चलते हुए ठेले पर अपनाया नया रिश्ता

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नमस्कार दोस्तों,

मेरा नाम दीवाला पाण्डेय हैं और आज तक मैं अपनी पूरी जिंदगी में कई लड़कियों का दीवाला निकाल चूका जिसमें से बहुत ही खूबसूरत किस्स्सा आपके सामने रखने जा रहा हूँ | दोस्तों यह उस लड़की की है जोकि मेरे ही ठेले के सामने अपना ठेला लगाया करती थी | मेरा ठेला अक्सर मेरे शहर के मैं हाईवे पर फुल फलों को लगता था और वहीँ उसके सामने वो फुल और फओलं का ठेला लगाया करते थे | आस- पास में ठेला लगाने की वजह से बिक्री करते हुए हमारी दोस्ती हो गयी क्यूंकि वैसे भी हम शहर में नए ही आये हुए थे | वहाँ जब रात हो जाया करती थी तो हम सड़क के किनारे ही सारा समान अपने ठेले के नीचे रखकर उसके उप्पर ही अपना बिछोना लगकर सोया करते थे | अब हमारे दिन इसी तरह निकलते और आपसी सम्बन्ध भी बड़े मजबूत होते चले गए थे |

क्यूंकि हम दोनों कुंवारे थे और अपनी गरीबी पर रोते हुए किसी भी तरह गुज़ारा कर रहे थे, धीरे - धीरे उम्मीद रखकर एक दूसरे की दिनचर्या में मदद भी करने लगे और अब तो हम रिश्ते वालों की आपस में मिल चुके थे | मैं कभी उससे बात करता तो बीच में अपनी चलता हुआ उसके हाथ को भी थाम लेता जिसपर वो शरमाकर अपने हाथ को सहला लिया करती | और इसी रोज ठंडी के मौसम भी चल रहे थे तो हमने रात को एक ही ठेले पर सोने का फैसला किया | रात को सोते वक्त मेरे अंदर कुछ ज्यादा ही गर्माहट भर पढ़ी और मैं हाथ को सहलाते हुए उसे भी गर्म करने लगा | कुछ देर बाद मेरे हाथ उसकी कुर्ती के अंदर पहुँच गए और वो शर्माने के अलावा मुझे कुछ ना बोली और थोड़ी देर में ही मैंने उसकी कुर्ती को खीच लिया और उसके मस्त गर्म चुचों को पीते हुए जमकर दबाने लगा |

मैंने अब उसके पजामे के नाडे को भी खोल अपनी गुगुदी उंगलियां अंदर के कोमल हिस्से पर मसलने लगा | वो अब मुझे कामुक मुस्कान देती हुई जैसे चोदने को चुदने की इक्षा प्रकट करने लगी | मैंने भी उसके उप्पर चढ़ते हुए उसकी चुत में ऊँगली करनी शुरू कर दी और उसकी टांगों को खोलते हुए अपने लंड को उसकी चुत पर में देते हुए ज़ोरदार झटका मारने लगा मेरा लंड भी उसकी चुत में पूरा नादर - बाहर होने लगा और वो अपने पॉंव को ठेले पर ही झटकते हुए सिस्कारियां ले रही थी | मैंने भी अन उसकी चुदाई की बुरी तरह ठोक बजाकर करनी शुरू कर दी | मैंने उसे चोदने जारी रखा और चुद्तों को भी साथ - साथ मसल रहा था | वो भी बेचैन होकर अपनी चुत को उप्पर उँगलियों से मसल रही थी जिसपर मैंने उसके होठों अपने होठों से भेच चूसना नहीं छोड़ा | मैं उसकी चुदाई के दौरान बड़ा मस्त होता चला जा रहा था |

कुछ देर बाद जब मुझे होश आया तो हमारा ठेला ढला की और चलने लगा था क्यूंकि हमने अपने पहिन्ये के नीचे पत्थर नहीं लगाये थे | मुझे अब किसी भी चीज़ की चिंता नहीं थी मैं उसकी चुत पर अपनी कमर को उछाले अपने लंड के जोर आजमाए जा रहा था और वो भी आःह अहहह करके दर्द भरी सिसकियाँ लेती हुई चींख रही थी | करीब १५ मिनट तक अपने लंड के जोर मारता हू अपने वीर्य को उसी के उप्पर छोड़ दिया जिसे वो चादर से साफ़ करने लगी | अब मेरी जब अचनक नज़र पड़ी तो आगे एक खम्बा था जिससे हमारा ठेला टकराया और हम नीचे को गिर - पड़े पर उठे तो हमने अपना नया रिश्ता कायम कर चूका था |
 
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