जंगल में गीली चूत का मंगल

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दोस्तों मैं आज आपको नए मौसम में नयी गीली चूत चुदाई के किस्से को सुनाने जा रहा हूँ और मुझे उम्मीद है यह मेरी कामुक आत्मकथा खूब पसंद आएगी | दोस्तों मैं उन दिनों विरति पार्क, चेन्नई में नया - नया आया हुआ था और मेरे अपने दादाजी के साथ ही रहा करता था | मैं अपने कॉलेज के ३ वर्ष में नया नया दाखिला लिया था और सभी हरामी बच्चों में मैं जल्दी ही घुल नहीं पाया जिस वक्त मेरी मेरी दोस्तों रोशिनी से हुई जो मेरी ही तरह अकेली बैठा करती थी और थोड़ी बहुत अपने में सिमटी हुई हसंत रहा करती थी | हम दोनों अपना खाना अब धीरे एक साथ खाते और इसी बीच हमारी दोस्ती बढती चली गयी |

हम दोनों एक ही सीट पर बैठा करते थे जैसे की एक ही दाल पर तोता और मैना भी बैठते हैं | मैं बैठे हुए कभी उसकी खूबसूरती को निहारने में लग जाता था और बस जैसे होश ही गँवा देता था पलभर में | एक दिन जब हमारी टीचर पढ़ा रही थी तो मैंने अपने हाथ को उसके हाथ पर फिसला जिसपर रोशिनी के बदन में तो चिंगारियां उमड़ पड़ी और उसकी यह हालत देख मेरा बदन भी कसा जा रहा था | उसने कोई प्रतिक्रिया नैन जताई जसिके बाद मैंने अपने हाथ को उसके हाथ धीमे - धीमे सहलाये जाना ज़ारी रखा | अब मेरी नज़र रोशिनी की स्कर्ट के नीचे चिकनी गोरी टांगों पर पड़ी और अपनाप दूसरा हाथ रोशिनी की जाँघों पर फेरने लगा |

रोशिनी के अंदर अब जैसे ज्वालामुखी पंड रहा था और उसने आप पर काबू पाते हुए अपनी दोनों टांगों को भींच लिया | मेरी भी उस वक्त बस उसकी बदन की खूबसूरती को निहारते हुए सांसें अटक गयी थी | जब हमारे कॉलेज की छुट्टी हुई तो हम एकसाथ घर जा रहे थे जहाँ रोशिनी ने मुझे कक्षा में मेरी हरकतों के उप्पर सवाल किया | मैं पहले थोड़ी देर चुप रहा और अचानक उसे सामने के सूखे जंगल में हाथ पकडकर चुपके से ले गया | हमें वहाँ कोई नहीं देख सकता था झाडियों के पीछे और तभी मैंने रोशिनी के होठों को चूसना शुरू कर दिया और उसकी कमीज़ को उतार उसके चुचों को अपने हाथों के बीच मसलने लगा | वो बस मंद आँखों से सब का मज़ा ले रही थी और मैं उसके चुचों को हुए मुंह में भरके चूस रहा था |

मैंने रोशिनी की स्कर्ट को वहीँ हुक खोले उतार दिया और उसे उसकी पिली पैंटी में नंगी कर डाला | वो शर्मा रही थी मैं अब भी उस की चुत में थूक गिराया और गीली चूत में ऊँगली गुदगुदी कर रहा था और उसकी तड़प बढ़ रही थी | मैंने अब रोशिनी की गुलाबी चुत से अपने नंगे लंड को सटाए हुए बस हलके हलके लंड को अंदर देता हुआ चोदना शुर कर दिया | मैं अब उसे जोर - जोर अपने लंड के धक्कों से पेले जा रहा था और वो दर्द से करहा रही थी | उसका दर्द जब १० मिनट में हल्का हुआ तो मैं भी झड़ने की बारी में आ चूका था | उसकी चुत अब कितने भी बड़े लंड को अपने अंदर समाने लायक हो चुकी थी | दोस्तों उस दिन से हम दोनों एक दूसरे के सेक्स के साथी बन चुके थे |
 
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