो रही थी।
 
ऊ ऊ ऊ ऊह, शाबाश !" टीना जी चीखीं। "हिचकता क्यों है मादरचोद, घुसा और अंदर, टटोल अपनी रन्डी माँ की गाँड ।" ।

वो अपने लिंग को तो उनकी योनि के भीतर फुर्ती से ठेल ही रहा था, साथ में जय ने अपने अंगूठे की समूची लम्बाई को भी अपनी माँ की गुदा में दे घोंपा। फिर जब उसने अपने अंगूठे को घुमा- घुमा कर उनकी संकरी और मक्खन सी चिकनी गुदा के भीतर कुरेदना शुरू किया, तो कुछ ही पलों में उसकी माँ प्रसन्नता के मारे बिलबिलाने लगी।

"ओहहहह, जय," उन्होंने उत्तेजित स्वर में पूछा। "बड़ी मस्ती आ रही है! जानता है मेरा दिल तुझसे क्या करवाने को चाहता है ?"

"क्या ?"

* मादरचोद, मैं चाहती हूँ तू मेरी गाँड मारे !" उन्होंने आह भरी, और उत्कट कामुकता से पलट कर अपने कन्धों के ऊपर से अपने हृष्ट-पुष्ट पुत्र को स्वागतपूर्ण निगाहों से देखने लगीं। "चोद मम्मी की गाँड अपने काले मोटे लन्ड से, मेरे लाल !"

"जरूर !!!", जय हँसता हुआ बोला, और के लिसलिसी 'स्लप्प' की बेहूदी आवाज के साथ अपने लिंग को माता की योनि से खींच निकाला।

उसने एक हाथ उनके नीचे बढ़ाया और अपनी उंगलियों को उनके रिसते योनि स्थल पर फेरा, वो अपनी माता के चिपचिपे योनि-द्रवों को उनके तंग गुदा-छिद्र और अपने सुपाड़े पर चुपड़-चुपड़ कर मलता जा रहा था, ताकि सहजता से गुदा को भेद सके और गुदा-मैथुन का पर्याप्त आनन्द भी उठा सके।

"मम्मी, आपको थोड़ा दर्द तो होगा" अपने लिंग के सुपाड़े को उनके तंग गुदा-छिद्र पर सटाता हुआ जय बोला।

* कोई बात नहीं, मेरे पहलवान पट्ठे," उन्होंने जवाब दिया। "जो हरामजादी तुझ जैसे मोटे लन्ड वाले पहलवान को जनम दे सकती है, वो अपनी गाँड में उस लन्ड को झेलने का दम भी रखती है! तुझे कोई शक़ हो तो घुसेड़ अपना लौड़ा और आजमा ले अपनी माँ को! साले मेरी गाँड में ऐसी गर्मी है, कि अच्छे अच्छे झड़ जाते हैं! बड़ा आया भोंसड़ी वाला दर्द करने ! घुसा अपना लौड़ा, मादरचोद !"
 
102 दो परिवारों का मिलन

राज के शीथील पड़े लिंग को अपने मुँह में पुनर्जीवित कर के उसके विकराल आकार की पुनस्र्थापना कर लेने के उपरांत किशोरी सोनिया अब उस नौजवान के दानवी लिंग पर चढ़कर घोड़े की तरह उसकी सवारी कर रही थी।

"और दम लगा! और कस के चोद मुझे !" वो बिलबिलायी। "ऊ ऊ ऊहहहह ! रन्डी की औलाद, क्या मस्त है तेरा मोटा लन्ड !"

उसके आकर्षक नग्न नितम्ब उत्कृष्टता से सिहर रहे थे, और उसकी तप्त जकड़ती योनि बड़े उत्साह से राज के घोंपते हुए काले लिंग की लम्बाई पर चढ़-चढ़ कर नीचे फटकती जाती थी। उस कामुक किशोरी को तो स्मरण भी नहीं था कि पहले कब उसे ऐसे विलक्षण उन्माद का अनुभव हुआ जिसका अनुभव वो उस समय कर रही थी।

"ऊ ऊ ऊ ऊह, बड़वे की औलाद !" वो बिलबिलायी, अपनी योनि को राज के घोंपते लिंग पर चारों ओर से सिकुड़ते ढिलते हुए अनुभव कर रही थी। "ले मैं झड़ी! झड़ गयी साले! ऊ ऊ ऊ ऊ ऊह! झड़ी ये झड़ी !" | रन्डी कहीं की !" जय खिलखिलाया, वो अपनी माँ के पीछे घुटने टेककर अपने लम्बे तने हुए लिंग को उनकी मोटी-मोटी कोपलों वाली योनि के भीतर घुसेड़ रहा था। "देखो मम्मी, अपनी सोनिया कैसी मद-मस्त होकर राज से चुद रही है।"

"उम्म! उहहह! हाँ जय बेटा, आखिर उपज है खानदानी रन्डियों की, इसको तो रोज नये मर्द चाहियें।" टीना जी ने गुर्रा कर जवाब दिया, और अपने नितम्बों को पीछे धकेल कर अपने पुत्र के सशक्त लिंग - प्रहारों झेलने लगीं। "पर बेटा तू' :: उहहह मादरचोद ! ::: तू ब : 'बस मुझे चोदने में अपना ध्यान लगा, समझा मेरे लाल ! बाद में तसल्ली से अपनी बहन को भी चोद लेना! उहहह ऊँहहह! ईश्वर! आहहह! चोद अपनी माँ को मादरचोद रन्डी की औलाद !"

जय ने अपना पूरा सामर्थ लगा कर अपने लिंग को माँ की योनि में पीटना प्रारम्भ कर दिया। साथ-साथ वो अपने अंगूठे द्वारा अपनी माँ के तंग और कसैल गुदा-छिद्र को भी टटोल रहा था।

"घुसा अपनी उंगली माँ की गाँड के अंदर, मेरे लाल। जानता नहीं तेरी मम्मी को गाँड में उंगल करवाने से कैसी मस्ती चढ़ती है !", टीना जी ने हाँफ़ते हुए कहा, और हाथों को पीछे बढ़ा कर अपने नितम्बों को जय के लिये फैला कर गुदा-द्वार को खोल दिया।

जय ने अपने अंगूठे को उनकी योनि पर रगड़ा ताकि वो उनके द्रवों से चुपड़ कर चिकनाहट से सन जाये, फिर अपने अंगूठे को अपनी माँ की गर्मायी हुई कसैल गुदा में दे घुसाया।
 
सोनिया ने घुटनों के बल झुककर राज के संग ठीक ऐसा ही किया। वो राज के चमचमाते काले लिंग पर अपनी माँ की योनि के स्वाद को चखकर और भी उत्तेजित हो गयी। उसे वह स्वाद इतना भा गया कि, उसने प्रण किया कि भोर फटने से पहले वो अपनी माँ की योनि का स्वाद सीधे चख कर रहेगी।

"या ऊपर वाले !" जब आखिरकार उन्होंने अपने गरम चूसते मुख को मिस्टर शर्मा के होठों से अलग किया तो रजनी जी कराह कर बोल पड़ीं। "जानेमन मुद्दत से तुझसे चुदने का अरमान था! अब चोद भी डाल मुझे ! इसी वक़्त, इसी जगह चोद डाल !!" । | सोनिया ने माँ की काम क्षुधा की तीव्रता को भाँप लिया। मिस्टर शर्मा के फड़कते लिंग पर से अपने मुँह को हटा कर वो नटखट लहजे में मुस्कुराने लगी।

"मम्मी, आप मेरी चूत को चाटिये ! सोनिया ने आह भरी। "जब शर्मा अंकल आपको चोद रहे होंगे, तो आप मेरी चूत चाटिये, फिर मैं आपकी चूत से अंकल का वीर्य साफ़ करूंगी, और अंकल मुझे चोदेंगे !" | अपने पड़ोसी के विलक्षण लिंग के साथ कामक्रीड़ा करने, और साथ में अपनी कामुक पुत्री पर मुखमैथुन करने के विचार मात्र से रजनी जी अति उत्तेजित हो उठीं, और अपनी पीठ के बल लेटकर बेहदी निर्लज्जता से अपनी सुडौल जाँघों को खोल कर फैला दिया।

* ऊहह, शब्बो, मेरी जान! आ मम्मी के मुँह बर बैठ मेरी बच्ची !" उन्होंने हाँफ़कर कहा।। | जैसे डॉली ने अपनी चूती योनि को अपनी मम्मी के मुंह पर रखा, मिस्टर शर्मा रेंग कर रजनी जी की टाँगों के बीच आ पहुँचे और अपने फूले हुए लिंग को उनकी योनि की चौड़ी पटी हुई कोपलों के बीचों-बीच साधा। रजनी जी ने उनके विकराल लिंग के मोटे तने को देखकर लम्बी साँस भरी और उनके फूले सुपाड़े को अपनी योनि की कोपलों की फिसलन भरे आलिंगन में भर लिया।

मिस्टर शर्मा ने आगे की ओर ठेला और रजनी जी उनके मोटे गात्र के लिंगस्तम्भ को अपनी तप्त योनि की लिसलिसी संकराहट के भीतर गहरे, और गहरे घुसते हुए अनुभव करके हौले से कराह उठीं। अपने अंदर उन्हें लिंग का आकार अतिविशाल प्रतीत होता था, परन्तु जैसे-जैसे मिस्टर शर्मा का दानवाकार लिंग उनकी योनि को भरता गया, उस वासना से बेसुध स्त्री ने पल-दर-पल का पूरा-पूरा आनन्द लिया।

ऊ ऊ ऊ ऊ ऊह, शाबाश," जब उस वयस्क पुरुष का लिंग उनकी ज्वलन्त कामगुहा में सम्पूर्णतय विलीन हो गया, तो वे कराह कर बोल उठीं। "बस, अब शुरू हो जा! चोद चोद कर बेहाल कर दे मुझे, मैं भी देखें तेरी बीवी ने कैसा मर्द पाया है !" ।

मिस्टर शर्मा ने प्रारम्भ में संयम बरतते हुए अपने लिंग से टटोलते हुए ठेला, अब तक उन्हें अपनी पड़ोसन के काम अनुभव और प्रवीणता का अच्छा अनुमान हो चुका था, और अपने समक्ष इस कामांगना के वास्ते वे अपने पूरे पौरुष बल को जुटा रहे थे, अपने स्वयं के अनुभव का प्रयोग कर वे इस प्रवीणा की देह को तृप्त करने तथा अपने कामबल को प्रमाणित करने के लक्ष्य से अपनी रणनीति तय कर रहे थे। अपनी आरम्भिक लय स्थापित कर लेने के कुछ ही देर बाद वे रजनी जी के झूमते पेड़ में अपने पूरे सामर्थ्य से ठेलने लगे। उन्होंने अपनी निगाह रजनी जी की अकड़ी हई जिह्वा पर लगा रखी थी, जो बड़ी अदा से डॉली की रिसती योनि - कोपलों के मध्य विचर रही थी। रजनी जी को अपनी पुत्री की योनि में मुखमैथुन करते देख मिस्टर शर्मा अतिरोमांचित हो रहे थे। साथ ही उनकी कस के जकड़ती योनि का चिकनाहट से सना और तप्त माँस उनके मोटी-मोटी नसों वाले लिंगस्तम्भ, जिससे वे उनके संग रौद्र काम-क्रीड़ा कर रहे थे, की लम्बाई को प्रेमपूर्वक निचोड़ता हुआ चूस रहा था।

मिस्टर शर्मा को उनकी योनि की संकराहट पर विश्वास नहीं होता था, और जिस प्रकार रजनी जी किसी जंगली सिंहनी ही तरह अपनी आक्रामक योनि द्वारा उनपर झपट्टे मार-मार कर उनके बलशाली ठेलों का उचित प्रत्युत्तर दे रही थी, वह भी रजनी जी की रूहानी कैफ़ियत का सूचक थी। उनकी रौद्र प्रणय-लीला के छपाकेदार स्वर पूरे कमरे में गूंज रहे थे।
 
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