अधूरी प्यास को अंग लगा लो

sexstories

Administrator
Staff member
हाई दोस्तों,

मेरा नाम नीरज है दोस्त लोग प्यार से मुझे टल्लु कहकर बुलाते हैं | मैं आपको बता नही सकता कि मैंने आज तक कितनी अबला नारियों कि चुत को रंगीन किया है और उनमें से एक आंटी कि कहानी आपको मैं सुनाने जा रहा हूँ | वो आंटी कोई और नहीं बल्कि एक दूसरे मौहल्ले ही अबला नारी थी जो देखने से बहुत ही सीधी धिकायी पड़ती थी और मैं उनपर बुरी नज़र के डोरे भी ना डालता अगर वो अपने घिसते हुए चूतडों को मुझे यूँ ना दिखाती | उस कांड के बाद से ही जैसे मैं उन आंटी को जैसे अपना दिल दे बैठा था और सुबह - हसाम उनका नाम लेकर ही लंड मसला करता था | एक दिन आंटी दूकान से सब्जी खरीद रही थी तभी आंटी से मेरी मुलाकात हो गयी |

मैं आंटी को मदद कराने लगा तो उन्होंने मुझे २ - ३ लौकी पकड़ा दी और मुझे घर तक थोडा सहारा देने को कहा पर वो क्या जानती थी मैं उसकी चुत तक सहारा देने को तैयार था | घर पर जाते ही आंटी ने मुझे अंदर बुला लिया और मेरे लिए चाय ले आई | मैं देखा कि अंदर घर में कोई ना था जिसपर मैंने उन्हें सवाल किया था तो उन्होंने बताया कि उनके पति अक्सर ही काम के सिलसिले में बहार रहते हैं और घर पर अकेली ही रह जाती हैं | आंटी का कोई बच्चा भी नहीं था जिससे मैं उनकी चुत कि प्यास के बारे में सोचा उनपर मौका मारने के लिए अपना हौंस बंधाने लगा | मैंने उसने इधर - उधर के कुछ और सवाल किये जिससे मुझे उनके शारीरिक रूप से भी अकेले रह जाने का पता चल गया |

मैंने इतने में आंटी के अनसून निकलते देखे ओर वो अपने पति को गाली देते हुई उन्हें स्त्री - सुख ना प्रदान करने के लिए गाली देने लगी जिसपर मैंने मौका मारते हुए उसके पीठ पर हाथ फेरते हुए उन्हें सहलाया और कहा कि जन इतना बड़ा जवान लड़का सामने हो तो शारीरिक सबंध की चिंता ना करें | उनके चेहरे पर जैसे अब एक चमक सी आ गयी थी और वो तभी उन्होंने ने मेरे पजामे के उप्पर से मरे लंड को अपने हाथों कि कैद में ले लिया | मुझे भी अब अपने सारी कामनायों कि पूर्ती होते हुई नज़र आने लगी | मैंने आंटी कि कुर्ती को उठाया तो मुझे सबसे पहले उनका गोरा पेट नज़र आया जिसे मैं चूमने लगा और आंटी मचल कर मेरे सर दबाव देने लगी |

अब धीरे - धीरे आंटी के बदन में कामुक गुदगुदियाँ बन रही थी | मैंने उनकी कुर्ती को और उप्पर उठे और फिर काले धारी वाले ब्रा को भी उतार दिया | बब्बा रे .. . अंटी के मोटे चुचों और वो खासकर गोरे - गोरे चुचों को देखा तो मैं जैसे पागल ही हो गया | मैं उन्हें अपने हाथ से दबाता हुआ पूरे मुंह को फाडकर पी रहा था और आंटी कामुक आवाजें निकाल मेरा मन बहला रही थी | मैंने मज़े में डूबे हुए अपब अंटी कि सलवार को खोल उनकी पैंटी को निकला और सूंघने लगा जिसमें से उनकी ताज़ी - ताज़ी चुत कि खुसबू आ रही थी | मैं आंटी कि चुत को देखने के लिए अब बेचैन हो उठा | मैंने अब आंटी कि चुत को देखा और अपनी कुछ को उसमें फिराने लगा |

कुछ देर में आंटी कि चुत का मक्खान्न भी निकल आया जिसे मैंने अपनी जीभ से पोर का पूरा ही चाट लिया | मैंने मज़े मज़े में अपने लंड को निकला और आंटी के मुंह में देदाला जिसे आंटी भी बिलकुल आँखों टिमटिमाती हुई चूसने लगी | मैंने नीचे से आंटी के चुत में अपनी चार उँगलियों के जाने लायक रास्ता बना लिया था और जैसे भी मैं भी बिलकुल तन गया तो अपने लंड को उनकी जाँघों को उघारते हुए सता दिया और फटाक से दिया अपनी जान का झटका जिसपर आंटी जोर से गुदगुदा उठी | मैं अपने आप को अब रोका नहीं और बस उनके कन्धों का सहारा लेता हुआ किसी गाडी कि तरह अपने लंड को उनकी चुत में आगे पीछे करते चला गया |

आंटी मिल रहे इस यौन सुख में खोयी हुई थी और अपनी गांड हिलाकर खूब मज़े ले रही थी | आखिर में कुछ एक घंटा बाद मेरे घड़ा पीला मुठ निकला जिसको अंत ने अपने मुंह भर चाट लिया | चुदाई के बाद काफी देर चुम्मा - चाटी करने लगे और मेरे जाने से पहले आंटी ने मुझे आशीर्वाद दिया और साथ ही अगली बार जब मन करे उनकी चुदाई करने तो फटाक से घर आ जाने के लिए खुल्ला मौका भी दे दिया | अब से मुझे जब भी मौका मिलाता तो मैं आंटी के घर चल पड़ता और हम अलग - अलग मुद्रा में अपनी यौन - क्रिया कि आग भुजाय करते |
 
Back
Top