सोनिया ने घुटनों के बल झुककर राज के संग ठीक ऐसा ही किया। वो राज के चमचमाते काले लिंग पर अपनी माँ की योनि के स्वाद को चखकर और भी उत्तेजित हो गयी। उसे वह स्वाद इतना भा गया कि, उसने प्रण किया कि भोर फटने से पहले वो अपनी माँ की योनि का स्वाद सीधे चख कर रहेगी।
"या ऊपर वाले !" जब आखिरकार उन्होंने अपने गरम चूसते मुख को मिस्टर शर्मा के होठों से अलग किया तो रजनी जी कराह कर बोल पड़ीं। "जानेमन मुद्दत से तुझसे चुदने का अरमान था! अब चोद भी डाल मुझे ! इसी वक़्त, इसी जगह चोद डाल !!" । | सोनिया ने माँ की काम क्षुधा की तीव्रता को भाँप लिया। मिस्टर शर्मा के फड़कते लिंग पर से अपने मुँह को हटा कर वो नटखट लहजे में मुस्कुराने लगी।
"मम्मी, आप मेरी चूत को चाटिये ! सोनिया ने आह भरी। "जब शर्मा अंकल आपको चोद रहे होंगे, तो आप मेरी चूत चाटिये, फिर मैं आपकी चूत से अंकल का वीर्य साफ़ करूंगी, और अंकल मुझे चोदेंगे !" | अपने पड़ोसी के विलक्षण लिंग के साथ कामक्रीड़ा करने, और साथ में अपनी कामुक पुत्री पर मुखमैथुन करने के विचार मात्र से रजनी जी अति उत्तेजित हो उठीं, और अपनी पीठ के बल लेटकर बेहदी निर्लज्जता से अपनी सुडौल जाँघों को खोल कर फैला दिया।
* ऊहह, शब्बो, मेरी जान! आ मम्मी के मुँह बर बैठ मेरी बच्ची !" उन्होंने हाँफ़कर कहा।। | जैसे डॉली ने अपनी चूती योनि को अपनी मम्मी के मुंह पर रखा, मिस्टर शर्मा रेंग कर रजनी जी की टाँगों के बीच आ पहुँचे और अपने फूले हुए लिंग को उनकी योनि की चौड़ी पटी हुई कोपलों के बीचों-बीच साधा। रजनी जी ने उनके विकराल लिंग के मोटे तने को देखकर लम्बी साँस भरी और उनके फूले सुपाड़े को अपनी योनि की कोपलों की फिसलन भरे आलिंगन में भर लिया।
मिस्टर शर्मा ने आगे की ओर ठेला और रजनी जी उनके मोटे गात्र के लिंगस्तम्भ को अपनी तप्त योनि की लिसलिसी संकराहट के भीतर गहरे, और गहरे घुसते हुए अनुभव करके हौले से कराह उठीं। अपने अंदर उन्हें लिंग का आकार अतिविशाल प्रतीत होता था, परन्तु जैसे-जैसे मिस्टर शर्मा का दानवाकार लिंग उनकी योनि को भरता गया, उस वासना से बेसुध स्त्री ने पल-दर-पल का पूरा-पूरा आनन्द लिया।
ऊ ऊ ऊ ऊ ऊह, शाबाश," जब उस वयस्क पुरुष का लिंग उनकी ज्वलन्त कामगुहा में सम्पूर्णतय विलीन हो गया, तो वे कराह कर बोल उठीं। "बस, अब शुरू हो जा! चोद चोद कर बेहाल कर दे मुझे, मैं भी देखें तेरी बीवी ने कैसा मर्द पाया है !" ।
मिस्टर शर्मा ने प्रारम्भ में संयम बरतते हुए अपने लिंग से टटोलते हुए ठेला, अब तक उन्हें अपनी पड़ोसन के काम अनुभव और प्रवीणता का अच्छा अनुमान हो चुका था, और अपने समक्ष इस कामांगना के वास्ते वे अपने पूरे पौरुष बल को जुटा रहे थे, अपने स्वयं के अनुभव का प्रयोग कर वे इस प्रवीणा की देह को तृप्त करने तथा अपने कामबल को प्रमाणित करने के लक्ष्य से अपनी रणनीति तय कर रहे थे। अपनी आरम्भिक लय स्थापित कर लेने के कुछ ही देर बाद वे रजनी जी के झूमते पेड़ में अपने पूरे सामर्थ्य से ठेलने लगे। उन्होंने अपनी निगाह रजनी जी की अकड़ी हई जिह्वा पर लगा रखी थी, जो बड़ी अदा से डॉली की रिसती योनि - कोपलों के मध्य विचर रही थी। रजनी जी को अपनी पुत्री की योनि में मुखमैथुन करते देख मिस्टर शर्मा अतिरोमांचित हो रहे थे। साथ ही उनकी कस के जकड़ती योनि का चिकनाहट से सना और तप्त माँस उनके मोटी-मोटी नसों वाले लिंगस्तम्भ, जिससे वे उनके संग रौद्र काम-क्रीड़ा कर रहे थे, की लम्बाई को प्रेमपूर्वक निचोड़ता हुआ चूस रहा था।
मिस्टर शर्मा को उनकी योनि की संकराहट पर विश्वास नहीं होता था, और जिस प्रकार रजनी जी किसी जंगली सिंहनी ही तरह अपनी आक्रामक योनि द्वारा उनपर झपट्टे मार-मार कर उनके बलशाली ठेलों का उचित प्रत्युत्तर दे रही थी, वह भी रजनी जी की रूहानी कैफ़ियत का सूचक थी। उनकी रौद्र प्रणय-लीला के छपाकेदार स्वर पूरे कमरे में गूंज रहे थे।