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Chachi Ki Chut Chudaai

हेलो फ्रेंड्स। मेरा नाम अजय है। अभी कुछ दिनों पहले, मैं अपनी चाची के घर रुका था। चाचा अपने काम से दूसरे शहर में गए थे और गाँव में चाची अपने बच्चे के साथ अकेली थी।

मैं चाची के घर पर उनके कमरे में ही सोता था क्यूँकि ठंडी का मौसम था और वैसे भी चाची की गाँड़ फटी हुई थी। वैसे तो मैंने चाची को हवस भरी नज़रों से देखा तो नहीं था, लेकिन चाची अनजाने में मेरी वासना की ज्वाला को भड़का रही थी।

सबसे पहले तो मैं चाची के घर पहुँचने पर हुई घटना के बारे में बताना चाहूँगा। मैं दोपहर के वक़्त चाची के घर पहुँचा था, इसलिए चाची ने मुझे दोपहर का भोजन करवाया। खाना परोसते वक़्त, चाची अपने गोल-मटोल चूचियों के दर्शन दे रही थी।

मैंने १-२ बार अपनी नज़र हठा दी थी लेकिन ऐसी गोरी और मोटी चूचियों के दर्शन रोज़ कहाँ मिलते हैं, ऐसा सोचकर मैं उन्हें ताड़ने लगा था। मेरी चाची की एक आदत जो मुझे उकसाह रही थी वह थी, कहीं पर भी अपनी चूत या गाँड़ को खुजाने की।

चाहे वह रसोई-घर में अपना काम करती रहे या फिर मुझसे बातें करती रहे, मेरी चाची अपनी चूत या गाँड़ बिना किसी सँकोच के खुजाने लगती थी। हम दोनों चाय पी रहे थे। चाची का बच्चा घर के आँगन में खेल रहा था।

मुझसे इधर-उधर की बातें करते हुए चाची मैक्सी के अंदर अपना हाथ घुसाकर चूत खुजलाने लगी। बाद में, कुछ अजीब हुआ ही न हो ऐसा बर्ताव करने लगी। फिर एक बार ऐसा हुआ कि मैं पानी पीने रसोई-घर में गया था।

वहाँ का दृश्य कुछ ऐसा था-चाची रोटी बना रही थी। उसने अपना दायाँ हाथ मैक्सी के अंदर घुसा दिया और अपनी काली चड्डी को नीचे खींचा। अपनी उँगली से गाँड़ की छेद को खुजाकर कपड़े बराबर करके उसी हाथ से काम करने लगी।

इतना सब देखकर मेरी बुद्धि भ्रष्ट होने लगी थी। ऊपर से ठंडी के मौसम की वजह से मेरा लौड़ा हर समय तनकर तैयार ही रहता है। मैंने सोच लिया था कि रात को चाची के साथ सोते वक़्त उसके साथ थोड़ी मस्ती करूँगा।

एक रात, रोज़ की तरह हम तीनों साथ में सोने की तैयारी कर रहे थे। चाची बिच में सोती थी, मैं और उसका बच्चा उसके अगल-बगल में। रात को चाची मेरी तरफ़ अपनी मोटी गाँड़ रखकर सोती थी।

रात को जब चाची सब के लिए गरम दूध लेकर आई थी, तभी मैंने उसके दूध की गिलास में मेटासिन सिरप मिला दी थी। मेटासिन सिरप साधारण-सी दवाई है जो सर्दी-ख़ासी से राहत देती है। मगर उसे पीने से नींद और सुस्ती बहुत आती है।

हम सब गरम दूध पीकर सो गए। १ घंटे बाद, मैंने देखा कि चाची मेरी तरफ़ अपनी गाँड़ रखकर गहरी नींद में सोई थी। मैंने अपने हाथ को चाची के जाँघ पर रखकर उसे कुछ देर सहलाया। चाची ने कोई विरोध नहीं किया और वह गहरी नींद में सोती रही।

मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैंने अपना हाथ उसकी मैक्सी के अंदर घुसा दिया। चाची की नंगी जाँघ को सहलाते हुए मैंने उसकी चड्डी में हाथ घुसाकर उसकी चूत को रगड़ने लगा। मैं पूरी तरह से उत्तेजित हो गया था।

मैंने अपनी पैंट में से अपना लौड़ा निकालकर चाची की गाँड़ पर चिपका दिया। उसकी चूत को कुछ देर तक रगड़ने के बाद उसका पानी छूटने लगा था। मैंने अपनी उँगली को चाची की चड्डी से निकाल दिया।

धीरे से उसकी चड्डी उतारकर मैं उसकी गाँड़ की तरफ़ मुँह करके लेट गया। चाची की गाँड़ की दरार को अपनी उँगली से रगड़ते समय मेरा लौड़ा पूरी तरह से तनकर खड़ा हो गया था। मैंने चाची के चुत्तड़ को फैलाकर उसकी गाँड़ की दरार को अपनी ज़ुबान से चाटने लगा।

गाँड़ की दरार को अच्छी तरह से गीला करके मैंने उसे चाची की गाँड़ की छेद के अंदर घुसा दिया। अपनी ज़ुबान को चाची की गाँड़ की छेद में अंदर-बाहर घुसाते वक़्त चाची पलटकर गाँड़ के बल लेट गई।

मैं उठ गया और चाची के नीचे आकर बैठ गया। उसके पैर फैलाकर मैंने अपनी उँगली को उसकी चूत में घुसा दिया। उसकी चूत की पँखुड़ियों को फैलाकर उसे चुदाई के लिए तैयार कर दिया।

मैंने अपनी पैंट पूरी उतार दी और जाकर चाची की जाँघों पर गाँड़ टिकाकर बैठ गया। अपने लौड़े की नोक को मैंने चाची की चूत की दरार पर कुछ देर रगड़ा और उसे चिकना कर दिया।

धीरे से अपना लौड़ा चाची की चूत में घुसाकर मैं उसे धक्के मारने लगा। चाची के झाँट के बालों पर हाथ घिसकर मैं मज़े ले रहा था। मेरी हवस की गर्मी बढ़ जाने की वज़ह से मैं चाची के ऊपर लेट गया और उसकी मैक्सी के अंदर अपने हाथ गुसा दिए।

उसकी चूचियों को पकड़कर मैं उन्हें दबाते हुए मसल रहा था। अपना मुँह मैंने चाची के मुँह के पास ले जाकर उसके होंठों को अपनी ज़ुबान से हलके-से चाटना शुरू किया। चाची के मुँह से निकलती गरम साँसे मुझे मधहोश कर रही थी।

मैं उत्तेजित होकर अपने लौड़े को ज़ोर-ज़ोर से उसकी चूत में घुसाने लगा। मैं इतना मस्त और गरम हो गया था कि किसी बात की परवाह न करते हुए मैंने चाची की चूचियों को बारी-बारी करके चूसने लगा।

उसके पूरे बदन पर अपना हाथ सहलाकर मैं उसे जगाने की कोशिश कर रहा था। मैंने चाची की टाँगे उठाकर अपने कंधों पर रखा और उसकी चूत की ठुकाई करता गया। मैंने ज़ोर-ज़ोर से चाची की चूत में अपने लौड़े को पटकना शुरू कर दिया।

तभी चाची की थोड़ी-सी आँख खुली। गहरी नींद में होने की वज़ह से उसने सिर्फ़ अपनी गर्दन दूसरी तरह घुमाई और अपनी आँखें बंद कर दी। चाची के ऊपर लेटकर उसकी चूत की ठुकाई करते समय मैंने अपने हाथों से कंबल को खींचकर अपने ऊपर चढ़ा दिया।

मैं नहीं चाहता था कि चाची का बच्चा चुदाई की आवाज़ सुनकर उठ जाए और मुझे उसकी माँ की ठुकाई करते देख ले। कुछ देर और चाची के ऊपर चढ़कर उसकी चूत की ठुकाई करने के बाद, मैंने चाची को दूसरी तरफ पलटा दिया था।

मैंने अपनी छाती को चाची के पिठ से चिपका दिया और उसकी जाँघ को पकड़कर उठा दिया। अपने लौड़े को मैंने चाची की गाँड़ की छेद के अंदर घुसाने की सोची। इलसिए मैंने अपनी दो उँगलियाँ चाची की गाँड़ में घुसा दी।

चाची की गाँड़ की चुस्त छेद में मेरी दोनों उँगलियाँ अच्छी तरह से अंदर घुसी ही नहीं। इसलिए मैंने बिच वाली उँगली को चाची की गाँड़ में घुसा दिया। जैसे ही मैंने अपनी बिच वाली उँगली को चाची की गाँड़ की छेद में घुसाया, चाची की गाँड़ में हलचल होने लगी।

मुझे जबरदस्ती अपनी उँगली को निकालनी पड़ी नहीं तो चाची वहीं पर हग देती। शायद चाची को उसकी आदत नहीं होगी ऐसा सोचकर मैंने अपना मूड ख़राब होने नहीं दिया। मैंने चाची की चूत को कुछ देर रगड़ा और अपने लौड़े को उसके अंदर घुसा दिया।

चाची की गाँड़ पर अपने लौड़े को पटकते हुए मैं उसकी चूत की चुदाई करने लगा। उसकी मोटी जाँघ को पकड़कर मैं अपने लौड़े को उसकी चूत में ज़ोर-ज़ोर से घुसाने लगा। मैं इतना उत्तेजित हो गया था कि मुझे चाची का भारी शरीर भी हल्का लगने लगा था।

मेरे लौड़े का पानी निकलने वाला था, इसलिए मैंने चाची को सीधा लेटा दिया और उसकी मैक्सी को ठीक करके उसके बदन को ढक दिया। मैंने अपना लौड़ा हिलाकर पानी को चाची की चड्डी पर निकाल दिया था।

वहीं चड्डी मैंने चाची को पहना दिया और अपने कपड़े पहनकर सो गया। अगले दिन, सुबह चाय पीते वक़्त, चाची मुझसे बोली कि अगली बार सब हो जाने के बाद कम से कम उसे दूसरी चड्डी पहना दे।
 
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